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जप चार्चा पंढरपुर धाम से 8 अप्रैल 2021 शीर्षक 1: हरिदास ठाकुर के महानतम गुणों का गान चैतन्य महाप्रभु के द्वारा । 2: भगवान श्री कृष्ण के चरण पद्म का जीवन के अंतिम सांस तक स्मरण करना । मेरे और कई अन्य भक्तों के लिए आज एकादशी है और हम इस्कॉन कीर्तन मिनिस्ट्री की ओर से श्रवण कीर्तन उत्सव शुरू करने जा रहे हैं। शुरुआत में हम श्रवण कीर्तन करेंगे जो अंग्रेजी में होगा और फिर हरे कृष्णा कीर्तन भी होगा किस भाषा में? चाइनीस् या मराठी में? सभी भाषाओं में, हरे कृष्ण हरे कृष्ण की कोई भाषा नहीं है । महामंत्र का कीर्तन् होगा लगभग 7:00 बजे। हरि हरि !! 775 स्थानों से भक्त, आप सभी का स्वागत हैं। हमारी साधारण / नियमित भीड़ , मुझे यह कहना चाहिए की भक्त समूह। जब भक्त इकट्ठे होते हैं तब यह भीड़ नही कह लाती। हम आप सभी का कीर्तन मिनिस्ट्री के श्रवण कीर्तन उत्सव मैं स्वागत करते हैं । 'कीर्तन मिनिस्ट्री ' विश्व भर के भक्तों को उत्साह प्रदान करती है एकादशी के रूप में श्रवण कीर्तन उत्सव मनाने के लिए । यह दिन उपवास का दिन है । यह उपवास के साथ-साथ दावत का दिन है । " यह दिन माया से दूर और कृष्ण के साथ दावत " । आपने यह समझा क्या ? उपवास किस से ? जरूर आप कहोगे कि अन्न नहीं खाना है । लेकिन यह साधारण उपाय है कि 'माया से दूर रहना ' । माया से दूर और कृष्ण के साथ दावत । तो दावत हम कैसे करेंगे? हम कैसे यह दावत कर सकते हैं ? आप सभी को दावत पसंद है ,मैं सही कह रहा हूं ना? लाडली किशोरी ' !! आप यह पर्दे के पीछे छुपे हुए हैं । आप सभी को दावत पसंद है ? हां ! यहां पर कोई है जो दावत पसंद करता हो । कोई भी नहीं ? नहीं तो आप हाथ उठा सकते हैं ? मुझे पसंद है !! मुझे दावत पसंद है !! मुझे मालूम है आप सभी चुप है । मुझे पता है मुझे कितना दावत पसंद है और आप सभी भी वैसे स्कोर पसंद करते हैं । हम सभी आत्माएं ऐसे ही हैं । हम सभी को दावत पसंद है । यह दावत श्रवण कीर्तन दावत है । आज हम सब और ज्यादा श्रवण कीर्तन करेंगे इस एकादशी में । दूसरे शब्दों में , हम आत्मा की पोषण करेंगे , हम आत्मा को और भी खिलाएंगे पूरा पेट भर कर । आत्मा कि पेट को । आत्मा कि कान है ,उसका जीभ है , ठीक है आत्माओं ! हम तपस्या से गुजरते हैं लेकिन यह शरीर और आत्मा के लिए बहुत कम है। लेकिन एकादशी एक अच्छा अवसर है । मैं पूरा सहमत हूं कि सृष्टि के प्रारंभ से ही एकादशी उत्सव का मनाया जाता था। यह वैष्णवो के लिए बहुत ही प्रिय दिन है । जिस स्थान पर मैं अभी बैठा हूं ,यह पंढरपुर है । पंढरपुर धाम की जय!! एकादशी महोत्सव एक बहुत ही बड़ा दिन है पंढरपुर में और यह सिर्फ पंढरपुर पर नहीं । वास्तव में सभी भक्तों को पंडरीनाथ पसंद है । विट्ठल पांडुरंग । तुकाराम महाराज की अनुसरण करने वाले सभी भक्तों की जय !! वे सभी इस एकादशी महोत्सव को मनाते हैं ।इससे ज्यादा क्या कर सकते हैं ? वह ज्यादा कीर्तन करते थे । मुझे याद है कि मैं बचपन के दिनों में , जो आज तक जारी है । पूरी रात कीर्तन होते थे और उनके साथ शामिल होकर कीर्तन किया करते थे । सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी । कर कटावरी ठेवोनिया ॥ (अभंग - संत तुकाराम महाराज ) मेरे गाँव में भजन मंडली रात भर अभंगों का कीर्तन करते रहते थे । मैं यह एकादशी उत्सव को बचपन से 'श्रवण कीर्तन उत्सव' मना रहा था मेरे बचपन के दिनों में से ही l श्रील प्रभुपाद की जय !! श्री चैतन्य महाप्रभु क्या कहा करते थे , माली हञा करे सेइ बीज आरोपण । श्रवण - कीर्तन - जले करये सेचन ॥ अनुवाद : - जब किसी व्यक्ति को भक्ति का बीज प्राप्त होता हो जाता है, तब उसे माली बनकर उस बीज को अपने हृदय में बोकर उसका ध्यान रखना चाहिए यदि वह बीज को क्रमशः श्रवण तथा कीर्तन की विधि से सींचता है , तो वह बीज अंकुरित होने लगेगा । (चैतन्य चरितामृत मध्य 19.152 ) इस तरह हम एकादशी में थोड़ा ज्यादा श्रवण कीर्तन करते हैं । अभी एक भक्त ने कहा महाराज मैंने 16 माला पूरा कर लिया है और मैंने पूछा की अभी क्या आप रुक जाने वाले हैं उन्होंने कहा नहीं ! आज मैं 64 माला करूंगा । और वह है वास्तविक में दृढ़ निश्चय । ज्यादा जप करना और ज्यादा श्रवण करना । ॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ हम शास्त्र भी पढ़ सकते हैं , कृष्ण के बारे में सुन सकते हैं, उन्होंने क्या कहा है भगवत् गीता में और भागवतम् और चैतन्य चरित्रामृत मैं ? पठन -पाठन , हम उस तरह से और अधिक श्रवण कीर्तन कर सकते है । एकादशी के दिन जब कीर्तन मंत्रालय इन कीर्तन महोत्सव को बढ़ावा दे रहा है, हम कीर्तन करने के साथ-साथ अन्य प्रस्तुति देने के लिए आयोजित कर रहे हैं, वे भगवान श्री कृष्ण की महिमा, हरि नाम चिंतामणि और भागवतम् पढ़ा करते हैं उसी के साथ हमने जपा रिट्रीट आयोजित किया है। जप को सुधारना, वह भी एक तरह से श्रवण कीर्तन है। तब उसी के बाद हम क्रमशः बढ़ाते हैं , " हम कैसे उच्चारण सही कर सकते हैं " I हम भक्तों को आयोजित करते हैं भजन गाने के लिए ,जब हम भजन गाते हैं तो सब उस भजन का अर्थ समझते नहीं। मेरे गुरु भ्राता श्री पंचारतना प्रभु कहा करते हैं अलग दिनों में, वह भी हमारे मिनिस्ट्री के अंश है। वह कहां करते हैं , "हां ! भक्त भजन तो गाते हैं लेकिन उनको उन भजनों का अर्थ मालूम नहीं होता है "। श्रील प्रभुपाद भजन के साथ उसका अर्थ भी बताते थे। मुझे मालूम है हमारे भक्ति चारू स्वामी महाराज गाया करते थे और उसके बाद वह उस भजन का अर्थ बतलाते थे। और हमारे अंतर में उस भजन का भाव होता है, भावा-र्थ । हमारे पास ऐसे भी भक्त हैं जो यह भजन का अर्थ प्रस्तुति करेंगे । उसी तरह हम हर एकादशी को 'श्रवण कीर्तन उत्सव मनाएंगे । और यह हमने पहले से ही कुछ महीनों से शुरू किया है आपकी सहायता से । आपके सहयोग से यह सदा के लिए जारी रखेंगे । मैं आपको प्रोत्साहित करता हूं कि आप इस में जुड़े , खास करके हमारे श्रवण कीर्तन महोत्सव में । आप भी इसमें जिक्र कर सकते हैं और अभी यह मेरा समय है और उसके बाद निरंतर प्रभु मेरे गुरु भ्राता श्री , श्रील प्रभुपाद के शिष्य ,वह लॉस एंजेलिस में रहते हैं और वह वहां से भगवान के महिमा को वर्णन करेंगे । मैं एक छोटा भजन गाऊंगा , उससे पहले मैं चाहता हूं कि मैं नाम आचार्य श्रील हरिदास ठाकुर को याद करू । और उनके तिरोभाव महोत्सव पर और वह नाम आचार्य श्रील हरिदास ठाकुर महोत्सव कहलाएगा और आज गोविंद घोष तिरोभाव तिथि महोत्सव भी है । गोविंद घोष तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय!! वैसे भी वह एक बहुत बड़े कीर्तनया थे उनके भ्राताश्री के साथ , माधव घोष , श्रीवास घोष और फिर वासुदेव घोष । उसी तरह गोविंद घोष और उनके 3 घोष भाई , वह सब बहुत बड़े भगवान के भजन आनंदी थे , वे सब भाई इतने बड़े असाधारण किस्म के गायक थे कि जैसे ही वे गाना शुरू करेंगे या गोविंद घोष गाना शुरू करेंगे तो चैतन्य महाप्रभु नाचने लगते थे । गोविंद घोष का कीर्तन, श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को प्रेरित करता था कि वे बहुत ही भावविभोर तरीके से नृत्य करने लगते थे । नरहरि आदिकरि ' चामर ढुलाय । सञ्जयमुकुन्द - वासुघोष - आदि गाय ॥ अनुवाद :- नरहरि सरकार तथा चैतन्य महाप्रभु के अन्य पार्षद चँवर डुला रहे हैं तथा संजय पंडित , मुकुन्द दत्त एवं बासुघोष आदि भक्त मधुर कीर्तन कर रहे हैं । (गौर आरती श्लोक 4 ) उस भजन को याद करके , गोर आरती । वसु घोष - वासुदेव घोष है, वह गा रहे हैं । वसु घोष और वासुदेव घोष भाई है गोविंद घोष के, और उनका आज तिरोभाव महोत्सव हम मना रहे हैं । वे गाते हैं, इसलिए वे आरती के समय या किसी अन्य समय में गायक होते हैं, उन्हें गायन के लिए जाना जाता है। और निश्चित रूप से नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर को उनके गायन के लिए भगवान के 3,00,000 पवित्र नामों के जप के लिए जाना जाता था। एक-दिन गोविन्द महा-प्रसाद लञा । हरिदास दिते गेला आनन्दित हञा ॥ अनुवाद :- 1 दिन श्री चैतन्य महाप्रभु का निजी सेवक गोविन्द बहुत ही आनंदित होकर जगन्नाथ जी का प्रसाद देने हरिदास ठाकुर के पास गये । (चैतन्य चरित्रामृत अंत्य लीला 11.16 ) देखे, - हरिदास ठाकुर करियाछे शयन । मन्द मन्द करितेछे संङ्ख्या - संकीर्तन ॥ अनुवाद :- जब गोविंद हरिदास ठाकुर के पास पहुंचा , तो उसने देखा कि वे अपनी पीठ के बल लेटे हैं और धीरे-धीरे जप माला में जप कर रहे हैं । (चैतन्य चरितामृथम अंत्य लीला 11.7 ) गोविन्द कहे , - ' उठ आसि ' करह भोजन ' । हरिदास कहे , - - आजि करिमु लंघन ॥ अनुवाद :- गोविन्द ने कहा , कृपया उठकर अपना महाप्रसाद ग्रहण करें ।" हरिदास ठाकुर ने उत्तर दिया "आज में उपवास रखूंगा । " (चैतन्य चरित्रामृत अंत्य लीला 11. 18 ) शङ्ख्या - कीर्तन पूरे नाहि , के मते खाइब ? I महा -प्रसाद आनियाछ , के - मते उपेक्षिब ? ॥ अनुवाद :- "मैंने अभी अपना जब पूर्ण नहीं किया है ! तो फिर मैं कैसे खा सकता हूं किंतु तुम महाप्रसाद लाए हो । भला मैं उसकी कैसे उपेक्षा करूं ?" ( चरित्रामृत अंत्य लीला 11. 19 ) अपनी बात को सही ठहराते हुए कहा ओह ! यह मैं कैसे खा सकता हूं , क्योंकि मैंने अपना निर्धारित जप खत्म नहीं हुआ है । लेकिन उसके बाद उन्होंने सोचा , लेकिन आप जगन्नाथ महाप्रसाद को लेकर आए हैं पुरी जगन्नाथ महाप्रसाद के रूप में विराजित रहते हैं तो उसको मैं कैसे मना कर सकता हूं ? एत बलि' महा -प्रसाद करिला वन्दन । एक रञ्च लञा तार करिला भक्षण ॥ अनुवाद :- यह कह कर उन्होंने महाप्रसाद को नमस्कार किया और उसमें से रंचभर लेकर ग्रहण कर लिया । ( चैतन्य चरित्रामृत अंत्य लीला 11. 20 ) हरिदास ठाकुर यह कहने के बाद महाप्रसाद को प्रणाम किए और उस महाप्रसाद से कूछी मात्रा में , अन्न लेकर उसको खाया । आर दिन महाप्रभु तॉर ठाञि आइला । सुस्थ हुओ, हरिदास - बलि ' तॉरे पुछिला ॥ अनुवाद :- अगले दिन श्री चैतन्य महाप्रभु हरिदास के स्थान पर गए और उनसे पूछा "हरिदास तुम ठीक तो हो ?" (चैतन्य चरित्रामृत अंत्य लीला 11.21 ) मैं अंत्य लीला अध्याय 11 पढ़ रहा हूं । आज एकादशी है, और यह अध्याय भी एकादशी के ऊपर है उसी के सहित यहां पर नाम आचार्य के तिरोभाव पर वर्णित है । तो उसके दूसरे दिन चैतन्य महाप्रभु पहुंचे हरिदास ठाकुर से मिलने के लिए । नमस्कार करि' तेंहो कैला निवेदन । शरीर सु स्थ हय मोर, असुस्थ बुद्धि-मन ॥ अनुवाद :- हरिदास ने महाप्रभु को नमस्कार किया और उत्तर दिया, "मेरा शरीर स्वस्थ है, किंतु मेरा मन और बुद्धि ठीक नहीं है ।" ( चैतन्य चरित्रामृत अंत्य लीला 11.22 ) प्रभु कहे, -- 'कोन् व्याधि, कह त' निर्णय ?' । तेंहा कहे, -- 'सङ्ख्या- कीर्तन ना पूरय' ॥ अनुवाद :- श्री चैतन्य महाप्रभु ने पुनः पूछा, "क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारा रूप क्या है ?" हरिदास ठाकुर ने उत्तर दिया, "मेरा रुक यही है कि मैं अपनी जप संख्या पूरी नहीं कर पा रहा हूं ।" ( चैतन्य चरित्रामृत अत्य लीला 11.23 ) प्रभु कहे, --" वृद्ध ह - इला ' सङ्ख्या' अल्प कर । सिद्ध -- देह तुमि, साधने आग्रह केने कर ? ॥ अनुवाद :- महाप्रभु ने कहा, "क्योंकि अब तुम वृद्ध हो गए हो, अतः नित्य जप किए जाने की नाम संख्या घटा सकते हो । तुम तो पहले से मुक्त हो, तेज तुम्हें कठोरता से नियमों का पालन करने की आवश्यकता नहीं है । ( चैतन्य चरित्रामृत अंत्य लीला 11.24 ) चैतन्य महाप्रभु ने उत्तर दिया, आप लोग देखें उन्होंने क्या कहा । पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और ब्रह्मा हरिदास, ब्रह्मा देव हरिदास ठाकुर रूप में प्रकट हुए हैं, राम भगवान जो सबके हृदय में विराजित रहते हैं और सब का मार्गदर्शन करते हैं, और ब्रह्मा जो आचार्य है । हमारा संप्रदाय जो है ब्रह्म माधव गुड़िया संप्रदाय है , आचार्य और फिर संस्थापक आचार्य जो हमारे संप्रदाय में ब्रम्हा है । और उन्होंने ही अभी अवतार लिया है ब्रह्मा जो हरिदास ठाकुर के रूप में , और चैतन्य महाप्रभु ने ही उनको 'नाम आचार्य' रूप में नाम घोषित किया है । वह पहले से ही हमारे ब्रह्म माधव गौड़ीय संप्रदाय के पहले आचार्य रहे और अभी चैतन्य महाप्रभु उनके लीला में उनको 'नाम आचार्य' रूप में घोषित करते हैं। पवित्र महामंत्र के आचार्य के रूप में । यह संवाद या यह वार्ता बहुत महत्वपूर्ण है । चैतन्य महाप्रभु जेसे कहते हैं, "तुम बहुत वृद्ध हो चुके हो, तो तुम अपना जप के संख्या को कम कर सकते हो | तुम पहले से ही मुक्त हो, तुम परमहंस हो, तुमको यह अनुसरण करने की कोई जरूरत नहीं है तुम इस से भी परे हो । लोक निस्तारिते एइ तोमार 'अवतार' । नामेर महिमा लोके करिला प्रचार ॥ अनुवाद :- "इस अवतार में तुम्हारी भूमिका सामान्य लोगों का उद्धार करने की है । तुमने इस जगत में पवित्र नाम की महिमा का पर्याप्त प्रचार किया है ।" (चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.25 ) चैतन्य महाप्रभु स्वीकार कर ते हैं कि आप अवतार हैं। आप इस दुनिया के लोगों को मुक्त करने के लिए प्रकट हुए हैं। आप नामाचार्य या ब्रह्म- हरिदास के रूप में प्रकट हुए हैं। एक वाञ्छा हय मोर बहु दिन हैते । लीला सम्वरिबे तुमि - लय मोर चित्ते ॥ अनुवाद :- "दीर्घकाल से मेरी एक इच्छा रही है । हे प्रभु, मेरे विचार से आप अत्यंत से ग्रह इस भौतिक जगत से अपनी लीला समाप्त कर देंगे । (चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.31 ) चैतन्य महाप्रभु एक दिन हरिदास ठाकुर के पास आए थे और हरिदास ठाकुर ने कहा, हे मेरे भगवान मेरी एक इच्छा है ।मैं यह अनुमान लगा सकता हूं कि आप यहां से प्रकट होकर अपने धाम वापस चले जाने वाले हैं । सेइ लीला प्रभु मोरे कभु ना देखाइबा । आपनार आगे मोर शरीर पाड़िबा ॥ अनुवाद :- "मैं चाहता हूं कि आप अपनी लीला का यह अंतिम अध्याय मुझे नहीं दिखलाएं । इसके पूर्व कि वह समय आए, मैं चाहता हूं कि मेरा शरीर आपके सामने धराशायी हो जाए । ( चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.32 ) हृदये धरिमु तोमार कमल चरण । नयने देखिमु तोमार चॉद वदन ॥ अनुवाद :- "मैं आपके कमलवत् चरणों को अपने हृदय में धारण करना चाहता हूं और आपके चंद्रमा सदृश मुखमंडल का दर्शन करना चाहता हूं । (चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.33 ) मैं यहां से जाने से पहले मैं इच्छा प्रकट करता हूं कि जब मरने के समय में, मैं आपका कमल सदृश रूप का दर्शन करू और आपका पैर मेरे छाती पर हो मैं उसको पकड़ कर रखो और उसको मैं देखता रहूं, और उसी समय मैं आपका मनोहरी कमल सदृश मुख को देखो यही मेरा वांच्छा है, और जहां मेरा आंतरिक इच्छा है । हे ! प्रभु मेरी यह इच्छा पूर्ण कीजिए । प्रभु कहे,--" हरिदास, ये तुमि मागिबे । कृष्ण कृपामय ताहा अवश्य करिबे ॥ अनुवाद :- श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा, "हे हरिदास, कृष्ण इतने दयामय है कि तुम जो भी चाहते हो, उसे वे अवश्य पूरा करेंगे । (चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.37 ) और चेतन महाप्रभु ने उनकी इच्छा को पूरा किए । उन्होंने कहा हां ! कृष्ण आपके इच्छा को जरूर पूरा करेंगे आपकी जो भी इच्छा है । प्रभु कहे,--'हरिदास, कह समाचार' । हरिदास कहे,--' प्रभु, ये कृपा तोमार' ॥ अनुवाद :- श्री चैतन्य महाप्रभु ने पूछा, "हे हरिदास, क्या समाचार है ?" हरिदास ठाकुर ने उत्तर दिया, "हे प्रभु, आप मुझ पर जो भी कृपा करें ।" ( चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.47) और एक दिन, अभी महाप्रभु अकेले नहीं आए थे वह बहुत सारे भक्त और कीर्तनया के साथ मृदंग और करताल के साथ चैतन्य महाप्रभु आए थे वह अपने अजानू लंबित भूजो हाथ को ऊपर करके नृत्य कर रहे थे , नृत्य मंडल के बीच में। हरिदास !! यह क्या समाचार है, तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है ? आपकी जो भी इच्छा है आप मुझ पर वह कृपा करें। अङ्गने आरम्भिला प्रभु महा - संकीर्तन । वक्रेश्वर - पंडित ताहाँ करेन नर्तन ॥ अनुवाद :- यह सुनकर श्री चैतन्य महाप्रभु ने तुरंत आंगन में महान संकीर्तन प्रारंभ कर दिया । इसमें बकरेश्वर पंडित प्रमुख नर्तक थे । (चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.48 ) और कीर्तन चलता रहा, वक्रेश्वर पंडित नाच रहे थे, वह मुख्य नृत्यकार थे चैतन्य महाप्रभु के लीलाओं में । और उनके साथ सभी नृत्य कर रहे थे लेकिन यहां पर मुख्यतः बक्रेश्वर पंडित का नाम लिखित है । स्वरूप -गोसाञि आदि यत प्रभुर गण । हरिदासे बेड़ि' करे नाम-संकीर्तना ॥ अनुवाद :- स्वरूप दामोदर गोस्वामी इत्यादि श्री चैतन्य महाप्रभु के सारे भक्तों ने हरिदास ठाकुर को घेर लिया और संकीर्तन प्रारंभ कर दिया । (चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.49 ) रामानन्द, सार्वभौम, सबार अग्रेते । हरिदासेर गुण प्रभु लागिला कहिते ॥ अनुवाद :- रामानंद राय तथा सार्वभौम भट्टाचार्य जैसे सारे महान भक्तों के समक्ष श्री चैतन्य महाप्रभु हरिदास ठाकुर के पवित्र गुणों का वर्णन करने लगे । (चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.50) और अचानक से चैतन्य महाप्रभु हरिदास ठाकुर के महिमा ओं के गुणगान करने लगे । महाप्रभु अपने गुरुदेव की बात गुणगान करने लगे । नाम आचार्य हरिदास ठाकुर के गुणगान करने लगे महाप्रभु खुद और सभी एकत्रित भक्तों ने इसको बहुत ध्यान पूर्वक श्रवण कर रहे थे । हरिदासेर गुण कहिते प्रभु ह- इला पंचमुख । कहिते कहिते प्रभूर बाड़े महा - सुख ॥ अनुवाद :- जब श्री चैतन्य महाप्रभु हरिदास ठाकुर के दिव्य गुणों का वर्णन करने लगे, तो ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उनके पांच मुख हो । उन्होंने जितना ही अधिक वर्णन किया, कुल का सुख उतना ही बढ़ता गया । (चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.51) इतना ही महाप्रभु हरिदास ठाकुर की महिमा का गुणगान कर रहे थे उतना ही वह आनंद प्राप्त कर रहे थे । ऐसा प्रतीत होता था कि महाप्रभु अपने पांच मुख से हरिदास ठाकुर का गुणगान कर रहे थे हालांकि हम नहीं कर सकते ,लेकिन चैतन्य महाप्रभु अपने पांच मुख से ऐसा कर रहे थे । और जब ऐसे हरिदास ठाकुर के महिलाओं को सुना तो वे बहुत चकित हो उठे और उन्होंने, कहा !! नाम आचार्य श्री ला हरिदास ठाकुर की !! नाम आचार्य श्री लहरी दास ठाकुर की (जय ) !! हरिदासेर गुणे सबार विस्मित हय मन । सर्व - भक्त वन्दे हरिदासेर चरण ॥ अनुवाद :- हरिदास ठाकुर के दिव्य गुणों को सुनकर वहां उपस्थित सारे भक्त आश्चर्यचकित हो गए सबों ने हरिदास ठाकुर के चरण कमलों की बंदना की । (चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.52 ) वह सब आश्चर्यचकित हो गए नाम आचार्य हरिदास ठाकुर के महिमा को सुनकर । और उसके परिणाम स्वरूप सभी भक्तों ने हरिदास ठाकुर के कमल स्वरूप चरणों को वंदना करने लगे । और सभी प्रयास कर रहे थे कि उनके चरणों कमलों के धूल को पाने के लिए । यह दृश्य के उपरांत, यह लीलाएं किसी से अनछुपी नहीं रही इतिहास में और अभी इस दिन तक, यह एक अच्छा मौका है कि हम प्रातः काल में यानी अभी । और एक बात है कि हरिदास ठाकुर के सामने चैतन्य महाप्रभु नीचे बैठे हुए थे । उनके आंखें जैसे लग रहे थे भ्रमर की तरह और भगवान की आंखें कमल नयन जेसे, हरिदास ठाकुर के आंखें चैतन्य महाप्रभु के मुख पर स्थित था । स्व - हृदये आनि' धरिल प्रभुर चरण । सर्व - भक्त पद - रेणु मस्तक - भूषण ॥ अनुवाद :- उन्होंने श्री चैतन्य महाप्रभु के चरणकमलों को अपने हृदये पर धारण किया और तब समस्त भक्तों के चरणों की धूलि लेकर अपने मस्तक पर लगाई । ( चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.54 ) और उसके बाद हरिदास ठाकुर ने अपने हाथ को चैतन्य महाप्रभु के चरण कमल को पकड़े और पास लाकर अपने ह्रदय में लगाए । वह प्रस्तुति कर रहे थे । और वह यह भी प्रयास कर रहे थे कि बाकी सब एकत्रित भक्तों के चरण की धूल को अपने सिर पर लगाने का I 'श्री-कृष्ण-चैतन्य' शब्द बलेन बार बार । प्रभु - प्रभु - माधुरी पिये, नेत्रे जल -धार ॥ अनुवाद :- उन्होंने श्री कृष्ण चैतन्य के पवित्र नाम का बारंबार उच्चारण किया | जब उन्होंने महाप्रभु के मुख की मधुरता का पान किया, तो उनके नेत्रों से लगातार अश्रु बहने लगे । ( चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.55 ) रहा श्री कृष्ण चैतन्य उच्चारण कर रहे थे, श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु, श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु, श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु । वह भगवान के कमल सद्रुश मुख के सौंदर्य का पान कर रहे थें। वहां आंखें भगवान गौरांग के सौंदर्य ताको देख रहे थे, और चैतन्य महाप्रभु के कमल नेत्रों से अश्रु वह रहे थे। हरिदास ठाकुर के मुख व्यस्त था, श्री कृष्ण चैतन्य ! श्री कृष्ण चैतन्य ! और उनके हाथ व्यस्त थे भगवान के चरण कमलों को छूने में और वह प्रयास कर रहे थे कि भक्त के चरण कमल का धूल लेने की । आंखें व्यस्त थी देखने में, मुख व्यस्त था जप करने में मुख्यतः भगवान के शरीर का चरणों को छूने में । 'श्री-कृष्ण-चैतन्य' शब्द करिते उच्चारण । नामेर सहित प्राण कैल उत्क्रामण ॥ अनुवाद :- श्री कृष्ण चैतन्य का नाम चरण करते-करते उन्होंने प्राण त्याग दिए और अपना शरीर छोड़ दिया । ( चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.56 ) और अंत में वह कहें, 'श्री कृष्ण चैतन्य' ,उसके साथ उनका श्री कृष्ण चैतन्य नाम के साथ पूर्ण संबंध था और उनके आत्मा भी । और उन्होंने यह श्री कृष्ण चैतन्य कहा कर अपना शरीर त्याग दिया । महा - योगेश्वर - प्राय देखि' स्वच्छन्दे मरण । ' भीष्मेर निर्याण' सबार ह- इल स्मरण ॥ अनुवाद :- हरिदास ठाकुर की अद्भुत इच्छा -मृत्यु देखकर हर व्यक्ति को भीष्म के मरण का स्मरण हो आया , क्योंकि यह मृत्यु महान योगी की मृत्यु जैसी थी । ( चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.57 ) जब हरिदास ठाकुर जब देह त्याग कर दिए तब उसके बाद सभी ने पितामह भीष्म को याद करने लगे वह किस तरह कुरुक्षेत्र धाम में ऐसे ही श्री कृष्णा के सम्मुख दर्शन करते अपना शरीर त्यागा था, यहां पर सभी साक्षी थे हरिदास ठाकुर जगन्नाथपुरी में यह देह त्याग दिए थे । हरिदासेर तनु प्रभु कोले लैल उठाञा । अङ्गने नाचेन प्रभु प्रेमाविष्ट हञा ॥ अनुवाद :- महाप्रभु ने हरिदास ठाकुर के शरीर को उठाकर अपनी गोद में ले लिया और वह अत्यंत प्रेमावेश मैं आकर आंगन में नृत्य करने लगे । ( चैतन्य चरित्रामृत अन्त्य लीला 11.59 ) और एक बात था कि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अपने हाथों से हरिदास ठाकुर के वपु दिव्य शरीर उठाकर अपने हाथों में पकड़े थे और उसी के साथ वह नृत्य कर रहे थे ।और यह इतिहास हो गया । कैसे चैतन्य महाप्रभु ने अपने हाथों में हरिदास ठाकुर के शरीर को पकड़े हुए थे । और उनके पालकी समाधि को महोदधि ,समुद्र के तट पर लाये । वह पर उनको लाए और वहां के समुद्र के तट पर उनकी समाधि दी। नाम आचार्य श्रील हरिदास ठाकुर की समाधि की मंदिर, जो सभी गुड़िया वैष्णव है वहां पर जाने के लिए कभी भूल नहीं सकते । ॥ जय जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद श्री अद्वित चंद्र जया गौर भक्त वृंद ! ॥

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