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जप चर्चा 13 मई 2020 हरे कृष्ण! श्री श्रीगुरु- गौरंङ्गौ जयतः। आप सभी का स्वागत है। भगवान के महाप्रसाद का हार अथवा महाप्रसादी माला आप अपने अपने घरों में, मंदिरों में पहन सकते हो। आराधना केवल भगवान की नहीं करनी है, आराधना भगवान के भक्तों की भी होनी चाहिए, फिर वह आराधना पूर्ण होती है। श्री विग्रहाराधन- नित्य- नाना-श्रृंगार तन मंदिर-मर्जनादौ (श्री श्रीगुर्वष्टक - श्लोक संख्या -३, श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर रचित) भगवान का श्रृंगार किया जाना चाहिए, हार पहनाने चाहिए, वैसे पहनाने ही होते हैं। लेकिन साथ ही साथ भक्तों के भी श्रृंगार की व्यवस्था या श्रृंगार की सामग्री उपलब्ध करा सकते हो या उन्हें माला पहना सकते हो। आज जब मैं पंढरपुर में राधा पंढरीनाथ की आरती कर रहा था। भगवान की आरती उतारने के उपरांत फिर हम लोग क्या करते हैं? आपने कभी नोट किया है या सोचा है, सोचा नहीं होगा इसलिए बता रहा हूँ, पुजारी आरती में उपस्थित भक्तों या वहां जो दर्शन मंडल होता है, उनकी आरती उतारता है।भगवान को पुष्प अर्पित करने के पश्चात वह भक्तों की ओर मुड़ता है और तत्पश्चात भगवान को अर्पित किए गए पुष्पों को वह भक्तों को भी अर्पित करता है।इस तरह वह भगवान और भगवान के भक्तों अथवा दोनों की आराधना या भगवान के प्रिय जीव भक्तों की आराधना करता है। इसको भूलिए नहीं, हमेशा इसका स्मरण रखिये (ऑलवेज रिमेंबर दिस)। उनका भी स्मरण कीजिए। भगवान के भक्त,आचार्य, गुरुवृन्द, संत मंडली भी प्रातः स्मरणीय हैं और प्रातः आरधनिये भी हैं। आज लगभग 800 स्थानों से जप हो रहा है। हरि! हरि! ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।। (मंगलाचरण- श्री गुरु प्रणाम मंत्र) हमारे संस्थापक आचार्य ने हम सभी की चक्षुरुन्मीलितं अर्थात आँखे खोली हैं। उन्होंने हमारी आंखों को उन्मीलितं किया। श्रील प्रभुपाद ने अपने एक शिष्य को पत्र लिखा( मेरे पास वो डिटेल नहीं है) परंतु मैं उस पत्र का एक अंश आपके साथ शेयर करना चाहता हूं। मैं उसी के विषय में सोच रहा था कि प्रभुपाद यह स्टेटमेंट लिख कर हमारी आंखे खोल रहे हैं और साथ ही वह संसार का भविष्य( फ्यूचर ऑफ दिस वर्ल्ड) भी बता रहे हैं। प्रभुपाद किसी शिष्य को लिख रहे हैं कि मैं तुम्हारी चिंता को समझ सकता हूं। कैसी चिंता? यह आधुनिक सभ्यता इस संसार को बिगाड़ रही है उसके संबंध में तुम्हारे जो विचार हैं, उसे मैं समझ सकता हूं। हाँ, यह बात सच है कि शहर भयानक/ भयंकर या भय उत्पन्न करने वाले या कष्टदायक होंगे। जैसे जैसे कलियुग में अधिक अधिक तथाकथित प्रगति होगी वैसे वैसे संसार का बहुत बुरा हाल होने वाला है। श्रील प्रभुपाद यह बात 50 वर्ष पूर्व कह कर गए थे। यह सच हो रहा है या नहीं ? (वहाँ उपस्थित भक्तों से पूछते हुए) श्रील प्रभुपाद, हमें एक ही बात में बहुत कुछ कह रहे हैं। आधुनिक सभ्यता में भ्रष्टाचार का प्रधान्य होगा और लोग अधिक अधिक पाप करेंगे। भ्रष्टाचार के साथ अनाचार, दुराचार और व्यभिचार होगा। हरि! हरि! पापपूर्ण कर्म (सिनफुल एक्टिविटीज) अर्थात मांस भक्षण, नशा पान या अवैध स्त्री पुरुष संग होगा और जुआ खेला जाएगा। जैसे-जैसे यह अधिक अधिक होता जाएगा, लोग समझेंगे कि हमने प्रगति की अर्थात हम प्रगति कर रहे हैं। पहले तो आपको शराब खरीदने के लिए दुकान पर जाना पड़ता था परंतु कल का ही समाचार है सरकार ने और सुप्रीम कोर्ट ने एक नया कानून बनाया है- शराब की होम डिलीवरी हो सकती है। होम डिलीवरी समझते हो ? जैसे अखबार की होम डिलीवरी हो ही रही थी और अब शराब की होम डिलीवरी होगी। हरि! हरि! क्या कहा जाए? यह कलि के चेले वैसे भी पापाचारी हैं। वे शराब पीकर क्या करेंगे? ( वहाँ उपस्थित भक्तों से पूछते हए...) पाप कम करेंगे या अधिक करेंगे ? शराब के नशे में लोगों को सत और असत का विवेक नहीं रहेगा। हरि! हरि! विवेकहीन- एक शराबी विवेक हीन बनता है। विवेक का अर्थ समझते हो? जो सत और असत् का पता लगा सकता है, उसे विवेकी या विवेकानंद भी कहते हैं। जो विवेक के आनंद में रहता है... लेकिन जब शराबानंद अर्थात जब लोग शराब पी के आनंद लेंगे तब वे विवेकहीन होंगे.... हरि! हरि! विवेकहीन होने के कारण ही ऐसा संसार और ऐसी सरकारें और ऐसे नेता हैं, तो क्या होगा इस संसार का..? श्रील प्रभुपाद लिख रहे हैं कि इससे ज्यादा भ्रष्टाचार, ज्यादा पाप होंगे। घर बैठे लोग अधिक शराब पीएंगे और अश्लील सिनेमा... पहले तो आपको सिनेमा घर जाना पड़ता था, अब लोगों ने अपना घर ही सिनेमाघर अथवा होमथिएटर बना दिया है। अब सिनेमा घर जाने की आवश्यकता नहीं, घर बैठे बैठे सिनेमा की होम डिलीवरी आपके घर पर होगी। सिनेमा को घर तक पहुंचाएंगे, तत्पश्चात देखो सिनेमा में क्या होता है ? सिनेमा में काम का प्रदर्शन होता है। काम के बाद फिर बॉक्सिंग ढिशूम ढिशूम लड़ाई होती है। ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।सङ्गात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोभिजायते।। ( भगवतगीता२.६२) अनुवाद:- इन्द्रियविषयों का चिंतन करते हुए मनुष्य की उनमें आसक्ति उत्पन्न हो जाती है और ऐसी आसक्ति से काम उत्पन्न होता है और फिर काम से क्रोध प्रकट होता है। काम का प्रदर्शन होता है और फिर काम का परिणाम क्या होता है? क्रोध। प्रभुपाद लिखते हैं पहले बड़े भैया मिस्टर लस्ट ने जन्म लिया, कामात्क्रोधोभिजायते .. काम से क्रोध उत्पन्न होता है। बड़ा भाई अथवा अग्रज कौन है ? काम बड़ा भाई है। उसके उपरांत कामात्क्रोधोभिजायते .. फिर क्रोध उत्पन्न होता है, छोटे भाई मिस्टर एंगर ने जन्म लिया। ये और भी भाई हैं, कुल छह भाई हैं। हरि! हरि! संसारभर में फिजिक्स( भौतिक विज्ञान) में पढ़ाया जाता है कि एवरी एक्शन हैज ए अपोजिट रिएक्शन... अंग्रेजी भाषा में भी यह सिद्धांत बताया जाता है जिसे सारे विद्यार्थियों को कंठस्थ भी करना होता है, परीक्षा के प्रश्न के उत्तर में ऐसा लिखना भी होता है कि एवरी एक्शन हैज एन अपोजिट रिएक्शन... क्रिया में उतनी ही मात्रा में इंटेंसिटी थी, उतना ही उसका परिणाम,किंतु उसका फल विपरीत भी हो सकता है। यहां जो चर्चा हम लोग कर रहे हैं बाइबल में लिखा है एज यू सोव, सो शैल यू रीप अर्थात जैसा बोओगे वैसा पाओगे। हिंदी में कहते हैं कि "पाप के बीज बोओगे तो उसका फल भी चखना होगा।" पाप की वासना आपको छोड़ेगी नहीं, आपका पीछा जन्म जन्मांतर के लिए करती रहेगी। इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में वह पाप आकर अपना परिणाम या फल दिखाएगा अथवा चखाएगा। प्रभुपाद ऐसा लिख रहे हैं कि लोग अधिक से अधिक पापी होंगे और पाप का फल एक उपद्रव है। जैसा कि भागवतम् में कलियुग का लक्षण समझाते हुए कहा है। प्रायेणाल्पायुषः सभ्य कलावस्मिन् युगे जनाः। मन्दाः सुमन्दमतयो मन्दभाग्या ह्युपद्रताः।। ( श्री मद भागवतम १.१.१०) अनुवाद:- हे विद्वान, कलि के इस लौह - युग में लोगों की आयु न्यून है। वे झगड़ालू, आलसी, पथभ्रष्ट, अभागे होते हैं तथा साथ ही साथ सदैव विचलित रहते हैं। उपद्रुता अर्थात उपद्रव। इस कलि के लोग मंद होंगे और हैं भी। जब उन्हें मंदिर की ओर आना होता है तो उनकी गति और भी मंद हो जाती है। यदि कहीं और या क्लब में जाना होता है तो वे बड़ी तेजी से दौड़ पड़ेंगे लेकिन मंदिर की ओर आना है, तब वे सोचेंगे। मन्दाः सुमन्दमतयो मन्दभाग्या ह्युपद्रताः.. इस संसार में उपद्रव बढ़ेंगे और बढ़ने वाले हैं। श्रील प्रभुपाद किस आधार पर ऐसा कह रहे हैं। कलियुग में ऐसा ही होता है, कलियुग के लक्षण ही ऐसे हैं। प्रभुपाद एज इट इज (ज्यों का त्यों) बता रहे हैं।कलि का जैसा भविष्य होता है, श्रील प्रभुपाद वैसा ही लिख रहे हैं और अनुस्मारक (रिमाइंडर) दे रहे हैं। यह निसर्ग का आदेश है, निसर्ग में ऐसी ही व्यवस्था है कि यह पाप करोगे तो इसका परिणाम/ फल ऐसा- ऐसा होगा। भगवान ने ऐसे नियम बनाए हैं, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा या भगवान ने ऐसे नियम बनाकर सृष्टि हमें दी है। हरि! हरि! इस सृष्टि को कैसे चलाना होता है या इस सृष्टि के साथ कैसे डील करना चाहिए। भगवान ने उसके बारे में किस रूप में समझाया है? सृष्टि को समझने के लिए सृष्टि के साथ कैसा लेनदेन और कैसा व्यवहार करना चाहिए? हमारा तालमेल या संतुलन सृष्टि के साथ कैसा होना चाहिए? भगवान ने समझाया है या नहीं.. कहाँ पर समझाया है...( वहाँ उपस्थित भक्तों से पूछते हुए... ) केवल भगवतगीता में नहीं.. अपितु सभी शास्त्रों में समझाया है। इसलिए हम सभी शास्त्रों को भी क्या कहते हैं? मैन्युअल(नियमावली) । जब माइक्रोफोन बनता है। तब माइक्रोफोन की बिक्री भी होती है। हम जब माइक्रोफोन खरीदते हैं, तब दुकानदार उसके पैकेट में उसका मैन्युअल (नियमावली) भी देता है कि उसे कैसे असेम्बल करना है या उसे कैसे चार्ज करना है या उसे कैसे मेन्टेन करना है। यहाँ तक कि टॉयलेट में सावधानियों के लिए उस पर स्लिप चिपकी होती है। भगवान ने पर्मानेंट रूप से सृष्टि बनाकर हमें उसमें डाल और भेज दिया हैं। साथ ही साथ हमें मैन्युअल (नियमावली) भी दे दिया है कि सृष्टि को खोलने के पहले या सृष्टि का उपयोग करने से पहले या इसके साथ व्यवहार करने से पहले मैन्युअल (नियमावली) पढ़ो। अन्यथा आप समस्या में आ जाओगे। यह प्रकृति का ही आदेश (नेचर आर्डर) है जो यह संसार ऐसी उलझनें अनुभव कर रहा है। इस पृथ्वी पर जितने भी मनुष्य हैं लगभग सौ प्रतिशत आबादी (ऑलमोस्ट हंड्रेड परसेंट ऑफ द पॉपुलेशन) सफ़र कर रही है अथवा झेल रही है। इस संसार में रहना और जीना यह भी एक सफ़र है। जीवन (लाइफ) एक यात्रा है लेकिन आजकल लोगों की यात्रा कैसी चल रही है, पूछो नहीं, यात्रा स्टॉप ही हो गई है। किसी ने एक व्यंग्य चित्र या कार्टून बनाया। साधारणतया एक चिड़ियाघर (ज़ू) में पशु-पक्षियों को एक बॉक्स में या कमरे में या किसी पिंजरे में बंद करके रखा जाता है और जो लोग बाहर स्वतंत्र होते हैं, वे घूमते फिरते आकर उनको देखते हैं और कुछ फोटो भी खींचते हैं और तोते को देखकर कहते है 'बाय, पैरेट"। साधारणतया ऐसी ही स्थिति हुआ करती थी लेकिन उस व्यंग्य चित्र बनाने वाले ने दूसरा ही चित्र दिखाया। उसने इस लॉक डाउन की स्थिति को दिखाया है। इसमें उल्टा हो रहा है कि सारे मनुष्य अपने घरों में या अपने कमरों में या पिंजरे में बंद है परंतु पशु पक्षी स्वतंत्र हैं ( हँसते हुए) और पशु पक्षी उन्हें खिड़की से आकर देख रहे हैं। मनुष्य अलविदा, अब हम उड़ान भरने के लिए स्वतंत्र है और तुम अपनी हालत देखो, तुम्हारी क्या हालत है ? तुम ना तो हिल सकते हो, ना ही डुल सकते हो। तुम लोगों ने हमारे साथ जो व्यवहार किया है और हमें बंद करके रखा था और हमारा माँस भक्षण भी किया करते थे, इसलिए देखो, आज तुम्हारी क्या हालत है, यह प्रकृति का ही आदेश है। श्रील प्रभुपाद कहते हैं कि हरे कृष्णा भक्तों का व्यापार क्या है, हरे कृष्णा भक्तों का जीवन अथवा व्यापार है हरे कृष्ण महामंत्र का आश्रय लेना। हमारा फैमिली बिजनेस जैसा कि इस्कॉन में कहा जाता है इस्कॉन का पारिवारिक व्यवसाय (फैमिली बिजनेस) क्या है 'बुक प्रिंटिंग एंड बुक डिस्ट्रीब्यूशन' यह हमारी फैमिली का बिजनेस है। भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर इसे वृहद मृदङ्ग भी कहते थे। कुछ मंदिरों जैसे कोलकाता के बाग बाजार मंदिर में विग्रह के सामने ही प्रिंटिंग प्रेस रहा करती थी। ऐसे स्थान पर प्रिंटिंग प्रेस को रखा जाता था अर्थात मशीन को रखते थे ताकि भगवान के विग्रह उसे देख सके, देखो भगवान आपकी गौरव गाथा की प्रिंटिंग, प्रकाशन, वितरण अथवा डिस्टिब्यूशन समस्त कार्य हो रहे हैं। इसे वृहद मृदङ्ग भी कहते हैं। ये छोटे मृदङ्ग केवल 100 मीटर या अधिक से अधिक 200 मीटर तक सुनाई देते हैं लेकिन फिर जब भगवान की गुण गाथा को प्रिंटिंग करके ग्रंथों के रूप में पैक कर उसका वितरण हर जगह किया जाता है, वह वृहद मृदङ्ग कहलाता है। इसे और करो। जहां-जहां नो मैंस लैंड है, हर जगह करो। कुछ देश ऐसे है जिन्हें नो मैंस लैंड कहा जाता है अर्थात वहाँ अभी तक किसी मनुष्य ने क्लेम नहीं किया वहां पर भी भगवान की गुण गाथा ग्रंथों के रूप में पहुंच सकती हैं, यही हमारा फैमिली बिज़नेस है। श्रील प्रभुपाद हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। । को व्यवसाय कह रहे हैं। यहीं हमारा जीवन है, वह हरे कृष्ण का भक्त कैसा यदि वह हरे कृष्ण का जप व कीर्तन ना करें, क्या उसे हरे कृष्ण भक्त कहा जा सकता है। हरि! हरि! प्रभुपाद आगे लिख रहे हैं कि हम हमारे बिजनेस जीवन के अंतर्गत केवल भगवान के पवित्र नाम का आश्रय लेते हैं। जीवन अनित्य जानह सार, ताहे नाना- विध विपद- भार,नामाश्रय करि जतन तुमि, थाकह आपन काजे (अरुणोदय-कीर्तन१.६) अनुवाद:- इतना जान लीजिए कि एक तो यह जीवन अनित्य है तथा इस जीवन में भी नाना प्रकार की विपदाएँ हैं। अतः तुम यत्नपूर्वक नाम का आश्रय ग्रहण करो तथा केवल जीवन निर्वाह के निमित सांसारिक व्यवहार करो और आश्रय लेने योग्य यह नाम है। नाम बिना किछु नाहिक आर, चौदह भुवन माझे (अरुणोदय-कीर्तन, श्रील भक्ति विनोद ठाकुर द्वारा) नाम के बिना कुछ नहीं है। यह समझना कठिन तो नहीं है नाम ही भगवान है। इस संसार में भगवान के अलावा कुछ और है क्या ? एक भगवान और भगवान की शक्ति है एक योगमाया है दूसरी महामाया है। महामाया भी भगवान ही है, महामाया भगवान की एक शक्ति है। शक्तिमान नहीं होते तो शक्ति नहीं होती। यदि पावर हाउस नहीं होता तो यह बिजली कैसे चलती। यह इलेक्ट्रिसिटी (पावर) है, पावर हाउस जो पावर या इलेक्ट्रिसिटी को जनरेट करता है, यदि वह ही नहीं होता और केवल सिर्फ वायरिंग सारा कनेक्शन ही कर दिया जाए लेकिन जब उसमें करंट ही नहीं है या करंट का प्रवाह नही हो रहा है.. भगवान सर्वम है, सर्वम खलु इदं यह भी एक सिद्धांत है। सब ब्रह्म है या ब्रह्म की शक्ति है या परमब्रह्म है या परमब्रह्म की शक्ति है, यह सारा संसार भगवान ही है। नाम बिना किछु नाहि... भगवान के बिना इन चौदह भुवनों में कुछ नहीं है। प्रभुपाद आगे प्रार्थना लिखते हैं, हे पवित्र नाम! हमें सुरक्षा प्रदान कीजिए। हमें जप करते समय क्या करना चाहिए, जप भी एक प्रार्थना है लेकिन जब हम प्रार्थना कहते हैं, हम किसी प्रार्थना को तभी कह पाएंगे जब हमने उस प्रार्थना का प्रार्थनापूर्वक उच्चारण या श्रवण भी किया हो। प्रार्थना करो, प्रार्थना करो, कुछ कहना होता है ना! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। उस समय प्रार्थना का भाव या प्रार्थना का विचार भी इसके साथ जुड़ा होना चाहिए। तब यह पूर्ण प्रार्थना हुई। प्रार्थना करो! प्रार्थना करो! मेरी मम्मी भी कहती थी, मंदिर में ले जाती थी और कहती थी, "हाथ जोड़ो, मैं हाथ जोड़ता था। प्रार्थना करो, मुझे पता नहीं था, प्रार्थना क्या होती है और कैसे करनी होती है ? तब मैया बताती कि भगवान मुझे बुद्धि दो, ऐसी प्रार्थना करो। हम भी कहते हैं कि भगवान हमें बुद्धि दो, ऐसा भाव भी कृपा पूरक या जो भी भाव था, भगवान ने हमारी प्रार्थना सुन तो ली और हमको बुद्धि दे दी। जब बुद्धि प्राप्त होती है तो व्यक्ति क्या करता है? तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम। ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते।। ( श्री मदभगवतगीता १०.१०) अनुवाद:- जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरंतर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं। ऐसा व्यक्ति भगवान के पास जाता है अथवा भगवान की ओर जाता है या जाना प्रारंभ करता है। यही बुद्धिमान का लक्षण है, यह व्यक्ति बुद्धिमान है या नहीं, कैसे पता लगाएंगे। वह अपनी बुद्धि का प्रयोग किसलिए कर रहा है, वह अपनी बुद्धि का प्रयोग भगवान के पास जाने के लिए कर रहा है या माया को गले लगाने के लिए कर रहा है या फिर माया के चंगुल में फंसने के लिए कर रहा है। हरि! हरि! भगवान ने थोड़ी देरी से सही पर बुद्धि दी। भगवान के दरबार में देर होती है पर अंधेर नहीं होता। जब हम छोटे थे तब हम प्रार्थना करते थे। भगवान हमारी प्रार्थना को नोट करते हैं, यह नहीं कि दुकानदार की तरह फटाफट ले लो और जाओ। भगवान प्रार्थना सुनते हैं और उसका समय आने पर या उचित समय आने पर उत्तर देते हैं। भगवान उस वक्त भी सुनते थे जिस वक्त हमनें प्रार्थना की थी लेकिन उसका जो फल है अथवा परिणाम या पुरस्कार है, साक्षात्कार या अनुभव है, भगवान कुछ देरी से कुछ एडजस्टमेंट के बाद दे सकते हैं। हमें जैसे ही बुद्धि मिली तब हम मुंबई में राधा रास बिहारी मंदिर में जा कर बैठे। फिर घरवालों और मम्मी को जैसे ही पता चला, वे इस बात से थोड़ा सा दुखी हुई- अरे! ऐसी बुद्धि देने के लिए थोड़े ही कहा था। हरि! हरि! फिर प्रार्थना- प्रार्थना में भी भेद होता है। आपने सुना होगा, कोई बुढ़िया सिर पर कोई बड़ा बोझ लेकर चल रही थी। थोड़ी हवा चलने लगी, हवा तेजी से बहने लगी तो सर पर जो लकड़ी का बोझ अथवा ईंधन था, वह सारा गिर गया। तब वह प्रार्थना करने लगी बचाओ! बचाओ! मदद करो! मदद करो! तब भगवान स्वयं आए और पूछा क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूँ ? बुढ़िया ने कहा,- हां, हां क्यों नहीं। भगवान ने कहा- क्या कर सकता हूं? बुढ़िया ने कहा- यह जो लकड़ी का बंडल मेरे सर से गिरा है, इसे उठा कर पुनः मेरे सिर पर रख दो। मैं गधे जैसे उसको ढोती हुई ले जाऊंगी, भगवान स्वयं आए हैं परंतु वह क्या सहायता मांग रही है ? बेकार की। इसी तरह संसार भी ऐसी ही प्रार्थनाएं करता रहता है। हरि! हरि! श्रील प्रभुपाद लिख रहे हैं, केवल हरि नाम का आश्रय लो, केवल हरि नाम का आश्रय लो, इस लॉकडाउन की स्थिति में और कुछ कर भी नहीं सकते। अच्छा है, घर बैठे बैठे शराब पियो, आप कुछ नहीं कर सकते। प्रभुपाद कहते हैं कि भगवान से प्रार्थना करो, हमारी रक्षा करें। हरे कृष्ण महामंत्र का जप करो और जप करते समय भगवान से प्रार्थना करो कि भगवान, हमारी रक्षा कीजिए। हम आपके हैं हमें अपनी सेवा में लगाइए। सेवया योग्यं कुरु.. इत्यादि इत्यादि। गोपाल गुरु गोस्वामी जी ने जो भाष्य समझाया है, वह भी मैनुअल ( नियमावली) है। गोपाल गुरु गोस्वामी का हरे कृष्ण महामंत्र पर जो भाष्य है, वह एक मैन्युअल है अर्थात यह कार्य कैसे करें, इस कार्य को कैसे संभाले या निभाए? हाउ टू डू इट? क्या करें और क्या ना करें? यह जिससे पता चलता है, उसको मैनुअल( नियमावली) कहते हैं। हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना है तो उसका मैनुअल( नियमावली) क्या है? यह आचार्यों का महामंत्र के ऊपर भाष्य है कि ऐसा जप करो, ऐसा विचार करो ,ऐसी प्रार्थनाएं करो ध्यान पूर्वक जप करो। आध्यात्मिक मीडिया में रहो परंतु सोशल मीडिया से दूर रहो। हरि! हरि! संसार का हाल ऐसा होगा, यह होगा, वह होगा, उससे यह समस्या होगी या उलझनें उत्पन्न होगी। मैंने जो पाप किया है, उसका फल भोगना ही बढ़ेगा, उपद्रव आएंगे लेकिन श्रील प्रभुपाद बताते हैं कि हम उससे प्रभावित नहीं होंगे। चक्रधर! ठीक हो, सुन रहे हो? हम उससे प्रभावित नहीं होंगे, आपका क्या अनुभव है? इस दुनिया में जो भी हो रहा है,हम प्रभावित नहीं होंगे। पर हमारा तो कंट्रोल नहीं है और कंट्रोलर तो मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्। हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते।। ( श्री मदभगवतगीता ९.१०) अनुवाद:- हे कुन्ती पुत्र! यह भौतिक प्रकृति मेरी शक्तियों में से एक है और मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चर तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं। इसके शासन में यह जगत बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है। लेकिन जब कोई जप करता है या कीर्तन करता है। भक्ति में तल्लीन रहता है, उसका लॉकडाउन, कोरोना वायरस और कोविड-19 कुछ बिगाड़ नहीं सकता। आपका क्या विचार है? क्या आप प्रभावित हो रहे हैं या नहीं( पूछते हुए) कौन-कौन कह रहे हैं? अच्छा! लगभग 100 प्रतिशत लेकिन कुछ लोग सोच रहे हैं। कुछ लोग अपने मोबाइल की ओर देख रहे हैं, वहां कुछ जवाब मिलेगा। प्रभुपाद जी ने जो दोनों ही बातें कही हैं, संसार में अधिक से अधिक समस्याएं उत्पन्न होने वाली हैं लेकिन हरे कृष्णा के भक्त हरे कृष्णा का जप करेंगे और वे प्रभावित नहीं होंगे। उन पर कोई दुष्परिणाम नहीं होगा। भगवान सुविधा की व्यवस्था करेंगे ताकि हम दुष्परिणामों से बच सकें। प्रभुपाद जो भी कह रहे हैं, आपको इन बातों में दृढ़ श्रद्धा होनी चाहिए, विश्वास होना चाहिए कि भगवान का नाम भक्तों की रक्षा करेगा लेकिन अन्य लोग जो भगवान के नाम की शरण या आश्रय नहीं लेंगे, वे सफ़र करेंगे ऐसा हो रहा है या नहीं। हम भी आज से और प्रभुपाद ने जो रिमाइंडर दिए हैं, उसको समझ कर और अधिकाधिक नाम का आश्रय लेंगे जिससे हमारी श्रद्धा निष्ठा में परिणत हो और हम नाम के आश्रय में सुरक्षित रहें। इस विश्वास के साथ हम अधिकाधिक नाम का आश्रय लें और अधिक से अधिक जप और कीर्तन करें। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। धन्यवाद। हरे कृष्णा! परम पूज्य गुरु महाराज की जय🙏

English

13 May 2020 Srila Prabhupada’s letter foretelling the future of this world Hare Krishna Today we have 800 participants. Welcome to all of you to this Japa Conference. We need to worship devotees as well as the Lord because the devotee is very dear to Krsna. Through the mercy of devotees we can get Krsna prema. You have seen in an ISKCON temple, when the pujari offers arati to the Lord then he also offers the same worship to the devotees at time of arati. Don't forget worship of the Lord as well as devotees. Devotees of the Lord are also worshipable. Our founder acarya has opened all our eyes. Srila Prabhupada wrote a letter to one of his disciples. I want to share a part of that letter with you. He is opening our eyes by writing this letter. He is telling us about the future of this world. I can understand you worry about the deterioration of civilization. The city will become an even more dangerous place as Kaliyuga advances. How will cities be? Frightening! They will make us fearful. It will be very deteriorating. The world is going to get more and more degraded. Isn't this becoming true? Srila Prabhupada is saying so many things in just one sentence. Modern civilization is so corrupt. Corruption will be prominent. People will engage in more and more sins. Along with corruption there will be ill behaviour.... meat eating, illicit sex, intoxication, gambling. Earlier you had to go to the shop to purchase alcohol. Yesterday the Supreme Court has ruled that wine can be delivered at home. What can be said now? Kaliyuga children are already sinful. By drinking wine they will become more intoxicated.They will lose their sense of discrimination. Then what will happen to such governments and people? There will be more obscene movies. This is now being sent as a home delivery. Cinemas present lust and then there’s violence. This means lust and anger. You can see 50 years ago Srila Prabhupada predicted this about the present civilization. dhyāyato viṣhayān puṁsaḥ saṅgas teṣhūpajāyate saṅgāt sañjāyate kāmaḥ kāmāt krodho ’bhijāyate Translation While contemplating on the objects of the senses, one develops attachment to them. Attachment leads to desire, and from desire arises anger. [BG 2.62] As sinful activities increase then there will be more trouble. In Physics, students are taught that every action has an equal and opposite reaction. As you sow, so shall you reap. This has been said in the Bible. If you sow seeds of sin then those sinful desires will keep on chasing you. Result of Kaliyuga is more sin. People in Kaliyuga are slow. When they have to come to temple then they become even slower. But when they get the opportunity to go to a bar they go without giving excuses. prāyeṇālpāyuṣaḥ sabhya kalāv asmin yuge janāḥ mandāḥ sumanda-matayo manda-bhāgyā hy upadrutāḥ Translation O learned one, in this iron age of Kali men have but short lives. They are quarrelsome, lazy, misguided, unlucky and, above all, always disturbed. [SB 1.1.10] Troubles in this world are going to increase. Based on which background is Srila Prabhupada writing this? This is what happens in Kaliyuga.This is nature's arrangement. Lord has made nature in this way. How to deal with nature has been explained by the Lord. Where has He explained this? Not only in Bhagvad-Gita. He has explained this in all the scriptures. There is a manual to a microphone explaining how to use it. In the same way the Lord has created this world and sent us over here and has asked us to read the manual before we act. This is nature's order. All people are suffering or in trouble. How is your suffering, your journey? Life is also a journey. How is the journey going on nowadays? Not going on well? The journey has stopped now. Someone showed me a cartoon image. Normally in the zoo the animals are locked down and people see them and wave at them. But in lock down people are locked down and the birds are coming to the windows and waving at the people. See now what is your condition. You did the same to us and ate us, and you are facing the consequences now. Question: What is the family business of ISKCON? Answer: Book printing and book distribution. Bhaktisiddhanta Saraswati Thakur also said something. There used to be a printing press in front of the Deities so that They can see these books which would be taken to no man's land. This is what Srila Prabhupada is saying is the business of the Hare Krishna devotees. What do we need to do in our life? We just simply take shelter of the holy names. The holy names are the only things worth taking shelter of. Without the holy name there is nothing to take shelter of. Hare Krishna Hare Krishna, Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Ram Ram Hare Hare In this creation there are the energies of the Lord. If the energetic is not there, then how can there be energies? Just like a powerhouse and electricity. Prabhupada is writing further to pray to the holy name to give us protection. Chanting is a prayer and we need to chant with prayers. While chanting Hare Krishna there should be prayers then only is it a complete prayer. My mother also said the same thing. When I asked what to pray for, then she used to say to ask God to give me intelligence. When I prayed then the Lord gave me intelligence and such a person starts to go towards the Lord. teṣhāṁ satata-yuktānāṁ bhajatāṁ prīti-pūrvakam dadāmi buddhi-yogaṁ taṁ yena mām upayānti te Translation To those whose minds are always united with me in loving devotion, I give the divine knowledge by which they can attain me. [BG 10.10] How can we understand whether a person is intelligent or not? We can understand this by seeing for which purpose one is using his intelligence? To go to the Lord or to go to Maya. I prayed. I got intelligence. Then I went to Radha Rasabihari temple. When my mother got to know about this, she became sad. There is a difference in prayers too. One old lady was praying to the Lord and the Lord appeared. She asked Him to carry the wood that she was carrying on her head. The world is praying like this. Srila Prabhupada said to offer prayers to make us eligible for the Lord's service. A manual means what to do and what not to do? They have these instructions to chant attentively. Keep away from social media and stay in the spiritual media. Prabhupada is saying that we shall remain unaffected by all that will happen. What is your experience? The Lord is the Controller. mayādhyakṣheṇa prakṛitiḥ sūyate sa-charācharam hetunānena kaunteya jagad viparivartate Translation Working under My direction, this material energy brings into being all animate and inanimate forms, O son of Kunti. For this reason, the material world undergoes the changes (of creation, maintenance, and dissolution). [BG 9.10] When one chants and is engaged in devotional service then are you affected? Both things Srila Prabhupada has said. People are going to be in trouble, but Hare Krishna devotees won't get affected. Krsna will provide us all the facilities. Be assured of this. We will be protected by the holy names. Others who do not take shelter of the holy names will have to suffer. Srila Prabhupada has reminded us of this. May this turn into firm faith and may we take firm shelter of the holy name! Hare Krishna! All Glories to Srila Prabhupada!

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ставления после совместной джапа сессии 13 мая 2020. ПИСЬМО ШРИЛЫ ПРАБХУПАДЫ, ПРЕДСКАЗЫВАЮЩЕЕ БУДУЩЕЕ ЭТОГО МИРА. Харе Кришна! Сегодня у нас 800 участников. Добро пожаловать всем вам, присутствующим на этой конференции джапы. Нам нужно поклоняться преданным так же как и Господу, потому что преданный очень дорог Кришне. Благодаря милости преданных мы можем обрести Кришна-прему. Вы видели в храме ИСККОН, когда пуджари предлагает арати Господу, тогда Он также предлагает такое же поклонение преданным во время арати. Не забывайте поклонение Господу, а также преданным. Преданным Господа также поклоняются. Наш ачарья основатель открыл все наши глаза. Шрила Прабхупада написал письмо одному из своих учеников. Я хочу поделиться с вами частью этого письма. Он открывает нам глаза, написав это письмо. Он рассказывает нам о будущем этого мира. Я понимаю, что вы беспокоитесь о деградации цивилизации. По мере развития Кали-юги город станет еще более опасным. Какие будут города? Пугающие! Они заставят нас бояться. Ситуация будет очень ухудшаться. Мир будет все больше и больше деградировать. Разве это не становится правдой? Шрила Прабхупада говорит так много всего одним предложением. Современная цивилизация настолько коррумпирована. Коррупция будет заметной. Люди будут совершать все больше и больше грехов. Наряду с коррупцией будут происходить дурные поступки... мясоедение, незаконный секс, опьянение, азартные игры. Раньше нужно было идти в магазин за алкоголем. Вчера Верховный суд постановил, что вино можно доставлять на дом. Что можно сказать сейчас? Дети Кали-юги уже грешны. От употребления вина они станут более грешными. Они потеряют чувство меры (ограничений), тогда что будет с такими правительствами и людьми? Будет больше нецензурных фильмов. Это сейчас делается, как доставка на дом. Кинотеатры показывают вожделение, а затем насилие. Это означает вожделение и гнев. Вы можете видеть, что 50 лет назад Шрила Прабхупада сказал это о нынешней цивилизации. дхйа̄йато вишайа̄н пум̇сах̣ сан̇гас тешӯпаджа̄йате сан̇га̄т сан̃джа̄йате ка̄мах̣ ка̄ма̄т кродхо ’бхиджа̄йате Перевод Шрилы Пабхупады: Созерцая объекты, приносящие наслаждение чувствам, человек развивает привязанность к ним, из привязанности рождается вожделение, а из вожделения — гнев. (Бхагавад-Гита 2.62) По мере того, как греховная деятельность возрастает, тогда будет больше проблем. На уроках физики учат, что каждое действие имеет равную противоположную реакцию. Что посеешь, то и пожнешь. Это было сказано в Библии. Если ты посеешь семена грехов, тогда эти греховные желания будут преследовать тебя. Результат Кали-юги - больше грехов. Люди в Кали-югу ленивые. Когда они должны прийти в храм, они становятся еще ленивее. Но когда они получают возможность пойти в бар, они идут, не оправдываясь. пра̄йен̣а̄лпа̄йушах̣ сабхйа кала̄в асмин йуге джана̄х̣ манда̄х̣ суманда-матайо манда-бха̄гйа̄ хй упадрута̄х̣ Перевод Шрилы Прабхупады: О мудрец, в этот железный век Кали жизнь людей коротка. Они вздорны, ленивы, введены в заблуждение, неудачливы и к тому же пребывают в постоянной тревоге. (Шримад Бхагаватам 1.1.10) Проблемы в этом мире будут расти. На каком основании Шрила Прабхупада пишет это? Вот что происходит в Кали-югу. Так устроено природой. Господь создал природу таким образом. Как поступить с природой было объяснено Господом. Где Он это объяснил? Не только в Бхагавад-гите. Он объяснил это во всех писаниях. Существует руководство к микрофону, объясняющее, как его использовать. Таким же образом Господь создал этот мир и послал нас сюда и попросил нас прочитать руководство, прежде чем мы начнем действовать. Это порядок природы. Все люди страдают или попали в беду. Как ваши страдания, ваше путешествие? Жизнь это тоже путешествие. Как проходит путешествие в наше время? Не очень хорошо? Путешествие остановилось сейчас. Кто-то показал мне картинку. Обычно в зоопарке животные заперты, и люди видят их и машут им. Но в закрытом помещении люди заперты, и птицы подлетают к окнам и машут людям. Теперь посмотри, какие последствия. Вы сделали то же самое с нами и съели нас, и вы сталкиваетесь с последствиями сейчас. Вопрос: Какое главное дело ИСККОН? Ответ: Книжная печать и распространение книг. Бхактисиддханта Сарасвати Тхакур тоже что-то сказал. Раньше перед Божествами была печатная машина, чтобы Они могли видеть эти книги, которые будут доставлены всем на земле. Это то, что говорит Шрила Прабхупада, это дело преданных Харе Кришна. Что нам нужно делать в нашей жизни? Мы просто принимаем прибежище у Святых имен. Святые имена - единственное, где стоит принять прибежище. Вне Святого имени нет ничего, где можно принять прибежище. Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе В этом творении есть энергии Господа. Если бы не было источника энергии, тогда как могут быть энергии? Так же, как электростанция и электричество. Прабхупада пишет дальше, что нужно молиться Святому имени, чтобы Оно защитило нас. Воспевание - это молитва, и нам нужно воспевать с молитвами. Во время воспевания Харе Кришна должны быть молитвы, только тогда это полная молитва. Моя мама сказала то же самое. Когда я спрашивал, за что молиться, она обычно говорила попросить Бога дать мне разум. Когда я молился, Господь дал мне разум, и такой человек начал идти к Господу. теша̄м̇ сатата-йукта̄на̄м̇ бхаджата̄м̇ прӣти-пӯрвакам дада̄ми буддхи-йогам̇ там̇ йена ма̄м упайа̄нти те Перевод Шрилы Прабхупады: Тех, кто постоянно служит Мне с любовью и преданностью, Я наделяю разумом, который помогает им прийти ко Мне. (Бхагавад-Гита 10.10) Как понять, разумный человек или нет? Мы можем понять это, увидев, с какой целью человек использует свой разум? Идти к Господу или идти к Майе. Я молился. Я получил разум. Затем я пошел в храм Радха Расабихари. Когда моя мама узнала об этом, ей стало грустно. Существует также разница в молитвах. Одна старушка молилась Господу, и Господь явился. Она попросила Его нести дрова, которые она несла на своей голове. Мир молится так. Шрила Прабхупада сказал, что нужно возносить молитвы, чтобы мы имели право на служение Господу. Разумность означает понимать, что делать, а что не делать? У людей есть эти инструкции, чтобы воспевать внимательно. Держитесь подальше от социальных сетей и оставайтесь в духовных СМИ. Прабхупада говорит, что мы не будем подвержены влиянию всего, что произойдет. Какой у вас опыт? Господь является Контролирующим. майа̄дхйакшен̣а пракр̣тих̣ сӯйате са-чара̄чарам хетуна̄нена каунтейа джагад випаривартате Перевод Шрилы Прабхупады: Будучи одной из Моих энергий, о сын Кунти, материальная природа действует под Моим надзором, производя на свет все движущиеся и неподвижные существа. Под ее началом мироздание снова и снова возникает и уничтожается. (Бхагавад-Гита 9.10) Когда кто-то воспевает и занимается преданным служением, на вас это влияет? Обе вещи сказал Шрила Прабхупада. Люди будут в беде, но преданные Харе Кришна не пострадают. Кришна предоставит нам все возможности. Будьте уверены в этом. Мы будем защищены Святыми именами. Другие, которые не принимают прибежища у Святых имен, должны будут страдать. Шрила Прабхупада напомнил нам об этом. Пусть это превратится в твердую веру, и пусть мы примем твердое прибежище у Святого имени! Харе Кришна! Вся слава Шриле Прабхупаде! (Перевод Кришна Намадхан дас)