Hindi

जप चर्चा : 31 अगस्त 2021 हरे कृष्ण, *ऋषिकेन ऋषिकेश सेवनम भक्तिर उच्चयते।* इंद्रियों के द्वारा इंद्रियों के मालिक भगवान श्री कृष्ण की सेवा करना यही भक्ति है। जब हम अपनी इंद्रियों को भगवान की सेवा में लगाते हैं तो यह इंद्रियों के लिए एक उत्सव होता है। कानों का उत्सव भगवान के पवित्र नाम का तथा भगवान की कथा का श्रवण करना है। जब हम भगवान का प्रसाद ग्रहण करते हैं तो यह हमारी जिव्हा के लिए एक उत्सव है। मंदिर मार्जन द्वारा हमारी त्वचा अथवा स्पर्श इंद्रिय उत्सव मनाती है। उसी प्रकार जब हम मंदिर में भगवान के श्री विग्रह का स्पर्श करते हैं तब भी हमारी त्वचा या स्पर्श इंद्रिय के लिए यह एक उत्सव के समान होता है। नासिका अथवा ग्रहण इंद्रियों का उत्सव भगवान को अर्पित पुष्प अथवा तुलसी को सूंघना है भगवान के श्री विग्रह का दर्शन करना यह हमारे नेत्रों के लिए एक उत्सव है। अतः आप सभी को इस प्रकार के उत्सव प्रतिदिन मनाने चाहिए। ऐसे उत्सव मनाने से हमें क्या लाभ होगा? इसका उत्तर है, *परम दृष्ट्वा निवर्तते* अर्थात् हमें उच्च स्वाद अथवा अमृत का रसास्वादन प्राप्त होगा क्योंकि भगवान अत्यंत मधुर है। श्रीपाद वल्लभाचार्य इसके विषय में कहते हैं, *मधुराधिपते अखिलम मधुरम।* कृष्णा अत्यंत मधुर है। इसी के साथ हम इंद्रिय तृप्ति के लिए हमारे द्वारा किए गए सभी प्रकार के उद्यम या इंद्रिय तृप्ति के रस से मुक्त होंगे। हम संसार के प्राकृतिक इंद्रिय सुख से मुक्त हो सकेंगे। हम स्वतंत्र होंगे। हम इंद्रिय विषयों से मुक्त हो सकते हैं। हमारी इंद्रियों के विषय भगवान होने चाहिए। और वही भगवान हमारे मन के भी विषय होने चाहिए। हमें सांसारिक मनोरंजन की आवश्यकता नहीं होती है ।यदि हमें सांसारिक मनोरंजन की आवश्यकता हो तब हम पराधीन है परंतु यदि हमें इनकी आवश्यकता नहीं है तब हम स्वतंत्र हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में ही जीव भगवान की शरण ग्रहण करता है। भगवान का आश्रय लेने के कारण वह हमारे विषय बनते हैं हमारे जीवन का लक्ष्य तथा केंद्र स्वयं श्री कृष्ण बन जाते हैं। *कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण हे।* मैं सोच रहा था कि संपूर्ण भारत स्वतंत्रता दिवस मना रहा था। यह दिन भारत या भारतवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है परंतु वैष्णव के लिए यह दिन इतना महत्वपूर्ण नहीं है। एक समय 15 अगस्त के दिन श्रील प्रभुपाद हरे कृष्ण लैंड जुहू में थे। दिन के समय जुहू मंदिर में छत पर हरिशौरी प्रभु श्रील प्रभुपाद की मसाज कर रहे थे उस समय हरे कृष्ण लैंड पर कुछ किराएदार भी रहते थे । वह सभी किराएदार दिन के समय स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए एकत्रित हुए तथा राष्ट्रगान गा रहे थे, कुछ भाषण दे रहे थे कि किस प्रकार हमने अंग्रेजों को भारत से भगा दिया और इस प्रकार भिन्न भिन्न प्रकार से जय घोष चल रहा था। श्रील प्रभुपाद ने हरीशौरी प्रभु से पूछा कि यह क्या हो रहा है? हरिशौरी प्रभु ने कहा कि हमारे किराएदार स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। श्रील प्रभुपाद ने कहा यह क्या है? स्वतंत्रता दिवस का उत्सव यह कोई बड़ा दिवस नहीं है । श्रील प्रभुपाद इस उत्सव से प्रसन्न नहीं थे और ना ही उन्होंने इसकी सराहना की। वैष्णवो के लिए स्वतंत्रता दिवस अथवा गणतंत्र दिवस का अधिक मूल्य नहीं है। श्रील प्रभुपाद भी प्रारंभ में भारत की आजादी के लिए प्रयास कर रहे थे वह गांधी के अनुयायी बन रहे थे, परंतु उसी समय उनकी प्रथम मुलाकात श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी महाराज के साथ हुई। उस समय श्रील प्रभुपाद अभय बाबू ही थे। अभय बाबू ने श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर से कहा हमें देश की आजादी को प्राथमिकता देनी चाहिए। सर्वप्रथम भारत को अंग्रेजी सरकार से मुक्त होना होगा। परंतु श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी महाराज ने कहा, नहीं नहीं, कृष्णभावनामृत का प्रचार करो। इसको प्रधानता दो। कृष्णभावनामृत का आचार, विचार , प्रचार तथा प्रसार रोका नहीं जा सकता। यह आजादी की प्रतीक्षा नहीं कर सकता है। भारत की स्वतंत्रता प्रतीक्षा कर सकती है परंतु कृष्णभावनामृत का प्रचार प्रतीक्षा नहीं कर सकता। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद अपनी इस प्रथम मुलाकात में श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी महाराज से प्रभावित हुए तथा उनकी बात मान गए एवं उन्होंने भक्तिसिद्धांत सरस्वती महाराज की शरण ग्रहण कर ली। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद ने महात्मा गांधी के आंदोलन को त्याग दिया। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद ने भारत की आजादी का विचार छोड़ दिया तथा वह श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के आदेश को पूरा करने की तैयारी में लग गए। इसी प्रथम मुलाकात में श्रील भक्तिसिद्धांता सरस्वती ठाकुर ने अभय बाबू से कहा था कि तुम बुद्धिमान हो , तुम अंग्रेजी भाषा में चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं का प्रचार करो। अभय बाबू इस मुलाकात के पश्चात गौड़िय वैष्णव बन गए तथा कालांतर में वही अभय बाबू ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद बने। श्रील प्रभुपाद के नाम में ए.सी. शब्द का अर्थ है अभय चरणारविंद। अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद की जय। यह स्वतंत्रता का उत्सव है इसलिए हमारा एक प्रश्न होना चाहिए और वह प्रश्न है हमें किससे स्वतंत्रता चाहिए। हम किससे स्वतंत्र होना चाहते हैं। जीव कभी भी भगवान से स्वतंत्र नहीं हो सकता है। फिर चाहे वह पश्चिम के लोग हो या पूर्व के। सभी लोगों का यही हाल है। भारत के लोग भारतीय नहीं रहे वह इंडियन बन गए हैं। एक समय एक पक्के भारतीय ने अपने भाषण में कहा कि मैं इंडियन नहीं हूं, मैं भारतीय हूं। भारत को 15 अगस्त के दिन आजादी तो मिल गई परंतु यहां के लोग भारतीय बनने की अपेक्षा इंडियन बन गए। अंग्रेज यहां से चले गए परंतु अंग्रेजी लोग बना गए। हमारी पतलून अंग्रेजी हो गई और जूता जापान का हो गया। अंग्रेज चले गए परंतु अंग्रेजी भाषा यही रह गई। हम सभी अंग्रेजी भाषा सीख रहे हैं परंतु हमने संस्कृत भाषा को छोड़ दिया। अंग्रेजों ने हमें चाय पीना सिखाया और हम आज भी चाय पी रहे हैं। यद्यपि भारत 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी राज्य से स्वतंत्र हुआ परंतु फिर भी आज तक वह अंग्रेजी मानसिकता से स्वतंत्र नहीं हो पाया है। हमारा रहन सहन , कपड़े पहनना , खाना-पीना , जीवन जीने की पद्धति यह सब कुछ अंग्रेजी है। इस प्रकार केवल राज्य बदला अंग्रेजी राज्य से भारतीय राज स्थापित हुआ परंतु इससे कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया। गांधीजी कहते थे कि हम राम राज्य की स्थापना करेंगे। यदि अंग्रेजी राज के स्थान पर राम राज्य की स्थापना होती तो हम कह सकते थे कि वास्तव में हम स्वतंत्र हुए हैं परंतु ऐसा नहीं हुआ। हमारे राजनेता भौतिकतावादी, साम्यवादी , लोकशाही या पूंजीवादी कहे जाते हैं। प्रभुपाद इस डेमोक्रेसी को डीमन क्रेजी कहते थे। *एई भालो एई मन एई सब भ्रम* अर्थात इस संसार में जो कुछ भी हम देख रहे हैं उसमें बुराई ही है। श्रील प्रभुपाद इसके विषय में कहते थे कि एक सूखा मल है और दूसरा गीला मल है यदि हमें उसमें से चयन करना है तो कौन सा मल लेना पसंद करेंगे। मल तो मल ही है फिर चाहे वह सुखा हो अथवा गिला दोनों ही गंदगी है। इसी प्रकार यह राज्य या वह राज्य इससे कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता। परंतु इन सभी वाद-विवादो से परे जो राज्य होना चाहिए वह महत्वपूर्ण है। *मनुष्य जब माया से मुक्त हो मायावी विचारों से मुक्त हो तथा पूर्ण रूप से भगवान श्री कृष्ण पर निर्भर हो तब हम कह सकते हैं कि हमें वास्तव में स्वतंत्रता मिली है।* इनके अभाव में हम परतंत्र ही हैं. माया की अध्यक्षता अँगरेज़ राज के समय भी थी और अब भी हैं। नई सरकार , नया संविधान बना। एक शूद्र जिन्होंने उस धर्म को छोड़ दिया जिसमे राम और कृष्ण का जन्म हुआ और फिर धर्मनिरपेक्ष संविधान बना। इस संविधान में धर्म का कोई स्थान नहीं हैं। भगवान् स्वयं भगवद गीता में कहते हैं : सर्वधर्मान परित्यज्य। कई धर्म बहुत नए हैं : ५०० वर्ष पुराण , २५०० वर्ष पुराण धर्म इत्यादि। जिस धर्म का प्रारम्भ होता हैं उसका अंत भी अवश्यम्भावी हैं। *जातस्य ही ध्रुव मृत्यु* , परन्तु भागवत धर्म सनातन धर्म हैं , इसका प्रारम्भ और अंत नहीं होता। संविधान में सनातन धर्म को अधिक स्थान नहीं दिया गया हैं। सरकार मात्र रोटी कपड़ा और मकान या केवल आपके शरीर की ही चिंता हैं , उन्हें आपकी आत्मा से कोई लेना देना हैं। इस प्रकार ऐसी सरकार की स्थापना का कोई महत्त्व नहीं हैं। वह गंभीर जीव जो कृष्ण प्राप्ति करना चाहते हैं उन्हें इससे कोई महत्त्व नहीं हैं। जो पशु जीवन जीना यह सरकार उनके लिए अच्छा हैं। *धर्मस्तु हीन: पशुभिः समान:*।इसी प्रकार कुछ वर्ष पहले एक फिल्म बनी थी जिसका नाम था रावण राज। यह सब भ्रष्ट मानसिकता की देन हैं। तो हमें यह समझना चाहिए कि वास्तविक स्वतंत्रता तब मिलेगी जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप और कीर्तन करेंगे। श्रील प्रभुपाद ने मुझे एक पत्र लिखा और कहा कि यह तुकाराम का देश हैं , परन्तु यह गंदे राजनेता इसे बिगाड़ रहे हैं। तुम यहाँ महाराष्ट्र में प्रचार करो भागवत धर्म करो। यहाँ के लोगों को भक्त बनाओ , वैष्णव बनाओ और फिर उन्हें स्वतंत्र करो। यहाँ पर यह पक्ष , वह पक्ष ये सब माया की पार्टी हैं। भारतभूमी तपो भूमि हैं परन्तु ऐसे राजनेता इसे भोग भूमि बना रहे हैं। जहाँ गाय की रक्षा होनी चाहिए वहां गाय खाई जाती हैं। भारत खाड़ी देशों में मांस का निर्यात करता हैं और वहां से पेट्रोल का आयात करता हैं , जिस देश में गौ माता सुरक्षित नहीं हैं , जहाँ गर्भ में ही बच्चे का वध करना वैद्य माना जाता हो, क्या वह देश भारत हो सकता हैं ? क्या हम स्वतंत्र हो पाए ? आप तो स्वतंत्र हो रहे हो और आप आगे भी इसका प्रचार करो। जो कृष्णभावनामृत का प्रचार करते हैं वह वास्तव में स्वतंत्र हैं। श्रील प्रभुपाद जब इंग्लैंड गए तब वहां के कई जीव कृष्ण भक्त बने और इस प्रकार इंग्लैंड के निवासी अपने देश में ही स्वतंत्र हुए। भगवान् की सेवा में लग्न और से मुक्त होना यही वास्तविक स्वतंत्रता हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभू का यह संकीर्तन आंदोलन जिसकी स्थापना श्रील प्रभुपाद ने पुनः की , यह आंदोलन सम्पूर्ण पृथ्वी पर जीवों को वास्तविक स्वतंत्रता क्या हैं , वह सीखा रहा हैं। जो जीव हरिनाम लेंगे वह स्वतंत्र हो सकते हैं। हम कहते हैं : नाम से धाम की प्राप्ति होती हैं। किसी भी जीव को चाहे कहीं भी नाम की प्राप्ति हो , फिर चाहे वह चीन में हो या इंग्लैंड में वह सोचता हैं कि एक दिन मैं मायापुर या वृन्दावन अवश्य जाऊंगा। यह उनकी स्वतंत्रता हैं , वह देश की सीमा से स्वतंत्र हो गए। इस प्रकार श्री कृष्णा चैतन्य महाप्रभु ने आदेश दिया हैं : *जारे देखो तारे कहो , कृष्ण उपदेश।* जब हम ऐसा करेंगे तब हम स्वयं भी स्वतंत्र होंगे तथा अन्यों को भी स्वतंत्र करेंगे। इस दुनिया के तथाकथित धर्म छोड़कर जब जीव भगवान् की शरण में आता हैं तो उसका उत्सव मनाना चाहिए। आप जब इस गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय से जुड़ते हैं , आपको जब शिक्षा और दीक्षा यहाँ मिलती हैं और आपको ज्ञान की प्राप्ति हैं। आप फिर दीक्षा होती हैं आपका नामकरण होता हैं , उस दिन आप वास्तव में स्वतंत्र होते हैं। प्रत्येक देश में लगभग हर स्थान पर स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं , वह पहले की सरकार से मुक्त होकर नई सरकार के आधीन हुए , एक विचारधारा का त्याग करके दूसरे को अपनाया परन्तु वास्तव में यह स्वतंत्रता कोई मूल्य की नहीं हैं। हमें यह समझना चाहिए। आप इस पर चिंतन कीजिए। जिस प्रकार दही का मंथन करने से मक्खन छाछ के ऊपर तैरने लगता हैं , वही मक्खन दही के साथ मिला हुआ था परन्तु अब वह छाछ के ऊपर तैरता हैं। आप उसे डुबाने का प्रयास करेंगे तब भी वह डूबेगा नहीं और छाछ के ऊपर ही तैरता रहेगा। उसी प्रकार जब हम कृष्णभावनामृत का अभ्यास करेंगे तब हम भी उस मक्खन की तरह इस संसार के कीचड़ से मुक्त और ऊपर रहेंगे। हम इस कांफ्रेंस को आज यहीं विश्राम देते हैं , कल आप सभी से पुनः भेंट होगी।

English

Russian