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जप चर्चा पंढरपुर धाम से 9 नवम्बर 2020 आज हमारे साथ 720 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हरी हरी..... आप ब्रजमंडल दर्शन ग्रंथ भी पढ़ सकते हो इस कार्तिक मास में परिक्रमा भी कर रहे हो जो परिक्रमा का अनुभव है जप चर्चा के समय और जिस दिन जहां की भी परिक्रमा हो रही है जहां जा रही है। वैसे से परिक्रमा इस ग्रंथ के आधार पर ही परिक्रमा होती है या परिक्रमा ही आधार है इस ग्रंथ का आज जैसे जहां भी परिक्रमा जा रही है। *राधा कुंड की जय.......* वह अध्याय पढ़ो वह दिन पढ़ो परिक्रमा तीस दिवस चलती है उसमें तीस दिनों का महत्व लिखा है। उसको पढ़ने के उपरांत फिर आप परिक्रमा के साथ चलोगे देखोगे और समझोगे परिक्रमा को अधिक गहराई में पहुंच जाओगे परिक्रमा के अधिक अनुभव होंगे। इस ग्रंथ को पढ़ो भी साथी परिक्रमा भी करो दोनों तरफ से हो सकता है पढ़ो या परिक्रमा करो परिक्रमा करो या पढ़ो बस वैसे ही हम सारा दिन पढ़ सकते हैं हरि हरि कल ही बहुलाष्टमी थी और कल के दिन ही मेरी दीक्षा भी हुई थी ऐसा मानकर मैं कल ही ऐसी चर्चा की पर यह भी पता चला की इस्कॉन वैष्णव कैलेंडर के अनुसार आज है बहुलाष्टमी और राधाकुंड प्राकट्य दिन और फिर मेरी दीक्षा कि आज ही हुई ठीक है यह संभ्रम तो चलता ही रहता है। राधा कुंड स्नान के या प्राकट्य के 2 दिन मनाया जाते हैं। साथी मैंने पता लगाया कि इस इस्कॉन कैलेंडर के अनुसार कल विदेशों में पाश्चात्य देश में कल की ही बहुलाष्टमी थी और राधा कुंड प्राकट्य दिन कल था तो जो भी हो ज्यादा समस्या तो नहीं है। वैसे जो परिक्रमा का समय हैं कल राधा कुंड प्राकट्य दिन औऱ आज से राधा कुंड से परिक्रमा डिग की ओर बढ़ रही हैं। डीग के रास्ते में एक गांथोली ग्राम आता हैं जिसका वर्णन आप व्रजमण्डल दर्शन ग्रन्थ में पढ़ सकते हो उसके पहले वैसे हमआज हम राधा कुंड के रास्ते डीग जा रहे हैं। डीग राजस्थान में है और राधा कुंड उत्तर प्रदेश में है। यह समझना कि धाम किसी देश या प्रदेश में है अथवा यह समझना कि राधा कुंड उत्तर प्रदेश में है और डीग राजस्थान में है ऐसा सोचना धाम अपराध है। क्योंकि यह वृंदावन धाम तथा ब्रजमंडल धाम इस ब्रह्मांड में ही नहीं है तो फिर यह इस पृथ्वी का अंग कैसे हो सकता है ? अथवा फिर हम कैसे कह सकते हैं कि यह धाम भारत या इस प्रदेश का अंश है। यदि हम इसे आध्यात्मिक भारत समझें तो हम कह सकते हैं कि यह धाम आध्यात्मिक भारत का अंश है परंतु इस भौतिक भारत का अंश नहीं हो सकता। ब्रजाचार्य नारायण भट्ट गोस्वामी ने अपने ग्रंथ में इसका वर्णन किया है उनके ग्रंथ का नाम है। उनके ग्रंथ का नाम है ब्रज भक्ति विलास। उसमें वे लिखते हैं कि इस ब्रज मंडल को भी अनंतशेष ने धारण किया है। अनंतशेष के कई हजारों फन है। कुमुद नाम के एक विशेष फण के ऊपर भगवान अनंतशेष ने इस ब्रज को धारण किया है। इस पृथ्वी को भगवान अनंतशेष ने किसी दूसरे फण पर धारण किया हैं परंतु ब्रजधाम को एक विशेष कुमुद नामक फन पर धारण किया है। ऐसा वर्णन नारायण भट्ट गोस्वामी करते हैं जिन्हें ब्रजाचार्य अर्थात ब्रज के आचार्य कहा जाता है। यह ब्रज भक्ति विलास नामक ग्रंथ हमारी परिक्रमा का एक आधार ग्रंथ है। यहां हम यह समझ सकते हैं कि पृथ्वी एक फन पर है और ब्रजमंडल दूसरे फन पर अर्थात यह ब्रजमंडल इस पृथ्वी पर नहीं है। यह ब्रजमंडल एक अन्य जगत है। चिन्तामणिप्रकरसद्यसु कल्पवृक्ष- लक्षावृतेषु सुरभीरभिपालयन्तम् । लक्ष्मीसहसत्रशतसम्भ्रमसेव्यमानं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥ अनुवाद-जहाँ लक्ष-लक्ष कल्पवृक्ष तथा मणिमय भवनसमूह विद्यमान हैं, जहाँ असंख्य कामधेनु गौएँ हैं, शत- सहस्त्र अर्थात् हजारों-हजारों लक्ष्मियाँ-गोपियाँ प्रीतिपूर्वक जिस परम पुरुषकी सेवा कर रही हैं, ऐसे आदिपुरुष श्रीगोविन्दका मैं भजन करता हूँ (श्लोक २९ ब्रह्म संहिता) यह चिंतामणि धाम है यह चिंतामणि से बना है यह वृंदावन तथा ब्रजमंडल धाम चिंतामणि से बनता है। यह ब्रह्मांड पंचमहाभूत से बनता है जिसमें चाहे हमारे शरीर हो अथवा अन्य कोई जीव हो वह पंचमहाभूत से बना होता है परंतु ब्रजमंडल के साथ ऐसा नहीं है। अतः अगर हम ऐसा कहेंगे कि वृंदावन भारत में है अथवा वृंदावन उत्तर प्रदेश में है और वृंदावन का एक अंश राजस्थान में है तो ऐसा कहना धाम अपराध है। हमें इन धाम अपराधों को पढ़ना चाहिए और समझना चाहिए। जिस प्रकार हमारे इस्कॉन मंदिर में मंगल आरती के उपरांत हम 10 नाम अपराध पढ़ते हैं और सुनते हैं उसी प्रकार इस ब्रजमंडल परिक्रमा के दौरान मंगल आरती के उपरांत 10 नाम अपराध के स्थान पर हम 10 धाम अपराध पढ़ते हैं। भक्तों को इन धाम अपराधों के विषय में स्मरण दिलाया जाता है जिससे वे समझे कि धाम अपराध क्या होता है और हम इससे बच सकें। हमें ध्यान रखना चाहिए कि इस परिक्रमा को करते समय हमसे कोई अपराध ना हो। यह समझना कि धाम किसी भी देश में है यह एक अपराध है। मायापुर बंगाल में है या द्वारिका गुजरात में है अथवा कृष्ण गुजराती है ऐसा समझना एक अपराध है। भगवान गुजरात में नहीं रहते भगवान द्वारिका में रहते हैं और यह द्वारिका गुजरात में नहीं है , हमें यह तत्त्व समझना होगा। धाम के संबंध में यह ज्ञान है जिसे हमें समझना होगा। धाम शाश्वत है। जब इस ब्रह्मांड अथवा इस पृथ्वी पर महाप्रलय होता है जब सब कुछ जल मग्न हो जाता है तब भी धाम अपनी स्थिति में रहता है। “भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते | रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे || १९ ||” अनुवाद:- जब-जब ब्रह्मा का दिन आता है तो सारे जीव प्रकट होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि होते ही वे असहायवत् विलीन हो जाते हैं। भूत्वा भूत्वा अर्थात बनता है और फिर प्रलियते अर्थात नष्ट हो जाता है तो यह नियम है इस संसार का । जहां जगत बनता है और फिर नष्ट हो जाता है। यह नियम हमारे लिए भी है हमारा शरीर भी बनता है फिर नष्ट हो जाता है। यह शरीर पंचमहाभूत से बनता है और जब इसका नष्ट हो जाता है तो यह पुनः पंचमहाभूत में विलीन हो जाता है। पृथ्वी पृथ्वी में चली जाती है ,अग्नि अग्नि में, जल जल में और इस प्रकार यह विलय हो जाता है। तो धाम के विषय में हम ऐसा नहीं कह सकते कि धाम अब बना है अथवा धाम पहले नहीं था। नहीं धाम सदैव रहता है धाम शाश्वत है। सृष्टि के प्रारंभ से ही धाम था। ब्रह्मांड का निर्माण ब्रह्मा जी ने किया उनके साथ भगवान भी उनकी सहायता कर रहे थे और तब अत्यंत परिश्रम करके ब्रह्मा जी ने यह सृष्टि बनाई परंतु इससे धाम को कोई असर नहीं होता है। धाम इस सृष्टि से परे है धाम का निर्माण सृष्टि निर्माण का कार्य नहीं है। तो प्रारंभ में सृष्टि होती है फिर स्थित होते हैं अर्थात हम इस सृष्टि में कुछ समय तक जीव रहता है और अंत में प्रलय होता है अर्थात में भी नष्ट हो जाते हैं। यह नियम प्रकृति पर लागू है। वृंदावन अथवा ब्रजमंडल प्रकृति नहीं है। यह धाम प्राकृत नहीं है। यह अप्राकृत है। एक होता है जड़ तथा दूसरा होता है चेतन। तो यह धाम चेतन है। सृष्टि का निर्माण होने से पूर्व ही वृंदावन इसी स्थिति में था। वृंदावन अथवा ब्रज मंडल में भगवान की नित्य लीला संपन्न होती है हमें इसका स्मरण रखना चाहिए। वृंदावन में भगवान की अप्रकट लीला संपन्न हो रही है। इसका अर्थ है कि भगवान की लीला नित्य वृंदावन में चल रही है परंतु वह प्रकट नहीं है वह संसार को दृष्टिगोचर नहीं है। हर कोई इस लीला को नहीं देख सकता। भगवान का धाम नित्य धाम है जहां नित्य भगवान की लीलाएं संपन्न होती है। ऐसा दिव्य है वृंदावन धाम। वृंदावन धाम की जय। परिक्रमा में जाते है तो फिर ऐसे शिक्षा भी मिलती है। नाम, रूप, गुण, लीला और धाम यह सब भगवान के स्वरुप है। धाम भी भगवान के स्वरुप है। बलराम बन जाते है धाम! बलराम, बलराम बन जाते है मंच भगवान बलराम के साथ भी वहां लीला खेलते है, इसलिए बिना जूता पहने परिक्रमा करनी चाहिए या कई भक्त परिक्रमा करते है क्योंकि वह बलराम है, भगवान है। हरी हरी। तो वहां भगवान है। वृंदावन में ब्रज मंडल में भगवान है! थे की बात नहीं है!और जब हम श्रवण करते हैं, परिक्रमा में जाते हैं। फिर श्रवण करते हैं। तपस्या करते है, उस तपस्या से हमारा शुद्धिकरण होता है। यही तो, चेतो-दर्पण-मार्जनं* *भव-महा-दावाग्नि-निर्वापणं* *श्रेयः-कैरव-चंद्रिका-वितरणं* *विद्या-वधू-जीवनम् आनंदांबुधि-वर्धनं प्रति-पदं* *पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्म-स्नपनं परं* *विजयते श्री-कृष्ण-संकीर्तनम् हरी हरी।तो जब हम जब श्रवण करते हैं, कीर्तन करते है और भगवान की लीलाओं श्रवण करते हैं। कहां श्रवन करते है? जहां पर वह लीला संपन्न हुई है, वहां पर बैठकर हम श्रवण करते है! हो सकता है हम किसी स्थली पर पहुंचे है, और वहां जो कथा हो रही है। वहीं लीला स्थली पर भगवान खेल रहे है या किसी भोजन स्थली जाते है तो हम भोजन स्थली की कमवन में कथा सुन रहे है, तो हो सकता है कि उसी समय कृष्ण वहां स्वयं को मध्य में या केंद्र में रखते हुए गोलाकार बैठे हुए सभी ग्वालबाल और भगवान का भोजन हो रहा है। एक समय यमुना वहां से बहती थी येसी समझ है। जहां भोजन स्थली है कामवन में, वहां से ही जमुना बहती थी। यह लीला जब हम सुना रहे है, तो हो सकता है कि यह लीला वहां पर हो रही है। और जहां भगवान ने भोजन किया तो वहां पर ही परिक्रमा के भक्त भोजन करते हैं।वह स्थली है। भगवान के भोजन की स्थली परिक्रमा के भक्त वहां पर पहुंच जाता है। और कथा भी सुन ली। विदमते वह पूर्णार्था गोपाला बालम मानस सभी रास्ता मालूम* इसी प्रकार हम प्रार्थना करते है ऐसे लीला। तो यह पूर्ण वपु है! वह सच्चिदानंद विग्रह गोपालबालम गोपाल है! बाल गोपाल है! और क्या हो जाए? गोपबालों का मेरे मन में प्रवेश हो जाए। हमारे मन में स्थापित हो! और क्या चाहिए? मुझे और कुछ नहीं चाहिए। और लाखों लाखों लाभ मुझे नहीं चाहिए। बहुत हो गया।और असंख्य लाभो से क्या फायदा? *मोर येई अभिलाष बिलास कुंजे दियो वास* मुझे ऐसे वृंदावन में ही वास करा दो और यहां संपन्न किए हुए लीला का मनन में करता रहूं,वह लीला मेरे मन में बसे और वही लीला का फिर में चिंतन और मनन करु! और यह करते-करते फिर मेरा उन लीलाओ में भी प्रवेश हो जाए। और नित्यलीला प्रविष्ट हो जाऊ! ऐसी अभिलाषा ऐसी प्रार्थना करते करते हम ब्रज मंडल परिक्रमा करते है और एक दृष्टि से खोजते रहते है। एक बन से दूसरे बन जैसे गोपीया भगवान को खोज रही ह थीं! जहां पर गोपिया अपने कृष्ण को खोज रही थी और खोजते खोजते एक वन से दूसरे वन में जा रही थीं। केवल 12 बन ही नहीं है। ब्रजभक्तिविलास यिस नारायण भट्ट गोस्वामी के ग्रंथ में अधिक वनों का वर्णन करते है। ऊप बन है,आधी बन है। ऐसे हजारों वन है। सैकड़ों बन है! बन के अंदर के बन के अंदर के बन। लेकिन मुख्य बन तो द्वादश बन है, लेकिन उन वनों के अंदर और कई सारे वन हैं। इस वनों की हम यात्रा कर रहे तो हम भी भगवान को खोजते रहते हैं। कब मिलेंगे कब मिलेंगे भगवान हमें ? परिक्रमा में श्रवण तो होता है हम कीर्तन भी करते है। पग पग पर भगवान के सामने देखते हम अनुभव करते है तो वैसे मुख्य बात तो परिक्रमा में श्रवण और कीर्तन ही है। और फिर हम भगवान को देखना चाहते है और देखते है तो कर्न से कानों से देखते है। कैसे देखते है? कानों से देखते है! आंखों का तो ज्यादा उपयोग नहीं है।कान की मदद से हम देख सकते है। और जब हम कान की मदद से सुनेंगे तो जो हम सुनते है, वह तो सत्य है। श्रद्धा के साथ जब नित्यम भागवत सेवाया, भगवती उत्तम श्लोके भक्तिर भगवती नैश्ठकी यह सिद्धांत भी है! भगवत कथा या भगवान की कथा, भगवान की लीला, कथा, नाम, रूप गुण, लीला कथा श्रवण करने से दर्शन होता है! अनुभव होता है! हरि हरि।गौरंगा! हरे कृष्ण। आप पढ़ो रास्ते में जाते हुए चकलेश्वर महादेव मंदिर जी का जहां पर सनातन गोस्वामी रहते है। वहां से आगे बढ़ते है, दीग और और पीछे मोड़ कर आप देखोगे तो आपको पूरा पैनोरमिक दृश्य पूरा गोवर्धन दिखाई देगा! हरि हरि। हरे कृष्ण!

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