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जप चर्चा, 15 मई 2020, पंढरपुर धाम. हरे कृष्ण, सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी कर कटावरी ठेवोनिया सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी तुळसीहार गळा कासे पितांबर आवडे निरंतर तेची रूप सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी मकर कुंडले तळपती श्रवणी कंठी कौस्तुभ मणी विराजित सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी तुका म्हणे माझे हेची सर्व सुख पाहीन श्रीमुख आवडीने सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी अभंग - संत तुकाराम महाराज मैं यहां पंढरपुर में हूं और इसीलिए में पंढरीनाथ विट्ठल भगवान का गुणगान गा रहा हूं। हम लोग तो कई सारे बांग्ला भजन गाते हैं, जैसे नरोत्तम दास ठाकुर के भजन, लोचन दास ठाकुर के भजन, भक्तिविनोद ठाकुर के भजन और कई सारे बांग्ला भजन याद करते हैं और गाते भी हैं। जैसे ये आचार्य है , वैसे ही श्रील प्रभुपाद ने लिखा भी है कि तुकाराम भी आचार्य है और यह तुकाराम आचार्य जो है उन्होंने भी कई सारे गीत लिखे हैं इन्हें अभंग भी कहते हैं। उनमें से कई अभंग या फिर गीत आप गा सकते हैं, मैं तो गाते रहता हूं आप भी सीख लो, अगर आप बंगाली गीत गाते हो तो मराठी क्यों नहीं? इतना तो कोई अंतर है नहीं। हिंदी भाषी तो मराठी पढ़ सकते हैं। बांग्ला पढ़ना कठीन होगा, परन्तु तुकाराम महाराज के अभंग तो हिंदी भाषी भी पढ़ सकते हैं क्योंकि मराठी हिंदी संस्कृत एक ही लिपि है। उनमें से भी कम से कम यह जो अभंग है या फिर गीत है यह बहुत ही प्रसिद्ध है। भजन मंडली जब भी भजन करते हैं या फिर कीर्तन करते हैं महाराष्ट्र में पंढरपुर में तो यह भजन गाना ही पड़ता है, नहीं तो इसके अलावा भजन अधूरा माना जाता है सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी इस गीत को आप याद कर सकते हो छोटा सा ही है यह गीत, याद करके आप जप के समय इसका ध्यान भी कर सकते हो कि भगवान कैसे हैं? विट्ठल भगवान कृष्ण ही है, सुंदर है, सुंदर ते ध्यान कैसे खड़े हैं वह, अपने हाथ उन्होंने कमर पर रखे हैं, क्यों रखे उन्होंने कमर पर हाथ? हम सब की प्रतीक्षा कर रहे हैं यह क्यों नहीं आ रहे हैं वह क्यों नहीं आ रहे हैं, मुझे मिलने के लिए, या मैं भी उनसे मिलना चाहता हूं। आपने क्या सोचा केवल आप ही भगवान से मिलना चाहते हैं वह आपसे मिलना नहीं चाहतेे हैं। सोचो तो सही क्या होगा मिलना चाहते हो ना हरि हरि बोल आप उनके हो आप भगवान के प्रिय होना। यह मिलने की जो चाह है वह दोनों और से होनी चाहिये। और फिर सोचो भगवान आप से नहीं मिलना चाहते तो फिर आपके मिलने की कोई संभावना है भगवान ही नहीं मिलना चाहते हैं आपसे। उसका मैं चेहरा भी नहीं देखना चाहता हूं... नहीं ऐसा नहीं भगवान भी आपसे मिलना चाहते हैं विट्ठल भगवान पांडुरंग पंढरपुर के हमसे मिलना चाहते हैं इसलिए पंढरपुर में है कर कटावरी ठेवूनिया वे प्रतीक्षा कर रहे हैं। तुळशीहार गळा कासे पितांबर यह भी ध्यान करने योग्य है यह एक ध्येय है। ध्येय मतलब ध्यान करने योग्य। भगवान कैसे हैं तुळशीहार गळा जिनके गले में तुलसी हार हैेे भगवान का ध्यान हुआ फिर तुलसी का ध्यान हुआ तुलसी भगवान को प्रिय है इसलिए वे गले में पहनते हैं तुलसी भगवान के चरणों में भी होती है और तुलसी भगवान के थाली में भी होती है। छप्पन भोग छत्तीसो भोग, बिना तुलसी प्रभु एक नहीं मानी।( चंद्रशेखर आचार्य द्वारा रचित तुलसी आरती से) आपने छत्तीस व्यंजन बनाएं या फिर छप्पन भोग लगाए लेकिन तुलसी नहीं है तो भगवान देखेंगे भी नहीं आपके पकवानो की ओर। तुलसी का भी स्मरण होगा हम तुळशीहार गळा ऐसे गाएंगे या फिर कासे पितांबर कैसे वस्त्र पहनते हैं भगवान? पीतांबर वस्त्र पहनते हैं तो हो गया ना विट्ठल पितांबर पहनते हैं, कृष्ण भी पितांबर पहनते हैं सभी विष्णु तत्वों में से संबंध में ही कहा है पीतांबर वस्त्र पहनते हैं। मकर कुंडले तळपती श्रवणी। कंठी कौस्तुभ मणी विराजित ।। ध्यान करने के लिए हम भगवान के रूप का ध्यान कर रहे हैं तो हम भगवान के अलंकारों का भी ध्यान करेंगे। देखो देखो भगवान के कुंडल कैसे हैं भगवान के कुंडल मकर आकृति है मकर कुंडले और भी ध्यान करना है तो हमारा ध्यान जा सकता है देखो देखो कितना तेज है उन कुंडलो में उस कुंडल की आभा जो ज्योति है, भगवान की मुखमन्डल पर आ जाती है कुंडल वही है कान में और चेहरे से कुछ दूर नहीं है। यह भी ध्यान में आ सकता है। वहां हिलते डुलते हैं तो उनके कुंडल भी हिलते डुलते हैं वैसे वो कुंडल हिलते डुलते हैं तो उसकी तो चमक है उसको जो ज्योति है, उसकी जो आभा है अब उसके वजह से भगवान का मुखमंडल और भी सुंदर लगता है यह भी ध्यान कर सकते हैं। जब हम दक्षिण भारत में जाते हैं बालाजी के दर्शन या श्रीरंगम के दर्शन वहां के पुजारी क्या करते हैं आरती उतारते हैं, दीपक जलाते हैं, कर्पुर दिखाते हैं, देखो देखो यह चरण है भगवान के और यह मुखमंडल है, यह सर्वांग है, वे हमें भगवान के सभी अंग दिखाते हैं, दर्शाते हैं भगवान के एक-एक अंग को। वैसा ही कार्य करता है यह कुंडल सब ध्यान की चीजें हैं ध्यान करते हुए हमें जप करना चाहिए। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। यह मंत्र ध्यान है जप भी कर रहे हैं भगवान के नाम का, भगवान का नाम फिर हमें रूप तक पहुंचाता है फिर उनका दर्शन उनका स्मरण ।भगवान एक-एक अंग का दर्शन स्मरण तो जप भी कर रहे हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। यह करते हुए अगर सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी यह भी आ जाए भगवान अपने सौंदर्य से हमें आकृष्ट किजिए ऐसी प्रार्थना अगर हम करेंगे तो हमारा ध्यान केंद्रित करने के लिए यह गीत है। हरे कृष्ण महामंत्र का जाप हमें और स्मरण कराता है सिर्फ कुंडल ही नहीं तो कुंडल कैसे हैं कुंडल की आभा को देखो उसकी चमक को देखो। बहु कोटि चंद्र जी ने वदन उज्वल गल देशे वनमाला करें झलमल ।। (गौर आरती) श्री चैतन्य महाप्रभु के मुखचंद्र का जो तेज है उसके सामने करोड़ों चंद्र का प्रकाश भी कम है उनके गले में वनमाला झलमल कर चमक रही है भगवान के चेहरे पर जो आभा है वह कुन्डलो के कारण भी उनके चेहरे की जो आभा है उज्जवलता है और भी प्रखर होती है। इस प्रकार का ध्यान। इसीलिए तो तुकाराम महाराज अभंग के अंत में कहते हैं। तुका म्हणे माझे हेचि सर्व सुख। पाहिन श्रीमुख आवडीने। तुकाराम महाराज कहते इसीलिए तो मैं देख रहा हूं प्रेम पूर्वक इसे देख रहा हूं भगवान का मुखमंडल । पांडुरंगा ! पांडुरंगा ! पांडुरंगा ! तुकाराम महाराज के इष्टदेव है पांडुरंगा तो आपकी जो कोई भी इष्टदेव है वह भी पांडुरंगा ही है कृष्ण है। सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी या मकर कुंडले तळपती श्रवणी पाहिन श्रीमुखा आवडीने यह जो भगवान का ध्यान है स्वरूप है इसका में दर्शन कर रहा हूं आवडीने में या मन से। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। तो मैं यह सोच रहा था की ऐसी कौन सी सेवा है या ऐसा कौन सा कार्य है यहां ऐसी कौन सी विधि है जिसको अपनाने से या फिर उस कार्य को ठीक ढंग से करने से बाकी जो कुछ है सब कुछ ठीक हो जाएगा। ऐसी कौन सी बात है कौनसा कृत्य हैं कौन सा कार्य है तंत्र मंत्र हैं कौन सी विधि उसी में अगर बिगाड़ा आए उसी को हम ठीक से ना करें तो बाकी सब तो बाकी जो कुछ कार्य है उसमें बिगाड़ आ जाएगा।प्रश्न ध्यान में आ गया, समझ गया। ऐसा कौन सा कार्य कौन सा कृत्य कौन सी विधि है जो करने से या एक कृत्य करने से जो विधि पूर्वक करने से प्रेम पूर्वक करने से हमारे सारे जीवन में सुधार होगा। हर कार्य भी सुधरेंगे और वह इस कार्य ही ठीक से नहीं किया तो कुछ सुधार नहीं होने वाला है सारी बातें बिगड़ जाएगी तो इसका क्या उत्तर है भक्त लिख रहे हैं ध्यानपूर्वक जप जप कीर्तन, श्रवण । श्रीधर माधव प्रभु लिख रहेे हैं, यहां पर जो पंढरपुर में भी भक्त हैं उनका कहना है श्रवण। मैं सोच रहा हूं इसमें तो रहे नहीं हो सकते हैं हर्रेरनामेव केवलम कहां ही है। उत्तर तो शास्त्रों में ही है हर्रेरनाम हर्रेरनाम हर्रेरनामेव केवलम। कलो नास्तैैैव नास्तैैैव नास्तैैैव गतिर अन्यथा। (कली संतरण उपनिषद) बस ये एक ठीक से करो बाकी सब ठीक हो जाएगा यदि ठीक से नहीं किया या तो किया ही नहीं या फिर ठीक से नहीं किया तो बात बिगड़ने वाली है उसका जो परिणाम है वो निकल आएगा कम समय में या फिर बहुत समय के उपरांत समझ आएगा। अपराध सहित जप इस पर लड़ने की आवश्यकता नहीं । 844 स्थानों से जप तो नहीं लेकिन कुछ विचार विमर्श या फिर इष्टगोष्ठी हम कर रहे हैं आध्यात्मिक आदान प्रदान का सत्र हम कर रहे हैं। इसमें विचार-विमर्श या विचारों का मंथन हुआ या चिंतन बैठक। इस बैठक में जो भाषांतरण जो कर रहे हैं वह भी कुछ खास टंकण कर ही रहे हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। तो अब आप इसको याद रखिए निर्णय हो गया एतनिनिर्विद्यामानानमिच्छतामकुतोभयम्। योगीना नृप निर्णितं हरेर्नामानुकिर्तनम।। (श्रीमद भागवतम 2.1.11) अनुवाद : हे राजन महान अधिकारियों का अनुगमन करके भगवान के पवित्र नाम का निरंतर कीर्तन उन समस्त लोगों के लिए सफलता निसंशय तथा निर्भीक मार्ग है जो समस्त भौतिक इच्छाओं से मुक्त है अथवा जो समस्त भौतिक भोगो के इच्छुक हैं, और उन लोगों के लिए भी जो दिव्य ज्ञान के कारण आत्मतुष्ट है ऐसा भागवत में भी कहां है हे राजन् शुकदेव गोस्वामी कर रहे परीक्षित महाराज को, की योगी की सभा हुई होगी और उसमें निर्णय निकाला हैं। हरेर्नामानुकिर्तनम हरि नाम का कीर्तन हो तो यह पहले भी वैसे इष्टगोष्टी हो चुकी है तो यह बात आपके सामने सिद्ध हो चुकी है यह निर्णय पहले ही हो चुका है। तो हम विचार कर ही सकते हैं और हमने विचार किया भी कितना महत्वपूर्ण है यह जप । इसे गंभीरता से लीजिए जप ठीक से कीजिए ध्यानपूर्वक कीजिए प्रेम पूर्वक कीजिए। जप को अपराध से टालिये हमने जप किया और चार नियमों का पालन नहीं किया तो कैसे होगा। फिर वह जप कैसे होगा। पहले पूछा था कि जप अगर ठीक से, जप ठीक से करोगे तो बाकी सब ठीक हो जाएगा। लेकिन चार नियमों का पालन नहीं किया तो जप ठीक से होगा, ऐसा संबंध भी है। जप ठीक करेंगे तो बाकी सब ठीक हो जाएगा। लेकिन जप ठीक करने के लिए, सही ढंग से या विधि पूर्वक जप करने के लिए फिर हमको यह चार नियमों का पालन भी करना होगा। नहीं तो जप ठीक होने वाला नहीं है, नहीं है, नहीं है। और जप भी कर रहे हैं और अपराध भी कर रहे हैं, नाम अपराध कर रहे हैं जप भी कर रहे हैं प्रात:काल में और दिन में अपराध कर रहे हैं। धड़ाधड़ धड़ाधड़ अपराध हो रहे हैं। पग पग पर अपराध ही अपराध, दस नाम अपराध हो रहे हैं। जप भी कर रहे हैं और किसी भक्त ने कहा... बगल में हमने मोबाइल भी रखा हुआ है, समय-समय पर, देखने के लिए की संसार में क्या चल रहा है। यहां एक हाथ में जपमाला है और दूसरे हाथ में मोबाइल भी है, या बगल में ही, या जेब मे ही है। एक भक्त ने तो कहा यह, 11 वा अपराध है हरि नाम के प्रति। दस अपराध तो है ही, वह कह रहे थे की भविष्य में जब इसकी पुनरावृति होगी को तो इस अपराध को 11 वा अपराध के रूप में शामिल करना होगा। 11 वा अपराध क्या है, क्या है? जप करते समय मोबाइल का भी इस्तेमाल करना। या बीच-बीच में हम याद करते हैं... तो जप ठीक से करने के लिए फिर दस अपराध या फिर यह 11वां अपराध इससे बचना होगा। फिर वैष्णव अपराध का तो क्या कहना वह तो बड़ा जबरदस्त अपराध हो जाता है। जब हम वैष्णव अपराध करते हैं, हाथी क्या... हाथी, हाथी माता जब किसी अच्छी तरह से बनाए हुए बगीचे में हमने हाथी को घुसा दिया, या फिर हाथी ने प्रवेश किया तो सत्यानाश करेगा कि नहीं सब उध्वस्त करेगा। अपने इतने दिन की मेहनत बेकार गई। हम लोग जब जप करते हैं, तो जप करने वालों की तुलना किसान के साथ की गई है। किसान क्या करता है, वह बीज बोता हैं खेत में। वैसे खेत को पहले तैयार करता है बीज बोने के लिए। गर्मी के दिनों में वर्षा आने से पहले मशागत, खेत की जुताई करता है, फिर बीज बोता है। बीज बोने के बाद फिर क्या करना होता है । श्रवण कीर्तन जले करेन सिंचन। (चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 19.142) कीर्तन श्रवण के जल से उसका सिंचन करता है। फिर खाद या उसको जल पिलाता है। बीज बोए हैं और कुछ सिंचन हो रहा है श्रवण कीर्तन का, या किसान जो भी खाद और जल पिला रहा है तो जो बीज बोया था वह उगता है और फिर क्या होता है कुछ उगता है कि नहीं? देखो जब हम आते जाते देखते हैं तो हमारी फसल तो कम है लेकिन जो बाकी घास फूस है वह अधिक है ऐसा होता है। फिर क्या करते हैं जो घास है जिसे हमने उगाया नही जो जबरदस्ती आ गया है, उसको उखाड़ना होता है। तो हमारे जीवन में भी कई सारे अनर्थ आ जाते हैं। तो अनर्थ हो से उनको उखाड़ के फेंकना होगा अनर्थ को। अनर्थ निवृत्ति शात...। नही तो आपने देखा ही होगा दो किसान है दोनों के खेत अगल बगल में है और एक ने जो उगा हुआ घास है उसको उखाड़कर फेंक दिया । उसकी फसल बहुत बढ़िया और अनाज या धान जो है प्रचुर मात्रा में उसको मिलता है । और दूसरे के कुछ थोड़ा ही मिलता है धान । खेत उतना ही है, अगल बगल में ही है। लेकिन एक किसान को इतना सारा धान और दूसरे को उससे आधा भी नहीं है सिर्फ दस प्रतिशत। क्यों ?क्योंकि उसने मेहनत नहीं की। तो इस तरह हम जो जप करने वाले भक्त हैं उनकी तुलना माली के साथ या किसान के साथ की है मालाकार । चैतन्य महाप्रभु भी स्वयं को मालाकार कहते हैं। हम जो बात कर रहे हैं तो बाड लगाना भी होता है। बाड लगाना नहीं हुआ तो फिर बकरी आएंगी, और कौन आएगा, हम तो हाथी की बात कर रहे थे फिर हाथी ही आया तो सब बिगाड़ करेगा। हरि हरि ! तो यह वैष्णव अपराध की तुलना हाथी को प्रवेश कर करा दिया हमने। तो फिर वह हाथी जैसी हालत करेगा उस खेत की, वैसा ही हमारे खेत की। हमने बीज बोया और उसका सिंचन भी किया या फिर हमने उस घास फूस को उखाड़ कर भी फेका है कि नहीं जो अनर्थ है । और फिर अपराध भी जो हमने हाथी को भी आने दिया। वह है वैष्णव अपराध जब वैष्णव अपराध किया तो पूरा पानी फेर दिया। यह सारे प्रयास विफल हो जाएंगे। हरि हरि! फिर धीरे-धीरे क्या होगा वैष्णव अपराध किया तो नाम में जो रुचि अभी अभी जो कुछ हो रहा था, कुछ आस्वादन हो रहा था कुछ रुचि आ रही थी तो हम लोग ऐसी व्यवस्था है, ऐसा शास्त्र है ऐसा ही होता है उसकी रुचि कम होगी। क्यों.. उसकी रुचि कम होगी जप मैं । होना तो चाहिए नामें रुचि, जीवे दया, वैष्णव सेवन ।। तीन बातें एक साथ कही है। नाम में रुचि हो जीव दया जीवो पर दया, इसीलिए हम प्रचार करते हैं तो प्रचार के पीछे क्या भाव होता है दया भाव होता है । दया नहीं तो फिर हम प्रचार नहीं करेंगे । तो नाम में रुचि हो जीवो पर दया हो और वैष्णवो की सेवा हो। वैष्णवो की सेवा होगी तो नाम में रुचि बढ़ेगी । जीवो पर दया है तो उसे भी भगवान हम पर अधिक कृपा करेंगे । नाम में रुचि बढ़ेगी, लेकिन ना तो जीवो पर दया है ना तो हम लोग प्रचार करते हैं । ना तो हम वैष्णव की सेवा करते हैं । या फिर अपराध होगा तो उसका परिणाम क्या होगा नाम में रुचि नहीं होगी या जो भी थी वह भी मिटेगी हटेगी आच्छादित होगी छिपेगी । और ऐसा कही यो को देखा है ऐसा होते हुए लेकिन ये नही मैं अपराधी भी करूंगा और नाम में रुचि भी होगी , बढ़ेगी ऐसा कभी होता नहीं है। तो नाम में रुचि बढ़ाने के लिए मुझे चार नियमों का पालन भी करना है और 11 नाम अपराधों से बचना भी है। वैष्णव अपराध से बचना होगा । और जप नहीं किया तो ,या जप किया लेकिन श्रील प्रभुपाद के ग्रंथ वगैरह नहीं पढ़े, तो जप ठीक से होगा? लक्ष्य तो है जप। कौन सा कार्य ठीक करने से सब कुछ ठीक हो जाएगा तो वह हैै जप। हरी हरी ! जो श्रवण कीर्तन के समय हम लोग सो ही गए तो कही हुई बातें ऐसे ही ऊपर से निकल जाएगी । फिर प्रभुपाद के ग्रंथों का अध्ययन, अध्ययन मैंने कहा मतलब प्रभुपाद के ग्रंथ केवल अध्ययन ही नहीं करना चाहिए उसका अभ्यास करना चाहिए। एक होता है पढ़ना और दूसरा होता है उसका अभ्यास करना । श्रील प्रभुपाद के ग्रंथों का, हमारे गौड़िय वैष्णव आचार्यों के ग्रंथों की शिक्षाएं उनका अभ्यास करना होगा। सिर्फ पढ़ना नहीं है उसकी टिप्पणियां भी लिखने हैं, पढ़कर कुछ विचार भी करना है। कुछ समझ नहीं आया तो औरों से पूछना है यह पढ़ा था मैंने लेकिन कुछ समझ नहीं आया यह सुना था मैंने लेकिन कुछ समझ नहीं आया। इसको थोड़ा पुनः समझाइए यह अभ्यास हुआ । विषयो की गहराई मे जाना इसको अभ्यास कहते हैं । अभ्यास किसको कहते हैं ? पुनः पुनः करेंगे तो उसको अभ्यास कहते हैं। यह नहीं कि हमने पढ़ लिया भगवद गीता पढ़ लिया। एक ही बार पढ़नी होती है क्या तो फिर वह पढ़ना हुआ। अगली बार क्या करो उसका अभ्यास करो तीसरी बार अभ्यास करो। विषयों की गहराई में जाइए। हर बार हमको अधिक अधिक समझ में आएगा। यह जो रहस्यमई बातें हैं, गोपनीय विचार या विषय वस्तु है अधिक अधिक ,अधिक ध्यान देंगे अधिक चिंतन करेंगे तो दिव्य ज्ञान हृदय प्रकाशित। अधिक अधिक ज्ञान होगा तो इस तरह फिर जप ठीक से करना चाहिए जप ठीक करोगे तो बाकी सब ठीक हो जाएगा। किंतु जप ठीक करने के लिए हमको और भी कहीं बातें हमें करनी है। उनको भी ध्यान में रखते हुए ।हरि हरि ! क्या हमको बनना है कृष्ण भावना भावित बनना है यह हमारे जीवन का एक लक्ष्य है । भगवान की कृपा से हम ऐसे परंपरा से जुड़े हैं गौड़ीय वैष्णव परंपरा और फिर अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना भावित संघ के संपर्क में आए हैं। और यहां हम लोग, हम लोग गंभीर हैं यह कृष्ण भावना स्वीकारने के लिए । गंभीरता प्राप्त करिए। कृष्ण भावना अमृत कोई अन्य व्यापार नहीं है । कृष्ण भावना अमृत क्या है ? अन्य व्यापार नहीं है यह एक मुख्य व्यापार है। बाकी सब थोड़ा शरीर है तो उसके पालन-पोषण के लिए परिवार है तो कुछ करना पड़ता है फिर वर्णाश्रम धर्म का पालन कहो अर्थव्यवस्था के लिए कुछ अर्थव्यवस्था दुनिया वालों को करना पड़ता है। पर वह दुय्यम स्थान पर है मुख्य तो है कृष्ण। कृष्णा मध्य मे है। हरि हरि! जब उठते हैं तो 2 मिनट हम लोग क्या करते हैं राम-राम कर लेते हैं और सोने के पहले भी, हम केवल उठने के उपरांत नहीं किंतु सोने के पहले भी हम क्या करते हैं और 2 मिनट राम-राम कर ही लेते हैं। फिर हुआ कि नहीं और क्या ऐसे कहने वाले लोग आपको मिले होंगे। 2 और 2 कितने हो गए 4 मिनट ले लो भगवान 4 मिनट तुम्हारे लिए ।मेरे लिए कितने 23 घंटे 56 मिनट मेरे लिए परिवार के लिए देश के लिए आर्थिक विकास के लिए, और भगवान के लिए कितने एक दो तीन और कितने चार मिनट ले लो भगवान और खुश हो जाओ। क्या चार मिनट दे रहा। अधिकतर ऐसे ही कुछ विचारधारा है अगर कुछ लोग रविवार को चर्च में जाते हैं शुक्रवार को नमाज पढ़ने के लिए जाते हैं। या फिर कुछ लोग कुंभ मेला 12 साल में एक बार जाते हैं कुंभ मेले में जो भी पाप किया डुबकी लगाई पाप से मुक्त हो गए ।और बाद में पुनः तैयार हो गए पाप करने के लिए। क्यों की पुनः क्या करना है, गंगा में स्नान करना ही है। तो इतना ही करने वाले लोग भी है । लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं है। इसलिए प्रभुपाद कहां करते थे 1 दिन में 24 घंटे । ठीक है इतना तो सोचो इतना तो करो जो भी आज कहां गया । पुनः मिलेंगे हरे कृष्ण गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!

English

15 May 2020 Krsna conscious is not a side business! Hare Krishna! sundar te dhyana ubhe vite vari kar katavari theuniya Beautiful, it is the object of my meditation / standing on a brick, with hands placed on His waist. tulasi har gala kanse pitamber aawde nirantar techi rup A garland of "tulasi" leaves adorns his neck / yellow silken cloth, wrapped around his waist. I adore this image, unceasingly makr kundale talapate shravani kanthi kaustubh mani virajat Crocodile shaped earrings, shine brilliantly by his ears / a jwell named "Kaustubha" regally adorns the necklace around his neck. tuka mahne maze hechi sarv sukha pahin shrimukh aawadine Tukaram Maharaj says, this is my only happiness. I will visualize the beautiful face of this form of the Lord, with enthusiasm. (Sundar te dhyana, Marathi Abhanga, by Tu-karam Mahārāja) I am in Pandharpur and hence I started to sing the glories of Pandharinath Vitthala. We sing and remember many bhajans of ācāryas. Srila Prabhupada addressed Tukaram Mahārāja as Tukaram Acārya. There are many abhangas composed by Tukaram Acārya which we can learn and sing. If we can sing Bengali songs then why can't we sing Marathi songs? Hindi speakers can also read Marathi abhangas. Among all other abhangas, this one is very famous and Maharashtra and Pandharpur kirtana teams always sing this abhanga. You can also learn this abhanga and meditate on at the time of chanting. Lord Vitthala is Krsna. He is beautiful, standing with His hands placed on His waist. He is waiting for all of us to meet Him. He also wants to meet us. What do you think? Only you want to meet the Lord and the Lord doesn't want to meet you? This desire has to be there from both sides. If the Lord doesn't want to meet someone or see someone's face, then can you meet Him? No! But Lord Vitthala wants to meet us. Lord is dhyey, noticeable. How is the Lord? He wears the Tulasi garland. It reminds us of Tulasi. Tulasi is very dear to the Lord that's why He wears her around His neck. Tulasi is there on the lotus feet and on the bhoga plate of the Lord. dhupa, dipa, naivedya, arati, phulana kiye varakha varakhani chapanna bhoga, chatrisa byanjana, bina tulasi prabhu eka nahi mani Translation: You (Shree Tulasi) engladden and shower Your Rain of Mercy upon one who offers You some incense, a ghee lamp, naivedya, and arati. The Lord does not care for even one of fif-ty-six varieties of cooked food or thirty-six different curries offered without Tulasi Leaves. ('Bina Tulasi', Shree Tulasi-Arati, Chandrasekhara Kavi) If Tulasi is not offered to the Lord then He is not going to even look at your offerings. This way we remember Tulasi also. What type of clothes does the Lord wear? Lord Vitthala, Krsna and all Visnu tattvas wear pitambar. There is meditation on various ornaments of Lord Vitthala. He wears crocodile shaped earrings. Effulgence of the earrings of the Lord comes on His face. When the Lord moves, His earrings also move and we get better darsana of the Lord. When we go to Balaji or Sri Rangam, the Pujari shows us the various limbs of the Lord with the lamp in his hand. We are chanting while meditating. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare This is mantra meditation. The holy name of the Lord takes us to the form of the Lord and we can meditate on each and every limb of the Lord. When we chant Hare Krishna, we pray to the Lord to attract us by His beauty. As we chant and meditate on the form of the Lord, then we can remember the Lord in detail. Not only earrings, but see the effulgence of the earrings on the Lord's face. bahu-kotị candra jini' vadana ujjvala gala-deśe bana-mālā kore jhalamala Translation: The brilliance of Lord Caitanya's face conquers millions upon millions of moons, and the garland of forest flowers around His neck shines. (6 verse, Gaura Arati) The glow of Lord's face increases because of those effulgent earrings. Hence Tukaram Mahārāja is saying,' I am taking darsana of Pandurang happily. In this darsana I get happi-ness. I am taking the Lord's darsana with love.' Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare I was thinking, what is that service or work performed by which everything else gets all right and if that vidhi or service is done improperly, everything else will be spoiled? What is the answer for this? Many are writing japa and kirtana, śravana, attentive chanting. Dev-otees over here are also saying śravana and kirtana. It is the injunction of the śastras. harer nāma harer nāma harer nāmaiva kevalam kalau nāsty eva nāsty eva nāsty eva gatir anyathā Translation: In this age of quarrel and hypocrisy, the only means of deliverance is the chanting of the holy names of the Lord. There is no other way. There is no other way. There is no other way. (CC Madhya-lila 6.242) If you chant properly, everything else will be all right. But if we don't chant or don't chant properly then everything will be spoiled sooner or later. We are here from 843 locations. What is the conclusion of this Dharma-sabha? Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare We need to remember this. This is the answer. etan nirvidyamānānām icchatām akuto-bhayam yogināṁ nṛpa nirṇītaṁ harer nāmānukīrtanam Translation: O King, constant chanting of the holy name of the Lord after the ways of the great authori-ties is the doubtless and fearless way of success for all, including those who are free from all material desires, those who are desirous of all material enjoyment, and also those who are self-satisfied by dint of transcendental knowledge. (ŚB 2.1.11) Srila Sukadev Goswami has said to Mahārāja Parikshit. Yogis have concluded that there should be constant chanting of the holy name of the Lord. This is already concluded. We don't need to think about it again. But we must think how important this chanting is. Take it seriously. We should chant attentively, offencelessly and with love. If we chant, but don't follow the four regulative principles properly then can we chant at-tentively? No! For proper chanting, we must follow the 4 regulative principles otherwise our japa will not improve. We are chanting and offences are also taking place. We are chanting and have kept a mobile near us to see what is going on in the world. One devotee said that using mobile while chanting should be considered as an 11th offence against the holy name. We need to save ourselves from 11 offences. Then what to say about vaiśnava aparadha? That is a very powerful offence. It is like allowing an elephant in a well main-tained garden. He will destroy everything. mālī hañā kare sei bīja āropaṇa śravaṇa-kīrtana-jale karaye secana Translation: When a person receives the seed of devotional service, he should take care of it by becom-ing a gardener and sowing the seed in his heart. If he waters the seed gradually by the pro-cess of śravaṇa and kīrtana [hearing and chanting], the seed will begin to sprout. (CC Madhya-lila 19.152) A chanter is also compared with a farmer. A farmer prepares a farm before he sows the seed. He waters that seed with the help of śravana and kīrtana. When that seed grows then don't other things grow around it? Sometimes weeds also grow which need to be pulled out. In our life also, many offences arise. We need to remove those offences. You must have seen two farms next to each other. One farmer gets good crops and the other doesn't. Why? Because he didn't work hard. In the same way, chanters are compared to gardeners or farmers. Then there is fencing also and if fencing is not there and an elephant comes in the farm then he would destroy everything. Similarly, Vaiśnava aparadha has been com-pared to an elephant entering the farm of our heart. When we commit vaiśnava aparadha then all our attempts will turn fruitless and as a result, we will lose taste in our chanting. nama ruci, jiva doya, vaiśnava seva We must attain taste in chanting. We should be compassionate towards people and share the holy name. If we don't have compassion for others, we won't preach and we should serve the vaiśnavas. Jiva dova and vaiśnava seva will increase the taste in chanting. If we are not compassionate or not preaching and if we are not serving vaiśnavas or committing offence to vaisnavas, then we will lose taste in chanting. We have seen this happening in many cases. Offences and taste in chanting won't go simultaneously. To increase the taste in chanting, we have to follow the four regulative principles. We need to avoid the 11 of-fences and study Prabhupada books. We just don't have to read, but we should study Prab-hupada books and ācāryas books. We have to write notes, contemplate and ask questions if we don't understand anything. We must go deeper into the subject matter. We have to repeat it. We need to study again and again. We will understand more confidential things as we read every time. cakṣu-dān dilo jei, janme janme prabhu sei, divya jñān hṛde prokāśito prema-bhakti jāhā hoite, avidyā vināśa jāte, vede gāy jāhāra carito Translation: He opens my darkened eyes and fills my heart with transcendental knowledge. He is my Lord birth after birth. From him ecstatic prema emanates; by him ignorance is destroyed. The Vedic scriptures sing of his character. (Verse 3, Song 1, Guru Vandana, Narottama Dasa Thakura) We need to chant attentively. As we chant properly then everything else will be fine. But to chant japa properly also, we need to do many things properly. To become Krishna Con-scious is the goal of our life. We are associated with Gaudiya Vaiśnava Parampara and IS-KCON by the mercy of the Lord. We should take Krishna Consciousness seriously for Krishna conscious is not a side business. It is a main business. We have a physical body and a family. We need to maintain it or follow varnaśrama, but that is secondary. Krsna should be in the centre. When we get up and before sleeping, we chant Rama Rama for 2 mins. We give just 4 minutes to the Lord and rest of our time , 23 hours 56 minutes for ourselves or family or country. A few go to church only on Sundays or mosques on Fridays. Some go to Kumbha mela once in 12 years. They go for a dip in the Ganga River to get rid of all sins and again commit sins. But that is not the case with us. Therefore Prabhupada has said, we should be Krishna conscious 24 hours a day. Think on this. Will meet again. Hare Krishna! Gaura premanande hari haribol!

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Наставления после совместной джапа сессии 15 мая 2020. СОЗНАНИЕ КРИШНЫ - ЭТО НЕ ВТОРОСТЕПЕННОЕ ДЕЛО! Харе Кришна! сундар те дхьяна убхе вите вари кар катавари тхеунйа Прекрасный объект моей медитации стоящий на камне, с руками, положенными на Свою талию. туласи хар гала кансе питамбер аавде нирантар течи руп Гирлянда из листьев туласи украшает его шею, желтая шелковистая ткань обернута вокруг Его талии. Я созерцаю этот образ постоянно. макр кундале талапате шравани канти каустубх мани вираджат Серьги в форме акул блестят и сияют в Его ушах, драгоценный камень"Каустубха" украшает ожерелье на шее. тука махне мазе хечи сарв сукха пахин шримух авадин Тукарам Махарадж говорит, что это мое единственное счастье. Я вдохновенно представляю прекрасный образ этой формы Господа. (Сундар те дхьяна, Маратхи Абханга, Тукарам Махарадж) Я нахожусь в Пандхарпуре и поэтому я начал прославлять Пандхаринатха Виттхалу. Мы воспеваем и помним много бхаджанов ачарьев. Шрила Прабхупада обращался к Тукарам Махараджу как к Тукарам Ачарье. Есть много абханг, составленных Тукарамом Ачарьей, которые мы можем выучить и воспевать. Если мы можем воспевать бенгальские песни, то почему мы не можем воспевать песни маратхи? Говорящие на хинди также могут воспевать маратхи абханги. Среди всех других абханг эта очень известна, и киртании махараштры и пандхарпура, всегда воспевают эту абхангу. Вы также можете выучить эту абхангу и медитировать на нее во время воспевания. Господь Виттхала это Кришна. Он прекрасен, стоит, положив руки на талию. Он ждет всех нас, чтобы мы встретились с Ним. Он также хочет встретиться с нами. Что вы думаете? Только вы хотите встретиться с Господом, а Господь не хочет с вами встретиться? Это желание должно быть обоюдно. Если Господь не хочет встречаться с кем-то или видеть чье-то лицо, тогда сможете ли вы встретиться с Ним? Нет! Но Господь Виттхала хочет встретиться с нами. Господь Всевышний, заметен. Какой Он Господь? Он носит гирлянду из Туласи. Это напоминает нам о Туласи. Туласи очень дорога Господу, поэтому Он носит ее на шее. Туласи находится на лотосных стопах и на бхога-чаше Господа. дхӯпа, дӣпа, наиведйа, а̄роти пхулана̄ кийе варакха̄ варакха̄ни чха̄ппа̄нна бхога, чхатриш́а бйан̃джана бина̄ туласӣ прабху эка на̄хи ма̄ни Перевод: Ты проливаешь милость на всех, кто предлагает тебе благовония, огонь, пищу, цветы или проводит арати. Господь не принимает пятьдесят шесть различных блюд или тридцать шесть подношений карри, если они предлагаются без листьев туласи. («Бина Туласи», Шри Туласи-Арати, Чандрашекхара Кави, стих 4) Если Туласи не предложена Господу, тогда Он не собирается даже смотреть на ваши подношения. Таким образом, мы также помним Туласи. Какую одежду носит Господь? Господь Виттхала, Кришна и вся Вишну таттва носят питамбар (дхоти). Существует медитация на различные украшения Господа Виттхалы. Он носит серьги в форме акул. Сияние сережек Господа касается Его лица. Когда Господь двигается, Его серьги также двигаются, и мы получаем лучший даршан Господа. Когда мы идем к Баладжи или Шри Рангам, Пуджари показывает нам части Господа с лампой в руке. Мы повторяем во время медитации: Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе Это мантра медитация. Святое имя Господа приводит нас к форме Господа, и мы можем размышлять над всеми частями Господа. Когда мы повторяем Харе Кришна, мы молимся Господу, чтобы привлек нас Своей красотой. Когда мы повторяем и размышляем о форме Господа, мы можем вспомнить Господа в деталях. Не только серьги, но видим сияние сережек на лице Господа. баху-коти чандра джини вадана уджжвала гала-деше бана-мала коре джхаламала Перевод: Лик Господа Гауранги сияет ярче миллионов лун. Так же ярко сияет находящаяся у Него на шее неувядающая гирлянда из лесных цветов. (6 стих, Гаура Арати) Из-за этих сияющих сережек сияние лица Господа увеличивается. Далее Тукарам Махараджа говорит: «Я с радостью принимаю даршан Пандуранги. В этом даршане я получаю счастье. Я принимаю даршан Господа с любовью». Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе Я размышлял, если служение или работа будут выполнены, тогда все остальное будет в порядке, а если это видхи или служение выполняется ненадлежащим образом, все остальное будет сделано неправильно? Какой ответ на это? Многие пишут в чате джапы, киртанам, шраванам, внимательное воспевание. Преданные здесь также говорят шраванам и киртанам. Это наставление шастр. харер нама харер нама харер намаива кевалам калау настй эва настй эва настй эва гатир анйатха Перевод: В этот век ссор и лицемерия единственным средством освобождения является воспевание святых имен Господа. Другого пути нет. Другого пути нет. Другого пути нет. (Ч.Ч. Мадхья-лила 6.242) Если вы будете правильно повторять, все остальное будет в порядке. Но если мы не будем воспевать или не будем воспевать правильно, тогда все будет испорчено рано или поздно. Мы здесь из 843 мест. Каков вывод этой Дхарма-сабхи? Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе Мы должны помнить это. Это ответ. этан нирвидйама̄на̄на̄м иччхата̄м акуто-бхайам йогина̄м̇ нр̣па нирн̣ӣтам̇ харер на̄ма̄нукӣртанам Перевод Шрилы Прабхупады: О царь, постоянное повторение святого имени Господа по примеру великих авторитетов избавляет от страха и сомнений и приводит к успеху любого — и того, у кого нет никаких материальных желаний, и того, кто жаждет материальных наслаждений, и даже того, кто, обладая трансцендентным знанием, черпает удовлетворение в самом себе. (Ш.Б. 2.1.11) Шрила Шукадева Госвами сказал Махарадже Парикшиту. Йоги пришли к выводу, что следует постоянно повторять Святое имя Господа. Вывод уже сделан. Нам не нужно думать об этом снова. Но мы должны думать, насколько важно это воспевание. Относитесь к этому серьезно. Мы должны воспевать внимательно, без оскорблений и с любовью. Если мы воспеваем, но не следуем четырем регулирующим принципам должным образом, можем ли мы воспевать внимательно? Нет! Для правильного воспевания мы должны следовать 4 регулирующим принципам, иначе наша джапа не улучшится. Мы воспеваем, и продолжаем совершать оскорбления. Мы воспеваем и держим рядом с собой мобильный телефон, чтобы увидеть, что происходит в мире. Один преданный сказал, что использование мобильного телефона во время воспевания должно рассматриваться как одиннадцатое оскорбление Святого имени. Нам нужно уберечь себя от 11 оскорблений. Тогда что сказать о вайшнава апарадхе? Это очень сильное оскорбление. Это все равно, что пустить слона в ухоженный сад. Он разрушит все. мали хана каре сеи биджа аропан̣а шраван̣а-киртана-джале карайе сечана Перевод: «Обретя семя преданного служения, необходимо заботиться о нем. Для этого нужно стать садовником и посадить это семя в своем сердце. Если регулярно орошать семя водой шраваны и киртана [слушания и повторения], то оно прорастет». (Ч.Ч. Мадхья-лила 19.152) Воспевающего также сравнивают с фермером. Фермер готовит ферму, прежде чем сеет семена. Он поливает это семя с помощью шраванам и киртанам. Когда это семя растет, разве вокруг него не прорастают другие растения? Иногда также растут сорняки, которые необходимо вырвать. В нашей жизни также происходит много оскорблений. Нам нужно устранить эти оскорбления. Вы, наверное, видели две фермы рядом друг с другом. Один фермер получает хороший урожай, а другой нет. Почему? Потому что он не работал усердно. Точно так же преданные сравниваются с садовниками или фермерами. Также есть и ограждение, и если там не будет ограждения, а на ферме появляется слон, он уничтожит все. Подобным образом, вайшнава-апарадху сравнивают со слоном, который входит на ферму нашего сердца. Когда мы совершаем вайшнава-апарадху, все наши попытки оказываются бесплодными, и в результате мы теряем вкус к воспеванию. нама ручи, дживадоя, вайшнава сева Мы должны получить вкус к воспеванию. Мы должны быть сострадательными к людям и распространять Святое имя. Если у нас нет сострадания к другим, мы не будем проповедовать, тогда мы должны служить вайшнавам. Джива дойа и вайшнава сева увеличат вкус к воспеванию. Если мы не будем сострадательны, не будем проповедовать, если мы не служим вайшнавам и совершаем оскорбления вайшнавов, тогда мы потеряем вкус к воспеванию. Мы видели это много раз. Оскорбления и вкус к воспеванию не могут быть одновременно. Чтобы увеличить вкус к воспеванию, мы должны следовать четырем регулирующим принципам. Нам нужно избегать 11 оскорблений и изучать книги Прабхупады. Нам не просто нужно читать, но мы должны изучать книги Прабхупады и книги ачарьев. Мы должны писать заметки, размышлять и задавать вопросы, если мы ничего не понимаем. Мы должны углубиться в предмет. Мы должны перечитать эти заметки. Нам нужно учиться снова и снова. Мы будем понимать больше сокровенных вещей, когда будем читать постоянно. чакху-дан дило джей, джанме джанме прабху сэй, дивья джнан хрде прокашито према-бхакти джаха хоите, авидйа винаша джате, веде гай джахара чарито Перевод: Он — мой господин жизнь за жизнью поскольку он наделил меня особым даром — божественным видением и открыл божественное знание в моем сердце. Из духовного учителя исходят потоки экстатической любви к Богу, благодаря чему он способен уничтожить невежество в наших сердцах. Его поведение безупречно и Веды прославляют его возвышенные качества. (Стих 3, Гуру Вандана Нароттамы Даса Тхакура в книге - Према Бхакти Чандрика) Мы должны воспевать внимательно. Когда мы будем воспевать правильно, все остальное будет хорошо. Но чтобы правильно повторять джапу, нам нужно делать много вещей правильно. Стать Сознающим Кришну - цель нашей жизни. Мы связаны с Гаудия-вайшнавской парампарой и ИСККОН по милости Господа. Мы должны серьезно относиться к Сознанию Кришны, потому что сознание Кришны не является второстепенным делом. Это главное дело. У нас есть физическое тело и семья. Нам нужно поддерживать их или следовать варнашраме, но это вторично. Кришна должен быть в центре. Когда мы просыпаемся или перед сном мы повторяем Рама Рама в течение 2 минут. Мы даем только 4 минуты Господу и оставшееся время, 23 часа 56 минут оставляем для себя, своей семьи или страны. Некоторые ходят в церковь только по воскресеньям или в мечети по пятницам. Некоторые посещают Кумбха-мела один раз в 12 лет. Они идут окунуться в реку Гангу, чтобы избавиться от всех грехов и снова продолжить совершить грехи. Но это неправильно для нас. Поэтому Прабхупада сказал, что мы должны сознавать Кришну 24 часа в сутки. Подумайте об этом. Встретимся снова. Харе Кришна! Гаура Премананде Хари Харибол! (Перевод Кришна Намадхан дас)