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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम* *दिनांक 6 मई 2021* *हरे कृष्ण!!* 884 स्थानो से भक्त जप कर रहे हैं । *गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल !!* *गौरांग ! गौरंग ! नित्यानंद ! नित्यानंद !* आपको नित्यानंद कहना चाहिए था ! जय हो ! जय जगजीवन । हरे कृष्ण ! कल हम पंकजांग्री प्रभु का स्मरण या उनके तिरोभाव की कथाएं कह रहे थे । और केवल मैंने ही नहीं कहा था आप में से भी कई भक्त पंकजांग्री प्रभु के गुण गाए । वे गुणि थे , गुणवान थे तो गुणगान स्वाभाविक । आज भी एक तिरोभाव महोत्सव है । वर्तमान उसको बना रहे हैं ,किंतु यह 500 वर्ष पूर्व की बात है ।" श्रीला वृंदावन दास ठाकुर" तिरोभाव महोत्सव की ( जय ) I वृंदावन दास ठाकुर जब चैतन्य भागवत के रचयिता है । 'चैतन्य भागवत की' (जय) । जो वृंदावन दास ठाकुर, मैं पहले बता दूं कि ! स्वयं श्रील व्यास देव ,वृंदावन दास ठाकुर के रूप में प्रकट हुए वे । वह बने पुत्र नारायणी के I कौन थी नारायणी ? श्रीवास ठाकुर को तो आप जानते ही होंगे ! वह उनकी भतीजी, उनके भाई की बेटी थी नारायणी । इस नारायणी को श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का अंग संग बाल्य अवस्था में प्राप्त था । चैतन्य महाप्रभु जरूर जाते थे श्रीवास ठाकुर के आंगन/घर पर । वहां की बिटिया नारायणी । श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के महा महा प्रसाद भी ग्रहण करने का उसको अवसर होता ही था और भगवान के नारायणी पर विशेष कृपा थी । 4 साल की थी,तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कहे तुम कृष्ण से प्रेम करती हो ? हां हां !! दिखा दो अपना प्रेम ! प्रेम का प्रदर्शन हो जाए । प्रेम तो करती हो कह रही हो लेकिन देखने से ही विश्वास होगा । तो तत्क्षण यह 4 साल की बालिका नारायणी भक्ति के सारे भाब ,प्रेम के सारे लक्षण उसके सर्वांग में प्रदर्शित हुए । शरीर में रोमांच और आंखों में प्रेमाअश्रु और रोंगटे खड़े होना स्थम्बीत् होना या लौटना जमीन पर , यह सब हुआ । तो ऐसी नारायणी बड़ी हुई तो विवाह हुआ और जब वृंदावन दास ठाकुर गर्भ में ही थे तो पति नहीं रहे । विधवा नारायणी नेवृंदावन दास ठाकुर को जन्म दिया । कब जन्म दिया ? जब चैतन्य महाप्रभु ने सन्यास लेकर चैतन्य महाप्रभु प्रस्थान कर चुके थे मायापुर,नवदीप और उसके उपरांत 4 साल भी बीत चुके थे तब प्रकट हुए वृंदावन दास ठाकुर । तो उन दिनों में नारायणी नवदीप में, मोदद्रुमद्वीप है एक द्वीप । वहां पर एक मांगाछी नामक एक स्थान है । वहां नारायणी श्री वसुदेव ठाकुर ,महाप्रभु के एक अनन्य भक्त जो धनी और दानी भी थे । तो उनके आश्रय में नारायणी रहने लगी और आर्थिक सहायता भी हो रही थी । तो उस स्थान मांगाछी जब हम नवद्वीप मंडल परिक्रमा जाते हैं तो वहां हम जरूर जाते हैं वृंदावन दास ठाकुर का स्थल जहां वृंदावन दास ठाकुर के विग्रह भी है जो जिन विग्रह की वे आराधना करते थे । संभावना है कि यहीं पर चैतन्य भागवत की रचना हुई होगी । उसके पहले जानना होगा कि वृंदावन दास ठाकुर नित्यानंद प्रभु के शिष्य भी बने थे । नित्यानंद प्रभु को अपना इष्ट देव मानते थे , घनिष्ठ संबंध भी था और जो नित्यानंद प्रभु बलराम है और जो आदि गुरु है,आदि गुरु के भूमिका निभाते हैं । बल राम है या लक्ष्मण है,तो उन्हीं के शिष्य बने हैं वृंदावन दास ठाकुर । और फिर करते हैं यह रचना चैतन्य भागवत की । तो पहले भी चैतन्य भागवत की रचना हुई है और हम जिस ग्रंथ का अधिक नाम सुनते हैं वह है 'चैतन्य चरितामृत' । सोचा इतने भागवत की रचना वृंदावन दास ठाकुर किए । पहले चैतन्य भागवत की रचना नवद्वीप में हुई । और बाद में वृंदावन में राधा कुंड के तट पर 'कृष्ण दास कविराज गोस्वामी' चैतन्य चरितामृत की रचना किए । हरि हरि !! चैतन्य भागवत में चैतन्य महाप्रभु की मायापुर में, नवदीप में संपन्न हुई लीला विस्तार से वर्णन है । चैतन्य भागवत के प्रथम दो खंड है, चैतन्य महाप्रभु के नवद्वीप ,मायापुर के दो खंड लिखें वृंदावन दास ठाकुर । प्रथम खंड ,आदि खंड ,मध्यम खंड और फिर चैतन्य महाप्रभु की सन्यास होती है । सन्यास लीला का वर्णन है इसके बाद अंतिम खंड में । कृष्ण दास कविराज गोस्वामी चैतन्य महाप्रभु की जो मायापुर नवद्वीप लीलाएं है वह संक्षिप्त में कहते हैं । क्योंकि पहले लिखे हैं वृंदावन दास ठाकुर, उसको दोहराना नहीं चाहते । और कृष्णा दास कविराज गोस्वामी के पास समय भी नहीं था । अब चल बसे तब, चल बसे एसी भी स्थिति थी तो उन्होंने संक्षिप्त में लिखा है । लिखे हैं चैतन्य महाप्रभु की मायापुर,नवद्वीप आदि लीला केवल एक खंड में । तो चैतन्य भागवत वृंदावन दास ठाकुर का उस पर भाष्य लिखें श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर । और उस किताब का नाम दिए गुड़िया भाष्य । वह तो बंगला भाषा में लिखे थे अब हिंदी भाषा में उपलब्ध है । गुड़िया भाष्य श्रील भक्तिसिद्धांता सरस्वती ठाकुर, द्वारा 'गुड़िया भाष्य' । तो चैतन्य भागवत पर भाष्य लिखे ही थे , श्री प्रभुपाद के गुरु महाराज श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर , तो श्रील प्रभुपाद ने चैतन्य चरितामृत पर ही अपना तात्पर्य,भाष्य लिखें अपना और हम लोगों के सेवा मैं प्रस्तुत किए । हरि हरि !! यह दोनों मिलकर यह चैतन्य भागवत और चैतन्य चरितामृत मिलकर चैतन्य महाप्रभु के लीलाओं का पूरा वर्णन होता है । यह दोनों ग्रंथ चैतन्य भागवत और चैतन्य चरितामृत एक दूसरे के पूरक ग्रंथ है । क्योंकि जो बातें वृंदावन दास ठाकुर लिखे हैं चैतन्य भागवत में उसको पुनः लिखने का टाले है कृष्ण दास कविराज गोस्वामी अपने चैतन्या चरितामृत मे । तो वैसे दोनों ग्रंथ जब हम पढ़ते हैं तो चैतन्य महाप्रभु के लीलाओं का हमको अधिक ज्ञान या साक्षात्कार ,अनुभव होते हैं । तो चैतन्य भागवत मंगलाचरण में ही समझते होंगे कि मंगलाचरण ग्रंथ के प्रारंभ में ही लिखा जाता है । अगला ही बच्चन है चैतन्य भागवत का वृंदावन दास ठाकुर की जो रचना 'चैतन्य भागवत' ... *आजानुलम्बितभुजौ कनकावदातौ , संकीर्तनैकपितरौ कमलायताक्षौ ।* *विश्वम्भरौ द्विजवरौ युगधर्मपालौ , वन्दे जगत्प्रियकरौ करुणावतारौ ॥ 1॥* *अनुवाद:-* जिनकी भुज युग आजानुलम्वित , जिनका श्री अङ्ग सुवर्ण सदृश उज्वल और कमनीय , जिनके नयन-द्वय कमलदल सद्दश विर्स्तीर्ण, जो श्री हरिनाम संकीर्तन के एक मात्र पिता ( जन्म दाता ) , विश्व संसार के भरण पोषण कर्त्ता , युग धर्म पालक , जगत् के प्रियकारी , ब्राह्मणों के मुकुटमणि एवं करुणावतार हैं , मैं इन दोनों श्री कृष्णचैतन्य और श्रीनित्यानन्द प्रभु की बन्दना करता हूँ ॥ ( चैतन्य भागवत आदि-खंड 1.1 ) इस मंगलाचरण के श्लोक साथ ,यह चैतन्य भागवत आदि-खंड प्रथम अध्याय प्रथम श्लोक । तो मंगलाचरण में ही प्रारंभ हुआ गोर ,नित्यानंद । गौरांग महाप्रभु तो है ही और नित्यानंद प्रभु तो वृंदावन दास ठाकुर के इष्ट देव ही हैं । आराध्य देव ही है तो दोनों का ... गौरंग !! नित्यानंद !! की गौर गाथा इस प्रथम श्लोक में है गायन प्रारंभ हुआ । "आजानुलम्बितभुजौ कनकावदातौ" । यानी दो चरित्र का वर्णन हो रहा है या दो व्यक्तित्व का उल्लेख हुआ है । तो यह दोनों कै ही है 'आजानुलम्बितभुजौ' । दोनों भी हैं 'कनकावदातौ' और संकीर्तनैकपितरौ वह दोनों भी हैं संकीर्तन आंदोलन के पिता श्री I गौरांग ! नित्यानंद ! 'द्विजवरौ' ब्राह्मणों में दोनों ही श्रेष्ठ है । वे दोनों ही ब्राह्मण घर में जन्म लिया है । गौरांग महाप्रभु और नित्यानंद महाप्रभु ने और क्या है ? 'विश्वम्भरौ' दोनों विश्व का पालन करने वाले हैं । 'युगधर्मपालौ' और युग धर्म का ,कलीयुग के धर्म का जो *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥* यह जो धर्म है कलीयुग का उसके पालनकर्ता और उसको तापन करने वाले यह गौरांग और नित्यानंद प्रभु है 'वन्दे जगत्प्रियकरौ करुणावतारौ' । तो वृंदावन दास ठाकुर वंदना कर रहे हैं इन दोनों की गौरांग और नित्यानंद प्रभु की 'प्रियकरौ' सभी का प्रिय करने वाले , सभी के कल्याण करने वाले गौरांग, नित्यानंद प्रभु । 'करुणावतारौ' और यह दोनों करुणा की मूर्ति है,करुणा के अवतार हैं । तो इस प्रकार वे मंगलाचरण में ही लिखे हैं । तो यह वृंदावन दास ठाकुर के चैतन्य भागवत ग्रंथ है इसके महिमा का गान कृष्ण दास कविराज गोस्वामी अपने ग्रंथ चैतन्य चरितामृत में एक स्थान पर किए हैं इन शब्दों में । चैतन्य चरितामृत में लिखा है चैतन्य भागवत और वृंदावन दास ठाकुर के संबंध में । क्या लिखते हैं ? *कृष्ण - लीला भागवते कहे वेद - व्यास ।* *चैतन्य - लीलार व्यास वृन्दावन - दास ॥ 34 ॥* *अनुवाद:-* जिस तरह व्यासदेव ने श्रीमद्भागवत में कृष्ण की सारी लीलाओं का संकलन किया है , उसी तरह ठाकुर वृन्दावन दास ने चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं का वर्णन किया है । ( चैतन्य चरितामृत आदि-लीला 8.34 ) कृष्ण की लीला का वर्णन किए हैं श्रील व्यास देव श्रीमद्भागवत में । 'चैतन्य - लीलार व्यास' दो व्यास है ऐसे वह कह रहे हैं या दो व्यासदेव । श्रीमद्भागवत के रचयिता श्रील व्यासदेव और वही व्यास देव पुनः प्रकट हुए हैं या वह बने हैं चैतन्य लीला के व्यास या चैतन्य भागवत के कहो । दोनों ही भागवत है एक श्रीमद् भागवत और दूसरा चैतन्य भागवत । तो यह दोनों के रचयिता श्रील व्यासदेव ही है । तो व्यास देव वृंदावन दास ठाकुर 'चैतन्य - लीलार व्यास' । *वृन्दावन - दास कैल चैतन्य मङ्गल '।* *जाहार श्रवणे नाशे सर्व अमङ्गल ॥ 35 ॥* *अनुवाद:-* ठाकुर वृन्दावन दास ने श्री चैतन्य - मंगल की रचना की , जिसके सुनने से सारे अमंगल नष्ट हो जाते हैं । ( चैतन्य चरितामृत आदि-लीला 8.35 ) तो कृष्णा दास कविराज गोस्वामी चैतन्य भागवत का माहम्य लिख रहे हैं । तो कहते हैं कि वृंदावन दास रचना की है चैतन्य मंगल की । पहले तो इसका नाम वृंदावन दास ठाकुर ने चैतन्य मंगल लिखे थे किंतु जब उनको पता चला की चैतन्य मंगल नाम का ग्रंथ पहले ही प्रकाशित हो चुका है लोचन दास ठाकुर के द्वारा । श्रीखंड नाम का स्थान है वहां ! लोचन दास ठाकुर हमारे और एक आचार्य । तो उन्होंने लिखा था ग्रंथ उसका नाम वे रखे थे चैतन्य मंगल । तो वृंदावन दास ठाकुर को जैसे ही पता चला चैतन्य मंगल नाम का ग्रंथ हे तो उन्होंने अपना ग्रंथ का नाम चैतन्य मंगल नाम की जगह चैतन्य भागवत रखा । "जाहार श्रवणे नाशे सर्व अमङ्गल" जिस भागवत के श्रवण करने से जो भी अमंगल है, जो भी अभद्र है, जो भी बुरा है उसका नाश होगा । इस चैतन्य भागवत के श्रवण मात्र से । *चैतन्य - निताइर याते जानिये महिमा ।* *याते जानि कृष्ण - भक्ति - सिद्धान्तेर सीमा ॥ 36 ॥* *अनुवाद:-* श्री चैतन्य मंगल पढ़कर मनुष्य श्री चैतन्य महाप्रभु तथा नित्यानन्द प्रभु की सारी महिमाओं या सत्य को समझ सकता है और भगवान् कृष्ण की भक्ति के चरम निष्कर्ष तक पहुँच सकता है । (चैतन्य चरितामृत आदि-लीला 8.36 ) जिस ग्रंथ में चैतन्य , नित्यानंद प्रभु महिमा का वर्णन है चैतन्य भागवत में और साथ ही साथ कृष्ण भक्ति के सिद्धांत को भलीभांति समझाएं हैं चैतन्य भागवत में ऐसे लिख रहे हैं कृष्ण दास कविराज गोस्वामी । *भागवते य्रत भक्ति - सिद्धान्तेर सार ।* *लिखियाछेन इंहा जानि ' करिया उद्धार ॥ 37 ॥* *अनुवाद:-* श्रील वृंदावन दास ठाकुर ने श्री- चैतन्य- मंगल ( जो बाद में श्री-चैतन्य-भागवत कहलाया ) में श श्रीमद्भागवत से प्रामाणिक उद्धरण देते हुए भक्ति के निष्कर्ष और सार प्रस्तुत किये हैं । ( चैतन्य चरितामृत आदि-लीला 8.37 ) *'चैतन्य मङ्गल' शुने यदि पाषण्डी ,यवन ।* *सेह महा - वैष्णव हय ततक्षण ॥ 38 ॥* *अनुवाद:-* यदि बड़ा से बड़ा नास्तिक भी चैतन्य मंगल को सुने , तो वह तुरन्त महान् भक्त बन जाता है । ( चैतन्य चरितामृत आदि-लीला 8.38 ) अगर कोई पाषण्डी ,योवन,नास्तिक जो भी हो वह है ... *किरात हूणान्ध्र - पुलिन्द पुल्कशा आभीर - शुम्भा यवनाः खसादयः ।* *येऽन्ये च पापा यदपाश्रयाश्रयाः शुध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नमः ॥ 18 ॥* *अनुवाद:-* किरात , हूण , आन्ध्र , पुलिन्द , पुल्कश , आभीर , शुम्भ , यवन , खस आदि जातियों के सदस्य तथा अन्य लोग , जो पाप कर्मों में लिप्त रहते हुए परम शक्तिशाली भगवान् के भक्तों की शरण ग्रहण करके शुद्ध हो सकते हैं , मैं उन भगवान् को सादर नमस्कार करता हूँ । ( श्रीमद भागवतम् 2.4.18 ) जो भी सुनेगा चैतन्य महाप्रभु के लीला का वर्णन चैतन्य भागवत में और फिर आपको कहना होगा चैतन्य चरितामृत में तब ततक्षण वह वैष्णव बनेगा । चैतन्य भागवत और चैतन्य चरितामृत के श्रवण मात्र से । *मनुष्ये रचिते नारे ऐछे ग्रन्थ धन्य ।* *वृन्दावन - दास - मुखे वक्ता श्री - चैतन्य ॥ 39 ॥* अनुवाद:- इस पुस्तक का विषय इतना भव्य है कि लगता है मानो श्री वृन्दावन दास ठाकुर की रचना माध्यम से साक्षात् श्री चैतन्य महाप्रभु स्वयं रहे हों । ( चैतन्य चरितामृत आदि-लीला 8.39 ) कृष्णा दास कविराज गोस्वामी आगे लिखे ..., हैइ यह साधारण मनुष्य का कार्यक्रम नहीं है चैतन्य भागवत की रचना करना । मतलब की चैतन्य भागवत रचयिता वृंदावन दास ठाकुर साधारण मनुष्य नहीं है समझ जाओ । एक तो वे व्यासदेव वह कहे तो है ! ऊपर । लेकिन यहां पर वह कह रहे हैं वैसे दिखते हैं कहने वाले, लिखने वाले तो वृंदावन दास ठाकुर है किंतु नहीं नहीं स्वयं चैतन्य महाप्रभु ही इस चैतन्य भागवत के वक्ता है । तो वृंदावन दास ठाकुर को निमित्त बनाए है भगवान श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और उनसे लिखवा रहे हैं । लेकिन लिखने वालें चैतन्य भागवत स्वयं चैतन्य महाप्रभु हीं है । *वृन्दावन - दास - पदे कोटि नमस्कार ।* *ऐछे ग्रन्थ करि ' तेंहो तारिला संसार ॥ 40 ॥* *अनुवाद:-* मैं वृन्दाव ठाकुर के चरणकमलों पर कोटि - कोटि प्रणाम हूँ । उनके अतिरिक्त अन्य कोई व्यक्ति सभी पतितात्माओं के उद्धार के लिए ऐसा अद्भुत ग्रंथ नहीं लिख सकता था । ( चैतन्य चरितामृत आदि-लीला 8.40 ) कृष्ण दास कविराज गोस्वामी लिख रहे हैं कि मैं मेरा नमस्कार, मेरा कोटि कोटि दंडवत वृंदावन दास ठाकुर के चरण कमल में । उन्होंने लिखा हुआ यह चैतन्य भागवत ग्रंथ है जो ...'ऐछे ग्रन्थ करि ' तेंहो तारिला संसार' सारे संसार का उद्धार करने की क्षमता रखता है यह चैतन्य भागवत । उनके जो रचयिता वृंदावन दास ठाकुर हमारे प्रणाम स्वीकार करें । हमें भी साष्टांग दंडवत प्रणाम करना चाहिए आज के इस शुभ तिरोभाव महोत्सव के दिन वृंदावन दास ठाकुर के चरणों में । *ताँर कि अद्भुत चैतन्य चरित - वर्णन ।* *याहार श्रवणे शुद्ध कैल त्रि - भुवन ॥ 42 ॥* *अनुवाद:-* अहा ! चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं का कैसा ही अद्भुत वर्णन उन्होंने दिया है । तीनो लोकों में जो भी उसे सुनता है , वह शुद्ध ( पवित्र ) हो जाता है । ( चैतन्य चरितामृत आदि-लीला 8.42 ) जहां एक अंतिम वचन है ! क्या अद्भुत वर्णन किए है वृंदावन दास ठाकुर चैतन्य भागवत में । 'याहार श्रवणे शुद्ध कैल त्रि - भुवन' इसके श्रवण से अध्ययन से सारा संसार शुद्ध ,पवित्र , 'पतितानां पावनेथ्यो' कर रहा है सारे संसार को यह ग्रंथ पवित्र कर रहा है । हरि हरि !! *वृंदावन दास ठाकुर तिरोभाव तिथि महोत्सव की ( जय ) !* तो यह किंचित सा परिचय या कुछ गुण गाथा वृंदावन दास ठाकुर की और उनके ग्रंथ चैतन्य भागवत । हरि हरि !! इसे पढीएगा इस चैतन्य भागवत को । प्राप्त कीजिए कहीं से पढ़िए या अंग्रेजी में मैंने जैसे कहा ही गुड़िय भाष्य भी हिंदी में उपलब्ध है । अंग्रेजी इत्यादि चैतन्य भागवत किन्ही माध्यम से । हरि हरि !! या फिर चैतन्य चरितामृत तो पढ़ ही सकते हो । इन दोनों में कोई भेद् है ही नहीं ,या जैसे मैंने कहा दोनों मिलकर एक पूर्ण ग्रंथ हो जाता है चैतन्य भागवत और चैतन्य चरितामृत जरूर पढीएगा या सुनिएगा । गौरांग महाप्रभु की गाथा ... *गौरांगेर दुती पद* , *जार धन संपद,* *से जने भक्ति - रस - सार* । *गौरांगेर मधुर-लीला, जार कर्णे* *प्रवेशीला,* *ह्रदय निर्मल भेलो तार ॥ 1 ॥* *अनुवाद:-* जिस किसी ने भी भगवान के चैतन्य के कमल को स्वीकार किया है वह भक्ति सेवा का सही सार समझ सकता है। यदि कोई भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु के मनभावन लीला से मोहित हो जाता है, तो उसके ह्रदय की गंदी चीजें सब साफ हो जाएंगी। ( नरोत्तम दास ठाकुर के द्वारा .लिखित भजन - "गौरांगेर दुती पद" ) जो भी गौरांगेर मधुर-लीला , गौरांग महाप्रभु की लीला मधुर है । 'जार कर्णे प्रवेशीला' जिनके कानों में प्रवेश करेंगे, और उस लीला को पहुंचा देंगे अपने हृदय तक जहां आत्मा रहता है और इस लीला को हम ह्रदयंगम करेंगे तो क्या होगा क्या होगा ? 'ह्रदय निर्मल भेलो तार' उस व्यक्ति का ह्रदय निर्मल यानी मल रहित होगा । तो आइए .... *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥* इस का मंत्र महामंत्र का श्रवण कीर्तन और चैतन्य महाप्रभु के महिलाओं का भी लीलाओं का भी श्रवण कीर्तन करते हैं । *गौरव प्रेमानंदे हरि हरि बोल !!*

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