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जप चर्चा, नागपुर से, 20 सितंबर 2012 हरे कृष्ण...! आज है भद्रपोर्णिमा। भद्रपद मास कि पोर्णिमा है आज। भद्रपोर्णिमा महोत्सव कि जय...! आज का दिन विशेष है, महान है। जानना चाहते हो! क्यों महान है? आज के दिन क्या हुआ हैं। किस के कारण आज का दिन महान हुआ, ये पोर्णिमा महान मानी जाती हैं। खासतौर पर इस्कॉन के भक्त या गौड़ीय वैष्णव के लिए भी भद्र पोर्णिमा का दिन महान है। सुन रहे हो! आप सभी, किसी का जप चल रहा है और भी क्या क्या, नींद भी आ रही है, लेकिन कुछ तो नोट बुक भी लेकर बैठे है, लिखने के लिए। आज के दिन के बारे में थोड़ा ही बताते हैं। स्वरुपानंद अपना हात खडा कर के बैठे हैं। देखते हैं समय की सीमा भी हैं। विश्व हरि नाम उत्सव की जय...! हरिनाम महोत्सव संपन्न हो रहा है आज के दिन कि भी महिमा है आज के दिन विश्वरूप महोत्सव कहलाता हैं। विश्वरूप महोत्सव कि जय...! जो भी जानकारी है हम को प्राप्त है, उपलब्ध है उसके अनुसार श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अपने भ्राताश्री विश्वरूप के खोज में थे,विश्वरूप ने लिया था संन्यास और फिर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भी लिया संन्यास और चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ पुरी पहुंचे थें। वहां के भक्तों को चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि नहींं नहीं मुझ को जाना है मैं दक्षिण भारत कि यात्रा करूंगा। क्यों जाना चाहता हो? मैं मेरे भ्राता विश्वरूप को खोजना चाहता हूंँ,उनसे मिलना चाहता हूंँ;तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रस्थान किए और दक्षिण भारत कि यात्रा करते हुए मध्य भारत कहो या महाराष्ट्र पहुंचे। महाराष्ट्र में पंढरपुर पहुंचे। पंढरपुर धाम कि जय...! पंढरपुर धाम पहुंचे।ये भी जानकारी मील रही है।आज के दिन वे पंढरपुर में थें चातुर्मास के दिन। आज के दिन में चातुर्मास का नाम आया,निकला तो बताते हैं चातुर्मास के दो मास पूरे हो गए,कितने बच गए और दो मास बच गए। व्ही फॉर विक्ट्री भी होता हैं। आज से तृतीय मास प्रारंभ हो रहा हैं।एक महीने भर के लिए दूध का सेवन नहीं करना है कुछ ज्यादा तपस्या तो नहीं है,और बहुत कुछ ले सकते हो बस दूध छोड़कर और यह भी देख सकते हो आपने लिए गए संकल्प चातुर्मास के लिए हुए अपने अपने संकल्प कैसे पूरे हो रहे हैं। थोड़ा खुद का सिंहावलोकन कीजिए। पिछले दो महीने का आपका परफॉर्मेंस कैसा रहा चातुर्मास के दौरान चातुर्मास के संकल्प कैसे पूरे कर रहे हो या कुछ छूट रहा है या कुछ प्रक्रिया है तो उसे सुधार करो। आज के दिन कर सकते हो! ठिक है! श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु आज के दिन पंढरपुर में पहुंचे तो मैं, महाप्रभु जब मिले थे श्रीरंगपुरी से, अब नहींबताऊंगा श्रीरंगपुरी कौन है? फिर उनका चरित्र बताना पड़ता है आपको,हुँ...श्रीरंगपुरी ने पंढरपुर धाम में चंद्रभागा के तट पर उन्होंने बताया श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को उनके भ्राताश्री विश्वरूप पंढरपुर आए थें, लेकिन उनका नाम अब विश्वरूप नहीं रहा उनका नाम शंकरारन्य स्वामी आप ये याद रख सकते हो लिख के रख सकते हो आप, तो शंकरारन्य स्वामी पंढरपुर में आए थे और वे यहां रहे पंढरपुर में अभी वे नहीं रहे। ये आज का दिन विश्वंभर या उन्हीं का जो नाम बना शंकरारन्य स्वामी उनके अंतर्धान का आज का दिन नहीं है। आज अंतर्धान नहीं हुए। विश्वरूप वैसे बलराम के विस्तार रहे। तत्व नहीं बताएंगे आपको किंतु आज के दिन चैतन्य महाप्रभु को पता चला कि विश्वरूप इस संसार को छोड़ चुके हैं, अंतर्धान हो चुकें हैं,वह समाचार आज के दिन मिला तो फिर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने चातुर्मास के बीच में ही आज के दिन दाढ़ी कि, मुंडन किया। कई बाल वगैरह रखते हैं चातुर्मास में ऐसा भी संकल्प रखते हैं इस्कॉन में प्रभुपाद ने ऐसा प्रोत्साहन नहीं दिया बाल बढ़ाओ दाढ़ी रखो, प्रभुपाद ने कैयौ कि बाल और दाढ़ी उतार दिए। ये जब प्रभुपाद को पता प्रभुपाद जब वृंदावन आए तो वहा के भक्त चातुर्मास इस प्रकार से मना रहे थे लेकिन प्रभुपाद ने मना किया तो सभी ने फटाफट दाढ़ी उतार दी या बाल उतार दिए, मुंडन किया ,तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने मुंडन किया, दाढ़ी तो नहीं थी, आपको पता है ना भगवान कि दाढ़ी नहीं होतीं। कृष्ण कि, राम कि, चैतन्य महाप्रभु कि शायद पहली बार सुन रहे हो क्या आप! बाल तो होते हैं लेकिन दाढ़ी नहीं होती ।दाढ़ी किसकी होती है जो उम्र में बढ़ जाते हैं। 18,19,20,21साल के हो गए तो दाढ़ी आ जाती है लेकिन भगवान तो षोडशवर्षीय रहते हैं सब समय। "आद्यं पुराणपुरुषं नवयौवनश्च।" भगवान कभी बुढे़ नहीं होते 20 साल के या 25 साल के कभी बुढे़ नहीं होते हैं वो, उनकी उम्र सदा के लिए शोडशवर्षीय रहती है ये भी इक कारण है कि भगवान कि दाढ़ी नहीं रहती है लेकिन चाहिए तो दाढ़ी हो भी सकती है जैसे अद्वैताचार्य, वह भी भगवान है,महाविष्णु है लेकिन उनकी दाढ़ी हैं।श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने आज मुंडन किया उनकों पता चला कि उनके भ्राताश्री विश्वरूप जीनका नाम शंकरारन्य हुआ था। वे इस संसार में नहीं रहें। विश्वरूप महोत्सव कि जय...! इस विश्वरूप महोत्सव के दिन ही या फिर कहिए भाद्रपद पूर्णिमा के दिन ही 1959 में तारीख नोट कीजिए 17 सितंबर श्रील प्रभुपाद ने संन्यास लिया। संन्यास ग्रहण करने का ये आज का दिन हैं। श्रील प्रभुपाद जी गृहस्थ थें थोडे़ समय के लिए कलकत्ता में अधिकतर उन्होंने अपनें गृहस्थ जीवन को प्रयाग में बिताया। प्रभुपाद वनप्रस्थी रहे तो झांसी में रहे कुछ समय झांसी में बिताए और फिर वहां से श्रील प्रभुपाद झांसी से मथुरा गयें। और मथुरा में केशव गौड़ीय मठ उनके गुरु भ्राता केशवप्रज्ञान गोस्वामी महाराज उस मठ को चला रहे थें। वहां पर श्रील प्रभुपाद रहने लगे मथुरा में और फिर आज के दिन श्रील प्रभुपाद ने अपने गुरु भ्राता ऐसी पद्धति है अगर आपके स्वयं के गुरु नहीं है आप को संन्यास देने के लिए तो अपने संन्यासी गुरु भ्राता से आप सन्यास ले सकते हो मतलब माताएं लेगी नहीं लेकिन जो पुरुष लेकिन है जिन की तैयारी है ऐसे तो सोचो इसके बारे में आजकल तो कोई सन्यास वगैरह तो कोई सोचता भी नहीं हैं बस एक ही आश्रम चलता है इस कलयुग मे एक ही आश्रम चलता है गृहस्थाश्रम। पहिला गृहस्थाश्रम और अंतिम गृहस्थाश्रम।जीना वहा और मरना भी वही पर।चार आश्रम तो भुल जाओ ब्रह्मचारी आश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम संन्यास आश्रम इसमें कोई नहीं फसता। वैसे संन्यास कठिन भी है इस कलयुग में और शास्त्रों में पांच बातें वर्जनीय कहीं है उसमें से संन्यास, कलयुग में संन्यास लेना वर्जनीय है हरि बोल! अच्छी बात हुई,हमने सुन लिया।वर्जनीय है इसलिए हम नहीं लेते।लेकिन प्रभुपाद ने ले ही लिया आज के दिन संन्यास और वह स्थान था मथुरा केशवजी गौड़ीय मठ और फिर तुम्हारा नाम भक्तिवेदांत स्वामी ऐसा भी केशव प्रज्ञान गोस्वामी ने कहा और नामकरण हुआ और बड़ी अचरज कि बात श्रील प्रभुपाद को उनके संन्यास गुरु जो उनके गुरु भ्राता ने कहा कि कुछ बोलिए! प्रवचन कीजिए! श्रील प्रभुपाद ने प्रवचन किया अंग्रेजी भाषा में,क्योंकि उनको श्रील भक्तिसिध्दांत सरस्वती ठाकुर का आदेश था। याद है पाश्चात्य देशों प्रचार करो कोनसी भाषा में प्रचार करने के लिए कहा था आपकी परीक्षा हो रही है देखो या बोलो उत्तर दो! कोनसी भाषा में जानते हो कन्नड़ भाषा में कि ब्रज भाषा में? अंग्रेजी भाषा में प्रचार करो! संन्यास लिया जाता है प्रचार के लिए, प्रभुपाद को अपने गुरु के आदेश के अनुसार तो अंग्रेजी भाषा में प्रचार करना था तो उस दिन मतलब आज के दीन जब वह संन्यास लिए तो अंग्रेजी भाषा में प्रवचन किया वहा भक्त उपस्थित थे उनको संबोधित किया। हरि हरि! और आज के दिन भद्र पूर्णिमा तो है सुन ही रहे हो तो क्या हुआ आज शुकदेव गोस्वामी जो कथा सुना रहे थें यह पहली कथा है इसके पहले किसी ने अधिकारिक तौर पर कथा नहीं सुनवाई थी श्रीमद्भागवत कथा। राजा परीक्षित को कथा सुना रहे थे गंगा के तट पर हस्तिनापुर के पास आपको पता लगवाइए हस्तिनापुर कहाँ है, होना चाहिए हस्तिनापुर कहां है तमिलनाडु में है या लंका में है हस्तिनापुर हम सुनते तो रहते हैं हस्तिनापुर लेकिन कहां है यह अधिकतर हम लोग नहीं जानते या फिर दिल्ली को हस्तिनापुर कहते हैं दिल्ली हस्तिनापुर नहीं है दिल्ली है इंद्रप्रस्थ। जमुना के तट पर है इंद्रप्रस्थ और गंगा के तट पर है हस्तिनापुर ।मेरठ जानते हो मेरठ से 30 किलोमीटर पूर्व दिशा में और वहां पर कथा सुना रहे थे हस्तिनापुर उनकी राजधानी थीं हरि हरि ! कथा प्रारंभ हुई थी नवमी को भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की नवमी को कथा प्रारंभ हुई थी और आज आज के दिन कथा का समापन हुआ हरि हरि! पूर्णाहुति का दिन है आज का दिन हैं और उसी भागवत मे कहा है जो भी इस के उपलक्ष में भागवत ग्रंथ का वितरण करेगा करते हैं वह कृष्ण भावना भावित होंगे, भगवत धाम लौटेंगे और ग्रंथ वितरण का श्रीमद् भागवत इसीलिए इस्कॉन में अब श्रीमद् भागवत के सेट के वितरण का कार्यक्रम हो रहा हैंउस संबंध में आज एक नैमिषारण्य में यज्ञ भी हो रहा है उत्सव मनाया जा रहा है आपने जरूर किया होगा भागवत सेट का वितरण क्या किया है आपने अगर नहीं किया होगा तो आज करो या करते रहो हम जानते हैं। भद्र पूर्णिमा अभियान कि जय..! इस्कॉन का एक नया अभियान शुरू हो गया है यह भद्र पूर्णिमा अभियान है मतलब भागवत बुक सेट वितरण का मैराथन पहले हम गीता का मैराथन कर रहे थें, करते रहेंगे अभी हम भागवत सेट का वितरण मैराथन करेंगे तो अभी मैं आ रहा था शुरू हो रहा है भागवत सेट का वितरण आज यह भद्र पूर्णिमा है तो श्रीमद् भागवत कथा का संबंध किस पूर्णिमा के साथ है आज भागवत कथा का समापन हुआ तो वैसे श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण भी करना है,करते रहना हैं। हरि हरि! "नष्टप्रायेष्वभद्रेषु नित्यं भागवतसेवया । भगवत्युत्तमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्ठिकी ॥" (श्रीमद्भागवतम् 1.2.18) अनुवाद:- भागवत की कक्षाओं में नियमित उपस्थित रहने तथा शुद्ध भक्त की सेवा करने से हृदय के सारे दुख लगभग पूर्णतः विनष्ट हो जाते हैं और उन पुण्यश्लोक भगवान् में अटल प्रेमाभक्ति स्थापित हो जाती है , जिनकी प्रशंसा दिव्य गीतों से की जाती है । नित्यम भागवत सेवया केवल भागवत ग्रंथ का वितरण ही नहीं करना है बल्कि उन्हें पढ़ना भी है पहले में ग्रंथों का वितरण करना है उसके बाद में ग्रंथों को अध्ययन भी हैं। हम सारे विद्यार्थी हैं तो विद्यार्जन करना है गीता, भागवत में जो विद्या राजविद्या, और भक्ति का जो शास्त्र है उसका हमें अध्ययन करना है श्रवण,कीर्तन,स्मरण करना हैं। ठीक है! आज के दिन एक विशेष घटना घटी जगन्नाथपुरी में.. श्री जगन्नाथ पुरी धाम कि जय...! हम पंढरपुर में थें पंढरपुर में हमे पता चला आज क्या हुआ 500 वर्ष पहले पूर्व चैतन्य महाप्रभु आये वहां से हम ने मथुरा कि बात की, केशवजी गौड़ीय मठ में आज मथुरा में प्रभुपाद जी का संन्यास हुआ और फिर पंढरपुर के उपरांत मथुरा के उपरांत हमने हस्तिनापुर कि बात की वहां पर गंगा जी के तटपर श्री भागवत कथा का समापन हुआ, पूर्णाहुति हुई तो अब जगन्नाथ पुरी जाते हैं जय जगन्नाथ..! जगन्नाथ पुरी धाम कि जय...! जगन्नाथ पुरी धाम में नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर का जो निवास स्थान पंढरपुर के भक्त सुन रहे हैं प्रल्हाद तो सुन रहे हैं बाकी के भक्त सुन रहे हैं मंदिर के भक्त। हरि हरि! पंढरपुर कि हमने कथा कि सुने कि नहीं पता नहीं कितने भक्तों ने सुनी, प्रह्लाद प्रभु जगन्नाथ पुरी के बगल में उनका जन्म हुआ हमारे इस्कॉन पंढरपुर के अध्यक्ष है प्रह्लाद प्रभुजी है प्रल्हाद प्रभुजी सुन रहे हैं कुछ भक्तों के साथ तो जगन्नाथपुरी में सिध्द बकुल नाम का स्थान आज भी है सिध्द बकुल नाम का वृक्ष आज भी है उस वृक्ष को श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु उगाये थे जगन्नाथ का दातुन प्लास्टिक का नहीं था वो बकुल वृक्ष कि एक छोटी सी टहनी चैतन्य महाप्रभु लेकर आए और नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर जहां जप किया करते थें सदैव कीर्तनीय सदा हरी चलता था उनका तीन लाख नाम जप करने वाले नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर कि सेवा में चैतन्य महाप्रभु ने वहां पेड़ उगवाया और वह फटाफट उग भी गया और उसकी शाखाएं फैल गई और उसकी आज छाया हो गई और उसकी छत्रछाया में नामाचार्य हरिदास ठाकुर अब जप कर सकते थें नहीं तो पहले धूप में ही बैठके जप कर रहे थें श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु में ऐसी व्यवस्था की तो उसी स्थान पर आज के दिन नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर का तिरोभाव हुआ। चैतन्य चरित्रामृत में उस का विस्तृत वर्णन है एक अध्याय ही है अंत लीला एकादश परिच्छेद अंत लीला के ग्यारहवें अध्याय में इस सब लीला का वर्णन है नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर उनको जब पता चला अंदाजा लगा कि चैतन्य महाप्रभु स्वयं ही अब धीरे-धीरे प्रस्थान कि तैयारी कर रहे हैं फिर हरिदास ठाकुर ने सोचा कि मैं वह दूरदिन नहीं देखना चाहता हूंँ चैतन्य महाप्रभु के प्रस्थान के पहले मैं प्रस्थान करना चाहता हूंँ।ऐसा निवेदन ऐसा संवाद भी उन्होंने चैतन्य महाप्रभु के साथ नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर का, तो उन्होंने अपनी इच्छा व्यक्ति कि प्रस्थान कि, तो चैतन्य महाप्रभु जान गए और उनकी इच्छा पूर्ति हेतु श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु एक दिन मतलब आज के दिन ही कई भक्तों के साथ कीर्तन करते हुए चैतन्य महाप्रभु सिद्ध बकुल पहुंचे तो नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर उन्होंने महाप्रभु को सभी भक्तों के चरणों मे साष्टांग दंडवत प्रणाम किया हुआ हैं। कीर्तन हो ही रहा था तो नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर ने श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के चरणकमल अपने हाथों में धारण किए और फिर उन चरण कमलो को अपने वक्षस्थल पर रखा भगवान के चरण कमल है हाथ में नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर के हाथ में और उनकी दृष्टि है आंखों से चैतन्य महाप्रभु के मुख मंडल का दर्शन कर रहे हैं वे सुंदरलाल शचीदुलार और मुख से चैतन्य महाप्रभु का नाम पुकार रहे हैं और पुकारते पुकारते आखिरकार अंतिम बार उन्होंने कहा कि कृष्ण चैतन्य और समाप्त, तो फिर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु हरिदास ठाकुर के वपु को उठाए हैं और चैतन्य महाप्रभु कीर्तन में नृत्य करने लगे और कीर्तन और नृत्य के साथ उनकी शोभायात्रा कहो या अंतिम यात्रा समुद्र के तट पर सभी गए। चैतन्य महाप्रभु हरिदास ठाकुर के शरीर को उठाए थे फिर पालकी में भी रखें, सभी ढो भी रहे हैं और फिर वहां पर उनके अंतिम संस्कार हुए। वहां पर एक गड्ढा बनाएं चैतन्य महाप्रभु खुद खुदाई कर रहे थे और वपु को वहां रख दिए और वहां कि जो वालू है समुद्र के तट पर यह सब हो रहा था। जगन्नाथ प्रभु के कुछ वस्त्र ,कुछ पुष्प भी अर्पित किए गए नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर को, इस प्रकार नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर समाधि महोत्सव संपन्न हुआ कीर्तन कर रहे थे फिर सभी ने स्नान किया और पुन्हा सभी नगर में लौटे तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु सभी से भिक्षा मांग रहे थें। दुकानो में बाज़ारों जहां मिष्ठान या अन्य पदार्थ कि बिक्री होती हैं ऐसा अन्न महाप्रभु इकट्ठा कर रहे थे क्योंकि इस उत्सव का समापन प्रसाद वितरण से होगा। नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर के स्मृति में भोजन का आयोजन होगा, उसके लिए श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं भिक्षा मांग रहे हैं। दान दो !कुछ भोग दो!कुछ अन्न दो!पत्रं पुष्पं फलं तोयं दो! कुछ मिष्ठान दो! आखिरकार सभी भक्त बैठे और वहां महाप्रसाद का वितरण हुआ आज के दिन जगन्नाथपुरी में नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर के प्रयान का नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर के प्रयान की तुलना चैतन्य चरित्रामृत में पितामह भीष्म के प्रयान के साथ कि गई हैं। उनका कुरुक्षेत्र में प्रयान हुआ वे शरशैय्या पर लेटे थे और प्रस्थान होना है भीष्म देव ये जब श्रीकृष्ण को पता चला उस समय वह हस्तिनापुर में थे,पांडवों को साथ में लेकर श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र लौटते है और भीष्म पितामह दर्शन कर रहे थे जैसे हरिदास ठाकुर दर्शन कर रहे थे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का वैसे ही पितामह भीष्म भी दर्शन कर रहे थे। इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले - गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से निकले इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले - आप आ जाना जमुना का तट हो, बंसीलाल हो, आप आ जाना राधा को भी साथ ले आना, वो छबि मन में बसी हो जब प्राण मन से निकले... इन दोनों का प्रस्ताव नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर का प्रस्थान और पितामह भीष्म का प्रस्थान के समय भगवान ने स्वयं को उपलब्ध कराया। वहा उपस्थित रहे भगवान फिर क्या कहना । ” अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् | यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ||” (श्रीमद्भगवद्गीता 8.5) अनुवाद:-और जीवन के अन्त में जो केवल मेरा स्मरण करते हुए शरीर का त्याग करता है, वह तुरन्त मेरे स्वभाव को प्राप्त करता है | इसमें रंचमात्र भी सन्देह नहीं है | अंते नारायण स्मृति हो ही गयीं अंत में भगवत धाम पहुंचते हैं नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर इस प्रकार से एक आदर्श रखे हैं हम सभी के समक्ष, मरना है तो मारना है तो मतलब कोई पसंद है क्या मरना है तो नहीं मरना चाहते हो तो नहीं मरना है तो मारना है ही तो कहते हैं मरो कैसे मारना चाहिए यह नामचार्य श्रील हरिदास ठाकुर ने हमें सिखाया हैं। हरि हरि! नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर कि जय...! श्रील प्रभुपाद संन्यास महोत्सव कि जय...! श्रील शुकदेव गोस्वामी महाराज कि जय..! जिन्होंने भागवत कथा का समापन किया। और वहां पंढरपुर में.. विश्वरूप महोत्सव कि जय...! शंकरारन्य स्वामी कि जय...! और चैतन्य महाप्रभु कि जय...! और श्री रंगपुरी कि भी जय...! जिन्होंने यह कथा ,वार्ता सुनाई चैतन्य महाप्रभु को शंकरारन्य के पंढरपुर के प्रस्थान कि, इस प्रकार आज का दिन विशेष है। ठीक है!हरे कृष्ण!

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