Hindi

ल प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन करना ही आधार हैं आज हमारी इस कांफ्रेंस में ३३२ प्रतियोगी सम्मिलित हुए हैं , इसलिए अधिक से अधिक भक्त इसमें सम्मिलित होते रहिए। यहाँ जप करने से आपको एक लाभ होता हैं और वह हैं - संग लाभ अर्थात आपको सभी भक्तों का संग प्राप्त होता हैं। इस कांफ्रेंस का शीर्षक ही हैं , " आइये एक साथ जप करें ! " यदि आप अकेले जप कर रहे हैं तो आपको कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता हैं परन्तु यदि आप इस कांफ्रेंस में भक्तों के साथ जप करते हैं तो यह एक प्रकार से पहाड़ से नीचे उतरने के समान हैं। आपको यहाँ माया से अधिक युद्ध नहीं करना पड़ता तथा अन्ततः इसमें आप माया पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। आप जप पर ध्यान केन्द्रित करके चित्त लगा सकते हैं। अतः इसका लाभ लेते रहिये। आप केवल मेरे साथ ही जप नहीं कर रहे हैं परन्तु जैसा कि आपने अभी स्कोर सुना होगा , आप इतने अधिक भक्तों के साथ जप कर रहे हैं। लगभग ५०० भक्त अभी हमारे साथ जप कर रहे हैं। प्रत्येक भक्त अपने साथ अपने परिवार के सदस्यों , मन्दिर , यूथ फोरम ,गुरुकुल ,तथा बेस के भक्तों को इसमें सम्मिलित कर रहा हैं। इस प्रकार हमारे साथ बहुत अधिक मात्रा में भक्त जप कर रहे हैं , जो हमें शक्ति प्रदान करते हैं। इससे आपका विश्वास भी सुद्रढ़ होता हैं , तथा जैसे आप जप करते हैं आपका ध्यान और अधिक एकाग्र होता हैं। कल हमने SGGS के दौरान कई विषयों पर चर्चा की। इस्कॉन को जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा हैं , उनको सुलझाने के लिए वे अपनी पूरी ताकत लगा रहे थे। वे इस पर एक सामान्य दृष्टि बनाने के लिए भी प्रयासरत हैं। कल जिन विषयों पर चर्चा की गई उनमे से एक था , " नियमित रूप से श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन करना। " हम इन पुस्तकों का वितरण तो करते हैं परन्तु इनका अध्ययन नहीं करते हैं , जो सबसे बड़ी समस्या हैं। ऐसा अवलोकन किया गया कि धीरे धीरे श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें पढ़ने वाले ब्रह्मचारियों , भक्तों , तथा प्रचार करने वाले भक्तों की संख्या में कमी आई हैं। एक पर्यवेक्षण में पता चला हैं कि हमारे मात्र १०% भक्त मंदिर में रहते हैं तथा ९० % भक्त या तो अपने घरों में रहते हैं या समूह में रहते हैं। वे भी हमारे इस आंदोलन का एक अविभाज्य अंग हैं, परन्तु अध्ययन दिन प्रतिदिन कम हो रहा हैं। प्रभुपाद के समय भी उन्होंने कहा था , " मेरे शिष्य मेरी पुस्तकों का पर्याप्त रूप में अध्ययन नहीं करते हैं। " यद्यपि वे पुस्तक वितरण के स्कोर से संतुष्ट थे क्योंकि बहुत अधिक मात्रा में इनका वितरण हो रहा था परन्तु वे अनुरोध करते हुए यह भी कहते थे , " मैंने ये पुस्तकें इसलिए लिखी हैं ताकि मेरे शिष्य इन्हे पढ़ सकें। वे अध्ययन के लिए लिखी गई हैं न कि केवल वितरण के लिए। " आपको क्या लगता हैं , क्या आप नियमित रूप से श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों को पढ़ रहे हैं ? हमारी चर्चा में पुस्तक अध्ययन भी एक विशेष शीर्षक था जिसमे सभी शीर्ष के वरिष्ठ भक्तों को यह कहा गया कि वे अपने क्षेत्र के भक्तों को पुस्तकों के अध्ययन के लिए अधिक से अधिक मात्रा में प्रेरित करें, जिससे वे प्रेरणा स्त्रोत बन सकें। प्रत्येक मन्दिर में उत्साहजनक शब्दों तथा प्रेरणादायक बातों को बताना चाहिए जिससे अधिक से अधिक मात्रा में भक्त श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन कर सकें। क्या आपको पता हैं जप और अध्ययन के मध्य क्या सम्बन्ध हैं ? यदि आप श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें पढ़ते हैं या जब आप श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें नहीं पढ़ते हैं तो दोनों में क्या अंतर होता हैं ? भक्त १ - यदि हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें नहीं पढ़ते हैं तो हमें यह नहीं पता होता हैं कि हम जप क्यों कर रहे हैं ? भक्त २ - यदि हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन नहीं करते हैं तो हमारा जप किसी ज्ञान के बिना मात्र एक कार्य बनकर रह जाता हैं। भक्त ३ - यदि हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन नहीं करते हैं तो हमें तत्वज्ञान के विषय में कुछ भी ज्ञान नहीं होगा जिससे रूप गोस्वामी तथा अन्य आचार्यों के पदचिन्हों का अनुसरण नहीं कर पाएँगे। प्रभुपाद ने पूर्व आचार्यों के भावों की नीव रखी हैं। रूप गोस्वामी के पथ का अनुगमन करने के लिए हमें शास्त्रों को समझना अत्यंत आवश्यक हैं। परन्तु जब हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें पढ़ते हैं तो हमें शास्त्रों का वह ज्ञान एक व्यवस्थित रूप में प्राप्त होता हैं। भक्त ४ - मेरे अनुभव में जब हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें नहीं पढ़ते हैं तो हमारा जप नीरस हो जाता हैं। परन्तु जब हम नियमित रूप से श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें पढ़ते हैं तो यद्यपि हमारी जप में रूचि नहीं होती हैं तथापि हम निरन्तर जप करते रहते हैं। इसलिए हम जप करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। भक्त ५ - प्रभुपाद ने कहा हैं कि पुस्तकें ही आधार हैं। यह वाक्य अपने आप में विस्तार हैं। जब हम अध्ययन करते हैं तो यह सकारात्मक रूप से हमारे जप को प्रभावित करता हैं। इससे हमें जप करने में रूचि उत्पन्न होती हैं। भक्त ६ - प्रभुपाद ने अपनी पुस्तकों में सम्बन्ध ज्ञान के विषय में बताया हैं। यदि हम सही प्रकार से सम्बन्ध ज्ञान में स्थित नहीं होंगे तो हम जप करने के लिए प्रेरित भी नहीं होंगे। यदि हम सम्बन्ध ज्ञान के विषय में ठीक प्रकार से अध्ययन करते हैं तो यद्यपि हमारा मन विचलित रहता हैं तथापि हमारी बुद्धि पर्याप्त मात्रा में तीव्र होगी जिससे हम उस विचलित मन को शांत कर सकें तथा निरन्तर जप कर सके। भक्त ७ - परम पूज्य शिवरमन स्वामी महाराज ने कहा कि महत्वपूर्ण अध्ययन और श्रवण से महत्वपूर्ण जप होता हैं। क्योंकि जब तक आप अध्ययन नहीं करते हैं तब तक आपको यह पता नहीं चलता हैं कि जप क्यों , कब , कैसे और कहाँ किया जाए ? इन प्रश्नों का उत्तर हमें केवल तभी मिल सकता हैं जब हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन और श्रवण करेंगे। गुरु महाराज - हमारे मन में कुछ संशय होते हैं परन्तु जब हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें पढ़ते हैं तो ये सभी संशय अपने आप समाप्त हो जाते हैं। छिद्यन्ते सर्व संशयः (श्रीमद भागवतम १.२.२१) नष्ट प्रायेशु अभद्रेषु , नित्यं भागवत सेवया। भगवती उत्तम श्लोके , भक्तिर्भवति नैष्ठिकी।। (श्रीमद भागवतम १.२.१८) जब आप नियमित रूप से श्रीमद भागवतम का अध्ययन करते हैं तो आप सभी प्रकार से संशयों से मुक्त हो जाते हैं। यदि आपको किसी भी प्रकार का कोई संशय हैं तो आप श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें पढ़िए , जिससे आपके संशयों का निवारण हो जाएगा। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह हैं कि हमें अधिक से अधिक मात्रा में नियमित रूप से श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए। वहां यह प्रस्ताव भी रखा गया कि यदि आप प्रतिदिन श्रीमद भागवतम के ४० पन्ने पढ़ते हैं तो आप मात्र १ वर्ष में पुरे १२ स्कंध पढ़ पाएंगे। वैयासिकी प्रभु भागवतम के नियमित पाठक हैं तथा वे सभी को श्रीमद भागवतम तथा अन्य पुस्तकों के नियमित अध्ययन के लिए प्रेरित कर रहे थे। प्रतिदिन भगवद गीता का एक अध्याय पढ़िए। यदि आप पूरा अध्याय नहीं पढ़ सकते हैं तो केवल संस्कृत के श्लोक तथा उनका अनुवाद ही पढ़िए। प्रतिदिन एक अध्याय , इस प्रकार आप प्रतिदिन क्या पढ़ सकते हैं इसके विषय में अलग अलग विचार हैं। आप में से प्रत्येक भक्त को २४ घण्टों के लिए एक योजना बनानी चाहिए। सभी के पास २४ घंटे ही हैं। क्या किसी के पास २५ घंटे हैं ? तो हम ऐसा क्यों नहीं करते हैं ? कल SGGS में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई। कल हमने इस विषय पर कुछ घंटों तक चर्चा की। सभी वरिष्ठ भक्त इस पर चिंतन और मनन कर रहे थे। हमने उन बातों को यहाँ इसलिए साझा किया हैं जिससे आप उनके विषय में सोच सकें और इसके लिए कुछ योजना बना सकें। समय प्रबन्धन भी एक महत्वपूर्ण कारण हैं जिससे हम नियमित रूप से अध्ययन नहीं कर सकते हैं। सामाजिक मीडिया और इंटरनेट हमारे अध्ययन न करने में सबसे बड़ा विक्षेप हैं। हमारे कुछ मन्दिरों ने तो ब्रह्मचारियों को स्मार्ट फ़ोन नहीं रखने के लिए निर्देश दिए हैं। वे सभी सादा फोन उपयोग में लेते हैं क्योंकि स्मार्ट फोन के कुछ गलत उपयोग होते हैं। जो कोई भी चतुर बनना चाहता हैं उसके लिए कोई न कोई माध्यम होता हैं जिससे वह चतुर बन सके। कृष्ण भक्तों के लिए संसारी लोगों का अनुगमन करना उचित नहीं हैं। इस प्रकार दिन प्रतिदिन कम अध्ययन करने के लिए कई कारण बताये गए। हम किस प्रकार और अधिक मात्रा में अध्ययन कर सकते हैं इस विषय पर भी कई चर्चाएं हुई। कई बार ऐसा होता हैं कि यदि हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन नहीं करते हैं तो हम जप करना बंद कर देते हैं। प्रभुपाद की पुस्तक - भक्तिरसामृत सिन्धु , हरिनाम के प्रति होने वाले अपराधों के विषय में बताती हैं। अब जब हम इन अपराधों को जानते हैं तो हमें इनसे बचने के लिए भी प्रयास करना चाहिए। एक और बात जिस पर चर्चा हुई वह थी कि यदि हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन नहीं करेंगे तो हमारा आन्दोलन तृतीय श्रेणी का आंदोलन बनकर रह जाएगा। ऐसा भी कहा जाता हैं - पुनः मूषिक भवः (हितोपदेश में वर्णित एक कहानी ) पुनः चूहा बन जाओ का यहाँ अर्थ हैं कि पुनः हिन्दु बन जाओ। कृष्णभावनामृत में आने से पहले हम हिंदु या ईसाई थे। हम इस प्रकार पुनः उसी स्थिति को प्राप्त हो जाएंगे। कृष्णभावनामृत एक प्रकार से भिन्न तथा श्रेष्ठतम हैं। यह सभी धर्मों का सार हैं तथा आत्मा का लक्षण हैं। जिससे आत्मा की चेतना जाग्रत होती हैं वही कृष्णभावनामृत हैं। हमारी कृष्ण चेतना तब तक जाग्रत नहीं हो सकती हैं जब तक हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन नहीं करेंगे। प्रभुपाद ने हमें भगवद्गीता - यथा रूप प्रदान की हैं। यदि हम भगवद्गीता को नहीं पढ़ेंगे तो हम किसी मायावादी , तर्कशास्त्री , तथा ज्ञानवादी द्वारा लिखित टीका पढ़ेंगे। कृष्णभक्त निष्काम अतएव शान्त। भुक्ति , मुक्ति, सिद्धी, कामी सकल अशान्त।। (चैतन्य चरितामृत मध्यलीला १९.१४९) " चूँकि कृष्णभक्त को किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं होती हैं अतः वह सदैव शान्त रहता हैं। कर्मी सांसारिक सुख चाहते हैं ,ज्ञानी मुक्ति चाहते हैं , तथा योगी सांसारिक वैभव चाहते हैं , अतः वे सभी कामी हैं अतएव कभी भी शान्त नहीं रहते हैं। " अतः सभी कर्मकाण्डियों और ज्ञान काण्डियों से ऊपर उठिये। हमें श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए जिनमे पूर्वाचार्यों की टिप्पणियां भी हैं , विशेष रूप से उनमे कृष्ण और चैतन्य महाप्रभु को प्रदर्शित करने वाले रूप गोस्वामी के भाव और विचार हैं। यदि हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों को नहीं पढ़ते तो क्या हम मायापुर आ सकते थे ? आना तो दूर की बात हैं हम मायापुर का नाम भी नहीं सुनते। हम हरे कृष्ण महामन्त्र की अपेक्षा ' ॐ नमः शिवाय ' का जप करते तथा ' कीबो जय जय गौरचांदेर आरती की शोभा ' की अपेक्षा प्रसिद्द आरती ' ॐ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे ' गाते। यह संसार कभी गौरचंद्र को नहीं समझ सकता था। संसार में जो चल रहा हैं उसमे और श्री चैतन्य महाप्रभु को समझने में बहुत अंतर हैं। मैंने भी इस पर टिप्पणी की कि चैतन्य महाप्रभु के बिना हम चैतन्य शून्य अथवा चेतना शून्य , जो कि कृष्णभावनामृत की चेतना हैं, हो जाते हैं। अतः यह अत्यंत आवश्यक हैं कि हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का नियमित रूप से अध्ययन करें। SGGS में हमने आपस में भगवतम की कक्षा का आयोजन भी किया तथा इसके माध्यम से यह समझा कि हमें श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अधिक से अधिक मात्रा में अध्ययन करना चाहिए। वैयासिकी प्रभु ने कल कक्षा दी और अन्यों ने भी अपने पक्ष रखे। हमें इस कांफ्रेंस को यहीं विश्राम देना होगा। आप सभी से कल पुनः इसी समय भेंट होगी। हरे कृष्ण …….

English

Reading Srila Prabhupada’s Books is the Basis Today we had 332 participants on our conference, so keep joining. There is a benefit of the association you get while chanting here. The title of this conference is “ LET'S CHANT TOGETHER !” If you are chanting alone you may face challenges, but if you are in the company of others chanting with you , then it becomes a little of a downhill task. You don't have to fight with Maya so much and you win the battle with Maya. You could concentrate and focus on chanting. So keep taking advantage. You are not chanting only with me , but as you have heard the scores, you are also chanting with so many devotees. Five hundred devotees are chanting. Each participant brings so many chanters with him - from his family, temple , youth groups, Gurukul and BACE devotees . So like that there are lots of devotees chanting with you, which gives you strength. It also gives you faith. Your concentration gets better as you chant. Yesterday different topics, issues were being discussed in our SGGS. They are putting their heads together to tackle various issues faced by ISKCON. They are also trying to develop a common vision. One topic yesterday was ‘regular reading of Srila Prabhupada's books’. We are distributing but we are not reading, which is the major concern. There is an observation that slowly there is a decline, less and less brahmacaris and devotees which also includes congregation devotees, are reading books written by Srila Prabhupada. An observation was made that 10% of our devotees are in a temple and 90% of the initiated devotees and followers are outside the temple, in their homes and their congregation. They are also an integral part of our movement. However reading is happening less and less. During Prabhupad’s days he also once complained that, ’ My disciples are not reading my books enough.’ He was satisfied with the books scores. Lots of books are being distributed, but his claim was as he said, ‘I wrote these books so that my disciples would read them. They are meant for reading and not only for distributing.’ What do you think? Are you all reading Srila Prabhupada's books regularly? This book reading was the topic of discussion and all the leaders were recommended to encourage and inspire or create a role model in their areas that others could follow. In every temple there should be some encouraging words, inspiring statements, so that devotees could read Srila Prabhupada's books. Do you know what is the connection between chanting and reading? If you keep reading Srila Prabhupada's books or if you don't read Srila Prabhupada's books what will happen ? Devotee 1 - If we don't read Srila Prabhupada's books then we won't know why we are chanting? Devotee 2 - If you don't read Prabhupada's books our chanting may end up just being a sentimental thing, without much knowledge. Devotee 3 - If we don't read Srila Prabhupada's books then we won't understand philosophy and then we won't know how to follow in the footsteps of Rupa Goswami and previous acaryas. Prabhupada has led the foundation, the mood of Vaisnava acaryas. In order to follow Rupa Goswami we need to understand scriptures. But if we read Prabhupada's books we get that information from scriptures in an organized way. Devotee 4 - Many times in my experience chanting becomes monotonous if we don't read Srila Prabhupada's books. When we read Srila Prabhupada's books regularly in which he writes even if you don't have taste in chanting you have to continue chanting. So we get encouragement for chanting. Devotee 5 - Prabhupada said books are the basis. That speaks volumes. If we read, it will positively impact on our chanting. We will have a taste for chanting. Devotee 6 - Prabhupada has explained in his books about sambandha jnana. If intellectually we are not situated in sambandh-jnana then we will not have the impetus to chant. If we have studied sambandh jnana then even if our mind gets disturbed our intellect will be sharp enough to defeat the mind and continue chanting. Devotee 7 - HH Sivaram Maharaja says important reading or hearing leads to important chanting. Because unless and until you read we don't get to know why, what, how and where to chant? These questions will be answered when we read or hear Srila Prabhupada's books. Guru Maharaja - Some doubting minds are there. If you read Srila Prabhupada's books , you will be free from the doubts. chidyante sarva-samsayah ( SB. 1.2.21) nasṭa-prayesu abhadresu nityam bhagavata-sevaya bhagavaty uttama-sloke bhaktir bhavati naisthiki ( SB. 1.2.18) If you read and hear Bhagavatam nityam, regularly, then you will become free from doubts. If you have doubts then read Prabhupada's books for solutions. The point is we have to read Srila Prabhupada's books more and more regularly. There was a proposal that if you read 40 pages of Bhagavatam each day then you could complete 12 cantos in one year. Vaiyasiki Prabhuji is a very regular reader and he is also promoting this regular reading of Bhagavatam and some other spiritual books. Read a chapter of Bhagavad-Gita every day. If you do not read the whole chapter then at least read the Sanskrit slokas and translations. One day, one chapter! Like that there are different ideas about what you could read every day. Each one of you must make some plan, some strategies about the 24 hours that we have . Everyone has only 24 hours. Anyone has 25 hours? So why don't we do it? There was a lengthy discussion on this topic in SGGS yesterday. We spent a few hours on this. All the senior most leaders were contemplating. We have also initiated this dialogue here so you can share more and make some plans to read. Time management is also one of the reasons why we don't read regularly. Social media and internet distractions are a major cause keeping us away from reading. Some of our temples have taken away the smart phones from temple brahmacaris. They have ‘unsmart’ phones because there are some abuses or wrong uses of the smart phone. Whoever wants to be smart has some ways to be smart. It is not good for Krsna devotees to follow in the footsteps of worldly people. So many reasons were listed for the possible causes of reading less and less. There were lots of suggestions regarding how we can read more. So it so happens that if we don't read Srila Prabhupada's books then we stop chanting. Prabhupada's books - Nectar of Devotion talks about the offences against the holy name. Now we know, remember and try to avoid those offences. One thing which was also said is that we will become a movement of third class devotees without reading. There was a comment - punar mushika bhava. ( story from Hitopadesh) …. Become a mouse again which means become Hindu again. Before coming to Krishna consciousness we were Hindus or Christians. We go back to that kind of origin. Krishna consciousness is something different, something superior. It is the topmost. It is the essence of all religion and the symptom of the soul. The soul's consciousness is revived and that is Krishna consciousness. That Krishna consciousness will not be revived if we do not read Srila Prabhupada's books. Prabhupada presented ‘Bhagavad-Gita As It is.’ Reading of the Bhagavad-Gita will be lost and then we will read or hear the commentaries of some speculators, Karmakandis and Jnanakandis . The world is …. krsna-bhakta — niskama, ataeva ‘santa’ bhukti-mukti-siddhi-kami — sakali ‘asanta’( CC Madhya 19.149) “Because a devotee of Lord Krsna is desireless, he is peaceful. Fruitive workers desire material enjoyment, jnanis desire liberation, and yogis desire material opulence; therefore they are all lusty and cannot be peaceful. …. so rise above all this karmakandis, jnanakandis. We have to read Srila Prabhupada's books which also contains commentaries by the previous acarya - the thoughts and proposals of Rupa Goswami who presented Krsna and Caitanya Mahaprabhu . If we don't read Prabhupada's books , would we have come to Mayapur? They would not even get to hear the name Mayapur. We will not end up chanting Hare Krishna, but will end up chanting 'Om Namah Shivaya’ or that famous aarti 'Jaya Jagadish Hare ,Swami Jaya Jagadish Hare’. We would not have sung kiba jayo jayo gaurachander aratika sobha’. The world would have missed Gauracanda. It made a difference to understand Caitanya Mahaprabhu and what is being propagated in the world . I made a comment - we will become Caitanya-less, without Caitanya Mahaprabhu and also without Caitanya’ i.e. consciousness which is Krishna consciousness. So it's very important that we all study Srila Prabhupad's books regularly. In SGGS we had our own Bhagavatam class and the purpose is that there should be more interactions and reading more of Srila Prabhupada's books. Vaiyasiki Prabhuji gave class yesterday and others also were talking. We will have to stop here. See you another day, same time. Hare Krishna!

Russian

Джапа сессия 06.03.2019 Чтение книг Шрилы Прабхупады – основа! Сегодня на нашей конференции было 332 участника, так что продолжайте присоединяться. У вас есть преимущества, когда вы воспеваете здесь в обществе преданных. Название этой конференции «ДАВАЙТЕ ВОСПЕВАТЬ ВМЕСТЕ!». Если вы повторяете в одиночку, вы можете столкнуться с трудностями, но если вы находитесь в компании других, воспевающих вместе с вами, это становится чем-то вроде задачи спуститься вниз с холма. Вам не нужно так много сражаться с Майей, и вы выиграете битву с Майей. Вы можете сосредоточиться и сфокусироваться на воспевании. Так что продолжайте пользоваться преимуществами. Вы повторяете не только со мной, но, как вы могли слышать, вы повторяете так же со многими преданными. Пятьсот преданных воспевают совместно с нами. Многие преданные воспевают группами – в храмах, молодежными группами, целыми семьями, преданные в Гурукулах и BACE. С вами воспевают много преданных, это дает вам силы. Это также дает вам веру. Ваша концентрация становится лучше, когда вы повторяете. Вчера в нашей SGGS когда все Саньяси и все Гуру собираются вместе, такое собрание происходит раз в 2 года, обсуждаются разные темы, планы на ближайшие 20 лет. Они объединяют свои усилия для решения различных проблем, с которыми сталкивается ИСККОН. Они также пытаются выработать общее видение. Одной из тем вчера было «регулярное чтение книг Шрилы Прабхупады». Мы распространяем книги, но мы их не читаем, что является серьезной проблемой. Существует наблюдение, что постепенно происходит спад. Брахмачари, и преданные, все меньше и меньше читают книги, написанные Шрилой Прабхупадой. Было замечено, что 10% преданных находятся в храме, а 90% инициированных преданных и прихожан находятся вне храма, в своих семьях и своих домах. Они также являются неотъемлемой частью нашего движения. Однако чтение происходит все реже и реже. Во времена Прабхупады он также однажды пожаловался: «Мои ученики недостаточно читают мои книги». Он был доволен количеством распространяемых книг. Он говорил: «Я написал эти книги, чтобы мои ученики могли читать эти книги. Они предназначены для чтения, а не только для распространения. Вы все регулярно читаете книги Шрилы Прабхупады? Чтение этих книг было темой обсуждения, и всем лидерам было рекомендовано поощрять и вдохновлять или создавать образец для подражания, которому другие могли бы следовать В каждом храме должны быть какие-то ободряющие слова, вдохновляющие высказывания, чтобы преданные могли читать книги Шрилы Прабхупады. Знаете ли вы, какова связь между воспеванием и чтением? Что происходит если вы читаете книги Шрилы Прабхупады или если вы не читаете книг Шрилы Прабхупады? Преданный 1 - Если мы не будем читать книги Шрилы Прабхупады, тогда мы не будем знать, зачем мы воспеваем? Преданный 2 - Если вы не читаете книги Прабхупады, ваше воспевание может оказаться просто сентиментальным, без особых знаний. Преданный 3 - Если мы не будем читать книги Шрилы Прабхупады, тогда мы не поймем философию, и тогда мы не будем знать, как идти по стопам Рупы Госвами и предыдущих ачарьев. Прабхупада передал настроение Ачарьев Вайшнавов. Чтобы следовать Рупе Госвами, нам нужно понимать Священные Писания. Но если мы читаем книги Прабхупады, мы получаем эту информацию из Священных Писаний упорядоченной. Преданный 4 - По моему опыту, часто повторение становится монотонным, если мы не читаем книги Шрилы Прабхупады. Когда мы регулярно читаем книги Шрилы Прабхупады, в которых он пишет, даже если у вас нет вкуса к воспеванию, вы должны продолжать воспевать. Таким образом, мы получаем поддержку для воспевания. Преданный 5 - Прабхупада сказал, что книги - это основа. Это говорит о многом. если мы их читаем, это положительно скажется на нашем воспевании. У нас будет вкус к воспеванию. Преданный 6 - Прабхупада объяснил в своих книгах о самбандха гйане. Если интеллектуально мы не находимся в самбандх-гйане, то у нас не будет стимула повторять. если мы изучали самбандха гйану, то даже если наш ум будет беспокойным, наш интеллект будет достаточно отточен, чтобы победить ум и продолжать повторять. Преданный 7 - Его Святейшество Шиварама Махарадж говорит, что внимательное чтение или внимательное слушание приводит к внимательному повторению. потомучто до тех пор, пока вы не прочитаете, вы не узнаете зачем, где и как воспевать. Мы узнаем ответы на эти вопросы, когда будем читать или слушать книги Шрилы Прабхупады. Гуру Махарадж - некоторые преданные еще находятся в сомнении. Если вы будете читать книги Шрилы Прабхупады, вы освободитесь от сомнений. чхидйанте сарва-самшайах (ШБ. 1.2.21) нашта-прайешв абхадрешу нитйам бхагавата-севайа бхагаватй уттама-шлоке бхактир бхавати наиштхикӣ (ШБ. 1.2.18) Благодаря регулярному посещению лекций по «Бхагаватам» и служению чистому преданному все, что вызывает тревогу в сердце, почти полностью уничтожается, и тогда любовное служение Верховному Господу, воспеваемому в трансцендентных песнях, становится необратимым. Если вы будете регулярно читать и слушать Бхагаватам нитйам, тогда вы освободитесь от всех сомнений. Если у вас есть сомнения, читайте книги Прабхупады для поиска решений. Дело в том, что мы должны читать книги Шрилы Прабхупады все чаще и чаще. Было предложение, если вы будете читать 40 страниц Бхагаватам каждый день, тогда вы сможете прочитать 12 песен за один год. Вайшешака Прабху - постоянный читатель, и он также пропагандирует это регулярное чтение Бхагаватам и некоторых других духовных книг. Читайте главу Бхагавад-гиты каждый день. Если вы не читаете всю главу, то хотя бы читайте шлоки на санскрите и перевод. Один день, одна глава! Есть разные идеи о том, что вы могли бы читать каждый день. Каждый из вас должен составить какой-то план, некоторую стратегию на 24 часа, которые у нас есть. У всех есть только 24 часа. У кого-нибудь есть 25 часов? Так почему мы этого не делаем? Вчера в SGGS была продолжительная дискуссия на эту тему. мы потратили на это несколько часов. Все старшие лидеры размышляли. Мы также начали этот диалог здесь, здесь, чтобы вы могли больше делиться и строить некоторые планы на чтение. Тайм-менеджмент также является одной из причин, почему мы не читаем регулярно. социальные сети и интернет - отвлекающие факторы - главная причина, которая не дает нам читать. Некоторые из наших храмов забрали смартфоны у храмовых брахмачари. У них unsmart «неумелые» телефоны, потому что есть злоупотребления или неправильное использование смартфона. У того кто хочет быть умным, есть несколько способов быть умным. Для преданных Кришны нехорошо идти по стопам мирских людей. Было перечислено так много всевозможных причин почему чтения становится все меньше и меньше. Было много предложений относительно того, как мы можем читать больше. Получается так, что если мы не читаем книги Шрилы Прабхупады, мы перестаем воспевать. Книги Прабхупады - Нектар Преданности рассказывают об оскорблениях Святого Имени. Мы должны знать, помнить, и пытаться избежать этих оскорблений. Еще одна вещь, которая также была сказана, - это то что без чтения мы станем движением преданных третьего класса. Был комментарий - пунар мушика бхава. (История из Хитопадеша)… Станьте снова мышью… Что означает снова стать индуистом. До прихода в сознание Кришны мы были индуистами или христианами. Мы возвращаемся к такому происхождению. Сознание Кришны - это нечто иное, нечто высшее. Это самое высшее знание. Это суть всей религии и признак души. Сознание души возрождается, и это сознание Кришны. Сознание Кришны не будет возрождено, если мы не будем читать книги Шрилы Прабхупады. Прабхупада представил «Бхагавад-гиту как она есть». Если чтение Бхагавад-гиты будет утрачено, тогда мы будем снова читать или слушать комментарии некоторых спекулянтов, Кармаканды и Гьянаканды. Мир это ... кршна-бхакта — нишкама, атаэва ‘шанта’ бхукти-мукти-сиддхи-камӣ — сакали ‘ашанта’ (ЧЧ Мадхья 19.149) «Поскольку преданный Кришны свободен от всех желаний, он умиротворен. В отличие от него, карми одержимы желанием материальных удовольствий, гьяни стремятся к освобождению, а йоги — к материальным достижениям. Все они обуреваемы материальными желаниями и потому не способны обрести умиротворение». .... так что возвышайтесь над всем этим кармакандистами, гьянакандистами. Мы должны читать книги Шрилы Прабхупады, в которых также содержатся комментарии предыдущих ачарьев - комментарии Рупы Госвами, который рассказал нам о Кришне и Чайтанье Махапрабху. Если бы мы не читали книги Прабхупады, пришли бы мы в Маяпур? Они даже не услышат имя Майяпур. Мы не будем повторять Харе Кришна, но будем повторять «Ом Намах Шивая» или эту знаменитую арати «Джая Джагадиша Харе», Свами Джая Джагадиша Харе ». Мы бы не спели киба джайо джайо гаурачандер аратика шобха ». Мир не заметил бы Гаурачанду. Было важно понять Чайтанью Махапрабху и то, что Он начал распространять в мире. Я сделал комментарий - мы останемся без Чайтаньи, без Чайтаньи Махапрабху, а также без сознания Чайтаньи Махапрабху, то есть без сознания, которое известно как сознание Кришны. Поэтому очень важно, чтобы мы все регулярно изучали книги Шрилы Прабхупады. в SGGS у нас был свой собственный класс Бхагаватам, и цель в том, чтобы было больше взаимодействия и чтение большего количества книг Шрилы Прабхупады. Вайшешака Прабху вчера давал класс по бхагаватам, который мы тоже обсуждали. Нам придется остановиться здесь. Увидимся завтра день, в то же время. Харе Кришна!