Hindi

हरे कृष्ण! जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, ०५,०४,२०२१ ७२४ स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! क्या आप सब ठीक हो? ठीक होने के लिए जप करना आवशयक हैं। कृष्ण भावना भावित होने से हम ठीक हो जाते हैं।अन्यथा ठीक ना होने पर भी हम कहते रहते हैं कि हम ठीक हैं। हमें संसार में यह नहीं पता चलता है कि ठीक होना क्या हैं। मैं ठीक हूं ऐसा लोग बिना सोचे समझे ही कहते रहते हैं। अगर कोई अस्पताल में भी भर्ती हो तो भी उससे पूछा जाए कि आप कैसे हो?तो वह भी यही कहेंगे कि हम बढ़िया हैं। इस संसार में होना ही मतलब हम इमरजेंसी वार्ड में भर्ती हो चुके हैं।अगर आप इस ब्रह्मांड में हो तो मतलब आप आईसीयू में हो। आप आदि देविक,आदि भौतिक कष्टों से से पीड़ित हों। बार-बार जन्म मृत्यु जरा व्याधि से ग्रसित हो।इस संसार में यह सब व्यक्ति का पीछा नहीं छोड़ते हैं। तो इसीलिए हम आईसीयू में ही हुए ना। हरि हरि।। क्या किसी को आईसीयू पसंद होता हैं?आपको क्या यह आईसीयू पसंद हैं? इसीलिए यहां से निकलने की कुछ योजना बनाओ। कृष्ण ने भौतिक संसार के विषय में कहा हैं कि मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम्| नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता:।। भगवत गीता( ८.१५) अनुवाद- मुझे प्राप्त करके महापुरुष जो भक्ति योगी हैं, कभी भी दुखों से पूर्ण इस अनित्य जगत में नहीं लौटते।क्योंकि उन्हें परम सिद्धि प्राप्त हो चुकी होती हैं। आलय मतलब निवास स्थान। इसलिए भगवान ने इस भौतिक संसार को दुख आलय कहा हैं। दुखों का निवास स्थान।भगवान इस संसार को दुखालय कह रहे हैं और आप इसे सुखालय कह रहे हो या आप इसे सुखालय बनाना चाहते हो, क्या आप इस संसार के स्वभाव में परिवर्तन ला सकते हो?भगवान नें ही इसे दुखालय बनाया है तो दुखालय ही रहेगा। संसार के स्वभाव में परिवर्तन संभव नहीं हैं। इसीलिए क्या करना आवश्यक हैं? हरेर् नाम हरेर् नाम हरेर् नामैव केवलम् कलौ नास्त्य् एव नास्त्य् एव नास्त्य् एव गतिर् अन्यथा।। केवल हरि नाम ही है यहां बस बाकी सब तो दुखालय है अश्वात है अपनी परिस्थिति को समझो जिसमें हम फंसे हुए हैं। जय-जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद जय अद्वैत चंद्र जय गोर भक्त वृंदा।। आज उस विषय में चर्चा करेंगे जिसके विषय में कल करनी चाहिए थी, कल श्रीवास ठाकुर का आविर्भाव दिवस था किंतु कल मैं हरे कृष्ण उत्सव के ग्रैंड फिनाले में व्यस्त था जो कि कल हो रहा था।कल प्रातः काल में भी हुआ और सायं काल में भी हुआ। आपको उस समय की कुछ यादें सुनाई गई। उस ग्रैंड फिनाले उत्सव के कारण श्रीवास ठाकुर का संस्मरण हम नहीं कर पाए तो उसी को हम आज करेंगे। कभी ना करने से अच्छा हैं कि देरी से ही किया जाए।क्या आप श्रीवास ठाकुर को जानते हैं?श्रीवास ठाकुर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के पार्षद रहे। केवल पार्षद ही नहीं रहे बल्कि एक विशेष पार्षद या परिकर रहें। कृष्णवर्णं त्विषाकृष्णं साङ्गोपाङ्गास्त्रपार्षदम् । यज्ञै: सङ्कीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधस:।। (श्रीमद भागवतम् ११.०५.३२) pañca-tattvātmakaṁ kṛṣṇaṁ bhakta-rūpa-svarūpakam bhaktāvatāraṁ bhaktākhyaṁ namāmi bhakta-śaktikam (चेतनय चरित्रामृत आदि लीला १.१४) यह पंचतत्व मंत्र हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण मंत्र हैं।यह आप सबको ही पता होना चाहिए। यह पंचतत्व का प्रणाम मंत्र हैं। यह भी हमें पता होना चाहिए कि तत्व क्या हैं। हमें भगवान को तत्व से जानना चाहिए। तत्वों में कई प्रकार के तत्व हैं,उसमें पंचतत्व एक तत्व हैं। यह पंचतत्व तो पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के ही विभिन्न रूप हैं। श्रीवास ठाकुर इन पंच तत्वों के सदस्य रहें। जय श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद,श्री अद्वैत गदाधर श्रीवास आदि गौर भक्त वृंद। (पंचतत्व प्रणाम मंत्र) यह पंचतत्व महामंत्र हैं।जब हम हरे कृष्ण महामंत्र करते हैं तब हम हर बार नई माला शुरू करने से पहले यह पंचतत्व महामंत्र मंत्र कहते हैं। दो मंत्र हैं, एक पंचतत्व प्रणाम मंत्र और एक पंचतत्व महामंत्र। पंचतत्व में एक है चैतन्य महाप्रभु, एक नित्यानंद प्रभु, एक अद्वैत आचार्य प्रभु, एक गदाधर पंडित और एक है श्रीवास ठाकुर। भजमन नारायण नारायण नारायण।। नारद मुनि ही श्रीवास ठाकुर हैं।जो हमारी परंपरा के आचार्य भी हैं।सबसे पहले इसी की चर्चा करेंगे कि हमारे परंपरा के आचार्य कौन-कौन हैं। एक हैं ब्रह्मा,एक हैं नारद जी। हम ब्रह्म मधव गोडिय वैष्णव कहलाते हैं। नारद जी ब्रह्मा जी के पुत्र हैं। नारद जी भागवत में से भी एक हैं। नारद जी श्रीवास पंडित के रूप में अवतरित हुए।श्रीवास ठाकुर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के प्राकटय से बहुत पहले ही प्रकट हो चुके थे। लगभग 50 वर्ष पूर्व वह प्रकट हो चुके थे।वह चार भाई थे।श्रीराम, श्रीवास,श्रीनिधि। वह सभी गौर भक्त थे। इनका जन्म पूर्व बंगाल में हुआ था। जो कि अब बांग्लादेश कहलाता हैं। किंतु वह मायापुर में स्थानांतरित हुए और मायापुर में निवास करने लगे।महाप्रभु के प्राकट्य से पहले हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे इस महामंत्र का कीर्तन करने वाले कई भक्त थे। उनके प्राकट्य से पहले इस महामंत्र का जप करने वाले श्री अद्वैत आचार्य थे, श्रील हरिदास ठाकुर थे और श्रीवास ठाकुर और उनके भ्राता भी थे। चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य से बहुत पहले ही चैतन्य महाप्रभु के परिकर कीर्तन किया करते थे। बंगला में घर को या संपत्ति को बाड़ी कहते हैं।अब मैं श्रीवास ठाकुर की बाड़ी के बारे में उल्लेख करता‌ हूं।जब हम योगपीठ से बाहर आते हैं तो, अब आप कहेंगे कि योगपीठ क्या हैं? श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के जन्म स्थान को योगपीठ कहते हैं। जब हम योगपीठ से बाहर आते हैं, तब प्रवेश द्वार से बांयी तरफ जांए( अगर दांयी तरफ जाए तो मायापुर चंद्रोदय मंदिर की तरफ जाएंगे)और जब बांयी और जाएंगे तो लगभग 200 मीटर की दूरी पर श्रीवास ठाकुर की बाड़ी हैं। जोकि श्रीवास आंगन के नाम से प्रसिद्ध हैं।कुछ-कुछ विदेशी भक्त श्रीवास आंगन को श्रीवास अंगम कहते हैं, लेकिन यह कहना गलत हैं। आप अगर किसी को ऐसा कहते सुने तो उसे सुधार सकते हैं। मेरा भी यह लक्ष्य है कि मैं इसे सुधार सकूं।आचार, प्रचार के साथ सही उचार यानी कि उच्चारण भी होना चाहिए।श्रीवास ठाकुर की बाड़ी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की कर्मभूमि बनी। योगपीठ उनकी जन्मभूमि थी, जहां जन्म हुआ और 24 वर्ष तक कुछ लीलाएं वहां होती रही।किंतु श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जो संकीर्तन आंदोलन किया उसके मुख्यालय के रूप में उन्होंने श्रीवास आंगन का चयन किया। ājānu-lambita-bhujau kanakāvadātau saṅkīrtanaika-pitarau kamalāyatākṣau viśvambharau dvija-varau yuga-dharma-pālau vande jagat priya-karau karuṇāvatārau [CB Ādi-khaṇḍa 1.1] संकीर्तन आदोलन के परम पिता श्री चैतन्य महाप्रभु ने नित्यानंद प्रभु के साथ मिलकर संकीर्तन आंदोलन की स्थापना और उसका प्रचार प्रसार श्रीवास ठाकुर की बाड़ी से ही किया। उसी को अपना मुख्यालय बनाया।जैसे श्रील प्रभुपाद ने न्यूयॉर्क में अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ की स्थापना की और न्यूयॉर्क को एक समय पर अपना मुख्यालय बनाया। शुरू में प्रभुपाद वहीं से प्रचार कर रहे थे। श्रील प्रभुपाद लॉस एंजलिस कैलिफ़ोर्निया को अपना पश्चिमी मुख्यालय कहां करते थे। भारत में मुंबई को भी श्रील प्रभुपाद ने अपना मुख्यालय बनाया था। श्रीवास ठाकुर का आंगन चैतन्य महाप्रभु की गतिविधियों का केंद्र बना। हरि हरि।। श्रीवास ठाकुर गृहस्थ थे। श्रीवास ठाकुर ने श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के साथ सहयोग दिया ताकि कीर्तन आंदोलन फैलता रहें। आप सभी भक्तों के लिए श्रीवास ठाकुर का चरित्र आदर्श हैं। जैसा कि मैंने बताया कि नारद मुनि ही श्रीवास ठाकुर बने हैं और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को और उनके अनुयायियों को अपना योगदान दे रहे हैं।अब हम श्रीवास ठाकुर की मुख्य लीलाओं का वर्णन करेंगे।वर्णन तो नहीं कह सकते केवल नाम ही गिना पाएंगे। पूरी लीला तो नहीं कह पाएंगे। यहीं से श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का संकीर्तन आंदोलन प्रारंभ हुआ।चैतन्य महाप्रभु ने गया में दीक्षा ली और दीक्षा लेकर महाप्रभु नवदीप मायापुर लोटे तो लौटने के बाद श्रीवास ठाकुर के आंगन में संकीर्तन होने लगा। सभी पंचतत्व सदस्य वहां उपस्थित रहा करते थें। केवल शुद्ध भक्तों की संगति में रात भर अमृतमय कीर्तन हुआ करता था। पूरी रात ही जागरण हुआ करता था। एक दिन श्रीवास ठाकुर के आंगन में कीर्तन हो रहा था और उसी समय उनके पुत्र की मृत्यु हो गई। जैसे ही पुत्र की मृत्यु हुई श्रीवास ठाकुर की पत्नी मालिनी और कुछ माताएं वहां पहुंच गई और क्रंदन करना प्रारंभ करने लगी किंतु तुरंत ही उन्हें रोकते हुए श्रीवास ठाकुर ने कहा कि चुप हो जाओ चैतन्य महाप्रभु का कीर्तन हो रहा हैं, उसमें व्यवधान उत्पन्न नहीं होना चाहिए हरि हरि।। एक लीला ऐसी भी है कि एक ब्रह्मचारी थे,जो केवल दूध ही लेते थे। दूध ही उनका आहार था। एक दिन वह श्रीवास आंगन में पहुंचे और चैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन में सम्मिलित होने की इच्छा करने लगे। उनकी महत्वाकांक्षा थी कि चैतन्य महाप्रभु का दर्शन कर सके और महाप्रभु के परिकरो के संग में कीर्तन कर सकें। श्रीवास ठाकुर के साथ उनका कुछ समझौता हुआ। श्रीवास ठाकुर ने उनको अनुमति तो दे दी पंरतु क्योंकि वह शुद्ध भक्त नहीं थे ईसलिए चैतन्य महाप्रभु ने उन्हें इजाजत नहीं दी।यह लीला भी श्रीवास आंगन में घटित हुई। नित्यानंद प्रभु श्रीवास ठाकुर के घर में ही रहने लगे थे,क्योंकि चैतन्य महाप्रभु अपने घर में यानी कि योगपीठ में रहते थे और योगपीठ श्रीवास ठाकुर के आंगन से बहुत ही निकट था इसलिए नित्यानंद प्रभु ने श्रीवास ठाकुर के घर को ही अपना निवास स्थान बना लिया। भविष्य में जीव गोस्वामी घर बार,धन दौलत छोड़कर नवद्वीप हरे कृष्ण आंदोलन से जुड़ने के लिए आए। उनका जन्म स्थान रामकेली था। मायापुर आते ही वह सीधे श्रीवास ठाकुर की बाड़ी पर पहुंच गए। वहां नित्यानंद प्रभु के साथ उनका मिलन हुआ इसलिए श्रीवास आंगन, नित्यानंद प्रभु और जीव गोस्वामी का मिलन स्थल बना। इसीलिए उसे सर्वप्रथम मिलन स्थली भी कहते हैं। श्रीवास ठाकुर के घर पर जब भक्त पूरी रात भर कीर्तन किया करते थे तो उस समय कर्मकांडी ब्राह्मण या निंदक श्रीवास ठाकुर की बेजती करना चाहते थे। उन्होंने एक दिन सबको बुलाकर कहा कि देखो यह कैसा वैष्णव है इनके घर के सामने रखा हैं।गोपाल चप्पल ने उनके घर के सामने देवी पूजा का सामान रख दिया था। एक गोपाल चप्पल नामक व्यक्ति थे, जो निंदा करने में बहुत पटायित थे। वह वैष्णव के प्रति अपराध करने में बहुत ही निपुण थे।ऐसी निपुणता बिल्कुल भी अच्छी नहीं हैं। अगर कोई ऐसा निपुण है तो अपनी ऐसी निपुणता को छोड़ दो।कुछ अपराधी वैष्णव अपराधियों में नामी अपराधी होते हैं। यह गोपाल चप्पल ऐसे ही नामी अपराधी थे। हमलोगो को ऐसा नाम ही अपराधी नहीं बनना हैं। हरि हरि।। गोपाल चप्पल ने कुछ शराब और एक मटके में कुछ मीट ला कर श्रीवास ठाकुर के आंगन के सामने रख दिया था। उन्होंने ऐसी सामग्री लाकर उनके घर के सामने रख दी थी जिसका उपयोग दुर्गा पूजा वाले करते हैं। जैसे ही उस रात्रि का कीर्तन समाप्त हुआ था तो गोपाल चप्पल कई सारे लोगों को इकट्ठे करके ले आए और उन्हें कहा कि यह देखो! यह कोई वैष्णव नहीं हैं। यह तो दुर्गा पूजा करने वाला हैं। ऐसा करने की वजह से इस अपराधी का बहुत ही बुरा हाल हुआ। उन्हें कोढ की बीमारी ने पकड़ लिया। कुछ जल्दी या बाद में ऐसा ही होता हैं, जब हम वैष्णव अपराध करते हैं। यहां यह बात ध्यान में रखने वाली हैं कि अपराध का परिणाम कैसा होता हैं। तो यह घटना भी श्रीवास ठाकुर के द्वार के सामने ही घटी हैं। यह लीला चैतन्य भागवत में हैं। चैतन्य चरित्रामृत में चैतन्य महाप्रभु की बाल लीलाओं का विवरण हैं। मायापुर और नवद्वीप लीलाओं का वर्णन कम हैं। अधिकतर मायापुर और नवदीप लीलाओं का वर्णन आप चैतन्य भागवत में पढ़ सकते हो।चैतन्य महाप्रभु नित्यानंद प्रभु की व्यास पूजा मनाना चाहते थे। यह व्यास पूजा चैतन्य महाप्रभु श्रीवास ठाकुर के घर में ही मनाना चाहते थे। नित्यानंद प्रभु आदि गुरु हैं। तो श्रीवास आंगन में ही नित्यानंद महाप्रभु की व्यास पूजा मनाई गई। क्या आपको याद हैं कि मैनें एक बार आपको बताया था कि एक बार एक सप्त पहर महा प्रकाश लीला संपन्न हुई थी। जिस लीला में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने सारे नवद्वीप वासियों को आमंत्रित किया था।सभी को बुलाया और विशेष दर्शन दिया। जिस भगवदता को वह छुपाना चाहते थे उस भगवदता का प्रदर्शन किया। महाप्रभु अपनी भगवदता को छुपाना चाह रहे थे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी। तो 1 दिन उन्होंने स्वयं ही सभी को बुलाकर अपनी भगवदता का प्रदर्शन किया। उस दिन 21 घंटों तक सप्त पहरीय कीर्तन किया।सप्त पहर मतलब 21 घंटे। एक पहर 3 घंटे का होता हैं। उस दिन उन्होंने 21 घंटे तक भगवत साक्षात्कार किया।वैसे तो श्री कृष्ण चैतन्य एक भक्त की भूमिका निभा रहे थे,किंतु उस दिन उन्होंने दिखाया कि वह "कृष्णसतु भगवान स्वयं" हैं।उस दिन उन्होंने हर भक्त को अपने-अपने भाव के अनुसार दर्शन दिए। मुरारी गुप्त को उन्होंने राम जी के रूप में दर्शन दिए। उनके लिए वह श्री राम बने।जब मुरारी गुप्त दर्शन कर रहे थे तब उन्होंने खुद की और देखा तो पाया कि पीछे पूछ थी।वह हनुमान बने थे। निरोधोऽस्यानुशयनमात्मन: सह शक्तिभि:। मुक्तिर्हित्वान्यथारूपं स्वरूपेण व्यवस्थिति:।। (श्रीमद भगवतम २.१०.०६) हर भक्त ने भगवान की शाश्वत लीला में जो रूप हैं,जो भी उनका संबंध हैं, उसी स्वरूप को धारण कर रखा था।सारे भक्तों ने तो उस स्वरूप के अनुसार दर्शन किया। उन सबको भगवत् साक्षात्कार भी हो रहा था और खुद का साक्षात्कार भी हो रहा था। यह बहुत ही तीव्र अनुभव था ।जो कि 21 घंटे तक चलता रहा था। यह लीला इन्हीं श्रीवास ठाकुर के प्रांगण में हुई। हरि हरि ।। श्रीवास ठाकुर के निवास स्थान पर अद्वैत आचार्य ने महाप्रभु से विशेष निवेदन किया था कि मैंने आपको पुकारा था कि आप इस संसार में आकर धर्म स्थापना करोगे या परित्राणाय साधु नाम करोगे,दुष्टों का विनाश करोगे परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।। भगवत गीता 4.8।। लेकिन ऐसा तो आप कुछ नहीं कर रहे हो। आप की लीलाएं तो शुद्ध भक्तों के संग में संपन्न हो रही हैं। तो दुनिया का क्या होगा? जिसके लिए मैंने आपको बुलाया था।श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने उनका यह निवेदन भी स्वीकार कर लिया। उस समय से श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने संकीर्तन सारे संसार के लिए उपलब्ध कराया। सारे नवद्वीप भर में नगर संकीर्तन होने लगा। udilo aruna puraba-bhage, dwija-mani gora amani jage, bhakata-samuha loiya sathe, gela nagara-braje (भक्ति विनोद ठाकुर द्वारा रचित) जो कीर्तन श्रीवास ठाकुर के आंगन तक सीमित था,अद्वैत आचार्य के आग्रह से अब वह सभी के लिए उपलब्ध हो गया। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु सर्वत्र प्रचार करने लगे। जब प्रचार करने लगे तो उसका विरोध भी होने लगा। उस समय नवाब हुसैन शाह की सरकार चल रही थी। वहां के काजी, चांद काजी संकीर्तन को रोक रहे थे और कीर्तन करने वाले भक्तों की पिटाई हो रही थी। एक समय श्रीवास ठाकुर के आंगन में ही चांद काजी ने कीर्तन करने वाले कुछ भक्तों को परेशान किया, उनको पीटा और उनकी मृदंग तोड़ दी। इसीलिए श्रीवास ठाकुर के घर का नाम "खोल भंग डांग" भी पड़ गया। जब हम परिक्रमा के समय श्रीवास ठाकुर के आंगन पर जाते हैं, तो वहां पर लिखा हुआ हैं "खोल भंग डांग", क्योंकि इसी स्थान पर चांद काजी के लोगों ने मृदंग को तोड़ा। जब हम श्रीवास ठाकुर के आंगन का दर्शन करने जाते हैं, तो वहां पर वेदी पर वह टूटा हुआ मृदंग भी रखा हैं। वहां जाकर उस मृदंग का भी दर्शन कर सकते हैं।तब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने असहयोग आंदोलन कि शुरुआत की।असहयोग आंदोलन को प्रारंभ करने वाले श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु थे।सरकार के साथ सहयोग मत करो। सरकार चाहती थी कि कीर्तन बंद हो, कीर्तन नहीं हो।चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि हम इसकी परवाह नहीं करते। हम इसमें योगदान नहीं देंगे। कीर्तन तो होता ही रहेगा। तो फिर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने ऐसे कीर्तन का आयोजन किया कि सारे नवद्वीप के भक्त वहां पहुंच गए। श्रीवास ठाकुर की बाड़ी पर पूरी नवद्वीप की आबादी से कई गुना अधिक भक्त पहुंच गए। चेतनय भागवत में वर्णन हैं, कि देवता भी अपनी वेशभूषा में परिवर्तन करके उस कीर्तन में सम्मिलित हुए थे।चेतनय भागवत में उस कीर्तन की विशेष शोभा का वर्णन हैं।कीर्तन श्रीवास ठाकुर के आंगन से प्रारंभ हुआ और उसका गंतव्य स्थान था, चांद काजी की कोठी। अगर आप परिक्रमा में गए हो तो आपको पता होगा, जहां पर चांद काजी की समाधि हैं। कृष्ण लीला में कृष्ण ने कंस का वध किया था,लेकिन चेतनय लीला में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने चांद काजी का वध तो नहीं किया किंतु उन्हें भक्त बना दिया। चांद काजी भक्त बन गए। जब संकीर्तन काजी के निवास स्थान पर पहुंचा तो उसके प्रभाव से ही चांद काजी प्रभावित हुए और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की शरण में आ गए और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने चांद काजी पर विशेष कृपा की और चांद काजी ने कुछ घोषणाएं भी की। और भी कई घटनाएं घटी‌। उन्होंने घोषणा की कि मेरे पूरे राज्य में कहीं भी आज से संकीर्तन की कोई भी रोकथाम नहीं होगी। आप सब कीर्तन करते रहो। मेरा संपूर्ण योगदान आपके साथ हैं। संकीर्तन करते रहो। मृदंग बजाते रहो।इस तरह चांद काजी वैष्णव बन गए। गोडिय वैष्णव जब नवदीप मंडल परिक्रमा में जाते हैं तो चांद काजी की समाधि का दर्शन अवश्य करते हैं।हम वहां चांद काजी की समाधि की परिक्रमा करते हैं और वहा कि धूल अपने मस्तक पर लगाते हैं। महाप्रभु विष्णु भी थे। ऐसे विष्णु श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने पतितो को पावन बनाया। उसका ज्वलंत उदाहरण चांद काजी हैं। इस प्रकार चैतन्य महाप्रभु और श्रीवास ठाकुर का घनिष्ठ संबंध रहा।हरि हरि।। श्रीवास ठाकुर के आंगन से ही चैतन्य महाप्रभु ने संकीर्तन आंदोलन की शुरुआत की और कई सारे संकीर्तन उन्हीं के आंगन में किए। श्रीवास ठाकुर का कल आविर्भाव दिवस था। श्रीवास ठाकुर आविर्भाव तिथि महोत्सव की जय! निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!!

English

Russian