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*जप चर्चा,* *7 मई 2021,* *पंढरपुर धाम.* 822 स्थानों से भक्त के लिए जुड़ गए हैं। आज है एकादशी तो अभी-अभी श्रवण कीर्तन महोत्सव शुरू होने जा रहा है। इस्कॉन कीर्तन मिनिस्ट्री द्वारा यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इसके लिए कार्यक्रम का सादरीकरण मेरे साथ होने जा रहा है। एक के बाद एक ऐसे घोषणा हो चुकी है। आपने पढ़ा सुना होगा। यहां पर डेढ़ घंटा, प्रातकाल डेढ़ घंटा सायंकाल ऐसे कथा कीर्तन होगा। तो इसके आगे अब मेरे लिए है और यहां अंग्रेजी में होगा। आप समझ जाओगे और फिर हम गाएंगे भी पंकजांग्री प्रभु के स्मरण में, जे अनिलो प्रेमधन यह गीत गाएंगे। कीर्तन होगा फिर बने रहे हमारे साथ। हम सभी भक्तों का स्वागत करते हैं। कीर्तन मिनिस्ट्री एकादशी श्रवण कीर्तन महोत्सव की तरफ से यहां महोत्सव शुरू होने जा रहा है। इसकी शुरुआत मुझसे हो रही है। अभी श्रवण कीर्तन करेंगेँ आज मैं गौर कथा करूंगा। उसके बाद मुझे गाने को अच्छा लगेगा, जे अनिलो प्रेमधन। आप समझ सकते हो क्यों, किस लिए यह गीत में गाने जा रहा हूं। अभी थोड़े दिन पहले हमने मेरे प्रिय गुरुबंधु पंकजांग्री प्रभुजी को खोया है, इसलिए यह गीत हम गाने जा रहे हैं। हम सभी यह गीत गाएंगे उसके बाद हरे कृष्ण कीर्तन भी करेंगे। फिर से एक बार आप सभी को उपस्थित रहने के लिए धन्यवाद देता हूं और आप सभी का स्वागत करता हूं। *जय जय श्रीचैतन्य जय नित्यानंद।* *जय अद्वैतचंद्र गौरभक्त वृंद।।* हम आज चैतन्य चरित्रामृत के मध्य लीला के आठवें अध्याय में से चैतन्य महाप्रभु और राय रामानंद इनकी भेट चर्चा संवाद इसके लिए समय तो मर्यादित है। हमें संक्षिप्त में बोलना होगा। मैं इस महान भेंट की कुछ अवलोकन या टिप्पणी कहूंगा। श्रीचैतन्य महाप्रभु और राय रामानंद। जैसे कि चैतन्य महाप्रभु दक्षिण भारत यात्रा के लिए निकले थे। हरि हरि, सार्वभौम भट्टाचार्य ने महाप्रभु से कहा था रास्ते में आप राय रामानंद से जरूर मिलना। जो आंध्र प्रदेश में कोहूड नामक स्थान पर जो गोदावरी नदी के तट पर हैं वहां पर रहते हैं। महाप्रभु ने यह बात ध्यान में रखी थी। और वह भी उत्साहित है, राय रामानंद से मिलने के लिए। महाप्रभु ने अपने प्रवास की शुरुआत की। मैं कल यह पढ़ रहा था, इस अध्याय में मैंने पढ़ा की गोदावरी के तट पर आने से पहले श्रीचैतन्य महाप्रभु सिंम्हाचल रह रहे थे। सिंम्हाचल नरसिम्हाक्षेत्र *नृसिंह देखिया कैल दण्डवत्प्रणति ।* *प्रेमावेशे कैल बह नृत्य - गीत - स्तुति ।।* *(CC madhyalila 8.4)* *अनुवाद: मन्दिर में भगवान् नृसिंह के* *अर्चाविग्रह का दर्शन करके श्री चैतन्य महाप्रभु* *ने दण्डवत प्रणाम किया । फिर प्रेमावेश में* *उन्होंने अनेक प्रकार से नृत्य किया , कीर्तन* *किया और स्तुतियाँ कीं ।* श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का आगमन हुआ और उन्होंने भगवान नरसिम्हा देव के दर्शन लिए। और उन्होंने नरसिंह देव को साष्टांग दंडवत किया और फिर प्रार्थनाएं अर्पित की। और फिर उन्होंने *श्री - नृसिंह , जय नृसिंह , जय जय नृसिंह* *प्रह्लादेश जय पद्या - मुख - पद्म - भृग " ।।* *(CC madhyalila 8.5)* *अनुवाद: " नृसिंहदेव की जय हो ! नृसिंहदेव* *की जय हो ! प्रह्लाद महाराज के प्रभु नृसिंहदेव* *की जय हो , जो भौरे के समान लक्ष्मीजी के* *कमल सदृश मुख को देखने में सदैव लगे रहते हैं।* यह प्रार्थना गायी। इस प्रार्थना के संकलनकर्ता है श्रीधर स्वामी और महान आचार्य जो भगवतम के टिप्पणी करता है। श्रीधर स्वामी नरसिंह भगवान की अर्चना करते थे। उनके इष्ट देव नरसिंह भगवान थे और उन्होंने नरसिम्हा देव की यह प्रार्थना रची और चैतन्य महाप्रभु ने उसी प्रार्थना का गान किया। *एइ - मत नाना श्लोक पड़ि ' स्तुति कैल ।* *नृसिंह - सेवक माला - प्रसाद आनि ' दिल ॥* *(CC madhyalila 8.7)* *अनुवाद: इस प्रकार श्री चैतन्य महाप्रभु ने* *शास्त्रों से अनेक श्लोक सुनाये । तब नृसिंहदेव* *के पुजारी ने महाप्रभु को मालाएँ तथा प्रसाद* *लाकर दिया ।* उसके बाद वहां पर पुजारी आए। उनके पास माला थी। भगवान नरसिम्हा देव की पहनी हुई माला थी और उन्होंने वह महाप्रभु अर्पित किया। महाप्रभु नरसिम्हा देव के सामने खड़े रहकर उनका दर्शन कर रहे थे। वहां पर पुजारी आ गए उन्होंने नरसिम्हा देव की महा माला और प्रसादम महाप्रभु को अर्पित किया। यही वह भाग था जो मुझे आपसे कहना था। बराबर यही भाग नहीं कह सकते। मुझे तो राय रामानंद और चैतन्य महाप्रभु के भेट उनका संवाद चर्चा इसके बारे में बोलना है। लेकिन मुझे मैंने यहां भाग पड़ा तो मुझे याद आये, पंकजांग्री प्रभु। जाहिर सी बात है नरसिंम्हा देव और पंकजांग्री प्रभु। इसलिए मैंने सोचा कि मुझे कम से कम यह भाग तो आपसे कहना चाहिए। तब जैसे मेरी नजरों के सामने नरसिंह देव भगवान और पंकजांग्री प्रभु आए, जो हमेशा उनकी सेवा में रहते थे। जैसे की हम नरसिंह देव भगवान के सामने आते थे तो पंकजांग्री प्रभु तुरंत से कुछ फूल या फूल माला के साथ आते थे। और वहां हमारी तरफ से भगवान को प्रार्थना अर्पित करते थे। वह सिर्फ नरसिंहदेव की सेवा नहीं करते थे बल्कि नरसिंह देव के भक्तों की भी सेवा करते थे। कृपया इसके लिए प्रार्थना करो उसके लिए प्रार्थना करो ऐसी विनंती आती थी उनको हमेशा, इस्कॉन के विश्वभर के शिष्य के तरफ से। मायापुर के भक्त भी जो मेरे शिष्य है, वह भी भागते थे पंकजांग्री प्रभु के पास और कहते थे, आज गुरु महाराज का जन्मदिन है, यह है वह है गुरु महाराज के लिए प्रार्थना कीजिए नरसिंह देव के पास। और वह भी वैसे ही करते थे। तो यह लीला मुझे अपने मायापुर के नरसिंह भगवान की याद दिलाई हमारे पंकजांग्री प्रभु की याद दिलाई। और यह बात मैं टाल न सका। चैतन्य महाप्रभु ने सिम्हाचल के नरसिंह देव मंदिर को भेट दी। सिम्हाचल पर्वतों के शिखर पर सिम्हाचल वह दर्शन है। चैतन्य महाप्रभु ने वहां पर भेट दी। दर्शन के बाद वह गोदावरी के तट पर आए। उसके आसपास पूरा जंगल है। चैतन्य महाप्रभु इस निष्कर्ष पर आए, उन्होंने कहा जमुना मैया की जय! यह गोदावरी नहीं है यह जमुना है। इसके आसपास वन है। यह वृंदावन है। चैतन्य महाप्रभु बहुत ही उत्साहित और प्रेमावेश भावावेश हो गए। कीर्तन और नृत्य करने लगे। कीर्तन और नृत्य करते रहें किसी को पता नहीं, कब तक, कितनी देर बस कीर्तन नृत्य चलता ही रहा। यह है चैतन्य महाप्रभु, उन्होंने चैतन्य महाप्रभु के कृष्णप्रेम कृष्णभावनामृत का यहां पर प्रदर्शन किया। यहां पर समझ में आता है कि, वह कितने ज्यादा कृष्णभावनाभावित थे। वह राधाभाव के साथ आए थे। राधाभाव लेकर कृष्ण, चैतन्य महाप्रभु बन गए वृंदावन में, वृंदावन में नहीं हर समय। महाप्रभु गोदावरी पार कर गोदावरी के तट पर बैठे थे। उन्होंने देखा कि एक तरफ से शोभायात्रा आ रही है और वहां पर कोई तो रथ के मुख्य स्थान पर बैठा है। उसमें कई सारी ब्राम्हण भी थे जो मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। शायद वह कोई मंत्री या गवर्नर थे। उनकी यहां शोभायात्रा थी तो चैतन्य महाप्रभु तुरंत खड़े हो गए। और उन्होंने कहां हो यही है वह राय रामानंद। यही सोचते हुए वहां राय रामानंद तरफ दौड़ने लगे। परंतु दूसरे ही क्षण वह सोचने लगे मैं तो संन्यासी हूं मैं तो बडा हू इसी सोच के साथ महाप्रभु नीचे बैठ गए। राय रामानंद ने देखा कि, थोड़ी से अंतर पर गोदावरी के तट पर कोई तो बैठा है। यहां पर वर्णन है कि, *कोटि सूर्य समप्रभ* वहां सोचने लगे, अरुणवसन उनके वस्त्र अग्नि के तरह दिव्य है, प्रकांड देह दिव्य बड़ा शरीर है, कमललोचन कमल की तरह आंखें हैं, और बाकी सारे लक्षण विशेषता देखकर राय रामानंद समझ गए कि चैतन्य महाप्रभु है। तुरंत उन्होंने बाकी सब चीजें पीछे छोड़ दी, शोभायात्रा वगैरह और महाप्रभु की ओर दौड़ पड़े। राय रामानंद ने चैतन्य महाप्रभु को साष्टांग दंडवत किया और बहुत देर तक वहां दंडवत की मुद्रा में ही रह गए कृपया उठ जाओ कृपया उठ जाओ महाप्रभु कहने लगे। महाप्रभु पूछने लगे या फिर यह उनको सुनिश्चित करना था लेकिन, महाप्रभु सर्वज्ञ है सब कुछ पता है। वह स्वतंत्र और सर्वज्ञ है। महाप्रभु ऐसे पूछने लगे वैसे उनको पता ही नहीं। आप राय रामानंद हो? "हां हां मैं ही हूं, वह पापी, शूद्र, नीच, राय रामानंद मैं ही हूं।" कुछ इस तरह से राय रामानंद ने पहचान कराई और फिर महाप्रभु खड़े हो गए फिर वह दोनों एक दूसरे से मिले गले मिले दोनों के शरीर का कंपन हो रहा था। आंखों से अश्रु बह रहे थे। एक दूसरे को आलिंगन दे रहे थे। आसपास के चीजों को भूल गए थे। अपनी बाहरी चेतना को वह पूरी तरह से भूल गए थे दोनों के देह वैसे खड़े भी नहीं हो पा रहे थे। वह हिल डुल रहे थे। शरीर का कंपन हो रहा था अंतिम था दोनों नीचे गिर गए। वह जमीन पर लोटपोट होने लगे। पता नहीं यहां कब तक चला अंतिम टा वह दोनों अपनी चेतना में आ गए। राय रामानंद और चैतन्य महाप्रभु दोनों भी चेतना में आ गए। राय रामानंद वहां के गवर्नर थे। उस जगह के, दोनों राज्यों के गवर्नर थे। राय रामानंद यह दूसरे कोई नहीं यह विशाखा है। विशाखा सखी है जो बन गई विशाखा। राय रामानंद जो गवर्नर है, उनको चार भाई थे। भवानंद उनके पिता थे और भवानंद को 5 पुत्र थे। ऐसा भी कहा जाता है, भवानंद महाराज पांडू है और उनके 5 पुत्र पांडव है। राय रामानंद अर्जुन है। और यह सत्य भी हैं गौडिय वैष्णव भी यही कहते हैं और महाप्रभु ने भी मान्य किया है रामानंद विशाखा है तो यहां पर मैं दोनों एक साथ 10 दिन तक रहे दिन का पूरा समय और रात का भी पूरा समय मिला कर इन दोनों की चर्चा संवाद चल रहा था। राय रामानंद और चैतन्य महाप्रभु के बीच की जो बातें हुई वह एक संवाद के रूप में प्रसिद्ध है। इन दो महात्माओं के बीच की बातचीत इस बातचीत की विशेषता यह थी कि चैतन्य महाप्रभु राय रामानंद को सुन रहे थे। यह संवाद एक प्रश्न उत्तर सत्र जैसे था और चैतन्य महाप्रभु अनेक तरह के प्रश्न पूछ रहे थे। तो हर रात्रि को अलग-अलग विषय अलग-अलग दृश्य के ऊपर के संवाद वे पूरा किया करते थे। चैतन्य महाप्रभु अलग-अलग प्रश्न राय रामानंद से पूछते थे, यह एक पूर्ण प्रश्न पूर्ण उत्तर सत्र था। याद करिए श्रील प्रभुपाद का भी एक किताब है पूर्ण प्रश्न पूर्ण उत्तर नाम का, तो यहां पर और एक है पूर्ण प्रश्न पूर्ण उत्तर। तो राय रामानंद बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं थे उत्तर देने के लिए क्योंकि वह अपने आपको उतना योग्य नहीं समझते थे। चैतन्य महाप्रभु उनको आग्रह कर रहे थे नहीं कृपया और कहिए, और कहिए, कृपया कुछ कहिए, मुझे सुनना है। फिर राय रामानंद कहते हैं हे प्रभु आप मेरे माध्यम से बोल सकते हैं आप ही वक्ता हो और राय रामानंद इतना भी कहे कि मैं तो एक स्ट्रिंग साधन हूं साधन में जो स्ट्रिंग होता है मैं साधन हूं और आप उस स्ट्रिंग पर खेलते हो आप मुझे मीठा बनाते हो। ऐसे ही कुछ श्रील प्रभुपाद ने भी अपनी भावनाओं को व्यक्त किया था *आमि तो काष्टेर पुतलि नाचाओ नाचाओ प्रभु नाचाओ से मते* हे प्रभु मैं तो सिर्फ आपके हाथ का कठपुतली हु और श्रील प्रभुपाद ने यह विचार जलदूत बोट में लिखा जब वे अमेरिका जा रहेे थे। हे भगवान आप मुझे जैसेे नचाना चाहते हो वैसे नचाइये। आप ही मुझे बोलने के लिए प्रेरित कीजिए आप ही वक्ता बनिए। तो राय रामानंद भी पीछे हटेे ठीक है, आप मेरा उपयोग कीजिए आप मेरे मुंह का उपयोग कीजिए, परंतुु आपही वास्तव में वक्ता है। तो यह संवाद चल रहे ........?) राय रामानंद बहुत चाह रहे थे और आग्रह कर रहे थे चैतन्य महाप्रभु से हे प्रभु कृपया लंबेेे समय तक रहे, कृपया और कुछ दिन रहिए, कृपया 10 दिन के लिए रहिए। और इसके लिए चैतन्य महाप्रभु कहे सिर्फ 10 दिन के लिए ही क्यों मुझे सदैव आपके साथ रहना है, सभी समय के लिए। और महाप्रभु राय रामानंद के सामने प्रस्ताव रखे कि अब मैं दक्षिण भारत यात्रा जा रहा हूं और जब मैं जगन्नाथ पुरी वापस लौटता हूं, तब मैं चाहूंगा कि आप यह देवी देवताओं की पूजा छोड़़ दे, जो भी यह आप कर रहे हो। यहां से बाहर निकलीए और हमेशा के लिए जगन्नाथ पुरी में मेरे साथ जुड़ जाइए। मैंं आपके साथ रहूंगा, हम एक साथ रहेंगे। हम जानते हैं वही हुआ चैतन्य महाप्रभु दक्षिण भारत यात्रा से वापस लौट आए और राय रामानंद महाप्रभुु के साथ गंभीरा में जुड़ गए। चैतन्य महाप्रभु के निकटतम पार्षदों की मंडली। राय रामानंद और स्वरूप दामोदर राय रामानंद विशाखा है और स्वरूप दामोदर ललिता और चैतन्य महाप्रभु राधा रानी है। जगन्नाथपुरी में अंतिम लीला के दौरान चैतन्य महाप्रभु हालांकि वे राधा-कृष्ण है उन्होंने राधा रानी की तरह अभिनय किया और कृष्ण ने पीछे की सीट ले ली और राधा रानी अग्रभाग मे थी तो इस तरह से राधा रानी, ललिता, विशाखा सभी साथ जगन्नाथ पुरी में गंभीरा में थे जहां महाप्रभु रहते थे। चैतन्य महाप्रभु और राय रामानंद की भेंट की लीला केे दौरान और एक श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का असाधारण दर्शन उन्हेंं प्राप्त हुआ और यह बहुत दुर्लभ से भी अतिदुर्लभ दर्शन था। और फिर राय रामानंद ने पूछताछ की हे प्रभु क्या हुआ आप इतने दिनों में जब भी आए मैंने आपको हमेशा देखा था सुवर्णकांति व्यक्तित्व सन्यासी भगवा वस्त्र पहने हुए। परंतुुु यह में क्या देख रहा हूं? उन सन्यासी की जगह मैं राधा कृष्ण को देख रहा हूं। कौन सा असली रूप है आप सन्यासी हो कि आप राधा और कृष्ण हो। तो हम हमेशा सुनते हैं *श्रीकृष्ण चैतन्य राधाकृष्ण नाही अन्य* श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु राधा और कृष्ण से अलग नहींं है, वहां पर प्रत्यक्ष प्रमाण था। चैतन्य महाप्रभु चतुराई से खुद को प्रकट कर रहे थे। चैतन्य महाप्रभु की पहचान गौरांग के रूप में और यह नवद्वीप और मायापुर की भी पहचान है। गोलोक धाम मे वृंदावन है और गोलोक धाम में नवद्वीप भी है जिसे श्वेतद्वीप भी कहा जाता है। कभी-कभी नवद्वीप में श्री कृष्ण श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु है और वही कृष्ण जो राधा कृष्ण नाही अन्य वृंदावन में है। तो यह एक में दो रूप है तो इसका सही समय पर सही व्यक्ति को अति गोपनीयता के साथ प्रदर्शन किया है। और राय रामानंद तो विशाखा के सिवाय और कोई नहीं है, तो महाप्रभु अपनी पहचान राय रामानंद से कैसे छुपा सकते थे। महाप्रभु की जो असली पहचान है वह राय रामानंद जो विशाखा है उनकेे द्वारा प्रकट हुआ है, विशाखा की उपस्थिति मेंं प्रकट हुआ। महाप्रभु को राधा और कृष्ण के रूप में प्रकट होना पड़ा। जैसे राधा रानी की उपस्थिति में कृष्ण ने कुछ समय केे लिए चतुर्भुज नारायण रूप धारण किया। राधा रानी और गोपियां कृष्ण की तलाश में थे वे नारायण से मिले और उनको पूछा भी आपने हमारे कृष्ण को कहीं देखा। और फिर विष्णु को उनके अतिरिक्त हाथ निकालने पड़े और कृष्ण को जबरदस्ती उनके मूल रूप को धारण करना पड़ा। जो दो हाथो वाले, बंसी बजाने वाले राधावल्लभ और श्री कृष्ण है। ऐसे ही कुछ विशाखा की उपस्थिति मेे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को राधा और कृष्ण का दर्शन देना पड़ा. पर जैसे राय रामानंद ने उनसे पूछा आपका कौन सा रूप मूल रूप है। महाप्रभु कहे इसमेंं मेरी कोई गलती नहीं है यह तो आप है मैं तो वही हू। जिस रूप में मैं इन दिनों में आया था मैं इन दिनों में जैसे दिखता था आपने जिस रूप में मुझे देखा है मैंं तो वही हूं। यह तो आप कि दृृष्टि है। फिर चैतन्य महाप्रभुु कहें जो कि एक प्रसिद्ध कथन और सिद्धांत है। *स्थावर - जङ्गम देखे , ना देखे तार मूर्ति । सर्वत्र हय* *निज इष्ट - देव - स्फूर्ति ॥ 274 ।।* अनुवाद " महान् भक्त अर्थात् महाभागवत अवश्य हर चर तथा अचर को देखता है , किन्तु वह उनके बाह्य रूपों को नहीं देखता । प्रत्युत वह जहाँ कहीं भी देखता है , उसे तुरन्त भगवान् का स्वरूप प्रकट होते दिखता है । " महान भक्त या शुद्ध भक्त जब यहां वहां विचलन करते हैं और वे जब किसी से टकराते हैं या मिलते हैं *स्थावर जङ्गम देखी* जब वे कुछ स्थिर वस्तुएं देखते हैं, जो कुछ चर अचर है उसे देखते हैं, यह सब कुछ देखने के बाद भी वे उन वस्तुओं को उन रूपों को नहीं देखते हैं। *स्थावर - जङ्गम देखे , ना देखे तार मूर्ति* वे ना तो वास्तव में उन वस्तुओं को देखते हैं और ना ही उनका विवरण देखते हैं। उन सभी वस्तुओं में वे सिर्फ उनके इष्ट देव को ही देखते हैं। उनके मन में बस उनके इष्ट देव.ही है, उनके भक्ति के स्वामी, उनके भक्ति का उद्देश्य विषय। उनको ही वह सब जगह देखते हैं और जिस भी चीज का अस्तित्व है वे उस बारे में चिंता नहीं करते, वे उसके ऊपर ध्यान नहीं देते हैं। *यतो यतो यामि ततो नृसिंहः।* *बहिर्नृसिंहो हृदये नृसिंहो* जहां पर भी मैं जाता हूं, हे मेरे प्रभु नरसिंह देव के भक्त इस तरह प्रार्थना करते हैं और इसी का वे अनुभव करते हैं। *यतो यतो यामि* जहां कहीं भी मैं जाता हूं वहां पर आप हो हे मेरे प्रिय भगवान। *बहिर्नृसिंहो* आप बाहर हो *हृदये नृसिंहो* आप ह्रदय में हो। और एक प्रसिद्ध प्रार्थना है *जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु में* हे जगन्नाथ स्वामी आप नयन पथ गामी बन जाओ। नयन आंखें पथ मार्ग मेरी आंखों का या दृष्टि का मार्ग। जहां पर भी मैं देखूं जहां पर भी अलग मार्ग हैं *जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु में* आप वहां होते हैं। चैतन्य महाप्रभु कहते हैं यह मेरी गलती नहीं है यह तो आप ही हो वह आपकी दृष्टि हैं। हरि हरि। इस तरह से वे दोनों 10 दिन एकसाथ में बिताए। सामान्य रूप से चैतन्य महाप्रभु अपनी दक्षिण भारत यात्रा में एक जगह में सिर्फ एक रात के लिए ही रहते थे। और कभी कभी तो सिर्फ आधी रात के लिए ही रहते थे। वे आधी रात में उठकर ही आगे की यात्रा के लिए निकल जाते थे। वे सोचते थे कि अगर मैं प्रातः समय उठ कर आगे बढ़ने के लिए शुरुआत करूंगा तो पूरे गांव के लोग मेरे साथ मेरे पीछे आएंगे। तो महाप्रभु आधी रात में ही उठ कर उन सभी गांव वालों को छोड़कर आगे बढ़ जाते थे। और कभी भी एक रात या आधी रात से ज्यादा समय कहीं बिताते नहीं थे। परंतु कुछ स्थानों के लिए यह बहुत अपवादात्मक हैं। चैतन्य महाप्रभु यहां थोड़े लंबे समय तक रहे और वह स्थान यह गोपुर है गोदावरी की भूमि। राय रामानंद के संग में यहां पर। कहने के लिए बहुत कुछ है, इसका पठन करना बहुत विशेष है। और उसमें जो संवाद हैं राय रामानंद और चैतन्य महाप्रभु का वह बहुत असाधारण हैं। चैतन्य चरित्रामृत का यह एक मुख्य आकर्षण है। आप उसका आगे का अध्ययन कर सकते हो हमारे पास इतना समय नहीं है। हरे कृष्ण।

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