Hindi

सबसे महत्वपूर्ण कार्य
हम इस कांफ्रेंस के माध्यम से रूप तथा सनातन गोस्वामी के चरण चिन्हों का अनुगमन करते हैं। कृष्ण अत्यंत दयालु हैं। न्यू जर्सी से बहुत बड़ी मात्रा में भक्त इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होते हैं। यदि मैं अंग्रेज़ी में बोलूँ तो क्या यह ठीक रहेगा ? इसे साहबों का मठ कहते हैं। वृन्दावन में हमारे मन्दिर को अंग्रेज़ का मंदिर कहते हैं उसी प्रकार बँगाल में हमारे विदेशी भक्तों को साहब कहते हुए हमारे मन्दिरों को साहबों का मठ कहते हैं।
मेरे मन में एक विचार चल रहा था कि जब हम कहीं भी हरे कृष्ण महामन्त्र का जप करते हैं तो यह एक प्रकार से पुनर्मिलन के समान हैं। हम सभी कृष्ण के परिवार के भिन्न - भिन्न सदस्य हैं। हम पुनः आपस में मिलते हैं तथा कृष्ण के साथ जुड़ते हैं, तथा हम एक दूसरे से भी आपस में जुड़ते हैं। इसलिए यह पुनर्मिलन के समान हैं। अभी हम सभी अलग अलग शरीरों में हैं परन्तु यदि हम निरन्तर जप करते रहें तथा शुद्ध भक्त के स्तर पर पहुँच जाएँ तो हम सदैव कृष्ण के संग में रहेंगे। यह हरिनाम हमें एकजुट करता हैं। अब हम इस जगत में भौतिक शरीर में हैं , इसके पश्चात हमें आध्यात्मिक शरीर मिलेगा और हम पुनः एकजुट हो जाएंगे।
हम इस जगत में नहीं हैं - हम कलकत्ता , या किसी शहर में भी नहीं हैं। मायापुर इस जगत में नहीं हैं। अतः हम मायापुर पहुँच गए हैं , परन्तु अब चुनौती यह हैं कि हम किस प्रकार यहाँ निवास कर सकते हैं , किस प्रकार हम सदैव उच्च चेतना में स्थित रह सकते हैं। यदि हम निरन्तर जप करके अपनी चेतना को उच्च स्तर पर स्थापित कर लेते हैं तो , मायापुर से पुनः अपने शहरों को लौटने के पश्चात भी आप कभी मायापुर या वृन्दावन से अलग नहीं होते हैं अर्थात आप चेतना में सदैव धामवास करते हैं। हम वृन्दावन और मायापुर के अंग हैं। यह चेतना ही हैं जो हमारा किसी स्थान से सम्बन्ध स्थापित करवाती हैं। प्रभुपाद इसके विषय में चर्चा करते थे , जो सही भी हैं। यद्यपि वे न्यूयॉर्क में होते परन्तु वे कहते कि मैं न्यूयॉर्क में नहीं हूँ। वे सदैव वृन्दावन के राधा दामोदर का स्मरण करते तथा स्वयं को उनके चरणों में ही निवास करते हुए अनुभव करते।
अतः सदैव जप करते रहिए। क्या आपके जप में सुधर हो रहा हैं ? आप कोशिश करते रहिए , इसमें कई कठिनाइयाँ हैं फिर भी आप निरन्तर प्रयास करते रहिए। प्रत्येक दिन एक नई समस्या उत्पन्न हो सकती हैं। क्या आज जप करते समय आपको किसी प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ा ? कोई चुनौती नहीं थी ! क्या आपको कोई भी जप करने से रोक नहीं रहा था ? क्या आपके विपक्ष के दल में कोई नहीं था ? माया कई रूपों में रहती हैं। क्या किसी को कोई चुनौती का आभास हुआ ? नींद भी इसमें एक चुनौती हैं। आप में से कई नींद तथा अन्य प्रकार के विचारों द्वारा पराजित हो जाते हैं। हमारा मन कई प्रकार की योजनाएं बनाता हैं। क्या ऐसा आज भी हुआ था ? आज एकादशी हैं अतः आप सभी का उपवास होगा। यह भी एक चुनौती हैं। एकादशी का अर्थ हैं उपवास - अन्न को ग्रहण नहीं करना। पिछली एकादशी मैं उपवास के विषय में चर्चा कर रहा था।
महाराष्ट्र में एकादशी के दिन कहते हैं : " आज उपवास आहे। " एकादशी उपवास या शिवरात्री उपवास। अतः आज भगवान के समीप रहने का दिन हैं। उप अर्थात " पास " तथा वास अर्थात " रहना " अतः आज का दिन विशेष रूप से भगवान के समीप रहने का दिन हैं। उपवास के दिन हम अन्न को ग्रहण नहीं करते हैं परन्तु यदि आप माया से भी स्वयं को दूर रखें तो वही वास्तविक उपवास हैं। आज हमें माया से भी उपवास करना चाहिए। सामान्यतः हम माया द्वारा दिए जा रहे कई प्रकार के भोज का आनन्द लेते हैं। हमारा मन तथा इन्द्रियाँ इस भोज का भोग करती हैं या इसके लिए योजना बनाती हैं। अतः माया से उपवास करने का प्रयास कीजिए। हम उपवास के दिन कम खाते हैं, अथवा बिलकुल नहीं खाते अथवा निर्जल रहते हैं। हम केवल हवा को ही ग्रहण करते हैं , इससे हवा भी आध्यात्मिक हो जाती हैं।
जब हम, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। जप करते हैं तो इससे वायु भी शुद्ध होती हैं। यह कृष्णमयी बन जाती हैं। साँस को अन्दर ग्रहण करके हम जप करते समय इस हवा को कृष्णमयी बनाते हैं जिसका हम आभास कर सकते हैं। कुछ भक्त इस प्रकार का अभ्यास करते हैं। यह प्राणायाम का एक अंग हैं। हम हवा को अन्दर लेते हैं तत्पश्चात जप करते हैं और फिर उसे छोड़ देते हैं। वे आज के दिन अधिक मात्रा में जप , श्रवण , तथा अध्ययन करते हैं। यदि हम अधिक मात्रा में जप करेंगे , श्रवण करेंगे , तथा अधिक भक्तों का संग करेंगे , तो इस प्रकार हम कृष्ण के समीप रह सकते हैं। यही उपवास का वास्तविक अर्थ हैं। यदि हम किसी भी प्रकार से कृष्ण के समीप रह सके तो यही वास्तविक उपवास हैं। केवल अन्न ग्रहण न करना उपवास का अर्थ नहीं हैं। क्या हम वास्तव में कृष्ण के संग में रहे , क्या हम कृष्ण की चेतना में स्थित रहे , हमें इसके लिए आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।
भक्तिविनोद ठाकुर ने एकदशी के दिन के लिए संस्तुति की हैं कि हमें हमारी साधना की पिछली एकादशी और इस एकादशी से तुलना करनी चाहिए। मैं किस प्रकार इसे कर पाया ? क्या मेरी साधना कृष्ण भावनाभावित थी ? मेरी साधना किस प्रकार की थी ? क्या मैंने कुछ छोड़ दिया था ? मेरा श्रवण तथा अध्ययन किस प्रकार का था ? धर्मराज प्रभु अपनी साधना का आलेख (रिकॉर्ड) रखते हैं तथा प्रत्येक महीने के अंत में वे यह मुझे भेजते हैं जिससे मैं उसे देख सकूँ और उस पर टिपण्णी कर सकूँ। भक्तिविनोद ठाकुर ने भी इसकी संस्तुति की हैं। इस एकादशी ये मेरे दृढ तथा दुर्बल भाग थे अतः अगली एकादशी तक मुझे इनको और अधिक दृढ़ बनाना हैं। अतः इस प्रकार का अभ्यास हमें हमारी साधना को और अधिक दृढ बनाने में सहायता करता हैं।
जप अत्यंत गंभीर विषय , तथा सर्वोत्तम कार्य हैं। हम भौतिक जगत में सफलता के लिए योजनायें बनाते हैं , इसमें अपना सर लगाते हैं , इसके लिए निरन्तर कार्य करते हैं, तो क्यों नहीं हम उन्हें कृष्णभावनामृत के लिए भी उपयोग में ले। योजना बनाना तथा उसके लिए तैयारी करना अत्यंत आवश्यक हैं। मैं इसके विषय में कई बार इस कांफ्रेंस के माध्यम से कह चूका हूँ। आज सुबह के लिए आपकी तैयारी कल रात, कल दिनभर या परसों के दिन से प्रारम्भ हो जाती हैं। आपने आज जप किया और कल जप करने के बीच में जो समय हैं वही हमारी तैयारी का समय हैं। इस जगत में ऐसा कहा जाता हैं कि इसमें ८०% तैयारी हैं और केवल २०% कार्यान्वन है। आप अपना ८०% कार्य और ऊर्जा तैयारी में लगाते हैं और बचा हुआ २०% उसके क्रियान्वन में। यदि आपने योजना ढंग से बनाई हैं तो इसका निष्पादन तथा क्रियान्वन अत्यंत आसानी से होता हैं। अतः अगले दिन सुबह आपको जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं वे कम हो जाएंगी। उपचार से बचाव बेहतर होता हैं। हो सकता हैं कि आप पिछली रात सही से नहीं सो पाए थे , आप उस समय अपना कोई कार्य कर रहे थे , इस प्रकार पिछली रात्री को हमारे द्वारा किए गए कार्य हमारे आज के जप को अवश्य ही प्रभावित करते हैं। मैंने कितने वैष्णवों के प्रति अपराध किया ? परन्तु हमें इसके विपरीत सोचना चाहिए कि मैंने आज कितने वैष्णवों की सेवा की ? मैं लगभग ३ वैष्णवों की छोटे या बड़े रूप में सेवा करूँगा। यही तैयारी हैं। इस प्रकार अन्य भी कई प्रकार की तैयारियाँ हैं। इस प्रकार हम अगले दिन का जप और अधिक ध्यानपूर्वक और एकाग्र होकर कर सकते हैं। इस प्रकार हम जप के प्रति गंभीर होते हैं।
मैं कई बार यह संस्मरण बताता हूँ जब मैं मुम्बई में एक नया भक्त था। मुंबई शहर से एक सज्जन आये और वे मंदिर अध्यक्ष से मिलना चाहते थे। मैंने मंदिर अध्यक्ष को जप करते हुए पाया। जब मैंने मंदिर अध्यक्ष को उनका सन्देश दिया तो उन्होंने प्रत्युत्तर में कहा , " उन्हें कह दो मैं अभी व्यस्त हूँ। " मेरे मन में विचार आया, " आप तो व्यस्त नहीं हैं। आप केवल जप कर रहे हैं। जप करना इतना आवश्यक कार्य भी नहीं हैं। " मैंने उन्हें यह कहा नहीं केवल मन में सोचा, परन्तु मैं निरंतर उस पर मंथन करता रहा और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि एक स्थान पर बैठकर जप करने से बड़ा हमारे लिए और कोई कार्य नहीं हैं। आप जप करते समय पूर्णरूप व्यस्त होते हैं , यह आंशिक व्यस्तता नहीं हैं अपितु आप पूर्णरूपेण इसमें संलग्न होते हैं। जप करते समय आपका शरीर व्यस्त होना चाहिए , आपका मन व्यस्त होना चाहिए, आपकी बुद्धि सजग तथा नियुक्त होनी चाहिए, और अंततः हमारी आत्मा व्यस्त होनी चाहिए। क्या यह अत्यंत आवश्यक कार्य नहीं हैं ? आपको सदैव यह अनुभव होना चाहिए कि जप करते समय आप व्यस्त हैं। जब और कोई आपको देखे तो उन्हें देखते ही यह आभास होना चाहिए कि आप अभी व्यस्त हैं।
एक समय सूरत से एक भक्त जप कर रहे थे। मैंने देखा कि जप करते समय वह व्यस्त नहीं थे और एकाग्रता से जप नहीं कर रहे थे। वे कृष्ण को नहीं देखकर अपने आसपास देख रहे थे। जब आप सही ढंग से नहीं बैठते हैं तब ऐसा नहीं लगता हैं कि आप व्यस्त हैं। सही आसन में बैठना अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। सेना में परेड के पश्चात जब सैनिक आराम से बैठे होते हैं और तभी सेनापति कहता हैं , " सावधान " तो तुरंत ही वे सभी सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं, यहाँ तक कि नए सैनिक भी इसका पूर्णतया पालन करते हैं। वे सबकुछ छोड़कर अगले निर्देश के लिए तैयार हो जाते हैं। यहाँ तक कि वे अपनी आँखे भी इधर उधर नहीं घुमाते हैं , वे भी स्थिर रहती हैं। अतः जप करते समय हमें भी इसी प्रकार सावधान की स्थिति में रहना चाहिए।
एक समय हैदराबाद रथयात्रा के समय सुरक्षा में एक पुलिसकर्मी तैनात थे , जिन्हे मैंने कहा , " हरे कृष्ण कहो। " इसके प्रत्युत्तर में उन्होंने मुझसे कहा , " मैं अभी ड्यूटी पर हूँ अतः मैं अपने कार्य को छोड़कर और कुछ भी नहीं कर सकता। " अतः इस जप को अत्यंत गंभीरता के साथ अपना धर्म समझकर स्वीकार कीजिए तथा आपसे जप करते समय जो उम्मीद की जाती हैं उसका पालन कीजिए। शारीरिक , मानसिक , बौद्धिक , तथा आत्मिक रूप से हरिनाम में संलग्न रहिए। जप में आत्मा की भागीदारी अत्यंत महत्पूर्ण हैं। जप करते समय श्रवण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
कम से कम हमें यह पता होना चाहिए कि हमारे लिए करने योग्य सही कार्य कौनसा हैं। आपको सही प्रकार से उन कार्यों को करना आना चाहिए , सही प्रकार से उनके विषय में चिंतन करना चाहिए , जिससे हम अपने अंतिम लक्ष्य को शीघ्रताशीघ्र पा सके। मुझे पता हैं कि सही कार्य कौनसा हैं और मैं उसके लिए प्रयत्न कर रहा हूँ। यहाँ ज्ञान और विज्ञान - ज्ञान और उसके व्यावहारिक उपयोग की आवश्यकता हैं।
हरिनाम का प्रचार करने का प्रयास कीजिए। यह भी तैयारी का एक भाग हैं। नए भक्तों के प्रति दयालु और विश्वसनीय रहिए।
ईश्वर तद अदिनेषु बालिसेसु द्विशास्तु च। प्रेम मैत्री क्रोपेक्षा , यः करोति सः मध्यमः।।
द्वितीय श्रेणी के भक्त को मध्यम अधिकारी कहा जाता हैं। वह परम भगवान से अत्यंत प्रेम करता हैं , भगवान के सभी भक्तों के साथ मित्रवत व्यवहार करता हैं , जो अज्ञानी पुरुष भगवान से द्वेष करते हैं , उनका अनादर करते हैं , तथा मूढ़ हैं, उनके प्रति भी वह दयालु होता हैं। (श्रीमद भागवतम ११.२.४६ )
प्रभुपाद कहते थे कि हमें कम से कम इस द्वितीय श्रेणी तक तो आना चाहिए। तृतीय श्रेणी के भक्त यद्यपि भगवान से प्रेम करते हैं परन्तु उनके भक्तों के प्रति या तो क्रुद्ध रहते हैं या तटस्थ रहते हैं अथवा उपेक्षा का भाव रखते हैं। तीन भाव होते हैं - प्रीत , द्वेष और तटस्थ। अतः हमें भक्तों से प्रेम करना चाहिए। नए व्यक्तियों पर थोड़ी कृपा कीजिए और उनके प्रति विश्वसनीय रहिए। राक्षशी प्रवृत्ति से सदैव बचकर रहिए। यह द्वितीय श्रेणी के भक्तों के लक्षण हैं। हमसे यह उम्मीद भी की जाती हैं कि हम हरे कृष्ण महामंत्र का प्रचार और प्रसार करें।
यह हम हमारे सबसे उत्कृष्ट पदयात्रा कार्यक्रम में करते हैं। हम इसमें हरिनाम का प्रचार करते हैं। इसमें नए व्यक्तियों को सम्मिलित करते हैं। हमें अमरावती से एक रिपोर्ट मिली हैं। हमारे आई.जी.ऍफ़. मंडली की लगभग २५ बालिकाएं , अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक दिवसीय पदयात्रा का आयोजन करने वाली हैं। यह भी एक वांछनीय कार्य हैं , जिसे हमें करना चाहिए। इससे कई नए व्यक्ति हरिनाम सुनेंगे। वे इस हरिनाम के प्रति आकर्षित होंगे। यह भी हमारी तैयारी का एक हिस्सा हैं। यदि आप दिन के समय इस प्रकार की गतिविधियों में व्यस्त रहेंगे तो जप के समय आपकी एकाग्रता में वृद्धि होगी।
जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश। आमार आज्ञा गुरु होइया तारो एइ देश।।
" श्रीमद भगवद गीता और भागवतम में दिए गए आदेशों के अनुसार जिसे भी देखो उसे कृष्ण नाम का उपदेश करो। इस प्रकार गुरु बनकर इस जगत के सभी बद्ध जीवों का कल्याण करो। (चैतन्य चरितामृत मध्य लीला ७.128)
नए भक्तों की सेवा करो। हम इस कांफ्रेंस को यही विश्राम देंगे।
हरे कृष्ण …..

English

Most Important Business What we are doing in the conference is to follow in the footsteps of Rupa and Sanatan Goswamis. Krsna is kind. We have a large group of devotees from New Jersey. If I speak in English is it okay? This is Sayaber math. In Vrindavan we have Angrej ka mandir. Bengali's used to call it Sayber math referring to the foreign devotees as Saheb.
One thought is when we chant Hare Krishna wherever, or on this conference, it's like a family reunion. We are different members of Krsna's family. We reunite and connect with Krsna. We connect with each other also. So it’s a reunion. Now we have bodies, but if we keep chanting and chanting and become pure devotees then we will all continue to be with Krsna. The holy name is uniting us. Now in this world in physical bodies then we will have spiritual bodies and we will be united.
We are not in this world - Kolkata world or this world or that world. Mayapur is not in this world. It is out of this world. So we have reached! But the challenge is to stay here. Stay high forever! If we stay high by chanting higher and higher then even if we go away, so called going away to Pune or somewhere else , then we haven't left Mayapur or Vrindavan. We are part of Vrindavan, part of Mayapur. Consciousness is what makes us belong to this or that place. Prabhupada would make those claims, which is a fact. Being in New York, he would say, ‘I am not in New York.’ He was thinking of his Radha-Damodar in Vrindavan and felt he was there.
So keep chanting. Is your chanting getting better? Trying, struggling, lots of challenges? Every day could be a new challenge also. Did you face some challenges today while chanting? No challenge! No one was stopping you? No opposition party? Maya is in so many forms. Did any one face any challenge? Sleep is also a challenge. Some of you are defeated by sleep and thoughts - thinking, feeling, willing. Mind makes lots of plans. Did it happen today? Today is Ekadasi and you have to fast. That's also a challenge. Ekadasi is upavas -fasting. Previous Ekadasi I was talking about upavas . In Maharashtra they say, aaj upavas ache - Ekadasi upavas or Shivaratri upavas. So today is the day to get closer to the Lord. ‘Up’ means near and ‘vas’ means to reside. Reside near Krsna. Today is that day. We observe the upavas day by fasting from grains and if you could fast from Maya then it will be real upavas. Today we will fast from Maya. Normally we have lots of feasting on Maya. The mind, the senses are feasting or planning. So endeavour to fast from Maya. We fast. We eat less or don't even eat, or don't even drink. Survive only on air. They also spiritualise the air. When we chant ……
HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE
…… we purify the air. The air gets Krsnaised. While taking out the air that we have taken in, we Krsnaise the air and we hear that air, the sound. That's what some of the devotees do. No eating, no drinking. It is kind of pranayam. Taking air in and then out, then we chant. They chant lots of rounds, lot of hearing, studying. If we do more hearing, more chanting, along with more association, then we will manage to stay near Krsna. That Is real meaning of upavas. If we manage to stay near Krsna, with Krsna, then that is upavas. Just fasting doesn't make a successful upavas. Whether we have stayed with Krsna, connected with Krishna should be introspected.
One of the recommendations of Bhaktivinoda Thakur on Ekadasi is to compare your sadhana performance from the last Ekadasi to this Ekadasi. How was my performance? Was it a Krishna conscious performance. My practises? How was my sadhana? Did I miss something? My hearing and Reading. Dharmaraj Prabhu keeps daily record of sadhana and sends it to me at the end of month for my review or comments. Bhaktivinod Thakur has suggested , you should review your performance. You should keep record or have a sadhana card. If you have so much faith in your memory, that you can remember your sadhana this day and that day , then you may not write. That is something Bhaktivinoda Thakur recommended. These were my strong points and some weak points and till next Ekadasi I have to improve here and improve there. So such analysis is important to improve own sadhana.
Chanting is a serious activity, the most important business. We break our heads, do lots of planning, work out strategies and resources, timelines. So why not apply all those things to this Krishna conscious business of chanting. Planning, preparation is important. I have been saying this on the conference. For this morning’s chanting you prepare the night before or the day before or two days before. You have chanted today and till tomorrow's chanting in between is preparation time. They say in this world 80% is preparation and 20% is execution. You have spent 80% of your time and energy to prepare and then implement 20%. If you have done good planning, then execution and implementation will go smoothly. The potential difficulties you will be facing next morning will be lesser. Prevention is better than cure. Maybe you didn't sleep enough, you spent your night doing some useless things or other businesses. All these things which what you did the night before and what you did not do . How many Vaisnavas have you offended? Instead of doing that we should think otherwise. How many Vaisnavas have I served today? I will serve at least three Vaisnavas in a smaller or bigger way. That is preparation. Like that many different types of preparations are there. The next morning’s chanting becomes focused and with concentration. They will take that seriously.
I have been telling this incident from time to time about when I was new bhakta in Mumbai. One gentleman, a life member came from downtown Mumbai and he wanted to see the president. I looked for the president. He was chanting. When I gave the message to the president, he said,” Tell him I am busy.” My response in my mind was, “You are not busy. You are just chanting. Just chanting can't be a serious business.” I didn't tell him this. Later on I kept thinking and I realised that SITTING DOWN AND CHANTING IS A SERIOUS BUSINESS! You are supposed to be busy, fully busy, not partially busy or somewhat busy. Whole being has to be busy. Your body has to be busy, the mind has to be busy, intelligence has to be alert and employed and of course basically your soul has to be busy. Isn't it a serious business? You should have this understanding that you are busy with the chanting. When others see you, just by seeing they should have this understanding that you are busy.
Once one devotee from Surat was chanting. I could see he is not busy, kind of spaced out. hE was not looking for Krsna, but looking around. When people don't sit properly it doesn't feel as if they are busy. Sitting properly is important. In army after the parade, when there is break or relaxation, when commander says, ‘ Savadhan’, then even the beginners tighten their belts. They stop everything else and drop everything to get ready for the next instruction.They don't move their eyesight. It is also fixed.They are not rolling their eyes. While chanting we should also come to such savadhan state.
Once during Hyderabad Ratha-yatra, one policeman was there for security. I happened to tell him - “Chant Hare Krishna.” His response was, “I am on duty! I can't do anything else.” So take this chanting business as duty or Dharma, and try to do as it is expected of us. Physically, mentally, intellectually, soulfully. The soul is an important aspect of our being. Focus on hearing while chanting.
At least we should know what is the right thing to do. You should know the right way to think, right way to do and try to do those right things and achieve that goal. I know what is the right thing and I also try to do it correctly. There is jnana and vijnana - knowledge and application.
Try to spread the holy name around. That is also part of the preparation. Being kind, faithful to new people.
isvare tad-adineṣu balisesu dvisatsu ca prema-maitri-krpopeksa yah karoti sa madhyamah
An intermediate or second-class devotee, called madhyama-adhikari, offers his love to the Supreme Personality of Godhead, is a sincere friend to all the devotees of the Lord, shows mercy to ignorant people who are innocent and disregards those who are envious of the Supreme Personality of Godhead. (SB 11.2.46)
Prabhupada would say that at least come to the second level. Third class devotees love the Lord, but hate others or the devotees. Or they may be neutral or be doing some opeksa also. Love, hate and being neutral. Love the devotees, be friendly with devotees. Do some krpa, or be kind or faithful. Stay away from demoniac ways. This is the second class devotees. It is expected that we propagate the Hare Krsna mahamantra.
We do that also in one of our best programs - Padayatra program. We propagate holy name. We bring new people. We got report from Amaravati. Our IGF team of 25 girls ,on international Women's day, our girls from that team, Are going on one day Padayatra. This is also desirable thing to do. So many new people will hear the holy name. Get connected or hooked. This is also desirable thing to do and part of the preparation. You will have better concentration, if during the day you are engaged in activities like this.
yare dekha, tare kaha ‘krsna’-upadesa amara ajnaya guru hana tara’ ei desa
“Instruct everyone to follow the orders of Lord Sri Krsna as they are given in the Bhagavad-gita and Srimad-Bhagavatam. In this way become a spiritual master and try to liberate everyone in this land.” (CC.Madhya 7.128)
Serve the new devotees. We will stop here.
Hare Krishna

Russian

Джапа сессия 02.03.2019 САМОЕ ВАЖНОЕ ЗАНЯТИЕ! На конференции мы следуем по стопам Рупы и Санатана Госвами. Кришна добр! У нас есть большая группа преданных из Нью-Джерси. Я буду говорить по-английски, хорошо? Это Sayber math (Кибер-математика)). Во Вриндаване у нас есть Angrej ka mandir. Бенгальцы привыкли называть это Sayaber math (Кибер-математика), называя иностранных преданных Saheb. Одна мысль - когда мы повторяем Харе Кришна находясь где бы то ни было, собираясь на этой конференции, это похоже на воссоединение семьи. Мы разные члены семьи Кришны. Мы собираемся вместе связываемся с Кришной мы связываемся друг с другом. Так что это воссоединение. Сейчас у нас есть тела, но если мы будем повторять и повторять, станем чистыми преданными, тогда мы объединимся с Кришной. Святое имя объединяет нас. Сейчас в этом мире мы в физических телах, затем у нас будут духовные тела, и мы будем едины. Мы не в этом мире и не в том мире, мы не в Калькутте. Маяпура нет в этом мире. Маяпур вне этого мира. Мы достигли его! Но проблема в том, чтобы остаться здесь. Будьте всегда возвышенными! Если мы будем возвышенными, воспевая все лучше и лучше, тогда даже если мы уходим, как говорят, уходя в Пуну или куда-то еще, тогда мы не покинем Маяпур или Вриндаван. Мы часть Вриндавана, часть Майяпура. Сознание - это то, что заставляет нас принадлежать к тому или иному месту. Прабхупада утверждал это - значит это факт. Находясь в Нью-Йорке, он сказал бы: «Я не в Нью-Йорке». Он думал о своем Радха-Дамодаре во Вриндаване и чувствовал, что он там. Так что продолжайте воспевать. Ваше воспевание становится лучше? Пытайтесь, изо всех сил, у вас много трудностей? Каждый день может стать новым испытанием. Сталкивались ли вы сегодня с какими-то проблемами во время воспевания? Нет проблем! Вас никто не останавливал? Нет оппозиционной партии? Майя принимает разные формы. Кто-нибудь сталкивался с проблемами ? Сон также является проблемой. Некоторые из вас побеждены сном и мыслями - думают, чувствуют, хотят. Ум строит много планов. Это случалось сегодня? Сегодня экадаши, и вы должны поститься. Это тоже проблема. Экадаши упавас- пост. Предыдущий экадаши я говорил об упавас. В Махараштре они говорят: «aaj upavas ache» - экадаши упавас или шиваратри упавас. Итак, сегодня день, чтобы стать ближе к Господу. Оставаться с Господом. Быть рядом с Господом «up» означает «рядом», а «vas» - находиться. Пребывать рядом с Кришной. Сегодня этот день. Мы соблюдаем день упавас, постясь от зерна, и если вы сможете поститься от майи, тогда это будут настоящий упавас. Сегодня мы постимся от майи. Обычно мы испытываем много наслаждений в майе. Ум, чувства наслаждаются или планируют, или обдумывают. Так постарайтесь поститься от майи. Мы постимся. Мы едим меньше или не едим, и даже не пьем. Живите только на воздухе. Мы также одухотворяем воздух. Когда мы поем ... HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE …… мы очищаем воздух. Воздух Кришнаизируется. Когда мы выдыхаем воздух, который мы вдохнули, мы Кришнаизируем воздух, и мы слышим этот воздух, этот звук. Это то, что делают некоторые преданные. Не едят не пьют. Это своего рода пранаяма. Вдыхая и выдыхая воздух, мы воспеваем. Они повторяют много кругов, много слушают, учатся. Если мы будем больше слушать, больше петь и больше общаться, тогда нам удастся остаться рядом с Кришной. Это настоящее значение упавас. Если нам удастся оставаться рядом с Кришной, тогда это упавас. Просто пост не делает упавас успешным. Следует задуматься, были ли мы с Кришной, связаны ли мы с Кришной. Одна из рекомендаций Бхактивиноды Тхакура в экадаши - сравнить вашу садхану последнего экадаши, с этим экадаши. Какой была моя деятельность? Была ли она в сознании Кришны? Моя практика? Какой была моя садхана? Пропустил ли я что-то? Мое слушание и чтение. Дхармарадж Прабху ежедневно ведет записи о садхане и отправляет ее мне в конце месяца для моего обзора или комментариев. Бхактивинод Тхакур предложил, вы должны пересмотреть свою работу. Вы должны вести учет или иметь карточку садханы. Если вы так сильно верите в свою память, что можете вспомнить свою садхану в тот или этот день, тогда вы можете не писать. Это то, что рекомендовал Бхактивинода Тхакур. Увидеть мои сильные и слабые стороны, понять что до следующего экадаши я должен что-то улучшить здесь и что-то улучшить там. Такой анализ важен для улучшения собственной садханы. Воспевание - это серьезная деятельность, самое важное занятие. Мы ломаем голову, много планируем, разрабатываем стратегии,ресурсы, сроки. Так почему бы не применить все эти вещи к воспевания в сознании Кришны. Планирование и подготовка важны. Я говорил это на конференции. К этому утреннему воспеванию вы готовитесь ночью или днем раньше или двумя днями раньше. Вы воспевали сегодня, и до завтрашнего воспевания между ними время подготовки. Говорят, в этом мире 80% - это подготовка, а 20% - исполнение. Вы потратили 80% своего времени и сил на подготовку, а затем осуществляете 20%. Если вы хорошо все спланировали, то выполнение и реализация будут проходить легко. Потенциальные трудности, с которыми вы столкнетесь на следующее утро, будут меньше. Профилактика лучше лечения. Возможно, вы мало спали, вы провели ночь, занимаясь какими-то делами, или бесполезно потратили время. Все эти вещи - что вы делали прошлой ночью и что вы не делали, сколько вайшнавов вы оскорбили? Вместо этого мы должны думать иначе. Скольким вайшнавам я служил сегодня? Я буду служить как минимум трем вайшнавам в большей или меньшей степени. Это подготовка. Существует много разных способов подготовки. Воспевание на следующее утро становится внимательным и сосредоточенным. Вы будете относиться к этому серьезно. Я уже рассказывал об инциденте, когда я был новым бхактой в Мумбаи. Однажды утром один джентльмен, пожилой человек приехал из центра Мумбаи, он хотел видеть президента. Я искал президента. Он воспевал. Когда я передал послание президенту, его ответ был: «Скажи ему, что я занят». Мой ответ в моем уме был: «Вы не заняты. Вы просто повторяете. Просто повторение не может быть серьезным занятием». Я не сказал ему этого. Позже я продолжал думать и понял, что СИДЕТЬ И ВОСПЕВАТЬ - ЭТО СЕРЬЕЗНОЕ ЗАНЯТИЕ! Вы должны быть заняты, полностью заняты, не частично заняты или несколько заняты. Все существо должно быть занято. Ваше тело должно быть занято, ум должен быть занят, разум должен быть бдительным и занятым, и, конечно, в основном ваша душа должна быть занята. Разве это не серьезное занятие? Вы должны понимать, что вы заняты воспеванием. Когда другие видят вас, просто увидев, что они должны понимать?, что вы заняты. Однажды один преданный из Сурата воспевал. Я мог видеть, что он не занят, он выглядел отвлеченным. Он не искал Кришну, а смотрел вокруг. Когда люди не сидят должным образом, они не чувствуют себя занятыми. Важно сидеть правильно. В армии после парада, когда происходит перерыв или расслабление, когда командир говорит ‘ Savadhan’, тогда даже новички затягивают пояса. Они прекращают делать все остальное и бросают все, чтобы быть готовым к следующему приказу. Их взгляд неподвижен. Они не вращают глазами. Во время повторения мы также должны прийти в такое состояние savadhan. Однажды во время Ратха-ятры в Хайдерабаде , для безопасности там был один полицейский. Я случайно сказал ему: «Повторяйте Харе Кришна». Он ответил: «Я на посту! Я больше ничего не могу делать ». Поэтому примите эту обязанность воспевать как долг или Дхарму и постарайтесь делать то, что от нас ожидают. Физически, умственно, интеллектуально, духовно. Душа является важным аспектом нашего бытия. Сосредоточьтесь на слушании во время воспевания. По крайней мере, мы должны знать, какие правильные вещи нужно делать. Вы должны знать, как правильно повторять, как правильно думать и пытаться достичь этой цели, пытаться делать эти вещи правильно. Я знаю, что значит делать правильно, и я также пытаюсь делать это правильно, не просто знать как правильно, а делать правильно. Есть гьяна и вигьяна - знание и применение. Попробуйте распространять Святое Имя вокруг. Это тоже часть подготовки. Быть добрым, правдивым с новыми людьми. isvare tad-adineṣu balisesu dvisatsu ca prema-maitri-krpopeksa yah karoti sa madhyamah Преданный среднего или второго класса, которого называют мадхьяма-адхикари,отдает свою любовь Верховной Личности Бога, искренне дружит со всеми преданными Господа, проявляет сострадание к невежественным, простодушным людям и обходит стороной тех, кто враждебно относится к Верховному Господу. (SB 11.2.46) Прабхупада сказал бы, что, по крайней мере, выйдите на второй уровень. Преданные третьего класса любят Господа, но им не нравятся все остальные, они им ненавистны,это преданные третьего класса. Они могут быть нейтральными или делать некоторые opeksa тоже. Любить, ненавидеть и быть нейтральным. Любите и служите Господу, будьте дружелюбны с преданными. Давайте немного крипы (милости), будьте добры или верны. Держись подальше от демонических путей. Это преданные второго класса. Предполагается, что мы распространяем Харе Кришна махамантру. Мы делаем это также в одной из наших лучших программ - программе Padayatra. Мы распространяем Святое Имя. Мы привлекаем новых людей. Мы получили отчет от Амаравати. Наша команда IGF из 25 девушек, в Международный женский день, наши девушки из этой команды, собираются на один день на Падаятру. Это также желательно делать. Так много новых людей услышат Святое Имя. Подключайте или привлекайте. Это также желательно делать и является частью подготовки. Вы будете лучше концентрироваться, если в течение дня будете заниматься чем-то подобным, привлекать новых людей или дружить с преданными и служить им. yare dekha, tare kaha ‘krsna’-upadesa amara ajnaya guru hana tara’ ei desa «Проси всех исполнять наставления Господа Шри Кришны, изложенные в „Бхагавад-гите“ и „Шримад-Бхагаватам“. Таким образом стань духовным учителем и постарайся спасти всех в этих краях».(ЧЧ. Мадхья, 7.128). Служите новым преданным. Мы остановимся здесь. Харе Кришна!