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*जप चर्चा,* *4 जून 2021,* *पंढरपुर धाम.* *गौरांग बोलिते हबे पूलक शरीरे,* *हरि हरि बोलिते नयन पाबे नीर।* हरे कृष्ण, आप सब तैयार हो। पेन पेपर भी तैयार है। गुरु महाराज काँन्फ्ररन्स में भक्त को संबोधित करते हुए, "आप विद्यार्थी हो सही है ना ऐसा कहा जाता है, विद्यार्थी बिना लेखनी के ऐसा लगता है, जैसे नाई बिना वत्सरेके। वह नाई कैसा जिसके पास वत्सरा नहीं है। वह विद्यार्थी कैसा जिसके पास लेखनी नहीं है। आप देख लो कुछ लिख लेने योग्य बातें भी हो सकती हैं। याद रखने योग्य बातें हो सकती हैं। जो सुन रहे हैं तो उसको याद कर रहे हैं। लेकिन सदा के लिए याद रखना चाहते हैं तो लिख सकते हैं। या भविष्य में उन्हें हमें कुछ याद दिलाने के लिए हमारे पास कुछ चाहिए। कुछ नोट कुछ लिखा हुआ चाहिए। ठीक है, लेकिन इसका महिमा सारा लिखने का महत्व अभी नहीं कहूंगा। मुकुंदमालास्तोत्र नामक ग्रंथ महाराज कुलशेखर की प्रार्थनाएं। जब मैं इन प्रार्थना को पढ़ रहा था तो सोचा कि क्यों ना मैं इसमें से कुछ प्रार्थना है आपको भी बोलू। आपके साथ भी चर्चा करू। अगर आपको कोई एतराज ना हो तो हम आपको सुना सकते हैं। राजा कूलशेखर हरि हरि एक प्रकार से हुए आचार्य भी रहे। राजा कुलशेखर और अलवार। अलविर दक्षिण भारत के तमिलनाडु के भक्तों का कवियों का एक प्रकार रहा। इनकी रचनाएं प्रसिद्ध है। वह गाया करते थे। नृत्य किया करते थे। भजन किया करते थे। सारा अपनी भक्ति का प्रदर्शन। उसने से एक राजा कुलशेखर। इनकी कुछ प्रार्थनाएं श्रील प्रभुपाद भी हमको पुनः पुनः सुनाया करते थे। श्रील प्रभुपादने इन प्रार्थना को ग्रंथ रूप में प्रकाशित करने का विचार किया। श्रील प्रभुपाद ने ही जो प्रार्थनाएं हैं, इसके शब्दार्थ और भाषांतर और भावार्थ लिखें। प्रारंभ के कुछ लिखें उसके बाद श्रील प्रभुपाद के जो शिष्य है उन्होंने लिखा। यह रचना वैसे श्रील प्रभुपाद और उनकी शिष्य इनके द्वारा है। मैंने कुछ प्रार्थना सुनी हुई है जो आपको सुनाते हैं। यह राजा कुलशेखर के विचार जो उच्च विचार हैं। और हमको भी बनना है कैसे बनना है, उच्च विचार वाले बनना है। सादा जीवन उच्च विचार। आजकल उल्टा है, सादा विचार और उच्च जीवन। पशुवत जीवन जी रहे हैं या फिर जी ही रहे हैं सोच नहीं रहे हैं। विचार है ही नहीं उच्च विचार है मतलब कि चरित्रहीन समाज बन गया। समाज को देश को पूरे मानव जाति को चाहिए उच्च विचार। सुन लीजिए कुछ उच्च विचार। या फिर कहते हैं ना f*ood for thoughts* पेट के लिए भोजन को आप.भूलते नहीं। पेट के लिए भोजन हम देते ही है। मस्तिष्क के लिए कुछ खुराक। उसके पोषण के लिए भोजन के लिए मस्तिष्क के लिए कुछ विचार उच्च विचार food for thoughts. *जयतु जयतु देवकीनंदनोयम* *जयतु जयतु पृथ्वीभारनाशो मुकुन्दः* यहां पर अयम लिखा है। यह प्रार्थना चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ रथ यात्रा के समय जगन्नाथ जी को किया करते थे। राजा कुलशेखर की प्रार्थनाएं महाप्रभु अर्पित किया करते थे। जय जगन्नाथ! जगन्नाथ की चरणों में। यहां अयम लिखा है वहा अस चरितामृतम लिखा है। वैसे दोनों का अर्थ ही है। *जयतु जयतु देवकीनंदनोयम* *जयतु जयतु पृथ्वीभारनाशो मुकुन्दः* *जयतु जयतु कृष्णो वृष्णिवंशो प्रदीपः* *जयतु जयतु मेघश्यामलः कोमलाङ्गः* यह प्रार्थना है। प्राचीन काल में ऐसे कई प्रार्थना बोलते थे। तो सुनते सुनते ही प्रार्थना कोई सुना रहा है पर हम सुन रहे हैं तो समझ में आ जाती थी प्रार्थना। क्या प्रार्थना है, यह स्तोत्र तो है ही मुकुंदामाला स्तोत्र। लेकिन हमको समझ में नहीं आती भाषा संस्कृत भाषा है। और हम कलयुग के जीव हैं। *जयतु जयतु देवकीनंदनोयम* जय हो जय हो, किनकी जय हो? कृष्ण की जय हो कैसे कृष्ण जो देवकीनंदन है। वृष्णि वंशज कृष्ण की जय हो। जो वृष्णि वंशज है या वृष्णि वंश के कुलदीपक है। *जयतु जयतु मेघश्यामलः कोमलाङ्गः* हे प्रभु आपकी जय हो। हे प्रभु, हे भगवान, हे जगन्नाथ कैसे हो आप मेघश्यामल। आपका रंग कैसा है? उनका रंग कैसा है मेघश्यामल। आकाश में आज हम देख रहे हैं बादल छाए हुए हैं। एकदम नए ऐसे मान्सून के बादल आए हुए हैं। वैसा रंग है वैसे रंग वाले आप हो। मेघ मतलब बादल श्यामल बादल से श्याम वर्ण है। आपका मेघश्यामलःकोमलाङ्गः देखने के लिए है। आप शामल हो। स्पर्श गर हम कर सकते हैं आपका आप कोमल हो। *जयतु जयतु पृथ्वीभारनाशो मुकुन्दः* मुकुंदा हो मुकुंदा मतलब मुक्ति देने वाले किसको मुक्ति दिया आपने *पृथ्वीभारनाशो मुकुन्दः* संभवामि युगे युगे आप प्रकट होते हैं *विनाशायच दुष्कृताम* दुष्टों का संहार करते हो। दुष्टों का बोज पृथ्वीको महसूस होता है। "यह बोज है मेरे लिए साधुसंत भी है लेकिन वह बोज नहीं है लेकिन यह दुष्ट बोज है आप प्रकट होत हो" पृथ्वीभारनाशो मुकुन्दः यह और एक प्राथर्ना है। हम ज्यादा भावार्थ या तात्पर्य कि ओर नहीं मुडेंगे। *मदनपरिहर स्थीतिम मदीये मनसी मुकुन्द पदारविन्द धाम्नी* *हर नयन कृषानुना कृसो सी स्मरासी ना चक्रा पराक्रमं मुरारीही* यह जो प्रार्थना है। इस प्रार्थना में राजा कुलशेखर प्रार्थना करते हैं। ऐसे में कहते रहता हूं हमको प्रार्थना नहीं करनी आती तो आचार्यने जो प्रार्थना की है देख हम सीख सकते हैं। और फिर वैसे प्रार्थना हम कर सकते हैं। तो वह कह रहे हैं जो मदन होते हैं। कामदेव मदन जो मोहित करते हैं। भ्रमित करते हैं अपने बाणो से। उनके पास पांच प्रकार के बाण होते हैं। पुष्प बाणो से हमको घायल कर सकते हैं। फिर हम गए काम से और फिर कामवासना इतनी उमड़ आती है। उमड आती है कामवासना। काम का आवेग आवेश होता है। जब कामदेव मदन या अंनग ऐसे उसके कई नाम है। कंदर्प भी कहते हैं, *कंदर्प कोटीकमनीय* प्रार्थना यह है या मदन को जैसे चेतावनी दी जा रही है। धमकी दी जा रही हैं। यहां से हटो, यहां से चले जाओ। मदन कामदेव तुम्हारे बाणो की वर्षा अब नहीं करना। मेरे मन में ऐसी कोई खलबली मत मचाना काम की आवेग या आवेश से अरे है काम मैंने तो अपने *मनसी मुकुन्दपदारविन्द धाम्नी* मेरी तो अपने मन में मुकुंद पदारविंदा धारण किए हैं। मेरा मन मेरा दिल, मेरा जीवन अब मुकुंद का धाम या निवास बन चुका है। तुम यहां से चले जाओ खाली करो यह जगह। चले जाओ यहां से यहां भगवान निवास करेंगे। *मनसी मुकुन्दपदारविन्द धाम्नी* धाम बनाएंगे हृदय प्रांगण को। और तुम भूल गए क्या मेरे *नयन कृषानुना कृसो सी* एक बार जब शिवजी ने तीसरी आंख खोली थी। तो जैसे ही उन्होंने आंख खोली आगबगुले हुए शिवजी आगसे। उन्होंने तुम को जलाया है। याद नहीं है तुमको इसीलिए तो तुम अंनग कहलाते हो। तुम्हारे अंग को जलाया बिना अंग वाले तुम बन गए। और साथ ही साथ *स्मरासी ना चक्रा पराक्रमं मुरारीही* मेरे मुरारी भगवान कृष्ण मुरारी के चक्र सुदर्शन चक्र का पराक्रम तुम नहीं जानते हो। सावधान सुदर्शन चक्रधारी मुरारी निवास करेंगे *मोर मन वृंदावन* चैतन्य महाप्रभु कहां करते हैं, "मेरा मन है वृंदावन है" मेरे मन रुपी वृंदावन में अब कृष्ण निवास करेंगे। कृष्ण निवास करेंगे और उनके पास चक्र है। यह सुदर्शन चक्र। सावधान, दूर रहो हटो यहां से मैं प्रेम प्राप्त करना चाहता हूं। हरि हरि, ठीक है अब आगे बढ़ते हैं। मज्जन्मनः फलम् इदम् मधुकैटभारै* *मत् प्रार्थनिय मदनुग्रह एष एव* *त्वद् भृत्य भृत्य परिचारक भृत्य भृत्य* *भृत्यस्य भृत्य इति माम् स्मरलोकनाथ* यह तृणाद् अपि सुनिचेन जैसि बात है, या विचार है या भाव है। पहले कुलशेखर भगवान को संबोधित कर रहे है, मधुकैटभारै, मधुकैटभ नाम के दो राक्षस, मधु एक कैटभ दूसरे, मधुकैटभारै कह रहे है, संभोदन है तो भारे। कैटभ अरि वैसे, मधु और कैटभ और जमा अरि है। भगवान आप कैसे हो, मधु और कैटभ के अरि हो, अरि मतलब शत्रु। मुरारी, मुर के शत्रु या मधुकैटभारै। तो, हे मधु और कैटभ के शत्रु हे मधु और कैठभ के शत्रु,मैं भी अपने जन्म को सफल बनाना चाहता हूं, मज्जन्मन फलम इदम् तो मैं कैसे समझूंगा कि मेरा जीवन सफल हुआ? तो वह कहते हैं राजा कुल शेखर आगे की मेरी प्रार्थना है, मत् प्रार्थनीय मेरी एक विशेष प्रार्थना है,.हे प्रभु प्रार्थना है,. अनुग्रहएव एष क्या इस प्रकार का अनुग्रह आपका मुझ पर हो सकता है.? कैसा अनुग्रह चाहते हो राजा कुल शेखर कहते हैं, *त्वद भ्रत्य भ्रत्य परिचारक भ्रत्य भ्रत्य* *भ्रत्यस्य भ्रत्य इति मां स्मरा लोकनाथ ।।* पुनः भगवान को संबोधित कर रहे हैं हे। लोकनाथ या त्रिभुवन सुंदर, लोकनाथ,एकनाथ हे.नाथ आप हो नाथ और मैं हूं दास। इति मां स्मरा क्या आप मेरा स्मरण करोगे? इस रुप में मेरी क्या पहचान हो इसको आप स्मरण करोगे? ऐसी मेरी पहचान हो, त्वद भ्रत्य भ्रत्य परिचारक भ्रत्य भ्रत्य त्वद आपका जो भ्रत्य है भ्रत्य मतलब सेवक त्वद भ्रत्य भ्रत्य मतलब भ्रत्यस्य भ्रत्य आपके भ्रत्य का भ्रत्य परिचारक मतलब है सेवक । आपके परिचारक के भ्रत्यस्य भ्रत्य ऐसे 6 बार भ्रत्य भ्रत्य भ्रत्य भ्रत्य भ्रत्य भ्रत्यस्य भ्रत्य ऐसे 6 बार कहे, मतलब सेवक के सेवक के सेवक के सेवक के सेवक। शायद मैंने 6 बार कहा, तो मैंने भाषांतर के अनुरूप नही कहा ऐसे ही कहा। केवल आपके सेवक का ही सेवक नहीं, आपके सेवक के सेवक के सेवक के सेवक के सेवक का सेवक मुझे बनाओ। यह पदवी बड़ी पदवी हैै। पदोन्नति हो गई पहले मैं आपके सेवक का सेवक था, अब मैं आपके सेवक के सेवक के सेवक का सेवक बनूंगा। तो और पदोन्नति हो गई और पदोन्नति हो गई यहां यह पदोन्नति है बस यही मत् जन्मनः फलम् इदं । तो ऐसा अगर मुझे स्वीकार कर सकते हो माम् स्मरः हे लोकनाथ तो मैं अपना जीवन सफल होगा यह मान लूंगा। ठीक है आगे मैं श्लोक संख्या नहीं कहूंगा 27 वा है यह श्लोक *नमामि नारायणपादपङ्कजं करोमि* *नारायणपूजनं सदा ।* *वदामि नारायणनाम निर्मलं स्मरामि* *नारायणतत्त्वमव्ययम् ॥* यह प्रार्थना है इसमें नमामि करोमि वदामि स्मरामि ऐसे चार क्रियाएं है ,कहीं यह आप लिख कर रख सकते हो ।अहम् नमामि मैं नमस्कार करता हूं, जो लिखा नहीं होता इस श्लोकों में, सर्वनाम् कई जगह लिखा नहीं होता, कईबार नही लिखा होता है लेकिन हम को समझना चाहिए ।.यहां अहम् छुपा हुआ है । नमामि है करोमी है तो अहम नमामि अहम करोमी होता है। स करोति वह कर्ता है त्वम करोति ऐसे क्रियापद बनते हैं। संस्कृत में तो अहम नमामि अहम नारायणपादपङ्कजं नमामि यह गद्द हुआ कविता से वाडःम्य बना दिया । तो नारायण का नाम मैं उच्चारण करूंगा। स्मरामि अहं स्मरामि *स्मरामि नारायणतत्त्वमव्ययम्* स्मरामि और मैं स्मरण करूंगा या स्मरण करता हूं नारायण का जो तत्व है। नारायण का तत्व समझता हूं और याद करता हूं। यह अव्ययी है या अक्षयी है। व्यय मतलब खर्च होना और अव्यय मतलब खर्च नहीं होना। ऐसे शब्द आप समझ सकते हो, हम सुनते तो रहते हैं व्यय अव्यय। व्यय मतलब खर्च, आपने कुछ खर्च किया कुछ घट गया। अव्यय मतलब कुछ घटता नहीं। भगवान कभी घटते नहीं, कभी कम नहीं होते अव्यय। तो नारायण का जो अव्ययी तत्व है, नारायण स्वयं अव्यय हैं। उनका में स्मरण करता हूं। ऐसी प्रार्थना है। अगले स्त्रोत्र के लिए हमें तेजी से आगे बढ़ना होगा। अगला स्त्रोत्र 33 क्रमांक का है। जिसको श्रील प्रभुपाद सदैव कहां करते थे आपने भी जरूर सुना होगा। और यह कंठस्थ भी होना चाहिए और भी स्त्रोत्र कंठस्थ होने चाहिए। *कृष्ण त्वदीयपदपङ्कजपञ्जरान्तं अद्यैव मे विशतु* *मानसराजहंसः । प्राणप्रयाणसमये कफवातपित्तैः* *कण्ठावरोधनविधौ स्मरणं कुतस्ते ॥ ७ ॥* तो क्या कह रहे हैं? क्या भाव देखिए, कैसे हैं उच्च विचार राजा कुल शेखर के। हरि हरि।*त्वदीयपदपङ्कजपञ्जरान्तं* एक तो आपके जो चरण कमल है त्वदीय, त्वदीय आपके मदीय मेरे त्वदीय मदीय। *कृष्ण त्वदीयपदपङ्कजपञ्जरान्तं* आपके चरण कमल और कई फुल है या फूलों का गुच्छ है पद्म फूल। या भगवान के चरण कमलों की तुलना वह पद्म के साथ पंकज से कर रहे हैं। हरि हरि।*अद्यैव मे विशतु मानसराजहंसः* मेरा मन है हंस राजहंस है और आपके चरण कमल कमल सदृश्य है। तो प्रार्थना यह है कि ,*विशतु* मेरे मन को जो हंस है उसको प्रवेश करने दो आपके चरण कमलों में। या आपके चरण कमल जहां है वहां मेरे मन को भ्रमण करने दो। या आपके चरण कमलों की प्रदक्षिणा करने दो। मेरे मन को कृष्ण पदारविंदं का स्मरण करने दो। कब? अद्यैव अभी-अभी केवल आज ही नहीं अभी-अभी। कल करे सो आज आज करे सो अब की बात है। *अद्यैव मे विशतु मानसराजहंसः* क्योंकि *प्राणप्रयाणसमये कफवातपित्तैः कण्ठावरोधनविधौ स्मरणं कुतस्ते* प्राण प्रयाण का समय जब आएगा, कफ पित्त वायु का जो शरीर बना हुआ है। कुछ कफ की मात्रा शरीर में और बढ़ जाती है तो कंठ से घूर घूर आवाज आता है। *कण्ठावरोधनविधौ* और कंठ का अवरोधन जब होगा तो *स्मरणं कुतस्ते* आपका स्मरण कठिन होगा प्रभु कठिन होगा। तो ऐसा करो कि जब प्राण तन से निकले तो क्या हो? गोविंद नाम लेकर तब प्राण तन से निकले। या फिर यह भी है कि मैं स्थगित नहीं करना चाहता हूं आपका स्मरण, आपकी सेवा, आप की शरणागति, बूढ़े होने के बाद देखूंगा या देखा जाएगा। *अद्यैव* आज अब या पता नहीं फिर कैसी परिस्थिति में फसोगे। अभी अभ्यास करो, अभी याद करो, अभी शरण में जाओ। *कृष्ण त्वदीयपदपङ्कजपञ्जरान्तं अद्यैव मे विशतु* *मानसराजहंसः । प्राणप्रयाणसमये कफवातपित्तैः* *कण्ठावरोधनविधौ स्मरणं कुतस्ते ॥ ७ ॥* ठीक है, तो मुझे लगता है मैंने जितने स्तोत्रो का चयन किया था, उसमें से आधे ही हो गए और समय तो पूरा हुआ। तो फिर बचे हुए जो स्तोत्र है हम आपको कल सुनाएंगे। आज जो सुने हैं ऐसे विचार के आप बनो। नोट किया ना? ठीक है अच्छे भक्त हो आप। सच्चे बनो। कच्चे मत रहना पक्के बन जाओ। हरि हरि। *राजा कुल शेखर की जय।* *मुकुंद माला स्तोत्र की जय।* *श्रील प्रभुपाद की जय।* *गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।*

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