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*जप चर्चा* *10 नवंबर 2021* *वृन्दावन धाम से* हरे कृष्ण ! आज 761 भक्त इस जपा टॉक में सम्मिलित हैं। आप सभी का स्वागत है। वैसे आप पहुंच भी गए, पहले आप हमारे साथ यहां वृंदावन में थे किंतु कई अपने-अपने घर लौटे है। वैसे वृंदावन ही अपना घर है मे बी होम अवे फ्रॉम होम, ऐसा अंग्रेजी में कहावत है। आपका होम अहमदाबाद या जहां भी है वह कैसा है अवे फ्रॉम होम है ओरिजिनल होम तो हमारा वृंदावन है। बैक टू होम, धीरे-धीरे जो भक्त वृंदावन आए थे अपने अपने नगर ग्राम और घर पहुंच रहे हैं। इसे क्या कहें दुर्देव कहो या सुदेव कहो मुझे भी आज यहां से प्रस्थान करना पड़ रहा है। ऐसा पहली बार हो रहा है 35 वर्षों में शोलापुर में राधा दामोदर विग्रह की स्थापना हो रही है। राधा दामोदर आ रहे हैं। शोलापुर में उनके स्वागत और प्राण प्रतिष्ठा के लिए मैं आज यहां से प्रस्थान कर रहा हूं। वृंदावन से शोलापुर तो कल पहुंचूंगा। *बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं बिभ्रद्वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् । रन्ध्रान्वेणोरधरसुधयापूरयन्गोपवृन्दैर् वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद्गीतकीर्तिः ॥* (श्रीमद भागवतम १०.२१.५ ) अनुवाद - अपने सिर पर मोरपंख का आभूषण, अपने कानों में नीले कर्णिकार फूल, स्वर्ण जैसा चमचमाता पीला वस्त्र तथा वैजयन्ती माला धारण किये भगवान् कृष्ण ने सर्वश्रेष्ठ नर्तक का दिव्य रूप प्रदर्शित करते हुए वृन्दावन के वन में प्रवेश करके अपने पदचिन्हों से इसे रमणीक बना दिया। उन्होंने अपने होंठों के अमृत से अपनी वंशी के छेदों को भर दिया और ग्वालबालों ने उनके यश का गान किया। यह वेणु गीत अध्याय का वचन है जो कि प्रसिद्ध है इसकी स्टडी भी हम कल कर रहे थे। अर्थात ऐसे कृष्ण और ऐसे धाम को छोड़ना पड़ रहा है। इट्स नॉट इजी टास्क , एक ओर कृष्ण खींच रहे हैं और दूसरी ओर ड्यूटी सेवा खींच रही है। शोलापुर की ओर, यहां वृंदावन में भगवान खींच रहे हैं यहां कृष्ण "बर्हापीडं" मोर मुकुट पहने हुए नटवरवपुः, जैसे हम पढ़ते हैं सुनते हैं स्मरण करते हैं नटवर वपु: उनकी वपु कैसी है ? नटवर या नटवत जैसे हैं कृष्ण। वैसे भी नटराज कहलाते हैं। इस तरह एक्टर हैं। कलाकार जैसा ही उनका सौंदर्य भी है और कलाकार जैसी उनकी चाल भी है। वैसे कलाकारों जैसी इनकी चाल या सौंदर्य नहीं कह सकते हरि हरि ! नटों मैं वे श्रेष्ठ हैं नटवरवपु: कर्णयोः कर्णिकारं अपने कानों में कर्णिकारं कर्णिका पुष्प धारण करते हैं। इस वचन में कहा है कर्णयोः कर्णिकारं अर्थात दो कान वाले, एक पुष्प और दो कान , क्या करते होंगे कैसे पहनते होंगे यह कैसे धारण करते होंगे? एक पुष्प है और दो कान हैं। कुछ आचार्यों ने यह भी लिखा है कि उल्लेख तो होना चाहिए पुष्पों का कर्णयोः कर्णिकारं, यह अर्श वचन है अर्श वचन मतलब ऋषि मुनि या शुक् कह रहे हैं उनके लिए माफ है वह कर्णयोः कर्णिकारं भी कह सकते हैं कहना तो था उनको करुणिकारौ द्विवचन में, लेकिन उन्होंने कह दिया एक ही पुष्प का उल्लेख हुआ अतः इसे अर्श वचन कहते हैं। कोई भाष्य कार लिखते हैं भगवान जो नटवर हैं या एक्टर हैं अपनी कलाकारी का प्रदर्शन करते हैं। उसमें क्या करते हैं एक ही पुष्प को दाहिने दक्षिणे कभी बाएं कान में उसी पुष्प को धारण करते हैं। बिभ्रद्वासः कनककपिशं और कृष्ण जो वस्त्र धारण करते हैं कौन से विशेषणों का हम उपयोग कर सकते हैं। कृष्ण के सौंदर्य का कहो या उनके वस्त्रों का वर्णन करने के लिए ,शब्द तो अधूरे रहते हैं वाणी या तो गदगद होनी चाहिए। शब्द ही नहीं निकलते या शब्द अधूरे रह जाते हैं पूरा वर्णन नहीं कर पाते, ऐसा भी कहा है कृष्ण के संबंध में की आभूषण धारण करने से कृष्ण के सौंदर्य में वृद्धि नहीं होती, उल्टा ही होता है। कृष्ण जब अलग-अलग अलंकार या वस्त्र धारण करते हैं तब अलंकारों और उन वस्तुओं की शोभा बढ़ती है। भगवान के स्वयं के सौंदर्य के कारण, आप आसानी से समझ सकते हो यह उल्टा है आध्यात्मिक जगत में सुल्टा है और हमारे जगत में यह उल्टा है। हम अपने सौंदर्य का वर्धन करने या हम अधिक सुंदर हैं इसका दर्शन कराने में कई सारे वस्त्र अलंकार कुंडल या यह है या वह है हम पहन कर अपने सौंदर्य को बढ़ाने का हर संभव प्रयास करते हैं। यह सारी कॉस्मेटिक इंडस्ट्री, गारमेंट या इसके पीछे कितना लोग दिमाग लगाते हैं यह कितने प्रयास होते हैं ताकि आप स्टाइल से इस प्रकार की शर्ट इस प्रकार की पेंट इस प्रकार की लिपस्टिक नेल पॉलिश एवं नेल केयर, चमड़ी की केयर है नाखून की केयर है इसी में हम लोग फंसे रहते हैं और अपने जीवन को बर्बाद करते हैं या प्लास्टिक सर्जरी करते हैं। ताकि हम ऐसा दिखे नहीं तो अच्छा नहीं लगता है। इसीलिए फिर लेकिन कृष्ण ! कृष्ण कन्हैया लाल की उनकी बात ही अलग है वैसे सारे सौंदर्य के स्रोत कृष्ण ही हैं और फिर कृष्ण के आभूषणों में या वस्त्रों में जो सौंदर्य है उसके कारण भी कृष्ण ही हैं या कृष्ण का सौंदर्य उनके वपु का उनके विग्रह का जो सौंदर्य है और यही है माधुर्य वृंदावन का, कृष्ण का सौंदर्य, एक माधुर्य है या चार प्रकार के जो माधुर्य वृंदावन में होते हैं वेणु माधुर्य, लीला माधुर्य, प्रेम माधुर्य और रूप माधुर्य है इन चार माधुर्यों के कारण कृष्ण हैं। या कृष्ण फिर कहते हैं *मत्तः परतरं नान्यत्किंचिदस्ति धनंजय । मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥* (श्रीमद भगवद्गीता 7.7) अनुवाद- हे धनञ्जय! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है | जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है | मुझसे श्रेष्ठ कोई नहीं है। हम यहां मनुष्यों की बात नहीं कर रहे मनुष्य तो मक्खी मच्छर है। नथिंग, यहां जब भगवान कह रहे हैं मत्तः मुझसे और कोई श्रेष्ठ नहीं है और और *रामादि मूर्तिषु कल-नियमेन तिष्ठन् नानावतारं अकरोद्भुवनेषु किंतु कृष्णः स्वयं समभवत् परमः पुमान् यो गोविंदं आदिपुरुषं तमहं भजामि।* यह नानावतारं सारे अवतारों में मेरे बराबर का कोई नहीं है समुर्ध्वं मेरे संग कोई नहीं है। ऊर्ध्वं अर्थात मुझसे श्रेष्ठ या मुझ से ऊंचा कोई नहीं है। यह चार माधुर्य हैं। भगवान के 64 गुणों का उल्लेख भक्तिरसामृत सिंधु में हुआ है और यह चार ऐसी क्वालिटी है जिनका हमने उल्लेख किया है। यह केवल कृष्ण में ही है और वह भी केवल वृंदावन कृष्ण में है। मथुरा में उतना सौंदर्य का प्रदर्शन नहीं है और द्वारका में भी नहीं है और बैकुंठ में तो है ही नहीं। वृंदावन के कृष्ण सर्वोपरि हैं बिभ्रद्वासः कनककपिशं, यह वस्त्र जो पहनते हैं इसे पीतांबर कहते हैं और जब ऐसे वस्त्र पहनते हैं तब भगवान का एक नाम भी हो गया है पीतांबर ! पीत पीला अंबर वस्त्र, पीले वस्त्र पहनते हैं। येलो गारमेंट्स, लेकिन कनककपिशं कैसा है यह पीतांबर ? जब आकाश में बादलों की गड़गड़ाहट होती है और बिजली चमकती है लाइटनिंग उसकी जो छटा या आभा है या शोभा होती है विद्युत की लाइटनिंग की, वैसे तुलना तो हो नहीं सकती लेकिन कुछ तुलना या उपमा देने से हमको थोड़ा सा कुछ आईडिया आ जाता है। जो भी हम विद्युत की या बिजली की चमक दमक है उसकी कई गुना चमक दमक कनककपिशं मतलब बोल्ट, जैसा यह भगवान के पीतांबर वस्त्र हैं। यह साधारण पीला या पीत रंग नहीं है। जैसे राधा रानी के संबंध में भी तप्त कांचन गौरांगी! गौरांगी का अंग कैसा है सुनहरे वर्ण की हैं किंतु कैसा सुनहरा वर्ण या कैसा? गोल्ड का वर्ण, कैसा सोना? तप्त , यह सोना जब तपता है, उसकी जो शोभा है वह साधारण सोने से कई अधिक गुना होती है। केवल कांचन गौरांगी राधे नहीं कहा है तप्त कांचन कहा है। वैसे ही यहां पर भी कहा है भूषणभूषणाङ्गम् *यन्मर्त्यलीलौपयिकं स्वयोग मायाबलं दर्शयता गृहीतम् विस्मापनं स्वस्य च सौभगद्धेः परं पदं भूषणभूषणाङ्गम् ॥* (श्रीमद भागवतम ३.२.१२ ) अनुवाद- भगवान् अपनी अन्तरंगा शक्ति योगमाया के द्वारा मर्त्यलोक में प्रकट हुए। वे अपने नित्य रूप में आये जो उनकी लीलाओं के लिए उपयुक्त है। ये लीलाएँ सबों के लिए आश्चर्यजनक थीं, यहाँ तक कि उन लोगों के लिए भी जिन्हें अपने ऐश्वर्य का गर्व है, जिसमें वैकुण्ठपति के रूप में भगवान् का स्वरूप भी सम्मिलित है। इस तरह उनका (श्रीकृष्ण का) दिव्य शरीर समस्त आभूषणों का आभूषण है। कनककपिशं विद्युत के साथ या लाइटनिंग के साथ भगवान के पीतांबर वस्त्र की तुलना करने का प्रयास हुआ है। कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् और कृष्ण के इस वचन में वैजयंती माला का उल्लेख हुआ है। जब माला की बात करते हैं तब कई सारे वर्णन हैं या अलग-अलग समय या परिस्थिति में अलग-अलग प्रकार की मालाएं भगवान धारण करते हैं। इसीलिए फिर वह कभी वनमाली भी कहलाते हैं यशोदा मैया ने तो कई सारे अलंकार धारण कराये थे कन्हैया को, प्रातः काल में और वही पहन कर जब कृष्ण वृंदावन में अपने मित्रों के साथ प्रवेश करते हैं तब वन में पहुंचते ही मित्रों को वह अलंकार अच्छे नहीं लगते जो यशोदा ने पहनाये थे उनके मित्र वृंदावन में ही फॉरेस्ट गार्डन फ्लावर्स अर्थात कृष्ण के मित्र कई सारे पुष्पों का चयन वहीँ करते हैं पुष्पों का कुछ पत्तों का, उसकी माला बनाते हैं और फिर यशोदा के द्वारा पहनाए हुए मालाएं या अलंकार, उसको उतारकर श्रीकृष्ण को सजाते हैं। केवल माला पुष्पों की माला ही नहीं बल्कि जैसे कभी हम भी फ्लावर आउटफिट्स कहते हैं विग्रह का या मूर्ति का कैसा आउटफिट ? फ्लावर आउटफिट , हल्का सा थोड़ा सा वस्त्र और अधिकतर फ्लावर्स फूल ही फूल होते हैं यह आइडिया हमको कहां से आता है कृष्ण के जो मित्र हैं या जो सखियाँ गोपियां भी हो सकती हैं। जैसे बच्चों से लड़कों से लड़कियों के पास अधिक आईडिया होता है। श्रृंगार की बात जब आती है यह डिपार्टमेंट वैसे महिलाओं का या युवतियों का होता है बच्चे क्या जानते हैं वह तो केवल हल्का सा ही श्रृंगार करते हैं। लेकिन गोपियां जब कृष्ण का श्रृंगार करती हैं राधा रानी इज़ द लीडर , तब उस श्रृंगार का क्या कहना। इस प्रकार अलग अलग तरह की माला वर्णमाला है या पद्ममाला है पद्म के फूल या लोटस फ्लॉवर्स की माला, फिर वे पद्ममालि कहलाते हैं। ऐसी माला पहने होंगे कृष्ण, जब वे रथ में विराजमान थे हस्तिनापुर में और द्वारका के लिए प्रस्थान कर रहे थे। इतने में ही कुंती महारानी आ गई, कृष्ण को जैसे ही रथ पर विराजमान देखा, प्रार्थना करने लगी *नमः पङ्कजनाभाय नमः पङ्कजमालिने नमः पङ्कजनेत्राय नमस्ते पङ्कजाङ्ग्रये ॥* (श्रीमद भागवतम १.८.२२) अनुवाद - जिनके उदर के मध्य में कमलपुष्प के सदृश गर्त है, जो सदैव कमल-पुष्प की माला धारण करते हैं, जिनकी चितवन कमल-पुष्प के समान शीतल है और जिनके चरणों (के तलवों) में कमल अंकित हैं, उन भगवान् को मैं सादर नमस्कार करती हूँ। कम से कम उन्होंने देखा होगा आज कैसी माला पहने हैं। कृष्ण, कमल के पुष्पों की माला पहने हैं। द्वारिकाधीश द्वारिका के लिए प्रस्थान कर रहे हैं हस्तिनापुर से जैसी वे माला पहने हैं उसको देखते ही वह प्रार्थना कर रही हैं आप कैसे हो आपके नेत्र भी पंकज या कमल के पुष्प के सदृश हैं। और माला भी कैसी है नमः पङ्कजनाभाय नमः पङ्कजमालिने आप पंकज लोटस फ्लावर की माला पहने हो। कई भिन्न भिन्न प्रकार की माला पहनाई जाती हैं। इस वचन में शुकदेव गोस्वामी कह रहे हैं वैजयन्तीं च मालाम् कैसी माला "वैजयंती माला" एक एक्ट्रेस भी थी वैजयंती हमारे हरे कृष्ण लैंड में उनकी परफॉर्मेंस थी वैजयंती माला एंड डॉक्टर वाली, प्रभुपाद उन दोनों से मिले थे। वैजयंती माला आचार्यों ने उसको समझाया है और कई प्रकार से समझाया है वैजयंती माला इस माला को वैजयंती माला कहते हैं ये एक प्रकार है वैजयंती माला का, जब पांच प्रकार के पुष्पों के रंग जैसे लिखे भी हैं हरा, नीला, रक्त लाल श्वेत सफेद और इस तरह पांच प्रकार के फूल, पांच रंगों के फूल से जब वह माला लंबी होती है घुटनों तक पहुंचती है कृष्ण पहनते हैं उस माला को वैजयंती माला कहते हैं। इस वचन में शुकदेव गोस्वामी इस माला का उल्लेख कर रहे हैं वे कहते हैं ऐसे कृष्ण का यह धाम है इसीलिए यहां से प्रस्थान करना थोड़ा कठिन होता है। इस धाम में ऐसे कृष्ण रहते हैं कृष्ण जिनका नाम है गोकुल जिनका धाम है और उनके कई सारे काम हैं *लूट लूट दधि माखन खायो ग्वाल बाल संग धेनु चराए* ऐसे कृष्ण लुटेरे बनने वाले माखन की चोरी करने वाले कृष्ण और दिन में गायों को चराने वाले कृष्ण, कल जहां हम दीक्षा समारोह संपन्न कर रहे थे भक्ति वेदांत स्वामी गौशाला में परिक्रमा मार्ग से सटके ही है हमारा वह पंडाल लगा हुआ था फिर भक्तों ने मुझे भी स्मरण दिलाया राधारमण महाराज ने कहा इस घाट का नाम गौघाट है यह घाट जहां हमारी भक्तिवेदांत स्वामी गौशाला है वही से एक समय जमुना बहती थी। कृष्ण वहां अपनी गायों को लेकर आते हैं उन को जल पिलाने हेतु और जो कालिया घाट से थोड़ा ही दूर है गौ घाट और इसीलिए भी श्रील प्रभुपाद ने, कृष्ण बलराम की जय ! कृष्ण बलराम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा वहां की। इस वेदी पर कृष्ण बलराम विराजमान हैं। उनकी बगल में एक गाय और एक बछड़ा उसकी भी स्थापना श्रील प्रभुपाद ने की। मैं हूं उसका साक्षी1975 की रामनवमी के दिन गाय और बछड़ा वही क्षेत्र तो है "रमणरेती" जहां कृष्ण गाय बछड़े चराते रहे। ऐसा धाम जहाँ पग पग पर भगवान की लीलाएं संपन्न हुई या फिर कहा ही है उन लीलाओं में वेणु रंधन अधरसुधया भगवान वेणु बजाते हैं चिकुज चिकुज शब्द का उपयोग भगवान ने मुरली बजाई चिकुज, उसकी जो ध्वनि है वेणु रंधन शुकदेव गोस्वामी कहते हैं वेणु को अधर सुधया अपने अधरों की सुधा या अमृत से भर देते हैं या कभी बंसी को भर देते हैं कभी मुरली को भर देते हैं भगवान के यह तीन प्रकार बताए हैं सब समय एक ही प्रकार की मुरली में वे नहीं बजाते और ऐसे विस्तृत या डिटेल्स वर्णन भी उपलब्ध है हर मुरली का, कि वह कितनी लंबी होती है, वेणु कितनी लंबी होती है और हर एक में कितने कितने छिद्र होते हैं। एक में नौ होते हैं दूसरे में कितने होते हैं यह सारी डिटेल्स है और यह डिटेल्स कहां से प्राप्त हुई, जो कृष्ण की मुरली है आज भी वो बजाएंगे यह उनकी नित्य लीला है। ऐसी जैसे मुरली है, बंसी है, वेणु है उनका वर्णन भी उपलब्ध है। कोई कल्पना स्पैक्यूलेशन की जरूरत नहीं है। एज इट इज़ है भगवत गीता एज़ इट इज़ है भागवतम एज़ इट इज़ है, यथारूप उपलब्ध है। ऐसे वेणु को जब कृष्ण बजाते हैं अपने अधर के अमृत को उसमें भरते हैं और यह वेणु के द्वारा अधर अमृत सर्वत्र छिड़कते हैं और फिर इसी से कभी वह मुरली बजा कर गायों को बुलाते हैं कभी गोपियों के लिए बजाते हैं ऐसी व्यवस्था है। जिनके लिए मुरली बजाएंगे वही लोग सुनेंगे, जैसे रात्रि के समय 10:30 बजे कृष्ण को वन में रास क्रीडा खेलनी है, वहां पहुंच कर कृष्ण मुरली बजाते हैं मुरली की ध्वनि सर्वत्र पहुंच रही है सभी घरों में पहुंच रही है लेकिन केवल गोपियां ही सुनती हैं। ऐसी कृष्ण व्यवस्था करते हैं, घरवाले उनके पति नहीं सुन रहे हैं उनके बच्चे नहीं सुन रहे हैं सास ननंद नहीं सुन रही है केवल गोपियां सुन रही हैं ऐसे हैं कृष्ण *रन्ध्रान्वेणोरधरसुधयापूरयन्गोपवृन्दैर् वृन्दारण्यं स्वपदरमणं* ऐसे कृष्ण आगे कह रहे हैं मित्रों से घिरे होते हैं। वो दिन में जब गौचारण लीला के लिए जाते हैं तब गोप वृंदायि मतलब समूह कई सारे मित्र उनके इर्द-गिर्द खेलते हैं और फिर साय काल का जब समय होता है तब वृन्दारण्यं स्वपदरमणं, कृष्ण अपने अपने मित्रों के साथ नंद ग्राम लौट रहे हैं और वैसे लौट रहे हैं तब भी और दिन भर क्या करते हैं *वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद्गीतकीर्तिः* गोप वृंद जो उनके मित्र हैं सभी कृष्ण की कीर्ति का गान या बखान करते हैं, नाचते भी हैं और कृष्ण मुरली बजा रहे हैं। मुरली बजाते हुए कृष्ण भी नृत्य कर रहे हैं कभी चल रहे हैं या फिर नंदग्राम की ओर आगे बढ़ रहे हैं। जहां भी जाते हैं स्वपदरमणं अपने चलने से वृंदावन की शोभा बढ़ाते हैं कृष्ण जहां भी चरण रखते हैं वह स्थान कृष्ण के चरणों से अंकित होता है। वहां कृष्ण अपने फुटप्रिंट्स पीछे छोड़ते हैं हम जब अभी ब्रज मंडल परिक्रमा में जाते हैं कई स्थानों पर भगवान के चरण चिन्ह आज भी हम दर्शन कर सकते हैं। पृथ्वी माता ने उनको संभाल के रखा है क्योंकि वह शोभा है ऐसा डेकोरेशन कराओ भगवान कब हमारे शीश पर चरण रखेंगे। कालिया के सिर पर रखा अपना चरण, कालिया के फन को अपने चरणों से अंकित किया और फिर यह भी कहा कि अब तुमको कोई कष्ट नहीं दे सकता जब भी मेरे चरण चिन्ह तुम्हारे सर पर देखेंगे या फनों के ऊपर तब सभी लोग दूर रहेंगे , देखो ! यह पर्सन इज़ प्रोटेक्टेड बाय कृष्ण ऐसी शोभा हमारी जब हम कृष्ण की शोभा बढ़ाएंगे या फिर अपना चरण हमारे हृदय प्रांगण में रख देंगे और वही विश्राम भी करें। कृष्ण जब वृंदावन में प्रवेश करते हैं अपने चरणों से उस भूमि को, बृज में चिन्ह अंकित करते हैं। बृजरज को पवित्र करते हैं और फिर हम उस का स्पर्श करते हैं तब हम भी पवित्र हो जाते हैं हरि हरि ! टाइम अप हो गया है, कहने का तात्पर्य यही था ऐसे वृंदावन में कृष्ण ने हमको भी वास दिया इस कार्तिक मास में, ऐसा सानिध्य या निवास प्राप्त हुआ। आज प्रस्थान करना होगा आसान नहीं है किंतु हम यह अनुभव करते हैं जब वृंदावन में रहते हैं तब कुछ विशेष अनुभव होते हैं। होते हैं कि नहीं? आप वृंदावन जाते ही नहीं हो तो क्या कह सकते हो कि अनुभव होते हैं कि नहीं। पहले वृंदावन आना होगा फिर आप कह सकते हो। राधाचरण आए थे कुछ हुआ अनुभव या फिर ड्यूटी है या फिर यह है वह है हमको लौटना पड़ता है और फिर हम लौटते हैं तो लौटने वाले भक्तों में कुछ उसमें से टी शर्ट पहनते हैं। जिस टी-शर्ट पर लिखा होता है आई लॉस्ट माय हार्ट इन वृंदावन ! क्या हुआ मेरा दिल वृंदावन में खो गया। खोया पाया अपना दिल वृंदावन के चित्त चोर माखन चोर या चित्त चोर उन्होंने मेरे चित की चोरी की। इस प्रकार हम अपना संबंध वृंदावन के साथ या कृष्ण के साथ, भक्तों के साथ स्थापित कर सकते हैं। आई लॉस्ट माय हार्ट इन वृंदावन तो फिर पुनः कभी योजना बना सकते हैं पुनः वृंदावन आने की और अपने हार्ट को पुनः प्राप्त करने की। हरि हरि ! निताई गौर प्रेमानंदे ! हरि हरि बोल !

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