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जप चर्चा वृंदावन धाम से 8 नवंबर 2021 664 स्थानो से भक्त जप कर रहे हैं। प्रभुपाद तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय! लगभग 7:00 बजे तक आज मुझे इस जप चर्चा को पूरा करना हैं और फिर उसके बाद पूरे संसार के इस्कॉन जगत में प्रभुपाद तिरोभाव तिथि महोत्सव मनाया जाएगा। यहां पर भी तिरोभाव तिथि महोत्सव संपन्न होगा। आपको भी इसमें सम्मिलित होना हैं या सम्मिलित हो चुके हो। तिरोभाव तिथि महोत्सव तो हमेशा मनाए जाते हैं और आज भी मनाया जाएगा,लेकिन यह स्थान प्रभुपाद तिरोभाव तिथि के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इस स्थान पर प्रभुपाद समाधिस्थ हुए।श्रील प्रभुपाद का समाधि मंदिर यही हैं, श्रील प्रभुपाद का समाधि मंदिर यही कृष्ण बलराम के आंगन में हैं और श्रील प्रभुपाद के कई सारे शिष्य आज के दिन यहां जरूर पहुंच जाते हैं और भी बहुत भक्त पहुंच चुके हैं। आज अनाउंसमेंट में घोषित हुआ कि लगभग 12000 भक्तों को श्रील प्रभुपाद महा प्रसाद वितरित किया जाएगा,मतलब इतने भक्त यहां आ चुके हैं या रास्ते में ही हैं, पहुंचने वाले हैं। वृंदावन मे तिरोभाव तिथि महामहोत्सव संपन्न होगा।मैं ऐसा अनुभव करता हूं और कहता भी रहता हूं कि तिरोभाव तिथि के दिन प्रभुपाद और अधिक प्रकट हो जाते हैं। तिरोभाव तिथि के दिन वह और अधिक मात्रा में प्रकट हो जाते हैं। उनकी उपस्थिति का अधिक अनुभव होता हैं।इस तिरोभाव तिथि के दिन उनकी कई सारी यादें आ जाती हैं और हम श्रील प्रभुपाद को डिसअपीयर्ड होने भी नहीं देना चाहते हैं सही बात हैं या नहीं? श्रील प्रभुपाद कभी भी अप्रकट ना हो, हम श्रील प्रभुपाद को चाहते हैं। वी वांट प्रभुपाद।"श्रील प्रभुपाद की जय" या श्रील प्रभुपाद को भूल जाना, उन्हें याद नहीं करना मतलब श्रील प्रभुपाद अप्रकट हो चुके हैं या श्रील प्रभुपाद आपके लिए अप्रकट हो चुके हैं,यह तो संभव नहीं हैं।यदि प्रभुपाद ना होइते तबे कि होइते?यदि प्रभुपाद नहीं होते तो हमारा क्या होता? हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते।तो प्रभुपाद तो हुए ही,नहीं होते की बात नहीं हैं। प्रभुपाद तो हुए ही और प्रभुपाद को हम सारे जीवन भर के लिए अपने जीवन में संस्थापकाचार्य के रूप में चाहते हैं, हर सदस्य के जीवन में प्रभुपाद की एक विशेष भूमिका हमेशा रहेगी। हरि हरि और वैसे भी हम श्रील प्रभुपाद कि 125th बर्थ एनिवर्सरी मना रहे हैं और उसी के अंतर्गत यह 44th तिरोभाव दिवस मना रहे हैं।प्रभुपाद को याद रखने के लिए हम क्या करें?हम भक्त लोग प्रभुपाद को कैसे याद रखें? उनके लिए क्या करें ? या प्रभुपाद ने हमारे लिए इतना सारा किया, क्या नहीं किया उन्होंने हमारे लिए?उन्होंने इतनी सारी व्यवस्था हमारे लिए कि और इसी के अंतर्गत एक ऐसा घर बनाया जिसमें सारा संसार रह सकता हैं या उन्होंने सारे संसार को कृष्ण को दिया और कृष्ण को प्रसिद्ध किया।हरे कृष्ण लोग, लोग देखते ही कहते हैं यह हरे कृष्णा लोग हैं।पूरे विश्व भर में यह घर बनाया। हर देश में, हर नगर में,कई सारे घरों में पहुंच गया हैं यह हरे कृष्णा महामंत्र या कृष्णा बुक, कृष्ण प्रसाद या कृष्ण मंदिरों की स्थापना श्रील प्रभुपाद ने की। श्रील प्रभुपाद ने जगन्नाथ रथ यात्रा जैसे कई सारे उत्सव दिए और श्रील प्रभुपाद ने सारे संसार के भाग्य का उदय कराया, तो हम श्रील प्रभुपाद के सदा के लिए ऋणी रहेंगे, जो भी हमें श्रील प्रभुपाद ने दिया उसकी कोई तुलना नहीं हैं। उन्होंने हमें कृष्ण को दिया, उन्होंने हमें अपने ग्रंथ दिए, उन्होंने हमें जो भी दिया हैं, हमें उसे औरों को देना हैं। कल भी मैं बता रहा था कि यह श्रील प्रभुपाद की भावना रही, कैसी भावना? प्रचार की भावना। वह हमेशा कृष्ण को देते र।हे अपने उच्च विचार और बड़ी सोच के लिए श्रील प्रभुपाद प्रसिद्ध थे ।एक समय उन्होंने भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को एक पत्र लिखा था,उस समय जो भगवद्दर्शन पत्रिका का प्रकाशन हो रहा था प्रभुपाद उसके लिए सहायता चाहते थे। उसमें प्रभुपाद ने लिखा था कि जो भी मनुष्य मेरे साथ इस पृथ्वी पर हैं, उन सभी को मैं भगवद्धाम ले जाना चाहता हूं। यह श्रील प्रभुपाद की बड़ी सोच का उदाहरण हैं। वह अकेले नहीं जाना चाहते थे ,इसीलिए बैक टू गॉड हेड पत्रिका का प्रकाशन कर रहे थे।इसके लोकल भाषा में कई सारे भाषांतरण हैं, जैसे भगवद्दर्शन लेकिन मुख्य तो बैक टू गॉड हेड ही हैं।प्रभुपाद ने भगवद्धाम लोटो का अभियान छेड़ा था। इसी पत्रिका के लिए राष्ट्रपति को लिखा कि मैं सारे संसार के मनुष्यो को भगवद्धाम ले जाना चाहता हूं।कितनी दया का यह भाव या प्रदर्शन हैं। तो यह बड़ी सोच ही हैं। इसलिए हम प्रभुपाद के ऋणी हैं और सारा संसार उनका ऋणी हैं। इस ऋण से मुक्त होने के लिए प्रचार का कार्य आगे बढ़ाना चाहिए। प्रभुपाद ने अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ की स्थापना की और इसका प्रचार प्रसार किया। इसलिए हमें ऋण से मुक्त होने के लिए इसका प्रचार प्रसार बढ़ाना होगा। यह कार्य आगे बढ़ना चाहिए और इस कार्य को और अधिक फैलाने की जिम्मेदारी हम सभी की हैं।एक समय प्रभुपाद ने ऐसा कहा भी था तुम वैसे ही करो जैसे मैने किया।या मैंने प्रारंभ किया या मैं कर रहा था, उसको आगे बढ़ाओ। कृष्ण प्रचार के कार्य को आगे बढ़ाओ या फिर महाप्रभु का जो आदेश हैं जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश उसको आगे बढ़ाओ। अंतिम दिनों में भी श्रील प्रभुपाद लेटे लेटे, वह बिस्तर पर ही थे यहीं पर बगल के क्वार्टर में, प्रचार करने की इच्छा जाहिर कर रहे थे।वह बेचैन हो रहे थे और कह रहे थे कि मुझे ले चलो। मैं प्रचार करना चाहता हूं। मैं इस संसार को प्रचार करते करते ही छोड़ना चाहता हूं या माया के साथ लड़ते हुए मैं यह संसार या यह शरीर त्यागना चाहता हूं। इस सबके हम लोग साक्षी रहे और वह जो भाव था प्रभुपाद का कि मैं प्रचार करना चाहता हूं, मुझे यहां से ले चलो मुझे बैलगाड़ी से ले चलो और मुझे भी प्रभुपाद ने अपनी इस तीव्र इच्छा का भाग बनाया। वह अपने प्रचार प्रसार की इस तीव्र इच्छा की पूर्ति के लिए मुझे भी आदेश दे रहे थे या आदेश दिया ही।बैलगाड़ी ले आओ। मैं जाना चाहता हूं, सबसे पहले गोवर्धन और भी उसके बाद बहुत स्थानों पर प्रभुपाद जाना चाहते थे, किसके लिए? प्रचार प्रसार के लिए। तो यह अंतिम दिनों की प्रभुपाद की अंतिम इच्छाएं भी हैं।हमारे संस्थापकाचार्य की विल को, इच्छाओं को ,भावनाओं को, विचारों को हमें भलीभांति से समझना चाहिए और उनकी इच्छा पूर्ति के लिए हमें हर प्रयास करनाचाहिए। तुम वैसे ही करो जैसे मैं कर रहा था। तो आइए आज के दिन हम श्रील प्रभुपाद को याद करते हैं या श्रील प्रभुपाद के विचारों को, उनके दूरदर्शिता को, प्रभुपाद की योजनाओं को ,श्रील प्रभुपाद के दृष्टिकोण को याद करे तभी हम अच्छे फॉलोअर्स बनेंगे। प्रभुपादानुगा बनेंगे। tarko 'pratiṣṭhaḥ śrutayo vibhinnā nāsāv ṛṣir yasya mataṁ na bhinnam dharmasya tattvaṁ nihitaṁ guhāyāṁ mahājano yena gataḥ sa panthāḥ (चेतनय चरित्रामृत मध्य लीला-17.186) महाजनों द्वारा दिखाए गए पथ पर हमें चलना चाहिए। ऐसा शास्त्रों में वर्णन मिलता हैं।प्रभुपाद ने हमें मार्ग दिखाया हैं या वृंदावन में भक्ति वेदांत स्वामी नाम से एक मार्ग भी हैं। प्रभुपाद के दिए हुए कई सारे मार्ग हैं या विधि-विधान हैं, उनको भली-भांति समझ के हमें प्रभुपाद के कार्य को हर व्यक्ति, हर परिवार, हर भक्त को या इस्कॉन कि जहां-जहां स्थापना हुई हैं या आपके घर में भी वैसे क्योंकि आप इस्कॉन से ही हो। आप जहां हो वहीं इस्कॉन हैं। इस्कॉन केवल चार दीवारों में ही सीमित नहीं हैं या जहा इस्कॉन का मंदिर हैं, केवल वही इस्कॉन नही हैं,हां, इस्कॉन के अनुयाई जहां-जहां हैं, श्रील प्रभुपाद के अनुयाई जहां जहां उपस्थित हैं, वहा इस्कॉन हैं। फिर वह गृहस्थ भी हो सकते हैं या ग्रामस्थ भी हो सकते हैं या नगरस्थ भी हो सकते हैं। जहां श्रील प्रभुपाद के अनुयाई हैं वहां इस्कॉन हैं। आप इस्कॉन हो। आप इस्कॉन का अंग हो। हो या नहीं हो? आप अपने आप को इस्कॉन का मानते हो या नहीं? किसको किसको ऐसा लगता हैं कि वह इस्कॉन के हैं? अपने हाथ उठाओ या कहो हरि बोल हरि बोल। तो फिर यह घर हुआ, जिसे श्रील प्रभुपाद ने बनाया हैं। वैसे इसमें दीवारें नहीं हैं, जहां आप रहते हो वहां दीवारें हैं लेकिन हमारे बीच में दीवारें नहीं हैं। यह घर बिना दीवारों का हैं। यह घर हैं, दूसरा घर हैं, एक परिवार, दूसरा परिवार, यह एक बहुत बड़ा परिवार हैं। बहुत बड़ा घर हैं। इस प्रकार से प्रभुपाद का बड़ा दिल भी रहा। तो देख लीजिए आप, आज के दिन को कैसे-कैसे संपन्न करने वाले हो। इस्कॉन के मंदिरों में जाओ या आपके भक्ति वृक्ष की टीम भी इकट्ठे हो सकती हैं, या आपके घरों में आप अपने इष्ट मित्रों को एकत्रित कर सकते हो या स्वयं भी इस दिन को उत्सव रूप में मना सकते हो, प्रभुपाद लीलामृत पढ़ो या श्रद्धांजलि अर्पित करो या औरों से श्रद्धांजलियों को सुनो या यहां का जो प्रोग्राम होगा वृंदावन में उसे वृंदावन टीवी पर देखो।स्टै टयूंड इन। प्रभुपाद लीलामृत पढ़ो और देखो की क्या संकल्प ले सकते हो कि मैं प्रभुपाद के लिए यह करूंगा, वह करूंगा। मैं ग्रंथों का वितरण करूंगा या मैं प्रसाद का वितरण करूंगा या मैं उत्सव मनाउगा। इत्यादि इत्यादि।वैसे 125 वी वर्षगांठ का साल चल ही रहा हैं और आप कई सारे संकल्प ले ही चुके हो। मैं प्रभुपाद लीलामृत का वितरण करूंगा और फार्च्यूनएट पीपल कैंपैन भी हैं। कल मुझे गुजरात के भक्त मिले और वह बता रहे थे कि वह मुरली मोहन प्रभु जी के साथ प्रचार करते हैं और उन्होंने बताया कि उन सब ने मिलकर 125 गांव में हरि नाम के प्रचार का संकल्प लिया हैं।125 गांव में वह जाएंगे और कह रहे थे कि 120 लगभग गांव या 100 से ऊपर गांव हो चुके हैं। थोड़े ही बचे हैं और गांव में बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही हैं। बहुत सारी वीडियोस बन रही हैं। तो इस तरह से इस वर्ष लिए गए कई सारे संकल्पों को भी आप याद रखिए और वैसे ही करो जैसे मैं करता रहा। इस पर थोड़ा मनन-चिंतन करिए और आप भी उच्च विचार बनाइए,नहीं तो कैसे आप प्रभुपाद के अनुयाई या प्रभुपाद के अनुयायियों के अनुयाई कहलाएंगे? केवल अपना जीवन या हम दो हमारे दो उसके परे हमें किसी से लेना देना नहीं हैं, ऐसा मत करिए। यह संकीर्ण विचार हैं। यह एक प्रकार से पशु बुद्धि ही हैं। हरि हरि। तो यह सारे भवबंधन या इस संसार के तथाकथित रिश्ते नाते तोड़ दो। मुक्त हो जाओ। बाहर आओ और मैदान में उतरो या अपने परिवार का भी कुछ तो ख्याल करो।आपके,आपके परिवार के सदस्यों के प्रति सबसे मुख्य आपकी ड्यूटी तो यही हैं कि आप सबको कृष्णभावनाभावित बनाएं। पति को,पत्नी को,बच्चों को, रिश्तेदारों को, सभी को। यह सबसे मुख्य ड्यूटी हैं। लेकिन यह छोड़कर हम केवल उनके लिए रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था कर रहे हैं। तो यह पशु बुद्धि हैं, त्वं तु राजन् मरिष्येति पशुबुद्धिमिमां जहि । न जात: प्रागभूतोऽद्य देहवत्त्वं न नङ्क्ष्यसि ॥ श्रीमद्भागवतम 12.5.2 वैसे यह अंतिम वचन तो शुकदेव गोस्वामी ने परीक्षित महाराज को द्वादश स्कंध में बताए गए हैं, पशु बुद्धिं जहि। ऐसी पशु बुद्धि को त्यागो। त्वं तु राजन् मरिष्येति पशुबुद्धिमिमां जहि । न जात: प्रागभूतोऽद्य देहवत्त्वं न नङ्क्ष्यसि ॥ तुम मरोगे ऐसा तो कभी सोचना भी मत। क्योंकि ऐसा तो पशु सोचता हैं, कि मैं मरूंगा क्योंकि उसकी सोच शरीर तक सीमित होती हैं, परिवार तक सीमित होती हैं। मुझे रुकना होगा।मुझे मंदिर जाना हैं। ठीक हैं। तो आज के दिन व्यस्त रहो। देखो कैसे आप प्रभुपादभावना बढ़ा सकते हो। प्रभुपाद को याद करते हुए, प्रभुपाद भावना बढ़ाओ और प्रभुपाद को याद करना ही कृष्ण को याद करना हैं और प्रभुपाद को भुलेंगें तो हम भगवान को भूल जाएंगे। हरि हरि। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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