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जप चर्चा दिनांक 05.05.2021 हरे कृष्ण!!! आज इस जपा कॉन्फ्रेंस में हाउसफुल है।आज 1000 स्थानों से प्रतिभागी सम्मिलित हुए हैं। हरि! हरि! वाछां - कल्पतरुभ्यश्च कृपा - सिन्धुभ्य एव च। पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः।। पंकजांगरी प्रभु के चरण कमलों को मेरा विन्रम नमस्कार है। पंकजांगरी प्रभु की जय! मैं आज प्रात: सोच रहा था कि किस तरह से आपको यह अच्छी अथवा बुरी खबर दें। मैं आज मेरे प्रिय गॉड ब्रदर और प्रिय मित्र अथवा वैष्णव पंकजांगरी प्रभु के प्रस्थान के विषय में कुछ मिक्स न्यूज ( मिश्रित खबर) कहूंगा। उनका प्रस्थान वैसा ही है, जैसा कि हम समझते हैं। आज कुछ भी बोलना कठिन है लेकिन हर्ष और शोक दोनों ही मानने का अवसर है। यह अवसर विलाप से भरा हुआ है। दुःख - मध्ये कोन दुःख हय गुरुतर ? ' । ' कृष्ण - भक्त - विरह विना दुःख नाहि देखि पर ( श्रीचैतन्य चरितामृत ८.२४८) अनुवाद : श्रीचैतन्य महाप्रभु ने पूछा , “समस्त दुःखों में कौन - सा दुःख सर्वाधिक कष्टदायक है ? "श्री रामानन्द राय ने उत्तर दिया , " मेरी जानकारी में कृष्ण - भक्त के विरह से बढ़कर कोई दूसरा असह्य दुःख नहीं है । " यह श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु और राय रामानंद के बीच हुए संवाद का अंश है। चैतन्य महाप्रभु दुख के विषय में सवाल पूछ रहे हैं कि दुनिया में सबसे दुखद बात या चीज़ क्या है? राय रामानंद उत्तर देते हैं - कृष्ण - भक्त - विरह विना दुःख नाहि देखि पर ' कृष्ण भक्त विरह अर्थात भक्तों से विरह सबसे दयनीय बात है। एक वैष्णव से अलग होना यह अधिक पीड़ादायक है। अतीत में, हम मायापुर में मिलते थे और अलग हो जाते थे और फिर हम उन जुड़वा भाईयों जननिवास व पंकजांगरी से मिलने के लिए तत्पर रहते थे अब मिलन का दौरा चल रहा था। यूनियन सेपरेशन, (मिलना बिछुड़ना) यूनियन अलगाव (मिलना बिछुड़ना) हम इसके माध्यम से जा रहे थे लेकिन अब हम हमेशा के लिए अलग हो गए हैं। पंकजांगरी प्रभु अब हमें पीछे छोड़कर कृष्ण और प्रभुपाद के पास वापिस चले गए हैं। यदि वह हमारे लिए प्रार्थना करेंगे तब हम उन्हें पकड़ पाएंगे और उनसे फिर से मिल पाएंगे। मायापुर में ये दो भाई जननिवास और पंकजांगरी सूर्य और चंद्रमा की तरह चमक रहे थे। उस चाँद या सूरज में से कल एक अस्त हो गया है। उनकी महिमाएँ दुनिया भर में फैली हुई हैं। वे ४० वर्षों से मायापुर में रहते थे और राधा माधव और पंचतत्व, नरसिंह, प्रह्लाद की सेवा करते थे। विशेष रूप से पंकजांगरी प्रभु पुजारी बन गए। उन्होंने नरसिंह मंदिर का कार्यभार संभाला। उनका समर्पण, उनकी भक्ति मैचलेस(अतुलनीय) थी। मुझे यकीन है कि कृष्ण उन्हें एक कदम आगे वृंदावन में ले गए है। इन दोनों भाइयों ने शायद ही विग्रहों की कभी सेवा छोड़ी हो। वे मंदिर और मायापुर चंद्रोदय प्रांगण के पीछे रहते थे .. हरि! हरि! यह मेरा संघ था, वर्ष 1973,1974 में जब मैं मायापुर उत्सव में गया था, उस समय मैं भी मुंबई में राधा रासबिहारी का मुख्य पुजारी था। तब जननिवास प्रभु वहां थे। यकीन है कि वे वहाँ पहले ही थे और पंकजांगरी प्रभु बाद में शामिल हुए थे। मुझे भी मंगला आरती के बाद सभी विग्रहों की सेवाओं हेतु निमंत्रण मिलता था। जननिवास प्रभु मुझे एक विशेषाधिकार प्रदान किया करते हैं। वे वर्ष 1973 में राधा माधव की ड्रेसिंग करते थे। उस समय हमारे पास केवल राधा माधव ही थे। मैं राधारानी का पदभार संभालता था। हमारा आपस में अच्छा संघ था। हम तीनों विग्रहों सेवा करते थे व अन्य अवसरों पर भी राधा माधव, पंचतत्व, नृसिंह की सेवा करते थे। एक बार ये दो भाई वहां आरती कर रहे थे और मैं वहाँ प्रमुख कीर्तन कर रहा था। इसलिए कई बार ये दोनों भाई भी उसमें सम्मलित हो जाते थे। पंकजांगरी प्रभु विशेष रूप से एक महान नर्तक भी थे। मैं कीर्तन के दौरान की यादें ताजा करता हूं। मैं कीर्तन की अगुवाई कर रहा था और ये दोनों भाई डांसिंग पार्टी के बीच में कूद रहे थे। जब सब बैठ भी जाते थे और केवल उन्हें नाचते हुए देखते थे। हरे कृष्ण! जैसा कि आप सभी जानते हैं कि ये जुड़वाँ भाई दिखने में बहुत ज्यादा एक जैसे हैं और मुझे यह स्वीकार करता हूँ कि मुझे हमेशा यह पहचानने के लिए संघर्ष करना पड़ता था कि कौन- कौन है। कई बार मैं मन ही मन संवाद करता था- यह पंकजांगरी प्रभु हैं और तब जल्द ही मुझे यह अहसास होता था कि नहीं नहीं .. तब मैं अपने आप को सही कर लेता था .. उसी हिसाब से इन भाइयों से मिलता था। वैसे कई अन्य भाई भी श्रील प्रभुपाद के शिष्य बनें थे लेकिन ये दोनों जुड़वाँ भाई थे और वे मायापुर में एक साथ रहे परंतु अलग-अलग भाई, प्रभुपाद के शिष्यों में दूसरे भाई भी थे, वे अलग अलग मंदिरो में सेवा करते थे कोई इस मंदिर में तो कोई दूसरे मन्दिर में था, कोई इस देश में व कोई दूसरे देश में पर ये दोनों भाई मायापुर में सेवा करते थे और केवल विग्रहों की सेवा करते थे। वे विग्रहों की पूजा के लिए जाने जाते हैं। वे सब कुछ एक साथ करते थे। वे विग्रहों की एक साथ पूजा करते थे। वे एक साथ जप और नृत्य करते थे। वे एक साथ रहते थे। वे केवल एक जैसे दिखते ही नहीं थे, अपितु वे बहुत सारे तरीकों से बहुत समान भी थे। एक बार (वर्ष) वे एक साथ ब्रजमंडल परिक्रमा करने आए। मैं सोच रहा था जैसे कृष्ण और बलराम दो भाई हमेशा साथ रहते हैं, एक साथ यात्रा करते हैं, एक साथ अलग-अलग लीलाएँ करते हैं, वैसे ही उन दो भाइयों की तरह ये दोनों भी एक साथ ब्रजमंडल परिक्रमा करने आए थे। ब्रज मंडल परिक्रमा का वह वर्ष बहुत ही विशेष था। ये दोनों भाई आकर्षण और ध्यान के केंद्र थे। मैं उनके साथ एक साथ चला। हमने एक साथ गौर निताई की पूजा की। हमने गिरिराज गोवर्धन के अभिषेक का नेतृत्व किया और हम गोवर्धन पूजा का पालन कर रहे थे। वे दामोदरष्टक के दौरान एक साथ दीपक दिखा रहे थे। मुझे याद है कि जब कभी कभी कथा हिंदी में होती थी, तब उन कथाओं के दौरान वे हमेशा एक-दूसरे के बगल में बैठ जाते थे और एक अनुवादक को बीच में बैठाकर कथा का अनुवाद एक साथ सुनते थे। हमारी बहुत सी यादें हैं। न ही केवल पुरानी अच्छी यादें है अपितु मध्य समय और इस केवल महामारी के दौरान की भी काफी यादें है। महामारी के कारण हम एक साथ नहीं हो सके परंतु हमनें बहुत सारा समय एक साथ बिताया। हम भाई हैं और श्रील प्रभुपाद के बच्चे हैं। हालांकि वे इंग्लैंड की जन्मभूमि में पैदा हुए और मेरा जन्म महाराष्ट्र (भारत) में हुआ था। तब कृष्ण भावनामृत ने अपना काम किया। हम सब भूल जाते हैं और हम सभी अपने पदों व सीमाओं को पार कर लेते हैं। हम एक परिवार हैं। हम भाई हैं, हम दोस्त हैं। हमारे बीच स्नेह का बंधन है। इसलिए वह जो बंधन, पंकजांगरी प्रभु के साथ था, वह टूट गया क्योंकि वे प्रस्थान कर गए और हमें पीछे छोड़ गए। मेरा दिल टूट गया है, मेरे पास रोने के अतिरिक्त कुछ नहीं बचा है। मेरे कुछ रक्त संबंधी भी, समय-समय पर प्रस्थान हुए हैं। मुझे बुरा लगा और मैंने उन्हें याद भी किया, लेकिन पंकजांगरी प्रभु जैसे भाई को खोने जैसा कुछ नहीं है। जिसने मेरी बहुत अधिक भावनाओं, फीलिंग्स व विरह की भावनाओं को जगा दिया है। जैसा कि राय रामानंद ने जवाब में कहा था कि सभी दुखों व कष्टों का कारण एक भक्त की संगति को खोना है। इसलिए विरह व्यथा जो अलग होने के कारण हो रही है लेकिन जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि यह दिन खुश होने का भी दिन है। यह सुख और दुख का मिश्रण है। जैसा कि मैंने दुख के लिए कारण बताया, खुश होने का कारण यह है कि किसी का नुकसान किसी अन्य का फायदा होता है। हम हार गए हैं और कृष्ण ने प्राप्त किया है। वे यहां पैदा हुए थे और अब वे उनके सङ्ग में वापिस चले गए हैं । इसलिए वहां उत्सव मना रहे हैं। वहां मिलन उत्सव हो रहा है और यहां विरह उत्सव है लेकिन हम भी मिलन उत्सव में गवाह के रूप में शामिल हो सकते हैं। दृश्य की कल्पना कर उनको याद कर और खुश रह सकते है। पंकजांगरी तिथि महोसत्व की जय! मायापुर धाम की जय !!! प्रहलाद नरसिंह देव की जय!!! अष्ट सखी राधा माधव की जय !!! श्रील प्रभुपाद की जय!!! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!!!

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