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जप चर्चा पंढरपुर धाम से दिनांक 8 मई 2021 हरे कृष्ण!!! हरि बोल!! अर्जुन, सखी वृंद और बाकी सभी को भी हरे कृष्ण! आज इस जपा कॉन्फ्रेंस में 871 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। आप उनमें से एक हो, स्वागत है। आप सभी ठीक हो? साधना सिद्ध एंड कंपनी? यदि आप पूरे ठीक भी नहीं हो तब यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। आपको ठीक कर देगा। इस हरे कृष्ण महामंत्र में ऐसी शक्ति है। इस हरे कृष्ण में ऐसा सामर्थ्य है क्योंकि हरे कृष्ण हरे कृष्ण ही कृष्ण है। हरि! हरि! भगवान् के आश्रय में रहो। जीवन अनित्य जानह सार ताहे नाना-विध विपद-भार। नामाश्रय करि’ यतने तुमि, थाकह आपन काजे॥ (भक्ति विनोद ठाकुर द्वारा रचित गीत...७) अनुवाद:- जीवों का कल्याण करने के लिए ही यह सुमधुर नाम जगत में प्रकट हुआ है जो अज्ञानरुपी अंधकार से परिपूर्ण हृदयरूपी आकाश में सूर्य की भाँति उदित होकर, सारे अज्ञान को दूर कर प्रेमाभक्ति को प्रकाशित कर देता है। नाम का आश्रय ही भगवान का आश्रय है।नाम ही भगवान है। यदि आपको मदद चाहिए तो कहो हरे कृष्ण, हरे कृष्ण तब भगवान् मदद देंगे, भगवान मदद करेंगे या अपने किसी भक्त को प्रेरित करेंगे जिससे वह आपको भगवान की ओर से मदद करेगा। हरि! हरि! कृष्ण की ओर से व चैतन्य महाप्रभु की ओर से ऐसी मदद श्रील प्रभुपाद कर रहे हैं। श्रील प्रभुपाद की ओर से उनके शिष्य और प्रशिष्य (जिसमें आप सब आते हो।) वैसे प्रप्रशिष्य भी होते हैं, मदद कर रहे हैं। भगवान की ओर से, कृष्ण की ओर से, श्री चैतन्य की ओर से व इस्कॉन संस्थापकाचार्य श्रील प्रभुपाद की ओर से हमें भगवान की मदद औरों तक पहुंचानी है अथवा एक दूसरे के पास पहुंचानी है। इन दिनों में तो बहुत सहायता चाहिए। आपातकालीन स्थिति उत्पन्न हुई है। हरि! हरि! यह इमरजेंसी है। कई सारे लोग आईसीयू में हैं अर्थात गहन चिकित्सा केंद्र में पहुंचे हैं। इसलिए उनकी मदद अथवा सहायता करनी है। दीन दुखियों की मदद करनी है। सभी तो दुखी हैं ही और क्यों नहीं होंगे, हम दुखालय में जो हैं। दुखालयम् में हैं फिर हम इस दुखालय में सुखी कैसे होंगे। अच्छी बात तो यह होगी कि यहां से निकल पड़ो, यहाँ से बाहर निकलो। स्वास्थ्य के लिए अथवा कोरोनावायरस के लिए जो भी सहायता चाहिए, आप सहायता करो। हरि! हरि! किंतु यह तो प्रयास होगा केवल लोगों को इस बीमारी से मुक्त करने के लिए। जिसे भी सहायता की जरूरत है, हमें लोगों के सम्पूर्ण ठीक होने तक सहायता जरूर करनी चाहिए अथवा करनी है। हम शरीर भी हैं, हम मन भी हैं, हम आत्मा भी हैं। हमें शरीर, मन, बुद्धि के ठीक होने की चिंता करनी है। तुम शरीर नहीं हो, चिंता मत करो, ऐसा कहने का यह समय नहीं है। हम शरीर भी हैं। हमें भक्ति करने के लिए स्वस्थ शरीर भी चाहिए। शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।। ( महाकवि कालिदास द्वारा रचित कुमारसम्भव से) अर्थ : शरीर ही सभी धर्मों (कर्तव्यों) को पूरा करने का साधन है। अर्थात शरीर को सेहतमंद बनाए रखना जरूरी है। इसी के होने से सभी का होना है अत: शरीर की रक्षा और उसे निरोगी रखना मनुष्य का सर्वप्रथम कर्तव्य है। पहला सुख निरोगी काया। ऐसा भी वैदिक वांग्मय का एक वचन व वाक्य है। शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। शरीर ही पहला साधन है। वैसे पहले हमें हमेशा साध्य को निर्धारित करना चाहिए। इस वचन में साध्य धर्म है, साध्य क्या है? धार्मिक बनना है। हम लोगों की भाषा में अथवा हरे कृष्ण वालों की भाषा में साध्य क्या है? कृष्ण भावना भावित होना है। यह लक्ष्य है, यह साध्य है, यह ध्येय है। हर साध्य का साधन होता है। जब साधना में सिद्धि होती है तब साध्य प्राप्त होता है। कृष्ण भावना भावित होना और अंततोगत्वा गोलोकधाम वापिस लौटना यह जो साध्य है, इसका पहला साधन शरीर बताया गया है। पहला साधन शरीर है, हम औऱ साधनों का भी उपयोग प्रयोग करेंगे लेकिन उनका उपयोग भी तो शरीर ही करेगा। जैसे लिखने के लिए पेन चाहिए, पेन साधन हुआ किन्तु जब तक हाथ या उंगली उसको पकड़ेगी नहीं, पेन पेंसिल बेकार है। इस प्रकार जो भी साधन है अर्थात यह जो आदि मूल साधन है, उन साधनों का उपयोग यह शरीर ही करता है। हरि! हरि! यह जिव्हा भी साधन है, मुख भी साधन है, कान भी साधन है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं है फिर हम साधना भक्ति के साधनों को जुटा नहीं सकते। उसको प्राप्त नहीं कर सकते या उसको पकड़ नहीं सकते अथवा उसका उपयोग नहीं कर सकते। थोड़ा समझा रहा हूं कि कैसे शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् है। खलु अर्थात निश्चित ही। शरीर निश्चित ही धर्म का प्रथम साधन है। शरीर को इसीलिए स्वस्थ रखा जाना चाहिए। स्वस्थ शरीर का उपयोग एक धर्म के साधन के रूप में होना चाहिए। वैसे सब कहने के लिए समय तो नहीं है लेकिन ... मान लो, कोई अंधा है या किसी को मोतियाबिंद है (आंखों की बीमारी) उसके लिए आई कैंप अथवा आई ऑपरेशन कैंप लगते हैं। जैसे कोई अंधा है या उसकी दृष्टि में कुछ दोष है, डॉक्टर ठीक कर देते हैं। मैं कहता ही रहता हूं कि उन्हीं की दृष्टि को ठीक करो या उनके आंखों का ऑपरेशन करो जिन्हें आँखे अथवा दृष्टि प्राप्त होते ही, वे उस दृष्टि से कृष्ण का दर्शन करने चाहे। दूरदर्शन नहीं अपितु कृष्ण दर्शन, यदि दूरदर्शन देखने जा रहे हो तो अंधे ही रहो। बेकार है। यदि आँखे हैं, तो भी बेकार है, जो कृष्ण का दर्शन ना करें, राम का दर्शन ना करें। पापाची वासना नको दावू डोळा। त्याहुनि आंधळा बराच मी- ( सन्त तुकाराम) (भगवान्, मुझे इस जगत के पाप मत दिखाइए, इससे अच्छा है कि मैं अंधा रहूं) सन्त तुकाराम महाराज कहते हैं कि मुझे अंधा ही रखो, मुझे अंधा ही बना दो। मेरी दृष्टि अथवा आंखों का उपयोग आपके दर्शन के लिए या गीता भागवत पढ़ने के लिए या वह मार्ग दिखाने के लिए हो। मंदिर किस तरफ है? जगन्नाथपुरी का रास्ता किस तरफ है। इस तरह से आंखों के बहुत सारे उपयोग हैं। इस प्रकार आंखें साधन बन जाती हैं। अतः स्वस्थ शरीर चाहिए, आंखें चाहिए। कान तंदुरुस्त हो। जैसे जब कोरोना होता है, तब हम नासिका से गन्ध नहीं ले पाते मतलब वह साधन ठप्प हो गया, बंद हो गया, काम नहीं कर रहा है। हमें स्वस्थ शरीर चाहिए, इसीलिए भी हमें योगा करना चाहिए। योगा, आसन, व्यायाम करना चाहिए ताकि हमारा शरीर स्वस्थ रहे। शरीर स्वस्थ इसलिए रहना चाहिए ताकि हम उसे भगवत प्राप्ति का साधन बना सकें। जैसे कई सारे राजा हैं- राजा कुलशेखर या राजा अम्बरीष जोकि कहते हैं कि सवै मनः कृष्णपदारविन्दयो चांसि वैकुण्ठगुणानुवर्णने । करौ हरेमन्दिरमार्जनादिषु श्रुतिं चकाराच्युतसत्कथोदये ॥१८ ॥ मुकुन्दलिङ्गालयदर्शने दृशौ तद्धृत्यगात्रस्पर्शेऽङ्गसङ्गमम् । घ्राणं च तत्पादसरोजसौरभे श्रीमत्तुलस्या रसनां तदर्पिते ॥ पादौ हरेः क्षेत्रपदानुसर्पणे शिरो हृषीकेशपदाभिवन्दने । कामं च दास्ये न तु कामकाम्यया यथोत्तमश्लोकजनाश्रया रतिः॥ ( श्रीमद् भागवतम् ९.४.१८-२०) अनुवाद:- महाराज अम्बरीष सदैव अपने मन को कृष्ण के चरणकमलों का ध्यान करने में , अपने शब्दों को भगवान् का गुणगान करने में , अपने हाथों को भगवान् का मन्दिर झाड़ने - बुहारने में तथा अपने कानों को कृष्ण द्वारा या कृष्ण के विषय में कहे गये शब्दों को सुनने में लगाते रहे । वे अपनी आँखों को कृष्ण के अर्चाविग्रह , कृष्ण के मन्दिर तथा कृष्ण के स्थानों, यथा मथुरा तथा वृन्दावन, को देखने में लगाते रहे । वे अपनी स्पर्श - इन्द्रिय को भगवद्भक्तों के शरीरों का स्पर्श करने में, अपनी घ्राण - इन्द्रिय को भगवान् पर चढ़ाई गई तुलसी की सुगन्ध को सूंघने में और अपनी जीभ को भगवान् का प्रसाद चखने में लगाते रहे । उन्होंने अपने पैरों को पवित्र स्थानों तथा भगवत् मन्दिरों तक जाने में, अपने सिर को भगवान् के समक्ष झुकाने में और अपनी इच्छाओं को चौबीसों घण्टे भगवान की सेवा करने में लगाया। निस्सन्देह , महाराज अम्बरीष ने अपनी इन्द्रियतृप्ति के लिए कभी कुछ भी नहीं चाहा। वे अपनी सारी इन्द्रियों को भगवान् से सम्बन्धित भक्ति के कार्यों में लगाते रहे । भगवान् के प्रति आसक्ति बढ़ाने की और समस्त भौतिक इच्छाओं से पूर्णत: मुक्त होने की यही विधि है । राजा अम्बरीष कहते हैं कि मैं अपने मन से भगवान के चरण कमलों का ध्यान करना चाहता हूं। चरणों से चलकर मंदिर में दर्शन के लिए जाना चाहता हूं। कानों से मैं कृष्ण कथा तथा हरिनाम सुनना चाहता हूं। हरि! हरि! भागवतम में राजा अम्बरीष का चरित्र पढ़ो। वे काफी आदर्श राजा व आदर्श मानव रहे। वे अपने हाथों को मंदिर मार्जन के लिए प्रयोग करते थे। वे शरीर के हर अवयव अर्थात भाग का प्रयोग करते थे। वे लिखते हैं कि मैं यह करता हूं और मैं वह करना चाहता हूं। मैं अपने हाथों से यह करूंगा, कानों से यह करूंगा, पैरों का इस प्रकार उपयोग करूंगा। नासिका से भगवान् को चढ़ाए हुए फूल अगरबत्ती हैं, उसको सूंघना चाहूंगा। आ..ह... जैसे चार कुमारों ने तुलसी की गंध को सूंघा था। वैसे भगवान ने भी कहा है कि पृथ्वी में जो गंध है, वह मैं ही हूं। कहीं भी कोई गंध है, वह पृथ्वी के कारण है। यह पृथ्वी का विशिष्ट ही है। पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्र्चास्मि विभावसौ | जीवनं सर्वभूतेषु तपश्र्चास्मि तपस्विषु ।। ( श्रीमद् भगवक्तगीता ७.९) अनुवाद: मैं पृथ्वी की आद्य सुगंध और अग्नि की ऊष्मा हूँ। मैं समस्त जीवों का जीवन तथा तपस्वियों का तप हूँ।। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि पृथ्वी में जो गंध होती है, वह मैं हूं। पृथ्वी का ही गंध पुष्पों में आ जाता है। पृथ्वी का ही गंध धूप अगरबत्ती में आ जाता है, चाहे जहां भी गंध, सुगंध है। भगवान् कहते हैं कि वो मैं हूं। कभी कभी हम फूल को सूंघते हैं। आ....ह...ह.. बहुत अच्छी है। यदि हम कभी डिप्रेशन अर्थात निराश होते हैं तब हम फूल को सूंघते ही कहते हैं- आह...ह...। यह भाव कृष्ण के कारण है। हरि! हरि! शरीर का सदुपयोग और दुरुपयोग होता ही है। उपयोग और दुरुपयोग। शरीर का उपयोग भगवान की सेवा अथवा कृष्ण की सेवा में ही करना चाहिए। एवं कायेन मनसा वचसा च मनोगतम् । परिचर्यमाणो भगवाम्भक्तिमत्परिचर्यया ॥५१ ॥ पुंसाममायिनां सम्यग्भजतां भाववर्धनः । श्रेयो दिशल्यभिमतं यद्धादिषु देहिनाम् ॥ ६ ॥ ( श्रीमद् भागवतम् ४.८.५९) अनुवाद:- इस प्रकार जो कोई गम्भीरता तथा निष्ठा से अपने मन , वचन तथा शरीर से भगवान् की भक्ति करता है और जो बताई गई भक्ति - विधियों के कार्यों में मग्न रहता है, उसे उसकी इच्छानुसार भगवान् वर देते हैं । यदि भक्त भौतिक संसार में धर्म , अर्थ , काम भौतिक संसार से मोक्ष चाहता तो भगवान् इन फलों को प्रदान करते हैं । कायेन मनसा वाचा समर्पयामि। हम लोग जब संन्यास लेते हैं तब हमारा त्रिदंड होता है क्योंकि सन्यासी भगवान् की सेवा कायेन अर्थात काया से, मनसा, वाचा से करते हैं। भगवान् की सेवा करनी है, इसलिए अपने शरीर का उपयोग करना है लेकिन वो शरीर स्वस्थ तो हो। पूरा संसार एक बहुत बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है। पूरे मानव जाति के समक्ष बहुत बड़ी समस्या है। हमारे जमाने में अर्थात हमारे समय में हमनें ऐसा कभी नहीं देखा था। क्या आप में से किसी ने देखा था पहले? भूतो न भविष्यति। भूतकाल में हुआ होगा लेकिन लेकिन वर्तमान काल में तो हमने ऐसा कभी देखा नहीं था। हम सब ऐसी गंभीर स्थिति में फंसे हैं। कोई बचा हुआ नहीं है। हम सभी को सहायता चाहिए । हम सभी को सहायता करनी चाहिए। क्या आप समझें कि हम क्या कह रहे हैं। हम सभी को सहायता चाहिए। सहायता! सहायता! हम सब को मदद करनी चाहिए। ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्ममाख्याति पृष्छति । भुड.कते भोजयते चैब पडविरं प्रीति-लकषणम् ।। ( उपदेशामृत श्लोक ४) अनुवाद: दान में उपहार देना, दान-स्वरूप उपहार स्वीकार करना, विश्वास में आकर अपने मन की बातें प्रकट करना, गोपनीय ढंग से पूछना, प्रसाद ग्रहण करना तथा प्रसाद अर्पित करना -भक्तों के आपस में प्रेमपूर्ण व्यवहार के ये छह लक्षण हैं। ददाति प्रतिगृह्णाति का समय आ चुका है। दीवान-घेवान, आदान-प्रदान अथवा गिव एंड टेक। गुह्ममाख्याति पृष्छति। दिल की बात या कुछ सहानुभूति की बात। हम प्रोत्साहन, प्रेरणा, समर्थन, सहानुभूति के कुछ शब्द कह सकते हैं। वह भी एक सहायता है। गुह्ममाख्याति पृष्छति थोड़ा पूछताछ भी करो कि आप कैसे हो या क्या मैं आपकी कोई सहायता कर सकता हूं ? मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं? गुह्ममाख्याति पृष्छति । श्रील रूप गोस्वामी प्रभुपाद ने यह फॉर्मूला हमें दिया है। ददाति प्रतिगृह्णाति। कुछ सहायता दो, सहायता लो, गिफ्ट दो या गिफ्ट लो या दवा दो अथवा दवा लो या सलाह दो, सलाह लो। यह भी गुह्ममाख्याति पृष्छति हुआ। कुछ सलाह दो, कुछ जानकारी शेयर करो। कल मैं पढ़ रहा था उसमें लिखा था कि कोरोना वायरस की निरक्षरता अर्थात अज्ञानता ही हमारे पीड़ित होने का कारण है। (निरक्षरता तो आप जानते ही हो)। लोग भली भांति वह समझ नहीं रहे हैं कि यह कोरोना वायरस होता क्या है। थोड़ा समझना कठिन भी है। यह डॉक्टर अथवा सरकार नियम बता रही है यह करो, वह करो, मास्क पहनो। सोशल डिस्टेंस रखो। हाथ साफ करो इत्यादि। यह लो,वह लो लेकिन हम समझ नहीं रहे हैं अथवा समझना ही नहीं चाहते हैं। मैं सोच रहा था कि श्रील प्रभुपाद कहा करते थे कि मेरे शिष्यों के अनुयायियों के साथ यह भी एक समस्या है। वे माया से डर नहीं रहे हैं । यह अच्छा नहीं है। माया जबरदस्त है। दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया |मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।। (श्रीमद् भगवक्तगीता ७.१४) अनुवाद: प्रकृति के तीन गुणों वाली इस मेरी दैवी शक्ति को पार कर पाना कठिन है।किन्तु जो मेरे शरणागत हो जाते हैं, वे सरलता से इसे पार कर जाते हैं। हमें माया से डरना चाहिए। सावधान होना चाहिए। दूर रहना चाहिए किन्तु वे डर नहीं रहे हैं। इसी प्रकार आजकल कुछ लोग हैं जो कहते हैं कि हम कोरोना को नहीं मानते हैं अथवा मेरा विश्वास नहीं है। ऐसा कहने वाले लोगों को भी हम जानते हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति भी ऐसा कहा करते थे और भी कई अन्य लोग हैं, जो कहते हैं। मुझे परवाह नहीं है। मुझे कोई चिंता नहीं है। मैं नहीं जानना चाहता हूं, मैं कुछ नहीं करूंगा। इस प्रकार हम अनाड़ी रहते हैं। हमें पता नहीं चलता कि यह कोरोना वायरस क्या है। कैसे बचना है, इसकी अवेयरनेस( जागरूकता) को बढ़ाने की जरूरत है ताकि अधिक से अधिक लोग भली भांति उससे अवगत हो सकें और समझे व इस से दूर रहें और बचे। जैसा कि श्रील रूप गोस्वामी प्रभुपाद ने उपदेशामृत में कहा है और हम भी उसको सुना ही रहे हैं। गुह्ममाख्याति पृष्छति की बात कही, ददाति प्रतिगृह्णाति की बात कही। अब आगे वे भुड.कते भोजयते कहते हैं कि औरों को प्रसाद खिलाओ, केवल खिलाना नहीं है। केवल वेजीटेरियन नही होना है कृष्णटेरियन होना है। प्रसाद बांटो, प्रसाद खिलाओ। प्रसाद खाओ, प्रसाद ग्रहण करो। गिव एंड टेक। अन्न महादान के रूप में प्रसिद्ध है। यह सब इस्कॉन कर रहा है अर्थात इस प्रकार की सहायता की ऑफर इस्कॉन और फुल टाइम भक्त ही नहीं अपितु संघ (काँग्रेशन) के भक्त भी कर रहे हैं। इस्कॉन केवल मंदिर के आंगन तक ही सीमित नही है। जहां भी इस्कॉन के अनुयायी हैं, शिक्षित, दीक्षित भक्त हैं, वहां पर इस्कॉन है। आपका घर इस्कॉन है। आप इस्कॉन हो। यू आर द मेंबर ऑफ इस्कॉन। आप चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन के सदस्य हो। इस प्रकार से कई प्रकार से सहायता ली और दी जा रही है, हमें भी सम्मिलित होना है। प्रत्येक को भाग लेना है, सहायता सभी को चाहिए। इसलिए हम सहायता लेंगे भी और हम सहायता सभी को देंगे भी। यथाशक्ति यथासंभव। कोई भी साक्षी बनकर बैठा नहीं रहेगा, इमरजेंसी है। युद्ध का समय है। जब कोई देश युद्ध के मैदान में उतरता है तब कभी कभी वहां की महिलाएं और बच्चे भी बंदूक इत्यादि चलाना सीखते हैं या किसी ना किसी प्रकार की सहायता करते हैं। उस देश के सभी वासी किसी न किसी प्रकार से युद्ध के भाग में लेते हैं। इसे वॉर फुटिंग कहते हैं। केवल कुछ सैनिक ही लड़ाई नहीं लड़ेंगे अपितु उस लड़ाई का सभी अंग बनते हैं। यह लड़ाई नहीं है युद्ध है। बैटल जो है वह छोटी मोटी लड़ाइयां होती है। वॉर (युद्ध) बड़ें होते हैं वर्ल्ड वार। जैसे फर्स्ट वर्ल्ड वॉर, सेकंड वर्ल्ड वॉर। यह बैटल नहीं है। यह युद्ध है। हमें मैदान में उतरना है। जो भी हम कर सकते हैं, करना है। हम इस सब के अंग हैं। हमारी गवर्निंग बॉडी कमीशन में भी चर्चाएं हो रही हैं, कई आदेश उपदेश दिए जा रहे हैं, योजनाएं बन रही हैं। भारत में इस्कॉन ब्यूरो आईआई आई नाम का एक कमेटी है। वेस्टर्न डिसीज़ संसाधन और टेंपल तो पहले ही कर रहे हैं। हम सब व्यस्त हैं। मैं भी व्यस्त हूँ परंतु यह पर्याप्त नहीं है और व्यस्त होना होगा। आप मंदिर व संघ के सभी भक्तों को मैदान में उतरना है। सहायता लेनी है, सहायता देनी है। हर व्यक्ति को हर फैमिली को, हर मंदिर को, ठीक है। हरि! हरि! सुरक्षित रहिए! इस पर थोड़ा और विचार हो। हम कई दिनों से चर्चा तो कर रहे हैं। इस फोरम में इष्ट गोष्टी तो हो रही है। हम इसको जारी रखेंगे। इसको एक आकार शेप देना है। हेल्पलाइन की स्थापना करनी है। उसके लिए सारे साधन व सिस्टम को रन करने वाले भक्त भी चाहिए। एक तरह से एक संगठन ही कहो, हमें संगठित होना है। विशेषतया संपर्क को बढ़ाना है। किसे हेल्प चाहिए, कौन हेल्प कर सकता है, यह सब कनेक्शन जोड़ने हैं। कौन हमें प्रसाद खिला सकता है। जैसे नागपुर में प्रसाद खिलाया जा रहा है, हमारे डॉ श्याम सुंदर शर्मा एवं कर्णामृत की टीम अस्पतालों में प्रसाद पहुंच रही है। शायद घरों में भी। इस प्रकार सब शहरों में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। भक्ति वेदांत हॉस्पिटल के डॉक्टर भी अपनी ओर से सहायता कर ही रहे हैं। आपके साथ भी उनकी मुलाकात हुई थी। वे भी अपनी ओर से सहायता कर ही रहे हैं। मैं यही विराम देता हूं। हरे कृष्ण!!!

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