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जप चर्चा
18 अगस्त 2020
श्री श्री गुरू गौरांग जयत:
जय श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद ।
श्री अद्वैत गदाधर श्री वासादी गौर भक्त वृन्द ।।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
777 स्थानो से जप हो रहा है । उज्ज्वला गोपी सुन रही हो ?
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
नामाश्रय कोरी जतने तोमि थाकह अपना काजे भक्ति विनोद ठाकुर ने कहा है , नामाश्रय कोरी जतने तोमि थाकह अपना काजे नाम का आश्रय लो और फिर कार्य में रत हो जाओ । नाम का आश्रय भी बना रहे और कार्य में भी मग्न हो जाए । वैसे यह वह भी बात हो सकती है , जैसे भगवान ने अर्जुन को कहा है ,
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च |
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयः ||
(भगवद् गीता 8.7)
अनुवाद : अतएव, हे अर्जुन! तुम्हें सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिन्तन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्तव्य को भी पूरा करना चाहिए | अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमें स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे |
मामनुस्मर युध्य च मेरा स्मरण करते हुए युद्ध करो । ऐसा आदेश , ऐसा उपदेश मामनुस्मर मेरे नाम का स्मरण या मेरा स्मरण , मेरे रूप का स्मरण , मेरा स्मरण करते हुए मामनुस्मर अनुस्मर ! अनुस्मर मतलब पहले मेरे संबंध में जो सुना है उसका स्मरण करो । अनुस्मरण ! यह ध्वनित होता है , अनु , स्मरण , माम मतलब मेरा स्मरण करते हुए युद्ध करो । एकमेही दो । वही बात है , नामाश्रय कोरी जतने तोमि थाकह अपना काजे भगवान ने यह नहीं कहा है कि , केवल स्मरण ही करो या केवल युद्ध ही करो । नहीं ! दोनों साथ में करो । मेरा स्मरण करते हुए युद्ध करो । डिवोशनल सर्विस (भक्तिमय सेवा) भक्ति को अंग्रेजी में डिवोशनल सर्विस कहते हैं , मतलब डिवोशन (भक्ती) के साथ की हुए सर्विस या सेवा डिवोशनल सर्विस भक्ति योग ! केवल डिवोशन करने वाले भी होते हैं , केवल डिवोशन ! वह सक्रिय नहीं रहते ।डिवोशंस है , शांति है , भाव है लेकिन भाव पूर्वक भक्ति नहीं करते । भाव है किंतु भक्ति नहीं है या सेवा नहीं है । यह कृष्णभावना भी है । कृष्ण भावना भावीत बनो मतलब कृष्ण भावना भावित रहकर , कृष्ण भावना भावित होते हुए हम सक्रिय रहे , सेवा करें । जैसे योगी होते हैं वह केवल ध्यान करते हैं , मतलब शांत रस की स्थिति हैं । वह ध्यान करते हैं लेकिन गोपियों का ध्यान व्यवहार्य है , वह ध्यान करते हुए भगवान की सेवा के लिए भागती दौड़ती भी है । ध्यान भी है और सेवा भी है । भगवान ने गीता में भी कहा है ,
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ||
(भगवद् गीता 2.48)
अनुवाद : हे अर्जुन! जय अथवा पराजय की समस्त आसक्ति त्याग कर समभाव से अपना कर्म करो | ऐसी समता योग कहलाती है |
बात तो छोटी है लेकिन वैसे बड़ी मोटी बात है । कुछ शब्दों में भगवान ने बहुत कुछ कहा है । यह ध्यान से सुनिए या लिखिए भी , कुछ माताएं लिख रही है । हरीध्वनी आप लिख रही हो ? नहीं , आप नहीं लिख रहे हो । कुछ शिष्य है , कुछ लिखते रहते है ।और कुछ शिष्योको अपने स्मृती पर भरोसा होता है , अपने स्मृति के भरोसे रहते है लेकिन इस स्मृति का क्या भरोसा है ? संकर्षण लक्ष्मण लिख रहे हो , ठीक है ।
यह बात छोटी है लिखे या ना लिखें वैसे याद भी रह सकती है । योगस्थः , पहले ही अभी कुछ मिनटों में मैंने जो बातें कही उसी को दूसरे शब्दों में भगवान गीता में कह रहे हैं । श्री भगवान उवाच , योगस्थः कुरु कर्माणि वैसे सरल संस्कृति ही है , क्या है ? योगस्थः योग में स्थित हो जाओ । योगस्थः और फिर कुरु मतलब कौरव , कर्माणि मतलब कार्य करो । वैसे आप योग में स्थित होकर जो कार्य करोगे वह भक्ति का ही कार्य होगा , वह योग होगा । योगाह कर्मसु कौशलम कहा है यह जीने की कला है , जीवन की शैली है । योगा कर्मसु कौशलम क्या है ? यह है , कैसे कार्य करें या कब कार्य करें ? योग में स्थित होकर कार्य करें ।हरि हरि ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
हम जप करते हैं तो फिर हम स्वयं को स्थित करते हैं । भगवान मे स्थित करते हैं या भगवान के चरणों में स्थित करते हैं ।
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज |
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः ||
अनुवाद : समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत ।
मामेकं शरणं व्रज भी करते हैं । सर्वधर्मान्परित्यज्य और - और जो विचार है और जो भी कार्य है उनको त्यागते हुए , उनका अधिकार करते हुए , उनको ठुकराते हुए केवल भगवान के चरणों का आश्रय लेते हैं । वैसे नामाश्रय कोरी जतने तोमि कहा अपना काजे नामश्रय ही भगवान का आश्रय है । नामाश्रय ! हरैर नामेव केवलम ! इस नाम का आश्रय और नाम के आश्रय से भगवत प्राप्ति भी हैऔर किसी भी विधी से कलयुग मे भगवान प्राप्त नहीं होते है । कीर्तन से , नामजप से भगवत प्राप्ति होती है । नास्तेव-नास्तेव-नास्तेव गतीर अन्यथा तीन बार क्यों कहा है ? नास्ती एवं मतलब कर्म से नहीं , कर्मकांड से नहीं , भुक्ति कामना से नहीं यह एक बार , फिर दूसरा नास्तेव है ध्यान कांड से नहीं या मुक्ति कामना से नहीं अहं ब्रह्मास्मि इस तथाकथित महावाक्य को लेकर हम ब्रह्म बने का ब्रह्म साक्षात्कार का प्रयास वाली जो भी पद्धती का अवलंबन करते हैं उससे भी नहीं , नास्तेव मतलब उससे भी भगवत प्राप्ती नहीं होगी । भुक्ती कामना वाले भगवत प्राप्ति नही कर सकते , मुक्ती कामना वाले भगवत प्राप्ति नहीं कर सकते इसलिए दूसरा नास्तेव , नास्तेव है और तीसरा नास्तेव है योग से या जो योग सिद्धियां है , अलग अलग अष्ट सिद्धियां है उससे भी भुक्ति मुक्ति सिद्दीकामी यह तीन बातें हैं । संसार मे सारे जो धार्मिक कृत्य है अधिकतर यह तीन श्रेणियों में आते हैं । हिंदू धार्मिक है या इसाई है या मोहम्मद है , बुद्धिस्ट है या फारसी है या जैन है या सिख है , जितने भी सारे धर्म है या तो वह भुक्ति कामना या मुक्ति कामना या सिद्धि कामना इन तीन कामना मे बैठ जाते हैं । भुक्ति कामना भी या फिर उसके साथ मुक्ति कामना भी और सिद्धि कामना भी होती है , इसी तरह ज्यादातर तो यही है जब भगवान ने कहा है , सर्वधर्मान्परित्यज्य सारे धर्म को त्याग दो तो यह धर्म है । भुक्ति कामना के विचार से , मुक्ति कामना से विचार से किया हुआ धर्म , कर्ममिश्रित है । कर्म मिश्रित धर्म या ज्ञान विद्या , योग मिश्रित धर्म का मिश्रण है ।
अन्याभिलाषिता-शून्यं ज्ञान-कर्माच्यनाबवृतम् ।
आनुकूल्पेन कृष्णानु-शीलनं भक्तिरुत्तमा ॥
( चैतन्य चरितामृत मध्य लिला 19.167)
अनुवाद : जब प्रथम श्रेणी की भक्ति विकसित होती है, तब मनुष्य को समस्त भौतिक इच्छाओं, अद्वैत-दर्शन से प्राप्त ज्ञान तथा सकाम कर्म से रहित हो जाना चाहिए। भक्त को कृष्ण की इच्छानुसार अनुकूल भाव से उनकी निरन्तर सेवा करनी चाहिए।
अन्याभिलाषिता-शून्यं ज्ञान-कर्माच्यनाबवृतम अन्य अभिलाषा है । प्रपद्यंते अन्य देवता जैसे श्री कृष्ण ने कहां है , प्रपद्यंते अन्य देवता कुछ लोग क्या करते हैं , अन्य देवताओं की शरण में जाते हैं और फिर कर्मकांड में भुक्ति कामना में व्यस्त हो जाते हैं और वह भी एक प्रकार का धर्म ही है , धर्म के कर्म है । उनको भी त्यागो और फिर मुक्ती कामना वाले धर्म , ज्ञान मिश्रित धर्म या भक्ती , ज्ञान मिश्रित भक्ती और योग मिश्रित भक्ती या सिद्धी को त्यागना है । यह भुक्ति कामना वाला जो यह विधि विधान है ऐसा धर्म अधुरा धर्म है । धर्म वैसे एक दृष्टि से , वाच्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपासिन्धुभ्य एव च ।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः ।।
है । यह धर्म जिसकी जैसी कामना है वैसे उनकी पूर्ति करता है । कुछ भुक्ति कामना वाला है , कुछ मुक्ति कामना वाले हैं , कुछ सिद्धि कामना वाले हैं उनका भी भला हो । हरि हरि । यह जो कलो नास्तेव नास्तेव नास्तेव गतीर अन्यथा गति मतलब विधि भी , अन्यथा अन्य विधि नहीं है । भगवत प्राप्ति की कलयुग में एक ही विधि है , वह है हरेर नामैव केवलम । नहीं है , नहीं है , नहीं है और कोई विधि नहीं है , मतलब कर्मकांड यह विधि नहीं हो सकती , ज्ञानकांड यह विधि नहीं हो सकती , भुक्ति कामना , मुक्ति कामना , सिद्धि कामना यह विधी नहीं हो सकती , नास्तेव नास्तेव नास्तेव गतीर अन्यथा एक ही विधि है और वह है हरेर नामैव केवलम । श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कहा है ,
नाम विनू कलि काले नाही आर धर्म ।
सर्व मन्त्र सार नाम एई शास्त्र मर्म ।।
(चैतन्य चरितामृत आदि लीला 1.07.074)
अनुवाद : इस कलियुग मे भगवन्नाम के कीर्तन से बढकर अन्य कोई धर्म नही है क्योंकि यह समस्त वैदिक स्त्रोतों का सार हैं । यही सारे शास्त्रो का तात्पर्य हैं ।
क्या कहा है ? हरिनाम संकीर्तन कलयुग में धर्म है , आर नाहीं धर्म और कोई धर्म नहीं है । और कोई धर्म है तो उसको सर्वधर्मपरीत्यज्य करो वह द्येय है , द्येय मतलब मराठी मे टाकाऊ , त्याज्य है । हरि हरि ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
वैसे यह श्रवणं कीर्तनं विष्णुः स्मरणं विष्णु का श्रवण कीर्तन है , यह संपूर्ण भक्ति भी है । यह नहीं कि जैसा पहले आपने सुना है पहले योगेस्थ: फिर कुरु कर्माणि । पहले योग में स्थित हो जाओ और फिर कर्म करो कुछ भक्ति करो , भक्ति का कार्य करो , यह सुनने के बाद आप शायद सोचोगे कि तो हम बैठकर जो जप कर रहे हैं या उठकर जो कीर्तन और नृत्य कर रहे हैं यह भक्ति नहीं है यह भक्ति की तैयारी है , यह तो उसका पाया है , भक्ति में स्थित होना है और स्थित होकार फिर जो करना है , भक्ति करना है उसको हम डिवोशनल सर्विस कहेंगे , यह जप करना यह भक्ति नहीं है । नहीं-नहीं ! यही भक्ति है , यही पूरी भक्ति है । श्रवणं भक्ती है , कीर्तनं भक्ती है , विष्णुः स्मरणं भक्ती है , पादसेवनं भक्ति है और अर्चनं वंदनं दास्यं साख्यं आत्म निवेदनं यह नवविधा भक्ति के प्रकार है । भक्ती कितने प्रकार की है , नवधा या नवविधा दोनो प्रकार से कह सकते है । धा मतलब प्रकार , कितने प्रकार है ? नवधा । जैसे चतुरविधा है , विधा या धा , या एकधा एक प्रकार , द्विधा मन की द्विधा मे फसा हू , वह धा , प्रकार है । इसे समझीये दहा मतलब प्रकार , एकधा , द्विधा ,त्रिधा ,चतुरविधा , नवविधा । नव प्रकार की भक्ती है , श्रवण कीर्तन भी भक्ती ही है और यह भक्ती करते हुये भी , या यह भक्ती करने के उपरांत हम और प्रकार की भक्ती करेंगे लेकिन वह भक्ती करते समय भी मामनुस्मर युध्य च मेरा स्मरण करते हुए युद्ध करो , मतलब भगवान नामस्मरण करते हुए , गाते हुए , हाथ मे काम मुख मे नाम होणं चाहीये । नाम स्थीर है , भगवान का नाम , नाम के साथ स्मरण यह सेवा के साथ जुडा रहना चाहीये ।
उसका अवलंबन नहीं करना है , ऐसी बात नहीं है । यह सारे नौ प्रकार की भक्ति करनी है लेकिन हर भक्ति के साथ हरिनाम जुड़ा होना चाहिए । हरिनाम साथ में होना चाहिए नामस्मरण , स्मरण के साथ आप अन्य भक्ति के कृत्य भी करो फिर वह पुरा है , खासकर इस कलयुग में ऐसा हरिनाम का महिमा है । हरि हरि । अगर आपको यह स्पष्ट नहीं है तो इसका स्पष्टीकरण आप अपने शास्त्रों से ले सकते हो , शास्त्रों का अध्ययन करो प्रभुपाद की ग्रंथो को पढो और साधु , शास्त्र , आचार्य और जो साधु है वह आपके गुरु बंधु या गुरु भगिनी भी हो सकती है उनसे चर्चा करो आपके काउंसलर्स उनकी सलाह लो और कुछ विचार करो , विचारों का मंथन हो सकता है क्या कहा ? या थोड़ा और सोचो और भगवान को प्रार्थना करो
"ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते" इन सारी बातों को समझने के लिए वह आपको बुद्धि दे । इतना सब करने के उपरांत भी कुछ बातें समझ में नहीं आ रही है , स्पष्ट नहीं है न तो फिर इस कॉन्फ्रेंस में भी आप प्रश्न पूछ सकते हो , प्रश्न लिख सकते हो और फिर उसके जवाब हमारी जो टीम है वो टीम या मैं भी उनके साथ हू , हम जवाब देंगे । हर सवाल का जवाब देंगे , हर प्रश्न का उत्तर है , और वैसे इस बातों को भेजने में थोड़ी दूसरी बात है लेकिन ऐसे विचार आए कि आप में से कोई भी व्यक्ति या भक्त ऐसा प्रश्न नहीं पूछ सकता जो पहले किसी ने नहीं पूछा था । इस पर विचार करो । आप में से कोई भी भक्त , व्यक्ति कभी भी ऐसा प्रश्न नहीं पूछ सकता जो पहले कभी किसी ने कभी भी नहीं पूछा था , यह संभव नहीं है मतलब आपको जो भी पूछना है , आप में से किसी का प्रश्न है , वह भूतकाल मे कभी ना कभी कहीं ना कहीं किसी ना किसी ने प्रश्न पूछा था । हर प्रश्न का उत्तर होता ही है , उस प्रश्न के उत्तर का आपको भी पता नहीं हो सकता और मुझे भी पता नहीं हो सकता लेकिन कहीं ना कहीं पर हंसना है तो उत्तर भी होता ही है । प्यास लगती है तो क्या होना चाहिए जल कहीं ना कहीं भी होना ही चाहिए तभी तो प्यास होती ही है । प्यास के साथ जल जैसे जुड़ा ही होता है , हो सकता है निश्चित ही रेगिस्तान में कुछ स्थान में जल नहीं मिलेगा और कुछ मुग जल काफी अनुभव हो सकता है । हिरण को दिखता है लगता है वहा पाणी है वह दौड़ता है पर वहां पानी नहीं होता है , फिर वहां पहुंचने पर और कहीं पानी वहां है वहां दौड़ता है पर पानी वहां भी नहीं होता , रेगिस्तान में शायद या निश्चित ही नहीं मिलेगा मतलब यह नहीं कि जल नहीं है आपको प्यास लगी है , प्यास है मतलब जल कहीं ना कहीं होना चाहिए । उसी प्रकार प्रश्न है तो उसका उत्तर भी होना चाहिए और पहले ऊपर दिए गए हैं और आपने पूछा हुआ प्रश्न ही पहले पूछा गया है या इसीलिए श्रीमद्भागवत हम पढ़ते हैं तो यह श्रीमद भगवतम की पहेली भी है शुकदेव गोस्वामी जवाब देंगे । उसको शुकदेव गोस्वामी ने ऐसे ही जवाब दिया था कि , शुकदेव गोस्वामी भी कहेंगे ब्रह्मा ने ऐसा नारदजी को ऐसा ही जवाब दिया उसे पढते रहते हैं , आपने जो प्रश्न पूछा था ऐसा ही प्रश्न एक धार्मिक सभा में पूछा गया था उसका उत्तर उन्होंने इस प्रकार दिया ।
हरि हरि। ऐसे ब्रह्म जिज्ञासु , ब्रह्म जिज्ञासा होनी चाहिए । वैसे वेदांत सूत्र का पहला वचन है अथातो ब्रह्म जिज्ञासा मतलब अब , अब मतलब कब ?अब तुम मनुष्य बने हो अतः इसीलिए ब्रह्मा जितना से जितना शुभ अनुज इतना सा रखो उसमें पूछो । मैं कौन हूं ? उससे शुरुआत करो । सनातन गोस्वामी ने ऐसे जिज्ञासा करके ही श्री चैतन्य महाप्रभु से पुछा , देने आमर जारे ताप त्रय अथातो ब्रह्म जिज्ञासा , प्रश्न पूछना यह बुद्धिमान होने का लक्षण भी है । आपका कोई प्रश्न है तो वैसे तो यह बुद्धि का काम ही है । बुद्धि प्रश्न पूछती है, बुद्धीमान व्यक्ति के प्रश्न होते हैं , होने चाहिए । प्रश्न पूछना चाहते हो तो आप लिख सकते हो या थोडे समय के बाद रुक कर भी लिख सकते हो थोड़ा सोचो देखो कहीं उत्तर मिलता है ऐसा आप तो समझ में आया कि नहीं आया कुछ स्पष्ट नहीं हुआ कोई शंका है उसका समाधान अगर नहीं होता है आज दिन में या कुछ दिनों के उपरांत भी प्रयास करने के उपरांत भी औरों को पूछने के उपरांत भी तब भी लिख सकते हो । कहां जाता है कोई प्रश्न या कोई कहना है ? दोनों भी होता है किस का कोई प्रश्न पूछो , कोई कॉमेंट है तो आपका कुछ कहना है , आपकी कुछ समस्या है आपकी अनुभव की बात , आज की कक्षा से आपने क्या सीखा आपको हम कुछ मिनट का समय देते हैं । प्रश्न पूछने की आवश्यकता तो नहीं है फिर भी पूछ सकते हो ।कथाएं बहुत समय से हो रही है जन्माष्टमी के पहले भी सप्ताह भर के लिए कथाए हो रही थी उसके आधारित कोई आपका कॉमेंट है , प्रश्न है या जन्माष्टमी कैसी रही , कुछ भी , कुछ मिनटों के लिए आप जप भी कर सकते हो । अर्चना विग्रह माताजी ? आज अर्चना विग्रह माताजी का जन्मदिन है , हरिबोल ! वाढदिवस एक दिवस वाढला , एक दिवस कमी झाला , एक दिन बढ गया या कम हो गया ? अर्चाविग्रह माताजी के आविर्भाव , (हस्ते हुए) जन्मतिथि के उपलक्ष्य में हम सभी एक बार हरे कृष्ण महामंत्र का उच्चारण करते हुए शुभेच्छा व्यक्त करेंगे सभी बोलेंगे मेरे साथ
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
जय हो अर्चावीग्रह माताजी नाम भी सुंदर है , अर्चावीग्रह देवी दासी भगवान के सच्चिदानंद विग्रह की सेविका । माताजी पुणे से है , बहुत सारा प्रचार प्रसार भी करती है । आप अगर लिख रहे हो या बैठे हो तो संक्षिप्त में यह भी कह सकते हैं कि जो एकलव्य प्रभुने घोषणा कि वर्ल्ड होली नेम फेस्टिवल , विश्व हरिनाम सप्ताह जो अगले महीने होगा उसकी सूचना , घोषणा आपने सुनी है , और आपका जो इतना उत्साह पूर्वक प्रतिसाद रहा है , आप उसने जो योगदान देने के लिए तैयार हुए हैं , कल जब अनाउंसमेंट हो ही रही थी तब आपका उत्साह का निश्चय और आप कुछ आहुतियां दे रहे थे उसको भी हमने सुना, सारे जो कमेंट थे वह दिन में भी हमने पढ़ लिए ,चॅट सेशन में जो पोस्ट होते हे आपके, काफी बड़ी संख्या में कई भक्तों ने वह मंत्र का रिकॉर्डिंग किया है । आपके पड़ोसी या मित्र या किसी और से, उसको आपने अपलोड भी किया और कई भक्तों ने किया है । आप सब का स्वागत है और कई भक्तों ने अपनी सेवाएं भी अर्पित की हैं , मैं कंम्प्यूटर जानता हूँ , मैं ग्राफिक जानता हूं , मैं यह जानता हूँ, मैं यह करूंगा, मैं वह करूंगा अपनी जो कला कौशल है उसे भी आप ने हरिनाम सप्ताह की सेवा में अर्पित किया या उसका भी उपयोग करने के लिए तैयार हो , वह आपका प्रतिसाद है ऐसा मराठी में कहते हैं , रिस्पांस अंग्रेजी में कहते हैं , और कई भक्तों ने तन से मन से और धन से भी संकल्प लिए । यह नहीं कहाँ कि कितना धन देंगे लेकिन धन देने का संकल्प लिया है । हरीनाम प्रचार और प्रसार में मेरे धन का उपयोग करेंगे । 20 से 30 भक्त होंगे जिन्होंने ऐसा संकल्प भी लिया है , स्वागत है । हम प्रसन्न भी है फिर श्रील प्रभुपाद जी भी प्रसन्न होंगे । अंततोगत्वा
यस्य प्रसादा भगवत प्रसादो
आपके इस सेवा से भगवान भी प्रसन्न होने वाले हैं । आप सब इस जप के समूह के मेंबर हो, क्लब तो नहीं कह सकते लेकिन जप करने वालो की जो यह मंडली है समूह है विश्व हरि नाम उत्सव की सेवा के लिए तैयार हो जाएंगे यह उचित भी है । आप जप का रसास्वादन कर ही रहे हो और इस उत्सव का उद्देश है इस रस को हरिनाम रस को , हरिनाम महिमा को औरों के साथ बांटना है । यही उद्देश्य है उसको फैलाना है आज आप जो आचरण कर रहे हो, फिर आचरण करके जो विचार मन में आते हैं । जो भी आचरण करते हैं मन में कुछ विशेष विचार उत्पन्न होते हैं फिर उन विचारों का प्रचार होना चाहिए । शुभांगी होना चाहिए कि नहीं ? आप जो जप करते हो उस समय आपके जो विचार बनते हैं या जप करते समय आपके विचारों का मंथन भी होता है और उसका जो सार विचार हैं उन विचारों का प्रचार होना चाहिए और वैसे यह धर्म भी है आचार, विचार, और प्रचार । सही उच्चार के साथ प्रचार ,और वैसे हमारी संस्था सही उच्चारण भी सिखाती है हमारे उच्चारण भी ठीक नहीं होते हैं हमारे भजन ,भव्य मंत्रों के उच्चारण या संस्कृत के मंत्र,और बाकी अन्य देशों के भक्तों को और भी कठिन हो जाता है उनको बहुत ज्यादा कठिनाई महसूस होती है ।
वैसे यह सुनते ही रहोगे आज से या कल से 1 महीने की अवधि है यह विश्व हरिनाम उत्सव का प्रचार होगा और फिर नाम का भी प्रचार होगा । विश्व हरि नाम प्रचार सप्ताह के समय हम तैयारी करेंगे योजना करेंगे । वेनी माधव आप तैयार हो ? अपने अपने देशों में,अपने अपने राज्यो में, अपने अपने नगरों में, ग्रामों में आपको इसका प्रचार करना है पता कर लीजिए कि आपके मंदिर के जो अधिकारी है वह भी कुछ योजना बना रहे हैं । इसी तरह हमारी यह मंडली अगर विश्व हरिनाम सप्ताह मनाने वाली मंडली, इस मंडली के सदस्य बनना चाहोगे? कौन-कौन बनना चाहेगा? इस मंडली को विश्व हरिनाम उत्सव को मनाना है । अगर तैयार हो तो एक बार हाथ ऊपर कर लीजिए , आपके दोनों हाथ उपर है , ठीक है ।कोई भी तैयार नहीं है राम भजन ? मुझे लगता है सौ प्रतिशत आप अपने अपने क्षेत्र में अपने अपने खंड में , अपने अपने देशों में , अपने अपने राज्यों में , अपने अपने जिल्हो में , शहर में , तहसील में , नगर में , ग्राम में देखना कि यह विश्व हरिनाम उत्सव मनाया जाएगा । मुझे लगता है बहुत ज्यादा समय हो गया । पंढरीनाथ आप आ गए हो मुंबई ? आ गए क्या ? ठीक हो ना । फिर कुछ भारत में भी रहो । परम करुणा नागपुर में कुछ करो , हरीनाम का प्रचार करो । धन्यवाद ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।