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जप चर्चा
14 मई 2020
पंढरपूर धाम .
श्री श्री गुरू गौरांग जयत:
गुरू और गौरांग की जय हो ।
कल भी इस समय ठीकक 800 स्थानों से ही जुड़े थे, आज भी 800 स्थानों से आप सब जप कर रहे हो l वैसे इतने सालों से जप तो नहीं कर रहे थे l कुछ भक्त तो अभी-अभी जुड़ गए है, अर्थात वे भक्त जप नहीं करते थे , और यदि जप किया होगा तो हमारे साथ नहीं किया l अतःयह कहना भी सही नहीं है कि, 800 स्थानों से आप जप कर रहे हो , हो सकता है 700 या 720 हो l शुरुआत में कम थे अब धीरे-धीरे जुड़ रहे हैं l और फिर जप चर्चा के समय जो जुड़ते हैं वही संख्या हम घोषित करते हैं, पर आपको इस कॉन्फेंस में जप भी करना चाहिए , सही है ? कुछ तो , कुछ समय के लिए जप करते हैं और कुछ अन्य भक्त है जो, कुछ समय के लिए जप चर्चा सुनते हैं l मुझे लगता है जप चर्चा तो सभी सुनते हैं l अभी जप मैं धीरे-धीरे जुड़ते हो आप , अच्छा होगा आप भी शुरुवात से ही हमारे साथ जप करना प्रारंभ करोगे l आप अगर जप कर ही रहे हो तो जप चर्चा की कुछ जरूरत ही नहीं है l लोग जप नहीं करते इसलिए जप चर्चा भी करनी पड़ती है , लेकिन जप कर ही रहे हो तो फिर जप चर्चा क्यों ? अब तक 816 स्थानों से प्रतिभागी जुड़े हैं l नागपुर से कृष्णकांता भी सुन रही है l
।। श्री कृष्ण चैतन्य प्रभू नित्यानंद ।
श्री अद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्त वृन्द ।।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
वासुदेवे भगवति भक्तियोग: प्रयोजित: ।
जनयत्याशु वैराग्यं ज्ञानं च यदहैतुकम् ।। (श्रीमद् भागवत 1.2.7)
अनुवाद : परम भगवान श्री कृष्ण की सेवा करने से व्यक्ति को भगवान की अहेतुकी कृपा से ज्ञान तथा संसार से वैराग्य प्राप्त होता है ।
आप जो लोग उपस्थित हो , कुछ यह श्लोक जानते भी है कंठस्थ हैं आपको, कुछभी भक्त साथ मे भी कह रहे थे या जो पहली बार सुन रहे थे , यह भागवत का एक महत्वपूर्ण वचन है , इसमें कहा है , "वासुदेव की भक्ति करने वालों को आगे दो बातें प्राप्त होगी ।"
यह भागवतम का वचन कह रहा है , जनयति मतलब उत्पन्न करता है और ज्यादा समय नहीं लगाता । वैराग्य उत्पन्न होता है , विराग से शब्द बनता है वैराग्य , राग मतलब आसक्ती और विराग मतलब अनासक्ती आसक्ति अनासक्ति , राग-अनुराग भी होता है लेकिन यह विराग है , वैराग्य है ।
तो भक्ति करने वालों का क्या होगा ? उनको वैराग्य उत्पन्न होगा । और क्या उत्पन्न होगा ? ज्ञान ! वह ज्ञानी भी बनेंगे , भक्ति करते करते वैराग्यवान भी बनेंगे । जिनके पास वैराग्य है उस व्यक्ति को क्या कहते हैं ? वैराग्य वान , जैसे धनवान या ज्ञानवान और ऐसे कई शब्द है , जो भक्ति करता है वो व्यक्ती वैराग्य से युक्त या संपन्न होता है और साथ ही साथ वह ज्ञान को प्राप्त करता है । भक्ति को बढ़ाने वाले ज्ञान को भक्ति बढ़ाती है ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्णहरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
यह जप करना भी भक्ति है । है कि नहीं ? श्रवणं कीर्तनं नवविधा भक्ति प्रकार है , इस भक्ति के नौ प्रकार में शुरुवात कहां से होती है ? श्रवणं किर्तनं किसका विष्णू: अथवा कृष्णस्च मतलब कृष्ण का स्मरण , कृष्ण का किर्तन ।
विष्णु कह रहे हैं तो हो गया विष्णु: स्मरणं विष्णु का स्मरण या विष्णु का किर्तन । नवविधा भक्ति के अंतर्गत यह कीर्तन करना , जप करना मतलब जो हम श्रवण करते हैं , कीर्तन करते हैं यह भक्ति ही हैं। प्रल्हाद महाराज जब छुट्टी के दिनों में घर लौटे तो उनसे पुछा , " बेटा बेटा गुरुकुल मे क्या सीखे हो ? जब गुरुकुल में दाखिल किया था तो तुम्हारे गुरु शण्ड और अमर्क थे उन्हें हमने ही नियुक्त किया था । इतने दिनो से तुम पढ़ रहे हो बताओ क्या सिखे हो ? "
तब प्रल्हाद महाराज ने कहा था ,
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् ।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ (श्रीमद भागवतम 7.5.23)
अनुवाद : श्रवण, कीर्तन, विष्णु स्मरण, भगवान के चरण कमलों की सेवा करना, उनकी अर्चना करने, उनका वंदन करना, दास्य भाव में उनकी सेवा करना, सख्य भाव में स्थित होना तथा अन्ततः भगवान को पूर्णरूपेण समर्पित ही जाना , यह नवविधा भक्ति हैं ।
यह सीखा हूं । उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया , यह नहीं कहा कि मैं किस से सीखा हूं । यह नवविधा भक्ति जो प्रल्हाद महाराज ने सीखी थी वह शण्ड और अमर्क ने नहीं सीखाई थी। उन्होंने कुछ और ही सिखाया था । धन कमाने की विद्या सिखाई थी और पाप कैसे करना है , शराबी कैसे बनना है , कामवासना की तृप्ति कैसे करनी है , जुगार कैसे खेलना है , नशा पान और मांस भक्षण कैसे करना है , यह 4 नियम सिखाये थे । इसमें तुम प्रवीण हो जाओ । क्योंकि शण्ड और अमर्क का लक्ष्य उद्देश्य था इस बालक को हम आसुरवर्य बनाएंगे ।
केवल असुर नहीं बनाएंगे आसुरवर्य बनाएंगे वर्य का मतलब होता है , श्रेष्ठ । जैसे गुरुवर्य होते है कई सारे वर्य होते हैं । तो इसको आसुरवर्य बनाना है । सबसे अच्छा असुर बनाएंगे । साधारण असुर नहीं , साधारण गधा नहीं महागधा बनाएंगे । उसे नेतृत्व करना है ।
जब पिताश्री ने पूछा , तो प्रल्हाद महाराज में ऐसा जवाब दिया था । वह यह बातें सीखे तो थे लेकिन गुरुकुल में नहीं सीखेखे थे । उसका नाम गुरुकुल तो था लेकिन वहां के गुरु वैसे गुरु नहीं थे , गोरु थे ।
श्री गुरु-चरण-पद्म केवल भकति सद्म (श्री गुरु वन्दना)
प्रभुपाद के समय भक्त जब यह गाते थे श्री गोरु चरण तब प्रभुपाद ने कहा था , "मैं गोरु नहीं हूं । गोरु मतलब पशु होता है । गुर होता है ना मराठी में तो उसको बंगाली में गोरु कहते हैं , गाय इत्यादि को गोरु कहते हैं । यह बंगाल की उच्चारण पद्धति ऐसे ही कुछ है , तो उसको कुछ लोग गोरु कहते हैं । वैसे शब्द तो गुरु ही है , पर गुरु कहने के बजाए गोरु कहा था । श्री गुरु पद्म चरण नहीं क्या कहते थे ? गोरु । प्रभुपाद ऐसे बैठे हैं , उनके चरणों की वंदना हो रही है , लेकिन कह क्या रहे हैं , श्री गौरु चरण , आपके चरण कैसे हैं ? पशु जैसे चरण है , पशु के चरण है , तो उन्होंने कहा , "मैं गौरु नहीं हूं , मैं गाय या बैल या पशु तो नहीं हूं । " इसलिए उच्चारण जो है ठीक से करना चाहिए , नहीं तो ऐसी भारी गलतियां हो सकती है । श्री गुरु के बजाए गौरु कह रहे थे । लेकिन ऐसा बंगाली में चलता ही रहता है ।
उस गुरुकुल का तथाकथित नाम ही गुरुकुल था लेकिन वहां के गुरु गुरु नहीं थे । जब हम भी स्कूल में पढ़ते थे उसका नाम विद्यालय , प्राथमिक पाठशाला था । वहाँ के गुरु को हम कम से कम गुरुजी कहते तो थे । शहर में यह संस्कृति बिगड़ गई है , अब पाश्चात्य देश की नकल होने लगी है । सारे गुरुजी को टीचर कहने लगे हैं , सर ! सर ! सर ! और महिला है तो मैडम , सर ! मैडम ! सर ! मैडम ! ऐसा अंग्रेजो ने सिखाया , वह तो चले गए । छोड़ो भारत , लेकिन सारी संस्कृति पीछे छोड़ गए । हम लोग तो अंग्रेजो के चेले ही बन गए। उन्होने ही सिखाया था कि , कैसे संबोधन करना है गुरु को । बाकी शहरों में तो उस समय भी सर-सर चलता था ।
60 साल पूर्व की बात है , हमारे गुरु को हम क्या कहते थे ? गुरुजी । सारे गुरु को हम गुरुजी कहते थे , लेकिन वह हमारे गुरुजी कभी-कभी क्या कहते थे , ये रघ्या, ये तुक्या , ये राम्या ऐसा ही कुछ जैसे भी नाम है ठीक से नाम नहीं पुकारते थे । ऐसे ही परंपरा का प्रचार- प्रसार होता है । महाराष्ट्र में चलता नहीं क्या ? उत्तर प्रदेश में ऐसा होता है , रघु को रघु ही कहते हैं , राम को राम या नहीं कहते । लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा बिगड़ गया है । कर्नाटक में क्या है ? हाँ ! ऐसा तुक्या राम्या , वह कर्नाटक में भी होता हैं तो फिर बेकार है । नाम को बिगाड़कर पुकारते हैं और कहते हैं बीड़ी लेकर आओ । हम उनको गुरुजी गुरुजी कहते हैं , और गुरुजी कहते हैं बीड़ी लेकर आओ । यह किस प्रकार के गुरुजी हैं ? कैसा गुरुकुल ? कैसी विद्या ? और कैसा क्या ?
प्रल्हाद महाराज को जब पूछा , क्या सीखा ? तो उन्होंने कहा , "मैं यह नवविधा भक्ति सिखा ।" कहाँ सीखे ? जब माँं के गर्भ में थे तभी वह सीखे थे । यह विद्या सीख के ही उन्होंने जन्म लिया , वह जन्म से ही विद्यावान थे । स्कूल में जाके नहीं पढ़े , जन्म से पहले ही उनकी सारी विद्या पूर्ण हुई और विद्यावान बने ।
वासुदेवे भगवति भक्तियोग: प्रयोजित: ।
जनयत्याशु वैराग्यं ज्ञानं च यदहैतुकम् ।। (श्रीमद् भागवत 1.2.7)
हरे कृष्णा । हरे कृष्णा । यह भक्ती ही है । हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं । आप करते हो कि नहीं ? 800 जुड़े हैं इस सम्मेलन में , वैसे पूरे जगतभर में कितने लोग जप करने लगे हैं ? असंख्य लोग जप कर रहे हैं ।
1965 में तो एक ही व्यक्ति जप करते थे पाश्चात्य देश में पहुंचे एक भारतीय जप कर रहे थे । वहाँ जप करते-करते ही गए हरिनाम को , जप को साथ ले गए । रास्ते में कीर्तन कर रहे थे तो श्रील प्रभुपाद किर्तन को ले गए । न्यूयॉर्क में जब श्रील प्रभुपाद पहुंचे , वहाँ किर्तन प्रारंभ किया तो सारे देश में वह एक ही व्यक्ति थे । प्रभुपाद फिर पगडंडी पर ही बैठ कर कीर्तन करते थे l या किसी बगीचे में बेंच पर बैठकर प्रभुपाद अकेले ही जप करते थे , या कीर्तन करते थे । 1965 में एक व्यक्ति जप कर रहे थे , भारत में कुछ होगे पर भारत के बाहर एक ही थे । और अब संख्या कितनी बन चुकी है ? कौन कह सकता है , कितने लोग जप करते हैं ? लाखों-करोड़ों । यह बहुत पुरानी बात है ।
लगभग 30 - 40 वर्ष पूर्व एक ग्यालाब पुलिंग ने सर्वेक्षण किया था। कंपनी या टोली है उन्होंने सर्वेक्षण किया था । वह जानना चाहते थे अमेरिका मे कितने लोग किस धर्म से संबंधित हैं । कितने लोग कितने ईसाई है , कितने मुसलमान है , या कितने हिंदू है , कितने बौद्धपंथी है यह सर्वेक्षण करना था । हर एक का यह करना था , इसमें कोई हरे कृष्णा का कोई नाम नहीं था नोंद करने के लिए । लेकिन जो सर्वेक्षण हुआ उसमें 1% लोगो ने अलग से नाम लिखाया । आपका धर्म क्या है ? उन्होंने कहा हम हरे कृष्ण धर्म के है । तो अमेरिका के 1% लोकसंख्या कुछ छोटी नहीं है , 1% मतलब बहुत सारे लोग होते है। और यह 30 - 40 वर्षों पूर्व बात है ।अब सर्वेक्षण किया तो और संख्या में वृद्धि हुई है । इतने सारे लोग जप कर रहे हैं या कीर्तन कर रहे हैं । एक ही बात है। रूस में भी भक्त जप कर रहे हैं।
वहां भी कुछ साल पहले एक न्यूज़ वीक नाम की साप्ताहिक पत्रिका आई थी, तो उसमें मुख्य शब्दों में लिखा हुआ था " सोवियत संघ में सबसे तेजी से बढ़ने वाला धर्म है हरे कृष्ण। पहले जो यूएसएसआर था, आपको पता भी नहीं होगा उसी का बन गया था रूस। साम्यवादी देश, पहले जिसको सोवियत यूनियन कहते थे। वहां सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ने वाला धर्म कौन सा है ?वह है हरे कृष्णा धर्म। इस बारे में उस पत्रिका में पूरा विस्तार से लिखा गया था। और पता नहीं कहां से उन्होंने संख्या का पता लगाया और उसमें लिखा था कि 700000 लोग जो है वह हरे कृष्णा के अनुयायी हैं ।
पृथ्वीते आछे यत नगर आदि ग्राम सर्वत्र प्रचार होइब मोर नाम(चैतन्य चरितामृत, मध्य लीला 25.264)
मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र होगा ,और यह भविष्यवाणी सच होते हुए हम देख रहे हैं अपनी आंखों के समक्ष ।
चाहे कोई कहीं पर भी हैं, चाहे भारत में हो चाहे बाहर के देश में, कहीं पर भी वह अगर जप करते हैं, तो इसका अर्थ है वह भक्ति करते हैं। किसी ने मुझसे पूछा कि भगवत गीता का क्या सार है? तो मैंने उत्तर दिया भक्ति ।भगवत गीता क्या सिखाती है? इसका मतलब है भगवान क्या सिखाते हैं? भगवान ने भगवत गीता में क्या करने को कहा ? भगवान ने भक्ति करने को कहा।
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ।।श्रीमद भगवद्गीता 18.65।।
कहा कि नहीं कहा? मेरे भक्त बनो ,मेरा स्मरण करो, मेरी आराधना करो, मुझे नमस्कार करो। यह सब क्या हुआ ? भक्ति।
* योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।।श्रीमद भगवद्गीता 6.47।।
भगवान ने पहले यह योग कहा, फिर वह योग कहा ,कर्मयोग ज्ञानयोग अष्टांग योग पर अंत में भगवान ने कहा कि सब योगियों में सर्वश्रेष्ठ योगी भक्ति योगी है। तो जो भी जप कर रहे हैं संसार भर में वह भक्ति कर रहे हैं। और गीता का सार उनको समझ में आ गया है ।उसी का अवलंबन कर रहे हैं। बाकी लोग तो कुछ नहीं कर रहे।
पुणे की एक पुण्य आत्मा" लोकमान्य" लोगों में मान्यता थी उनकी ।जब अंग्रेजों ने उन्हें कारागार में रखा (काला पानी) , बर्मा में ,एक मंडल है जहां पर कई सारे पॉलीटिकल प्रिजनर है। हम गए थे वहां पर। उस समय अंग्रेजों का राज्य बर्मा और इंडिया में भी था। उन्होंने कुछ इंडियन लीडर्स को गिरफ्तार करके वहां रख दिया था। उनको कोई और काम धंधा नहीं था , लॉक डाउन था ,इसलिए उन्होंने सोचा चलो गीता पर भाष्य लिखते हैं। इसी तरह बहुत से इंडियन लीडर्स ने गीता पर भाष्य लिखा( गीता रहस्य)।पर उनकी क्या समझ की गीता का रहस्य क्या है? उन्होंने कर्मयोग को गीता का रहस्य बताया, तो क्या गीता का रहस्य उन्हें समझ आया? और दूसरा उन्होंने बताया कि आराधना करनी है तो गणेश की आराधना करो। यह जो गणेश उत्सव , इतने धूमधाम से मुंबई में मनाया जाता है उस के प्रवर्तक कौन हैं लोकमान्य है।उन्हें समझ नहीं आया ।
आराधनानां सर्वेषां विश्नोर आराधनं परम,तस्मात परतरं देवी तदीयानाम समर्चनम । (पद्म पुराण)
अनुवाद : सभी की आराधना में सबसे श्रेष्ठ आराधना है भगवान विष्णु की आराधना ।
यह गणेश जी के पिताजी ने ही तो बताया ।आराधना करनी है तो किसकी आराधना करो? विष्णु की आराधना करो ।लेकिन यह राजनेता , उनको समझ आया कि हां हां गणेश की आराधना करनी चाहिए उन्होंने ऐसा प्रचार किया और अभी तक गणेश की आराधना चल रही है। और वह जो भी करते है वह भी विधिपूर्वक नहीं करते।उन्होंने कहा स्वराज हमारा जन्मसिद्ध हक है ।तो क्या उन्हें कुछ समझ आया? केवल मुक्त करना? तो क्या राम राज्य की स्थापना हुई ? या रावण राज्य की स्थापना हुई ।
इतने दिन से यह लॉक डाउन की और कोरोना की समस्या है, क्या किसी नेता ने गलती से भी कहा कि भगवान को प्रार्थना करो ?एक शब्द भी नहीं कहा ?ऐसा है भारत और कैसे हैं हम भारतीय ?इस देश के नेता जिनको भगवान की याद नहीं आती, न भगवत गीता की याद आती है, न भागवत की याद आती है ।तो कल आपने सुना श्रील प्रभुपाद के आदेश और उपदेश कि जब जब समस्या आए तो भगवान की तरफ मुड़ो और उनका आश्रय लो ।
"भगवान का आश्रय लो "ऐसे कहने वाले ही भारत रत्न हैं । बाकी सब तो कोयले हैं, रत्न नहीं है। हम कब से प्रतीक्षा कर रहे हैं की आज कल के नेता आज कहेंगे, कल कहेंगे ,कि भगवान से प्रार्थना करो ।हरि हरि.... यह बहुत लज्जा की बात है। तो नेता इस देश को समझ नहीं पाए। बने हैं नेता और कर रहे हैं तथाकथित नेतृत्व पर भारत को समझ ही नहीं पाए । जिस तरह प्रभुपाद जैसे भारत रत्न भारत को समझे, भारत की ताकत को समझे,भारत की संपत्ति को समझे। पत्रकारों ने पूछा श्रीला प्रभुपाद से की स्वामी जी आप हमारे देश क्यों आए है (लंदन में) श्रील प्रभुपाद ने कहा मेरे देश की जो असली संपत्ति है उसे देने आया हूं ।होम डिलीवरी देने आया हूं ।
पत्रकार ने पूछा कौन सी संपत्ति है आपके देश की? गीता, भागवत रामायण यह जो ग्रंथ है वह हमारे देश की असली संपत्ति हैं ।भारत की संस्कृति ही भारत की असली संपत्ति है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
यह धन है ,हमारे देश का ,इसका वितरण करने आया हूं ।तो मेरा भारत देश महान । वर्तमान भारत देश महान नहीं है प्राचीन भारत देश महान है। आज के भारत देश का तो क्या कहना वह भारत ही नहीं रहा। पाश्चात्य जगत बन गया है। भारतीयता ही नहीं रही ।श्रील प्रभुपाद एक पक्के भारतीय थे। एक सभा में उन्हें भाषण देना था तो उन्होंने शुरुआत में कहा मैं अपना परिचय देना चाहता हूं। और उन्होंने कहा मैं इंडियन नहीं हूं मैं भारतीय हूं।आप समझ रहे हो कि इंडियन और भारतीयों में अंतर है? आजकल के नेताओं ने भारत को इंडिया बना दिया है।
भारत महान है।अभी लॉक डाउन की परिस्थिति में सारा संसार फंसा है और परेशान है , ऐसी स्थिति में भारत को लीडरशिप लेनी चाहिए थी पर नही ली,फिर हरि बोल क्यों कहे मुर्दाबाद कहना चाहिए।
पाही पाही महाबाहो भक्तानां अभ्यंकर ( महाभारत)
यह कुंती महारानी ने कहा ।यह महाभारत सिखाती है हमें कि जब भी कोई संकट हो तो पाही पाही रक्षा करो महाबाहु हे भगवान आप बलवान हो, शक्तिमान हो, युक्ति मान हो, हमारी रक्षा करो ।फिर द्रौपदी पर कोई समस्या आ गई... भरी सभा में वस्त्र हरण हो रहा है तो क्या किया उसने पुलिस को बुलाया?नही। द्रौपदी ने गोविंद को पुकारा। हे कृष्णा हे गोविंद। और कुंती महारानी और पांडवों पर तो कितनी सारी समस्याएं आईं। पदम पदम यत विपदा ,आती रही तो जब जब आती रही ऐसी विपदा या संकट दोनों ने क्या किया ?डॉक्टर के पास नहीं गए... डॉक्टर को नहीं बुलाया पहले ...या वकील को नहीं बुलाया ...या पुलिस को फोन नहीं किया... सर्वप्रथम याद किसकी आयी ?कृष्ण की।
यह संस्कृति है। महाभारत यह सिखाता है हमें ।महाभारत इतिहास है। जीता जागता उदाहरण है कि जब भी हम संकट में है तो
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
जैसे जाड़े की ठंडी के दिन हो और वाटर हीटर नहीं हो, ठंडे पानी से स्नान करना पड़े, तो पानी स्पर्श करने से पहले ही क्या शुरू होता है ?हरे कृष्ण करना पड़ता है तभी तो हम उसे सहन कर सकते हैं। तो आप सब जब जप करते रहो आप असली और सच्चे भारतीय हो ,जो जप कर रहे हैं ।और फिर वह विदेश के भी क्यों न हो, तो भी वह भारतीय हैं ।यदि कोई अंग्रेज भी अगर हरे कृष्ण जप कर रहा है तो वह भारतीय ही है। कोई जैसे जन्म से ब्राह्मण नहीं होता है, ब्राह्मण कैसे होता है? गुण, कर्म विभागश
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् ॥भगवद गीता 4.13॥
यानी उन्हें अपने गुणों से और कर्मों से सिद्ध करना होगा कि मैं ब्राह्मण हूं, यह नहीं कि ब्राह्मण के घर में जन्म लिया है तो मैं ब्राह्मण हूं, चतुर्वेदी त्रिवेदी या द्विवेदी। भारत में जन्म लेने से भारतीय नहीं बनते। हमारे कर्म हो, हमारे विचार हो, संस्कृति हो भारतीयों की जैसे या प्राचीन भारतीय के जैसे ।वैसे प्रभुपाद ने अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ की स्थापना करके उन्होंने पूरे विश्व में भारतीयों को जन्म दिया है ।तो असली भारतीय तो सारे विश्व भर में है।
भारत भूमिते हाईल मनुस्य जन्म यार ,जन्म सार्थक करि करो उपकार( चैतन्य चरितामृत आदि लीला 9.41)
यह परोपकार का कार्य अब हर भारतीय को करना है ,तो इंग्लैंड क्या अमेरिका, या यूरोप ।वहां के भक्तों को यह नहीं सोचना चाहिए कि मैं तो इंडियन नही , मैं भारतीय नहीं हूं ।मैं कैसे परोपकार कर सकता हूं? क्या फायदा है परोपकार करने का? सारा जीवन तो सफल नहीं होगा। तो याद रखिये आप हरे कृष्णा भक्त हो तो आप भारतीय हो । आशा है कि आप अधिक वैराग्य वान और अधिक ज्ञानवान बनते रहेंगे। जप का यह श्रवण फल आपको प्राप्त हो ऐसे ही प्रार्थना है ।
हरे कृष्ण ।।