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जप चर्चा पंढरपुर धाम से 6 एप्रिल 2021 787 स्थानो से आज जप हो रहा है । गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल । हरि हरि बोल गौर हरी बोल । मुकुंद माधव गोविंद बोल।। हरि हरि बोल गौर हरि बोल। हरि बोल । इस जप सेशन में आप सभी का स्वागत है , और जपा सेशन में ही नहीं जप चर्चा में भी स्वागत है । वॉल्क द टॉक , ऐसा भी कहते हैं । जैसे कहते हो वैसे चलते रहो , जैसे कहते हो वैसे ही चलो , वॉक द टॉक । हम पहले जप करते हैं फिर चर्चा होती है । ऐसा हो सकता है वॉल्क द टॉक , आज का टॉक भी कल का वॉल्क है । जैसे बोलते हो , जैसे सुनते हो वैसे ही करो । बोले तैसा चाले त्याची वंदावी पाऊले । ऐसा मराठी में है । व्यक्ति जैसा बोलता है वैसा ही चलता है ऐसे व्यक्ति का अनुसरण करो , ऐसे व्यक्ति का अनुयाई बनो , ऐसे व्यक्ति को अपना हीरो , नेता या आदर्श बनाओ । किसको ? बोले तैसा चाले । जैसा बोलता है वैसा ही चलता है , त्याची वंदावी पाऊले उनके चरणों का आश्रय लो , उनके चरणों का अनुगमन करो , अनुगामी बनो । वह व्यक्ति , वह व्यक्तित्व अभी विद्यमान नही है । ध्यानचंद्र गोस्वामी लगभग श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के समकालीन रहे , उनका एक मंत्र , उनका विचार व्यक्त करने वाला ही यह मंत्र है । श्री कृष्णा चैतन्य स्वामी महाराज ने मेरे साथ अभी-अभी व्हाट्सएप मैसेज पर यह मंत्र शेयर किया है । श्री ध्यानचंद्र गोस्वामी महाराज का एक वचन जो हमारे जप के लिए उपयोगी है , और जप के सबंधित हैं , वह जप के लक्षण कह रहे हैं । मैं उसे अभी कहने वाला हूं , पढ़ कर सुनाने वाला हूं । छोटा ही है , यथासंभव आप अगर आप श्रुतिधर हो तो आपको लिखने की आवश्यकता नहीं है , यदी श्रुतीधर हो तो , किंतु कलयुग में तो श्रुति धर विरला ही होते हैं । आप इसको नोंद कर के रखो , लिख लो । यह मंत्र है या कहो कि सूत्र ही है मतलब यह संक्षिप्त है लेकिन बहुत महत्वपूर्ण बात है इसमें काफी तथ्य सत्य ठुस ठुस के भरा हुआ है , यही सत्य है । गौर गोविंद चरण स्मरण पद्धति नामक ध्यानचंद्र गोस्वामी महाराज का एक ग्रंथ है । उसमें से 64 वा यह वचन है । उन्होणे इस प्रकार रचना कि हैं । आप तैयार हो ? परमकरुना तैयार हैं । सुनने के लिए तैयार हो ?या लिखने के लिए तैयार हो ? सुनने के लिए यथासंभव लिखने के लिए तैय्यार रहो । मनो मध्ये स्थितो मंत्र क्या सुना ? मनो मध्ये स्थितो मंत्र ठीक है , आगे बढते है । मंत्र मध्ये स्थितं मन तीसरा पद है , मनो मंत्र समायुक्तम येतधी जप लक्षण । इस संक्षिप्त रूप मे बहुत कुछ , सब कुछ उन्होंने कहा या लिखा है । बहुत अच्छा किसी ने बहुत अच्छे से चैट में भेजा है , आप भी देख सकते हो किसी ने लिखा है उसे देख कर आप भी लिख सकते हो या फिर किसी के साथ बाट सकते हो । मनो मध्ये स्थितो मंत्र मंत्र मध्ये स्थितं मन मनो मंत्र समायुक्तम येतधी जप लक्षण । इसका भाषांतर है , वैसे शब्दार्थ आसान है , शब्दार्थ का ही भाषांतर के बाद भावार्थ ऐसा क्रम होता है। पहले शब्दार्थ देखते है , मनो मध्ये मतलब मन का संधी के नियम नुसार मनो हुआ ।डरना नहीं मनो मतलब कोई और चीज नहीं है मनो मन ही है । मनमध्ये मध्ये तो समझते हो मन में मनामध्ये , स्थित मंत्र इसको समझिए । स्थित मतलब स्थित होना मंत्र मतलब मंत्र । मंत्र को मन में स्थिर करो और अब बारी है मंत्र की मंत्र मध्ये स्थितम मन मंत्र में पहले मन में था मन में मंत्र को स्थित करो अब वह कह रहे है मंत्र मध्ये स्थित मन मंत्र में मन को स्थित करो । मनो मंत्र समायुक्त मतलब मन और मंत्र समायुक्तम उसको समरस करो उसका संगम होने दो , उसका मिलन होने दो , उसका मिश्रण होने दो समायुक्तम , समायुक्तम कहो या मन मंत्र से युक्त और मंत्र मन युक्त । मन में मंत्र , मंत्र में मन । ऐसे स्थिति को प्राप्त करो जहां आप पहचान ही नहीं पाओगे यह मंत्र कौन सा है ? और मन कौन सा है ? येतधी जप लक्षणम और यही तो जप का लक्षण है । लक्षण समझते हो ? लक्षण , जैसा कोरोनावायरस के लक्षण होते हैं , हर चीज का लक्षण होता है या उसके कुछ गुणधर्म होते है । येतधी जप लक्षण हम प्रतिदिन जप करते हैं । जिसको हम जपयोग कहते हैं जपयोग , जप के माध्यम से योग , योग मतलब लिंक या संबंध स्थापित करना इसको ही योग कहते हैं । संबंध किसके साथ स्थापित करना है ? कृष्ण के साथ अपना संबंध स्थापित करना है । अपना मतलब किसका ? आत्मा का संबंध परमात्मा या भगवान के साथ स्थापित करना है । आत्मा तो आत्मा ही है जो जप करता है , और भगवान है हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। यह क्या है नहीं कहना चाहिए , यह कौन है कहना चाहिए । क्या है मतलब कोई निर्जीव चीज है तो हम कहते हैं यह क्या है ? यह क्या है ? लेकिन यहां यह पूछना है कि यह कौन है ? यह कौन है ? क्योंकि यह हरे कृष्ण महामंत्र भगवान है । हरे कृष्ण हरे कृष्ण भगवान है । हरी हरी। यह शब्दार्थ हुआ , यहां अंग्रेजी में अनुवाद भी लिखा है । अब तक आप उसको भाषांतर स्वयं कर सकते हो या आपने मन ही मन में कर भी दिया होगा । मंत्रा फर्मली सिचुएटेड इन माइंड , एक भाग है मंत्र मन मे स्थित करो । माईंड फर्मली सीचीयुटेड इन मंत्रा । और मन मंत्र मे स्थापित है । सच अ सिमलेस काँनेकशन ऑफ माइंड एंड मंत्र इज अ स्टेट ऑफ आयडियल जप । इन दोनो को संस्कृत में कहा है समायुक्तम । मन और मंत्र समायुक्तम , युक्त भी कहते हैं । भक्ति युक्त या भय युक्त या इससे युक्त , उससे युक्त । मन मंत्र युक्त है और मंत्र मन युक्त है ऐसा भी है मतलब समायुक्त हुआ और ऐसा होना ही येतधी जप लक्षण जप का लक्षण यही है । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। स वै मनः कृष्णपदारविन्दयो र्वचांसि वैकुण्ठगुणानुवर्णने करौ हरेर्मन्दिरमार्जनादिषु श्रुतिं चकाराच्युतसत्कथोदये ॥ महाराज अम्बरीष सदैव अपने मन को कृष्ण के चरणकमलों का ध्यान करने में , अपने शब्दों को भगवान् का गुणगान करने में , अपने हाथों को भगवान् का मन्दिर झाड़ने - बुहारने में तथा अपने कानों को कृष्ण द्वारा या कृष्ण के विषय में कहे गये शब्दों को सुनने में लगाते रहे । वे अपनी आँखों को कृष्ण के अर्चाविग्रह , कृष्ण के मन्दिर तथा कृष्ण के स्थानों , यथा मथुरा तथा वृन्दावन , को देखने में लगाते रहे । वे अपनी स्पर्श - इन्द्रिय को भगवद्भक्तों के शरीरों का स्पर्श करने में , अपनी घ्राण - इन्द्रिय को भगवान् पर चढ़ाई गई तुलसी की सुगन्ध को सूंघने में और अपनी जीभ को भगवान् का प्रसाद चखने में लगाते रहे । उन्होंने अपने पैरों को पवित्र स्थानों तथा भगवत् मन्दिरों तक जाने में , अपने सिर को भगवान् के समक्ष झुकाने में और अपनी इच्छाओं को चौबीसों घण्टे भगवान् की सेवा करने में लगाया । निस्सन्देह , महाराज अम्बरीष ने अपनी इन्द्रियतृप्ति के लिए कभी कुछ भी नहीं चाहा । वे अपनी सारी इन्द्रियों को भगवान् से सम्बन्धित भक्ति के कार्यों में लगाते रहे । भगवान् के प्रति आसक्ति बढ़ाने की और समस्त भौतिक इच्छाओं से पूर्णतः मुक्त होने की यही विधि है । वैसे राजा कुरुशेखर इन्होंने यह प्रार्थना की है । आप थक गए क्या? हरि हरि । क्या प्रार्थना कर रहे हैं ? भगवान के चरण कमल मेरे मन में स्थित हो , भगवान के चरण मन में स्थित करना मतलब क्या करना ? या फिर हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे इस महामंत्र को मन में स्थित करना मतलब क्या करना? सोचो तो सही , मन में मंत्रों को कैसे स्थित करोगे ? यह समझने के लिए मन का जो कार्य हैं। अपने मन का जो विचार है मन क्या-क्या करता है यहां श्रील प्रभुपाद सब समय कहते गए लिखा भी है, थिंकिंग फीलिंग वीलिंग ये मन के कार्य है तो मन सोचता है मन क्या करता है सोचना मन का कार्य होता है। तो मंत्र को मन में स्थिर करना मतलब क्या करोगे मंत्र के बारे में सोचो मंत्र के बारे में सोचो और फिर मंत्र के बारे में सोचो मतलब क्या भगवान के बारे में सोचो। हरि हरि....... सो माधुरी ना मम चित्त आकर्षय यह आपको पहले हम ने सिखाया है उस पर प्रेजेंटेशन दिया है यह सब हो चुका है हरनाम हरनाम मतलब क्या कितने नाम है मंत्र में 16 है 32 अक्षर है 16 नाम है। कलिसंतरणोपनिषद् ५-६ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥५ ॥ इति षोडशकं नाम्नां कलिकल्मषनाशनं । नातः परतरोपायः सर्व वेदेषु दृश्यते ॥६ ॥ अनुवाद:- सोलह नाम - हरे कृष्ण , हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण , हरे हरे । हरे राम , हरे राम , राम राम , हरे हरे विशेष रूप से कलि के कल्मषों का नाश करने वाले हैं । कलि के दोषों से मुक्ति पाने के लिए इन सोलह नामों के कीर्तन के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं है । समस्त वैदिक साहित्य में खोजने के पश्चात इस युग के लिए , हरे कृष्ण के कीर्तन से अधिक उत्कृष्ट कोई अन्य धर्म - विधि नहीं मिलेगी । ( श्री ब्रह्मा श्री नारद को उपदेश देते हैं । ) तो हर नाम के उच्चारण के समय कैसा विचार होना चाहिए इसको भी सिखाया है गोपाल गुरु गोस्वामी ने उनकी व्याख्या हम कई बार पढ़े और सुने है। इस प्रकार के विचार हर नाम के साथ यह विचार है यह एक मार्गदर्शक के रुप में उन्होंने दिया है। मम सेवा योग्य कुरु मुझे अपने सेवा के लिए योग्य बनाओ ऐसा विचार हम जब जप कर रहे हैं तो श्रील प्रभुपाद अपनी ओर से सब भाष्य कहते भी हैं और साथ ही यहां लिखा भी है। महामंत्र का जप कर रहे तो हम प्रार्थना कर रहे हैं यह नाम ही भगवान है और हम उन्हें प्रार्थना कर रहे हैं मुझे सेवा में लगाई ये। मैं आपका हूं हे राधे, हे कृष्ण सेवा योग्यं कुरु मतलब मुझे सेवा में लगाई ये यह विचार है मुझे सेवा में लगाई ये यह जो विचार हैं ऐसा अगर हम विचार कर रहे हैं और ऐसे विचारों में अगर हम तल्लीन है तो हमने क्या किया महामंत्र को मन में स्थिर किया महामंत्र को मन में बिठाया और यह अभ्यास है। ऐसे ही कुछ फटाफट नहीं बैठेगा क्योंकि मन चंचल है मन में कई सारे अविचार भी पहले से ही स्थित है। और उसके अनुसार मन अपना काम धंधा करेगा मन दौड़ेगा...... चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् | तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् || ३४ || अनुवाद:- हे कृष्ण! चूँकि मन चंचल (अस्थिर), उच्छृंखल, हठीला तथा अत्यन्त बलवान है, अतः मुझे इसे वश में करना वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन लगता है | कृष्ण ने कहा है भगवत गीता के छटवें अध्याय को आपको पढ़ना चाहिए भगवत गीता का जो छठवां अध्याय है उसका नाम ध्यान योग भी है वैसे उसमें अष्टांग योग की बातें हैं या हठयोग की बातें हैं उसमें मन को समझाया है मन क्या है मन के क्या लक्षण है उसको मानस शास्त्र ही कहो आप भगवान से सीख सकते हो भगवत गीता के छठे अध्याय में मन को नियंत्रित करना है और मन में मंत्रों को मनो मध्ये स्थितो तो उसको स्थित करना है मन को समझना होगा मन का अभ्यास करना होगा उसको समझना होगा तो छठवां अध्याय 1 स्थान है जहां हम मन को समझ सकते हैं ऐसे समय तो हो गया ठीक है तो मन में मंत्र को बिठाना है झट से समझना होगा मंत्र ही भगवान है। राजा कुलशेकर ऐसे कह रहे हैं कि मैं अपने मन में भगवान के चरण कमलों का स्मरण करना चाहता हूं या फिर श्री कृष्णा चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ रथ यात्रा के समय जगन्नाथ से कहा करते थे जगन्नाथ से उनका संबोधन हो रहा है या संवाद हो रहा है और चैतन्य महाप्रभु कर रहे...... अन्येर हृदय -मन , मोर मन वृन्दावन , ' मने ' वने एक करि ' जानि । ताहाँ तोमार पद - द्वय , कराह यदि उदय , तबे तोमार पूर्ण कृपा मानि ॥१३७ ॥ अनुवाद:- श्रीमती राधारानी के भाव में श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा , “ अधिकांश लोगों के लिए मन तथा हृदय एक होते हैं , किन्तु मेरा मन कभी भी वृन्दावन से अलग नहीं होता , अतएव मैं अपने मन और वृन्दावन को एक मानती हूँ । मेरा मन पहले से वृन्दावन है और चूँकि आप वृन्दावन को पसन्द करते हैं , तो क्या आप अपने चरणकमल वहाँ रखेंगे ? इसे मैं आपकी पूर्ण कृपा मानूंगी । मेरा मन ही वृंदावन है ऐसे मन रूपी वृंदावन में बसिए रहीये हे प्रभु ऐसे मन और वृंदावन में कोई भेद नहीं रहा। मन बन गया फिर कृष्णभावनाभावित, मंत्रमुग्ध तो मन में मंत्र को स्थिर करना मतलब ही भगवान को स्थिर करना..... हरि हरि। मन में भगवान के नाम को मंत्र को स्थिर करना या मंत्र में मन को स्थिर करना यही विधि है इस्कॉन की.... चेतोदर्पणमार्जनं भवमहादावाग्नि-निर्वापणं श्रेयः कैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधूजीवनम्। आनन्दाम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम्॥1॥ अर्थ:- श्रीकृष्ण-संकीर्तन की परम विजय हो, जो वर्षों से संचित मल से चित्त का मार्जन करने वाला तथा बारम्बार जन्म-मृत्यु रूप महादावानल को शान्त करने वाला है। यह संकीर्तन-यज्ञ मानवता का परम कल्याणकारी है क्योंकि यह मंगलरूपी चन्द्रिका का वितरण करता है। समस्त अप्राकृत विद्यारूपी वधु का यही जीवन है। यह आनन्द के समुद्र की वृद्धि करने वाला है और यह श्रीकृष्ण-नाम हमारे द्वारा नित्य वांछित पूर्णामृत का हमें आस्वादन कराता है चेतोदर्पणमार्जनं जो कहते हैं चेतना का दर्पण का मार्जन हम करते हैं जो भी धूल जमी हुई है चेतना के दर्पण पर चेतना के आईने पर हमारे उस पर कई सारे धूल कचरा और मन में कचरा ही कचरा विचार है सारी माया है। माया से ही भर गया है मन हरि हरि तो उसके स्थान पर जो कचरा है उसको साफ करते जाना है और यह कृष्ण सूर्य सम वैसे ही होता हैं चेतोदर्पण मार्जनम चेतना का मार्जन और हम जब चेतना कहते हैं अंतकरण कहते हैं उसके अंतर्गत हमारा यह सुष्म शरीर आता है मन,बुद्धि,अहंकार इसे हमारा अंतकरण बना हुआ है। जो ढक लेती है आत्मा को आच्छादित कर लेती है।तब हरे कृष्ण महामंत्र ध्यान से जप से हम मंत्र को भगवान को इस मन के पास लाते हैं मन में जो भी कचरा है यह तो होता ही है ना जब सूर्य उदित होता है तो उसके किरणों से कई सारे गंदे स्थान है जहां मल मूत्रो का विसर्जन हो या क्या-क्या नहीं होता वह सब सूर्य देव या सूर्य की किरणें साफ़ बना देती है स्वच्छ बना देती है यही सूर्य की किरण है इसी प्रकार जब हम पुन्हा पुन्हा हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे इस महामंत्र को ध्यान पूर्वक सुनते हैं। हम ध्यान करने का प्रयास करते हैं मतलब विचार करते हैं और मन का जो कार्य है कार्य ही हम कह रहे थे विचार करना है फिर हम सोचते हैं फिर कुछ भाव उत्पन्न होते हैं वह भय का भी भाव हो सकता है, या काम वासना के भाव उत्पन्न हो सकते हैं कई प्रकार के भाव भावना थिंकिंग फीलिंग वीलिंग फिर कुछ इच्छा हो जाती है। हम अधिक सोचते हैं वह भाव अधिक अधिक उदित होते हैं और भावना भावना परिणत होते हैं इच्छा में आप की तीव्र इच्छा हो जाती है फिर वह इच्छा पूर्ति के लिए आप तैयार हो जाते हो....... ध्यायतो विषयान्पुंसः सङगस्तेषूपजायते | सङगात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते || ६२ || अनुवाद:- इन्द्रियाविषयों का चिन्तन करते हुए मनुष्य की उनमें आसक्ति उत्पन्न हो जाति है और ऐसी आसक्ति से काम उत्पन्न होता है और फिर काम से क्रोध प्रकट होता है | इसको भी भगवान श्रीकृष्ण ने भगवत गीता के दूसरे अध्याय में समझाएं संसार के विषयों का ध्यान करते हैं ध्यान कोन नहीं करता संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है कि जो ध्यान नहीं करता हर कोई ध्यान करता है। लेकिन प्रश्न यह है कि अंतर यह हो सकता है कि यह समूह माया का ध्यान कर सकती है और यह समूह कृष्ण का ध्यान कर सकती है और तीसरा समुदाय हैं नही, यह दो ही है एक तो माया का ध्यान करते रहो मरते रहो या फिर कृष्ण का ध्यान करो.... जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || ९ || अनुवाद:- हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | अथवा भगवान की धाम में चले जाओ जो माया का ध्यान है माया के विषयों का ध्यान करने वालों का क्या हाल होता है.... सङगात्सञ्जायते जिन विषयों का ध्यान करेंगे उसी में आसक्त होंगे। और सङगात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते और फिर कामना इच्छा थिंकिंग फीलिंग वीलिंग कुछ-कुछ बहुत तीव्र इच्छा तो यह होते रहता है या मन में चलते रहता है थिंकिंग फीलिंग वीलिंग तो थिंकिंग के स्तर पर ही यह मन सोचता रहता है सोचता रहता है उसी स्तर पर ही वहां भगवान के नाम का ध्यान जप के समय मतलब भगवान का ही ध्यान और फिर भगवान के ही नाम रूप गुण लीला का ध्यान हम करेंगे तो फिर हमें हमने मंत्र को मन में स्थिर किया मतलब भगवान को ही मन में स्थिर किया मतलब यह मन पहले का मन नहीं रहा मायावी मन नहीं रहा। वह मन बन गया कृष्णाभावनाभावित मन हो गया जिसका मन अभी भगवान में लग रहा है भगवान का ध्यान कर रहा है। हरि हरि..... ठीक है तो आप और अधिक सोचो विचार करो अभी और समझाने के लिए समय नहीं है स्वयं ही अभी और विचार करो विचारों का मंथन हो सकता है बाकी समझो इस मंत्र का मनो मध्ये स्थितो मंत्रो मंत्र मध्ये स्थितम मनः मनो मंत्र समायुक्तम एतदि जप लक्षणम आप भी सीखो और ओरो को भी सिखाओ,ओरो को सिखाते हुए आप भी सीख जाओगे,समझ जाओगे आपको भी साक्षात्कार होंगे औरो को सिखाते सिखाते लेकिन पहले तो चैरिटी बिगिंस फ्रॉम होम पहले आप स्वयम को सिखाओ पहले स्वयम विद्यार्थी बनो फिर बाद में शिक्षक बनो फिर बाद में औरों को सिखाओ ईच वन टीच वन हर व्यक्ति को सीखना चाहिए और सिखाना ही चाहिए टीच वन ऑफ यू बिकम टीचर ऐसा करना पड़ता है गौड़ीय वैष्णव आचार्य भजनानंदी भी होते हैं और गोष्टीआनंदी भी होते हैं भजनानंदी और गोष्टीआनंदी भजन करो भजन करो और अपने भजन का आनंद ओरो के साथ बाटो या कृष्ण की कथा ओरो के साथ बाटो.... मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् | कथयन्तश्र्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च || ९ || अनुवाद :- मेरे शुद्ध भक्तों के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परमसन्तोष तथा आनन्द का अनुभव करते हैं | ठीक है हम यही रुकते हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

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