Hindi

5th May 2019 हरे कृष्ण! जय गौरांग! “जेई जन गौरांग भजे से होय अमार् प्राण रे भज गौरांग, कहो गौरांग, लेहो गौरांगेर नाम रे” ऐसा प्रयास हो रहा हैं कि आज के जपा टॉक का भाषान्तर हिंदी में हरिकीर्तन प्रभु करेंगे। क्या आप सभी मुझे सुन पा रहे हो? क्या आप सब हरिकीर्तन को भी सुन रहे हो? हरिकीर्तन प्रभुजी :- मैं सभी भक्तों के चरणकमलों में दंडवत प्रणाम कर रहा हूँ। गुरू महाराज :- हम दोनों ही आज वक्ता हैं। अभी हम दोनों ही बोल सकते हैं। भविष्य में हम आप लोगों में से किसी अन्य को भी बोलने का मौका देंगे और यह व्यवस्था भी की जा रही हैं कि गुरु महाराज अंग्रेजी में बोलेंगे, और अन्य हिंदी में बोलेंगे। आगे-आगे गुरु महाराज जैसा चाहेंगे,वैसे आप में से कोई भी भक्त इस में भाग ले सकता है। इसमें केवल भाषान्तर ही नही होगा, इसमें कही से भी आप में से, कोई भी भक्त, अपना प्रश्न , कोई समीक्षा या कमेन्टस को गुरु महाराज के साथ एवं अन्य भक्तों के साथ शेयर कर सकता है। आज का स्कोर 533 हैं, आज रविवार होते हुए भी हमारा स्कोर सामान्य चल रहा हैं। आप सभी को धन्यवाद हैं। आप सभी ने अपनी निद्रा को त्यागकर एवं अपने अन्य कार्यों को त्यागकर आज कॉन्फ्रेंस में भाग लिया है। ‘ जेई जन गौरांग भजे से होय अमार प्राण रे। भज गौरांग कहो गौरांग लेहो गौरांगेर नाम रे” मैं कह रहा था कि यह जो प्रसिद्ध वैष्णव गीत हैं, इसमें कहा गया हैं – भज गौरांग कहो गौरांग लेहो गौरांगेर नाम रे।” भगवान का नाम कहो। गौरांग का नाम कहो। गौरांग को भजो। जेई जन गौरांग भजे से होय अमार प्राण रे। जो गौरांग महाप्रभु का भजन करते हैं एवं गौरांग महाप्रभु से प्रेम करते हैं। हमें उन भक्तों से प्रेम करना चाहिए। हमें उन भक्तों की प्रेमपूर्वक सेवा करनी चाहिए। इस गीत में हम किस प्रकार से गुरू और गौरांग दोनों की सेवा करें या फिर विष्णु और गौरांग की सेवा करें, उसका वर्णन किया गया है। यह एक प्रकार की सोच है। मुझे कई मैसेज मिल रहे हैं चारों तरफ से, कोल्हापुर में यथा -तथा, इधर-उधर आप हरिनाम के लिए तैयार हो रहे हो। मुरलीमनोहर प्रभु एक दिन के पदयात्रा के लिए तैयारी कर रहे हैं। यह बहुत अच्छा हैं कि हम सभी जप कर रहे है परन्तु यह जप करना केवल अपने फायदे के लिए है लेकिन जो नगर कीर्तन है, वह हमारे और जनता के लिए बहुत उपयोगी है | श्रील प्रभुपाद जी ने इस्कॉन की ओर से पूरे संसार को पदयात्रा रूपी कार्यक्रम दिया है। वह जो पदयात्रा है वह संकीर्तन का विस्तृत रूप है जिसमें कि हम नगर-नगर, ग्राम-ग्राम और अन्य शहरों में जा कर हरिनाम संकीर्तन करते हैं। आप सभी जो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु, श्रील प्रभुपाद तथा मेरे अनुयायी हो, जिस प्रकार से उन्होंने छह वर्ष तक पूरी तरह से संकीर्तन पदयात्रा की। उसी तरह श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का पदानुगमन करते हुए हम सभी को भी पदयात्रा करनी है। संकीर्तन करना है। चैतन्य महाप्रभु का अनुगमन करते हुये ,गुरु ओर गौरांग, श्रील प्रभुपाद जो हमारे संस्थापक आचार्य हैं ,उनकी प्रसन्नता के लिए हमें नगर संकीर्तन करना चाहिए हरिनाम को अन्य लोगों तक पहुँचाना चाहिए। यदि हम सुन्दर पदयात्रा का आयोजन कर सके तो उसका और विस्तृत रूप होगा। जब हम हरिनाम के लिए जाते हैं, हरिनाम संकीर्तन में भाग लेने के लिए तो हम अन्य अपने बंधुओं को, जो सोये होते हैं, उनको भी बुलाते हैं । इस प्रकार से हरिनाम में जाने से हम, अपने समाज की, अन्य जीवों की, देश की, अपनी कॉलोनी की और जहाँ हम लोग रहते हैं- अपने पड़ोसियों की, सभी को हरिनाम दे कर सभी की सेवा करते हैं। हरे कृष्ण आंदोलन में शामिल होने से पहले ही मेरे अंदर बहुत अच्छी भावना थी कि मैं किस प्रकार से समाज की विस्तृत सेवा कर सकता हूँ परंतु मुझे पता नहीं था – कहाँ से शुरू करूँ, कैसे शुरू करूँ। मेरे पास उपलब्ध सामग्री भी नही थी। 1969 में मैं जब श्रील प्रभुपाद जी से मिला, मुझे वो सूत्र प्राप्त हुआ जिससे मुझे पता चला कि भगवान श्री कृष्ण की सेवा करके मैं पूरे संसार की सेवा, पूरे समाज की सेवा कर सकता हूँ। कृष्ण भावनामृत का प्रचार करके तथा स्वयं उसका अनुगमन करके मैं समाज की, देश की इस प्रकार से सेवा करके मैं अपनी वह इच्छा पूर्ण कर रहा हूँ। मैं चाहूंगा कि आप सभी भी मुझे इस कार्य में सहयोग करें, मेरे साथ आऐं। इस प्रकार से आप सभी मेरे उद्देश्य को आगे बढ़ा सकते हैं। वास्तव में हम सभी का यही उद्देश्य होना चाहिए। इस प्रकार से हम संसार की, देश की, समाज की सेवा कर सकते हैं। समाज के उत्थान के लिए, समाज में परिवर्तन के लिए कृष्णभावनामृत का प्रचार ही सही मायने में सबसे उत्कृष्ट कार्य है। मैं इसके ज़्यादा विस्तार में नहीं जाना चाहता परंतु आप जानते हैं कि हम किस प्रकार के संसार में रह रहे हैं, जो पागल, खराब हो चुका है। एक प्रकार से मदमस्त हो चुका है। कल के दिन की बात है, जहाँ मैं रह रहा हूँ, वहाँ से ,थोड़ी दूर पर बहुत उल्टा-सीधा म्यूजिक बज रहा था और बंबारमेंट हो रहा था, एक प्रकार से उल्टे-सुलटे शब्दों का , जो बहुत ही तुच्छ था और अधिक था, वो जो आवाजें थी, वो जो भी संगीत था, वह असलियत में यह घोषणा कर रहा था कि यह संसार है, यह आनंद है लेकिन हम लोग इस संसार के बाहर की बात कर रहे हैं, हम लोगों को यह बता रहे हैं कि किस प्रकार से इस संसार से निकलकर वास्तविक अपने घर में अपने संसार में जा सके। श्रील प्रभुपाद जी यह कहा करते थे कि यह संसार एक सभ्य व्यक्ति के लिए नहीं है। यह बदमाशों के लिए है। श्रील प्रभुपाद जी कहा करते थे कि हम शौचालय के अंदर बहुत अधिक समय नहीं रहना चाहते हैं और हम कोशिश करते हैं कि जल्दी से जल्दी शौचालय से बाहर निकल आऐं। इसके बारे में और अधिक क्या कहा जाए, यह संसार ऐसा ही है। शौचालय जैसा है, कारागार जैसा है, पागलों से भरा हुआ है। इससे जितना जल्दी बाहर निकला जाए उतना ही अच्छा रहेगा। भगवान की कृपा से, गुरू परम्परा से तथा वैष्णवों की कृपा से हम सभी वास्तव में होश में आ रहे हैं और हम वास्तविकता को समझ रहे हैं। हमें यह सोचकर कभी भी संतुष्ट नही होना चाहिए कि अब हम बच गए हैं या हमें बचा लिया गया है। हमें इस संसार के दूसरे भाईयों-बहनों को बचाने के लिए उन तक पहुंचने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि वो सब भी भगवान की संताने हैं।वह भी हमारे गुरू भाई हैं या भगवान भाई हैं। बाहर निकलिये। हरिनाम कीर्तन में जाइए तथा पदयात्राओं का आयोजन करिए। श्रील प्रभुपाद जी की पुस्तकों का वितरण करिए। रविवार के दिन हम सबको बाहर जाना चाहिए। हमें श्रील प्रभुपादजी की पुस्तकें अधिक से अधिक मात्रा में दुकानदारों को या लोगों को वितरित करनी चाहिए। प्रसाद का वितरण करना चाहिए। माताएं जो रसोई की या अपने घर में , गृहस्थो के घर में प्रमुख हैं। वह सभी प्रसाद बना सकती हैं, प्रसाद बना के स्वयं ही न प्राप्त करें, अपने पड़ोसियों को, अपने समाज को वितरित करें।अपने घरों में आप हरे कृष्ण पार्टी करिए। पड़ोसियों को बुलाए, उनको प्रसाद खिलाइए एवं उनसे भागवत विषय में चर्चा कीजिए। इस प्रकार से भक्तिवृक्ष जैसे कार्यक्रम हम सभी अपने घर में चला सकते हैं। जब हम अपना स्वयं जप करते हैं भगवान प्रसन्न होते हैं परंतु जब हम कृष्ण भावनामृत को लोगों तक पहुँचाते हैं, उनको प्रसाद और पुस्तकें वितरित करते हैं। येन-केन प्रकार से उनको मंदिर बुलाते हैं, मंदिर में बुलाकर उनको भगवान का दर्शन करवाते हैं। इस प्रकार से यथा-तथा जितना भी हम प्रयास करते हैं। वह भगवान को अधिक प्रसन्न करता है। इस प्रकार से जब हम कृष्ण भावना का प्रचार अधिक से अधिक करेंगे तो उसका परिणाम यह होगा कि जब हम जप करेंगे तो हमारा जप बहुत अच्छा होगा और हम भक्ति कृत्य और अधिक अच्छे तरीके से करेंगे जिससे हमारी सेवा अच्छी होगी और साधना अच्छी हो जाएगी, यह दोनों एक दूसरे के पर्याय बनेंगे और हम आगे बढ़ते जाएंगे। आप सभी को धन्यवाद ध्यानपूर्वक सुनने के लिए। आज रविवार का दिन है। हमें केवल अपने तक ही या अपने परिवार तक न सीमित करके हमको पूरे संसार तक पहुँचना है। हमें अधिक से अधिक प्रचार करना हैं क्योंकि पूरे संसार में हमारे भाई-बहन हैं और वही हमारा बड़ा परिवार है। इस बड़े परिवार की हमको सेवा करनी है। आज रविवार का दिन है, घर से निकलकर अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर प्रचार करें, उनको कृष्णभावनमृत दें। भाषान्तर करने के लिए हरिकीर्तन धन्यवाद! आप में से भी कोई भाषान्तर कर सकता है। जब कभी हरिकीर्तन प्रभुजी उपस्थित नहीं रहेंगें, आप में से कोई अनुभवी भाषान्तर करने वाला है ,तो मुझे नाम लिखकर भेजें। जय गौरांग! हरे कृष्ण!

English

5th May 2019 TOPMOST SOCIAL SERVICE! Today in spite of being Sunday, our scores are good. Thank you for sacrificing your sleep, duties & obligations. You are with us on Sunday and also chanting. Bhaja Gauranga kaha Gauranga laha Gauranger naam re. (Song by Srila Krishnadas Kaviraj Goswami. ) I was remembering that song, chant Gauranga's name, utter Gauranga's name & keep singing Gauranga's name. Song also says - je Jana Gauranga bhaje sai aamar pran re. All those who are chanters of Gauranga, lovers of Gauranga, they are my life & souls. That means I love Gauranga's devotees. Not only I love but, I also love to serve, Gauranga's devotees. Service unto Guru & Gauranga, Vishnu & Gauranga go on simultaneously. In this song, there is an inspiration, how we should serve Guru & Gauranga or Vishnu & Gauranga. That's one thought. I am getting messages that at various places, devotees are gathering for Harinam sankirtan. Murali Mohan Prabhuji has reached Chinchwad, & is getting ready for one day padayatra over there. We all are chanting japa, that's nice. But this chanting is considered for our own benefit. But nagar sankirtan is for benefit of ourselves & for benefit of others. Srila Prabhupada gave us Krishna, gave ISKCON, gave me this program of padayatras, which is extended as nagar-sankirtan. You go on doing kirtan in one nagar & then next village, next nagar on & on, then that is padayatra. It's an extended nagar sankirtan. So, we all chanters followers of Chaitanya Mahaprabhu, & Srila Prabhupada & may be myself also, should be following in footsteps of Chaitanya Mahaprabhu who went on padayatra for six years, which is known as 'Madhya-lila'. All that He was doing was padayatra, doing extended nagar-sankirtan, in so many towns & villages. For us to prove to be true followers of Guru & Gauranga or the founder acharya of ISKCON & Gauranga, we also have to get on to the streets & participate in nagar- sankirtan. If you could do extended Nagar-sankirtan, then nothing like it. When we go on Padayatra or nagar-sankirtan then that is also expression or exhibition of, 'you being kind to fellow living beings.' That way nagar sankirtan, padayatras are for the benefit of the whole world & others. This is how we serve the humanity, serve the nation, serve the colony people where you are residing. Serve your neighbours, by sharing ' Hare Krishna' with them. I had a desire to serve humanity, from very beginning, the time I had not even joined ISKCON. I didn't know how & where to begin. Then as I came in contact with Prabhupada in 1974, his formula was " By serving Krishna you could serve whole world." So I had been trying to fulfil my desire of serving people, serving country, serving humanity by practicing & propagating Krishna consciousness. I would like you to also assist me, assist ISKCON. Continue kind of my mission, which is everybody's mission I can say, to serve the public, serve the world. Srila Prabhupada used to say propagating Krishna consciousness is a topmost welfare program. The topmost service for social reform. I don't want to get in discussion of what kind of world is around us. It's a bad & mad world. I am residing here. Just yesterday kind of event that was taking place around the corner. Some kind of music, loud crazy music. There was bombardment! It was too much. That is this world. Sounds were introducing, okay, this is me! this is this world! Then we are talking of something, out of this world. Things to do, so that we can get out of this world & go to another world. Srila Prabhupada used to say that, ' This world is not for a gentleman. This is for the ruffians'. He also say, 'We don't spend much time in a toilet.’ Least amount of time we would like to spend in a toilet & get out of toilet. So like that, world is like a prison, it's mad, bad we describe it in so many ways, & we want to get out of here. Some of you are coming to the senses by God's grace or by grace of vaishnav parampara. But we should not be satisfied with the thing, that now we are safe or we have been saved. That's why, we have to remember others in this world & try to reach out to those souls, those brothers. They are our God-brothers. If they are children of spiritual master, we call them as God-brothers but if they are children of God then what we are God brothers or Bhagwan-bhai. So go out & do nagar sankirtans, padayatras. Of course, when we go out, we distribute Srila Prabhupada's books. So we do japa conference, you also should distribute Srila Prabhupada's books to friends, neighbours may be in vacations or Sundays or in free time. Go in groups & distribute books. Distribute prasad. Specially Grihastha can do that. They are kitchen holders. They have kitchens, matajis are in charge of kitchen. They should cook big quantities of prasad & not just gobble yourself, but share with neighbours & friends. Or call them over to your home. Make 'Hare Krishna' party & chant & dance. Teach them philosophy in Bhakti-Vriksha program. Then Lord is pleased with you, while chanting Japa, that is nice. However, when you share Krishna with others by distributing books, prasadam, bringing them to temples & this & that then also Lord is very much pleased. More & more you get easy with this, sharing Krishna, propagating Krishna consciousness with others, then result of that is, it will be preparation for your japa. Result of that will be, your japa will get better. And as we endeavour to chant better with more attention, & devotion, reducing offenses then as a result, our chanting improves & we get inspired to do devotional service more & more. So when our sadhana improves our seva improves, our sadhana improves, our chanting improves, like that they compliment each other & we make an overall progress in Krishna consciousness. Okay thank you for your attention. We will talk & hear another day, meanwhile you do homework, when our sadhana improves our seva improves, our sadhana improves, our chanting improves, like that they complement each other & we make a overall progress in Krishna consciousness. So go out of house. Utilize Sundays. Hare Krishna!

Russian