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जप चर्चा, वृंदावन धाम से, 30 अगस्त 2021 हरे कृष्ण! श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव की जय।सारा संसार जन्माष्टमी मना रहा हैं और आप भी तो जन्माष्टमी मना ही रहे हो और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाई,किसने जन्माष्टमी मनाई?सुना आपने? श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय।श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भी जन्माष्टमी मनाई।एक बार महाप्रभु जन्माष्टमी के दिन जगन्नाथपुरी में थे,तो उन्होंने भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव मनाया।आज जब मैं जप कर रहा था तो मुझे यह लीला याद आई, क्योंकि मैंने यह पहले पढ़ा था इसलिए मुझे यह लीला याद आई,इस बार मैंने सोचा कि चलो इसी को शेयर करते हैं, ठीक हैं। समय ज्यादा नहीं हैं और यह लीला थोड़ी छोटी भी हैं,छोटी परंतु प्यारी,तो आज इसी पर बात करेंगें। मध्य लीला-15.17 कृष्ण जन्म यात्रा - दिने नन्द - महोत्सव । गोप - वेश हैला प्रभु लत्रा भक्त सब ॥१७ ॥ अनुवाद-भक्तों ने कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव भी मनाया , जिसे नन्द महोत्सव भी कहा जाता है । इस अवसर पर श्री चैतन्य महाप्रभु तथा उनके भक्तों ने ग्वालों का वेश धारण किया । यह बताया गया हैं कि जन्माष्टमी के दिन नंदोत्सव संपन्न हुआ। वैसे पहली कृष्ण जन्माष्टमी तो नवमी के दिन मनाई गई थी, और नंद महाराज ने ही यह उत्सव स्पॉन्सर किया,इसलिए इसको नंदोत्सव कहते हैं। जगन्नाथपुरी में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु नंदोत्सव मना रहे थे, मतलब कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव मना रहे थे। उस दिन श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और उनके परिकरो ने गोप वेश धारण किया और इस लीला का मंचन होना था।वह नृत्य नाटिका के रूप में सब कुछ प्रस्तुत करने वाले थे। केवल कथा ही नहीं हो रही थी बल्कि नृत्य नाटक से सब कुछ प्रस्तुत कर रहे थे।उत्सव मनाया जा रहा था,तो कई सारे परिकर गोप वेश धारण करके वहां पहुंचे। कैसे पहुंचे? मध्य लीला 15.18 दधि - दुग्ध - भार सबे निज - स्कन्धे करि ' । महोत्सव - स्थाने आइला बलि हरि''हरि ' ॥१८ ॥ अनुवाद- ग्वालों का वेश धारण करके तथा कंधे में बहँगी पर दूध तथा दही के बर्तन लेकर सारे भक्त ' हरि'हरि ' का उच्चारण करत हुए महोत्सव स्थल पर आये । गोप वेश धारण किए हुए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और कई सारे परिकर कंधों पर लाठी लेकर चल रहे थे और आगे पीछे कई सारे मटके थे और उसमें दूध दही और गौरस था। उसको ढोते हुए सभी वहां पर पहुंच जाते हैं और साथ में हरि हरि, हरि हरि बोल रहे हैं। आप बोलोगे या नहीं?हरि हरि। अगर आप देख पाओ तो हम आपको बहुत सब दिखा रहे हैं। हमको वहां पहुंचना हैं। इस लीला का जो यहां वर्णन हैं, इसको जब हम ध्यानपूर्वक और श्रद्धा पूर्वक सुनेंगे तो ऑडियो का वीडियो बन जाएगा।हम कहते ही रहते हैं कि यह ऑडियो का वीडियो बन जाना चाहिए। मध्य लीला 15.19 कानात्रि - खुटिया आछेन ' नन्द ' - वेश धरि ' । जगन्नाथ - माहाति हत्राछेन ' व्रजेश्वरी ' ॥१ ९ ॥ अनुवाद- कानाइ खुटिया ने नन्द महाराज का वेश बनाया और जगन्नाथ माहाति ने माता यशोदा का वेश बना लिया । कानात्रि खुटिया नाम के सज्जन नंद महाराज की भूमिका निभा रहे हैं और जगन्नाथ माहिती बृजेश्वरी बने हैं,मतलब यशोदा मैया। यशोदा मैया की जय।यशोदा और नंद महाराज दोनों वहां पर पहुंचे हैं। मध्य लीला 15.20 आपने प्रतापरुद्र , आर मिश्न - काशी । सार्वभौम , आर पड़िछा - पात्र तुलसी ॥ २० ॥ उस समय काशी मिश्र , सार्वभौम भट्टाचार्य तथा तुलसी पड़िछापात्र अनुवाद समेत राजा प्रतापरुद्र भी वहाँ उपस्थित थे। इस उत्सव में कई सारे लोग सादर आमंत्रित हैं।यहां पर वीआईपी के नाम दिए जा रहे हैं। पुरी के राजा प्रताप रूद्र पहुंचे हैं और राजा के पुरोहित काशी मिश्र आए हैं। सार्वभौम भट्टाचार्य जी आए हैं, सार्वभौम भट्टाचार्य की जय। सार्वभौम भट्टाचार्य का भी स्वागत हैं। उन्होंने अपना आसन ग्रहण किया हैं और पड़िछा नाम के सज्जन या जगन्नाथ के सेवक भी वहां पहुंचे हैं। मध्य लीला 15.21 इँहा - सबा लञा प्रभु करे नृत्य - रङ्ग । दधि - दुग्ध हरिद्रा - जले भरे सबार अङ्ग ॥ २१ ॥ सदैव की तरह श्री चैतन्य महाप्रभु ने उल्लासपूर्वक नृत्य किया।सारे लोग दूध,दही तथा हल्दी के पीले जल से सराबोर हो गये । दही हैं,दूध हैं और उसमें हल्दी भी मिलाई गई हैं। इसको केवल दिखाने के लिए नहीं लाए हैं, जैसे नंदोत्सव में हुआ।उस नंदोत्सव में तो सारे ग्वाल बाल पहुंचे थे और सारा ब्रज ही वहां पहुंचा था,नंद के घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की। नंदलाल जब प्रकट हुए थे नंद भवन में तो सारे बृजवासी वहां पहुंचे और वह दही,दूध, छाछ लेकर आए थे। वैसे ही आज यहां जगन्नाथपुरी में हो रहा हैं और छाछ, दही और दूध पता नहीं खाया या नहीं खाया पहले तो एक दूसरे के ऊपर उसको झलका रहे हैं।छिड़का रहे हैं, मतलब एक दूसरे का दूध दही से अभिषेक कर रहे हैं। वैसे ही जगन्नाथपुरी में भी हो रहा हैं। सब के अंग में दही दूध का लेपन हो रहा हैं। इसका छिड़काव हो रहा हैं और इसी के साथ सभी अपना हर्ष और उल्लास प्रकट कर रहे हैं। वैसे ही लीला संपन्न हो रही हैं, जैसे नंदोत्सव के दिन नंद भवन में हुई थी। मध्य लीला 15.22 अद्वैत कहे , सत्य कहि , ना करिह कोप । लगुड़ फिराइते पार , तबे जानि गोप ॥२२ ॥ अनुवाद- तभी श्रील अद्वैत आचार्य ने कहा , " आप नाराज न हों । मैं सच कह रहा हूँ । यदि आप इस लाठी को चन्द्राकार रूप में घुमा सको , तो मैं समझूगा कि आप ग्वाले हो । " बीच में ही अद्वैत आचार्य प्रभु उठे, उन्होंने माइक लिया और कहने लगे कि अगर आपको इस बात से ऐतराज ना हो या क्रोध ना आए तो मैं एक बात कहने जा रहा हूं,आप लोग यहां गोप वेश धारण करके तो आ गए हो लेकिन आप सिद्ध करो के आप सचमुच गोप हो। केवल नाटक करके नहीं दिखाना हैं। आपसे सिद्ध करो कि आप गोप हो।हे नित्यानंद प्रभु,हे चैतन्य महाप्रभु आप सिद्ध करो। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद प्रभु तैयार हुए और उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया और मध्य लीला 15.23 तब लगुड़ लञा प्रभु फिराइते लागिला । बार बार आकाशे फेलि ' लुफिया धरिला ॥२३ ॥ अनुवाद- महाप्रभु ने अद्वैत आचार्य की चुनौती को स्वीकार करके बड़ी - सी लाठी ली और वे उसे चारों ओर घुमाने लगे । वे बार - बार लाठी को आकाश में उछालते और गिरते समय पकड़ लेते । आपने कभी ऐसा खेल देखा होगा, हम भी जब छोटे थे तो ऐसा खेल गांव में खेलते थे।बड़ी लाठी को उछाल कर आकाश में फैंकते थे और फिर उसे हाथ में पुण: पकड़ना होता था। हाथ में धारण करना होता हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ऐसे ही कर रहे थे। लाठी को आकाश में फेंक देते और लाठी जब नीचे आ जाती तो उसे पकड़ लेते। मध्य लीला 15.24 शिरेर उपरे,पृष्ठे,सम्मुखे , दुइ - पाशे । पाद - मध्ये फिराय लगुड़ , देखि लोक हासे ॥२४ ॥ अनुवाद- श्री चैतन्य महाप्रभु अपनी लाठी को घुमाते और उछालते और कभी कभी अपने सिर पर ले जाते , कभी पीठ पीछे , कभी सामने , कभी बगल में और कभी दोनों पाँवों के बीच । यह देखकर सारे लोग हँसने लगे । साथ ही साथ श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने उस लाठी को लिया हुआ हैं और इधर-उधर घुमाते हुए उसके साथ खेल रहे हैं। उसे गोल गोल घुमा रहे हैं, आगे पीछे घुमा रहे हैं।वह कइ प्रकार से इस लाठी के साथ खेल कर रहे हैं और यह जब सब लोगों ने देखा तो सब हा हा हा हा करके हंसने लगे। आप हंस नहीं रहे। क्या आपको यह कोई चमत्कार नहीं लग रहा हैं? यह चमत्कार श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने चमत्कृत किया।जिस प्रकार से उन्होंने उस लाठी के साथ खेल दिखाए उससे यह चमत्कारी लग रहा था।इतनी तेजी से वह उसे घुमा रहे थे, ऐसा लग रहा था कि वह लाठी गोलाकार हैं या वह सब स्थान पर हैं, जैसे अग्नि के मशाल को अगर आप घूमाते हैं तो ऐसा लगता है कि मशाल हर स्थान पर हैं। मध्य लीला- 15.25 अलात - चक्रेर प्राय लगुड़ फिराय । देखि ' सर्व लोक - चित्ते चमत्कार पाय ॥२५ ।। अनुवाद-जब श्री चैतन्य महाप्रभु लाठी को अग्निबाण ( अलातचक्र ) तरह घुमा रहे थे , तो देखने वालों के हृदय चमत्कृत हो गये । अब नित्यानंद प्रभु आपकी बारी हैं, नित्यानंद प्रभु ने भी खेल दिखाया।नित्यानंद प्रभु कौन हैं?बलराम होइलो निताय brajendra-nandana jei, śacī-suta hoilo sei, balarāma hoilo nitāi( हरि हरि बिफले) नंद महाराज के नंद नंदन ही तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु बने हैं और बलराम नित्यानंद प्रभु बने हैं, तो यह सचिनंदन लीला खेल के दिखा रहे हैं,जन्माष्टमी उत्सव मना रहे हैं।किसना जन्माष्टमी उत्सव मना रहे हैं?बताओ?श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु किसका जन्माष्टमी उत्सव मना रहे हैं? खुद का ही जन्माष्टमी उत्सव मना रहे हैं।वह तो अपना खुद का ही बर्थडे मना रहे हैं। 15.27 प्रतापरुद्रर आज्ञाय पड़िछा - तुलसी । जगत्राथेर प्रसाद - वस्त्र एक लत्रा आसि ॥२७ ॥ अनुवाद-महाराज प्रतापरुद्र की आज्ञा पाकर मन्दिर का निरीक्षक तुलसी भगवान जगन्नाथ के उतारे वस्त्रों में से एक वस्त्र ले आया । पड़िछा तुलसी प्रभु मंदिर से आए थे और मंदिर से कुछ विशेष भेट लाए थे।वह वहां का जगन्नाथ प्रसाद वस्त्र लाए थे। M 15.28 बहु मूल्य वस्त्र प्रभु - मस्तके बान्धिल । आचार्यादि प्रभुर गणेरे पराइल ॥२८ ॥ अनुवाद-यह बहुमूल्य वस्त्र श्री चैतन्य महाप्रभु के सिर पर लपेट दिया गया।अद्वैत आचार्य,आदि दूसरे भक्तों ने भी अपने सिरों पर इसी तरह ,वस्त्र लपेट लिये।पड़िछा तुलसी प्रभु ने जगन्नाथ जी का वस्त्र चेतनय महाप्रभु के मस्तक पे बांध दिया।आपने देखा होगा कि जैसे वस्त्र कभी-कभी मस्तक पर बांध देते हैं,वैसे उन्होंने महाप्रभु के मस्तक पर वस्त्र बांध दिया।इस प्रकार उनको जगन्नाथ जी का प्रसाद उत्सव वस्त्र प्राप्त हुआ। M 15.29 कानात्रि - खुटिया , जगन्नाथ , दुइ - जन । आवेशे विलाइल घरे छिल यत धन ॥२ ९ ॥ अनुवाद-कानाइ खुटिया जिसने भावावेश में नन्द महाराज माहाति जिसने माता यशोदा का वेश धरा था , घर में संचित सारे धन को बांट दिया।नंद बाबा ने नंद उत्सव के दिन या जो कन्हाई कुटिया नंद बाबा की भूमिका निभा रहे थे, नंदोत्सव के दिन आवेश में आ गए मतलब वह स्वयं ही नंद बाबा और यशोदा मैया के आवेश में आ गए,वैसे तो वह नाटक कर रहे थे लेकिन नाटक करते-करते सचमुच ही उनमें नंद बाबा के भाव उदित हो गए,उनको ऐसा भाव आ रहा था जैसा यशोदा सोचती थी और उन्होंने खूब दान धर्म किया और घर में जितना भी धन था वह सब बांट दिया या दान में दे दिया। M 15.30 देखि ' महाप्रभु बड़ सन्तोष पाइला । माता - पिता - ज्ञाने दुँहे नमस्कार कैला ॥३० ॥ अनुवाद-श्री चैतन्य महाप्रभु यह देखकर अत्यन्त सन्तुष्ट हुए।उन्होंने उन दोनों को अपने पिता तथा माता के रूप में स्वीकार करके नमस्कार किया । श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी इस उत्सव में सम्मिलित हुए हैं और जिस ढंग से यह उत्सव संपन्न हुआ वह अद्भुत हैं।क्योंकि वहा और भी ग्वाल बाल एकत्रित हुए हैं और नंद बाबा और यशोदा भी वहां हैं और कई सारे वीआईपी भी हैं।तो उनकी उपस्थिति से या उनके भाव को देखकर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को संतोष हुआ हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रसन्न हैं और वह भी श्रीकृष्ण के भाव में आ गए। तो क्या वह कृष्णभावना भावित बने? नहीं वह कृष्णा ही बने। तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु आगे बढ़े हैं। M 15.31 परम - आवेशे प्रभु आइला निज - घर । एइ - मत लीला करे गौराङ्ग - सुन्दर ॥३१ ॥ अनुवाद- श्री चैतन्य महाप्रभु परम आवेश में अपने निवासस्थान पर लौट आये।इस तरह श्री चैतन्य महाप्रभु ने,जो गौरांग सुन्दर के नाम से जाने जाते थे ,विविध लीलाएँ कीं । और इसी के साथ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का कीर्तन और नृत्य करते हुए सभी अपने अपने निज घर पहुंचे हैं, चैतन्य महाप्रभु पहुंचे हैं। और इस प्रकार श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु में जन्माष्टमी के दिन लीला संपन्न की। श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव की जय। तो यह लीला काफी विशेष और अद्भुत हैं,कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भक्त बने हैं और वह भी जन्माष्टमी मना रहे हैं।और हम सभी के समक्ष एक आदर्श भी रख रहे हैं कि अगर जन्माष्टमी संपन्न करनी हैं, तो कैसे करनी हैं, जैसे चैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद प्रभु जन्माष्टमी में सम्मिलित हुए वैसे ही। क्या-क्या आयोजन हुआ और...हरि हरि।अब हमारी बारी हैं या हमारा भाग्य हैं कि हमें भी ऐसा मौका मिल रहा हैं। M 19.151 ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान् जीव । गुरु - कृष्ण - प्रसादे पाय भक्ति - लता - बीज ।। अनुवाद -सारे जीव अपने - अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में घूम रहे हैं।इनमें से कुछ उच्च ग्रह - मण्डलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह - मण्डलों को।ऐसे करोड़ों भटके जीवों में से कोई एक अत्यन्त भाग्यशाली होता हैं,जिसे कृष्ण की कृपा से अधिकृत गुरु का सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिलता हैं । कृष्ण तथा गुरु दोनों की कृपा से ऐसा व्यक्ति भक्ति रूपी लता के बीज को प्राप्त करता हैं और आज के दिन कम से कम जो यहां पर उपस्थित हैं, कितने उपस्थित हैं, यहां पर 900 भक्त सम्मिलित हैं, उनको भगवान सद्बुद्धि दे रहे हैं,आप सब को भगवान सद्बुद्धि दे रहे हैं या भगवान ने आपके लिए ऐसी व्यवस्था की हैं। इस प्रकार श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जन्माष्टमी महोत्सव संपन्न किया। संभावना हैं कि 1965 में भारत के बाहर भक्तों ने जन्माष्टमी महोत्सव मनाया था और आज 2021 में पूरे विश्व भर में जन्माष्टमी उत्सव मनाया जाएगा। इस सभा में हजार भक्त हैं, वह तो मनाएंगे ही,सारे मंदिरों में और केवल मंदिरों में ही नहीं, अपने अपने घरों में भक्त जन्माष्टमी मनाएंगे या जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाएगा। हजारों लाखों करोड़ों इस्कॉन के अनुयाई जन्माष्टमी मनाएंगे। वैसे भी आजकल लोगों की ऐसी समझ हैं कि जन्माष्टमी मतलब हैं,वह जन्माष्टमी जो इस्कॉन के मंदिरों में मनाई जाती हैं, हमारे इस्कान दिल्ली और ऐसे ही कई सारे मंदिरों में कई सारे न्यूज़ चैनल पहुंच जाते हैं,टेलीकास्ट करते हैं। इस्कान के जन्माष्टमी का टेलीकास्ट करते हैं। यहां भी मीडिया पहुंच जाएगा और यहां के उत्सव का प्रसारण भी होगा और लोग घर बैठे बैठे दर्शन कर सकते हैं।घर बैठे बैठे जन्माष्टमी का उत्सव,घर पहुंचाया जाएगा। मंदिर में आज हमको बुलाया हैं और हम आज महोत्सव में शामिल हो रहे हैं।हैप्पी बर्थडे टू यू श्री कृष्णा एंड यू में नेवर टेक बर्थ अगेन( हंसते हुए) हैप्पी बर्थडे टू कृष्णा और आप सब को भी मेरी बहुत-बहुत बधाइयां, शुभकामनाएं और साथ में यह भी कहना होगा कि जिस जिस ने भी इस जपा टाक को ज्वाइन किया हैं, यू में नेवर टेक बर्थ अगेन। यहां कृष्ण के पुनर्जन्म का तो प्रश्न ही नहीं हैं,कृष्ण को कहने की आवश्यकता ही नहीं हैं कि आप का पुनर्जन्म ना होए। आपकी पुनः मृत्यु ना हो, कृष्ण तो इन सब बातों के परे हैं। किंतु अगर हम इन उत्सवों में सम्मिलित होंगे, कैसे? पूरी समझ के साथ, पूरे दिल से, श्रद्धा से और तत्वत: इस उत्सव को मनाएंगे तो पुनः जन्म नहीं होगा। BG 4.9 “जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || ९ ||” अनुवाद हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता हैं। तो आप दोबारा जन्म ना लें। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। तो आज यहा रुकना होगा।हरे कृष्णा।

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