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जप चर्चा
दिनांक 7 नवम्बर 2020
हरे कृष्ण!
जय राधे, जय कृष्ण, जय वृन्दावन।
श्रीगोविन्द, गोपीनाथ, मदन-मोहन॥1॥
श्यामकुण्ड, राधाकुण्ड, गिरि-गोवर्धन
कालिन्दी यमुना जय, जय महावन॥2॥
केशी घाट, वंशि वट, द्वादश कानन।
याहा सब लीला कोइलो श्रीनन्द नन्दन॥3॥
श्रीनन्द-यशोदा जय, जय गोपगण।
श्रीदामादि जय जय, धेनु वत्स-गण॥4॥
जय वृषभानु, जय कीर्तिदा सुन्दरी।
जय पौर्णमासी, जय अभीर-नागरी॥5॥
जय जय गोपीश्वर, वृन्दावन माझ।
जय जय कृष्ण सखा, बटु द्विज-राज॥6॥
जय राम घाट, जय रोहिणी नन्दन।
जय जय वृन्दावन, वासी यत जन॥7॥
जय द्विज पत्नी, जय नाग कन्या-गण।
भक्तिते जाहार पाइलो, गोविन्द-चरण॥8॥
श्री रास-मंडल जय, जय राधा-श्याम।
जय जय रास लीला, सर्वमनोरम॥9॥
जय जयोज्ज्वल-रस-सर्व रससार।
परकीया भावे याहा, व्रजेते प्रचार॥10॥
श्री जाह्नवी-पाद-पद्म करिया स्मरण।
दीन कृष्णदास कहे, नाम-संकीर्तन॥11॥
अर्थ
(1) राधा-कृष्ण तथा वृंदावन धाम की जय हो। श्री गोविंद, गोपीनाथ तथा मदनमोहन- वृंदावन के इन तीन अधिष्ठाता विग्रहों की जय हो।
(2) श्यामकुण्ड, राधाकुण्ड, गिरिगोवर्धन तथा यमुना की जय हो। कृष्ण और बलराम के बाल्य क्रीडास्थल महावन की जय हो।
(3) जहाँ कृष्ण ने केशी राक्षस का वध किया था, उस केशी-घाट की जय हो। जहाँ कृष्ण ने अपनी मुरली से सब गोपिकाओं को आकर्षित किया था, उस वंशी-वट की जय हो। व्रज के द्वाद्वश वनों की जय हो, जहाँ नन्दनंदन श्रीकृष्ण ने सब लीलायें कीं।
(4) कृष्ण के दिवय माता-पिता, नंद और यशोदा की जय हो। राधारानी और अनंग मंजरी के बड़े भााई श्रीदामा सहित सब गोपबालकों की जय हो। व्रज के सब गाय-बछड़ों की जय हो।
(5) राधाजी के दिवय माता-पिता, वृषभानु और कीर्तिदा की जय हो। संदीपनि मुनि की मां, मधुमंगल व नंदीमुखी की दादी एवं देवर्षि नारद की प्रिय शिष्या- पौर्णमासी की जय हो। व्रज की युवा गोपिकाओं की जय हो।
(6) पवित्र धाम के संरक्षणार्थ निवास करने वाले गोपीश्वर शिव कपवित्र धाम के संरक्षणार्थ निवास करने वाले गोपीश्वर शिव की जय हो। कृष्ण के ब्राह्मण-सखा मधुमंगल की जय हो।
(7) जहाँ बलराम जी ने रास रचाया था, उस राम-घाट की जय हो। रोहिणीनंदन बलराम जी की जय हो। सब वृंदावनवासियों की जय हो।
(8) गर्वीले यज्ञिक ब्राह्मणों की पत्नियों की जय हो। कालिय नाग की पत्नियों की जय हो, जिन्होंने भक्ति के द्वारा गोविन्द के श्रीचरणों को प्राप्त किया।
(9) श्री रासमण्डल की जय हो। राधा और श्याम की जय हो। कृष्ण की लीलाओं में सबसे मनोरम, रासलीला की जय हो।
(10) समस्त रसों के सारस्वरूप माधुर्यरस की जय हो, भगवान् कृष्ण ने परकीय-भाव में जिसका प्रचार ब्रज में किया।
(11) नित्यानंद प्रभु की संगिनी श्री जाह्नवा देवी के चरणकमलों का स्मरण कर यह दीन-हीन कृष्णदास नाम संकीर्तन कर रहा है।
श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामी महाराज की जय! श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामी महाराज गीत लिखते हैं- श्याम कुंड, राधा कुंड, गिरि गोवर्धन, इन तीनों नामों का उल्लेख हुआ है। श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामी राधा कुंड के तट पर रहे। राधा कुंड के तट पर उन्होंने चैतन्य चरितामृत की रचना की। राधा कुंड के तट पर ही उनका समाधि मंदिर भी है। कृष्ण दास कविराज गोस्वामी की जय! यह राधा कुंड की महिमा है। आज राधा कुंड की परिक्रमा होगी। आप सभी परिक्रमा के भक्त राधाकुंड पर रुके थे या आप घर लौट गए? वृंदावन में रहो, वृंदावन में ही वास करो। इस कार्तिक में ब्रजवास करो। हरि! हरि! यदि वृंदावन का ध्यान करोगे, राधा कृष्ण की लीलाओं का श्रवण इत्यादि करने से आपका मन वृंदावन हो जाएगा, वृंदावन की और दौड़ेगा और आप वृंदावन में रहना पसंद करोगे। यदि आप मुबई लौट गए तो तब आप सोचोगे कि 'आई लॉस्ट माय हार्ट इन वृंदावन' 'आई लॉस्ट माय हार्ट इन वृंदावन' या जिस हार्ट को आप वृंदावन में खोओगे, तो इसको पाने के लिए आप पुनः वृंदावन लोटोगें । यह वृंदावन का मूड है। यह वृंदावन में रहने का समय है। इस मुड़ को जगाने अथवा जागृत अथवा उदित करने हेतु यह कार्तिक व्रत है। वह वृंदावन धाम, जहाँ हमें अंततोगत्वा पहुंचना है,
*जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः ।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।( श्रीमद्भगवतगीता4.9 )
अनुवाद: हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है।
आराध्यो भगवान् व्रजेशतनयस्तद् धाम वृंदावनं
रम्या काचीदुपासना व्रजवधूवर्गेण या कल्पिता ।
श्रीमद भागवतं प्रमाणममलं प्रेमा पुमर्थो महान्
श्रीचैतन्य महाप्रभोर्मतामिदं तत्रादरो नः परः ।।
(चैतन्य मंज्जुषा)
अनुवाद : भगवान व्रजेन्द्रन्दन श्रीकृष्ण एवं उनकी तरह ही वैभव युक्त उनका श्रीधाम वृन्दावन आराध्य वस्तु है । व्रजवधुओं ने जिस पद्धति से कृष्ण की उपासना की थी, वह उपासना की पद्धति सर्वोत्कृष्ट है । श्रीमद् भागवत ग्रन्थ ही निर्मल शब्द प्रमाण है एवं प्रेम ही परम पुरुषार्थ है - यही श्री चैतन्य महाप्रभु का मत है । यह सिद्धान्त हम लोगों के लिए परम आदरणीय है ।
हम इस कार्तिक मास में वृंदावन में ही तो रहने का अभ्यास करते हैं। ऐसे ही परिक्रमा करते हैं ताकि अंततोगत्वा हमें वृंदावन का वास हो।
मोर एइ अभिलाष, विलासकुंजे दिओ वास। नयने हेरिबो सदा युगल-रूप-राशि॥3॥
( तुलसी आरती श्लोक ३)
अनुवाद:- मेरी यही अभिलाषा है कि आप मुझे भी वृन्दावन के कुंजों में निवास करने की अनुमति दें, जिससे मैं श्रीराधाकृष्ण की सुन्दर लीलाओं का सदैव दर्शन कर सकूँ।
हम तुलसी महारानी को भी यही प्रार्थना करते हैं, विलासकुंजे दिओ वास। मोर एइ अभिलाष हे तुलसीदेवी -यही मेरी अभिलाषा है। विलासकुंजे दिओ वास अर्थात कुंजो में मेरा वास हो। वृंदावन में भी कई भिन्न-भिन्न स्थान हैं। वृंदावन में कितनी सारी भी विविधता हैं। वृंदावन अपनी विविधता के लिए प्रसिद्ध है। वृंदावन में कुंज हैं। इन कुंजो और निकुंजो में राधा कृष्ण की लीलाएं संपन्न होती हैं। हरि! हरि! ऐसा वास हमें प्राप्त हो। ऐसी हम प्रार्थना करते हैं। इसी अभिलाषा की पूर्ति हेतु ही हम ब्रज मंडल परिक्रमा भी करते हैं। चलिए समय तो बलवान है। वह किसी के लिए रुकता नहीं है। हरि! हरि! वैसे रुकता भी है, जब हम कृष्ण भावना भावित होते हैं।
आयुर्हरति वै पुंसामुद्यन्नस्तं च यन्नसौ ।
तस्यर्ते यत्क्षणो नीत उत्तमश्लोकवार्तया ॥
(श्रीमद भागवतम 2.3.17)
अनुवाद:- उदय तथा अस्त होते हुए सूर्य सबों की आयु को क्षीण करता है, किन्तु जो सर्वोत्तम भगवान् की कथाओं की चर्चा चलाने में अपने समय का सदुपयोग करता है, उसकी आयु श्रीण नहीं होती।
उत्तम श्लोक अर्थात जब हम भगवान की वार्ता सुनते सुनाते हैं। तब हम लोग वर्तमान काल में रहते हैं, भूत भविष्य के परे ही पहुंचते हैं, इसी को कालातीत कहते हैं अर्थात काल के अतीत अर्थात काल के परे। यही अवस्था गुणातीत भी है। हरि हरि! आज के दिन ही राधा कुंड की परिक्रमा होती है। कल गोवर्धन की परिक्रमा हुई थी आज राधा कुंड की परिक्रमा होगी। परिक्रमा के बीच में चौरासी कोस की परिक्रमा तो है ही। ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा। ब्रज मंडल परिक्रमा किंतु यह परिक्रमा करते समय हम और भी डिटेल्स ( गहराई) में जाते हैं। सबने वृंदावन की पंचकोसी परिक्रमा की लेकिन यह अतिरिक्त है। तत्पश्चात मथुरा गए, एक दिन फिर मथुरा की परिक्रमा हुई। या फिर गोवर्धन की परिक्रमा हुई। आज राधा कुंड परिक्रमा है। हम अन्य कहीं आते जाते नहीं और जहां कहां भी पड़ाव रहते हैं तब हम यहाँ वहां से आकर परिक्रमा करके चाहे गोवर्धन है या राधाकुंड आते हैं,हम अपने पड़ाव के स्थान पर लौट जाते हैं। ऐसी ही परिक्रमाएं होती रहती है। आज राधा कुंड की ऐसी ही परिक्रमा है।
राधा कुंड श्याम कुंड की जय!
परिक्रमा केवल राधा कुंड की नहीं है, श्याम कुंड की भी है। प्रसिद्ध तो राधा कुंड है। लेकिन वहां श्याम का कुंड है ही ना। हरि हरि। श्याम श्यामा के कुंड भी हैं।
राधा कृष्ण राधा कुंड, श्याम कुंड। राधा कुंड के तट पर राधा गोपीनाथ मंदिर है। हरि !हरि!
वहीं पर जहानवा बैठक है अर्थात नित्यानंद प्रभु की भार्या की बैठक अर्थात जहाँ उनको राधा गोपीनाथ के दर्शन हुए थे। नित्यानंद प्रभु की भार्या अर्थात जान्ह्वा माता वहाँ बैठी रही थी और उन्होंने वहां भजन किया था। वह स्थान जहां उनको राधा गोपिनाथ का दर्शन भी हुआ था।
इसी राधा गोपीनाथ मंदिर के प्रांगण में ही और राधा कुंड के तट पर रघुनाथ दास गोस्वामी जिनको दास गोस्वामी भी कहा जाता है, जोकि गोवर्धन के पुजारी रहे। वह गोवर्धन की आराधना और गोवर्धन की परिक्रमा भी किया करते थे एवं जिनको श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने गोवर्धन शिला भी दे दी। उस शिला की श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं आराधना किया करते थे, वह शिला श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने रघुनाथ गोस्वामी को दे दी और गूंज मालाएं भी दी। उन रघुनाथ दास गोस्वामी की समाधी राधा कुंड के तट पर है। जब हम राधा कुंड के तट से ही आगे बढ़ते हैं, शायद यह उत्तरी तट है लेकिन जब हम पूर्वी तट पर पहुंचते हैं तो वहां पुनः एक समाधी है। वहाँ एक ही समाधि में तीन आचार्यों की समाधियां हैं- एक रघुनाथ दास गोस्वामी की समाधी और रघुनाथ भट्ट गोस्वामी की समाधी व कृष्ण दास कविराज गोस्वामी की समाधी। उस मंदिर का दर्शन करने के पश्चात राधा कुंड और श्याम कुंड के बीच में या राधा कुंड के तट पर श्याम कुंड के तट पर अर्थात दोनों कुंडों के बीच जो कॉमन तट है, वहाँ भी गोवर्धन है, उसका दर्शन करेंगे।
राधाकुंड, श्यामकुण्ड वैसे गोवर्धन का ही अंग है। राधाकुंड व श्यामकुण्ड के बीच के तट पर वहां गिरिराज की आराधना व अभिषेक होता है। वहाँ वापिस लौट कर ये जो तीन समाधियां है, हम उससे आगे पूर्व दिशा में बढेगे, वहाँ कृष्ण दास कविराज गोस्वामी का भजन कुटीर अर्थात निवास स्थान है जहाँ उन्होंने चैतन्य चरितामृत की रचना की। अपना भजन किया। उन्हीं के बगल में रघुनाथ गोस्वामी का भजन कुटीर है। सनातन गोस्वामी भी वहाँ रहा करते थे। वहां पर रघुनाथ दास गोस्वामी प्रतिदिन राधा कुंड के निवासियों को गौर लीला सुनाते थे। हरि हरि। जब वहां से थोड़ा और उत्तर की और बढ़ेंगे, राधा गोविंद का मंदिर है। वैसे राधा कुंड श्याम कुंड के तट पर मदन मोहन ,राधा गोविंद, राधा गोपीनाथ ( राधा गोपीनाथ मंदिर का तो उल्लेख हुआ है। जहां बैठक है जहां रघुनाथ दास गोस्वामी की समाधि व बैठक है) अब यहां राधा गोविंद मंदिर है। राधा कुंड, श्याम कुंड की पूरी परिक्रमा करके हम राधा कुंड श्याम कुंड की दक्षिण दिशा में आएंगे तो वहां राधा मदन मोहन का मंदिर है। हरि! हरि!
मदन मोहन, राधा गोविंद, राधा गोपीनाथ गौड़ीय के आराध्य देव हैं। इनकी आराधना राधा कुंड श्याम कुंड के तट पर होती है। राधा गोविंद के मंदिर के बगल में ही एक गोवर्धन की जिव्हा अर्थात टंग ऑफ गोवर्धन का दर्शन है। जहां राधा कुंड, श्याम कुंड है, वह गोवर्धन का मुख मंडल है। पीछे पुछरी का लौठा बाबा का जो स्थान है वह पूंछ है। वैसे गोवर्धन एक मयूर के रूप में है, ऐसी भी मान्यता है। यह उनका मुख है, जीव्हा भी है और वह वहाँ जीव्हा का दर्शन है। वहां से जब हम राधा कुंड व श्याम कुंड के परिक्रमा मार्ग पर लौट कर उत्तर दिशा में जाते हैं। वहाँ भक्ति विनोद ठाकुर का भजन कुटीर है। भक्ति विनोद ठाकुर जो नवद्वीप के गोस्वामी अर्थात सप्तम गोस्वामी के रूप में प्रसिद्ध हैं। जब वह वृंदावन आए तब वह राधा कुंड के तट पर रहते थे। राधा कुंड के तट पर उनका निवास स्थान अथवा भजन कुटीर है। उसी भजन कुटीर् में भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर भी रहे जब वह आए और उन्होंने 1932 में ब्रज मंडल परिक्रमा की। वहां उनकी पादुकाएं है। कुछ वस्तुएं है, वहाँ पर बेड चेयर है। जब हम पुनः राधाकुंड परिक्रमा मार्ग की और वापिस लौटते हैं तब वहाँ एक जगन्नाथ मंदिर का दर्शन है। जय जगन्नाथ! जगन्नाथ स्वामी की जय! जब हम वहां से परिक्रमा की ओर आगे बढ़ते हैं तब बाएं बगल में ललिता कुंड है। यहाँ वहां पर राधा कुंड, श्याम कुंड और ललिता कुंड भी हैं और अष्ट साखियों के कुंड हैं। उनके भी दर्शन होने चाहिए लेकिन उनके दर्शन प्राप्त नहीं हैं। हमने कहा तो था कि वहां अष्ट साखियों के कुंज भी हैं। हरि! हरि!
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
एक और बायीं तरफ ललिता कुंड है। वहीं पर दाहिने कुंड में जीव गोस्वामी की भजन कुटीर है। उनके विग्रहों के दर्शन भी हैं वहाँ चैतन्य महाप्रभु के चरण चिन्हों के भी दर्शन हैं। हम दर्शन कर सकते हैं। चैतन्य महाप्रभु राधा कुंड पर आए थे और उन्होनें ही राधाकुंड को खोजा था अर्थात प्रस्तुत किया था। वैसे आगे बताएंगे थोड़ा, चैतन्य महाप्रभु आने वाले हैं। जब हम जीव गोस्वामी की भजन कुटीर से आगे बढ़ेंगे तब रास्ते में एक कुआं आता है। वैसे गोस्वामियों को उस कुएं से ही यह गोवर्धन टंग प्राप्त हुई थी। जब वे कुआं इस विचार से खोद रहे थे कि हमें कुछ शौच आदि क्रियाओं के लिए राधाकुंड व श्यामकुण्ड के जल का उपयोग नहीं करना चाहिए। जब वे ऐसा सोच कर कुंआ खोद रहे थे।
जब खुदाई चल रही थी तब वे खुदाई के लिए कुछ हथियारों का प्रयोग कर रहे थे। उनको यह पत्थर मिला। उस जिव्हा में से खून भी निकल रहा था। सभी ने मान लिया कि यह गोवर्धन की जिव्हा है। इससे खून भी निकल रहा है। तत्पश्चात राधा गोविंद मंदिर के बगल में उस जिव्हा की स्थापना हुई । आगे बढ़ते हैं, जब परिक्रमा मार्ग से दाहिनी ओर मुड़कर हम श्याम कुंड के पूर्वी तट पर पहुंच जाते हैं वहां माधवेंद्र पुरी की बैठक है। माधवेंद्र पुरी हमारे गौड़ीय वैष्णव की परंपरा के प्रथम आचार्य रहे। हमारे गौड़ीय वैष्णव परंपरा के स्त्रोत अथवा बीज रहे। वे एक समय वृंदावन और गोवर्धन में भी निवास किया करते थे। उन्होंने भगवान के आदेशानुसार गोपाल के विग्रह को जिनको कि छुपा कर रखा गया था, उसे जमीन से बाहर निकाल कर उसकी स्थापना की और अन्नकूट महोत्सव मनाया । यह सारी लीलाएं कथाएं हैं। माधवेंद्र पुरी प्रतिदिन गोवर्धन की परिक्रमा भी किया करते थे। गोविंदगढ़ के तट पर ही उनको यह स्वप्न आदेश हुआ। मुझे जमीन से निकालो, जहां मुझे छुपा कर रखा गया है। तत्पश्चात हम पुछरी के लोठा पहुंच कर पुनः परिक्रमा में आगे बढ़ते हैं जतीपुरा नाम का गांव आता है। जती मतलब यति, बंगला में जती का यति जैसा उच्चारण होता है। यति मतलब सन्यासी अर्थात परिव्राजाकाचार्य। यतिपुर वैसे माधवेंद्र पुरी के नाम से प्रसिद्ध है । कौन यति? कौन से सन्यासी? कौन से वैरागी? कौन से परिव्राजाकाचार्य, हमारे माधवेंद्र पुरी। यतिपुर मतलब माधवेंद्र पुरी का नगर। ऐसी समझ है। माधवेंद्र पुरी की बैठक श्याम कुंड के तट पर है।
फिर हम परिक्रमा मार्ग पर लौटेंगे और आगे बढ़ेंगे। श्याम कुंड के तट पर दायीं तरफ चैतन्य महाप्रभु की बैठक है। जब श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु गोवर्धन की परिक्रमा अर्थात ब्रज मंडल परिक्रमा कर ही रहे थे तब वे राधाकुंड, श्यामकुण्ड पर आए थे। उन्होंने उस समय राधाकुंड पर स्नान भी किया था। उस समय वहां छोटा सा गड्ढा था, जिसमें थोड़ा सा जल था। उसी में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने स्नान किया। हरि! हरि! उस समय किसी को पता ही नहीं था कि यहां पर राधा कुंड और बगल में श्याम कुंड है। इसको लोग भूल चुके थे। शायद कल हमनें बताया भी था। मुसलमानों के प्रभाव अथवा अत्याचारों अथवा आक्रमणों से वृंदावन एक समय निर्जन प्रदेश बन चुका था।
वृंदावन में शायद ही कोई निवास कर रहा था। कोई यात्री नहीं आता था। धीरे-धीरे सब भूल गए थे कि कहां है राधा कुंड? कहां है श्याम कुंड। चैतन्य महाप्रभु ने इस बात को सारी दुनिया में प्रकाशित किया कि कौन सा राधा कुंड है। उसी भेंट में चैतन्य महाप्रभु ब्रज की यात्रा परिक्रमा कर रहे थे तो उन्होंने राधा कुंड, श्याम कुंड का परिचय दिया और जहाँ कुछ समय के लिए वे बैठे और रुके। जहाँ चैतन्य महाप्रभु रुके, वह स्थान महाप्रभु की बैठक बन गया। बडा़ ही सुंदर स्थान है। हरि! हरि! और पुनः परिक्रमा मार्ग में आगे बढ़ते हैं।
बायीं तरफ नित्यानंद प्रभु की पादुका हैं। नित्यानंद प्रभु भी वृंदावन आए थे।
हरे कृष्ण