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जप चर्चा पंधरपुर धाम से, १३ अक्टूबर २०२० आज हमारे साथ 882 स्थानों से भक्त जप कर रहे है। हरीबोल! एकादशी महामहोत्सव की जय... हर दिन एकादशी होनी चाहिए! एकादशी नहीं होती तो इतनी ज्यादा भक्तों की संख्या नहीं होती। हर रोज एकादशी होनी चाहिए! हरि हरि। एकादशी महोत्सव नहीं लेकिन उत्सव तो हर दिन होता ही है! जपउत्सव होता है, श्रवणोत्सव होता है! तो प्रतिदिन हम उत्सव मनाते है उत्सव खलू प्रिय मानवात मनुष्य को निश्चित ही उत्सव पसंद आते है, प्रिय होते है!हरि हरि। तो ऐसे हर रोज उत्सव होता है, जपउत्सव, श्रवणोत्सव! आप समिल्लित हुआ करो जैसे आप आज किए हो। आप में से कुछ भक्त बस एकादशी को ही सम्मिलित करते हो, हर दिन हमारा साथ नहीं देते हो! इसीलिए हम कहते रहते है। कोई भरोसा नहीं है आप में से कुछ जपकर्ता कभी करता है और कभी नहीं करते है या फिर हमारे साथ नहीं करते है! और जप करने का तो यही समय है प्रातःकाल में। इस काल का पूरा लाभ उठाना चाहिए। इस समय प्रातःकाल या ब्रह्ममुहूर्त में किया हुआ या जप का कुछ विशेष फल मिलता है। तो जप करने का समय या मौसम कहो! कुछ विशेष मौसम में कमाई अच्छी होती है, जैसे बारिश का मौसम है तो छाता की बिक्री ज्यादा होती है और गर्मी में पंखे की बिक्री ज्यादा होती है, तो हर चीज का एक मौसम होता है तो ऐसे ही प्रातःकाल जप का सीजन या मौसम है! वैसे तो हर समय जप का सीजन है क्योंकि, कीर्तनीय क्या? इसके आगे क्या? कीर्तनीय सदा हरि! श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कहे है कि, जप तो सदैव करना चाहिए, तो उसी दृष्टि से जप करने का एक समय है, लेकिन प्रातःकाल के समय का कुछ अलग महात्म्य या महिमा है! हर एक शास्त्र में ब्रह्ममुहूर्त का माहात्म्य गाया है। ब्रह्ममुहूर्त की महिमा सुनो,पढ़ो और फिर ब्रह्ममुहूर्त का लाभ भी उठाओ! प्रतिदिन यह ब्रह्ममुहूर्त आता है ना? प्रतिदिन यह ब्रह्म मुहूर्त होता है। तो साधकों को ब्रह्ममुहूर्त! ब्रह्म प्राप्ति के लिए यह शुभ मुहूर्त है। हरि हरि चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा है, गेलोरे राती लोग क्या करते है? सोने में रात बिताते है और दिवस शरीर साजे और दिन में शरीर को सजाते रहते है! तो एंसे व्यस्त रहते है। महाप्रभु ने यह बताया है कि, ग्रहमेदि येसे होते है जो रात में सोते है और रात कों खूब खाते भी है! या सुखदेव गोस्वामी कहे हैं कि, निद्रया ह्रियते नक्तं व्यवायेन च वा वयः। दिवा चार्थेहया राजन् कुटुम्ब - भरणेन वा।। श्रीमद भागवत स्कंद २ अध्याय १ श्लोक ३ अनुवाद:- ऐसे ईर्ष्यालु गृहस्थ ( गृहमेधी ) का जीवन रात्रि में या तो सोने या मैथुन में रत रहने तथा दिन में धन कमाने या परिवार के सदस्यों के भरण - पोषण में बीतता है । मतलब आयु को गवाते है, रात्रि को सोने में और खाने में गवाते है। हरि हरि। आहार, निद्रा, भय और मैथुन आदि क्रियाओं में तल्लीन या मस्त रहते है! और समय बीत रहा है इसका उन्हें पता भी नहीं चलता। तो ग्रहमेदी की रात येसे बीत जाती है। लेकिन आप तो गृहस्थआश्रमी हो! हरि हरि। तो गृहस्थआश्रमी की बात न्यारी है। और न्यारी होनी ही चाहिए! ठीक है, तो प्रतिदिन आपका स्वागत होगा अगर आप हमारे साथ रहोगे! गौर गौर! और फिर अंततोगत्वा भगवतधाम में आपका स्वागत होगा लेकिन जप सेशन में स्वागत नहीं होगा तो फिर गोलोक में भी स्वागत होगा? शुभांगी माताजी तो कह रही है कि, नहीं होगा! तो और कौन कह रहा है? हरि हरि। उत्तिष्ठित जाग्रत वरान्निबोधत ठीक है! यह सब उद्देश की बातें है ज्यादा नहीं कहना चाहते लेकिन आप फिर समझते भी नहीं हो! तो इसीलिए पुनः पुनः समझाना पड़ता है। वही बात पुनः पुनः दोहरानी पड़ती है! हरी हरी। तो सुधर जाओ! फिर हम बताते ही रहे है हम और श्रील भक्तिविनोदा ठाकुर की बात तो एकादशी के दिन थोड़ा आप साधकों को सिंहावलोकन सिंह अवलोकन करना चाहिए! पिछले 2 सप्ताह की आपकी साधना और सेवा का कुछ अवलोकन करो, कुछ निरीक्षण करो, परीक्षण करो। अपने साधना कार्ड में लिखो! अगर आप लिखते हो तो यह अच्छी आदत है। और अगर आप साधना कार्ड भरते हो और आपके जो काउंसिलर है उनको आप प्रस्तुत करते हो तो फिर वह बता सकते है आपको की, बहुत अच्छा, बहुत अच्छा! जैसे आप पहले मंगल आरती को नहीं आते थे लेकिन अब मंगल आरती में आ रहे हो या घर में मंगल आरती कर रहे हो तो यह बहुत अच्छी बात है! पहले ज्यादा मंगल आरती नहीं करते थे लेकिन अब आप कर रहे हो, तो यह अच्छी बात है! लेकिन प्रातः काल में जप नहीं हो रहा है तो ऐसा कभी-कभी साधना कार्ड में लिखा जाता है की प्रातःकाल में कितनी मालाएं हुई और फिर सायंकाल या रात्रि तक आप कितनी माला आप करते रहे, जैसे सुबह थोड़ी हुई या और रात को जप पूरा करने का प्रयास कर रहे है, तो ऐसा अगर पिछले 2 सप्ताह में हुआ है तो यह अच्छी बात नहीं है! इसमें सुधार करना पड़ेगा येसा इस प्रकार समझाने वाले आपके काउंसिलर होने चाहिए! और आपके कोई काउंसलर होने चाहिए! आपका कोई मददगार या सलाहगार होना चाहिए। सलाहगार होना चाहिए, जैसे फैमिली डॉक्टर होते है, वैसे ही काउंसलर हमारे डॉक्टर है। तो एकादशी के दिन हम देख सकते है कि, पिछले 2 सप्ताह में हमारी साधना और सेवा कैसी रही, श्रील प्रभुपाद के ग्रंथों का अध्ययन हमने किया या नहीं किया, भक्तिवृक्ष के कार्यक्रम में भाग लिया या नहीं, रविवार के दिन मंदिर गए या नहीं, वैसे आप सब लोग जा सकते है जो मंदिर के पास रहते है उन्हें तो मंदिर जाना चाहिए, हर रोज जाना चाहिए! अगर हर रोज नहीं जा सकते तो फिर रविवार को तो जाना चाहिए। श्रील प्रभुपाद यह संडे फेस्टिवल शुरू किए थे। और फिर भक्तों का संघ आपको वहां प्राप्त हो सकता है! हमे यह कह सकते की, हमारे घर में भगवान है तो मंदिर जाने की क्या आवश्यकता है? हां! आपके घर में भगवान है लेकिन, आपके घर में भक्त नहीं है, या कम है! लेकिन मंदिर में भक्त है, मंदिर में साधु है, ब्रह्मचारी है, संन्यासी है, ब्राह्मण है तो वे आपको मार्गदर्शन करेंगे। उनका संग प्राप्त होगा! हम घर में पढ़ तो सकते है या पढ़ते है लेकिन अगर उसको सुधारने की बात तो ध्यान में नहीं आएगी कि क्या सुधार करना चाहिए, केसे करो यह ध्यान में नहीं आता किंतु, अगर हम साधु संग में अध्ययन कर रहे है, पठन-पाठन हो रहा है तो वहां पे आप कुछ प्रश्न पूछ सकते है, या पढ़ते पढ़ते हम सो गए तो वह साधु आपको जगाएंगे, है! उठ जाओ! तो मंदिर इसलिए भी है! वहां पर प्रशिक्षण होता है, मंदिर में केवल हम विग्रह के दर्शन के लिए नहीं जाते या माथा टेकने के लिए नहीं जाते वहां जाकर केवल दर्शन ही नहीं करना चाहिए, वहां पर बैठकर कुछ श्रवन या कीर्तन भी करना चाहिए! या फिर अपने काउंसीलर से या मंदिर के ब्रह्मचारी या सन्यासी भक्तों से जो विद्वान है, वैराग्यमान है और भक्त भी है लेकीन हममें इतनी विद्वत्ता नहीं है, इसीलिए हम उनके पास जाते है! हम उतने वैरागी नहीं है और इसीलिए हम उनके पास जाते है ताकि, वैराग्य - विद्या - निज - भक्ति - योग शिक्षार्थमेकः पुरुषः पुराणः । श्री - कृष्ण - चैतन्य - शरीर - धारी कृपाम्बुधिर्मस्तमहं प्रपद्ये ॥ चैतन्य चरितामृत, मध्य लिला, अध्याय ६ श्लोक २५४ अनुवाद:- " मैं उन पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण की शरण ग्रहण करता हूँ , जो हमें वास्तविक ज्ञान , अपनी भक्ति तथा कृष्णभावनामृत के विकास में बाधक वस्तुओं से विरक्ति सिखलाने के लिए श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतरित हुए हैं । वे दिव्य कृपा के सिन्धु होने के कारण अवतरित हुए हैं । मैं उनके चरणकमलों की शरण ग्रहण करता हूँ । वैराग्य - विद्या - निज - भक्ति - योग शिक्षार्थमेकः पुरुषः पुराणः श्री कृष्णचैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य शिक्षा देने के लिए हुआ है। पुरुषः पुराणः अति पुराने, प्राचीन भगवान गौरांग प्रगट हुए। किसलिए? वैराग्य विद्या सिखाने के लिए। वैराग्य एक ज्ञान दोन और भक्ति यह तीन बातें सिखाने के लिए उनका प्राकट्य हुआ है। यह तीन बातें सिखाने के लिए भगवान प्रकट हुए। वैसे भक्ति सिखाने के लिए ही भगवान प्रकट हुए, और उन्होंने भक्ति सिखाई! लेकिन जब हम भक्ति सीखते है उसी के साथ है हम वैराग्य और न्याय सीख बैठते है। वासुदेवे भगवति भक्तियोगः प्रयोजितः । जनयत्याशु वैराग्यं ज्ञानं च यदहैतुकम् ॥ श्रीमद भागवत स्कंद १ अध्याय २ श्लोक ७ अनुवाद:- भगवान् श्रीकृष्ण की भक्ति करने से मनुष्य तुरन्त ही अहैतुक ज्ञान तथा संसार से वैराग्य प्राप्त कर लेता है । यह भागवत के सिद्धांतों का वचन है। जिसमें कहा है कि, जब हम भक्ति करते है भक्ति मतलब वासुदेव की भक्ति! देवी देवता की भक्ति नहीं होती, वह भुक्ती होती है! तथाकथित देवी देवताओं की भक्ति हम करते है लेकिन आप इस्कॉन मंदिर में जाओगे और वह पर दर्शन करके बैठोगे या कथा के श्रवण करोगे, पठन-पाठन होगा तो यह आपको सिखाया जायेगा! भक्ति किसकी करते है? या भक्ति किसे कहते है? आराधनानां सर्वेषां विष्णोराराधनं परम् । तस्मात्परतरं देवि तदीयानां समर्चनम् ॥ चैतन्य चरितामृत, मध्य लीला, अध्याय ११ श्लोक ३१ अनुवाद:- ( शिवजी ने दुर्गा देवी से कहा ) हे देवी , यद्यपि वेदों में देवताओं की पूजा की संस्तुति की गई है , लेकिन भगवान् विष्णु की पूजा सर्वोपरि है । किन्तु भगवान् विष्णु की सेवा से भी बढ़कर है उन वैष्णवों की सेवा। लेकिन यह भी कहे है कि, कामैस्तैस्तैर्ह्रतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः | तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया || भगवतगीता ७.२० अनुवाद:- जीनकी बुद्धि भौतिक इच्छाओं द्वारा मारी गई है, वे देवताओं की शरण में जाते हैं और वे अपने-अपने स्वभाव के अनुसार पूजा विशेष विधि-विधानों का पालन करते हैं | कामैस्तैस्तैर्ह्रतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः भगवान कहे तो है गीता में और आप सभी पढ़ते भी है, गीता का बहुत प्रचार भी होता है लेकिन किसी को कुछ समझ में नहीं आता! जो यथारूप बातें है वह सभी को समझ में नहीं आती! श्रील प्रभुपाद एक बार कहे थे कि, भारतमे में अकेला हूं जो समझा रहा हूं! क्या समझा रहा हूं? लोग अन्य देवताओं की ओर दौड़ते है और क्यों दौड़ते है? वैसे दौड़ना नहीं चाहिए, लेकिन जाते है, यह सही नहीं है! यह में बता रहा हूं! वही बात भगवान बता रहे है। कामैस्तैस्तैर्ह्रतज्ञानाः मतलब तीव्र काम की वासना द्वारा जो ग्रस्त है, काम काम काम! उसका क्या होता है भगवान कह रहे है, र्ह्रतज्ञानाः वह ज्ञान रहित हो जाता है, उसका ज्ञान चुराया जाता है। इतनी कामना, इतनी कामना है! जो कामवासना सही ज्ञान को चुरा लेती है, हर लेती है! और फिर क्या होता है प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः ऐसे कामी शरण में जाते है। किसकी शरण में जाते है? अन्य देवता के शरण में जाते है। भगवान कह रहे है कि, में मूल देव, आदि पुरुष हूं! लेकिन मुझे छोड़कर अन्य देवताओं के पास जाते है! कौन जाते है? कामैस्तैस्तैर्ह्रतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः लेकिन जो सचमुच ज्ञानी होते है, या जिनको ज्ञान प्राप्त हुआ होता है, बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते | वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः || भगवतगीता ७.१९ अनुवाद:- अनेक जन्म-जन्मान्तर के बाद जिसे सचमुच ज्ञान होता है, वह मुझको समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आता है | ऐसा महात्मा अत्यन्त दुर्लभ होता है | बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते भगवान यह बता रहे है कि, जो अज्ञानी है, जो कामी है वे अन्य देवताओं के पास जाते है। लेकिन जो ज्ञानी ज्ञानवान्मां प्रपद्यते है वह मेरी शरण में आते है! उसी को भगवान संक्षिप्त में समझा रहे है, तो ज्ञान क्या है? ज्ञानी कोन है? वासुदेव सर्वमिती जो जानता है कि, वासुदेव ही सर्वे सर्वा है! वासुदेव ही सब कुछ है, तो ऐसा जो जानता है उसको भगवान ज्ञानवान कहे है। और ऐसा ज्ञानवान क्या करता है? मां प्रपद्यते और ऐसे महात्मा कितने होते है? वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ऐसे महात्मा केवल दुर्लभ ही नहीं कहा, अति दुर्लभ होते है! हरि हरि। तो जब महात्मा का उल्लेख हुआ तो और एक वचन स्मरण हो रहा है भगवान कहे है, महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः | भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम् || भगवतगीता ९.१३ अनुवाद:- हे पार्थ! मोहमुक्त महात्माजन दैवी प्रकृति के संरक्षण में रहते हैं | वे पूर्णतः भक्ति में निमग्न रहते हैं क्योंकि वे मुझे आदि तथा अविनाशी भगवान् के रूप में जानते हैं | तो भगवान गीता में महात्मा की परिभाषा या व्याख्या कर रहे है। क्या कह रहे है? भगवान ने कहा, श्री भगवान ऊवाच ऐसा कहा है, लेकिन ज्ञानवान ऊवाच ऐसा भी कहा जा सकता है। भगवान ने कहा लेकिन इस भगवान का एक ऐश्वर्य है ज्ञान! ज्ञान वैराग्येचैव भगवान जो शड़ ऐश्वर्यों से जो पूर्ण है, उनको भगवान कहते है! तो उन शड़ ऐश्वर्यों में से एक ऐश्वर्य है ज्ञान! तो गीता का उपदेश जब भगवान सुना रहे है, तो उनके ज्ञान का प्रदर्शन हो रहा है। ज्ञान एक वैभव है भगवान का जिसका प्रदर्शन कर रहे है। तो भगवान के स्थान पर श्री ज्ञानवान उवाच एंसा कहा जा सकता है। तो कौन कह रहे है? श्री भगवान कह रहे है। कौन कह रहे है? श्री ज्ञानवान कह रहे है। और कितने ज्ञानवान है? ऐश्वर्यस्य समग्रस्य सम्पूर्ण ज्ञान! इसीलिए भगवान को सर्वज्ञ कहा गया है। सर्वज्ञ! जो सब कुछ जानते है। अभिज्ञ मतलब सर्वे सर्वा! तो ऐसे भगवान है। ऐसे ज्ञानवान ने कहा महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः वह व्यक्ति महात्मा है, जो क्या करता है? दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः मेरी दैवी प्रकृति का आश्रय लेता है। और आश्रय लेने वाला महात्मा कहलाता है! तो दैवी प्रकृति है राधारान राधारानी की जय! भगवान की योगमाया शक्ति या भगवान की अल्हादिनी शक्ति! तो राधारानी का आश्रय लेने वाले महात्मा केहलाएंगे! महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः तो हम अन्य देवी यो के शरण में जाते हैं , दुर्गा के शरण में जाते हैं ,भवानी के शरण में जाते हैं , इसी तरह फिर लोग कहते हैं कि हम शाक्त है , शाक्त ! एक उपासना का प्रकार हुआ । एक प्रकार के उपासक शाक्त कहलाते है । शाक्त मतलब जो शक्ति के पुजारी हैं उनको शाक्त कहते हैं , जो विष्णु के पुजारी हैं उनको वैष्णव कहते हैं , जो पंचों उपासना, पांच प्रकार की उपासना या पांच अलग-अलग रूप को आराध्य बनाते हैं , उनकी आराधना करते हैं उनको पंच उपासक कहते है । उनमें से एक होते हैं शक्ति के उपासक , दुर्गा , काली इत्यादि ,इत्यादि जो शक्ति है और वह शाक्त कहलाते हैं । और वैसेही कई बार वैष्णव भी शाक्त होते हैं । वैष्णव को भी शाक्त कहा जा सकता है क्योंकि वैष्णव शक्ति के पुजारी होते हैं , लेकिन कौन से शक्ति के पुजारी होते हैं ? अंतरंगा शक्ति के पुजारी होते हैं । राधा रानी भी शक्तीहै । वैसे वह शक्ति व्यक्ति बन जाती है । शक्ति बन जाती है व्यक्ति ! शक्ति या मूर्तिमान बन जाती है , वह अल्हादिन शक्ति , भगवान की शक्ति बन जाती है राधा रानी और इस शक्ति की आराधना गौडिय वैष्णव करते हैं । संसार भगवान की आराधना करता हैं , वैसे तो नहीं करते लेकिन करते ही है । हिंदू समाज में भगवान की आराधना करते है , विष्णु की आराधना करते हैं किंतु अन्य वैष्णव या विष्णु के या वैष्णव के अन्य संप्रदाय भी है उस संप्रदाय में भी विष्णु की आराधना होती है । ओम नमो भगवते वासुदेवाय । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः । तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि ॥ (श्रीमद भागवत 1.1.1) अनुवाद : हे प्रभु , हे वसुदेव - पुत्र श्रीकृष्ण , हे सर्वव्यापी भगवान् , मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ । मैं भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ , क्योंकि वे परम सत्य हैं और व्यक्त ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति , पालन तथा संहार के समस्त कारणों के आदि कारण हैं । वे प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से सारे जगत से अवगत रहते हैं और वे परम स्वतंत्र हैं , क्योंकि उनसे परे अन्य कोई कारण है ही नहीं । उन्होंने ही सर्वप्रथम आदि जीव ब्रह्माजी के हृदय में वैदिक ज्ञान प्रदान किया । उन्हीं के कारण बड़े - बड़े मुनि तथा देवता उसी तरह मोह में पड़ जाते हैं , जिस प्रकार अग्नि में जल या जल में स्थल देखकर कोई माया के द्वारा मोहग्रस्त हो जाता है । उन्हीं के कारण ये सारे भौतिक ब्रह्माण्ड , जो प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रिया के कारण अस्थायी रूप से प्रकट होते हैं , वास्तविक लगते हैं जबकि ये अवास्तविक होते हैं । अतः मैं उन भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ , जो भौतिक जगत के भ्रामक रूपों से सर्वथा मुक्त अपने दिव्य धाम में निरन्तर वास करते हैं । मैं उनका ध्यान करता हूँ , क्योंकि वे ही परम सत्य हैं । ओम नमो नारायणाय । विष्णु की आराधना , पूजा होती है किंतु गौडिय वैष्णव का वैशिष्ठ है कि वह वैसे राधा रानी के पुजारी बनते हैं । राधा रानी की आराधना करते हैं , राधा रानी की आराधना करके राधा रानी को प्रसन्न करके फिर कृष्ण को प्रसन्न न करना चाहते हैं । शक्ति से शक्तिमान की ओर जाते हैं । उस दृष्टि से खासकर के गौडीय वैष्णव शाक्त है , शक्ति के पुजारी हैं । दोनो भी शाक्त है तो फिर भेद क्या है ? एक बहीरंगा शक्ति के पुजारी हैं , देवी देवता के पुजारी या देवी के पुजारी है । खूब चलती है देवी की पुजा हमारे देश भर में , हमारे हिंदू धर्म में या हिंदू समाज में और गौडिय वैष्णव भगवान की अंतरंगा शक्ति की आराधना करते हैं । सृष्टिस्थितिप्रलयसाधनशक्तिरेका छायेव यस्य भुवनानि विभर्ति दुर्गा । इच्छानुरूपमपि यस्य च चेष्टते सा गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।। (ब्रम्हसहिता 5.44) अनुवाद : भौतिक जगत् की सृष्टि , स्थिति एवं प्रलय की साधन कारिणी , चित् - शक्ति की छाया - स्वरूपा माया शक्ति , जो कि सभी के द्वारा दुर्गा नाम से पूजित होती हैं , जिनकी इच्छा के अनुसार वे चेष्टाएँ करती हैं , उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूँ । ऐसा ब्रह्मा जी ने ब्रह्म संहिता में कहां है । यह दुर्गा कैसी है ? छायेव भगवान की छाया है , वह मूल रूप नहीं है , मूल तो राधा है । कृष्णा की या राधा की छाया माया होती है । राधा की छाया दुर्गा है , सृष्टिस्थितिप्रलयसाधनशक्तिरेका छायेव यस्य भुवनानि विभर्ति दुर्गा । इच्छानुरूपमपि यस्य च चेष्टते सा गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि । और वैसे दुर्गा के भी सारा कार्यकलाप चेष्टा भगवान के इच्छा के अनुसार ही दुर्गा भी कार्य करती है । दुर्गा मतलब ? ग मतलब जाना , दूर मतलब कठीन , जाना कठिन कर देती है । यह ब्रह्माड या संसार को दुर्ग भी कहा है । दुर्ग मतलब किला , किले के अंदर जो लोग हैं उन्हें किले के बाहर जाना कठिन होता है । जो कारागार मे है , जो दुर्ग है फिर ज्याना कठिन है , इस प्रकार यह दुर्गा कठिन करती है । हरि हरि । अधिक नहीं कहेंगे । हरि हरि । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। जब हम हरे कृष्ण कहते है तब हम राधा रानी की आराधना करते हैं । राधा रानी के पुजारी हम बनते हैं । हम शाक्त बन जाते हैं । जय राधे । जय राधे । वृंदावन में भी वैसे कृष्ण को कौन पूछता है ? सभी राधे-राधे कहते हैं । राधे राधे , राधे राधे वैसे मैं यह भी कह रहा था कि , मंदिर में जाना चाहिए , केवल दर्शन के लिए नहीं सत्संग के लिए जाना चाहीये ताकि यह सब सिद्धांत है , वेदांत है उसको भली-भांति समझ सकते हैं या जैसा है वैसा समझ सकते हैं और उसको समझने के लिए प्रभुपाद के ग्रंथ भी है , लेकिन ग्रंथों को भी समझने के लिए हमें भक्तों की मदद लेनी चाहिए । वह फिर हमारे काउंसलर भी हो सकते हैं या मंदिर के अन्य अधिकारी भी हो सकते हैं , जो प्रचारक है वह भी हो सकते हैं , उनकी मदद से हम शास्त्र को समझ सकते हैं , फिर हम धीरे-धीरे विद्वान बन जाएंगे और विद्वान बनेंगे साथ में वैराग्य वान भी बनेंगे और भक्ति करेंगे । भक्ति के भी 2 पुत्र है , भक्ति देवी के 2 अपत्य है , एक है ज्ञान और दूसरे है वैराग्य । भक्ति करने से आप भी ज्ञानवान बनोगे , आप भी वैराग्य वान बनोगे । निद्रा में जो आसक्ती हैं या फिर इसमें आसक्ती है उसमें आसक्ती है वह घटेगी , मिटेगी । थोड़ा जल्दी उठा करो प्रातकाल में , रामभजन प्रभुजी कहा है ? (हसते हुए) , और कुछ कार्यों में व्यस्त है । हरि हरि । ठीक है , हम यही रुकते हैं । आप सभी ने विश्व हरि नाम उत्सव में हिस्सा लिया कि नहीं ? विश्व हरि नाम उत्सव मनाया कि नहीं ? किसने किसने मनाया ? अपना हात उठाओ । अधिकतर भक्तो ने मनाया है । शंभू मनाया ? हरिदास ? आप सबके योगदान के लिये हम आपके आभारी है । श्रीलं प्रभूपाद , गुरु और गैरांग की ओर से आपके पुन्हा पुन्हा आभार । आप सिर्फ साक्षी ही नही बने , आपने अपना सहयोग भी दिया । बोहोत कुछ किया है आप लोगो ने व्हीडिओ बनाये , कई जोवो को आपने भाग्यवान बनाया , उन्हे महामंत्र देके और जप मॅरेथॉन , जपथॉन मे अधिक जप किया । 24 घंटे अखंड कीर्तन हो रहे थे उसमें भी आप ने कीर्तन किया ऐसे कई प्रकार से इसी तरह आपने दान धर्म किया , इस हरिनाम उत्सव की सेवा में धन लगाया । प्राणेर अर्पित वाच: भगवान ने कहा है , ऐसा आचरण , ऐसा व्यवहार सराहनीय है या श्रेयस्कर है , श्रेय: आचरण सदा वर्ल्ड होली नेम फेस्टिवल का बैनर लगाया है । आपने अपने प्राणों के साथ हर सास अर्पित की है । धन लगाया इस सेवा में , किसी ने अपनी बुद्धि , दिमाग लगाया या फिर वाचा , आप बोलते रहे प्रचार करते रहे । यार देख , तारे कह ' कृष्ण ' - उपदेश । आमार आज्ञाय गुरु हजा तार ' एइ देश ॥ (चैतन्य चरितामृत मध्य लिला 7.128) अनुवाद : हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये भगवान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे । इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो । अच्छी युक्ति थी उसे आपने ली होगी या फिर किसी और की युक्ति आपने उधार ली होगी और फिर उसे आप ने कहा , वह भी सेवा हि है । पुन्हा पुन्हा आपके आभार और अभिनंदन करते हैं । आपमे से कई सारे विजेता भी बने होगे या फिर आपका मंदिर श्रेष्ट 10 मे आया , या फिर 64 माला मे आपका मंदिर आ गया या फिर आप भी आ गए , आप में से कई सारे विजेता भी बन गए । सभी विजयी भक्तों का भी अभिनंदन और वैसे इसमे किसी का पराजय होता भी नहीं है , सभी का विजय है । परम विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तन जिसने भी , जितना भी हिस्सा लिया , भाग लिया वह सब वीजयी है । जय पराजय तो इस संसार मे होता है परंतु आध्यात्मिक जगत में जय ही होती है । आप सब की जय हो । ठीक है । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।

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Наставления после совместной джапа сессии 13 октября 2020 г. ХРАМ - ОБИТЕЛЬ ДАРШАНА И ФИЛОСОФСКОГО ПОНИМАНИЯ Харе Кришна! С нами воспевают преданные из 907 мест. Сегодня большое число. Экадаши Махотсава ки Джай! Некоторые из вас посещают беседу о джапе только в экадаши, в другие дни вы не присоединяетесь к нам. Это неправильный путь. Мы должны регулярно воспевать, не только на фестивалях. утсава халу прия манват Джапа - это также джапа утсава и шраван утсава. Мы должны ежедневно присоединяться к беседе о джапе, а не только в экадаши. Но большинство участников - айа рама гая рама (выражение в политике Индии — переступать порог, менять взгляды). Они воспевают с нами только в экадаши. Для хорошего садхаки каждый день - это экадаши. Шриман Махапрабху говорит: киртания сада хари. Лучшее время для воспевания - Брахма Мухурта (утро). Есть разные времена года, например, в сезон дождей мы пользуемся зонтиком. Летом пользуемся веером. Итак, какое время года для джапы? Чайтанья Махапрабху описал это. Всегда киртания сада хари! Во всех шастрах упоминается, что следует воспевать в Брахма Мухурту, потому что в этой Мухурте садхака может достичь Парам Брахмы (Шри Кришны). мукунда мадхава йадава хари, боло-ре боло-ре вадана бхори’ мичхе нида-ваше гело-ре рати, диваса шарира-садже Перевод: «Мукунда, Мадхава, Ядава, Хари! О люди, пойте же, пойте эти святые имена! Пусть ваши уста всегда украшает имя Господа, а иначе ваша жизнь пройдет впустую: ночью - в иллюзорных сновидениях, а днем — в заботах о своем теле». (Стих 3, Нама-киртана предрассветный бхаджан, Гитавали, арунодая-киртана, песня 1 Шрила Бхактивинод Тхакур) Итак, мы должны стать грихастхами, а не гриха-медхами. нидрайа̄ хрийате нактам̇ вйава̄йена ча ва̄ вайах̣ дива̄ ча̄ртхехайа̄ ра̄джан кут̣умба-бхаран̣ена ва̄ Перевод Шрилы Прабхупады: По ночам такие завистливые домохозяева спят или занимаются сексом, а днем зарабатывают деньги или заботятся о членах своей семьи. В этих занятиях проходит их жизнь. (Ш.Б. 2.1.3) Гриха-медхи всегда заняты едой, сном и совокуплением. Грихастхи не такие, они заняты жизнью в сознании Кришны. Поэтому каждый день мы приглашаем всех вас на эту беседу о джапе. Если вы будете ежедневно посещать эту беседу о джапе, вас также будут приветствовать в Бхагават Дхаме. Но если вы не регулярно говорите о джапе, вы не сможете перейти к Бхагават Дхаме. уттиш̣т̣ха джа̄грата пра̄пйа вара̄н нибодхат… Перевод: Очнись и постарайся понять благо, которые ты получил, родившись в теле человека. Путь духовной реализации очень труден и подобен лезвию бритвы. Таково мнение знатоков трансцендентной литературы. («Катха-упанишад» 1.3.14) Все это ведические сиддханты (истины). Но вы этого не понимаете. Так что я должен повторять это снова и снова, чтобы вы могли запомнить. Шрила Бхактивинода Тхакур сказал, что экадаши - это день самоанализа. В этот день мы должны сделать анализ нашего прогресса в преданной жизни. Мы должны наблюдать за нашим прогрессом за последние 15 дней и совершать манам этого прогресса. Мы также должны иметь хорошую садхану, заполненяя нашу карту садханы, мы должны передавать ее нашему наставнику. Для этого у нас сначала должен быть наставник, к которому мы можем обратиться за помощью и советом. Мы должны регулярно посещать храмы. Мы можем сказать или подумать, что наш дом - это еще и храм. Это верно, но у вас не будет преданных в вашем доме или у вас может быть меньше преданных по сравнению с храмом. В храме есть преданные, садху, и они помогают всем вам продвигаться в вашей религиозной жизни. Мы можем принимать общение с грантхом (книгой), но это может не помочь нам так сильно, как может помочь преданный. Например, когда мы читаем, мы можем заснуть, и страница книги не разбудит нас, но преданный сделает это. Мы всегда должны быть в постоянном общении с ними. Мы принимаем их общение, поскольку мы не настолько продвинуты в преданной жизни. Мы должны сделать Садху Сангу регулярной привычкой, чтобы продвигаться в нашей религиозной жизни. Когда мы посещаем храмы ИСККОН, мы узнаем, как выполнять бхакти и для кого должна совершаться бхакти. ваира̄гйа-видйа̄-ниджа-бхакти-йога- ш́икша̄ртхам эках̣ пурушах̣ пура̄н̣ах̣ ш́рӣ-кр̣шн̣а-чаитанйа-ш́арӣра-дха̄рӣ кр̣па̄мбудхир йас там ахам̇ прападйе Перевод Шрилы Прабхупады: «Я предаюсь Верховному Господу Шри Кришне, который нисшел на землю в образе Господа Чайтаньи Махапрабху, чтобы дать нам истинное знание и научить нас преданности Ему и отрешенности от всего, что мешает сознанию Кришны. Он явился потому, что Он океан трансцендентной милости. Я предаюсь Ему у Его лотосных стоп». (Ч.Ч. Мадхья-лила 6.254) Гауранга Махапрабху учит нас вайрагья видье и бхакти. Когда мы совершаем бхакти, автоматически проявляются вайрагья и гьяна. Это два сына Бхакти Деви. Бхакти означает Васудев Бхакти, а не полубоги. ва̄судеве бхагавати бхакти-йогах̣ прайоджитах̣ джанайатй а̄ш́у ваира̄гйам̇ джн̃а̄нам̇ ча йад ахаитукам Перевод Шрилы Прабхупады: Благодаря преданному служению Личности Бога, Шри Кришне, человек тотчас же обретает беспричинное знание и избавляется от привязанности к миру. (Ш.Б. 1.2.7) Мы должны посетить храм ИСККОН, где мы сможем получить знания о Сиддханте. а̄ра̄дхана̄на̄м̇ сарвеша̄м̇ вишн̣ор а̄ра̄дханам̇ парам тасма̄т паратарам̇ деви тадӣйа̄на̄м̇ самарчанам Перевод Шрилы Прабхупады: (Господь Шива сказал богине Дурге:) „Дорогая Деви, хотя Веды советуют поклоняться полубогам, высшим видом поклонения является поклонение Господу Вишну. Однако еще выше — служение вайшнавам, тем, кого связывают прочные узы с Господом Вишну“. (Ч.Ч. Мадхья 11.31) ка̄маис таис таир хр̣та-джн̃а̄на̄х̣ прападйанте ’нйа-девата̄х̣ там̇ там̇ нийамам а̄стха̄йа пракр̣тйа̄ нийата̄х̣ свайа̄ Перевод Шрилы Прабхупады: Те же, кого материальные желания лишили разума, принимают покровительство полубогов и поклоняются им, следуя предписаниям Вед, соответствующим природе этих людей. (Б.Г. 7.20) Люди в целом могут знать о преданности в общем, но они не знают деталей. Шрила Прабхупада однажды сказал: «Я единственный во всей Индии, кто знает эту науку, и я даже обучаю их в одиночку». Мы не должны обращаться к разным полубогам, чтобы исполнить наши желания. Как сказано в священных писаниях: ка̄маис таис таир хр̣та-джн̃а̄на̄х̣ прападйанте ’нйа-девата̄х̣... Перевод Шрилы Прабхупады: Те же, кого материальные желания лишили разума, принимают покровительство полубогов... (Б.Г. 7.20) Мы идем к разным полубогам, чтобы исполнить наши желания. Это также называется вожделением (кама). Кришна говорит в Бхагавад Гите: «Я Ади-Дев, но из-за ограниченного знания люди принимают прибежище у полубогов». бахӯна̄м̇ джанмана̄м анте джн̃а̄нава̄н ма̄м̇ прападйате ва̄судевах̣ сарвам ити са маха̄тма̄ су-дурлабхах̣ Перевод Шрилы Прабхупады: Тот, кто, пройдя через множество рождений и смертей, обрел совершенное знание, вручает себя Мне, ибо он понял, что Я причина всех причин и все сущее. Такая великая душа встречается очень редко. (Б.Г. 7.19) Господь говорит в Бхагавад Гите, что тот, кто идет к полубогам, чтобы исполнить свои похотливые желания, лишается разума. Когда они теряют свой разум, они становятся жертвами материальной природы и уходят от Господа. Господь объясняет разницу между ними. «Разумный предается Мне, а глупцы предаются полубогам». Правильный разум - это когда мы знаем, что Васудева - это все. Шрила Прабхупада сказал это - Васудева - это все. маха̄тма̄нас ту ма̄м̇ па̄ртха даивӣм̇ пракр̣тим а̄ш́рита̄х̣ бхаджантй ананйа-манасо джн̃а̄тва̄ бхӯта̄дим авйайам Перевод Шрилы Прабхупады: О сын Притхи, те же, кто свободны от заблуждений, великие души, находятся под покровительством божественной природы. Они служат Мне с любовью и преданностью, ибо знают, что Я Верховная Личность Бога, изначальная и неистощимая. (Б.Г. 9.13) ...ва̄судевах̣ сарвам ити… Перевод Шрилы Прабхупады: ...Я причина всех причин и все сущее... (Б.Г. 7.19) Это настоящий Разум. Чтобы познать Господа, предаться Ему и поклоняться Ему, выполняйте для Него Бхакти. Когда Господь рассказывал Бхагавад-Гиту, одно из Его 6 достояний было показано - знание. Он продемонстрировал, что знание - это изобилие. Вместо Шри Бхагавана увача мы можем также сказать Шри Гьянаван увача. Господа также можно назвать Гьянаваном. Он Саврешвара. Он все знает. Абхигья в «Шримад-Бхагаватам». ом̇ намо бхагавате ва̄судева̄йа итараташ́ ча̄ртхешв абхиджн̃ах̣ свара̄т̣ тене брахма хр̣да̄ йа а̄ди-кавайе мухйанти йат сӯрайах̣ теджо-ва̄ри-мр̣да̄м̇ йатха̄ винимайо йатра три-сарго ‘мр̣ша̄ дха̄мна̄ свена сада̄ нираста- кухакам̇ сатйам̇ парам̇ дхӣмахи Перевод Шрилы Прабхупады: О мой Господь Шри Кришна, сын Васудевы, о всепроникающая Личность Бога, я почтительно склоняюсь перед Тобой. Я медитирую на Господа Шри Кришну, ибо Он является Абсолютной Истиной и изначальной причиной всех причин созидания, сохранения и разрушения проявленных вселенных. Прямо и косвенно Он сознает все проявления и независим, ибо не существует иной причины, кроме Него. Именно Он вначале вложил ведическое знание в сердце Брахмаджи, первого живого существа. Даже великие мудрецы и полубоги введены Им в заблуждение, подобно тому, как человека сбивает с толку обманчивый образ воды в огне или суши на воде. Лишь благодаря Ему материальные вселенные, временно проявленные взаимодействием трех гун природы, кажутся истинными, хотя в действительности они нереальны. Поэтому я медитирую на Него, Господа Шри Кришну, вечно пребывающего в трансцендентной обители, которая всегда свободна от иллюзорных образов материального мира. Я медитирую на Него, ибо Он — Абсолютная Истина. (Ш.Б. 1.1.1) Тот, кто предается Господу, известен как Махатма. Господь говорит: «Теперь, кто принимает прибежище у Меня, известен как Махатма». Господь говорит: «Тот, кто принимает прибежище у моей Дайви Пракрити, известен как Махатма». И кто эта Деви Пракрити? Это Шримати Радхарани! Человек, который идет к Господу, известен как Махатма и Знающий. Люди идут к полубогам, таким как Дурга, и поклоняются Шакти, и поэтому они известны как Шакты. Поклонники Вишну известны как Вайшнавы. Есть два типа Упасаны: один - поклонник Вишну, а второй - поклонник Панчо Упасаны. Один из них - поклонник Дурги Деви. Поклонники Дурги / Кали известны как Шакты. Даже Вайшнавы называются Шактами. Потому что они также служат Шакти Господа. Какой Шакти они служат? Антаранга Шакти. В определенном смысле они также известны как Шакты. Поскольку они поклоняются Радхарани, которая является Антаранга Шакти Господа. Есть и другие вайшнава-сампрадаи, которые поклоняются только Вишну. Гаудии обладают этим особым качеством - сначала они служат Радхарани, а затем они служат Кришне. Сначала они служат Шакти - Радхарани, а через Шакти они служат Шактиману - Кришне. Нас также называют Шактами. Так как мы тоже поклоняемся. Шакти Господа. сришти-стхити-пралайа-садхана-шактир эка чхайева йасйа бхуванани бибхарти дурга иччханурупам апи йасйа ча чештате са говиндам ади-пурушам там ахам бхаджами Перевод: Его внешней энергии - Майе, которая есть тень духовной энергии ЧИТ, все люди поклоняются как Дурге - творящей, поддерживающей и разрушающей энергии этого материального мира. Я поклоняюсь изначальному Господу - Говинде, в соответствии с чьей волей, Дурга совершает свои деяния. (Брахма Самхита 5.44) Разница в том, что мы поклоняемся Антаранга Шакти Господа, тогда как другие поклоняются Бахиранга Шакти Господа - Дурге Деви. Господь Брахма говорит, что Бахиранга Шакти Господа - это тень внутренней энергии Господа. Дурга - тень Радхарани. Дурга усложняет задачу. Ее зовут Дурга, что означает «Она мешает Дживе пересечь это материальное существование». Кому и почему мы объясним позже. Когда мы говорим Харе Кришна, мы становимся поклонниками Радхарани. Мы становимся Шактами. Мы становимся поклонниками Радхарани. Во Врадже все говорят «Джай Радхе». Кто произносит имя Кришны? Все говорят Джай Радхе. Я хочу сказать, что мы должны ходить в храм не только для того, чтобы получить даршан, но и для того, чтобы общаться с другими преданными, чтобы изучить науку сознания Кришны. Постепенно мы изучим детали этой науки и станем Вайрагьяванами. У Бхакти-деви два сына: Гьяна и Вайрагья. Когда мы будем выполнять бхакти, мы будем Гьянаваном и Вайрагьяваном. Будьте серьезны и постарайтесь вставать рано утром. Мы остановимся здесь. Все участвовали во Всемирной неделе святого имени. Благодарим вас за участие. Шрила Прабхупада и Гаура Гауранга также ценят вашу работу. Вы не только стали Шакти, но и участвовали от всего сердца и души. йа̄ре декха, та̄ре каха ‘кр̣шн̣а’-упадеш́а а̄ма̄ра а̄джн̃а̄йа гуру хан̃а̄ та̄ра’ эи деш́а Перевод Шрилы Прабхупады: «Проси всех исполнять наставления Господа Шри Кришны, изложенные в „Бхагавад-гите“ и „Шримад-Бхагаватам“. Таким образом стань духовным учителем и постарайся спасти всех в этих краях». (Ч.Ч. Мадхья 7.128) парам виджайате шри-кришна-санкиртанам Перевод Шрилы Прабхупады: Да славится всепобеждающее пение святого имени Господа Кришны... (Ч.Ч. Антья лила 20.12 Шри Шикшаштакам стих 1) Те, кто участвовал во Всемирном фестивале святого имени, всегда будут победителями. Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе (Перевод Кришна Намадхан дас, редакция бхактин Галина Варламова)