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*जप चर्चा*
*पंढरपुर धाम से*
*8 जून 2021*
*हरे कृष्ण*
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ।सभी अपने हाथ ऊपर कर रहे हैं । 845 स्थानों से आज जप हो रहा है , बहुत अच्छा । न जाने क्यों किसी ने हाथ ऊपर कर रखे हैं , अपने हाथों उपर मत करो , नीचे कर लो । धन्यवाद । राजा कुलशेकर की जय । ऐसे थे राजा कुलशेखर । कैसे थे ? एक बार क्या हुआ ? वह रामायण की कथा सुन रहे थे , वह प्रसंग था नासिक में शूर्पणखा आ गई और फिर लक्ष्मण ने कार्रवाई की , उसको अपमानित किया , दंडित किया और फिर वह बिचारी शूर्पणखा नासिक के पास में ही जन स्थान है जहां खल दूषण इत्यादि 14000 सैनिक जो रावण की थे , वहां उनका बैस था वहां पर गई । हरि हरि । राम और लक्ष्मण ने खासकर के लक्ष्मण ने किया हुआ अपमान की बात उसने कही , बदला लो । यह खल दूषण इत्यादि राम और लक्ष्मण के साथ लड़ने के लिए तैयार हुए । फिर ऐसे उस समय भी राम अकेले ही गए । सीता को पीछे छोड़ दिया लक्ष्मण उनकी रक्षा कर रहे हैं और राम अकेले ही जा रहे हैं खल दूषण के साथ युद्ध खेलने के लिए और उनको उनका विनाश करना है ।
*परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |*
*धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||*
(भगवदगीता 4.8)
*अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |*
राम संघार करेंगे , इस इरादे के साथ वह आगे बढ़ रहे हैं । अपना धनुष्य बाण साथ में है । यह प्रसंग जब राजा कुलशेखर सुन रहे थे तब अचानक कथा सुनते सुनते ही वह बीच में कहने लगे कि तैयार हो जाओ ! किनको कह रहे हैं तैयार हो जाओ? सैनिको तैयार हो जाओ , घोड़े कहां है? हथियार कहां है? हमला करो जन स्थान की ओर आगे बढ़ो । वह दक्षिण भारत में हो सकता है श्रीरंगपुर में यह कथा सुन रहे थे और उनके संगीसाथी और कुछ सैनिक भी बैठे होगे उनको वह तैयार कर रहे हैं । ऐसा हुआ , इस प्रकार राजा कुलशेखर यह रामायण की कथा के श्रवण के समय इतने तल्लीन हुए , उस लीला में लीन हुए या मग्न हुए , उससे प्रभावित हुए , प्रेरित हुए और वही आवेश में आ गए । उनको राम दिख रहे थे लेकिन वह यह देख रहे थे कि राम अकेले ही 14000 सैनिकों से , राक्षसों से लड़ने जा रहे हैं । राजा कुलशेखर सोच रहे थे , हमको भी सहभाग लेना होगा ,सहायता करनी होगी हमको भी राम की सेवा में वहां पहुंचना चाहिए ,यह हमारा कर्तव्य है। यह मानो कि वह स्वयं को समझ रहे कि हम राम के सैनिक है । मैं राजा हूं और यह सैनिक , यह सेना यह राम की सेना है । जय श्रीराम ।जय श्रीराम । कहते हुए राजा कुलशेखर अपनी सेना को युद्ध करने के लिए प्रेरित कर रहे थे । इस प्रकार वह आवेश में आ गए । ऐसे थे उनके भाव , ऐसी थी उनकी भक्ति (हंसते हुए) रामायण सुन रहे हैं , रामलीला का श्रवन हो रहा है । जो रामलीला कुछ नौ- दस लाख वर्षों पूर्व संपन्न हुई उस लीला को जब सुन रहे थे तब उनका अनुभव यह रहा कि ,
*अद्यापिह सेई लीला करे गौर राय ।*
*कोन कोन भाग्यवान देखिबारे पाय।।*
गौर राय नहीं थे रामचंद्र थे अद्यापिह , आज भी अब भी क्योंकि भगवान की लीलाएं शाश्वत है , सदैव संपन्न होती रहती है , राजा कुलशेखर के लिए वह लीला प्राचीन काल में , फार वर्षा पूर्वीची गोष्ट , मराठी में जब कोई गोष्ट या कहानी सुनाते हैं तब बोलते हैं फार फार वर्षा पूर्वीची गोष्ट! बहुत बहुत समय पहले , बहुत समय पहले ऐसी घटना घटी । लेकिन वह घटना घटी भी और घट भी रही है ।
*पुरानवपि नवम* की बात है । वह घटना , लीला पुरानी या प्राचीन होते हुए भी नवम , नई सी है । ऐसे राजा कुलशेकर के साक्षात्कार रहे । वह लीलाओ का श्रवण करते तो उन लीलाओं का दर्शन भी करते थे । हरि हरि।
उनकी प्रार्थनाएं है ,
*तत्त्वं प्रसीद भगवन्कुरु मय्यनाथे विष्णो कृपां परमकारुणिकः खलु त्वम् । संसारसागरनिमग्नमनन्त दीन मुद्धर्तुमर्हसि हरे पुरुषोत्तमोऽसि ॥*
(मुकुंद माला)
*अनुवाद:-अनुवाद हे परमेश्वर ! हे विष्णु ! आप परम दयालु हैं । अतः अब आप मुझ पर प्रसन्न हों और इस असहाय प्राणी को अपनी कृपा प्रदान करें । हे अनन्त भगवान् , भवसागर में डूब रहे इस दुखियारे को आप उबार लें । हे भगवान् हरि , आप ही पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं ।*
वह राजा कुलशेकर प्रार्थना कर रहे हैं , जिनको प्रार्थना कर रहे हैं उन को संबोधित भी करना होता है । डायरेक्टली या इनडायरेक्टली जिस किसी को प्रार्थना करते हैं । यह तो भगवान को प्रार्थना कर रहे हैं , इस प्रार्थना में वह भगवान को संबोधित कर रहे हैं । हरि हरि। राजा कुलशेखर ने चार संबोधनो का प्रयोग किया हुआ है । वैसे इस प्रार्थना में चार पाद है , पूरे प्रार्थना में या पूरे इस प्रार्थना में 4 पंक्तियां हैं ,पाद है । हर पद में एक एक संबोधन है , पहला तो है भगवन , हे भगवान , द्वितीय पंक्ति में है विष्णोः नाम तो विष्णु है लेकिन विष्णोः संबोधन होता है याद रखिये ।या फिर भानु का भानो होगा यह व्याकरण हुआ । भगवान का भी भगवन हुआ । नाम तो भगवान है पर संबोधन भगवान हुआ । यह विष्णु सहस्त्रनामो में से , अनंत नामों में से और एक नाम विष्णु है । तीसरी पंक्ति में अनंत , भगवान अनंत है । अनंत का संबोधन अनंत ही होता है । राम का संबोधन राम ही होता है । वैसे राम: संबोधन होता है , विसर्ग घटता है । अनंत का संबोधन अनंत किया हुआ है और चौथे पंक्ति में हरे कह कर संबोधित किया है । हरि का , जय जय राम कृष्ण हरि , हहरि का संबोधन हरे हुआ है । वैसे हम भी हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहते हैं तो जो हरे है वह हरा मतलब राधा , हरा का संबोधन हरे हुआ है । हरी का संबोधन भी हरे ही है , और यहाँ हरी का संबोधन किया है । यह चार संबोधन हुए , इस प्रार्थना में उन्होंने चार संबोधन किए हैं । हरि हरि । यह भगवान का स्मरण किया है । भगवान का स्मरण किया और विष्णु का स्मरण किया है, अनंत का स्मरण किया है । उल्लेख या स्मरण होता है फिर हरि का स्मरण किया है जो हर लेते हैं , *पापम हरति* वह चाहते हैं कि भगवान हमारे पाप को हर ले तो चलो हरि का स्मरण करते हैं अभी उनको हरे कहते हैं फिर वह समझ जाएंगे मुझे हरे क्यों कह रहा है? यहां मैं कुछ हर लू या ऐसा कुछ यह प्रार्थना करना चाहता है इसलिए मेरा हरि के रूप में स्मरण कर रहा है । वैसे प्रार्थना करने वाले वह कुछ सोच समझकर विशेष संबोधन का उपयोग करते हैं । हरि हरि ।
*तत्त्वं प्रसीद भगवन्कुरु मय्यनाथे विष्णो कृपां परमकारुणिकः खलु त्वम् । संसारसागरनिमग्नमनन्त दीन मुद्धर्तुमर्हसि हरे पुरुषोत्तमोऽसि ॥४ ९ ॥*
*अनुवाद:-अनुवाद हे परमेश्वर ! हे विष्णु ! आप परम दयालु हैं । अतः अब आप मुझ पर प्रसन्न हों और इस असहाय प्राणी को अपनी कृपा प्रदान करें । हे अनन्त भगवान् , भवसागर में डूब रहे इस दुखियारे को आप उबार लें । हे भगवान् हरि , आप ही पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं ।*
तत्वम प्रसिद्ध तो प्रार्थना तो यह है कि प्रसिद्ध मतलब आपका प्रसाद चाहिए। या मुझ पर प्रसन्न हो जाए प्रभु मुझ पर प्रसन्न हो जाइए कृपाम और आगे कहा कुरूम क्या कुरु मुझ पर कृपा कीजिए और कृपा करके प्रसन्न हो जाइए किस पर कृपा करनी है,मुझ पर मई मुझ पर कृपा करनी है मैं कैसा हूं अनाथे मैं अनाथ हूं। अगर आप कृपा करोगे तो मैं सनात बन जाऊंगा अब तो अनाथ हूं। जैसा जो कुत्ता जिसको देखकर गले में बेल्ट वगैरे नहीं है उसका कोई मालिक नहीं है तो वह अनाथ है।
तो मुंसिपल पार्टी की गाड़ी आएंगी और उसको पकड़ कर ले जाती है। ऐसा में हूं लेकिन मैं ऐसा मैं नहीं रहना चाहता हूं मुझे सनात बनाइए मुझ पर कृपा कीजिए मेरे गले में कंठी माला बांध दीजिए किसी को प्रेरित कीजिए।
हरि हरि ताकि मेरे कोई मालिक हो परमकारुणिकः खलु त्वम् हम आपको कृपा करने के लिए कह रहे हैं।
क्योंकि आप
*परम करुणा, पहुँ दुइजन, निताई गौरचन्द्र।*
*सब अवतार, सार-शिरोमणि, केवल आनन्द-कन्द॥1॥*
*अनुवाद:-श्री गौरचंद्र तथा श्री नित्यानंद प्रभु दोनों ही परम दयालु हैं। ये समस्त अवतारों के शिरोमणि एवं आनंद के भंडार हैं।*
*परम करुणा, पहुँ दुइजन, निताई गौरचन्द्र।* क्योंकि आप करुणा के सागर हो करुणा की मूर्ति हो या कृपा के सागर हो तो कुछ बिंदु उस कृपासिंधु में से कुछ कृपा के बिंदु छिड़काइए इस पतित के ऊपर खलु त्वम् निश्चित ही राजा कुलशेखर कह रह हैं निश्चित ही आप खलू त्वम कह रहे हैं निश्चित ही आप कैसे हो परम करुना तो ऐसे भी समझ है प्रार्थना करने वाले की और हम जैसे देखते हैं कभी हम मंदिर से किसी के यहां जाते है कुछ सेवा के लिए तब हम कहते है यह धनी जरूर है तो थोड़ा पता लगवा कर जाते हैं प्रचारक जाते हैं प्रचार करने के लिए या किसी को सदस्य बनाया के लिए तो उनको पता होता है कि यह व्यक्ति धनी है सुना है कि वह दानी भी है।
तो वहां पहुंच जाते हैं तो उसी तरह हमें धन की आवश्यकता है तो चलो धनी के पास जाते हैं हमें कृपा की आवश्यकता है तो चलो कृपालु के पास जाते हैं जो कृष्ण है कृपालु या भक्तवत्सल है। तो आगे राजा कुल शेखर यहां प्रार्थना किए है।
*संसारसागरनिमग्नमनन्त दीन मुद्धर्तुमर्हसि हरे पुरुषोत्तमोऽसि* वह कहे है मैं अनाथ हूं ऐसे अनाथ पर कृपा कीजिए और यहां कह रहे हैं कि मैं कैसा हूं संसारसागरनिमग्नमनन्त दिनम मतलब गरीब बेचारा आगे एक वैष्णव भजन में कहा जाता हैं।
*ब्रजेन्द्रनन्दन येइ, शचीसुत हइल सेइ, बलराम हइल निताइ।*
*दीनहीन यत छिल, हरिनामे उद्धारिल, ता’र साक्षी जगाइ-माधाइ॥3॥*
*अनुवाद :- जो व्रजेंद्रनन्दन कृष्ण हैं, वे ही कलियुग में शचीमाता के पुत्र (श्रीचैतन्य महाप्रभु) रूप में प्रकट हुए, और बलराम ही श्रीनित्यानंद बन गये। उन्होंने हरिनाम के द्वारा दीन-हीन, पतितों का उद्धार किया। जगाई तथा मधाई नामक महान पापी इस बात के प्रमाण हैं।*
*दीनहीन यत छिल, हरिनामे उद्धारिल, ता’र साक्षी जगाइ-माधाइ* दीन बोला गया हैं और एक दिन होता है उसका मतलब दिवस है और दीन मतलब गरीब होता है।
1 दिन 1 दीन यह रस्वदिर्ग का अंतर है। इसकी और भी ध्यान देना होता है। 1 दिन 1 दीन तो यहां दीन चल रहा है।
मैं दीन हु संसार सागर में डूब गया हूं। कभी-कभी ऊपर आता हूं फिर डूब जाता हूं ऐसा ही हाल चल रहा है। संसारसागर निमग्न आ ऐसे भी याद रखिए आप भी तो प्रचार करोगे वैसे प्रचार के पहले आचार भी तो करना है। ऐसे कुछ नियम है और संसारसागर निग्मन यह हमारी स्थिति है। यह तो संसार है सागर भवसागर और उसमें हम निमग्न हम है। श्रीमद्भागवत में तो कहा है यह फॉरेस्ट ऑफ एन्जॉयमेंट है यह वन है जंगल है कैसा जंगल है जहां इंद्रिय तर्पण के प्रयास हो रहे हैं हरि हरि।
उसी के साथ अंनत को जोड़ दिया है। यह प्रार्थना अंनत को हो रही है। जिसमें हम मग्न है या डूबे हैं डूब के मर रहे हैं वह भी है सागर है कुआं नहीं है कुए में मरा थोड़ा कठिन है पानी थोड़ा कम होता है बच भी सकते हैं मरने का प्रयास करने के उपरांत भी कुए में नहीं मरेंगे लेकिन सागर में जरूर मरेगा व्यक्ति सागर का कोई अंत ही नहीं है। सागर भी अनंत होता है ऐसा कुछ विचार होगा राजा कुलशेखर का इसलिए सागर भी है अनंत या असीम कहो किनारा रहित एक दृष्टि से जहां भी देखो सागर ही सागर है और हम उसमें मर रहे हैं फिर अनंत प्रार्थना हो रही है अनंत को ऐसे असीम सागर से बचाइए है अनंतशेष या अनंत भगवान का नाम है।
उद्धरतुम अरहसी और सागर है तो सागर उद्धार कीजिए उद्धरतुम मतलब आप उद्धार करने योग्य है। या उद्धार करने में आप समर्थ हो इसलिए कहां है उद्धरतुम प्रत्यय का उपयोग हुआ है। इसके लिए उसके लिए तो उद्धार करने के लिए उद्धरतुम अरहसी मतलब आप ऐसा कर सकते हो मुझे पता है मुझे जानता हूं कई सारे उदाहरण है गजेंद्र मोक्ष का है उनका है इतिहास साक्षी है। आपने कइयों का उद्धार किया है। उद्धरतुम अरहसी हे हरे हे हरि आप उद्धार कीजिए पुरुषोत्तमह असी असी मतलब आप हो त्वम असि अहम अस्मि मैं हूं आप हो त्वम असि आप कौन हो पुरुषोत्तमह असि आप पुरुषोत्तम जो हो जय जगन्नाथ
जगन्नाथ को भी पुरुषोत्तम कहते हैं। जगन्नाथपुरी को पुरुषोत्तम क्षेत्र कहते हैं। पुरुषोत्तम क्षेत्र का नाम ही हुआ पुरुषोत्तम क्षेत्र उस धाम के धामी है पुरुषोत्तम जगन्नाथ और उस धाम का नाम और क्षेत्र का नाम है पुरुषोत्तम क्षेत्र पुरुषोत्तम तो आप पुरुषोत्तम हो पुरुषों में उत्तम गोविंदम आदि पुरुषम तम हम भजामि आप पुरुषोत्तम हो आप इस संसार में गिरे हुए और फिर ये प्रार्थना वैसी ही है जैसे चैतन्य महाप्रभु ने कहा क्या करू
*चैतन्य चरितामृत अन्त्य लीला20.32*
*अयि नन्द - तनुज किङ्करं पतितं मां विषमे भवाम्बुधी । कृपया तव पाद - पकज स्थित - धूली - सदृशं विचिन्तय ।। 32 ॥*
*अनुवाद " हे प्रभु , हे महाराज नन्द के पुत्र कृष्ण ! ' मैं आपका सनातन सेवक हूँ , किन्तु अपने ही सकाम कर्मों के कारण मैं अज्ञान के इस भयावह समुद्र में गिर गया हूँ । अब आप मुझ पर अहेतुकी कृपा करें । मुझे अपने चरणकमलों की धूलि का एक कण मानें । '*
वही प्रार्थना है दूसरे शब्दों में है चैतन्य महाप्रभु ने वेसी प्रार्थना की है या हमको सिखाइए हैं और राजा कुलशेकर यह भाव वही है शब्द कुछ भिन्न है। हे पुरुषोत्तम इस दिन का उद्धार कीजिए संसार सागर से उद्धार कीजिए और प्रसन्ना होइए इस अनाथ के ऊपर हे भगवान विष्णु क्योंकि आप करुणा के निश्चित के आप करुणा के सागर हो कृपा करो *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* तो यह महामंत्र भी कह रहे हैं और महामंत्र कहते समय क्योंकि महामंत्र तो प्रार्थना है तो राजा कुलशेखर ने जो प्रार्थना की और इसकी रचना हुई है यह प्रार्थना हमारे लिए उपलब्ध है तो यह प्रार्थना हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते समय ऐसी प्रार्थना कर सकते हैं ऐसे भाव ऐसी प्रार्थना करते हुए हम जप करते हैं। ऐसे भाव के बनते हैं या ऐसे विचार मन में उठते हैं या उठने चाहिए जब हम संबोधित कर ही रहे हैं किन को हमारा संबोधन है हरे कृष्ण हरे कृष्ण ही है फिर आगे हरे राम है तो कुछ परिवर्तन तो नहीं है राम भी कृष्ण ही है 8 बार हरे हरे कहते हैं चार बार कृष्ण कृष्ण कहते हैं चार बार राम-राम कहते हैं तो हम राधा और कृष्ण को संबोधित करते हैं। राधा और कृष्ण को प्रार्थना करते हैं प्रार्थना मतलब प्रार्थना में कुछ कहते हैं तो यह विचार हम कह सकते हैं सुना सकते हैं राधा को कृष्ण को सुना सकते हैं।
हरि हरि गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ठीक है तो याद रखिए यह उन 49 नंबर की मुकुंद माला की प्रार्थना है। यहां तात्पर्य भी लिखा है तो आप देख लो इंटरनेट से इसको प्राप्त करो यह इस्कॉन बुक शॉप पर भी उपलब्ध हैं ठीक है मैं रुकता हूं हरि हरि
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*