Hindi

हरे कृष्ण जप चर्चा पंढरपुर धाम से, 8 नवंबर 2020 आराध्यो भगवान ब्रजेश तनय: तद्धाम वृन्दावनं रम्यकाचिद उपासना व्रज - वधु वर्गेण या कल्पिता श्रीमद भागवतम प्रमाणमलम प्रेम पुमर्थो महान श्री चैतन्य महाप्रभोर मतम इदं तत्र आदरो न : पर : नम ॐ विष्णुपादाय कृष्णप्रेष्ठाय भूतले श्रीमते भक्तिवेदान्त – स्वामिन् इति नामिने नमस्ते सारस्वते देवे गौरवाणी प्रचारिणे निर्विशेष शून्यवादी पाश्चात्यदेश तारिणे (जय) श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुनित्यानन्द श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे आप सभी उपस्थित भक्तों का और शिष्यवृंदो का विशेष स्वागत है! आज विशेष दिन है इसीलिए भी विशेष स्वागत की बात है। आज राधाकुंड आविर्भाव तिथि महोत्सव है, और साथ ही साथ मेरे लिए यह विशेष दिन है क्योंकि, आज के दिन श्रील प्रभुपाद मुझे वृंदावन में दीक्षा दिए, गौडिय परंपरा के साथ मेरे संबंध को स्थापित किए, जन्मदिन भी कह सकते है, सब कहते रहते है लेकिन मैं नहीं कहता हूं कि मेरा जन्म वृंदावन में हुआ और वह आज के दिन हुआ है। हरि हरि। यह भक्तिलता बीज श्रीला प्रभुपाद मुझे दिए। बहुत ही पतित थे तो पावन बनाएं। और इसीलिए यह दिन मेरे लिए अविस्मरणीय है। हरि हरि। और फिर यहां कार्तिक मास भी था 1972 की बात है, श्रील प्रभुपाद ने घोषणा कि थी कि वे कार्तिक व्रत का पालन करेंगे, कार्तिक में वह वृंदावन में वास करेंगे, और कुछ कुछ हिस्सों को बताए थे। तो उस समय भारत में तो बहुत कम शिष्य थे, तो उस समय जो ब्रह्मचारी भक्त है वह विदेशी थे। तो जब सूचना मिली तो जो भी भारत के भक्त थे, वह मुंबई से गए। तो मैं भी मुंबई मंदिर में ब्रह्मचारी था, तो हम भी 15 भक्तों के साथ मुंबई से मथुरा की रेल यात्रा के साथ वृंदावन पहुंच गए। और फिर हम वहां पर पहुंचे जहां पर प्रभुपाद रहा करते थे और वह स्थान था राधा दामोदर मंदिर। जीव गोस्वामी के समाधि स्थल पर उन दिनों श्रीला प्रभुपाद रहा करते थे। अमेरिका जाने से पहले भी वहीं पर रहा करते थे, और फिर इस्कॉन के सपना के स्थापना के बाद जब वे 1972 में वृंदावन आए तब वहीं पर रहते थे। तो जैसे हम वृंदावन आए तो राधा दामोदर मंदिर में आकर राधा दामोदर का दर्शन किए और दर्शन के तुरंत उपरांत हमे हमारे कोइ गुरुभ्राता श्रील प्रभुपाद के कक्ष में लेकर गए, तो वह बहुत ही सुंदर प्रसंग था, मुंबई से आए हुए हम भक्त जब उस कमरे में बैठ गए तो वह कमरा हाउसफुल हो गया। हरि हरि। तो श्रील प्रभुपाद एक छोटे से आसन, आसन भी नहीं, एक रजाई पर बैठे हुए थे तो वह देख कर मुझे बड़ा अचरज लगा, श्रील प्रभुपाद के सादगी का और उनके सरल जीवन का! बहुत ही सरल जीवन श्रील प्रभुपाद जी रहे थे। विश्वभर में इस्कॉन की काफी सारी धन दौलत थी, उनके इतने सारे विदेशी शिष्य थे लेकिन यहां वृंदावन में श्रील प्रभुपाद वैसे ही रहते थे जैसे षड गोस्वामी वृंद रहा करते थे। फिर हम प्रणाम करके बैठ गए, और मैं श्रील प्रभुपाद के सामने ही बैठा था, और मैं इतना निकट कभी पहले कभी नहीं आया था। मुंबई में प्रभुपाद को देखा था, उनको सुना था लेकिन पहली बार उनके इतने निकट पहुंचा था। या वृंदावन ने मुझे उनके चरणों के अधिक पास जाने दिया। हरि हरि। वैसे जो यह सारी बातें मैं कह रहा हूं, वह लिखा हूं! यह सब कहने के लिए समय नहीं है। मायापुर वृंदावन उत्सव नाम का एक ग्रंथ मैंने लिखा है, उसमे 1972 का वर्णन है उसे आप पढ़ सकते हो! तो श्रील प्रभुपाद का प्रेम कार्तिक मास के महीने भर के लिए उनका सानिध्य में मिलने वाला था, और मिला भी! राधा दामोदर मंदिर के प्रांगण में श्रील प्रभुपाद प्रतिदिन सुबह श्रीमद्भागवत की कक्षा और शाम में भक्तिरसामृतसिंधु की कथा को सुना रहे थे। और कक्षा के उपरांत, श्रील प्रभुपाद के कमरे में भी हम भक्तों को श्रीमद् भागवत के टिका पर कक्षा दिया करते थे। हरि हरि। तो श्रील प्रभुपाद ने पहला प्रत्यक्ष आदेश दीया जब मैं भक्तों के साथ बैठा हुआ था, और श्रील प्रभुपाद वार्तालाप कर रहे थे और वार्तालाप करते समय श्रील प्रभुपाद हमारी और भी देखते, हम सभी की ओर देखते थे! एक तरफ से देखना शुरू कर दे, और मेरी तरफ जब श्रीला प्रभुपाद देखते तब तब वे थोड़ा रुक जाते! ऐसा अनुभव मुझे हो रहा था या मैं सोच रहा था कि, क्यो मेरी और देख रहे हैं बार-बार, क्या मैंने तिलक ठीक से नहीं किया, या फिर कुर्ता का बटन ठीक से नहीं लगाया? क्यों बार-बार देख रहे थे? मुझे तो पता नहीं चला या फिर तब पता चला जब प्रभुपाद ने कहा, रोको! तो वैसे ही मैंने रोक दिया! तो उन दिनों में किसी लोगों को आदत होती है, जैसे मुझे भी थी! तो में अपनी जांघों को जोर जोर से हिला रहा था। उस समय तो मुझे पता नहीं चला लेकिन, जैसे ही प्रभुपाद देख रहे थे और सोच रहे थे और फिर तो कहा कि रोको! तो वैसे ही मैंने रोक दिया। रोक लिया तो रोक ही लिया! और यह मेरे लिए पहला प्रत्यक्ष उपदेश रहा। वैसे आदेश उपदेश दो प्रकार के होते है, यह मत करो! यह एक बात है और यह करो! यह दूसरा प्रकार है। तो मुझे मत करो! निषेध वाली बात या आदेश दिया। हरि हरि। वैसे हम चाहते थे कि पूरा कार्तिक महीना हम श्रील प्रभुपाद के साथ रहेंगे लेकिन एक दिन अचानक श्रील प्रभुपाद कहे, मुझे और पंचद्रविड हम दोनों को कहे की, आप यहीं रह जाओ! गोवर्धन पूजा जो संपन्न होने वाली है, उसके लिए जो भी सामग्री चाहिए, तो मथुरा में बहुत बड़ा बाजार है वहां से लेकर आओ! तो हम दोनों गए और काफी समान हम लेके आए। तो यह भी एक पहली सेवा या आदेश श्रील प्रभुपाद ने दी। तो फिर जब हम वहां से लौटे तो आज के दिन, बहुलाष्टमी के दिन, वैसे हमें पता नहीं था कि बहुलअष्टमी है, तो इसी राधा कुंड के आविर्भाव दिन के प्रातः राधा दामोदर मंदिर के बगल वाले बाजू में जहां पर रूप गोस्वामी की समाधि है, उस समाधि के सामने रूप गोस्वामी का भजन कुटीर भी है, हम बैठे थे और वहां पर दीक्षा समारंभ संपन्न हो रहा था। और श्रील प्रभुपाद वह विराजमान थे। तो आज के दिन, कुछ ज्यादा भक्त नहीं थे, ज्यादा से ज्यादा 10 होंगे, श्रील प्रभुपाद हमारे दीक्षा माला पर हमारे सामने ही जप कर रहे थे, तो जैसे ही माला पूर्ण होती तो हमें सामने बुलाते। तो वैसे ही मेरे समक्ष माला संपन्न करके मुझे संकेत दिए, तो में आगे बढ़ा और श्रील प्रभुपाद के समक्ष बैठा, और श्रील प्रभुपाद ने अंग्रेजी में वार्तालाप किया और नियम बताएं और फिर हाथ आगे किया, मैं भी भीख मांग रहा था कि, दीजिए! मुझे भगवान दीजिए! या भगवान का नाम दीजिए! तो श्रील प्रभुपाद ने, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। यह महामंत्र मुझे दिया! 16 माला जप करिए। कम से कम 16 माला। और तुम्हारा नाम है लोकनाथ। वैसे मैं था रघुनाथ भगवान पाटिल का बेटा था। मेरे पिताजी का नाम भगवान था। भगवान का पुत्र रघुनाथ, अब मैं श्रील प्रभुपाद का पुत्र, प्रात दामोदर का पुत्र बना रहे थे। दीक्षा के समय सभी बातें नई होती है। नाम भी नया होता है। लोकनाथ कहे, सभी उपस्थित भक्तो ने इस नाम और मेरी दीक्षा, हरि बोल कहकर स्वागत अभिनंदन किया । पुनः श्रील प्रभुपाद का साक्षात दंडवत प्रणाम करके हम अपने स्थान पर बैठे और फिर औरों को भी जप माला और नाम देकर यज्ञ संपन्न हुआ आज के दिन। हरि हरि। इस प्रकार राधाकुंड आविर्भाव, प्राकट्य दिन ,जन्मदिन। मध्य रात्रि में होना था राधा कुंड का आविर्भाव। मेरा आविर्भाव या जन्म उसी प्रातकाल में वृंदावन में राधा दामोदर मंदिर के प्रांगण में, रुप गोस्वामी प्रभुपाद के सानिध्य में, समाधि के निकट। श्रील प्रभपाद हमे जन्म दिए। श्रील प्रभुपाद की जय। राधा कुंड का आविर्भाव। ब्रजमंडल ऑनलाइन परिक्रमा मे आप सम्मिलित हो रहे हो। परिक्रमा राधा कुंड के तट पर लगभग 3 दिन पहले ही पहुंची है। वहां पहुंचकर फिर एक दिन गोवर्धन की परिक्रमा हुई। फिर दूसरे दिन राधा कुंड की परिक्रमा हुई। लेकिन आज तो प्रस्थान करना चाहिए था किंतु परिक्रमा राधा कुंड के तट पर एक दिन और रहेगी। आज की दिन का आप कार्यक्रम उस एप में देख सकते हो।आज हम राधा कुंड में ही रुके हुए हैं क्योंकि आज राधा कुंड का आविर्भाव है। तो दिन में कई सारी कथाएं होती रहती है। राधा गोविंद महाराज भी आते हैं।हम भी कथा करते हैं कीर्तन होते हैं और भक्त राधा कुंड के तट पर आनंद लूटते हैं। इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम् ऐसा दमोदराष्टक में कहा है। इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुंडे इस प्रकार की लीलाओं से, भगवान जो लीला खेलते हैं वृंदावन में संपन्न करते हैं तब आनंद की कुंड भर जाते हैं। आनंद के सागर, आनंद ही आनंद। तो जब यह लीला संपन्न हो रही है तो उन लीलाओं का श्रवण कीर्तन हम करते हैं। और फिर आज के प्राकट्य लीला का श्रवण कीर्तन होता है और राधा कुंड के प्राकट्य लीला का। राज क्रीड़ा की तैयारी हो रही थी। इतने में अरिष्टासुर आया , असुर गए बैल के रूप में और आतंक मचाया उसने। भगवान ने उसका वध किया तो फिर रास क्रीड़ा को आगे बढ़ाना था। किंतु राधा और गोपियों ने कहा नहीं नहीं , गो वध या बैल वध जो धर्म का प्रतीक माना जाता है उसका वध किया तुमने तुम पापी हो।तो तुम को स्नान करना होगा संसार की सारी पवित्र नदियों में कुंडो में स्नान कर के जब लौटोगे तब आगे का खेल या क्रीड़ा या रासलीला संपन्न होगी। भगवान ने पहले श्याम कुंड बनाया और संसार भर के पवित्र नदियों को सरोवरों को वही पर बुलाया और पधारे । आपकी क्या सेवा कर सकते हैं । भर दो मेरे कुंड को, श्याम कुंड फिर पवित्र जल से भरा और फिर भगवान ने उसमें स्नान किया। भगवान ने कहा अब मैं तैयार हूं अगर तुम समझते थे कि मैं पतित या पाप किया था । अब पतित पावन बन गया मैंने स्नान किया। लेकिन तुम भी पापी हो मेरे जैसे निष्पाप को, मैं पापी हूं ऐसा समझ लिया और ऐसा कहा । तो अब तुमको स्नान करना होगा और फिर मुझे छू सकती हो मेरे पास आ सकती हो। राधा और गोपियों ने फिर कुंड की खुदाई की। यह मधुर लीला है। तो जब कुंड तो बन गया किंतु जल था नहीं। मानसरोवर और मानस सरोवर अलग है। गोवर्धन के ऊपर एक मानस सरोवर हैं। वहां से जल लाने का और कलश से जल भरकर कुंड भरने का प्रयास चल रहा था। लेकिन उसमें बहुत देरी लग रही थी। तो फिर कृष्ण कहे तुम एतराज नहीं हो तो मेरे कुंड में जल है ही उसी से जल भर दो। तुम्हारा कुंड भी अंततोगत्वा राधा और गोपियां मान गई। फिर ठीक मध्य रात्रि के समय, जो जल श्याम कुंड में था, उस जल ने प्रवेश किया राधा कुंड में। और इस प्रकार ये राधा और श्याम का मिलन भी हुआ है। हरि हरि। दोनों कुंड तैयार हो गए। तो फिर राधा और गोपियों ने स्नान किया और वह भी तैयार हो गए। रास क्रीड़ा आगे संपन्न हुई, राधा कुंड के तट पर। हरि हरि। यह आप ब्रज मंडल ग्रंथ में भी पढ़ सकते हो। भागवत के तात्पर्य में यह पढ़ने को मिलेगा। हरि हरि। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। राधा कुंड श्याम कुंड की जय। राधा श्यामसुंदर की जय। श्रील प्रभुपाद की जय। राधा दामोदर की जय। बोलो श्री राधे श्याम।

English

8th November Vrajmandal parikrama Day 9 Spiritual birthday of Gurumaharaj on auspicious occasion of Radha-kund appearance. namas te sārasvate deve gaura-vāṇī-pracāriṇe nirviśeṣa-śūnyavādi-pāścātya-deśa-tāriṇe śrī-kṛṣṇa-caitanya prabhu-nityānanda śrī-advaita gadādhara śrīvāsādi-gaura-bhakta-vṛnda Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare All the assembled devotees, disciples are welcome to today's session. Today is a special day so special welcome. Today is the appearance day of Sri Radha-Kunda. Also, it is very special because on this day 48 years ago Srila Prabhupada accepted me as his disciple in Vrindavan. This day is also called a birthday. I keep on saying that I was born in Vrindavan. He sowed the seed of Bhakti in my heart. He gave me the right path to walk on. He brought my life in the real sense. In 1972, in the month of Kartik Srila Prabhupada had announced then that he would observe Kartik Vrat and would reside in Vrindavan for the entire month. Those days there were not many disciples, and among them major were foreigners. There were very few Indian devotees. One of them was me who joined as a Brahmachari in Mumbai. I had gone to Vrindavan from Mumbai by train long with 15 devotees We went to Srila Jiva Goswami's Radha Damodar temple where Srila Prabhupada used to stay. He would stay there whenever he would come to Vrindavan. So we reached there and took darshan in the temple. So one devotee took me to Srila Prabhupada's room. It was a very small room. 15 devotees could pack the room. You can imagine. Srila Prabhupada was very simple. Despite the establishment of International Society and having so many disciples he would live very simply just like the 6 Goswamis. So I took a shower, got ready, and was sitting in front of Srila Prabhupada. It was the first time that I saw Srila Prabhupada from so near. I have written a book named Mayapur-Vrindavan Festivals. I have described this Kartik month of 1972 in that book. I got a very good association of Srila Prabhupada for 1 full month. Srila Prabhupada gave classes daily. In the morning he used to give Bhagavatam and in the evening he used to give the class on Necter of devotion. And after the class devotees and disciples used to take darshan of Srila Prabhupada in his room. The first day, when Srila Prabhupada was talking to all of us, I got the first instruction from him. He was looking at all of us while talking to us but he would stop at me for a while. I became very conscious and started wondering if my tilak or dress had any issues. I didn't understand till Srila Prabhupada said Stop It!!. Then I stopped. It was then I realized that I was shaking my thighs constantly. It was not doing it consciously but then I stopped it forever. This was the first instruction for me. Srila Prabhupada's instructions would comprise of do's and don'ts. So first instruction to me with a don't. One day Srila Prabhupada asked me and another brahmachari named Dravid to go to Agra and purchase some things for Govardhan Puja. So we went and brought everything. Prabhupada was so much happy. So this was also another instruction that I received. So today early in the morning, in Radha Damodar temple courtyard, in front of Samadhi of Srila Rupa Goswami, a yajna shala was made ready. So we all Diksha candidates were seated. 10 devotees were there. Srila Prabhupada started giving us his chanted beads and Harinam Diksha. When my time came he asked me the 4 regulative principles. Srila Prabhupada gave me my beads and Hare Krsna Mahamantra and said chant 16 rounds minimum. My name was Raghunath Bhagwan Patil and now I was Lokanath Das, son of Radha Damodar and Srila Prabhupada. Everything is new at the time of Diksha. So he has given me the name " Lokanath". There is usually not much scope of discussion during initiation but yet it is a memorable event in my life. Today is also RadhaKunda appearance day. It will be celebrated at the midnight. The Brajmandal parikrama stays at RadhaKunda for 3 days. On the First day you all did Govardhan Parikrama and yesterday you did Radha-Kunda Parikrama. Today you should have moved on but the parikrama stays for one extra day so that the devotees can attend the special celebration. Sometimes Radha Govind Maharaja including me comes and gives Katha. Kirtan also happens. It is an extremely blissful experience. tīdṛk sva-līlābhir ānanda-kuṇḍe sva-ghoṣam nimajjantam ākhyāpayantam tadīyeṣita-jñeṣu bhaktair jitatvam punaḥ prematas tam śatāvṛtti vande Translation: Those superexcellent pastimes of Lord Krishna's babyhood drowned the inhabitants of Gokula in pools of ecstasy. To the devotees who are attracted only to His majestic aspect of Narayana in Vaikuntha, the Lord herein reveals: “I am conquered and overwhelmed by pure loving devotion.” To the Supreme Lord, Damodara, my obeisances hundreds and hundreds of times.[Damodarastakam Verse 3] The pastimes of the Lord are pleasure-giving. It fills ponds with bliss. The pastime is such that Arishthasur, a demon in the form of a bull came to Vrindavan and Krsna had to kill him. Now Srimati Radharani and the Gopis deny playing rasa dance with Krsna saying that. He was impure so he had committed a great sin by killing the bull that is a symbol of righteousness. So they said Krsna to dance with us you need to take bath in all the holy waters of holy rivers and ponds in the universe. Krsna agreed and immediately all the rivers personified started appearing and they went to the pond [ Shyam-Kunda] made by Krsna. So Krsna took bath and said that now he was pure but since the Gopis along with Srimati Radharani had supported the demon so they were impure sinners now. They were asked to do the same purification task. All the Gopis started digging and bringing water from Mansi Ganga. However, all these efforts were in vain. The pond next to that of Krsna, made by the Gopis, did not fill at all. Finally, Krsna connected both the Ponds through an internal passage and the water got divided. So the water which was in Shyama Kunda was divided into Radha KundaaIn this way, these Kundas were formed. It happened in the midnight of today. You can read these past times in Srimad Bhagavatam. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare Radha-Kundaa Shyama-Kundaa ki Jay. Radha Shyam Sundar ki jay Radha Damodar ki jay Srila Prabhupada ki jay. Bolo Radhe Shyam

Russian