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जप चर्चा 21 सितंबर 2021 गौरांङ्ग’ बलिते ह’बे पुलक-शरीर। ‘हरि हरि’ बलिते नयने ब’बे नीर॥1॥ अनुवाद:- वह दिन कब आयेगा कि केवल ‘श्रीगौरांङ्ग’ नाम के उच्चारण मात्र से मेरा शरीर रोमांचित हो उठेगा? कब, ‘हरि हरि’ के उच्चारण से मेरे नेत्रों से प्रेमाश्रु बह निकलेंगे? हरि हरि 811 स्थानों से आज भक्त जप कर रहे हैं हमारे साथ जुड़े हैं हरि हरि आपसे क्या कहें कबे हबे ए दिन आमार हरी नामे रुचि और क्या गुची कबे हबे ए दिन आमार शुद्ध नाम रुचि अपराधे गुची हरिनाम में रुचि कब होगी वह तब होगी जब हम चाहेंगे। निरपराध जप करेंगे तो रुचि होंगे वैसे पहले रुचि होंगी फिर अपराध से मुक्त होंगे उल्टा नहीं होता पहले पाप से या पाप के विचारों से आचारो से मुक्त नहीं होंगे पहले तो नाम में रुचि ही आएगी या दोनों साथ में भी होता है। ऐसा भागवत का सिद्धांत है नामे रुचि जीवे दया वैष्णव सेवा नाम में रुचि ही जीवन का लक्ष्य है। नाम भगवान है तो नाम में रुचि मतलब भगवान में रुचि है परम दृष्ट्वा निवर्तते उचा स्वाद भगवान में भगवान के नाम में रूप में गुण में लीला में धाम में भक्तों में वैष्णव सेवा जीव दया जीवों के लिए दया ये उचे स्वाद का ही परिणाम है। नाम में रुचि वैष्णव की सेवा चल रही है वैष्णव की सेवा हम से नहीं होंगी नाम में रुचि नहीं हुए तो वैष्णव की सेवा भी नहीं होगी या वैष्णव की सेवा नहीं है तो नाम में रुचि में भी नहीं होगी और जीवो में दया दिखानी होगी जीवो में दया दिखाएंगे तो हम भगवान के प्रिय बन जाएंगे। तस्मात मनुषेसु वह भक्त मुझे प्रिय है जो प्रचार करते हैं। मेरा संवाद अर्जुन के साथ हुआ उसका प्रचार करते हैं औरो को बताते हैं वह भक्त मुझे प्रिय है। ऐसा प्रचार करने वाले तो फिर दया दिखाएंगे जीवे दया तो भगवान प्रसन्न होंगे और उसी के साथ नाम में रुचि बढ़ेगी एक बात मैं सोच रहा था कि सोचते ही रहता हूं। नामाआचार्य श्रील हरिदास ठाकुर की जय वैसे इनके स्मरण मात्र से कुछ होता है कुछ होता है बहुत कुछ होता है। या नाम में या नाम मे रुचि बढ़ती है या नाम लेने की प्रेरणा प्राप्त होती है। नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर का स्मरण करते ही 300000 नाम का हर रोज जप करने वाले नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर और हर रोज 300000 नाम का जप करते थे कम से कम मैं तो ऐसा नाता जोड़ते रहता हूं। नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर का नाम पड़ते है सुनते ही तीन लाख जप करने वाले नाम आचार्य श्री हरिदास ठाकुर तो कुछ स्पुर्ति प्रेरणा प्राप्त होती है। जैसे ही नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर जी का नाम सुनते ही जो नाम के आचार्य जो रहे हुए तो कल उनका तिरोभाव तिथि महोत्सव हम मना रहे थे। तो सोच रहा था की कल जितना भी कहा वह ज्यादा नहीं कहां पर्याप्त नहीं हुआ नामाचार्य श्रील हरीदास ठाकुर का जो प्रातः स्मरणीय भी है और प्रातः काल भी है वह उनका स्मरण करते हैं। नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर को ब्रह्म हरिदास भी कहते हैं ब्रह्म हरिदास क्यों कहते हैं ब्रम्हा ही थे ब्रह्मा ने अवतार लिया ऐसे चैतन्य महाप्रभु ने कहा जगन्नाथ पुरी में आप ने अवतार लिया है वैसे भगवान के अवतार नहीं है कृष्ण अवतार और अवतारी और उनके अवतार लेकिन ब्रह्मा भी एक अवतार है दृष्टि से गुना अवतार हैं। रजोगुण कि वह अधिष्ठाता है तो वह ब्रह्मा स्वयं प्रकट हुए ब्रह्मा वैसे हमारे परंपरा के प्रथम आचार्य है ही हम ब्रह्म मध्व गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय हमारा है। तो हमारे आचार्य ब्रह्मा नाम के भी आचार्य है। वैसे तो वह सामान्य रूप से आचार्य है ही लेकिन वह नाम क्या चार्य हुए या भगवान ने उनको नाम का आचार्य बना दिया यह पदवी देने वाले श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ही थे तुम नामाचार्य हो नाम के आचार्य बनके उन्होंने गौड़ीय वैष्णव के समक्ष आदर्श रखा हुआ है और लोग तो कहते हैं हम बहुत व्यस्त हैं हम जप नहीं कर सकते तो ब्रह्मा से अधिक कोई अधिक हो व्यस्त हो सकता है क्या बिजनेसमैन हो जो भी हो आप इतनी व्यस्तता है एक दिमाग से वो सब संभाल नहीं सकते तो उनके चार दिमाग है ताकि वह एक ही साथ चारों दिशा में देख भी सकते हैं और निर्णय ले सकते हैं। कार्य कर सकते हैं निर्माण का कार्य कर सकते है तो इतने व्यस्त ब्रह्मा ने फुर्सत निकालकर या कहो उन्होंने जपा रिट्रीट किया इस जीवन में उन्होंने इतने सालों के लिए उन्होंने जप ही किया भगवान का नाम ही लिया और कुछ लगभग किया ही नहीं नाम ही लिया इसी के साथ वैसे उन्होंने फिर भगवद्गीता 4.8 “परीत्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || ८ ||” अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | कलियुग के धर्म की नाम संकीर्तन की स्थापना की नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर ने की है या ब्रह्मा ने की है ब्रह्म हरिदास ठाकुर बनकर की है और जन्म लेते हैं मुस्लिम परिवार में इस से ये दिखा रहे हैं कि जन्म तो लिया मुस्लिम परिवार में लेकिन कर रहे हैं हरे कृष्ण हरे कृष्ण तो इससे यह भी सिद्ध होता है या दर्शाया जा रहा है कि व्यक्ति किसी भी धर्म का हो सकता है देश का जाति का लिंग का हो सकता है मुस्लिम भी जप कर सकते हैं ना तो इस संसार में कोई मुस्लिम है ना कोई हिंदू है ना इसाई है यह सब सापेक्ष सत्य है जैव धर्म जीव का धर्म तो सनातन धर्म है भागवत धर्म है नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर ने यह यह दर्शाया है कि हम तथाकथित किसी धर्म में जन्म लिया होगा या किसी भी देश में हो लेकिन कोई चिंता नहीं है परवाह की बात नहीं है हम तो कीर्तन या जप कर ही सकते हैं ठीक है। फिर विरोध होगा तो होने दो तो विरोध तो हुआ ही है चांद काजी जो मुस्लिम डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट उन्होंने इतना विरोध किया कीर्तन का विरोध किया और फिर नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर को भी सजा पीटो इसको जब तक ये नाम लेना बंद नहीं करता तब तक उसकी पिटाई करो या उसकी जान लो अगर यह रुकता नहीं है। तो तब यह परीक्षा भी पास हो गए नामाचार्य श्रीलहरीदास ठाकुर इतनी असुविधा और इतनी बेइज्जती चौराहे पर हजारों लोग इकट्ठे हुए और पिटाई हो रही है नामाचार्य हरिदास ठाकुर को पीटा जा रहा है चाबुक से और लाठी से श्रील प्रभुपाद तो इसकी तुलना ईसाई मसीह को जीजस क्राइस्ट को सूली पर चढ़ाया उनका जो विरोध किया जा रहा था मिडलिस्ट की बात है तो वह भी नहीं छोड़ रहे थे धर्म और धर्म का प्रचार ईसाई मसीह जीसस क्राइस्ट तो उनको सूली पर चढ़ाया इसलिए श्री प्रभुपाद कहते हैं कि वह भी हमारे आचार्य है ईसाई मसीह और उसी के साथ हमारे नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर ने जो सहन किया या चैतन्य महाप्रभु ने जो आपने शिक्षाष्टक में तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना अमानिना मानदेन कीर्तनीयः सदा हरिः॥3॥ अनुवाद:- स्वयं को मार्ग में पड़े हुए तृण से भी अधिक नीच मानकर, वृक्ष से भी अधिक सहनशील होकर, मिथ्या मान की भावना से सर्वथा शून्य रहकर दूसरों को सदा ही मान देने वाला होना चाहिए। ऐसी मनः स्थिति में ही वयक्ति हरिनाम कीर्तन कर सकता है। न धनं न जनं न सुन्दरीं कवितां वा जगदीश कामये। इसका ज्वलंत उदाहरण नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर ही है उसकी तुलना नहीं हो सकती तुलना अतुलनीय है और उदाहरण है तृणादपि सुनीचेन काअमानिन मान देन का अतुलनीय उदाहरण हैं और तरोरपी सहिष्णुता का ताकि वह क्या करते रहे कीर्तनीय सदा हरी और फिर कहा हैं कि कीर्तनिया सदाहरि तब होगा जब उसके लिए शर्ते है क्या शर्ते थी यह तीन चार शर्ते हैं नम्रता,सहनशीलता,औरों का सम्मान करना और खुदके लिए सम्मान की अपेक्षा नहीं रखने वाले वो सैदव भगवान का जप करते रहते हैं ऐसा मन की स्तिथि तभी संभव है क्या कीर्तनिया सदा हरि यह भी सिखाये ये नामाचार्य हरिदास ठाकुर अपने उदाहरण से की कीर्तनीय सदा हरी कैसे करना है। तो यह करना होगा त्रुनादपि सुनीचेन तरोरपी सहिष्णुना होना होगा हरि हरि नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर एक समय सप्तग्राम में थे जहां रघुनाथदास गोस्वामी जन्मे थे रघुनाथ दास गोस्वामी को भी संग मिला हरिदास ठाकुर का संग मिला और वहां एक धर्म सभा में नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर नाम की महिमा का गान कर रहे थे और बस नाम आभास ही पर्याप्त मुक्त होने के लिए ऐसा कह रहे थे तो वहां के एक पाखंडी पंडित ने विरोध किया मुक्ति के लिए तो इतने सारे प्रयास करने होते हैं कितना शास्त्रों का अध्ययन करना होता है वेदांती होना होता है और फिर मुश्किल से मुक्ति प्राप्त होती है और आप कह रहे हो कि केवल नाम आभास से ही मुक्ति यह संभव नहीं है मैं यह मान्य नहीं करता तो भरी सभा में इस प्रकार संवाद तो नहीं कहेंगे वाद विवाद हो रहा था ऐसे हरिदास ठाकुर तो सवाद ही चाहते थे लेकिन वह वाद-विवाद कर रहा था वह श्राप दे रहा था तुम्हारा ऐसा होगा तुम्हारा वैसा होगा तो इससे हम नाम का महिमा कोई अतिशयोक्ति नहीं है अतिशयोक्ति हैं नाम का महिमा इतना अतिशय उक्ति है यह समझना नाम अपराध है तो यह व्यक्ति नाम अपराधी कर रहा था तो हुआ यह कि कुछ दिनों में यह तथा कथित पंडित उसका नाक गल गया उसका नाक ही गिर गया हरि हरि नामाचार्य हरिदास ठाकुर की जय नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर वैसे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के बहुत पहले ही जन्मे थे लगभग 50 वर्ष पूर्व इनका जन्म था जैसे अद्वैत आचार्य और नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर लोग हैं यह सम कालीन रहे वैसे वह भी बांग्लादेश में बेनापोल नाम का स्थान है जहां नामाचार्य श्री हरिदास ठाकुर अपने 300000 नाम का जप कर दिया करते थे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे और उनका नाम और कीर्ति सर्वत्र फैल रही थी। सर्वत्र नाम आचार्य श्री हरिदास ठाकुर ऐसे हैं वह वैसे वह बढ़िया है । और रामचंद्र खान करके थे , वह वैसे हिंदू ही थे लेकिन उनका नाम रामचंद्र खान था । उनसे यह सहा नही गया और वैसे और भी जो हिंदू थे वह सब मिल कर हरिदास ठाकुर का नाम बदनाम करना चाहते थे । उन्होंने एक वैश्या को तैयार किया , सबसी अच्छी वैश्या , आप समझ सकते हो मतलब वह नव युवती होगी , सुंदर होगी , ऐसी होगी , चालाक होगी औरों को मनाने के लिए ताकि उनका पतन करेगी , उनके कामुकता को जगायेगी , ऐसी वह प्रख्यात विख्यात थी । वह वेश्या क्या नाम था ? लक्ष्य हीरा ! लक्ष्य हीरा उसका नाम था । उसको नियुक्त किया गया था और नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर जप कर ही रहे थे फिर रात्रि का समय भी हुआ जप चल ही रहा था तब उस समय यह लक्ष्य हीरा वेश्या पहुंच गई और उसने अपने सारे नखरे , अपने सारे प्रयास किए ताकि नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर का अपनी ओर ध्यान आकृष्ट करे ताकि वह अंग संग करें और इस हरि नाम भूल जाए । इस प्रेम में क्या होता है ? चलो काम की बात करते हैं , हम काम में व्यस्त हैं । इनको मैं कामुक बनाऊंगी और काम की वासना मैं जगाऊंगी ऐसा उस लक्ष्य हीरा का लक्ष्य था , उसने हर प्रयास किया कई सारे निवेदन किए किंतु नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर तस से मस नहीं हुए हैं और उनका जप चलता ही रहा । वैसे वह कहते रहे कि थोड़ा जप बाकी है अब थोड़ा ही जप बाकी है , यह जब पूरा होते ही फिर तुम्हारी इच्छा की पूर्ति होगी या जो तुम कह रही हो उसके और ध्यान देंगे किंतु उनका जप चलता ही रहा , चलता ही रहा , चलता ही रहा पूरी रात बीत गई नामचार्य श्रील हरिदास ठाकुर का जप पूरा नहीं हुआ । पूरा कभी होता ही नहीं था , कीर्तनिय सदा हरि करते रहते थे । बेचारी उसको जाना पड़ा दूसरे प्रातकाल भोर का समय हुआ फिर दूसरे रात को आई और वही बाते दोहराई गई और फिर उसको जाना पड़ा फिर तीसरी रात को तब नामाचार्य श्रील हरीदास ठाकुर इस वैश्या से प्रभावित नहीं हुए , उन पर वैश्या ही प्रभावित हो गई । और वहा बैठे-बैठे उसको हरि नाम सुनना ही पड़ा , हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। और मन ही मन में नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर का सम्मान करने लगी कितने महान पुरुष है ! कितने तपस्वी हैं ! कितने यशस्वी हैं ! उसी के साथ तीसरे रात्रि के अंत में वह नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर की शरण में आई और शिष्यस्ते अहम प्राधिमाम त्वम परप्नम , मैं आपकी शिक्षा हूं , मुझे स्वीकार कीजिए फिर वैसे ही हुआ और नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर ने उसे शिक्षा बनाया और फिर उसको यह भी कहा कि अब क्या करो ? तुमने जो भी यह वेश्या का धंधा करके धन कमाया , वह सारा काला पैसा उसका सारा बंटवारा कर दो , दान दे दो । उस से मुक्त हो जाओ तब उसने वैसे ही किया मतलब उसमें वैराग्य भी उत्पन्न हुआ था । ज्ञान , वैराग्य , भक्ति और यह लक्ष्य हीरा भी जप करने लगी । पता है कितना जप करने लगी ? वह भी तीन लाख जप करने लगी । (हंसते हुए) नामाचार्य श्री हरिदास ठाकुर ने बेनापल नाम का जो स्थान है वह इस लक्ष्य हीरा को दे दिया । तुम अब यहां की आचार्य बनो , मैं आगे बढ़ता हूं । नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर वहां से आगे बढ़े और उन दिनों में यह बांग्लादेश , भारत ऐसा कोई भेद नहीं था लेकिन अब बांग्लादेश बना है पहले भारत ही था । वह हरिदासपुर आ गए वह बेनापुर से ज्यादा दूर नहीं है , वह भारत में ही है । वहां वह अपना साधन भजन करने लगे यह हरिदासपुर उस नगर का नाम , इतना बड़ा नगर नहीं है किंतु उसका नाम ही हरिदासपुर हुआ । जहां कुछ समय के लिए साधना कि ,जप तप कि । वह स्थान अब इस्कॉन के साथ है , वहां इस्कॉन हरिदासपुर बन चुका है । मुझे लगता है 1976 के मायापुर फेस्टिवल के उपरांत श्रील प्रभुपाद अपने कई सारे शिष्यों के साथ , हम लोग गए थे । मैं भी श्रील प्रभुपाद के साथ हरिदासपुर गया था । और अब वहाँ पूरे इस्कॉन की स्थापना मंदिर , प्रचार और वह हरिदास ठाकुर का स्मृति भी है । वहासे और आगे बढ़ते हैं और फिर पुलिया नाम का स्थान है । वहां हरिदास ठाकुर एक गुफा में रहने लगे और फिर वहां भक्त उनको आकर मिलते थे , उनका संग प्राप्त करते थे , उनके साथ जप करते थे । लेकिन वहां आने वाले भक्तों को पता चला कि वहां केवल हरिदास ठाकुर ही नहीं रहते वहां एक बहुत बड़ा सांप भी रहता है । हरिदास ठाकुर गुफा सांप के साथ बांट रहे थे । यह पता चलने से भक्तों का आना जाना थोड़ा कम हो गया , भक्त डर रहे थे लेकिन नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर निर्भय थे । वहां साँप भी है और वहां बगल में वह रहते थे जप करते थे । उनका निवास स्थान गुफा ही था , ऐसा निर्भय बनाया उनको इस जप ने , इस हरि नाम के उच्चारन से , वीतराग भय क्रोध कृष्ण कहते हैं । वित मतलब आसक्ती , भय मतलब भय , क्रोध त्यागना चाहिए , त्यागा जा सकता है जब व्यक्ति जप करके कृष्णभावनाभावीत होता है । हरिदास ठाकुर पूर्णता कृष्णभावनाभवित थे इसीलिए वह पूर्णता निर्भय थे । लोगों का आना जाना थोड़ा कम हुआ तो हुआ क्या ? यह सर्प ही इस गुफा को छोड़कर चला गया । उस सर्प ने सोचा कि यह सही नही है , मेरे यहां होने के कारण कई सारे भक्त हरिदास ठाकुर को मिल नहीं सकते वह डरे हुए हैं तब वह साप ही वहां से चला गया । हरिदास ठाकुर ने गुफा को नहीं छोड़ा , साप में गुफा को छोड़ा । पुलिया से पास ही शांतिपुर है । जहां अद्वैत आचार्य रहा करते थे । अद्वैत आचार्य का जन्म स्थान नहीं , जन्म तो कुछ अलग था ईस्ट बंगाल में मतलब बांग्लादेश में हुआ था वह भी यहां शांतिपुर में स्थानांतरित हुए थे । हरिदास ठाकुर का अद्वैत आचार्य के साथ मिलना जुलना चल रहा था और वह दोनों साथ में भजन कीर्तन किया करते थे जब श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का मायापुर नवदीप में जन्म हुआ तब यह दो व्यक्ति नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर , अद्वैत आचार्य को ही पता चला और वैसे वह सर्वज्ञ भी है । चैतन्य महाप्रभु ने जन्म लिया है यहा शांतिपुर में गंगा के तट पर हरिदास ठाकुर , अद्वैत आचार्य नाचने लगे , नृत्य करने लगे , हर्ष उल्लास का प्रदर्शन हो रहा था । निमाई , निमाई , निमाई ने जन्म लिया है औरों को पता ही नहीं चल रहा था कि क्या हुआ ? अचानक क्यों आप नाच रहे हो , गा रहे हो , इतने हर्षित हो । उसका कारण था उनको पता चला गौरांग प्रकट हुए हैं । वैसे चानकाजी या मुस्लिम सरकार ने उनको कैद खाने में भी भेजा । उनका जीवन चरित्र बड़ा विस्तृत है । मार्केटप्लेस में उनकी पिटाई करके उनका जब नहीं बंद करा पाए । "अरे तुम मरते क्यों नहीं ?" वह पीटने वाले कह रहे थे । तुम मरते क्यों नहीं ? अगर तुम नहीं मरोगे तो चांदकाजी हमारी जान लेगा । कृपा करके मर जाओ नहीं तो हम मरने वाले हैं । फिर नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर ने कहा ठीक है । ठीक है । मैं ही मर जाता हूं । तब उन्होंने मरने का स्वांग किया । योगी जैसे वह अंतर्मुख हुए और फिर जीवन का कोई लक्षण नहीं दिख रहा था तब उन लोगों ने हरिदास ठाकुर को गंगा में फेंक दिया । अब मर गया , धन्यवाद! तुम मर गए (हंसते हुए) गंगा में फेंक के यह लोग फिर लौट चुके थे लेकिन हरिदास ठाकुर मरे नहीं थे उन्होंने जब फेंक दिया तब उन्होंने गंगा को पार कर लिया और उनका कीर्तन चलता रहा फिर दोबारा उनको गिरफ्तार किया और कैद में भेजा । फिर वह पर समस्या खड़ी हुई सारे कैदी को नचाने लगे (हंसते हुए) कारागार में सारी क्रांति , वह कारागार संकीर्तन भवान ही हो गया । उन सब को उस कीर्तन से मुक्त किया , फिर हरिदास ठाकुर को भी मुक्त करना पड़ा नहीं तो अगली वाली बैच भी नाचने लगेंगी , कीर्तन करने लगेगी फिर अंत में नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर जगन्नाथपुरी पहुच जाते हैं । चैतन्य महाप्रभु पहुंच ही चुके थे हरिदास ठाकुर मुस्लिम परिवार में जन्मे थे इसलिए मंदिर में प्रवेश तो संभव ही नहीं था और उनको भी कोई चिंता नहीं थी न तो उन्होंने कभी प्रवेश करने का प्रयास भी किया । वह रहने लगे , जगन्नाथपुरी में सिद्ध बकुल है और वही से जगन्नाथ स्वामी का जगन्नाथ स्वामी का दर्शन करते थे । जगन्नाथ स्वामी के मंदिर के ऊपर का जो चक्र है सुदर्शन चक्र उसका दर्शन करते थे और यह विधि भी है । चक्र का दर्शन किया भगवान का दर्शन हो गया । कई लोग चक्र को भोग लगाते हैं । जगन्नाथपुरी के कई परिवार या कई दुकानदार भी अपने घर का , दुकान का कोई सामग्री है , मिष्ठान है , भोजन है वह चक्र को खिलाते , भोग लग गया , जगन्नाथ प्रसाद हो गया । नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर ऐसे दर्शन करते थे लेकिन वैसे दर्शन तो जेई गौर जेई कृष्ण सेई जगन्नाथ, जगन्नाथ ही चैतन्य महाप्रभु के रूप में दर्शन दिया करते थे । चैतन्य महाप्रभु स्वयं जगन्नाथ का दर्शन करने के लिए जाते , दर्शन करने के लिए जगन्नाथ मंदिर में जाते थे और दर्शन देने के लिए यहा सिद्ध बकुल आ जाते थे । हरिदास ठाकुर को दर्शन देने के लिए भगवान वहां जाते थे । गौरांग चैतन्य महाप्रभु जाते थे और यहीं पर बकुल वृक्ष को उगाए और चैतन्य महाप्रभु उनकी छत्रछाया में उनका जप होने लगा और इसी स्थान पर कईयों को संग मिला । दूर देश से आने वाले , वृंदावन से आने वाले , कई सारे वरिष्ठ भक्त , रूप गोस्वामी , सनातन गोस्वामी यह सब नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर का संग चाहते थे उनके साथ रहते थे । रूप गोस्वामी और हरिदास ठाकुर जगन्नाथपुरी में साथ में रहे जहां हरिदास ठाकुर रहते थे और साथ में जप करते थे ,साथ में कीर्तन करते थे ।हरि हरि । कल के दिन , कल पूर्णिमा थी भाद्रपद पूर्णिमा के दिन नामाचार्य श्री हरिदास ठाकुर का तिरोभाव तिथि उत्सव संपन्न हुआ । उसकी भी लीला कुछ हमने कल कहीं । आप चैतन्य चरित्रामृत के अंत लीला में पढियेगा । एकादश परिच्छेद , 11 वा अध्याय श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के चरण नामाचार्य हरिदास ठाकुर के हात में थे और उन चरणों को उन्होंने अपने वक्षस्थल पर धारण किया था , उनके मुख्य मंडल का दर्शन हरिदास ठाकुर कर रहे थे और यह कह कर , हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। यह भी कह रहे थे किंतु इस समय श्रीकृष्ण चैतन्य ही उन्होंने कहा या ऐसे कहते कहते ही उन्होंने अपने शरीर को त्यागा और अपना जीवन सफल बनाया । और हमारा जीवन भी सफल बनाने के उद्देश्य से ही उनकी सारी लीलाएं , उनका आचरण , व्यवहार रहा । नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर की जय । और इसी के साथ हरि नाम की जय । हरि नाम प्रभु की जय । श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय । जगन्नाथ पुरी धाम की जय ।गौर प्रेमानंद हरि हरि बोल । हरे कृष्ण।

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