Hindi

जप चर्चा, पंढरपुर धाम, 06 जून 2021 हरि बोल, गौरंग। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल आप खुश हो जाते हो। बंगाली भाषा में बाहुतुले कहते है। हरि हरि। आप बहुत उत्साहित लग रहे हो। वैसे आप भी हमेशा तैयार रहते हो। आप जप तो कर ही रहे थे और कर ही रहे हो। यह जप करने से और भी उत्साही बन जाते हैं। उत्साहवर्धक जप होता है और होना भी चाहिए। हरि हरि। तो आज एकादशी भी है। है कि नहीं? मराठी लोग समझेंगे एकादशी के दिन दुगना खाते हैं। एकादशी के दिन लोग ज्यादा खा लेते हैं। इस्कॉन में भी एकादशी होती है। उपवास लगभग होता ही नहीं, कई सारे निर्जला ही करते हैं, अल्पाहार भी करना चाहिए। वैष्णव के 26 गुण हैं और उसमें एक है मित भुक। मित मतलब सीमित भोजन। इसको हम उपवास कहते हैं। उपवास का गहरा और गंभीर अर्थ है। तो उप मतलब पास और वास मतलब रहना, पास में रहना, उपवास मतलब पास में रहने का दिन है। साधक को पास में रहना चाहिए। किसके पास रहना चाहिए? भगवान के पास रहने का, भगवान के निकट जाने का, पहुंचने का या अधिक निकट पहुंचने के लिए प्रयास का एकादशी दिन है। हरि हरि। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे करने से क्या होता है? यह राधा है, कृष्ण है, एकादशी है, पास में जाने का दिन है मतलब उपवास का दिन है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण ही तो भगवान है। हम निकट कैसे जाएंगे? जप करते हुए जाएंगे। हम उनके पास जाते हैं। अधिक पास जाने का क्या अर्थ है? उसका क्या माध्यम है या मंच है? वह महामंत्र है इसको हम इस तरह समझ सकते हैं। हरि हरि। हम ध्यानपूर्वक जप करेंगे और उपवास करेंगे। तो और पास पहुंच जाएंगे। हरि हरि। मुझे कुछ कहना है आपसे इसलिए मैं थोड़ा मंच बना रहा हूं। संक्षिप्त में कहना है और राजा कुलशेखर की प्रार्थना भी सुनानी है। उसके अलावा एकादशी का दिन है। तो ध्यानपूर्वक जप करना चाहिए। हरि हरि। लेकिन ऐसा क्यों होता है कि ध्यानपूर्वक जप नहीं हो पाता? जप मतलब ही ध्यान या नाम स्मरण या मंत्र मेडिटेशन इसको कहते हो। ध्यान क्यों नहीं लगता? ध्यानपूर्वक जप क्यों नहीं होता? इसके कारण बताए हैं। एक मुख्य कारण अपराध होते हैं। हमसे नाम अपराध होते हैं। अपराधों के भी कई प्रकार हैं। उसमें से जो नाम अपराध करने से हमारा ध्यानपूर्वक नहीं होता। मतलब उपवास नहीं होता। निर्जला भी कर रहे हैं, कुछ अल्पाहार भी ले रहे हैं या फलाहार भी हो रहे हैं या दुग्ध पान से ही निभा रहे हैं। तो भी उपवास कर भी रहे हैं और उपवास हो भी नहीं रहा। खानपान की दृष्टि से उपवास हो रहा है। किंतु भगवान के पास पहुंचना है। भगवान के सानिध्य को अनुभव करना है। इतना ही नहीं वैसे भगवान का दर्शन भी करना है। भगवान के पास जाएंगे तो दर्शन होगा ही ना। हरि हरि। मंत्र मेडिटेशन मतलब ध्यान। भगवान के रूप का भी ध्यान। *सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी कर कटावरी ठेवोनिया* भगवान का ध्यान और भगवान को याद कर रहे हैं, स्मरण पर भी कर रहे हैं और देख भी रहे हैं। देख कर ध्यान कर रहे हैं। भगवान को निहार रहे हैं। इसको ध्यान कहते हो। उपवास होगा तब पास पहुंचेंगे, तो ध्यान भी होगा। किंतु ध्यान नहीं लगता, उपवास नहीं होता, भगवान के पास नहीं पहुंचते, ध्यानपूर्वक जप नहीं होता क्योंकि हमसे अपराध होते हैं और यहां पर नाम अपराध की बात चल रही है। यह जो नाम अपराध है, फिर विधि निषेध की बात से सोचा जाए तो जप करें या ध्यानपूर्वक जप करें यह विधि है। निषेध क्या है? अपराध ना करें। तो ध्यानपूर्वक जप करो और क्या मत करो? अपराध करो मत करो। 10 नाम अपराध है। भक्ति रसामृत सिंधु में रूप गोस्वामी ने इन 10 नाम अपराधों का उल्लेख किया है। वह भी 10 नाम अपराध रूप गोस्वामी के मनगढ़ंत बातें नहीं है। उन्होंने यह 10 नाम अपराध नहीं बनाए, उसकी सूची नहीं बनाई। पद्मपुराण में 10 नाम अपराधों का जिक्र आता है। हरि हरि। इस संसार को ऐसे सृष्टि के प्रारंभ से ऐसे 10 नाम अपराध पता ही है। तो 10 नाम अपराध, श्रील प्रभुपाद की कृपा से, भक्ति रसामृत सिंधु संस्कृत ग्रंथ का अंग्रेजी में अनुवाद किया और फिर भक्तों की मदद और कृपा से प्रभुपाद के अनुवादित भक्ति रसामृत सिंधु अंग्रेजी ग्रंथ और हिंदी में और कई भाषाओं में हैं। 10 नाम अपराधो से हमको अवगत होना चाहिए मतलब हमे पता होना चाहिए ताकि हम क्या करें? अपराध नहीं करे। अपराध पता ही नहीं है तो अपराध कैसे करोगे? तो आपको 10 नाम अपराधो से अवगत होना चाहिए, आपको पता होना चाहिए। ताकि आप अपराधो को टाल सकते हो। मुझे पता ही नहीं था कि इसको नाम अपराध कहते हैं। अरे मैंने तो वैष्णव अपराध किया। संतों और साधु की निंदा करना अपराध है। यह सूची में पहला अपराध है। बहुत बड़ा अपराध है। साधु की निंदा नहीं करना। निंदा करना या अपराध करना उसके अंतर्गत बहुत कुछ करना। *एवं कायेन मनसा वचसा च मनोगतम् ।* *परिचर्यमाणो भगवाम्भक्तिमत्परिचर्यया ॥ ५१ ॥* *पुंसाममायिनां सम्यग्भजतां भाववर्धनः ।* *श्रेयो दिशल्यभिमतं यद्धादिषु देहिनाम् ॥ ६० ॥* (श्रीमद भगवतम 4.8.59) तात्पर्य: इस प्रकार जो कोई गम्भीरता तथा निष्ठा से अपने मन , वचन तथा शरीर से भगवान् की भक्ति करता है और जो बताई गई भक्ति - विधियों के कार्यों में मग्न रहता है , उसे उसकी इच्छानुसार भगवान् वर देते हैं । यदि भक्त भौतिक संसार में धर्म , अर्थ , काम भौतिक संसार से मोक्ष चाहता तो भगवान् इन फलों को प्रदान करते हैं । *कायेन मनसा वचसा* अपराध कैसे होते हैं? शरीर से अपराध हो सकते हैं। कोई थप्पड़ मरेगा, वचसा से कोई गाली गलौज होगा, मन से ईर्ष्या द्वेष के विचार होंगे। हरि हरि। हम तो पूरी व्याख्या करने का समय तो मिलता ही नहीं। इस बात को समझो, नोट करो। कई बातें तो नई नहीं है। हम जब इस्कॉन से जुड़ते ही, यह शिक्षा दी जाती है, प्रारंभ में ही, जब हम नए भक्त होते हैं। हमारे मंदिरों में प्रतिदिन जप प्रारंभ करने के पहले 10 नाम अपराधों का उल्लेख होता है। 10 नाम अपराध सब गिनाए जाते हैं। सब मिलकर कहते हैं। हरि हरि। जब दीक्षा होती है, तब दीक्षा के समय भी श्रील प्रभुपाद ने ऐसा प्रारंभ किया। 16 माला का प्रतिदिन जप करो। ऐसा आदेश उपदेश भी होता है। आपको माला दी जाती है और आपका नाम यह है कृष्ण दास या धीर गौरांग दास। उस समय 10 नाम अपराध दिखाएं और सुनाएं जाते हैं। जो बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। हिंदू जगत में कहो, हिंदुओं को पता नहीं होता है, नाम अपराधी होते हैं, वह नाम तो लेते रहते हैं। वह हरे कृष्ण वाले नहीं है। नाम जप करने वाले, कीर्तन करने वाले, दुनिया करती है। हिंदू भी करते हैं। लेकिन और कई जन लोग साधक, हिंदू इनको अपराधों की कोई चिंता नहीं होती। अपराधों के बारे में कोई उनको सुनाता ही नहीं, कोई सुनता ही नहीं, कोई पालन नहीं करता और कीर्तन भी हो ही रहा है। जप भी हो ही रहा है और साथ में अपराध भी हो रहे हैं। तो फिर क्या नहीं होगा? यह कृष्ण प्रेम प्राप्त नहीं होने वाला है। अपराधियों के लिए कृष्ण प्रेम या कुछ प्रेम का हल्का अनुभव होगा। किंतु जो प्रेम का सागर है। *चेतो - दर्पण - मार्जन भव - महा - दावाग्नि - निर्वापणं श्रेयः कैरव - चन्द्रिका - वितरणं विद्या - वधू - जीवनम् आनन्दाम्बुधि - वर्धन प्रति - पद पूर्णामृतास्वादन सर्वात्म - स्नपन पर विजयते श्री - कृष्ण - सङ्कीर्तनम् ॥12 ॥* (अंतिम लीला 20.12) अनुवाद: भगवान कृष्ण के पवित्र नाम के संकीर्तन की परम विजय हो , जो हृदय रूपी दर्पण को स्वच्छ बना सकता है और भवसागर रूपी प्रज्वलित अग्नि के दुःखों का शमन कर सकता है । यह संकीर्तन उस वर्धमान चन्द्रमा के समान है , जो समस्त जीवों के लिए सौभाग्य रूपी श्वेत कमल का वितरण करता है । यह समस्त विद्या का जीवन है । कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन दिव्य जीवन के आनन्दमय सागर विस्तार करता है । यह सबों को शीतल और मनुष्य को प्रति पग पर पूर्ण अमृत का आस्वादन करने में समर्थ बना। *आनन्दाम्बुधि - वर्धन* प्रति - पद पूर्णामृतास्वादन सर्वात्म - स्नपन* इसका साक्षात्कार नहीं होगा। जो जप भी करते हैं और साथ ही में अपराध भी कर रहे हैं। सावधान या साधु सावधान, तो यह 10 नाम अपराध हमको पता होने चाहिए और याद रखना चाहिए। हमको 10 नाम अपराध पता होने चाहिए। हमें याद रखने चाहिए। याद रखेंगे तो हम उन अपराधों को टाल सकते हो। हरी हरी। जो भी भक्त अपने आपको वैष्णव मानते हैं उनको यह 10 नाम अपराध नहीं करने चाहिए। ताकि उनको कृष्ण प्रेम प्राप्त हो सके जो जीवन का लक्ष्य है। इस्कॉन मंदिरों में ऐसे अंग्रेज़ी में भक्त हर प्रातः काल को कहते है । जो अपने आप को वैष्णव मानते हैं उनको यह दस नाम अपराध टालना चाहिए ताकि उन्हें ताकि शीघ्र अति शीघ्र कृष्ण प्रेम प्राप्त हो जीवन का जो इस मनुष्य जीवन का लक्ष्य हैं। प्रेम प्राप्त हो या प्रेममयी सेवा प्राप्त हो। *पहला नाम अपराध* साधु निंदा हैं। महाभागवतो की निंदा करना अपराध है। इसका अर्थ यह नहीं है कि छोटे मोटे महाभागवत है जैसे कि भक्त चैतन्य की हम निंदा कर सकते हैं। ऐसी बात नहीं हैं कि कोई नया है, यह छोटा है उनके चरणो में अपराध कर सकते हो। बड़े जो महात्मा है, महाभागवत हैं जैसे प्रभुपाद उनके चरणों में अपराध नहीं करना चाहिए। ऐसी बात नहीं हैं कि कोई महाभागवत या लघु भागवत है, तो उनके चरणों में भी और कोई भागवत, महात्मा व साधू अपराध नहीं करना चाहिए। हरि हरि। *जीवे दया वैष्णव सेवन*। जितने भी जीव है, उन पर दया दिखानी चाहिए। किसी भी की निंदा नहीं करना चाहिए। हरि हरि। *दूसरा नाम अपराध* यह जो देवी देवता है, यह भगवान से स्वतंत्र नहीं हैं। ना ही भगवान के समक्ष हैं। देवी देवता स्वतंत्र नहीं है। बस कृष्ण ही स्वतंत्र है, भगवान ही स्वतंत्र हैं, अभिज्ञ स्वराट। सारे देवता भी भगवान पर ही निर्भर हैं। भगवान से ही नियंत्रित है। भगवान की अध्यक्षता सभी के ऊपर हैं। जिनमें देवी देवता भी सम्मिलित हैं और देवता स्वतंत्र नहीं है। भगवान की श्रेणी के नहीं है। हरि हरि। जो विष्णु तत्व के होते हैं उन्हें भगवान कहते हैं। तो ऐसे कुछ शक्ति तत्व भी देवी हैं। देवी तो शक्ति हों गयी। हरि हरि। भगवान की शक्ति के कई प्रकार हैं। *न तस्य कार्य करणं च विद्यते न तत्समश्चाभ्यधिकश दृश्यते ।* *परास्य शक्तिर्विविधैव श्रुयते स्वाभाविकी ज्ञानवलक्रिया च ॥ ८ ॥* (श्वेताश्वर उपनिषद 6.8) ब्रह्मा भी जीव है। ब्रह्मा जीव तत्त्व हैं। जैसे की आप जीव हो, मैं जीव हूँ, तो ब्रह्मा भी जीव हैं, जीव तत्त्व हैं। तो विशेष कुछ भगवान अनंत काल की शक्ति और कुछ विशेष शक्ति प्रदान करते हैं और किसी जीव को पद देते हैं। आप ब्रह्मा बनो, आप यह बनो, आप इंद्र बनो, आप चंद्र बनो। वास्तव में वो जीव ही होते हैं और कुछ विशेष हो सकते हैं। शक्ति हैं या देवी देवता शक्ति है और कुछ अलग अलग श्रेणियां हैं। वैसे जीव भी तटस्थ शक्ति है। तो यह समझना है कि भगवान भी विष्णु तत्व होते हैं। विष्णु तत्व नाम का एक तत्व हैं। हर एक का एक तत्त्व होता हैं। जीव तत्व हैं या शक्ति तत्व हैं। कई सारे नाम तत्व है। हर एक का तत्व होता हैं। तत्त्वता जानना है। एक विष्णु तत्व है और दूसरा जीव तत्व है और शक्ति तत्व भी है। हरि हरि। तो औपचारिक दृष्टि से हम देवी देवताओं की आराधना या उपासना तो नहीं करते किंतु उनकी भी तो निंदा नहीं करनी है। उनका भी सत्कार सम्मान हमें भी करना हैं। यदि हम सत्कार सम्मान नहीं करेंगे। तो हम अपराध करेंगे। *तृणादपि सु - नीचेन तरोरिव सहिष्णुना ।* *अमानिना मान - देन कीर्तनीयः सदा हरिः ।।* (अंतिम लीला, 20.21) अनुवाद: जो अपने आपको घास से भी तुच्छ मानता है , जो वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु है तथा जो निजी सम्मान न चाहकर अन्यों को आदर देने के लिए सदैव तत्पर रहता है , वह सदैव भगवान के पवित्र नाम का कीर्तन अत्यन्त सुगमता से कर सकता है । तो वैष्णव *अमानिना मान - देन* चींटी का भी सत्कार सम्मान करेगा। तो देवताओं का क्यों नहीं? हरि हरि। *तीसरा नाम अपराध* गुरु अवज्ञा या अवेलहना – गुरु के दिए हुए आदेश का पालन नहीं करना। यह गुरु अवज्ञा है। ऐसे करने से होता है नाम अपराध। मेंने तो वैष्णव अपराध किया यह नाम अपराध का इससे क्या संबंध है ? क्यूँकि नाम भगवान हैं और वैष्णव भगवान को प्रिय हैं और हर जीव भगवान को प्रिय हैं। ऐसे भगवान के प्यारे दुलारे जीव की निंदा करी, तो भगवान हमसे अप्रसन्न होंगे, ऐसा संबंध है। भगवान हम आपका थोड़ी बिगाड़ हैं। यह हरी नाम, हम तो बस जीव को पीट रहे है। लेकिन भगवान को जीव इतने प्रिय है। देवी देवता भी प्रिय हैं और फिर गुरु तो भगवान को विशेष प्रिय है। उनके आदेशों का पालन नहीं किया, तो फिर गुरु अवज्ञा हुई या फिर हम गुरु भोगी बनें या गुरु द्रोही बनें या फिर गुरु त्यागी बनें। श्री गुरु के चरणो में तो इस प्रकार के अपराध हो सकते हैं। गुरु भोगी बनके ,गुरु द्रोही बनके या फिर गुरु त्यागी बनके तो यह है गुरु अवज्ञा। तो हमें सावधान रहना चाहिए। ऐसा करेंगे तो हम नाम अपराध कर रहे है। हरि हरि। यदि गुरु ने ही कहा कि ध्यानपूर्वक जप करो या फिर दस नाम अपराधों का पालन करो। अगर हमने नहीं किया तो गुरु अवज्ञा हो गयी। हरी हरी। ऐसा संबंध है। *चौथा नाम अपराध* श्रुति शास्त्र निंदनम – इसमें साधू निंदा, देवी देवता निंदा या फिर गुरु की निंदा हो सकती हैं या गुरु के चरणों में अपराध करना। *श्रुति शास्त्र निंदनम* सभी शास्त्रों की निंदा करना या धिक्कार करना या फिर कई प्रकार से निंदा हो सकती हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए। *नष्टप्रायेष्वभद्रेषु नित्यं भागवतसेवया ।* *भगवत्युत्तमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्ठिकी ॥१८ ॥* (श्रीमद् भागवत 1.2.18) अनुवाद: भागवत की कक्षाओं में नियमित उपस्थित रहने तथा शुद्ध भक्त की सेवा करने से हृदय के सारे दुख लगभग पूर्णतः विनष्ट हो जाते हैं और उन पुण्यश्लोक भगवान् में अटल प्रेमाभक्ति स्थापित हो जाती है, जिनकी प्रशंसा दिव्य गीतों से की जाती है । *नित्यं भागवतसेवया* करना चाहिए। यदि शास्त्र अध्ययन ही नहीं किया, तो फिर कुछ नहीं किया। शास्त्र के वचन आपने पढ़ा ही नहीं, आपने सुना ही नहीं, तो फिर यह घोर अपराध या महा अपराध हुआ। कई प्रकार के भाष्य सुनाना, शास्त्र व्याख्या, मायावाद या अद्वैतवाद यह भी एक प्रकार की निंदा हुई। कुछ लोग कहते है कि हम लोग केवल वेदों को मानते हैं जैसे आर्य समाज नाम का समाज। हम लोग केवल श्रुति को मानते है, स्मृति को नहीं मानते। ऐसे भी लोग है तो श्रुति शास्त्र निंदनम हो गयी। कई विभन्न प्रकार से शास्त्रों की निंदा लोग करते ही रहते हैं। इस पर विचार करो। विचारों का मंथन और आपस में चर्चा करो। *मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् |* *कथयन्तश्र्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च || ९ ||* अनुवाद: मेरे शुद्ध भक्तों के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परमसन्तोष तथा आनन्द का अनुभव करते हैं | *बोधयन्तः परस्परम्* किस प्रकार से शास्त्रों की निंदा कर सकते हैं। उसके बाद शास्त्रों को पढ़ा लेकिन उसका पालन नहीं करना तो फिर यह श्रुति शास्त्र निंदा ही हैं । शास्त्रों का ज्ञान अर्जित तो किया किंतु उसका विज्ञान नहीं बनाया या अमल नहीं किया तो फिर यह श्रुति शास्त्र निंदा ही हैं। *पांचवा नाम अपराध* हरि नामनी कल्पनम हरि नाम एक कल्पना हैं। जो लोग हरि नाम को नहीं जानते। हरि नाम के तत्व को नहीं जानते। *नाम चिन्तामणि, कृष्ण चैतन्य रस विग्रह।* *पूर्ण,नित्य, सिद्ध, मुक्त, अभिनत्वात नाम नामीनो ।।* (मध्य लीला 17.133) अनुवाद: भगवान का नाम चिन्तामणि के समान हैं, यह चेतना से परिपूर्ण हैं। यह हरिनाम पूर्ण, नित्य, शुद्ध तथा मुक्त हैं । भगवान तथा भगवान के नाम दोनों अभिन्न हैं । *अभिनत्वात नाम नामीनो* इस बात को नहीं जानते या फिर सुनने पर भी जानते नहीं या मानते नहीं। भगवान और भगवान का नाम अभिन्न हैं। *अभिनत्वात नाम नामीनो* तो हरि नाम कल्पना नहीं है। अगर हरि नाम कल्पना हैं। तो हरि भी कल्पना हुए। हरिनाम कल्पना नहीं है। यह कल्पना नहीं है। भगवान के नाम हजार से भी अधिक हैं। भगवान के रूप, लीला, गुण, धाम या उनके परिकर का उल्लेख करता है। यह सब सत्य है और तथ्य है। तो यह कल्पना नहीं है। *छठा नाम अपराध* अर्थवाद कई सारे अर्थ जो अधिकतर अनर्थ ही होते हैं। कहना या यह भी कहना कि हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहने की क्या आवश्यकता है? हम तो कोई भी नाम ले सकते हैं। फिर भक्त कहते हैं कोका कोला कोका कोला नाम लेते हैं। नाम ही लेना है ना। तो कोका कोला भी तो एक नाम है या कोई भी नाम। अरे मूर्ख! कोई भी नाम नहीं, हरि का नाम है, हरी के नाम का जप करना है। हरे सोहम हरे सोहम सोहम सोहम हरे हरे , तो फिर किसी ने व्याख्या चल रहा है। तथात्वादः। तो हरे कृष्ण कहने के बजाय वृंदावन में एक पार्टी है, एक आश्रम है। उस आश्रम का नाम ही है सोहम आश्रम हे। शायद सोहम आप शब्द आप सुने होंगे लेकिन समझे नहीं होंगे। सोहम मतलब जैसे सह:, सह: मतलब वह: स के आगे विसर्ग (:), तो संस्कृत में जो संधि होती है, साथ में सह और अहम, सह - वह अहम - मै, इन दो शब्दों को साथ में कहते हैं तो संधि के अनुसार उसे सोहम। अ का आलोक भी होता है, अ का लोप होता है, स का सो होता है और हम बचता है, सोहम सोहम, तो वो पार्टी क्या कहती है, हरी सोहम, हरे सोहम यह मायावाद, पक्का मायावाद हुआ। सोहम मतलब वह जो है जो भगवान जो है वह भगवान मैं हूं, वह भगवान मैं हूं, स अहम, स अहम, आप समझ रहे हो? आप तो नहीं समझोगे। आप वैष्णव हो, लेकिन कुछ लोगों ने ऐसा समझ के रखा है। वह मैं ही हूं सोहम। तो हरे सोहम हरे मतलब राधा, राधा और मैं राधा और मैं मैं मैं राधा राधा, तो कृष्ण के स्थान पर कृष्ण को उड़ा दिया और उस स्थान पर स्वयं को बिठा लिया और मंत्र क्या हुआ? हरे सोहम हरे सोहम सोहम सोहम हरे हरे। तो यह हद हो गई। यह अर्थ वाद है। यह एक बहुत बड़ा गलत व्याख्या है। ऐसे कई सारे भाष्य, तो ऐसी कल्पना करके बैठे हैं। ऐसी मान्यताएं बनी है और ऐसे जप करते हैं। कितना महा अपराध हुआ? मायावादी क्या, मायावादी कल बताया था, मायावादी कृष्ण अपराधी मायावादी कृष्ण अपराधी। तो यह मायावाद और यह कृष्णा अपराधी, तो यह तो केवल 5 ही हो गए। हरि हरि। तो 5 हो गए कि 6 हो गए, 6 हो गए। *सातवां नाम अपराध* हरि नाम के बल पर पाप करना। *नाम्नामकारि बहुधा निज - सर्व - शक्तिस् तत्रार्पिता नियमितः स्मरणे न कालः* । *एतादृशी तव कृपा भगवन्ममापि दुर्दैवमीदृशमिहाजनि नानुरागः* ।। 16 ।। अनुवाद: हे प्रभु , हे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् , आपके पवित्र नाम में जीव के लिए सर्व सौभाग्य निहित है , अत : आपके अनेक नाम हैं यथा कृष्ण तथा गोविन्द , जिनके द्वारा आप अपना विस्तार करते हैं । आपने अपने इन नामों में अपनी सारी शक्तियाँ भर दी हैं और उनका स्मरण करने के लिए कोई निश्चित नियम भी नहीं हैं । हे प्रभु , यद्यपि आप अपने पवित्र नामों की उदारतापूर्वक शिक्षा देकर पतित बद्ध जीवों पर ऐसी कृपा करते हैं , किन्तु मैं इतना अभागा हूँ कि मैं पवित्र नाम का जप करते समय अपराध करता हैं , अतः मुझ में जप करने के लिए अनुराग उत्पन्न नहीं हो पाता है । चैतन्य महाप्रभु कहे, मैंने सारी अपनी शक्तियां इस हरि नाम में भर दी है। यह हरि नाम शक्तिमान है, बलवान है। तो चलो हम क्या करते हैं? पाप कर लेंगे उसके बाद क्या करना? हरे कृष्ण हरे कृष्ण करना ही है। तो हरि नाम हमको शुद्ध बना देगा। तो ऐसे इस हरि नाम जो बलवान शक्तिमान हरि नाम के बल पर पाप करना, गंगा तेरा पानी अमृत तो चलो अब कुंभ मेला आ गया चलते हैं। डुबकी लगा कर आते हैं सारे पाप धुल जाएंगे और फिर किनारे जब आएंगे तो चाय पी लेंगे। चाय तो कुछ भी नहीं शराब पी लेंगे। तो रास्ते में चाय की दुकान आ गई और उसमें लिखा भी है की आखिरी चाय की दुकान। तो चलो चाय पी ही लेते हैं, पी लेते हैं, चाय पी लेते हैं। तो क्योंकि स्थान पर जाकर कथा तो सुननी है जप तो करना ही है, तो शुद्ध तो हो ही जाएंगे। तो इस प्रकार का जो बहुत ही आम प्रक्रिया है। यह सब चलता रहता है। सभी धर्मों में चलता रहता है। हिंदू धर्म में चलता है कि हम धार्मिक हैं। भगवान की कृपा से या जप तप से शुद्ध तो होने वाले हैं ही। तो बीच में थोड़ा-थोड़ा पाप कर लिया। तो क्या दोबारा यह करना है? वह करना है तो यह यह जो ठगाई है यह धोखा धडी है। यह नाम अपराध है। हरि हरि। इसको कुंज रसोतवच कहा है। कुंजन कुंजन मतलब हाथी लिखो कुंजर मतलब हाथी लिखेगा रामलीला लिख ले। यह मूल शब्दों के हम लोग आती और क्या-क्या जानते हैं? कुंजर तो नहीं जानते हाथी जब स्नान करता है। तालाब में नदी में जहां-तहां और किनारे आते ही क्या करता है? आकर सारी धूल को अपने यहां पर फेंक देता है। क्या फायदा? उस स्नान का क्या फायदा उस जप तप का यह कहो। तो यह सातवां नाम अपराध है। *आठवां नाम अपराध* तो पूरा कर ही लेते हैं पता नहीं आज क्या क्या होने वाला था। प्रेजेंटेशन उसका क्या होगा? तो आठवां है, शास्त्र है वेद। वेद में कर्मकांड सेक्शन है। कर्मकांड विभाग, कर्मकांड, ज्ञानकांड। केवल विषय भांड यहां हम लोग गोडिया वैष्णव कहते हैं। यह कर्मकांड तो एक जहर का प्याला है। तो इस कर्मकांड के अंतर्गत कई सारे पुण्य कृत भी कहे हैं। विधि है कि यह पुण्य करो ,यह वह पुण्य करो तो वह पुण्य कर दिए। जो कर्मकांड में कहे हैं उसमें देवी देवता की पूजा भी है, यज्ञ भी है। यह है वह है ऐसे कई सारे कई लोग एकादशी के उपवास से कर्मकांड के रूप में भी करते हैं। कई संकल्प लेते हैं। कर्मकांड कई लोग उपवास करते हैं शुक्रवार को सोमवार को हो शनिवार उपवास। यह सब कर्मकांड चलता रहता है। नवस मराठी में नवस, तो यह कर्मकांड है। कई विधियां बताई हैं। पुण्य कृत्य करने के लिए कहे हैं। उसकी तुलना भक्ति के साथ करना भक्ति के कार्य भक्ति के कृत्य श्रवण कीर्तन विष्णु स्मरणम जो नवविधा भक्ती है और उसमें फिर हरे कृष्ण हरे कृष्ण भी है। यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण और यह पुण्य कृत्य प्रारंभिक अस्पताल है। समाज सेवा देश सेवा है। मानव सेवा मानव सेवा ही है। माधव सेवा यह लोग कहेंगे। मानव सेवा ही माधव सेवा है। ऐसा बकवास करने वाले वह समझते नहीं माधव की सेवा क्या होती है। तो दोनों की तुलना नहीं हो सकती। पुण्य श्रवण कीर्तन, यह श्रवण कीर्तन करना ही पुण्य कृत्य है। पुण्य आत्मा माने जाते हैं। लेकिन पुण्य पुण्य एक पुण्य तो सतोगुणी में होता है। सत्वगुणी लोग पुण्य कृत्य करते हैं। लेकिन जो गुणातीत होते हे। जो शुद्ध सत्व को प्राप्त होते हैं वह भी पुण्य है, तो भक्ति के कृत्य जो है, भक्ति का कृत्य तो गुणातीत होता है। शुद्ध सत्त्व के स्तर पर होता है और कर्मकांड के कई कार्य कृत्य विधि वह पुण्य होता है। सत्व के स्तर पर होता है। तो पुण्य आत्मा बनो। जैसे कर्मकांड भाग में बताया है। तो स्वर्ग जाओगे। *अन्तवत्तुफलंतेषांतद्भवत्यल्पमेधसाम् |* *देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्तायान्तिमामपि || २३ ||* (भगवद गीता 7.23) अनुवाद अल्पबुद्धि वाले व्यक्ति देवताओं की पूजा करते हैं और उन्हें प्राप्त होने वाले फल सीमित तथा क्षणिक होते हैं | देवताओं की पूजा करने वाले देवलोक को जाते हैं, किन्तु मेरे भक्त अन्ततः मेरे परमधाम को प्राप्त होते हैं | *नौवा नाम अपराध* आपको वैकुंठ जाना है, गोलोक जाना है। भगवत प्राप्ति करना चाहते हो। तो भक्ति करनी होगी, भक्ति करनी होगी। जप करना होगा। हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना होगा। यह दोनों में अंतर है। बहुत अंतर है तो एक तो भौतिकता है, अच्छी भौतिकता है, सत्व गुण है। लेकिन है तो भौतिकता और यह प्रभुपाद या गौडिया वैष्णव इसे भली-भांति समझाएं हैं और व्यक्ति हिंदू ही रह जाता है। यह बातें नहीं समझने से इसको हम पसंद नहीं करते हैं। जब वह कहे गर्व से कहो हम हिंदू हैं। तो हम इस बात को तो तुम हिंदू क्या कहेगा एक ही बात है एक ही बात है। एक बात नहीं है एक ही बात है कहना ही अपराध है। एक ही बात है कहना या तुलना करना पुण्य, पुण्य कृत्य और भक्ति के यह अपराध है। यह नाम अपराध है। हरि हरि। तो नया अश्रद्धालु को प्रचार करना, जो अश्रद्धालु हैं उन्हें प्रचार करना तो फिर क्या करें? सारा संसार तो श्रद्धा विहीन है। जब कहां है? जा रे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश। यहां कहां गया है कि श्रद्धा विहीन को प्रचार करना अपराध है। अश्रद्धालु को प्रचार करना तो इसको इस प्रकार से भी समझ सकते हैं कि जब हम व्यक्ति को श्रद्धा विहीन कहते हैं। तो श्रद्धा विहीन भी समझ सकते हैं। हर एक का आस्था अलग अलग होता है, ओके ही है जो 10% आस्था है, यह 30 प्रतिशत आस्था वाला है, उसके पास 75% आस्था है उसके पास 100% आस्था है तो हर व्यक्ति को श्रद्धा विहीन भी कह सकते हैं, उसके पास 10% है तो कितना कम है 90% कम है, ऐसे 50-50 चल रहा है 50% आस्था है, 50% कम है। तो उस व्यक्ति का लेवल या स्तर या श्रेणी या कितनी श्रद्धा है उसके अनुसार उस व्यक्ति को हमें प्रचार करना चाहिए। पहले निदान होता है। कितना बुखार है? उसके अनुसार गोली देगा कुछ कम या अधिक। तो कुछ कुछ गोपनीय बाते है शास्त्रों में या भगवान के प्रेम की बातें हैं। यहां राधा कृष्ण के प्रेम के व्यापार जो है। *राधा कृष्ण - प्रणय - विकृति दिनी शक्तिरस्माद् एकात्मानावपि भुवि पुरा देह - भेदं गतौ तौ* । *चैतन्याख्यं प्रकटमधुना तद्वयं चैक्यमाप्तं ब - द्युति - सुवलितं नौमि कृष्ण - स्वरूपम्* ॥५५ ॥ राधा - भाव (आदि लीला 1.5) अनुवाद: श्री राधा और कृष्ण के प्रेम - व्यापार भगवान् की अन्तरंगा ह्लादिनी शक्ति की दिव्य अभिव्यक्तियाँ हैं । यद्यपि राधा तथा कृष्ण अपने स्वरूपों में एक हैं , किन्तु उन्होंने अपने आपको शाश्वत रूप से पृथक् कर लिया है । अब ये दोनों दिव्य स्वरूप पुनः श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में संयुक्त हुए हैं । मैं उनको नमस्कार करता हूँ , क्योंकि वे स्वयं कृष्ण होकर भी श्रीमती राधारानी के भाव तथा अंगकान्ति को लेकर प्रकट हुए हैं । यह तो लोगों के पल्ले पढ़ने वाली बातें नहीं हे। आप उनको सुनाओगे कि रासलीला की बातें तो यह होगा *आत्मबध मान्यते जगत*। इसको भी नोट करो। इस संसार के लोग क्या समझते हैं? हम भी वैसे ही है और कृष्ण भी हमारे जैसे ही है। देखो कृष्ण कितने कामुक हैं। बाकी लोग अप वचन कहते रहते हैं। कैसा है तुम्हारा भगवान जो युवतियों के साथ मिलता रहता है, खेलता रहता है, नाचता रहता है। नंगा नाच करता है। ऐसे भी लोग कहेंगे कुछ मसाला मिल जाएगा। आपने ऐसा कुछ कहना तो नहीं लेकिन आप उस को पचा नहीं पाए उसको उल्टी हो रही है और वह अपराध के वचन काटा जाएगा इसीलिए जो केजी का स्टूडेंट है उसको पीएचडी की बातें तो सिखाई नहीं जा सकती हैं। पहली चीज पहले ही आती है। एबीसी से शुरुआत करनी होगी कुछ शब्द सिखाओ फिर कुछ वाक्य सिखाओ निबंध सिखाओ। फिर श्रील प्रभुपाद जी कहते हैं कि पहले गीता पढ़नी चाहिए, फिर भागवत पढ़ना चाहिए, फिर भागवत का जो दसवां स्कंध और पंच रास अध्याय, उसे क्रम से भागवत को पढ़ना चाहिए। उछाल नहीं लगाना चाहिए। जो अधिकतर हमारे देश में होता है। भागवत कथाकार और भी उसमें से फिर कुछ सहाजिया भी बन जाते हैं और भागवत कथा में रासलीला भी करते हैं और यह सब पाखंड चलता रहता है। स्वयं कथाकार ही भगवान बन जाएंगे और यह बड़ा खतरनाक मामला है। सावधान रहना चाहिए। कहते हैं कि वैसे इसाई मसीहा जीसस क्राइस्ट ने भी कहा वैसे मुझे बहुत कुछ कहना है पर अभी नहीं मैं कहूंगा जब आप तैयार होंगे तब मैं कहूंगा और फिर वह वैसे कहकर भी प्रस्थान किए। मैं वापस आऊंगा। तब सुनाऊंगा आप जितना समझ सकते हो। तो यह प्रचार करना भी कला है, शास्त्र है। यह एक कला और विज्ञान है। तो उसमें हमें निपुण होना चाहिए और उस व्यक्ति के स्तर के अनुसार, लेवल के अनुसार उसको प्रचार करना चाहिए। जैसे कीर्तन तो हो सकता है। प्रसाद लेना होगा। फिर नाम कीर्तन। तो सभी से करवा सकते हैं। कोशिश तो कर सकते हैं प्रयास तो कर ही सकते हैं। देखते हैं कई बार जब कई लोग इकट्ठे होते हैं पदयात्रा में हमारा अनुभव ऐसा रहा, तो हम कहते हैं हाथ उठाइए तो वहीं से पता चलता है कि कौन से श्रद्धावान और कौन श्रद्धा विहीन है। तो अगर वह हाथ ऊपर करें तो हां हां उनमें आस्था है और कुछ लोग तो ऐसे ही विवेकानंद की तरह खड़े होते हैं स्तब्ध हो कर और फिर जब लोगों को बोलते हैं कहो हरे कृष्ण तो जो श्रद्धालु हैं वह कहेंगे हरे कृष्ण लेकिन कुछ लोग ऐसे मिलेंगे पहले उनका होंठ खुलता तो है लेकिन हरे कृष्ण कहते ही वह मुख बंद कर लेते है, होठ बंद हो जाएंगे उनके और खोलने की बजाय जब कहा हरे कृष्ण कहो कहने का समय आया तो वह अपने होंठ बंद कर लेते थे। जो भी है कीर्तन सुन तो लिया वे बने तो रहे, कुछ तो आस्था है। कुछ लोग क्या करेंगे, कुछ लोग तो उनको हरे कृष्ण आप कहोगे तो गाली गलौच शुरू करेंगे। विदेश में हम कई बार जब नगर कीर्तन वगैरह में जाते हैं। तो और जब कहते हैं कि आप हरे कृष्ण महामंत्र का उच्चारण कीजिए तो कहते हैं जाओ कुछ काम करो कोई नौकरी पकड़ो। हमको भी जॉब दे रहे हैं। हरे कृष्ण महामंत्र जप करने का और आप कह रहे हो कि कुछ काम धंधा करो जाओ कोई नौकरी ढूंढो। तो फिर भक्त कहेंगे यही हमारी जॉब है हम पहले से ही अपने कार्य में हैं। आप कह रहे हो कि जॉब करो तो यही हमारी जॉब है हम अपनी जॉब कर रहे हैं हम अपनी जॉब से प्रेम करते हैं और कुछ लोग तो वहां से निकल जाएंगे। कुछ लोग शांति से निकल जाएंगे कुछ लोग तो कई प्रकार के प्रतिक्रिया या जवाब होंगे तो उससे पता चलेगा कि कितनी आस्था कम है या कितना आस्था ज्यादा है। तो उसके अनुसार हमने किसी को प्रसाद भी दे रहे थे। दिल्ली मंदिर में कोई आदमी एक महिला के साथ वहां से जा रहे थे। तो हमने कहा कृपया कर के प्रसाद ले लीजिए। तो उन्होंने कहा नहीं नहीं हमने अपना खाना खा लिया और हम अभी इस होटल से आ रहे हैं। नहीं प्रसाद नहीं चाहिए हमें नहीं चाहिए । हरि हरि। तो प्रचार करना श्रद्धा विहीन लोगो को अपराध है। *दसवा नाम अपराध* हरि नाम में श्रद्धा नहीं होना। यह दसवें नाम अपराध का एक हिस्सा है, एक अंग है। हरि नाम में श्रद्धा ही नहीं होना। प्रचार करना श्रद्धा विहीन लोगो को ऐसा चल ही रहा था। जो श्रद्धालु नहीं है उनको प्रचार नहीं करना चाहिए। लेकिन यहां अभी क्या चल रहा है? आप स्वयं ही श्रद्धालु नहीं हैं। आप स्वयं ही जब जप कर रहे हैं मेरी श्रद्धा नहीं है। हरि नाम में श्रद्धा नहीं है। तो यह हद हो गई। अपराध के नाम पर अपराध। मेरी श्रद्धा नहीं है हरि नाम लेने में। इसे ऐसे ही समझा सकते हैं कि हम श्रद्धालु नहीं है। श्रद्धा नहीं है लेकिन श्रद्धा तो है किंतु क्या नहीं है दृढ़ श्रद्धा नहीं है निष्ठा नहीं है, श्रद्धा से प्रेम तक की सोपान है। तो माधुरी कादंबिनी के अनुसार श्रद्धा होनी चाहिए। श्रद्धा को बढ़ाना चाहिए। श्रद्धा बढ़ाते जाएंगे, बढ़ाते जाएंगे, बढ़ाते जाएंगे। तो दृढ़ श्रद्धा होगी और फिर उसका नाम है दृढ़ श्रद्धा। दृढ़ श्रद्धा के स्तर का नाम है निष्ठा। हमको निष्ठावान होना चाहिए हम श्रद्धालु तो है लेकिन निष्ठावान नहीं है। तो श्रद्धा से कुछ तो काम बन ही जाएगा। अब श्रद्धा नहीं होना अपराध है। हरी नाम के प्रति श्रद्धा नहीं होना अपराध है और साथ ही इसी दसवें अपराध का हिस्सा है। वह क्या है? कई सारे आदेश उपदेश सुनने के उपरांत भी भौतिक आसक्ति बनाए रखना। प्रात काल उठो लेकिन सोने में इतनी आसक्ति हैं। उठना ही नहीं होता। भौतिक आसक्ति कई प्रकार की आदतें हैं, बुरी आदतें हैं। कई प्रकार के असत्संग हैं। बुरे लोगों का संग है। दुर्जनो के साथ उठना बैठना चलता ही रहता है। आसक्ति हैं या इंटरनेट की आसक्ति है या फिर कई प्रकार की आसक्ति हैं, यह खाने की आसक्ति है। यह करने की आसक्ति है, आसक्ति आसक्ति आसक्ति। जब तक इस प्रकार की आसक्तियां है तो कई बार बारंबार यह सारे उपदेश सुनने के उपरांत भी गुरु की अवज्ञा ही हो रही है। पहले बताया था इसका पालन नहीं किया वह आसक्त है तो यह आसक्तियां जो है, *चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः* | *कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्र्चिताः* || ११ || *आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः* | *ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्* || १२ || (भगवद गीता 16.11-12) अनुवाद: उनका विश्र्वास है कि इन्द्रियों की तुष्टि ही मानव सभ्यता की मूल आवश्यकता है | इस प्रकार मरणकाल तक उनको अपार चिन्ता होती रहती है | वे लाखों इच्छाओं के जाल में बँधकर तथा काम और क्रोध में लीन होकर इन्द्रियतृप्ति के लिए अवैध ढंग से धनसंग्रह करते हैं | जैसे श्री कृष्ण कहते है। आशा के पास सैकड़ों है हजारों हैं। इस पर कार्यवाही करनी होगी लेकिन फिर यह भी कहना होगा या याद रखना होगा। हमें नहीं पता कि क्या पहले आएगा आसक्ति। तो हरी नाम में बनानी है। आप जानते हो आसक्ति नाम का एक स्तर है। श्रद्धा, साधु संग, भजन क्रिया, अनर्थ निवृति, निष्ठा, फिर रुचि, फिर आसक्ति, फिर भाव और प्रेम। नाम में आसक्ति, भगवान में आसक्ति, भगवान के भक्तों की सेवा में आसक्त होना। यह एक भक्ति का स्तर है स्थिति है श्रेणी है यह दोनों प्रकार के आसक्ति हैं। एक विधि है एक निषेध है तो वैसे उपाय तो यह है कि जब हम *परम दृष्ट्वा निवृत्ते*। ऊंचा स्वाद ऊंचा स्वांग। हरि नाम में हरि नाम का आस्वादन करेंगे। तो हम अनुभव करेंगे कुछ हमारा निजी अनुभव होगा। इस हरिनाम जप में, उसमें हम आनंद लूटेंगे। तो वह ऊंचा स्वाद है तभी तो संसार भर की जो आसक्तियां हैं उन को ठुकरा सकते हैं। उनसे मुक्त हो सकते है। तो वैसे भी सिद्धांत तो है ही। *वासुदेवे भगवति भक्तियोगः प्रयोजितः* । *जनयत्याशु वैराग्यं ज्ञानं च यदहैतुकम्* ॥७ ॥ (श्रीमद् भागवत 1.2.7) अनुवाद: भगवान् श्रीकृष्ण की भक्ति करने से मनुष्य तुरन्त ही अहेतुक ज्ञान तथा संसार से वैराग्य प्राप्त कर लेता है । तो हमें जप करते ही रहना चाहिए। जप करते ही रहना चाहिए ताकि क्या हो जाए? थोड़ा आस्वादन हो जाए। कुछ हरि नाम से आसक्त हो जाएं। कुछ और एक हायर टेस्ट हो, संसार की आसक्तियों को हम ठुकरा सकें। संसार के जो प्रलोभन है उनको ठुकराएं। आपके पास शक्ति चाहिए, सामर्थ चाहिए ताकि संसार जो हमें दे रहा है इसको खाओ इसको पियो इसको गले में लगाओ यह वह, यह ऐसा है वैसा है। सुबह-शाम माया की बमबारी चलती रहती है। वैभव माया का तो है ही। उसे नहीं कहने के लिए शक्ति चाहिए बुद्धि चाहिए या फिर अधिक अधिक जप करते हुए अधिक से अधिक सत्संग किया, अधिक श्रवण और कीर्तन किया एकादशी का उपवास किया और यह सब पांच महा साधन कहें। आपको बता दें, वैसे तो 64 साधन है, 64 भक्ति के अंग भक्ति रसाअमृत सिंधु में लिखे हैं और फिर बोला गया कम से कम पांच तो करो और उनके नाम हैं। एक साधु संग है, दूसरा है नाम संकीर्तन, तीसरा है भागवत श्रवण, चौथा है धाम वास और पांचवां है, यह क्रम आगे पीछे भी हो सकता है, पांचवा है विग्रह आराधना, यह पांच महा साधन है। बहुत जरूरी, सरकार ने कहा है जो जरूरी हैं उनकी दुकानें खुली रहेंगी, यह जरूरी है, कोरोना की पहली लहर में शराब की दुकानें खुली रहेंगी, सबसे जरूरी। जीना तो जीना शराब के बिना कैसे जिएंगे सबसे जरूरी है। तो शराब है दुनिया वालों की लिस्ट में। जरूरत की एक लिस्ट होती है। हम गौडीय वैष्णव की लिस्ट में यह पांच मुख्य बातें है। साधु संग है, भागवत श्रवण है, नाम संकीर्तन है, धाम वास है। अपने घर को ही धाम बनाओ इस्कॉन मंदिर जाओ। अगर आप पंढरपुर आ सकते हो, वृंदावन जा सकते हो, तो उसे बढ़िया कुछ नहीं है। लेकिन अपने घर को मंदिर बनाओ। घर को धाम बनाओ। धाम में रहो और अर्चना करो। देवघर बनाओ। ऑल्टर को केंद्र बनाओ। तो यह 10 नाम अपराध है इसके आगे कहा भी है इसको 11 तो नहीं कहा है। लेकिन ध्यानपूर्वक जप नहीं करना, यह भी एक अपराध है और फिर यह भी कहा है कि ध्यानपूर्वक जप नहीं करने से अपराध भी हो जाते हैं। ऐसा संबंध है। तो ध्यानपूर्वक जप करने का पूरा प्रयास करें और अधिक से अधिक ध्यान होगा। जब हम अधिक से अधिक अपराधों से बच जाएंगे। अधिक अधिक अपराधों से अधिक अधिक बच जाएंगे तो अधिक अधिक ध्यान लगेगा। ध्यान होगा ध्यानपूर्वक जप होगा। मेरे हिसाब से बहुत लंबा हो गया है। आखिरी मे, मैं कहूंगा आज एकादशी का दिन है तो श्रवण अधिक करना चाहिए ऐसी योजना तो नहीं थी लेकिन ऐसा हो गया। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। निताई गौर प्रेमानदे हरि हरि बोल।

English

Russian