Hindi

स्वयं को बचाइए आज ३०९ प्रतियोगी इस कांफ्रेंस में सम्मिलित हुए हैं। आज सोलापुर के कई भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। मेरे तीनों भाई - रामदास , धर्मावतार और नन्दलाल , जोअब मेरे शिष्य भी हैं , अपने परिवार के साथ हमारे गाँव अरावड़े से हमारे साथ जप कर रहे हैं। इस प्रकार इस कांफ्रेंस के माध्यम से हम सभी को अपना संग प्रदानकर सकते हैं। बहुत से भक्त इसका लाभ उठा रहे हैं और मैं इससे बहुत प्रसन्न हूँ। कल हम SGGS में सम्मिलित हुए। १०० से भी अधिक गुरु और सन्यासी इसमें सम्मिलित थे। इस संग के माध्यम से वे एक - दूसरे का संग लाभ ले रहे थे। इसमें हमनेकई विषयों पर चर्चा की। उनमे से एक था " स्वयं को बचाना " . वे प्रभुपाद द्वारा रामेश्वर प्रभु को लिखे गए एक पत्र से सन्दर्भ ले रहे थे। उस पत्र के अन्त में श्रील प्रभुपादलिखते हैं ," सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं स्वयं को बचाना। " हम प्रचार , पुस्तक वितरण ,प्रसाद वितरण ,उत्सवों के आयोजन द्वारा , पदयात्रा और नगर संकीर्तन केमाद्यम से हम औरों को बचाते हैं , जो आवश्यक भी हैं तथा होना भी चाहिए। परन्तु प्रभुपाद लिखते हैं , इस बात को मत भूलना कि सबसे मत्वपूर्ण हैं औरों को बचातेहुए स्वयं को भी बचाना। स्वयं को बचाना कभी भी मत भूलिएगा। इसके अलावा स्वयं को बचाने के सन्दर्भ में और भी कई विचार - विमर्श हुए। स्वयं को कैसे बचाएं ? स्वयं की रक्षा कैसे की जा सकती हैं ? - यह एक चर्चा का विषय बन चूका था। इसमें साधना एक प्रकार हैं , जिससे हम स्वयं की रक्षा कर सकतेहैं। साधना से भी पहले " स्वयं की देखभाल करनी " बहुत आवश्यक हैं। तत्पश्चात जब हम साधना के विषय में बात करते हैं तो उस संग में बहुत से भक्त इस बात परजोर दे रहे थे कि हमारी साधना का सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं महामन्त्र का जप - हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। योगिनाम अपि निर्णीतम हरेर नामानुकीर्तनम (श्रीमद भागवतम २.१.११) श्रीमद भागवतम में वर्णन आता हैं कि सभी योगी इस निर्णय पर पहुंचे - हरेर नामानुकीर्तनम अर्थात हरिनाम ही एकमात्र उपाय हैं। भागवतम के दूसरे स्कन्ध के प्रारम्भमें ही शुकदेव गोस्वामी इसका वर्णन करते हैं। अतः मैं सोच रहा था कि हमारे सहयोगी SGGS के लगभग १०० सदस्य भी इसी निर्णय पर पहुँचे। हरिनाम का जप करनासबसे मत्वपूर्ण साधना हैं। इसके पश्चात जप करने के विषय में और भी चर्चा हुई। एक जीबीसी सदस्य ने कहा , " मैं एकादशी के दिन ६४ माला का जप करता हूँ। " हवाई से मेरे गुरु - भाईनरहरी ने बताया कि मैं प्रत्येक दिन सुबह २ बजे उठ जाता हूँ और सबसे पहले मैं अपना जप पूरा करता हूँ। वे अपने अनुभव द्वारा बता रहे थे कि सुबह का समय जपके लिए सबसे अनुकूल हैं, इस समय सतोगुण की प्रबलता होती हैं। यह जप के लिए पुरे दिन का सर्वश्रेष्ठ समय होता हैं। हमें सुबह के समय जप करना चाहिए , इसेरात्री तक नहीं टालना चाहिए। वे इसे पहाड़ी पर चढ़ाई और पहाड़ी से नीचे उतरने से तुलना कर रहे थे। क्या आप इसमें अन्तर को समझते हैं ? आप किसी पहाड़ कीतलहटी में हैं तथा ऊपर चढ़ने के लिए प्रयास करते हैं। इसे पहाड़ी पर चढ़ना तथा वहां से पुनः नीचे उतरना। अतः सुबह के समय जप करना पहाड़ी से नीचे उतरने केसमान हैं। यह आसानी से हो जाता हैं। इसके लिए आपको अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता हैं। आप पहाड़ के शीर्ष पर होते हैं। कुछ पहाड़ ऊपर से समतल होते हैं, जिन्हे टेबल पहाड़ कहते हैं। मैंने ऐसे कुछ पहाड़ देखे हैं जो ऊपर से समतल होते हैं। जब आप इस पहाड़ों पर चढ़ते हैं तो आप देखते हैं कि ऊपर से वे पहाड़ समतलहैं अतः वहां चलना , साइकिल चलाना बहुत आसान होता हैं। यदि समतल सतह पर चलना आसान हैं तो ढ़लान पर उतरने के विषय में क्या कहना। यह उनकाअनुभव था। ब्रह्ममुहृत के समय जप कीजिए, इस अमूल्य समय को व्यर्थ मत गंवाइए। यदि किसी कारणवश आप अपना जप पूरा नहीं कर पाये तो आप दिन के समय या रात्री मेंअपना जप पूरा कर सकते हैं। जप नहीं करने से जप करना अच्छा हैं। कृष्णक्षेत्र महाराज , महात्मा प्रभु द्वारा लिखी गई पुस्तक की प्रशंसा कर रहे थे। महात्मा प्रभु भीजप की गुणवत्ता बढ़ाने में सहायता करते हैं। वे हम किस प्रकार अपना जप सुधार सकते हैं इस विषय पर जप रिट्रीट का आयोजन भी करते हैं। उन्होंने इस सन्दर्भ मेंएक छोटी से पुस्तिका का प्रकाशन भी किया हैं। परम पूज्य कृष्णक्षेत्र महाराज सभी को इस पुस्तक को लेने के लिए संस्तुति कर रहे थे। उस पुस्तक में लगभग २० युक्तियाँ हैं जिससे हम हमारा जप सुधार सकते हैं। इस प्रकार उस सत्र में सभी वरिष्ठ भक्तों ने देखा कि किस प्रकार सभी जप के प्रति चिंतित रहते हैं। हम सभी अभी तक अत्यन्त ध्यानपूर्वक जप कर रहे हैं तथा इस प्रकार द्वितीय और तृतीय पीढ़ी के समक्ष यह उदाहरण स्थापित कर रहे हैं। इसमें कुछ अवलोकन भी किया गया हैं। जब हम कृष्णभावनामृत में थोड़े बड़े हुए उसके तुरन्त पश्चात श्रील प्रभुपाद हमारे साथ वपु रूप में नहीं थे। हमारे लिए किसी को देखकर उनका अनुगमन करने के लिए कोई नहीं था। हमारे लिए उस समय कोई प्रेरणा स्त्रोत शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं था जिनका हम अनुसरण कर सकें। हम सभी एक प्रकार से अकेले थे परन्तु अब हमारे इस आंदोलन में हम प्रभुपाद के शिष्य , प्रथम पीढ़ी के भक्त हैं। हमारे शिष्य द्वितीय पीढ़ी के भक्त हैं और यहाँ तक कि हमारे कुछ गुरु भाई और बहने तो दादा - दादी बन रहे हैं। आप सभी के समक्ष प्रभुपाद के प्रथम पीढ़ी के शिष्य हैं। जिनका आप अनुगमन कर सकते हैं और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा नहीं हैं कि वे केवल उम्र में ही बड़े हैं अपितु वे अनुभव में भी बहुत बड़े हैं। वयोवृद्ध और ज्ञानवृद्ध। वृद्ध होने के दो प्रकार हैं। पहला प्रकार अत्यंत आसान हैं , बस हमे एक बात का ध्यान रखना पड़ता हैं कि हम मरे नहीं, और समय के साथ हम वृद्ध हो जाते हैं। प्रत्येक दिन आप वृद्ध हो रहे हैं। हम हमारे जन्मदिवस मनाते हैं और क्रमशः वृद्धावस्था की ओर बढ़ते हैं। जो कोई भी कभी युवा थे वे अब वृद्ध हो रहे हैं। यह वृक्षों समेत सभी पर लागू होता हैं। ऐसा नहीं हैं कि केवल मनुष्य ही वृद्ध होते हैं। यह वृद्धावस्था सर्वव्यापी हैं। अतः दिन प्रतिदिन वृद्ध होने में कोई महिमा की बात नहीं हैं। परन्तु यदि हम अनुभव द्वारा तथा ज्ञान अर्जित करके दिन प्रतिदिन ज्ञानवृद्ध हो तो यह अवश्य ही हमारे लिए महिमा की बात हो सकती हैं। अधिक ज्ञान का अर्थ हैं वह व्यक्ति और अधिक परिपक्व तथा अनुभवी हैं। क्या आप रघुनन्दन की कथा जानते हैं जिन्होंने भगवान को लड्डू खिलाए थे ? यह प्रश्न पूछा जाता हैं कि पिता कौन हैं और पुत्र कौन हैं। इस पर पिता ने कहा ," मेरा पुत्र मेरा पिता हैं। " वह मेरे से वृद्ध हैं, क्योंकि मेरा पुत्र मेरे से अधिक शुद्ध भक्त हैं। वह मेरे से अधिक ज्ञानवान , उन्नत , तथा अनुभवी हैं। इस प्रकार मेरा पुत्र ही मेरे पिता हैं अथवा मैं उनका पुत्र हूँ। अतः प्रभुपाद के शिष्य केवल उम्र में ही बड़े नहीं हैं अपितु वे ज्ञान और अनुभव में भी बड़े हैं। आप सभी को इसलिए प्रथम पीढ़ी के भक्तों, प्रभुपाद के शिष्यों का संग लाभ अवश्य करना चाहिए। न केवल वे शरीर से वृद्ध हैं अपितु वे बुद्धि और ज्ञान में भी वृद्ध हैं। वे एक पके हुए फल के समान परिपक्व हैं। युवा भक्त कच्चे और खट्टे फल के समान होते हैं वहीं ये वरिष्ठ वैष्णव पके हुए फलों के समान उन्नत तथा अनुभवी होते हैं। वे आज और कल अपना संग एक दूसरे तो प्रदान करेंगे। वे इस सभा में हुई चर्चाओं के बिन्दुओं की टिप्पणियाँ बनाते हैं तथा अंत में एक परिणाम तक पहुँचते हैं। यह ज्ञान विश्व के प्रत्येक कोने में उपस्थित भक्तों को किसी न किसी रूप में प्रदान किया जाएगा। आप सभी कुछ समय के पश्चात इस ज्ञान को जानेंगे। मैं तो केवल आपको अभी इसकी एक झलक प्रदान कर रहा हूँ। इसलिए निरन्तर जप करते रहिए। अब आपको जप के लिए सर्वश्रेष्ठ समय का पता हैं। आपको यह भी पता चल चूका हैं कि आपको प्रत्येक दिन जप करना हैं जिस प्रकार ये वरिष्ठ भक्त पिछले ४० - ४५ वर्षों से अथवा कुछ तो पिछले ५० वर्षों से कर रहे हैं। वे न तो जप करने से थकते हैं और न ही इसे छोड़ने के विषय में सोचते हैं। आपको इनके तथा प्रभुपाद के चरण कमलों का अनुगमन करना चाहिए। नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर के पथ का अनुगमन कीजिए, उनकी सदैव जय हो। इसके साथ ही साथ भगवान शिव के चरणों का अनुगमन भी हमें करना चाहिए। आज हम शिवरात्री का पर्व मना रहे हैं। भगवान शिव भी वही मन्त्र जपते हैं जिसका जप हम सभी करते हैं। इसका एक भजन भी हैं - ब्रह्मा बोले चतुर्मुखे कृष्ण कृष्ण हरे हरे। महादेव पंचमुखे राम राम हरे हरे।। यहाँ एक द्वीप हैं , गोद्रुम द्वीप , जिसे बनारस से अभिन्न समझा जाता हैं। गोद्रुम द्वीप को महा - वाराणसी कहा जाता हैं तथा यह श्रवणं , कीर्तनं , परन्तु विशेष रूप से कीर्तनं के लिए प्रसिद्ध हैं। क्या आप इसका अनुमान लगा सकते हैं कि वहाँ कौन कीर्तन कर रहा हैं ? भगवान शिव गोद्रुम द्वीप में प्रत्येक समय कीर्तन करते हैं। ऐसा कहा जाता हैं कि यदि आप गोद्रुम द्वीप में शरीर का त्याग करते हैं तो भगवान शिव आपके कान में गौरांग, गौरांग कहते हैं। वे उस मरणासन्न व्यक्ति को गौरांग का स्मरण कराते हैं जिससे वह मुक्ति को प्राप्त हो सके। आज शिवरात्री का उत्सव हमारे राजापुर जगन्नाथ मन्दिर में संपन्न होगा। वहाँ एक शिवलिंग हैं तथा सीमन्तिनी देवी जो पार्वती देवी ही हैं , वहां निवास करती हैं। आज दिन के समय यहाँ बहुत अधिक उत्सव हैं यथा कथा , कीर्तन , अभिषेक तथा प्रसाद। अतः आप सभी इस शिवरात्री महोत्सव में सम्मिलित होने के लिए सादर आमंत्रित हैं। कीर्तन मेला भी अभी चल रहा हैं। यह सुबह १० बजे से प्रारम्भ होकर रात्री १० बजे तक चलता हैं , जिसमे अलग अलग कीर्तनिया अपनी पारी के अनुसार कीर्तन करते हैं। आप भी कीर्तन मेला में भाग लीजिए। कीर्तन महोत्सव की जय। इसलिए सदैव जप करते रहिए। हरे कृष्ण।

English

SAVE YOUR SELF ! We had 309 participants today. Today many Solapur devotees are chanting on the conference. All three of my brothers, - Ramdas, Dharmavatar and Nandalal, who are my disciples are chanting with us along with their family members from Aravade. This way we make our association available through this conference. Many are taking advantage, and I am happy about it. Yesterday we had this SGGS gathering. More then 100 Gurus and sannyasis were there. They were taking each other's association in that Sanga. There were many topics. One of them was ‘Saving yourself ’. They were making reference of one of the letter Prabhupada wrote to Rameshwar Prabhu. Towards the end of the letter, Prabhupada had written that the ‘most important thing is to save yourself.’ We try to save others by preaching, book distribution, prasada distribution, arranging festivals, or conducting padayatras, Nagar sankirtana. This is important and must go on . But Prabhupada had written, “Do not forget that the most important thing is to ‘save yourself’ while saving others. Don't forget to save yourself.” There was also more discussion on taking care of yourself. ‘How to save yourself ? How to take care of yourself?’ became a topic. Sadhana was one item. Before even sadhana there was ‘Take care of yourself.’ Then talking of sadhana, some were insisting strongly that the most important aspect of our sadhana is the chanting of HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE. yoginam api nirnitam harer namanukirtanam ( SB. 2.1.11) In Bhagavatam it is mentioned that all the Yogis have come to the conclusion - harer naamanukirtanam. There the Yogis mention that Harinama is the way. In the beginning of the Second canto Sukadev also mentions it. So I was thinking our colleagues, SGGS members about 100 of them also came to the similar conclusion. Chanting the holy name is the most important sadhana. There was more discussion about chanting japa. One GBC member said, “ On Ekadasi I chant 64 rounds.” There was my god-brother Narahari from Hawaii. He said that he gets up at 2.00 am everyday and the first thing he does, is chant his rounds. His experience is that the morning hours are the best because it is predominated by the mode of goodness. It's the best time of the day for chanting. Try to chant during the day, not the night. He was comparing it with riding a bike uphill and riding it downhill. You understand the difference? You are at the foothill and trying to climb the mountain. Get to the top and then come downhill. So he said - Chanting in the early morning hours is like riding downhill. It goes fast and easy. Don't have to make much effort. It could be at the top of the hill also. Some hills are flat on top. They are table mountains. I have seen a few mountains like that with a flat roof. Once you climb uphill, then it's flat and you have a smooth ride - walking or driving or cycling. Then what to speak of going down. This was his experience. Use brahmamuhurta time. Don't miss it. If you haven't completed your rounds, then of course one can chant in the morning or night. Better to chant than not to chant. Krishnasetra Maharaja was praising the book written by HG. Mahatma Prabhu. He is also one of the Japa promotors. He conducts japa retreats on how to improve your chanting. He has written a small booklet. HH Krishnaksetra Maharaja was strongly recommending that you get that booklet. There are some 20 tips on how to improve your chanting. The leaders in the discussion could sense how there are concerns about chanting. We are still chanting, setting the example before the second and now even third generation in our movement. There are certain observations. We grew up in Krishna consciousness and after some time Prabhupada was no more with us. We didn't have anyone to look up to . We didn't have role models before us. We were by ourselves, but now in our society we all Prabhupada disciples are first generation. Our disciples are second generation and some of our god brothers , godsisters and others are becoming grand parents. For you all this Prabhupada disciples batch is in front of you. You can take inspiration and blessings from them. Not only have they grown old in age, but they have grown old in experience also. vayovridhha and jnanavridhha. There are two ways you can get older. One way is easy, just make sure you don't die. Every day you are getting older and older. We celebrate our birthdays and keep getting old. This is nature. Whoever and whatever was young at one time becomes old. That applies to the trees also. It applies to all the species. It's not that only human beings are specialised in getting old. Old age business is all pervading. So there is nothing glorious just to keep becoming older and older, but it is glorious if we could grow more mature or older by our experience or by acquiring more and more knowledge. More knowledge means that the person is considered more mature , experienced. You know the story of Raghunandan who fed the laddus to the Lord. The question is being asked, “Who is the father and who is the son? The father said, ‘My son is my father. He is ‘older’ then me. Because my son is a more pure devotee than I am. He is more advanced, more knowledgeable, more realized than I am.’ Prabhupada disciples are not only old in age but in knowledge and experience also. You could take advantage of the association of the first generation of devotees, Prabhupada disciples. Their bodies are old but more importantly, they are old by their intelligence. They are mature like a ripened fruit. While we are young, we are raw and sour sometimes. These senior devotees are ripened, advanced, realised and experienced. They are getting together today and tomorrow. They are taking notes of different things being discussed and arriving at conclusions. That knowledge will be made available to devotees around the world in some shape , some form. You will get to know in course of time. I am just sharing the glimpses in advance. So keep chanting. Now you know the best time for chanting. You also know that you have to chant every single day, like these devotees are chanting for the last 40 - 45 years or some even for the last 50 years. They are not tired or they are not giving up. Follow in their footsteps and the footsteps of Srila Prabhupada. Follow in the footsteps of Namacarya Srila Haridas Thakur. All glories to him. Follow in the footsteps of Lord Siva. Today we are celebrating Shivaratri. Lord Shiva is known for chanting the same mantra that we chant. There is also song - brahma bole chaturmukhe krsna krsna hare hare mahadev panchmukhe rama rama hare hare There is also island called Godrum dwip which is considered non different from Varanasi. Godrum dwip is called maha-Varanasi and is known for sravanam, kirtanam and especially kirtana. Guess who is doing kirtana there? Lord Siva is doing kirtana in Godrum dwip all the time. They say if you happen to leave your body in Godrum dwip then at the verge of death Siva comes and chants ‘Gauranga. Gauranga’ in your ears. He reminds the dying person of Gauranga and that person attends liberation. Today Sivaratri Mahotsav is being celebrated at our Rajapur Jagannatha mandir. There is a Sivalinga there and Simantini Parvati also resides there. In the afternoon there will be lots of festivities - talks, kirtanas, abhishek and prasada. So you are welcome to join Sivaratri Mahotsav. Kirtan Mela is on. It is on from 10 am to 10 pm. All day different singers and chanters will be taking their turn. Be part of the kirtana mela. Kirtan Mahotsav ki jay! Hare Krishna!

Russian

Джапа сессия 05.03.2019 СПАСИТЕ СЕБЯ ! У нас было 309 участников сегодня. Сегодня многие преданные Солапура воспевают на конференции. Все трое моих братьев - Рамдас, Дхармаватар и Нандалал, которые являются моими учениками, воспевают вместе с нами вместе с членами своей семьи из Аравада. Таким образом мы делаем наше общение доступным через эту конференцию. Многие могут ей воспользоваться, и я рад этому. Вчера у нас было собрание SGGS. Там было более 100 гуру и санньяси. Они общались друг с другом в этой Санге. Было много тем. Одной из них было «Спасение себя». Они ссылались на одно из писем, которые Прабхупада написал Рамешвару Прабху. В конце письма Прабхупада писал, что «самое важное - спасти себя» мы пытаемся спасти других, проповедуя, распространяя книги, распространяя прасад, устраивая праздники или проводя падаятры, нагар-санкиртану. Это важно и должно продолжаться. Но Прабхупада писал: «Не забывайте, что самое главное - «спасти себя», спасая при этом других. Не забывайте спасти себя ». Также было много дискуссий о том как позаботиться о себе. «Как спасти себя? Как позаботиться о себе? » стало темой. Садхана была одним из предметов. Еще до садханы было «Береги себя» затем, говоря о садхане, некоторые настаивали на том, что наиболее важным аспектом нашей садханы является воспевание HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE. йогинам нрпа нириитам харер наманукиртанам (ШБ. 2.1.11) В Бхагаватам упоминается, что все йоги пришли к выводу харер наманукиртанам. Йоги отмечают, что харинама - это путь. В начале Второй песни Шукадева также упоминает об этом. Поэтому я подумал, что наши коллеги, около 100 членов SGGS, также пришли к аналогичному выводу. Повторение святого имени - самая важная садхана. Было много дискуссий о повторении джапы. Один из членов Джи-би-си сказал: «На экадаши я повторяю 64 круга» был мой духовный-брат Нарахари с Гавайских островов. Он сказал, что он встает в 2 часа ночи каждый день, и первое, что он делает, - повторяет свои круги. Его опыт показывает, что утренние часы являются лучшими, потому что в них преобладает гуна благости. Это лучшее время дня для воспевания. Старайтесь петь днем, а не ночью. Он сравнивал это с ездой на велосипеде в гору и ездой на спуске. Вы понимаете разницу? Вы находитесь в предгорье и пытаетесь подняться на гору. Доберитесь до вершины и затем спуститесь вниз. Он сказал так: повторять в ранние утренние часы все равно, что ехать с горы. Едешь быстро и легко. Не нужно прилагать много усилий. Так может быть и на вершине горы. Некоторые горы плоские на вершине. Это столовые горы. Я видел несколько таких гор с плоской вершиной. Как только вы поднимаетесь в гору, она становится ровной, и вы спокойно ходите или едете на велосипеде. Тогда что говорить о спуске вниз. Это был его опыт. Используйте время брахма-мухурты. Не пропустите его. Если вы не завершили свои круги, то, конечно, можно воспевать утром или ночью. Лучше повторять, чем не повторять. Кришнакшетра Махарадж восхвалял книгу, написанную Е.С. Махатмой Прабху. Он также является одним из промоутеров Джапы. Он проводит джапа ретриты о том, как улучшить ваше воспевание. Он написал небольшой буклет. Кришнакшетра Махарадж настоятельно рекомендовал вам получить этот буклет. Есть около 20 советов о том, как улучшить свое воспевание. Лидеры в дискуссии могли почувствовать, какие есть проблемы с воспеванием. Мы все еще воспеваем, подаем пример второму, а теперь и третьему поколению в нашем движении. Есть определенные наблюдения. Мы выросли в сознании Кришны, и через некоторое время Прабхупады больше не было с нами. Нам было не на кого смотреть. У нас небыло примера для подражания. Мы были сами по себе, но сейчас в нашем обществе мы все ученики Прабхупады - первое поколение. Наши ученики - это второе поколение, а некоторые из наших духовных братьев, духовных сестер становятся дедушками и бабушками. Для вас вся эта группа учеников Прабхупады перед вами. Вы можете получить от них вдохновение и благословения. Они не только старше по возрасту, но и болем опытные. vayovridhha и jnanavridhha. Есть два способа стать старше. Один путь прост, просто убедитесь, что вы не умерли. Каждый день вы становитесь старше и старше. Мы празднуем наши дни рождения и продолжаем стареть. Это природа. Кто бы ни был молодым в свое время, становится старым. Это относится и к деревьям. Это относится ко всем. Дело не в том, что только люди могут стареть. Старость проникает повсюду. Так что нет ничего прекрасного в том чтобы просто становиться старше и старше, но было бы великолепно, если бы мы могли стать более зрелыми или стать старше благодаря нашему опыту или приобретая все больше и больше знаний. Больше знаний означает, что человек считается более зрелым, более опытным. Вы знаете историю Рагхунанданы, который кормил Господа ладу. На вопрос: «Кто отец, а кто сын? Отец сказал: «Мой сын - мой отец. Он "старше"меня. Потому что мой сын более чистый преданный, чем я. Он более продвинутый, более осведомленный, более осознанный, чем я. Ученики Прабхупады не только преклонного возраста, но также обладают знаниями и опытом. Вы можете воспользоваться общением с первым поколением преданных, учеников Прабхупады. Их тела постарели, но что еще более важно, они зрелые по интеллекту. Они зрелые, как созревшие фрукты. Пока мы молоды, мы иногда сырые и кислые. Эти старшие преданные созрели, продвинулись, осознали и испытали. Они собираются сегодня и завтра. Они записывают разные обсуждаемые вещи и делают выводы. Это знание будет доступно преданным всего мира в той или иной форме, в определенном виде. Вы узнаете со временем. Я просто делюсь заранее некоторыми впечатлениями. Так что продолжайте воспевать. Теперь вы знаете лучшее время для воспевания. Вы также знаете, что вы должны повторять каждый день, как эти преданные повторяют последние 40–45 лет, а некоторые даже последние 50 лет. Они не устали и не сдаются. Следуйте по их стопам и стопам Шрилы Прабхупады. Следуйте по стопам Намачарьи Шрилы Харидаса Тхакура. Вся слава ему. Следуйте по стопам Господа Шивы. Сегодня мы празднуем Шиваратри. Господь Шива известен повторением той же мантры, что и мы. Есть также песня - brahma bole chaturmukhe krsna krsna hare hare mahadev panchmukhe rama rama hare hare Существует также остров под названием Годрум Двип, который считается неотличным от Варанаси. Годрум Двип называется маха-варанаси и известен шраванам, киртанам и особенно киртаном. Угадайте, кто там совершает киртан? Господь Шива все время совершает киртан в Годруме. Они говорят, что если вы случайно покинете свое тело в Годруме, тогда на грани смерти приходит Господь Шива и повторяет «Гауранга». Гауранга в твоих ушах. Он напоминает умирающему про Гаурангу, и этот человек достигает освобождения. Сегодня Шиваратри Махотсав празднуется в нашем Раджапур Джаганнатха Мандире. Там есть шивалингам и там же живет Симантини Парвати. Во второй половине дня будет много праздников - общения, киртанов, абхишека и прасад. Итак, вы можете присоединиться к Шиваратри Махотсаву. Киртан Мела началась. С 10 утра до 10 вечера. Весь день поют разные киртании. Будьте частью киртана мелы. Киртан Махотсав ки джай! Харе Кришна!