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जप चर्चा 14 मई 2020 पंढरपूर धाम . श्री श्री गुरू गौरांग जयत: गुरू और गौरांग की जय हो । कल भी इस समय ठीकक 800 स्थानों से ही जुड़े थे, आज भी 800 स्थानों से आप सब जप कर रहे हो l वैसे इतने सालों से जप तो नहीं कर रहे थे l कुछ भक्त तो अभी-अभी जुड़ गए है, अर्थात वे भक्त जप नहीं करते थे , और यदि जप किया होगा तो हमारे साथ नहीं किया l अतःयह कहना भी सही नहीं है कि, 800 स्थानों से आप जप कर रहे हो , हो सकता है 700 या 720 हो l शुरुआत में कम थे अब धीरे-धीरे जुड़ रहे हैं l और फिर जप चर्चा के समय जो जुड़ते हैं वही संख्या हम घोषित करते हैं, पर आपको इस कॉन्फेंस में जप भी करना चाहिए , सही है ? कुछ तो , कुछ समय के लिए जप करते हैं और कुछ अन्य भक्त है जो, कुछ समय के लिए जप चर्चा सुनते हैं l मुझे लगता है जप चर्चा तो सभी सुनते हैं l अभी जप मैं धीरे-धीरे जुड़ते हो आप , अच्छा होगा आप भी शुरुवात से ही हमारे साथ जप करना प्रारंभ करोगे l आप अगर जप कर ही रहे हो तो जप चर्चा की कुछ जरूरत ही नहीं है l लोग जप नहीं करते इसलिए जप चर्चा भी करनी पड़ती है , लेकिन जप कर ही रहे हो तो फिर जप चर्चा क्यों ? अब तक 816 स्थानों से प्रतिभागी जुड़े हैं l नागपुर से कृष्णकांता भी सुन रही है l ।। श्री कृष्ण चैतन्य प्रभू नित्यानंद । श्री अद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्त वृन्द ।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। वासुदेवे भगवति भक्तियोग: प्रयोजित: । जनयत्याशु वैराग्यं ज्ञानं च यदहैतुकम् ।। (श्रीमद् भागवत 1.2.7) अनुवाद : परम भगवान श्री कृष्ण की सेवा करने से व्यक्ति को भगवान की अहेतुकी कृपा से ज्ञान तथा संसार से वैराग्य प्राप्त होता है । आप जो लोग उपस्थित हो , कुछ यह श्लोक जानते भी है कंठस्थ हैं आपको, कुछभी भक्त साथ मे भी कह रहे थे या जो पहली बार सुन रहे थे , यह भागवत का एक महत्वपूर्ण वचन है , इसमें कहा है , "वासुदेव की भक्ति करने वालों को आगे दो बातें प्राप्त होगी ।" यह भागवतम का वचन कह रहा है , जनयति मतलब उत्पन्न करता है और ज्यादा समय नहीं लगाता । वैराग्य उत्पन्न होता है , विराग से शब्द बनता है वैराग्य , राग मतलब आसक्ती और विराग मतलब अनासक्ती आसक्ति अनासक्ति , राग-अनुराग भी होता है लेकिन यह विराग है , वैराग्य है । तो भक्ति करने वालों का क्या होगा ? उनको वैराग्य उत्पन्न होगा । और क्या उत्पन्न होगा ? ज्ञान ! वह ज्ञानी भी बनेंगे , भक्ति करते करते वैराग्यवान भी बनेंगे । जिनके पास वैराग्य है उस व्यक्ति को क्या कहते हैं ? वैराग्य वान , जैसे धनवान या ज्ञानवान और ऐसे कई शब्द है , जो भक्ति करता है वो व्यक्ती वैराग्य से युक्त या संपन्न होता है और साथ ही साथ वह ज्ञान को प्राप्त करता है । भक्ति को बढ़ाने वाले ज्ञान को भक्ति बढ़ाती है । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्णहरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। यह जप करना भी भक्ति है । है कि नहीं ? श्रवणं कीर्तनं नवविधा भक्ति प्रकार है , इस भक्ति के नौ प्रकार में शुरुवात कहां से होती है ? श्रवणं किर्तनं किसका विष्णू: अथवा कृष्णस्च मतलब कृष्ण का स्मरण , कृष्ण का किर्तन । विष्णु कह रहे हैं तो हो गया विष्णु: स्मरणं विष्णु का स्मरण या विष्णु का किर्तन । नवविधा भक्ति के अंतर्गत यह कीर्तन करना , जप करना मतलब जो हम श्रवण करते हैं , कीर्तन करते हैं यह भक्ति ही हैं। प्रल्हाद महाराज जब छुट्टी के दिनों में घर लौटे तो उनसे पुछा , " बेटा बेटा गुरुकुल मे क्या सीखे हो ? जब गुरुकुल में दाखिल किया था तो तुम्हारे गुरु शण्ड और अमर्क थे उन्हें हमने ही नियुक्त किया था । इतने दिनो से तुम पढ़ रहे हो बताओ क्या सिखे हो ? " तब प्रल्हाद महाराज ने कहा था , श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ (श्रीमद भागवतम 7.5.23) अनुवाद : श्रवण, कीर्तन, विष्णु स्मरण, भगवान के चरण कमलों की सेवा करना, उनकी अर्चना करने, उनका वंदन करना, दास्य भाव में उनकी सेवा करना, सख्य भाव में स्थित होना तथा अन्ततः भगवान को पूर्णरूपेण समर्पित ही जाना , यह नवविधा भक्ति हैं । यह सीखा हूं । उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया , यह नहीं कहा कि मैं किस से सीखा हूं । यह नवविधा भक्ति जो प्रल्हाद महाराज ने सीखी थी वह शण्ड और अमर्क ने नहीं सीखाई थी। उन्होंने कुछ और ही सिखाया था । धन कमाने की विद्या सिखाई थी और पाप कैसे करना है , शराबी कैसे बनना है , कामवासना की तृप्ति कैसे करनी है , जुगार कैसे खेलना है , नशा पान और मांस भक्षण कैसे करना है , यह 4 नियम सिखाये थे । इसमें तुम प्रवीण हो जाओ । क्योंकि शण्ड और अमर्क का लक्ष्य उद्देश्य था इस बालक को हम आसुरवर्य बनाएंगे । केवल असुर नहीं बनाएंगे आसुरवर्य बनाएंगे वर्य का मतलब होता है , श्रेष्ठ । जैसे गुरुवर्य होते है कई सारे वर्य होते हैं । तो इसको आसुरवर्य बनाना है । सबसे अच्छा असुर बनाएंगे । साधारण असुर नहीं , साधारण गधा नहीं महागधा बनाएंगे । उसे नेतृत्व करना है । जब पिताश्री ने पूछा , तो प्रल्हाद महाराज में ऐसा जवाब दिया था । वह यह बातें सीखे तो थे लेकिन गुरुकुल में नहीं सीखेखे थे । उसका नाम गुरुकुल तो था लेकिन वहां के गुरु वैसे गुरु नहीं थे , गोरु थे । श्री गुरु-चरण-पद्म केवल भकति सद्म (श्री गुरु वन्दना) प्रभुपाद के समय भक्त जब यह गाते थे श्री गोरु चरण तब प्रभुपाद ने कहा था , "मैं गोरु नहीं हूं । गोरु मतलब पशु होता है । गुर होता है ना मराठी में तो उसको बंगाली में गोरु कहते हैं , गाय इत्यादि को गोरु कहते हैं । यह बंगाल की उच्चारण पद्धति ऐसे ही कुछ है , तो उसको कुछ लोग गोरु कहते हैं । वैसे शब्द तो गुरु ही है , पर गुरु कहने के बजाए गोरु कहा था । श्री गुरु पद्म चरण नहीं क्या कहते थे ? गोरु । प्रभुपाद ऐसे बैठे हैं , उनके चरणों की वंदना हो रही है , लेकिन कह क्या रहे हैं , श्री गौरु चरण , आपके चरण कैसे हैं ? पशु जैसे चरण है , पशु के चरण है , तो उन्होंने कहा , "मैं गौरु नहीं हूं , मैं गाय या बैल या पशु तो नहीं हूं । " इसलिए उच्चारण जो है ठीक से करना चाहिए , नहीं तो ऐसी भारी गलतियां हो सकती है । श्री गुरु के बजाए गौरु कह रहे थे । लेकिन ऐसा बंगाली में चलता ही रहता है । उस गुरुकुल का तथाकथित नाम ही गुरुकुल था लेकिन वहां के गुरु गुरु नहीं थे । जब हम भी स्कूल में पढ़ते थे उसका नाम विद्यालय , प्राथमिक पाठशाला था । वहाँ के गुरु को हम कम से कम गुरुजी कहते तो थे । शहर में यह संस्कृति बिगड़ गई है , अब पाश्चात्य देश की नकल होने लगी है । सारे गुरुजी को टीचर कहने लगे हैं , सर ! सर ! सर ! और महिला है तो मैडम , सर ! मैडम ! सर ! मैडम ! ऐसा अंग्रेजो ने सिखाया , वह तो चले गए । छोड़ो भारत , लेकिन सारी संस्कृति पीछे छोड़ गए । हम लोग तो अंग्रेजो के चेले ही बन गए। उन्होने ही सिखाया था कि , कैसे संबोधन करना है गुरु को । बाकी शहरों में तो उस समय भी सर-सर चलता था । 60 साल पूर्व की बात है , हमारे गुरु को हम क्या कहते थे ? गुरुजी । सारे गुरु को हम गुरुजी कहते थे , लेकिन वह हमारे गुरुजी कभी-कभी क्या कहते थे , ये रघ्या, ये तुक्या , ये राम्या ऐसा ही कुछ जैसे भी नाम है ठीक से नाम नहीं पुकारते थे । ऐसे ही परंपरा का प्रचार- प्रसार होता है । महाराष्ट्र में चलता नहीं क्या ? उत्तर प्रदेश में ऐसा होता है , रघु को रघु ही कहते हैं , राम को राम या नहीं कहते । लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा बिगड़ गया है । कर्नाटक में क्या है ? हाँ ! ऐसा तुक्या राम्या , वह कर्नाटक में भी होता हैं तो फिर बेकार है । नाम को बिगाड़कर पुकारते हैं और कहते हैं बीड़ी लेकर आओ । हम उनको गुरुजी गुरुजी कहते हैं , और गुरुजी कहते हैं बीड़ी लेकर आओ । यह किस प्रकार के गुरुजी हैं ? कैसा गुरुकुल ? कैसी विद्या ? और कैसा क्या ? प्रल्हाद महाराज को जब पूछा , क्या सीखा ? तो उन्होंने कहा , "मैं यह नवविधा भक्ति सिखा ।" कहाँ सीखे ? जब माँं के गर्भ में थे तभी वह सीखे थे । यह विद्या सीख के ही उन्होंने जन्म लिया , वह जन्म से ही विद्यावान थे । स्कूल में जाके नहीं पढ़े , जन्म से पहले ही उनकी सारी विद्या पूर्ण हुई और विद्यावान बने । वासुदेवे भगवति भक्तियोग: प्रयोजित: । जनयत्याशु वैराग्यं ज्ञानं च यदहैतुकम् ।। (श्रीमद् भागवत 1.2.7) हरे कृष्णा । हरे कृष्णा । यह भक्ती ही है । हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं । आप करते हो कि नहीं ? 800 जुड़े हैं इस सम्मेलन में , वैसे पूरे जगतभर में कितने लोग जप करने लगे हैं ? असंख्य लोग जप कर रहे हैं । 1965 में तो एक ही व्यक्ति जप करते थे पाश्चात्य देश में पहुंचे एक भारतीय जप कर रहे थे । वहाँ जप करते-करते ही गए हरिनाम को , जप को साथ ले गए । रास्ते में कीर्तन कर रहे थे तो श्रील प्रभुपाद किर्तन को ले गए । न्यूयॉर्क में जब श्रील प्रभुपाद पहुंचे , वहाँ किर्तन प्रारंभ किया तो सारे देश में वह एक ही व्यक्ति थे । प्रभुपाद फिर पगडंडी पर ही बैठ कर कीर्तन करते थे l या किसी बगीचे में बेंच पर बैठकर प्रभुपाद अकेले ही जप करते थे , या कीर्तन करते थे । 1965 में एक व्यक्ति जप कर रहे थे , भारत में कुछ होगे पर भारत के बाहर एक ही थे । और अब संख्या कितनी बन चुकी है ? कौन कह सकता है , कितने लोग जप करते हैं ? लाखों-करोड़ों । यह बहुत पुरानी बात है । लगभग 30 - 40 वर्ष पूर्व एक ग्यालाब पुलिंग ने सर्वेक्षण किया था। कंपनी या टोली है उन्होंने सर्वेक्षण किया था । वह जानना चाहते थे अमेरिका मे कितने लोग किस धर्म से संबंधित हैं । कितने लोग कितने ईसाई है , कितने मुसलमान है , या कितने हिंदू है , कितने बौद्धपंथी है यह सर्वेक्षण करना था । हर एक का यह करना था , इसमें कोई हरे कृष्णा का कोई नाम नहीं था नोंद करने के लिए । लेकिन जो सर्वेक्षण हुआ उसमें 1% लोगो ने अलग से नाम लिखाया । आपका धर्म क्या है ? उन्होंने कहा हम हरे कृष्ण धर्म के है । तो अमेरिका के 1% लोकसंख्या कुछ छोटी नहीं है , 1% मतलब बहुत सारे लोग होते है। और यह 30 - 40 वर्षों पूर्व बात है ।अब सर्वेक्षण किया तो और संख्या में वृद्धि हुई है । इतने सारे लोग जप कर रहे हैं या कीर्तन कर रहे हैं । एक ही बात है। रूस में भी भक्त जप कर रहे हैं। वहां भी कुछ साल पहले एक न्यूज़ वीक नाम की साप्ताहिक पत्रिका आई थी, तो उसमें मुख्य शब्दों में लिखा हुआ था " सोवियत संघ में सबसे तेजी से बढ़ने वाला धर्म है हरे कृष्ण। पहले जो यूएसएसआर था, आपको पता भी नहीं होगा उसी का बन गया था रूस। साम्यवादी देश, पहले जिसको सोवियत यूनियन कहते थे। वहां सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ने वाला धर्म कौन सा है ?वह है हरे कृष्णा धर्म। इस बारे में उस पत्रिका में पूरा विस्तार से लिखा गया था। और पता नहीं कहां से उन्होंने संख्या का पता लगाया और उसमें लिखा था कि 700000 लोग जो है वह हरे कृष्णा के अनुयायी हैं । पृथ्वीते आछे यत नगर आदि ग्राम सर्वत्र प्रचार होइब मोर नाम(चैतन्य चरितामृत, मध्य लीला 25.264) मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र होगा ,और यह भविष्यवाणी सच होते हुए हम देख रहे हैं अपनी आंखों के समक्ष । चाहे कोई कहीं पर भी हैं, चाहे भारत में हो चाहे बाहर के देश में, कहीं पर भी वह अगर जप करते हैं, तो इसका अर्थ है वह भक्ति करते हैं। किसी ने मुझसे पूछा कि भगवत गीता का क्या सार है? तो मैंने उत्तर दिया भक्ति ।भगवत गीता क्या सिखाती है? इसका मतलब है भगवान क्या सिखाते हैं? भगवान ने भगवत गीता में क्या करने को कहा ? भगवान ने भक्ति करने को कहा। मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ।।श्रीमद भगवद्गीता 18.65।। कहा कि नहीं कहा? मेरे भक्त बनो ,मेरा स्मरण करो, मेरी आराधना करो, मुझे नमस्कार करो। यह सब क्या हुआ ? भक्ति। * योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना। श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।।श्रीमद भगवद्गीता 6.47।। भगवान ने पहले यह योग कहा, फिर वह योग कहा ,कर्मयोग ज्ञानयोग अष्टांग योग पर अंत में भगवान ने कहा कि सब योगियों में सर्वश्रेष्ठ योगी भक्ति योगी है। तो जो भी जप कर रहे हैं संसार भर में वह भक्ति कर रहे हैं। और गीता का सार उनको समझ में आ गया है ।उसी का अवलंबन कर रहे हैं। बाकी लोग तो कुछ नहीं कर रहे। पुणे की एक पुण्य आत्मा" लोकमान्य" लोगों में मान्यता थी उनकी ।जब अंग्रेजों ने उन्हें कारागार में रखा (काला पानी) , बर्मा में ,एक मंडल है जहां पर कई सारे पॉलीटिकल प्रिजनर है। हम गए थे वहां पर। उस समय अंग्रेजों का राज्य बर्मा और इंडिया में भी था। उन्होंने कुछ इंडियन लीडर्स को गिरफ्तार करके वहां रख दिया था। उनको कोई और काम धंधा नहीं था , लॉक डाउन था ,इसलिए उन्होंने सोचा चलो गीता पर भाष्य लिखते हैं। इसी तरह बहुत से इंडियन लीडर्स ने गीता पर भाष्य लिखा( गीता रहस्य)।पर उनकी क्या समझ की गीता का रहस्य क्या है? उन्होंने कर्मयोग को गीता का रहस्य बताया, तो क्या गीता का रहस्य उन्हें समझ आया? और दूसरा उन्होंने बताया कि आराधना करनी है तो गणेश की आराधना करो। यह जो गणेश उत्सव , इतने धूमधाम से मुंबई में मनाया जाता है उस के प्रवर्तक कौन हैं लोकमान्य है।उन्हें समझ नहीं आया । आराधनानां सर्वेषां विश्नोर आराधनं परम,तस्मात परतरं देवी तदीयानाम समर्चनम । (पद्म पुराण) अनुवाद : सभी की आराधना में सबसे श्रेष्ठ आराधना है भगवान विष्णु की आराधना । यह गणेश जी के पिताजी ने ही तो बताया ।आराधना करनी है तो किसकी आराधना करो? विष्णु की आराधना करो ।लेकिन यह राजनेता , उनको समझ आया कि हां हां गणेश की आराधना करनी चाहिए उन्होंने ऐसा प्रचार किया और अभी तक गणेश की आराधना चल रही है। और वह जो भी करते है वह भी विधिपूर्वक नहीं करते।उन्होंने कहा स्वराज हमारा जन्मसिद्ध हक है ।तो क्या उन्हें कुछ समझ आया? केवल मुक्त करना? तो क्या राम राज्य की स्थापना हुई ? या रावण राज्य की स्थापना हुई । इतने दिन से यह लॉक डाउन की और कोरोना की समस्या है, क्या किसी नेता ने गलती से भी कहा कि भगवान को प्रार्थना करो ?एक शब्द भी नहीं कहा ?ऐसा है भारत और कैसे हैं हम भारतीय ?इस देश के नेता जिनको भगवान की याद नहीं आती, न भगवत गीता की याद आती है, न भागवत की याद आती है ।तो कल आपने सुना श्रील प्रभुपाद के आदेश और उपदेश कि जब जब समस्या आए तो भगवान की तरफ मुड़ो और उनका आश्रय लो । "भगवान का आश्रय लो "ऐसे कहने वाले ही भारत रत्न हैं । बाकी सब तो कोयले हैं, रत्न नहीं है। हम कब से प्रतीक्षा कर रहे हैं की आज कल के नेता आज कहेंगे, कल कहेंगे ,कि भगवान से प्रार्थना करो ।हरि हरि.... यह बहुत लज्जा की बात है। तो नेता इस देश को समझ नहीं पाए। बने हैं नेता और कर रहे हैं तथाकथित नेतृत्व पर भारत को समझ ही नहीं पाए । जिस तरह प्रभुपाद जैसे भारत रत्न भारत को समझे, भारत की ताकत को समझे,भारत की संपत्ति को समझे। पत्रकारों ने पूछा श्रीला प्रभुपाद से की स्वामी जी आप हमारे देश क्यों आए है (लंदन में) श्रील प्रभुपाद ने कहा मेरे देश की जो असली संपत्ति है उसे देने आया हूं ।होम डिलीवरी देने आया हूं । पत्रकार ने पूछा कौन सी संपत्ति है आपके देश की? गीता, भागवत रामायण यह जो ग्रंथ है वह हमारे देश की असली संपत्ति हैं ।भारत की संस्कृति ही भारत की असली संपत्ति है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। यह धन है ,हमारे देश का ,इसका वितरण करने आया हूं ।तो मेरा भारत देश महान । वर्तमान भारत देश महान नहीं है प्राचीन भारत देश महान है। आज के भारत देश का तो क्या कहना वह भारत ही नहीं रहा। पाश्चात्य जगत बन गया है। भारतीयता ही नहीं रही ।श्रील प्रभुपाद एक पक्के भारतीय थे। एक सभा में उन्हें भाषण देना था तो उन्होंने शुरुआत में कहा मैं अपना परिचय देना चाहता हूं। और उन्होंने कहा मैं इंडियन नहीं हूं मैं भारतीय हूं।आप समझ रहे हो कि इंडियन और भारतीयों में अंतर है? आजकल के नेताओं ने भारत को इंडिया बना दिया है। भारत महान है।अभी लॉक डाउन की परिस्थिति में सारा संसार फंसा है और परेशान है , ऐसी स्थिति में भारत को लीडरशिप लेनी चाहिए थी पर नही ली,फिर हरि बोल क्यों कहे मुर्दाबाद कहना चाहिए। पाही पाही महाबाहो भक्तानां अभ्यंकर ( महाभारत) यह कुंती महारानी ने कहा ।यह महाभारत सिखाती है हमें कि जब भी कोई संकट हो तो पाही पाही रक्षा करो महाबाहु हे भगवान आप बलवान हो, शक्तिमान हो, युक्ति मान हो, हमारी रक्षा करो ।फिर द्रौपदी पर कोई समस्या आ गई... भरी सभा में वस्त्र हरण हो रहा है तो क्या किया उसने पुलिस को बुलाया?नही। द्रौपदी ने गोविंद को पुकारा। हे कृष्णा हे गोविंद। और कुंती महारानी और पांडवों पर तो कितनी सारी समस्याएं आईं। पदम पदम यत विपदा ,आती रही तो जब जब आती रही ऐसी विपदा या संकट दोनों ने क्या किया ?डॉक्टर के पास नहीं गए... डॉक्टर को नहीं बुलाया पहले ...या वकील को नहीं बुलाया ...या पुलिस को फोन नहीं किया... सर्वप्रथम याद किसकी आयी ?कृष्ण की। यह संस्कृति है। महाभारत यह सिखाता है हमें ।महाभारत इतिहास है। जीता जागता उदाहरण है कि जब भी हम संकट में है तो हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे जैसे जाड़े की ठंडी के दिन हो और वाटर हीटर नहीं हो, ठंडे पानी से स्नान करना पड़े, तो पानी स्पर्श करने से पहले ही क्या शुरू होता है ?हरे कृष्ण करना पड़ता है तभी तो हम उसे सहन कर सकते हैं। तो आप सब जब जप करते रहो आप असली और सच्चे भारतीय हो ,जो जप कर रहे हैं ।और फिर वह विदेश के भी क्यों न हो, तो भी वह भारतीय हैं ।यदि कोई अंग्रेज भी अगर हरे कृष्ण जप कर रहा है तो वह भारतीय ही है। कोई जैसे जन्म से ब्राह्मण नहीं होता है, ब्राह्मण कैसे होता है? गुण, कर्म विभागश चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् ॥भगवद गीता 4.13॥ यानी उन्हें अपने गुणों से और कर्मों से सिद्ध करना होगा कि मैं ब्राह्मण हूं, यह नहीं कि ब्राह्मण के घर में जन्म लिया है तो मैं ब्राह्मण हूं, चतुर्वेदी त्रिवेदी या द्विवेदी। भारत में जन्म लेने से भारतीय नहीं बनते। हमारे कर्म हो, हमारे विचार हो, संस्कृति हो भारतीयों की जैसे या प्राचीन भारतीय के जैसे ।वैसे प्रभुपाद ने अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ की स्थापना करके उन्होंने पूरे विश्व में भारतीयों को जन्म दिया है ।तो असली भारतीय तो सारे विश्व भर में है। भारत भूमिते हाईल मनुस्य जन्म यार ,जन्म सार्थक करि करो उपकार( चैतन्य चरितामृत आदि लीला 9.41) यह परोपकार का कार्य अब हर भारतीय को करना है ,तो इंग्लैंड क्या अमेरिका, या यूरोप ।वहां के भक्तों को यह नहीं सोचना चाहिए कि मैं तो इंडियन नही , मैं भारतीय नहीं हूं ।मैं कैसे परोपकार कर सकता हूं? क्या फायदा है परोपकार करने का? सारा जीवन तो सफल नहीं होगा। तो याद रखिये आप हरे कृष्णा भक्त हो तो आप भारतीय हो । आशा है कि आप अधिक वैराग्य वान और अधिक ज्ञानवान बनते रहेंगे। जप का यह श्रवण फल आपको प्राप्त हो ऐसे ही प्रार्थना है । हरे कृष्ण ।।

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14 May 2020 The Fruits of Bhakti Hare Krishna! Exactly 800! History is being repeated. Chanting is taking place from 800 locations. Few devotees just joined. It means they have not chanted and if they have chanted then they didn't chant with us. In the beginning, we had around 400 to 500 participants and later on some joined for the japa talk. Few chant for some time and most of the devotees join for japa talk. It would be great if you also join us for japa from the beginning. If you chant then there is no need of a japa talk. When you don't chant then a japa talk has to be delivered. Now 816 participants are there. vāsudeve bhagavati bhakti-yogaḥ prayojitaḥ janayaty āśu vairāgyaṁ jñānaṁ ca yad ahaitukam Translation: By rendering devotional service unto the Personality of Godhead, Śrī Kṛṣṇa, one immediately acquires causeless knowledge and detachment from the world. (ŚB 1.2.7) Few of you have heard this verse and were reciting also. This is an important Bhagavatam verse. It says, whoever performs devotional service unto the Lord, they will get two things. They will develop vairāgya (renunciation). vairāgya is derived from virāg. Rāg means attachment and virāg means detachment. Bhagavatam asserts that those who perform bhakti or devotional service will develop renunciation and also become jñāni, knowledgeable. One who has developed vairāgya is called vairāgyavān. Those who perform bhakti develop Vairāgya and Jñāna. Jñāna increases bhakti. Chanting Hare Krishna is also devotion. There are 9 types of devotional services or navavidha bhakti. Nava means nine and vidha means type, starting from śravanam kirtanam and smaranam. Whose smaranam? Viśnoh. It means krsnasya śravanam or krsnasya kirtanam. Krsnasya has become Viśnoh over here, Viśnoh smaranam. As a part of navavidha bhakti, we hear and chant and hence this is bhakti. Prahlāda Mahārāja was asked when he was on vacation,'What did you learn in Gurukul from your teachers Sanda and Amark?' Prahlāda Mahārāja said: śravaṇaṁ kīrtanaṁ viṣṇoḥ smaraṇaṁ pāda-sevanam arcanaṁ vandanaṁ dāsyaṁ sakhyam ātma-nivedanam Translation: Prahlāda Mahārāja said: Hearing and chanting about the transcendental holy name, form, qualities, paraphernalia and pastimes of Lord Viṣṇu, remembering them, serving the lotus feet of the Lord, offering the Lord respectful worship with sixteen types of paraphernalia, offering prayers to the Lord, becoming His servant, considering the Lord one’s best friend, and surrendering everything unto Him (in other words, serving Him with the body, mind and words) — these nine processes are accepted as pure devotional service. (ŚB 7.5.23) He didn't say straight forward he didn't learn navavidha bhakti from Sanda and Amark. They had taught him something else, how to do economic development, how to earn money, how to commit sins, how to become a drunkard, gratify lust, gambling and eat meat. They taught him these 4 regulative principles. Sanda and Amark wanted to make him a 'asurvarya'. Asur means demon and varya means best, the best of the demons or the best amongst the donkeys. Prahlāda Mahārāja didn't learn navavidha bhakti in Gurukul. Its name was Gurukul, but their teachers were not Gurus. They were Goru. In Bengal, devotees used to sing, śrī goru carana padma…. Then Prabhupada would say, “I am not Goru.” 'Goru' means an animal. Instead of saying Guru, they used to say Goru. It means your feet are of an animal. Hence Prabhupada had to say this. That's why pronunciation should be correct otherwise it can lead to a huge mistake. This goes on in Bengali. This Prahlad's school was so called Gurukul but their teachers were not Gurus. When I was in school it was called as vidyalaya. We called our teachers Guruji. Then in cities, people started to follow the British. We started to say sir and madam. The British left, but left their culture stayed behind in India and we became servants of that. 50-60 years ago, addressed our teachers as Guruji, but they sometimes addressed us, Hey Raghya ,Tukya or Ramya this way. They didn't call our names properly. In good culture we say Raghu, not Raghya. They called us and asked us to bring a cigarette for them. What kind of Guru and education is this? Prahlāda Mahārāja learnt what? He learnt navavidha bhakti. Where? He learnt this in the womb of his mother. He was born knowledgeable. He didn't learn anything in school, but got all the knowledge before his birth. Chanting Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare This is bhakti. Innumerable people are chanting around the world. In 1965, only one person was chanting in the western countries. Srila Prabhupada took Harinama with him. He was chanting throughout his journey. When Prabhupada reached NewYork, he was the only one who chanted and did kirtana on the footpath or in park or street. In India, there would be some number chanting. But now, how many people are chanting? Innumerable! 30-40 years ago, an American company named Galop, did a survey about how many people belonged to which religion? They wanted to know how many are Christians, Mohammedan, Hindu, Buddhist and so on. There was no 'Hare Krishna' religion to be ticked. But 1% of the American population wrote, 'Hare Krishna' on the form separately. 1% was a huge number that time. Same thing happened in Russia also. There was a periodical named 'News week', which mentioned that the fastest growing religion in USSR or Russia is 'Hare Krishna'. We don't know from where they found this number. There were 700 thousand followers in Russia. pṛthivīte āche yata nagarādi grāma sarvatra pracāra haibe mora nāma Translation: In every town and village on the surface of the earth, the chanting of My name will be heard. (CC Madhya-lila 25.264) We are seeing that prediction of Caitanya Mahāprabhu is being realised. Those who chant are performing bhakti. What is the essence of Bhagavad-gītā or what the Lord has asked us to do? Bhakti man-manā bhava mad-bhakto mad-yājī māṁ namaskuru mām evaiṣyasi satyaṁ te pratijāne priyo ’si me Translation: Always think of Me, become My devotee, worship Me and offer your homage unto Me. Thus you will come to Me without fail. I promise you this because you are My very dear friend. (BG18.65) These all are bhakti. yoginām api sarveṣāṁ mad-gatenāntar-ātmanā śraddhāvān bhajate yo māṁ sa me yukta-tamo mataḥ Translation: And of all yogīs, the one with great faith who always abides in Me, thinks of Me within himself and renders transcendental loving service to Me – he is the most intimately united with Me in yoga and is the highest of all. That is My opinion. (BG 6.47) There is karma yoga, jñāna yoga, ashtanga yoga. Among all devotees, bhakti yogis are the greatest. All those who are chanting around the world are performing bhakti. They had understood the essence of Bhagavad-gītā and are adhering to it. Gitarahasya was written by Lokamanya from Pune. In Burma, this Indian leader was locked in prison. So he wrote a commentary on Gita in jail. He wrote that the essence of Bhagavad-gītā is karmayoga and then he asked everyone to worship Ganesh. Ganesh festivals like Ganesh Chaturthi are celebrated with great pomp especially in Pune. ārādhanānāṁ sarveṣāṁ viṣṇor ārādhanaṁ param tasmāt parataraṁ devi tadīyānāṁ samarcanam Translation: Of all types of worship, worship of Lord Viṣṇu is best, and better than the worship of Lord Viṣṇu is the worship of His devotee, the Vaiṣṇava. (Padma Purana) Father of Lord Ganesh asked him to worship Lord Vishnu. But political leaders worship Ganesh and that too without rules and regulations. He said, "Freedom is my birthright and I will get it". But what kind of freedom is this? Everyone is locked down for many days, but no leader has asked us to take shelter of the Lord and pray. Prabhupada told us to take shelter of the Lord and hence he is true Bharat Ratna. Other leaders are like black coal. They do not understand Bharat yet. It is a shame on them. Srila Prabhupada understood the true wealth of Bharat. When Srila Prabhupada was asked about his arrival in London, he said he came to deliver the true wealth of India. Bhagavad-gītā, Śrimad-Bhagavatam, Ramayana, Hare Krishna mahā-mantra, which is the culture and true wealth of India. Ancient India was great, not current India. India has turned into England and become westernised. There remains no Bharatiyata now. Srila Prabhupada was asked to introduce himself. He said, “I am not Indian, but I am Bharatiya.” Today's leaders made Bharat into India. In these lockdown situations, Bharat should have led the whole world to take shelter of the Lord. pahi pahi maha-baho bhaktanam abhayankara Kunti Maharani prays to the Lord to protect her as the Lord is very powerful. Did Draupadi call the police when she was in difficulty? No! She called Govind! Krsna! When the Pandavas were in great trouble, they took shelter of the Lord. Mahabharata teaches us this. Whenever you are in trouble, take the shelter of the holy name. In winter, when there is no water heater, we have to say Hare Krishna before the water touches our body then only we can tolerate it. Always chant. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare You all are real Bharatiya. If there is an Englishman chanting Hare Krishna then He is also a Bharatiya. Just by taking birth in a brahmana family doesn't make one a brahmana. cātur-varṇyaṁ mayā sṛṣṭaṁ guṇa-karma-vibhāgaśaḥ tasya kartāram api māṁ viddhy akartāram avyayam Translation: According to the three modes of material nature and the work associated with them, the four divisions of human society are created by Me. And although I am the creator of this system, you should know that I am yet the non doer, being unchangeable. (BG 4.13) He has to prove himself as a brahmana by his karma (work) and guna (qualities), not by taking birth in a brahmana family. Similarly, taking birth in Bharat doesn't make one Bharatiya. Our thoughts and culture should be like ancient Bharat. By establishing ISKCON Srila Prabhupada gave birth to Bharatiyas. bhārata-bhūmite haila manuṣya-janma yāra janma sārthaka kari' kara para-upakāra Translation: One who has taken his birth as a human being in the land of India [Bhārata-varṣa] should make his life successful and work for the benefit of all other people. (CC Ādi-lila 9.41) Any foreigner should not think that He is not a Bharatiya. Those who are there in different parts of the world chanting Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Ram Rama Rama Hare Hare … are all Bharatiyas. Everyone should do paropkāra for the benefit of other people. I pray that you may develop renunciation and knowledge by chanting Hare Krishna. Hare Krishna !

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14 мая 2020 г. Плоды бхакти Харе Кришна! Ровно 800! История повторяется. Пение происходит из 800 мест. Некоторые преданные только что присоединились. Это означает, что они не воспевали, и если они воспевали, то они не воспевали с нами. Вначале у нас было от 400 до 500 участников, а затем некоторые присоединились к разговору о джапе. Немногие воспевают в течение некоторого времени, и большинство преданных присоединяются к разговору о джапе. Было бы здорово, если бы вы также присоединились к нам для джапы с самого начала. Если вы воспевали, тогда вам не нужно говорить о джапе. Когда вы не воспеваете, тогда вам нужно произнести речь о джапе. Сейчас 816 участников. vāsudeve bhagavati bhakti-yogaḥ prayojitaḥ janayaty āśu vairāgyaṁ jñānaṁ ca yad ahaitukam Перевод: Оказывая преданное служение Личности Бога, Шри Кришне, человек немедленно обретает беспричинное знание и отрешенность от мира. (ШБ. 1.2.7) Мало кто из вас слышал этот стих и читал. Это важный стих Бхагаватам. В нем говорится, что, кто бы ни совершал преданное служение Господу, он получит две вещи. Они разовьют вайрагью (отречение). вайрагья происходит от вирага. Раг означает привязанность, а вираг означает отрешенность. Бхагаватам утверждает, что те, кто выполняет бхакти или преданное служение, разовьют отречение и также станут гьяни, знающими. Того, кто развил вайрагью, называют вайрагйаваном. Те, кто совершают бхакти, развивают вайрагью и гьяну. Гьяна увеличивает бхакти. Воспевание Харе Кришна также преданность. Существует 9 видов преданного служения, или нававидха-бхакти. Нава означает девять, а видха означает вид, начиная с шраванам киртанам и смаранам. Чья смаранам? Вишнох. Это значит кришнасйа шраванам или кришнасйа киртанам. Krsnasya стал здесь Вишно, Вишно смаранам. Как часть нававидха-бхакти, мы слышим и повторяем и, следовательно, это бхакти. Махараджу Прахладу спросили, когда он был на каникулах: «Что ты узнал в Гурукуле от своих учителей Санды и Амарка?» Прахлада Махарадж сказал: шраванах киртанах вишо смаранах пада-севанам арчанам ванданам дасйам сахьям атма-ниведанам Перевод: Прахлада Махараджа сказал: Слушая и повторяя о трансцендентном святом имени, форме, качествах, атрибутах и ​​играх Господа Вишу, вспоминая их, служа лотосным стопам Господа, предлагая Господу почтительное поклонение шестнадцатью атрибутами, предлагая молитвы Господь, становясь Его слугой, считая Господа своим лучшим другом и все отдавая Ему (иными словами, служа Ему телом, разумом и словами) - эти девять процессов принимаются как чистое преданное служение. (ШБ. 7.5.23) Он не сказал прямо, что не научился Нававидха бхакти от Санды и Амарка. Они научили его чему-то другому: как заниматься экономическим развитием, как зарабатывать деньги, как совершать грехи, как стать пьяницей, удовлетворить похоть, играть в азартные игры и есть мясо. Они научили его этим 4 регулирующим принципам. Санда и Амарк хотели сделать его ‘asurvarya’. Асур означает «демон», а «варйа» означает «лучший», «лучший из демонов» или «лучший среди ослов». Махараджа Прахлада не изучал Нававидха Бхакти в Гурукуле. Она называлась Гурукула, но их учителя не были Гуру. Они были Гору. В Бенгалии преданные пели «Шри гору чарана падма…». Тогда Прабхупада говорил: «Я не Гору». «Гору» означает животное. Вместо того, чтобы говорить Гуру, они обычно говорили Гору. Это означает, что ваши ноги как у животного. Следовательно, Прабхупада должен был сказать это. Вот почему произношение должно быть правильным, иначе это может привести к огромной ошибке. Это продолжается на бенгали. Эта школа Прахлада называлась Гурукула, но их учителя не были Гуру. Когда я учился в школе, это называлось видялая. Мы назвали наших учителей Гуруджи. Затем в городах люди начали следовать за англичанами. Мы начали говорить сэр и мадам. Британцы ушли, но их культура осталась в Индии, и мы стали слугами этого. 50-60 лет назад обращались к нашим учителям как к Гуруджи, но иногда они обращались к нам, эй, Рагхья, Тукья или Рамья. Они не назвали наши имена должным образом. В хорошей культуре мы говорим Raghu, а не Raghya,. Они звонили нам и просили принести сигарету для них. Что это за гуру и образование? Махараджа Прахлада узнал что? Он изучил Нававидха Бхакти. Где? Он узнал об этом в утробе матери. Он родился знающим. Он ничему не учился в школе, но получил все знания до своего рождения. Воспевая Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare Это бхакти. Бесчисленное количество людей воспевают по всему миру. В 1965 году в западных странах воспевал только один человек. Шрила Прабхупада взял Харинаму с собой. Он воспевал на протяжении всего своего путешествия. Когда Прабхупада достиг Нью-Йорка, он был единственным, кто воспевал и проводил киртан на тропинке, в парке или на улице. В Индии собралось бы какое-то число воспевающих. Но сколько людей воспевают? Бесчисленно! 30-40 лет назад американская компания Galop провела опрос о том, сколько людей принадлежит к какой религии? Они хотели знать, сколько христиан, мусульман, индусов, буддистов и так далее. Не было никакой религии «Харе Кришна», возле которой можно поставить галочку. Но 1% населения Америки написал «Харе Кришна» в форме отдельно. 1% было огромным числом в то время. То же самое произошло и в России. Было издание которое периодически издавалось под названием «Новости недели», в котором упоминалось, что самой быстрорастущей религией в СССР или России является «Харе Кришна». Мы не знаем, откуда они нашли этот номер. В России было 700 тысяч подписчиков. pṛthivīte āche yata nagarādi grāma sarvatra pracāra haibe mora nāma Перевод: В каждом городе и деревне на поверхности земли будет слышно воспевание Моего имени. (ЧЧ Мадхья-лила 25.264) Мы видим, что предсказание Чайтаньи Махапрабху реализуется. Те, кто воспевают, выполняют бхакти. В чем суть Бхагават-Гиты или что Господь попросил нас сделать? Бхакти man-manā bhava mad-bhakto mad-yājī māṁ namaskuru mām evaiṣyasi satyaṁ te pratijāne priyo ’si me Перевод: Всегда думай обо Мне, стань Моим преданным, поклоняйся Мне и почитай Меня. Так ты непременно придёшь ко Мне. Я обещаю тебе это, потому, что ты Мой дорогой друг. (БГ. 18.65) Это всё бхакти. yoginām api sarveṣāṁ mad-gatenāntar-ātmanā śraddhāvān bhajate yo māṁ sa me yukta-tamo mataḥ Перевод: А из всех йогов тот, кто всегда погружен в мысли обо Мне, пребывающем в его сердце, и, исполненный непоколебимой веры, поклоняется и служит Мне с любовью, связан со Мной самыми тесными узами и достиг высшей ступени совершенства. Таково Мое мнение. (БГ. 6.47) Есть карма йога, джняна йога, аштанга йога. Среди всех преданных бхакти-йоги являются величайшими. Все те, кто воспевают по всему миру, выполняют бхакти. Они поняли суть Бхагават-Гиты и придерживаются её. Гитарахасья была написана Локаманей из Пуне. В Бирме этот индийский лидер был заперт в тюрьме. Поэтому он написал комментарий к Гите в тюрьме. Он написал, что сущность Бхагавад-гиты - это карма йога, а затем попросил всех поклоняться Ганеше. Фестивали Ганеша, такие как Ганеш Чатуртхи, отмечаются с большой размахом, особенно в Пуне. ārādhanānāṁ sarveṣāṁ viṣṇor ārādhanaṁ param tasmāt parataraṁ devi tadīyānāṁ samarcanam Перевод: Из всех видов поклонения, поклонение Господу Вишу является лучшим, а лучше чем поклонение Господу Вишу является поклонение Его преданному, вайшаву. (Падма Пурана) Отец Господа Ганеши попросил его поклоняться Господу Вишну. Но политические лидеры поклоняются Ганеше и тому подобное без правил и норм. Он сказал: «Свобода - это мое право по рождению, и я это получу». Но что это за свобода? Все на много дней заперты, но ни один лидер не просил нас принять прибежище у Господа и молиться. Прабхупада сказал нам принять прибежище у Господа, и поэтому он истинный Бхарат Ратна. Другие лидеры похожи на черный уголь. Они еще не понимают Бхарату. Это позор для них. Шрила Прабхупада понял истинное богатство Бхараты. Когда Шрилу Прабхупаду спросили о его прибытии в Лондон, он сказал, что пришел, чтобы доставить истинное богатство Индии. Бхагават-Гита, Шримад-Бхагаватам, Рамаяна, Харе Кришна маха-мантра, которая является культурой и истинным богатством Индии. Древняя Индия была великой, а не нынешняя Индия. Индия превратилась в Англию и стала прозападной. Там не осталось Бхаратията сейчас. Шрилу Прабхупаду попросили представиться. Он сказал: «Я не индиец, но я Bharatiya». Сегодняшние лидеры превратили Бхарату в Индию. В этих ситуациях изоляции Бхарата должна была привести весь мир к принятию прибежища Господа. pahi pahi maha-baho bhaktanam abhayankara Кунти Махарани молится Господу, чтобы Он защитить её, поскольку Господь очень могуществен. Драупади звонила в полицию, когда была в затруднении? Нет! Она звала Говинда! Кришна! Когда у Пандавов были большие неприятности, они приняли прибежище у Господа. Махабхарата учит нас этому. Всякий раз, когда у вас неприятности, примите прибежище у святого имени. Зимой, когда нет водонагревателя, мы должны сказать Харе Кришна, прежде чем вода коснется нашего тела, тогда только мы можем это терпеть. Всегда повторяйте. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare Вы все настоящие Бхаратия. Если есть англичанин, поющий Харе Кришна, тогда он также Бхаратия. Одно рождение в семье брахманов не делает человека брахманом. cātur-varṇyaṁ mayā sṛṣṭaṁ guṇa-karma-vibhāgaśaḥ tasya kartāram api māṁ viddhy akartāram avyayam Перевод: В соответствии с тремя гунами материальной природы и связанной с ними деятельностью, Я разделил человеческое общество на четыре сословия. Но знай же, что, хотя Я и являюсь создателем этой системы, Сам Я, вечный и неизменный, непричастен к какой-либо деятельности. (БГ. 4.13) Он должен проявить себя как брахман благодаря своей карме (работе) и гуне (качествам), а не по рождению в семье брахманов. Точно так же, рождение в Бхарате не делает человека Бхаратия. Наши мысли и культура должны быть как древний Бхарат. Учредив ИСККОН, Шрила Прабхупада породил Бхаратийцев. bhārata-bhūmite haila manuṣya-janma yāra janma sārthaka kari’ kara para-upakāra Перевод: Тот, кто родился как человек на земле Индии [Бхарата-варши], должен сделать свою жизнь успешной и трудится на благо всех других людей. (ЧЧ Āди-лила 9.41) Любой иностранец не должен думать, что он не бхаратия. Те, кто там в разных частях мира воспевают Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Ram Rama Rama Hare Hare ... все бхаратийцы. Каждый должен совершать paropkāra на благо других людей. Я молюсь, чтобы вы могли развить отречение и знание, воспевая Харе Кришна. Харе Кришна !