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जप चर्चा
दिनांक ०६.०१.२०२१
आज ८३६ स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं।
हरे कृष्ण!
द्वारका धाम की जय!
पद्ममाली प्रभु ने कल घोषणा की थी कि आज हम द्वारका जाएंगे और पदयात्रा में शामिल होंगे।
द्वारका में आपका स्वागत है, ऑनलाइन तो हम कहीं भी पहुंच सकते हैं, कोई बंधन नही है। आप यदि प्रतिदिन पंढरपुर पहुंच सकते हो, मुझ से मिलते हो, मुझे सुनते हो। मैं भी कभी कभी आप सब को सुनता हूँ। मैं रशिया, यूक्रेन भी पहुंच जाता हूं या मैं ऑनलाइन नागपुर, कोल्हापुर, शोलापुर कही भी पहुंच जाता हूं। यह सब ऑनलाइन सम्भव होता है तो क्यों ना हम द्वारका धाम पहुंचे। द्वारकाधीश की जय! विशेष रूप से निताई गौर सुंदर की जय! आल इंडिया पदयात्रा, सभी पदयात्राओं की जननी है।इस आल इंडिया पदयात्रा के पदयात्री भक्तों की जय!
हमें इसकी भी गौरव गाथा सुननी चाहिए और अन्यों को सुनानी चाहिए। पदयात्रा के भक्त कितना परिश्रम कर रहे हैं। पद्ममाली! क्या तुम हो?
(पद्ममाली प्रभु- जी गुरु महाराज)
गुरु महाराज - क्या द्वारका पदयात्री भी इस कॉन्फ्रेंस में उपस्थित हैं?
(पद्ममाली प्रभु- जी गुरु महाराज)
गुरु महाराज ठीक है।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
आप सभी भक्तों का अभिवादन करो। पदयात्रियों का स्वागत करो। पदयात्रियों का दर्शन करो। आप कहाँ हो? क्या आप द्वारका मंदिर में हो। ( पदयात्रियों से पूछते हुए)
पद्ममाली प्रभु-इस्कॉन द्वारका।
गुरु महाराज- वहाँ कम से कम दो द्वारका मंदिर है। एक तो द्वारका धाम के द्वारकाधीश और दूसरा इस्कॉन द्वारका मंदिर भी है । इस्कॉन द्वारका मंदिर में हमारे पदयात्री उपस्थित हैं। केवल पदयात्री ही नहीं, इन पदयात्रियों का नेतृत्व हमारे आचार्य प्रभु कर रहे हैं। आचार्य प्रभु की जय!
अन्य कई स्थानों से भक्त वहाँ आ पहुंचे हैं। थोड़ी देर में वे आपको बता सकते हैं कि कौन कौन वहाँ पधार चुके है। मंदिर के अध्यक्ष औऱ मंदिर के अधिकारी भी हैं।
वैष्णव सेवा प्रभु कहाँ हैं? सामने मैदान में आओ।
पदयात्री-" महाराज वैष्णव सेवा प्रभु आये हैं।
महाराज - कहां पर आये हैं। यहां पर नहीं हैं।
पद्ममाली प्रभु:- शंभूनाथ प्रभु, उन्हें स्क्रीन पर बुलाइए।
यदि वे मंदिर में हैं तो?
( द्वारका में उपस्थित भक्त बोलते हुए) महाराज- वैष्णव नाथ आ गए।
पद्ममाली प्रभु- ओके( ठीक है )
(गुरू महाराज) आयो रे!आयो रे। जैसे वृंदावन में कृष्ण आ गए।
वैष्णव सेवा प्रभु:- दण्डवत महाराज!
गुरू महाराज- हरे कृष्ण!
द्वारकाधीश का आशीर्वाद प्राप्त करो। मैं बहुत कुछ कह रहा था। एक ही बात ही नहीं, अनेक बातें। अनेक विषय बोल दिए। एक तो मैं आपको द्वारका चलने के लिए आमंत्रित कर रहा था। चलो द्वारका।
द्वारका धाम की जय!
यह तो आपको पता ही है यह
द्वारकाधीश भगवान् का स्थान है। यहीं पर द्वारका भी है। वैसे द्वारकाधाम से आज पुनः 7 वीं बार पदयात्रा प्रारंभ हो रही है। हरि बोल!
आप उतने उत्साही नहीं लग रहे हो, जितने की पदयात्री, पदयात्रा करने के लिए उत्साहित हैं। आपको उनका उत्साह बढ़ाना है। इसलिए आपका पदयात्रियों के साथ मिलन हो रहा है।
वैसे इसी द्वारकाधाम से यह पदयात्रा ३६ वर्ष पूर्व प्रारंभ हुई थी। २ सितंबर १९८४ का दिन था। राधाष्टमी भी थी।जय राधे!
हम थोड़ा इतिहास बताते हैं, यह पदयात्रा का आयोजन क्यों हुआ था। वर्ष 1986 में चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य अथवा आविर्भाव को ५०० वर्ष पूर्ण होने जा रहे थे। संसार और इस्कॉन को भी महाप्रभु के आविर्भाव का पंच शताब्दी महोत्सव मनाना था। इस्कॉन की गवर्निंग बॉडी कमिशन ने इस पर बहुत विचार विमर्श किया कि कैसे हम चैतन्य महाप्रभु के आविर्भाव दिवस का पंच शताब्दी महोत्सव मना सकते हैं। तत्पश्चात यह तय हुआ कि इस्कॉन के भक्त पदयात्रा का आयोजन करेंगे। हरि! हरि!
हम एक पदयात्रा द्वारका से प्रारंभ करेंगे।पदयात्रा करते हुए पदयात्रियों को पहुंचना तो ईस्ट इंडिया (पूर्व भारत) में था अर्थात गौर पूर्णिमा के समय बंगाल, मायापुर धाम पहुंचना था अर्थात वर्ष १९८८ में गौर पूर्णिमा अर्थात जिस दिन चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए थे, उस दिन मायापुर, नवद्वीप पहुंचना था जोकि पूर्व भारत में स्थित है। पश्चिम दिशा में द्वारका अर्थात आप अधिक से अधिक पश्चिम दिशा में जा सकते हो। भारत का नक्शा द्वारका ही है।
अंग्रेजी में कहते हैं कि वह मोस्ट वेस्टर्न पॉइंट है। वहाँ अर्थात द्वारकाधाम से पदयात्रा प्रारंभ होगी, यह भी लक्ष्य था ।
श्री-राधार भावे एबे गोरा अवतार हरे कृष्ण नाम गौर करिला प्रचार॥4॥
( श्री वासुदेव घोष द्वारा रचित)
अनुवाद:- अब वे पुनः भगवान् गौरांग के रूप में आए हैं, गौर-वर्ण अवतार श्रीराधाजी के प्रेम व परमआनन्दित भाव से युक्त और पवित्र भगवन्नामों हरे कृष्ण के कीर्तन का विस्तार से चारों ओर प्रसार किया है। (अब उन्होंने हरे कृष्ण महामंत्र का वितरण किया है, उद्धार करने का महान कीर्तन। वे तीनों लोकों का उद्धार करने के लिए पवित्र भगवन्नाम वितरित करते हैं। यही वह रीति है जिससे वे प्रचार करते हैं। )
श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कलियुग में धर्म हरे कृष्ण नाम , हरे कृष्ण महामंत्र का प्रचार करने हेतु यात्रा की, जोकि मायापुर से प्रारंभ हुई थी। चैतन्य महाप्रभु मायापुर से काटवा गए। उन्होंने वहा संन्यास लिया। चैतन्य महाप्रभु ने पदयात्रा प्रारंभ की अर्थात भगवान् ने पदयात्रा की। हरि हरि बोल।
पृथिवीते आछे यत नगरादि-ग्राम।सर्वत्र प्रचार होइबे मोर नाम।
( चैतन्य भागवत)
अनुवाद:- पृथ्वी के पृष्ठ भाग पर जितने भी नगर व गाँव हैं, उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा।
मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र हो, इस उद्देश्य से स्वयं भगवान् ने अपने नाम का प्रचार किया। चैतन्य महाप्रभु ने जहां जहाँ प्रचार किया था अर्थात बंगाल में चैतन्य महाप्रभु जहां जहां गए थे या उडीसा में चैतन्य महाप्रभु जहाँ जहाँ गए या फिर आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तत्पश्चात गुजरात में थोड़ा सा प्रवेश किया था। उसके पश्चात चैतन्य महाप्रभु नवद्वीप पुनः लौटे।
हम थोड़ा उल्टी दिशा में .. चैतन्य महाप्रभु, पूर्व दिशा से पश्चिम की ओर पहले दक्षिण भारत गए। कन्याकुमारी या फिर गुजरात की ओर आए। यह पदयात्रा शुरू हुई गुजरात द्वारिका से, तत्पश्चात जहां जहां श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु गए थे। वहां वहाँ पुनः चैतन्य महाप्रभु जाएंगे।
२ सितंबर १९८४ की बात है।
श्री निताई गौर सुंदर द्वारिकाधीश मंदिर के प्रांगण में प्रकट हुए। श्री निताई गौर सुंदर की जय! मंदिर के पदाधिकारियों व महंतों ने बहुत योगदान दिया, हमारे लिए पूरा मंदिर ही खोल दिया। मंदिर प्रांगण में भगवान द्वारकाधीश के दर्शन मंडल अथवा उनके चरणों से यह हमारी पदयात्रा प्रारंभ हुई। उसी आंगन में निताई गौर सुंदर की प्राण प्रतिष्ठा हुई। प्राण प्रतिष्ठा जब विग्रह की होती है, तब भगवान् प्रकट होते अथवा अवतार लेते हैं अर्थात अर्चा विग्रह के रूप में अवतार लेते हैं। निताई गौर सुंदर अर्थात गौर नित्यानंद ने अवतार लिया, वे प्रकट हुए, पदयात्रा प्रारंभ हुई। पदयात्रा करने के पीछे एक अन्य उद्देश्य भी था।
श्रील प्रभुपाद ने अपने अंतिम दिनों में अर्थात वर्ष १९७७ में तीर्थयात्रा की इच्छा व्यक्त की थी। उसकी तैयारी भी हुई थी। जैसा कि आप जानते हो कि प्रभुपाद पहले से ही बैल गाड़ी से ब्रज यात्रा करना चाहते थे। यह काफी लंबा और गहरा इतिहास है। बहुत सी घटनाएं घटी हैं। वो बात नही हो पाई कि बैलगाड़ी से पहले गोवर्धन जाना था।तत्पश्चात ब्रज मंडल की यात्रा करनी थी। फिर उससे आगे बढ़ना था। वह बात तो नहीं बनी। लेकिन पुनः चर्चा हुई। इस समय भी प्रभुपाद ने तीर्थ यात्रा करने का विचार त्यागा नही। जब उन्हें बोला कि आप बैलगाड़ी से यात्रा नहीं कर सकते हो। उन्होंने बोला कि नहीं! मुझे यात्रा तो करनी है। बस से यात्रा करेंगे, ऐसा विचार भी हुआ। उसकी भी तैयारी चल रही थी, लेकिन श्रील प्रभुपाद भगवत धाम ही चले गए, हमारे साथ नही रहे। तीर्थ यात्रा पर नहीं गए। वरिष्ठ भक्तों को प्रभुपाद की इच्छा का पता था कि प्रभुपाद यात्रा करना चाहते थे।
यहां दो बातों का संगम हुआ। एक तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का ५००वां अभिर्भाव दिवस था, उसका भी उत्सव मनाना है, उसके लिए यात्रा करेंगे और उन्हीं स्थानों पर जाएंगे, जहाँ चैतन्य महाप्रभु गए थे औऱ उन्होंने कीर्तन किया था। तत्पश्चात वे आगे बढे थे। वह भी पदयात्रा के आयोजन का एक उद्देश्य था। दूसरा उद्देश्य यह था कि प्रभुपाद की तीर्थ यात्रा करने की तीव्र इच्छा थी। पदयात्रा के आयोजन के पीछे प्रभुपाद की इच्छा पूर्ति भी दूसरा उद्देश्य था । ऐसा मोटा मोटी कह सकते हैं कि इन दो उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पदयात्रा का आयोजन हो रहा था। द्वारकाधीश की जय! द्वारकाधाम की जय!
कहना तो नहीं चाहिए, लेकिन कहे बिना रहा भी नहीं जाता। इन दोनों यात्राओं का प्रभुपाद एक तो बैल गाड़ी से यात्रा करना चाहते थे, फिर वह बात नहीं बन पा रही थी। तो फिर वह बस से यात्रा करना चाहते थे। उस समय प्रभुपाद ने सभी के समक्ष मुझे संबोधित करते हुए कहा था।
तुम इस यात्रा का नेतृत्व करोगे। इस बात को भी सभी ने नोट किया हुआ था। जब जी.बी.सी. ने पदयात्रा का निर्णय लिया, कि हम पदयात्रा करेंगे -द्वारिका से कन्याकुमारी होते हुए मायापुर नवद्वीप जाएंगे तब उसके लीडरशिप नेतृत्व के लिए मेरा स्मरण किया गया। इस दास को पदयात्रा का नेतृत्व दिया।।
वैसे पदयात्रा करने के लिए मुझे कहा ही था। वर्ष 1976 में बैलगाड़ी संकीर्तन पदयात्रा वृंदावन से आरंभ हुई थी। हम वृन्दावन से गए भी थे और मायापुर तथा जगन्नाथ पुरी के रास्ते में भी आगे बढे व भुवनेश्वर तक भी आगे पहुंचे ही थे। उस समय मुझे यह आदेश ही था कि बैलगाड़ियों से यात्रा करो। मुझे यह सेवा प्राप्त हुई। वह सेवा भक्तों तथा पदयात्रियों के सहयोग से ऑल इंडिया पदयात्रा, 1984 में प्रारंभ हुई थी। ऑल इंडिया पदयात्रा, पदयात्राओं की जननी परंतु वह नही चली खंडित हो गयी। वर्ष 1986 में यात्रा पुनः चली। पदयात्रा कहो या बैलगाड़ी संकीर्तनं पार्टी द्वारका से प्रारंभ हुई। तब से यह यात्रा अब तक चल रही है। चार- पांच वर्षों के पश्चात पदयात्रा पूरे भारत का भ्रमण अथवा परिभ्रमण करके द्वारका वापिस लौटी। पहली बार जब पदयात्रा परिक्रमा सम्पूर्ण करके चार वर्षों बाद १९८८ में वापिस लौटी थी तब पदयात्रा का भव्य स्वागत हुआ था। पहली परिक्रमा जब पूर्ण हुई थी तब द्वारिका धाम के प्रवेश पर ही ( जहाँ पर यात्री पूरे संसार भर से आते हैं) वहीं से द्वारका मंदिर की ओर जाना होता है।
वहाँ भव्य (यात्रा गेट) का निर्माण हुआ था। वहां भव्य स्वागत हुआ था। द्वारिका वासियों ने, द्वारका नगर पालिका, नगरअध्यक्षों, नगर सेवको तथा मंदिर के अधिकारियों ने, महन्तों, संतों भक्तों ने पदयात्रियों का स्वागत किया था। इस प्रकार हम हर ४-५ वर्षो बाद द्वारका लौटते हैं। यह छठवीं बार पदयात्रा लौटी थी। यह पदयात्रा अब रुकने का नाम नहीं ले रही है। वैसे पहले आपको बता तो चुके ही थे। 1984 में प्रारंभ हुई पदयात्रा का लक्ष्य अर्थात गंतव्य स्थान नवद्वीप था। वहाँ जाकर रूकना था, किन्तु मार्ग में जो यश मिला पदयात्रा कार्यक्रम को। जितना जन सम्पर्क हुआ। पूछो नही। जब उडीसा, जगन्नाथ की ... वैसा ही अनुभव भक्त कर रहे थे जैसे चैतन्य महाप्रभु स्वयं ५०० वर्ष पूर्व अपनी यात्रा में अनुभव करते थे। कितने लोग जुड़ते थे, दर्शन करते थे, कीर्तन और नृत्य करते थे। इसका इतना यश मिल रहा था तो हम नवद्वीप में रुक नहीं पाए अर्थात हम मायापुर में रुके नही पाए और आगे बढ़े। तत्पश्चात द्वारका लौटे। लौट ही रहे हैं। छह बार लौट चुके हैं। आज 7वीं बार पुनः भक्त आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। तैयार हो या नहीं? क्या आप तैयार हो?
हरिबोल!
हरे कृष्ण!