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*जप चर्चा,* *पंढरपुर धाम से,* *7 जून 2021* *हरे कृष्ण!* *गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!* आज 840 स्थानों से भक्त जप चर्चा में उपस्थित हैं। इन उपस्थित भक्तों कि जय! *माधव हरि कि जय!* *हरि हरी!गौर हरि कि जय!* *जय जय श्रीचैतन्य जय नित्यानन्द। जयाद्वैतचन्द्र जय गौरभक्तवृन्द॥* जो मैंने कहा उससे आप अंदाजा लगा सकते हो कि आज चैतन्य महाप्रभु के संबंधित कुछ कथा या चर्चा होने वाली हैं। आज हैं...श्रील वृंदावन दास ठाकुर आविर्भाव तिथि। *श्रील वृंदावन दास ठाकुर आविर्भाव तिथि महोत्सव कि जय!* "वृंदावनदास ठाकुर", हरि हरि!जिन्होंने चैतन्य भागवत कि रचना कि, ये उनका परिचय हैं और जो स्वयं श्रील व्यास देव ही थें। कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने चैतन्य चरितामृत मे लिखा हैं- *कृष्ण - लीला भागवते कहे वेद - व्यास । चैतन्य - लीलार व्यास* *वृन्दावन - दास ।।* *(चैतन्य चरितामृथम,आदि लीला, 8.34)* अनुवाद: -जिस तरह व्यासदेव ने श्रीमद्भागवत में कृष्ण की सारी लीलाओं का संकलन किया है , उसी तरह ठाकुर वृन्दावन दास ने चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं का वर्णन किया हैं । कृष्ण लीला के रचईयता, जिन्होंने श्रीमद् भागवत लिखा था वह श्रील व्यासदेव ही अब वृंदावन दास ठाकुर के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने चैतन्य भागवत लिखा। जिन श्रील व्यासदेव ने श्रीमद्भागवत लिखा था ,उनही श्रील व्यासदेव ने अब चैतन्य भागवत लीखा हैं। कृष्णदास कविराज गोस्वामी आगे लिखते हैं *चैतन्य - मङ्गल ' शुने यदि पाषण्डी , यवन । सेह महा - वैष्णव हय* *ततक्षण ।।* ( श्रीचैतन्य चरितामृत,आदि लीला, 8.38) अनुवाद:-यदि बड़ा से बड़ा नास्तिक भी चैतन्य मंगल को सुने , तो वह तुरन्त महान् भक्त बन जाता है । चैतन्य भागवत कि रचना करने वाले कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकतें। चैतन्य भागवत जैसा ग्रंथ लिखने का कार्य कोई मनुष्य नहीं कर सकता। ऐसा हैं भी,कोई यदि चैतन्य भागवत को देखेगा पढेगा, तो वह भी कहेगा कि यह किसी साधारण लेखक मनुष्य कि रचना हो ही नहीं सकती। कृष्णदास कविराज गोस्वामी आगे लिखते हैं- *मनुष्ये रचिते नारे ऐछे ग्रन्थ धन्य । वृन्दावन - दास - मुखे वक्ता श्री -* *चैतन्य ।।* ( श्रीचैतन्य चरितामृत'आदि लीला, 8.39) अनुवाद: -इस पुस्तक का विषय इतना भव्य है कि लगता है मानो श्री वृन्दावन दास ठाकुर की रचना के माध्यम से साक्षात् श्री चैतन्य महाप्रभु स्वयं बोल रहे हों *चैतन्य भागवत कि जय...!* हम यहां कह तो रहे हैं और हम सब जानते हैं कि चैतन्य भागवत कि रचना वृंदावन दास ठाकुर ने की जो श्रील व्यास देव ही हैं।लेकिन कृष्णदास रविदास गोस्वामी कहते हैं, नही-नही इसके वक्ता तो स्वयं चैतन्य महाप्रभु ही है, या दूसरे शब्दों में इसको कहा जा सकता है कि, चैतन्य महाप्रभु ने वृंदावन दास ठाकुर को निमित्य बनाया या उनसे लिखवाया तो उसके लेखक तो स्वयं चैतन्य महाप्रभु और वक्ता भी स्वयं चैतन्य महाप्रभु ही हैं और वृंदावन दास ठाकुर जो श्रील व्यास देव, प्रगट हुए हैं।उनको चैतन्य महाप्रभु ने निमित्य बनाया हैं। *वृन्दावन - दास - पदे कोटि नमस्कार । ऐले ग्रन्थ करि ' तेंहो तारिला* *संसार ।।* *(श्रीचैतन्य चरितामृत, आदि लीला, 8.40)* अनुवाद: -मैं वृन्दावन ठाकुर के चरणकमलों पर कोटि - कोटि प्रणाम हूँ । उनके अतिरिक्त अन्य कोई व्यक्ति सभी पतितात्माओं के उद्धार के लिए ऐसा अद्भुत ग्रंथ नहीं लिख सकता था। कृष्णदास कविराज गोस्वामी,चैतन्य चरितामृत के लेखक कह रहे हैं कि वृंदावन दास ठाकुर के चरणों में कोटि-कोटि नमस्कार।वह नमस्कार कर रहे हैं,तो हम भी नमस्कार करते हैं।आज के दिन को कोटि कोटि नमस्कार।वृंदावन दास ठाकुर के चरण कमलों में कोटि कोटि नमस्कार।*अनुग्रहितो स्मि* आपके अनुग्रह से संसार को और फिर हमें चैतन्य भागवत प्राप्त हुआ हैं और पहले आपको प्राप्त करना होगा फिर आप कह सकते हो हम आपके आभारी हैं। हरि हरि! आपने जो इस ग्रंथ की रचना करके चमत्कार किया हैं,आपके चरणों में हमारा नमस्कार।कैसा ग्रंथ? *तारिला संसार* जिस ग्रंथ ने इस सारे संसार को तार लिया या इस संसार को तारने की क्षमता रखने वाला यह ग्रंथ हैं, चैतन्य भागवत। *ताँर कि अद्भुत चैतन्य चरित - वर्णन । याहार श्रवणे शुद्ध कैल त्रि -* *भुवन ।।* (श्रीचैतन्य चरितामृत, आदि लीला, 8.42) अनुवाद:-अहा ! चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं का कैसा ही अद्भुत वर्णन उन्होंने दिया है । तीनो लोकों में जो भी उसे सुनता है , वह शुद्ध ( पवित्र ) हो जाता है । इस चैतन्य भागवत के श्रवण से सारा त्रिभुवन शुध्द होता है, पवित्र होता हैं। *गौरांगेर दु’टि पद, याँर धन सम्पद, से जाने भकतिरस-सार।* *गौरांगेर मधुर लीला, याँ’र कर्णे प्रवेशिला, हृदय निर्मल भेल ता’र*॥*1॥* अनुवाद:-श्रीगौरांगदेव के श्रीचरणयुगल ही जिसका धन एवं संपत्ति हैं, वे ही वयक्ति भक्तिरस के सार को जान सकते हैं। जिनके कानों में गौरांगदेव की मधुर लीलायें प्रवेश करती हैं, उनका हृदय निर्मल हो जाता है। *गौरांगेर मधुर लीला, याँ’र कर्णे प्रवेशिला, हृदय निर्मल भेल ता’र* जैसे हम इस गीत में सुनते ही हैं। *गौरांगेर मधुर लीला* गौरांग कि मधुर लीला का वर्णन जो वृंदावन दास ठाकुर ने किया है , *याँ’र कर्णे प्रवेशिला* जीव के कर्णो में और फिर कर्णों से ह्रदय में प्रवेश करेगी,ह्रदय तक पहुंच जाएगी। फिर यह लीला आत्मा को स्पर्श करेगी, और फिर तार ह्रदय निर्मल भय, उस व्यक्ति का हृदय निर्मल होगा,ऐसा हैं, चैतन्य भागवत। ऐसा भाष्य स्वयं कृष्ण दास कविराज गोस्वामी कर रहे हैं । हरि हरि! आज के दिन वृंदावन दास ठाकुर का जन्म हुआ।आज के दिन मतलब 500 वर्ष पूर्व।वह समय था जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का, निमाई का सन्यास हो चुका था और सन्यास के ऊपरांत कुछ 4 वर्ष बीत चुके थे।जब चैतन्य महाप्रभु 29 साल के थे और चैतन्य महाप्रभु की मध्य लीला संपन्न हो रही थीं,तब वृंदावन दास ठाकुर जन्मे थे।श्रीवास ठाकुर को तो आप जानते ही हो, श्रीवास आंगन को आप जानते ही हो,जो मायापुर में हैं। श्रीवास और श्रीनिधि,श्रीपति,श्रीराम ऐसे चार भाई थें। मुझे पता नहीं कि किस भाई की,लेकिन श्रीवास के एक भाई कि पुत्री नारायणी थीं।"नारायणी कि भक्ति और भाव का क्या कहना"!चैतन्य महाप्रभु का अंग-संग जिस नारायणी को प्राप्त था और चैतन्य महाप्रभु के उच्चिष्ट को महा महाप्रसाद को ग्रहण करने वाली कृपा पात्र नारायणी के पुत्र के रूप में वृंदावन दास ठाकुर जन्में, प्रकट हुए। एक समय नारायणी का विवाह हुआ और यह सब डिटेल्स भी हैं, कि जब वह गर्भवती थीं तो विधवा भी हो गई। नारायणी ने वृंदावन दास ठाकुर का लालन-पालन मामगाछी में किया।नवद्वीप में एक द्वीप हैं जिसे गोद्रुमव्दीप कहते हैं। गोद्रुमव्दीप में है मामगाछी।आप लोग परिक्रमा नहीं करते यह समस्या हैं, इसलिए समझ में नहीं आता, कौन सी लीला कहां हुई, और कौन से भक्त परिकर कहां रहे, कौन सा कार्य किसने किया।परिक्रमा में जाया करो! नवद्वीप मंडल परिक्रमा, वृंदावन ब्रजमंडल परिक्रमा मे जाया करो!हम जब परिक्रमा में जाते हैं तो वृंदावन दास ठाकुर जहा रहे और संभावना हैं, वहीं ग्रंथों की रचना भी की होगी उन्होंने चैतन्य भागवत वही लिखा होगा। वहा हम रुकते हैं, परिक्रमा का रात्रि का पड़ाव तो नहीं होता मार्ग में या कई बार हम वहां सुबह का नाश्ता करते हैं। वहा पहुँच जाते हैं और खूब कथाएं होती हैं, वृंदावन दास ठाकुर का संस्मरण होता हैं, वृंदावन दास ठाकुर का निवास स्थान और उनके सेवित विग्रह भी वहा हैं।हरि हरि! उनहोने अपने ग्रंथ का नाम पहले तो चैतन्य मंगल ही दिया था लेकिन जब पता चला कि चैतन्य मंगल नाम का एक ग्रंथ लोचन दास ठाकुर ने पहले ही लिखा हैं, यह श्री खंड के, एक क्षेत्र हैं।बांग देश का या बंगाल का श्रीखंड क्षेत्र,वहा के लोचन दास ठाकुर ने चैतन्य मंगल लिखा हैं,तो उनहोने अपने चैतन्य मंगल का नाम परिवर्तन करके चैतन्य भागवत नाम रखा। हरि हरि! मुरारी गुप्त ने भी ग्रंथ लिखा हैं। मुरारी गुप्त मायापुर के ही थें।वह चैतन्य महाप्रभु के परिकर थें। उन्होंने श्रीकृष्ण चैतन्य चरित्रामृत नाम का ग्रंथ लिखा हैं। और फिर जब कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने ग्रंथ लिखा तो फिर उन्होंने अपने ग्रंथ का नाम रखा चैतन्य चरितामृत। लेकिन मुरारी गुप्त ने श्री कृष्ण चैतन्य चरितामृत नाम का ग्रंथ पहले ही लिखा हुआ था ।ऐसे अलग अलग नाम *चैतन्य मंगल* फिर *चैतन्य भागवत*, *श्रीकृष्ण चैतन्य चरितामृत* वैसे ये तीन ग्रंथ चैतन्य लीला के कई सारे ग्रंथ हैं, किंतु यह तीन गौडीय वैष्णव द्वारा लिखे हुए हैं। हरि हरि! हमको जो मान्य हैं, या स्वीकृत हैं, उसमें से यह मुख्य मुख्य ग्रंथ है। चैतन्य मंगल,श्रीकृष्ण चैतन्य चरितामृत, चैतन्य भागवत, और चैतन्य चरित्रामृत हैं। चैतन्य चरितामृत बाद में लिखा गया हैं, यह देरी से लिखा गया।बाकी तीन ग्रंथ वह हैं जो नाम मैंने पहले बताएं हैं।यह ग्रंथ चैतन्य महाप्रभु जब थें,जब लीलाएं संपन्न हो रही थी उसी समय लिखे हुए हैं,किंतु चैतन्य चरित्रामृत वृंदावन में राधा कुंड के तट पर लिखा गया उस समय चैतन्य महाप्रभु के अंतर्ध्यान होने के 50-60 वर्षों के बाद चैतन्य चरित्रामृत ग्रंथ लिखा गया।उस वक्त कृष्ण दास कविराज गोस्वामी की वृद्धावस्था चल रही थी। हरि हरि! हमको यह सभी ग्रंथ पढ़ने चाहिए और इनमें से दो ग्रंथों का इस्कॉन में अधिक प्रचार हैं।वैसे चैतन्य मंगल भी हैं। श्री कृष्ण चैतन्य चरित्रामृत संस्कृत में हैं और बाकी तीन जिनका हम उल्लेख कर रहे हैं,वह बंगला भाषा में हैं।चेतनय भागवत पर गोडिय भाष्य श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने लिखा हैं, इसलिए चेतनय भागवत गौड़ीय संप्रदाय,गोडी़य मठ और इस्कॉन में भी प्रसिद्ध हैं कयोकि श्रील प्रभुपाद के गुरु महाराज ने इस भाष्य को लिखा और समझाया हैं।श्रील प्रभुपाद ने चैतन्य चरित्रामृत का अंग्रेजी में अनुवाद किया और अब चेतनय चरित्रामृत ही इस्कॉन में अधिक प्रचलित हैं, किंतु इस बात को नोट करना होगा कि चेतनय चरित्रामृत एक दृष्टि से अधूरा ग्रंथ हो जाता हैं।वैसे पूर्ण भी है *ओम पूर्ण मदः, पूर्णमिदं ,पूर्णात पूर्ण मुदच्यते,पूर्णस्य पूर्णमादाय* *पूर्णमेववशिष्यते* *( ईशोपनिषद)* *अनुवाद:भगवान पूर्ण हैं और पूर्ण से जो भी उत्पन्न होता है वह भी* *पूर्ण हैं।* इस सिद्धांत के अनुसार‌ पूर्ण भी हैं, किंतु फिर भी अधूरा ही हैं।कयोकि कृष्ण दास कविराज गोस्वामी ने जब चैतन्य चरित्रामृत को लिखा तो उन्होंने उन लीलाओं को लिखा ही नहीं या संक्षेप में लिखा जिन लीलाओं का वर्णन वृंदावन दास ठाकुर ने अपने चैतन्य भागवत में किया था, तो जो लीलाएं चैतन्य भागवत में हैं, वह चैतन्य चरितामृत में या तो संक्षिप्त में मिलेंगी या मिलेंगी ही नहीं और जिन लीलाओ को कृष्ण दास कविराज गोस्वामी ने चैतन्य चरितामृत में विस्तार से लिखा हैं,वह लीलाएं आपको चैतन्य भागवत में नहीं मिलेंगी। इसीलिए जब चेतनय भागवत और चेतनय चरितामृत को मिलाते हैं तब हमें एक पूर्ण चित्र मिलता हैं," एक पूर्ण ग्रंथ"।तब चेतनय लीला का संपूर्ण वर्णन हमको प्राप्त होता हैं।वृंदावन दास ठाकुर जिनहोनें चैतन्य भागवत लिखी हैं उन्होंने चेतन महाप्रभु की नवदीप लीलाएं बहुत ही विस्तार से लिखि हैं।उनकी बाल लीला उनकी किशोरावस्था विद्या विलास इत्यादि इत्यादि और निमाई संयास वृंदावन दास ठाकुर की चेतनय भागवत में निमाई संयास तक आदि लीला होती हैं या उसे आदि खंड कहते हैं।चेतनय भागवत में खंड चलते हैं,जैसें आदि खंड,मध्य खंड इसी को कृष्ण दास कविराज गोस्वामी आदि लीला,मध्य लीला, अंत: लीला कहते हैं। चेतनय भागवत में खंड कहां हैं और चेतनय चरितामृत में केवल लीला ही कहा हैं।जब चैतन्य महाप्रभु के पिता जी नहीं रहें, तब चैतन्य महाप्रभु उनकी श्राद्ध क्रिया के लिए गया गए और वहां पर ईश्वर पुरी के साथ मिलन हुआ और ईश्वर पूरी से दीक्षित हुए।यहां तक चेतनय भागवत का आदि खंड हैं और ईश्वर पूरी से दीक्षित होने से लेकर चैतन्य महाप्रभु की सन्यास दीक्षा तक यानी निमाई संयास तक(उस वक्त चैतन्य महाप्रभु 24 साल के हुए थे ) मध्य खंड हैं। आदि खंड और मध्य खंड में चैतन्य महाप्रभु की विस्तार से नवदीप लीलाएं हैं। उनके जन्म से लेकर सन्यास तक की लीलाएं हैं। किंतु चेतनय चरितामृत मे कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने आदि लीला को संक्षिप्त में लिखा हैं और चेतनय चरित्रामृत में चैतन्य महाप्रभु की जो जगन्नाथपुरी में मध्य लीला और अंत लीलाएं हैं वहा कृष्ण दास कविराज गोस्वामी ने विस्तार से लिखा हैं किंतु उस लीला का वर्णन वृंदावन दास ठाकुर ने‌ अपनी चेतनय भागवत में संक्षिप्त में किया हैं। हरि हरि!वृंदावन दास ठाकुर नित्यानंद प्रभु के शिष्य भी रहे।उनको चैतन्य महाप्रभु का अंग संग या दर्शन तो प्राप्त नहीं था, यहां तक कि जब नवद्वीप लीलाएं संपन्न हो रही थी तब तक वृंदावन दास ठाकुर जन्में भी नहीं थे किंतु आगे चैतन्य महाप्रभु तो जगन्नाथपुरी में रहे और चैतन्य महाप्रभु ने नित्यानंद प्रभु को भेजा कि जाओ बंगाल जाओ वहां जाकर प्रचार करो। जब उन्हें आदेश हुआ तब नित्यानंद प्रभु बंगाल आए और नाम हट का खूब प्रचार प्रसार किया। हरि नाम का प्रचार किया। उस समय वृंदावन दास ठाकुर नित्यानंद प्रभु के शिष्य बन जाते हैं। इसीलिए चेतनय भागवत में नित्यानंद प्रभु की लीलाओं का अधिक वर्णन मिलेगा और चेतनय चरित्रामृत में नित्यानंद प्रभु की लीलाओं का संक्षिप्त में वर्णन हैं इस प्रकार चैतन्य भागवत और चैतन्य चरितामृत को हम तुलनात्मक दृष्टि से भी समझ सकते हैं। चैतन्य चरित्रामृत में कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने संस्कृत का अधिक प्रयोग किया हैं। इसमें वह कई सारे शास्त्रों से उदाहरण देते हैं और सिद्धांतों और तत्वों की बात करते हैं। किंतु चेतनय भागवत तो लीला प्रधानय हैं चेतनय भागवत में माधुर्य भी हैं रसिक लोग इसका अधिक आस्वादन करते हैं।हरि हरि। इस तरह व्यास देव ने चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं में हिस्सा लिया या प्रवेश किया या उनकी जो ग्रंथों की लिखने की सेवा हैं उसको उन्होंने चेतनय लीला में भी पूरा किया। जिस प्रकार चैतन्य महाप्रभु श्री कृष्ण ही हैं, श्री कृष्ण और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अभिन्न हैं उन में कोई भेद नहीं हैं, वैसे ही वेदव्यास और वृंदावन दास ठाकुर में कोई भेद नहीं हैं दोनों अभिन्न हैं ।श्री कृष्ण,श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में नवद्वीप में प्रकट हुए। और उनके साथ साथ श्रील व्यास देव भी प्रकट हुए।एक दृष्टि से व्यास देव भगवान के शक्तावेश अवतार ही हैं। कृष्ण तो अवतारी ही हैं, अवतारी प्रकट हुए चैतन्य महाप्रभु के रूप में और श्रील व्यास देव जो शक्तावेश अवतार हैं आज ही के दिन वृंदावन दास ठाकुर के रूप में प्रकट हुए।पूरा गोडीय वैष्णव आज के दिन वृंदावन दास ठाकुर का आविर्भाव दिवस मनाएगा। वृंदावन दास ठाकुर तिथि आविर्भाव महोत्सव की जय। चैतन्य भागवत को सुनो और पढ़ो और जो कृपा की वृष्टि वृंदावन दास ठाकुर ने की हैं उसमें नहाओ या गोते लगाओ और हमारे लिए *वृन्दावन - दास - पदे कोटि नमस्कार ।* *ऐले ग्रन्थ करि ' तेंहो तारिला संसार ।।* *आदि लीला 8.40* *अनुवाद* *मैं वृन्दाव ठाकुर के चरणकमलों पर कोटि - कोटि प्रणाम हूँ । उनके* *अतिरिक्त अन्य कोई व्यक्ति सभी पतितात्माओं के उद्धार के लिए* *ऐसा अद्भुत ग्रंथ नहीं लिख सकता था* हम को तारने के लिए,हम को बचाने के लिए या हमारे उद्धार के लिए जिन्होंने पहले श्रीमद्भागवत लिखा था, उन्होंने अब चैतन्य भागवत भी लिखा हैं। इसका जरूर श्रवण,कीर्तन और अध्ययन करो।इसका पठन और पाठन करो। इसे पढ़ो और सुनाओ। इससे वृंदावन दास ठाकुर हमसे और आपसे प्रसन्न होंगे।अगर चेतनय भागवत नहीं पढ़ा तो क्या होगा? श्रुति शास्त्र निंदनम्। इसकी कल हम चर्चा कर रहे थे *श्रुति-शास्त्र -निन्दनम्* *वैदिक शास्त्रों अथवा प्रमाणों का खंडन करना* *चौथा नाम अपराध* चौथा नाम अपराध क्या हैं? शास्त्रों की निंदा करना और सबसे बड़ी निंदा क्या हैं? शास्त्रों का अध्ययन ही ना करना इसलिए चेतनय भागवत भी जरूर पढ़िए। यह अलग-अलग स्थानों पर बांग्ला भाषा में, हिंदी भाषा में उपलब्ध हैं।आप श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर का गोडीय भाष्य भी पढ़ सकते हो।मैं आपको चेतनय भागवत दिखाता हूंँ फिर हम यही रुकेंगे। बस आप को दिखाने के बाद मैं अपनी वाणी को यहीं विराम दूंगा। यह चेतनय भागवत हैं(गुरु महाराज चैतन्य भागवत् को दिखाते हुए) वृंदावन दास ठाकुर द्वारा रचित। जो मैं दिखा रहा हूं यह हिंदी में हैं। नीचे श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर का गोड़ीय भाष्य हैं। इसे प्राप्त करने के कई सारे जरिए हैं।इंटरनेट से भी देख सकते हैं। अंग्रेजी में चेतनय भागवत पर कई सारे टॉक्स हैं।ठीक हैं।*गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल*

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