Hindi

12 अक्टूम्बर 2020 728 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं । हरि बोल की वजह के मंगल होती है या संध्या आरती आपने मंगल आरती की यह आरती तो संध्या आरती है गौडिय वैष्णव की वैष्णव की प्रसिद्ध आरती संध्या आरती तो यह यह भी एक आरती का भजन है संध्या आरती भजन संध्या आरती कीर्तन जैसे श्रील प्रभुपाद अलग अलग अलग-अलग को भजनों को समझाते व्याख्या करते हैं या कई सारे भजनों को प्रभुपाद समझाते है तो सोचा कि मंगल आरती अभी प्रातः कालीन संध्या आरती स्मरण करते हैं संध्या के समय इस आरती को गाया जाता है किब जयो जयो गोराचांदेर आरतीके शोभा यह आरती कुछ बांग्ला भाषा में है की ब जयो जयो देखो तो देखो इधर ध्यान आकृष्ट किया जा रहा है देखो देखो क्या देखो जयो जयो गोरा चांदेर आरती की शोभा तो देखो कहा हो रही है जाह्नवी तट बने जानवी के तट वन जग मन लोभा जानवी के तट पर मायापुर में है जानवी गंगा मैया की उसके तट पर तो ही है नवद्वीप मायापुर वहां पर आरती हो रही है उसकी शोभा तो देखो और आप भी सम्मिलित हो जाओ किब दक्षिणे निताई चांद वामे गदा धर तो हमारा शिल भक्ति विनोद ठाकुर इस आरती की रचना किए हैं वह हमारा ध्यान इस आरती की तरफ आकृष्ट करना चाहते हैं देखो देखो पहले तो उन्होंने गौरांग महाप्रभु की स्थापना की गौरांग महाप्रभु मध्य में है और दक्षिणी निताई चांद मतलब दहिने हाथ मे महाप्रभु के बगल में नित्यानंद और बाई बगल में गदाधर प्रभु है निकटे अद्वेता श्रीनिवास छात्र धर नित्यानंद महाप्रभु के निकट में है अद्वैत और गदाधर जी के निकट है श्रीवास और श्रीवास चक्र को धारण किया है गौरांग महाप्रभु के ऊपर छत्र धारण किए हैं और अन्य के ऊपर भी यह पंचतत्व है भगवान 5 रूपों में प्रकट हुए हैं श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत गदाधर श्रीवास आदि श्री गौरव भक्त वृंद लेकीन उन पंच तत्व में एक तत्व जीव तत्व भी है है श्रीवास है वह नारद भी है छोटे-मोटे भगवान है या फिर शाक्तवेश अवतार है तो उसमें से यह जो श्रीवास पंडित है उन्होंने छत्र धारण किए हैं सेवा कर रहे हैं जीव तत्व विष्णु तत्वों की सेवा कर रहे हैं बस्सी या छे गोरा चांद रत्ना सिहासने है गोरा चांद विराजमान है रत्न सिंहासन पर आरती करे ना ब्रह्मा आदिदेव गने आरती हो रही तो आरती कौन उतार रहे हैं आरती कर रहे हैं ब्रह्मा और उस आरती में सम्मिलित कौन है और कौन-कौन हैं आदी देवगन सभी देवता वहां उपस्थित हैं गौरांग महाप्रभु की आरती हो रही है यह देवता तो ईश्वर कहलाते हैं उन्हीं में कुछ अधिकार दिए हैं भगवान ने गौरांग महाप्रभु ने श्रीकृष्ण ने विष्णु ने उनको अलग-अलग अधिकार दिए हैं वह प्रमुख है उन्हें ईश्वर कहा तो जाता है लेकिन श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु तो परमेश्वर है तो ये इश्वर जानते हैं उनका स्तर कौन सा है और परमेश्वर तो सर्वोपरि है सूत उवाच यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै र्वेदैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगाः । ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥१ ॥ सूत गोस्वामी ने कहा : ब्रह्मा , वरुण , इन्द्र , रुद्र तथा मरुत्गण दिव्य स्तुतियों का उच्चारण करके तथा वेदों को उनके अंगों , पद - क्रमों तथा उपनिषदों समेत बाँच कर जिनकी स्तुति करते हैं , सामवेद के गायक जिनका सदैव गायन करते हैं , सिद्ध योगी अपने को समाधि में स्थिर करके और अपने को उनके भीतर लीन करके जिनका दर्शन अपने मन में करते हैं तथा जिनका पार किसी देवता या असुर द्वारा कभी भी नहीं पाया जा सकता - ऐसे भगवान् को मैं सादर नमस्कार करता हूँ । देवता जानते हैं कि वह कौन है और देवता भी जानते हैं कि भगवान परमेश्वर कौन है वह ईश्वर ओके ईश्वर हैं तो यह कहा गया है आरती करे ना ब्रह्मा त ब्रह्मा आदि देव गणे आरती उतार रहे हैं और आदि देवता गण उपस्थित हैं नरहरी आदि करि चामर ढुलाय और कई सारे भक्त भी वहां उपस्थित है गौर पार्षद नरहरी और इत्यादि और भी चमर ढूला रहे हैं रहे हैं जब आरती होती है तो चामर भी ढूलाया जाता है तो नरहरी चामर ढू ला रहे हैं । संजय मुकुंद वासु घोष आधी गाय आरती हो रही है तो आरती के साथ कीर्तन जरूर होना चाहिए आरती करना तो अर्चना हुई लेकिन अर्चना अधूरी रह जाती है अगर साथ में कीर्तन नहीं होता तो इसलिए कहा है हरेर नाम एवं केवलम का अर्थ यह है कि केवल कीर्तन ही हो और अन्य यह नवविधा भक्ती की चर्चा हम कल कर रहते हैं तो भक्ति के विधि विधान के साथ में कीर्तन हो यह अर्थ है यह समज है हरेर नामैव केवलंम तो अर्चना हो रही है साथ में कीर्तन भी होना चाहिए तो जहां हम संध्या आरती गौर आरती जो मायापुर में हो रही हैं गौरांग महाप्रभु की आरती आरती भी उतारी जा रही है अर्चना भी हो रही है लेकिन साथ में कई सारे भक्त कीर्तन कर रहे हैं वासुदेव घोष आंधी उस समय के महाप्रभु के साथ में उनके पर्रिकर पार्षद कीर्तन के लिए प्रसिद्ध थे वह कीर्तन सम्राट थे तो वो कीर्तनकार कीर्तन कर रहे थे कीब शंख बाजे घंटा बाजे बाजे करताल तो शंख ध्वनि हो रही है वैसे आंरति के प्रारंभ और मध्य में और अंत में भी होती हैं शंख ध्वनि घोषणा करती है या आमंत्रित हो करती है आरती हो रही है आ जाओ भागो दौड़ो और शंख ध्वनि भगवान की भगवता की भी घोषणा करती है महान भगवान या गुणवान भगवान या धनवान भगवान भगवान है ऐसी घोषणा यहां शंख करती है और इसी के साथ शंख ध्वनि के साथ जो भी अभद्र है अमंगल है उसका विनाश होता है या अमंगलको अभद्र को दूर भेजा जाता है जब शंख की गर्जना होती है यहां से दूर हटो अब तुमको यहां स्थान नहीं है या कलीर को कुकुर कहते हैं कलीर के चेले कुत्ते हैं वह कुत्ते वहां से दौड़ते हैं जाते हैं भाग जाते हैं जब शंख की ध्वनि होती है तो शंख ध्वनि हो रही है और कई सारे वाद्य भी बज रहे हैं महाप्रभु कीर्तन नृत्य गीता वादीत्र माद्यंन मनसो रसेन । वाद्य बज रहे हैं बाजे कर ताल करताल भी बज रही है और मृदंग भी बज रहाऔर मृदंग कि मधुर ध्वनि भी हो रही है और साथ में करताल भी है यह समझना चाहिए यह सब गौड़िया वैष्णव के वाद्य हैं। मुख्य क्या है मृदंग और करताल हरि हरि बहु कोटि चंद्र जी नि वदन उज्वल । शुरुआत में कहा ही था किब जयो जयो गौरा चंदेर आरती को शोभा तो देखो और फिर उसी के जिन की आरती हो रही है उनकी शोभा तो देखो कि गौरा चांद इतने शोभायमान है बहु कोटी चंद्र जी नि वदन उज्वल उनका मुख मंडल देखो उनके सर्वांग का दर्शन करो गौर भगवान के सर्वांग का बहु कोटि चंद्र जीनि बहु कोटि और उनका नक नाखून और सर्व अंग प्रत्यंग प्रकाश ज्योति मिश्रित हो रही है मानो करोड़ों चंद्र की ज्योति उत्पन्न हो रही है या फिर कोटी सूर्य समप्रभ फिर तो और क्या कहना चंद्रसेन सूर्य का प्रकाश अधिक होता है यहां पर तो चंद्र का ही उल्लेख किया है गलदेशे वनमाला करें जलमल और गौरांग महाप्रभु के गले में वनमाला के भी कई प्रकार तो वनमाला कुछ पुष्प भी है कुछ पत्ते भी है उसे से ही बनाई हुई माला उनमें तुलसी की पत्ती भी हो सकते मंजूरी भी हो सकती है पत्ते हैं फूल है वनमाली भगवान कहते है बनमाली वन के पुष्पों से पत्रों से जो माला बनती है उसे वनमाली कहते हैं वह वनमाली है या पदमा माली उसमें यदि कमल के पुष्प है तो पदमा पदमा माली कहते हैं या फिर वनमाली और कई प्रकार के माला है जैसे वैजयंती और एक माला का प्रकार है बालों कम मुझे कब दर्शन होगा उस नंदनंदन का कैसा नंद नंदन श्लोक। है यहां जिसने माला पहनी है ऐसी माला पहनी है नीफ मतलब कदम के पुष्पों की माला पहना हुआ कदम की माला पहने हुए बालक का मुझे कब दर्शन होगा और फिर वह हंसने वाला मुख भगवान का मुख्य मंडल और उसमें भगवान का स्मित हास्य हो उसका मुझे कब दर्शन होगा और जब भगवान हंसते हैं तो उनके होठ कुछ एक दूसरों से हट जाते हैं तो तब खिलते हैं तो फिर भगवान के दातों का भी दर्शन होता है दंत बनती जो है भगवान की मुख्य में उनका दर्शन होता है जब भगवान हंसते हैं हल्का सा हंसते हैं तब और वह दंत पंक्ति तो शुभ्र है सफेद है किंतु फिर भगवान के आधरो की जो लालिमा है उन भगवान के दातों में प्रतिबिंबित होती है और वह दर्शन बहु कोटि चंद्र जी नि वदन उज्वल वह मुख मंडल बड़ा ही तेजस्वी है उसकी प्रभा है और फिर भगवान जब हंसते हैं तब और भी सुंदर सौंदर्य में वर्धन होता है और वह दर्शन तब आरती हो रही है तो उस आरती में शिव शुक शुक नारद प्रेमे गदागद पहले कहा ही था ब्रह्मा जी आरती कर रहे हैं और देवता भी उपस्थिति है ऐसा उल्लेख किया जा रहा है शिवजी भी वहां पहुंचे हैं जो महादेव है शिवजी वहां पहुंचे हैं सुखदेव गोस्वामी भी वहां पहुंचे हैं सुखदेव गोस्वामी महाराज की जय और नारद मुनि भी वहां पहुंचे हैं नारद मुनि बिना भी बजा रहे हैं और शिव जी भी अपना डमरु बजा रहे हैं एक हाथ में डमरू है दूसरे हाथ में त्रिशूल हैं और वह नृत्य कर रहे हैं । नटराज इस कीर्तन में, तो ऐसी है शोभा आरती और कीर्तन की इसमें ब्रह्मा और शिव जी भी सम्मिलित हुए वह आरती भी कर रहे हैं और कीर्तन भी साथ में ज्योति भी ब्रह्मा बोले चतुर्मुखी कृष्ण कृष्ण हरे हरे पंचमुखी राम राम हरे हरे महादेव बोल रहे अपने पंचमुखो से शिव जी का एक रूप पंचमुखी यहां पंचानंद कहते हैं आनंद दशानन रावण को दशानन कहते थे आनंद 5 मुख वाले शिवजी पंचानंद पंचानन ताला भी है गोदरुप द्वीप में नवद्वीप मंडल परिक्रमा हो रही है तो गोद्रुप द्वीप में पंचानंद तालाब स्थान है वहां के शिवजी गोद्रुप द्वीप में वहां पर भक्ति कौन सी होती है कीर्तन भक्ति होती है गोद्रुप के कीर्तनकार कौन है पंचानंद अपने पांचों मुखों से वे कीर्तन करते हैं शिवजी कीर्तन करते हैं उनके पांच मुख है तो दुकान कितने होंगे 10 कान है 10 कानों से कीर्तन सुनते हैं फिर आंखें भी कितनी है 10 भी हो सकते 15 भी हो सकती हैं त्रिनेत्र है कभी-कभी वह तीसरी आंख को खोल देते हैं एक समय वह क्रोधित हुए काम पर या कामदेव पर गंधर्व के ऊपर शिवजी क्रोधित हुए जब वह अपने ध्यान धारणा कर रहे थे शिव जी तपस्या कर रहे थे तब कंदर्प या कामदेव कुछ परीक्षा ले रहे थे देखते हैं कितना वैराग्य है शिवजी में कितने विरक्त महात्मा है यह तब कामदेव आकर नाच कर रहे थे शिव जी के मन में कुछ काम वासना जगाने का ऐस प्रयास चल रहा था। कामदेव का तब शिवजी ने देखा कि यह करतूत यह प्रयास किसका भी है कामदेव का था तो शिवजी बहुत क्रोधित हुई और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खुली और वहां से निकली हुई अग्नि से कामदेव को भस्मसाथ किया,, कामदेव को तीन अंगों को भस्म साथ किया तो उनका अंग नहीं रहा तो फिर कामदेव उस समय से कहलाने लगे उनका एक दूसरा नाम हुआ अनंग जिन का अंग नहीं वे तो थे पर उनका अंग नहीं अंग हीन बने या कामदेव को अंग हीन बनाया शिव जीने अपने काम के क्रोधाग्नि में क्रोधाग्नि में उनके अंगों को अग्नि संस्कार हुआ,, लेकिन वह रह गए BG 2.23 “नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः | न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः || २३ ||” अनुवाद यह आत्मा न तो कभी किसी शस्त्र द्वारा खण्ड-खण्ड किया जा सकता है, न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न जल द्वारा भिगोया या वायु द्वारा सुखाया जा सकता है | तो कामदेव तो बच गए रहेगा लेकिन उनका अंग नहीं रहा तो शिव जी का यह तीसरी आंख भी है .। तो अपने सारे शिव जी अपने सारे मुखों से भगवान का कीर्तन करते हैं , अपने सांरे कानों से भगवान का कीर्तन कीर्ति का श्रवण करते हैं । अपने सभी आंखों से भगवान का दर्शन करते हैं ,, और फिर इसलिए वे वैष्णव परम वैष्णव निम्नगानां यथा गङ्गा देवानामच्युतो यथा । वैष्णवानां यथा शम्भुः पुराणानामिदं तथा ॥१६ ॥ जिस तह गंगा समुद्र की ओर बहने वाली समस्त नदियों में सबसे बड़ी है , भगवान् अच्युत देवों में सर्वोच्च हैं और भगवान् शम्भु ( शिव ) वैष्णवों में सबसे बड़े हैं , उसी तरह श्रीमद्भागवत समस्त पुराणों में सर्वोपरि है ।सभी श्रेष्ठ नदियों में गंगा श्रेष्ठ है और सभी वैष्णव में महादेव शंभू श्रेष्ठ है ऐसी ख्याति है वैष्णव समाज में शिवजी की ऐसी ख्याति है वहां तो आरती चल रही है और यहां पर समापन हो ही रहा है भक्ति विनोद देखें गोरार सम्पद तो भक्ति विनोद ठाकुर बोल रहे हैं कि भक्ति विनोद देखें गौरांग महाप्रभु की संपदा गौरांग महाप्रभु का वैभव गौरांग महाप्रभु का क्षण एश्वर्या पूर्ण था तो श्रीला भक्तिविनोदा ठाकुर देख रहे हैं, उसका अनुभव कर रहे हैं तो आपने भी देखा ना गौरांग महाप्रभु की आरती होती है उस आरती में देवता भी सम्मिलित होते हैं देवता भी आरती उतारते हैं गौरांग गौरांग गौरांग का गौरांग ऐसा उच्चारण करते हैं इसीलिए इसी के साथ की आरती का कीर्तन जब हम सुनते हैं, गाते हैं तो पता चलता है कि गौरांग कौन है और देवता कौन है,, कौन-कौन है और इस प्रकार है भक्ति पूर्वक प्रेम पूर्वक आरती गाई जाती है और सुनी जाती है। आरती उतारी जाती है हरि हरि,, गौर प्रेमानंदे आरती कहो और संसार भर में जो आरती होती है सुख संपत्ति वाली आरती या फिर देवी देवताओं के सर को नहीं जानते तो वह अपराध करते हैं। देवी देवता की आरती भी उतारते रहते हैं । अलग अलग गुणों का प्रभाव है आरती करने वाले तमोगुण भी हो सकते हैं, राजो गुनी भी हो सकते हैं सत्व गुनी भी हो सकते हैं और गुनातीत भी हो सकते हैं। और जो गुनातीत हैं जो गुणों के अतीत पूछना चाहते हैं ,वह आरती उतारते हैं गौरांग महाप्रभु की वह आरती उतारते हैं विष्णु की या विष्णु तत्वों की नहीं तो फिर गीता में कहे हैं। BG 7.23 “अन्तवत्तुफलंतेषांतद्भवत्यल्पमेधसाम् | देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्तायान्तिमामपि || २३ ||” अनुवाद अल्पबुद्धि वाले व्यक्ति देवताओं की पूजा करते हैं और उन्हें प्राप्त होने वाले फल सीमित तथा क्षणिक होते हैं | देवताओं की पूजा करने वाले देवलोक को जाते हैं, किन्तु मेरे भक्त अन्ततः मेरे परमधाम को प्राप्त होते हैं | देव देवताओं की आराधना भी करने वाले हैं इस संसार में और रहेंगे देवान देवड़ी अवंती पितृ मयंती पितृ बता और पितरों के पुजारी इस संसार में कुछ कम नहीं है और भूतानि यंती भूतिया और भूत पिशाच उसके पुजारी भी संसार में है कई तंत्रों को लेकर बैठे हुए भूत पिशाच लेकिन फिर भगवान ने कहा है तो ठीक है देवी देवताओं की पूजा कर रहे हो तो तुम देवलोक में जाओ पितरों की पूजा करोगे तो पितरों के जाओगे और भूतों की पूजा करोगे तो भूतेजा जहां भी भूत है उन से पछड़ जाओगे या हरि हरि। जानती मध्य जी मध्य जी मन मना मत भक्तों लेकिन जो मेरी आराधना करेंगे वह मेरे धाम लौटेंगे मुझे प्राप्त करेंगे इस संसार में भी प्रकट होता हूं उसे प्राप्त हो करेंगे तो यह जो तत्व तथा यह सभी मां सभी मार्ग हमें एक ही लक्ष्य को प्राप्त करेंगे यह तो मूर्खता है और अभी भगवान तो कह रहे हैं ना जाओ देवी देवताओं की पूजा करो या भूत पिशाच पितरों की यह सब पर एक ही स्थान पर पहुंचा देंगे ऐसा भगवान नहीं कहेंगे ऐसी बात है ही नहीं तो जिस यह गौर आरती है जिसमें जिससे हमें शिक्षा मिलती है तो आरती करनी है तो किस की आरती करने आराधना सर्वेशम विष्णु आराधते परम् ठीक है कल एकादशी है कुछ सूचनाएं भी है।

English

Russian