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जप चर्चा - 01-Oct-2019 हरे कृष्ण आज हमारे साथ 480 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं I जब हम जानते हैं कि हम मनुष्य हैं और वास्तव में यदि हम मनुष्य हैं जब हम यह जानते हैं, तो हम तुरंत ही कृष्ण भावना भावित हो जाते हैं ,धार्मिक बन जाते हैं क्योंकि “ धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः II ऐसा कहा जाता है यद्यपि हम धार्मिक नहीं हो तब भी धार्मिक होने का प्रयास करते हैं I कृष्ण भावना भावित भक्त बनने के लिए प्रयास करते हैं I जब हमें यह पता चलता है कि हमारा जन्म कलयुग में हुआ है और अभी यह कलयुग चल रहा है, यहां हरिनामेव केवलम ही आधार है I तब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना प्रारंभ करते हैं I इसके पश्चात हमें यह भी पता चलता है कि स्वयं भगवान कृष्ण 500 वर्ष पूर्व स्वयं ही श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में इस धरा धाम पर पधारे थे और, उन्होंने इस हरि नाम संकीर्तन जो इस कलयुग का युग धर्म है, इसकी स्थापना की I जो भाग्यवान जीव हैं, वे इस गौड़ीय वैष्णव गुरु परंपरा से जुड़ते हैं और इस हरिनाम को स्वीकार करते हैं I भगवान ने हमें भाग्यवान बनाया I इस प्रकार से हम एक आध्यात्मिक गुरु की शरण लेते हैं I जब हम उनकी शरण लेते हैं तब हम यह संकल्प लेते हैं कि अब हम नियमित रूप से प्रतिदिन कम से कम 16 माला का जप अवश्य करेंगे I जब प्रातः काल का ब्रह्म मुहूर्त का समय होता है उस समय हमें एक स्थान पर बैठकर इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना चाहिए ,इसके अतिरिक्त कोई अन्य कार्य करना उस समय करने योग्य नहीं I हमें यह भी पता होना चाहिए कि ब्रह्म मुहूर्त के समय में जो जप किया जाता है वह सर्वोत्तम जप होता है I उस समय हम बहुत ध्यान पूर्वक जप कर सकते हैं I अतः हमें प्रातकाल जल्दी उठने के लिए जल्दी सोना चाहिए I जब आपको यह पता चलता है कि कल सुबह भी मुझे जप करना है और ध्यान पूर्वक जप करना है तो इसकी तैयारी आपको एक दिन पहले या उस रात्रि में करनी होती है I आपको यह सोचना चाहिए कि किस प्रकार से मेरे कल का जप सावधानीपूर्वक और ध्यान पूर्वक हो I अतः आपको अपने कार्यकलाप उस प्रकार से करने चाहिए I इस प्रकार से प्रातः काल के समय जब हम उठते हैं ,तो आप ब्रह्म मुहूर्त में उठकर के अपना आसन बिछाइये , आसन सामान्य होना चाहिए, आसन पर बैठकर आपको जप करना चाहिए I आसन के कई अंश होते हैं उसमें आसपास का वातावरण भी सम्मिलित होता है I आप अन्य भक्तों के संग में बैठकर जप कर सकते हैं ,आप अपने विग्रह के समक्ष बैठकर जप कर सकते हैं , इस्कॉन मंदिर में या घरों में भी बैठ कर आप जप कर सकते हैं , जो आपके जप के अनुकूल हो I जब हम जप करते हैं तो उस समय हमें हमारी जिब्हा का प्रयोग करना चाहिए I श्रील प्रभुपाद कहते हैं कि जप करते समय जिव्हा में कंपन होना चाहिए ,ध्वनि उत्पन्न होनी चाहिए, वो हमें मानसिक जप के लिए प्रोत्साहित नहीं करते I तो आपको अपनी जिव्हा से ठीक प्रकार से उच्चारण करते हुए जप करना चाहिए I इस प्रकार जब हम स्पष्ट रूप से हरिनाम का उच्चारण करते हैं तो यह हरिनाम हमारे कानों तक पहुंचता है और तब हम उसका श्रवण कर पाते हैं I कल हमने यह बताया था कि श्रवण करते समय हमारा मन उसमें संलग्न होना चाहिए I मन को पता होना चाहिए कि हम क्या श्रवण कर रहे हैं I जो भी बात हमारे कानों तक पहुंचती है, मन को उसे स्वीकार करना चाहिए , ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए I इसका अर्थ यह होता है कि जब हम जप करते हैं तब हमारा मन जागृत होना चाहिए I मन यदि उस समय सो रहा होगा या अन्य बातों का चिंतन कर रहा होगा या एक प्रकार से जागृत स्थिति में नहीं होगा तो वह ठीक प्रकार से श्रवण नहीं कर सकता I हमें हमारे मन को अन्य सभी विचारों से मुक्त रखना चाहिए I जब हम इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करें और इस मंत्र की दिव्य ध्वनि हमारे कानों तक पहुंचे तो मन प्रतीक्षा कर रहा हो, कि कब यह मंत्र की ध्वनि सुनाई दे और कब मैं इसे ग्रहण करुं I मन को जागना चाहिए ताकि ध्यान पूर्वक हरे कृष्ण महामंत्र कर सके I अतः इस प्रकार से उस समय जप, श्रवण ,कीर्तन एक ही समय में संपन्न होता है I यहां पर जिव्हा एक तत्व है ,मन है ,और कान है , ये तीनों ही इसमें भागीदार होते हैं परंतु इसके साथ ही साथ एक अत्यंत आवश्यक तत्व है जो कि हमारे ध्यान पूर्वक जप में सहयोगी है और वह है बुद्धि I बुद्धि को उस समय कार्यशील रहना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि बुद्धि उस समय निरीक्षण करती है, कि क्या सभी कार्य ठीक प्रकार से हो रहे हैं? क्या हमारा मन हरे कृष्ण महामंत्र का श्रवण कर रहा है अथवा नहीं ? यह मन किसी अन्य स्थान पर तो नहीं चला गया अथवा क्या हम सो तो नहीं रहे ? तो यह सभी बातें हमें कौन बताएगा ? यह बुद्धि का कार्य है , जो इन सभी बातों को देखती हैं और निरीक्षण करती है इसलिए हमारी बुद्धि तीव्र होनी चाहिए जो इन सभी बातों का निरीक्षण कर सके और ध्यानपूर्वक श्रवण कर सके I इन सभी तत्वों के अलावा एक और है जिसे हमारे जप में सम्मिलित होना चाहिए, और वह है हमारी आत्मा I हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि जप करते समय हम हमारी आत्मा को भी उसने संलग्न करें I अर्थात जब हम इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप कर रहे हैं उस समय आत्मा को इस हरे कृष्ण महामंत्र का श्रवण करना चाहिए I इस जप के द्वारा आत्मा को आहार मिलता है और आत्मा की पुष्टि होती हैI मन और आत्मा द्वारा अन्य की भी भागीदारी होती है I इस प्रकार से जो सर्किट है या जो परिपथ है वह पूरा होना चाहिए इसमें शॉर्टसर्किट नहीं होना चाहिए I जब हम जप प्रारंभ करते हैं तो एक प्रकार से जिव्हा जप करती है ,परंतु वास्तव में तो आत्मा ही है जो हरे कृष्ण महामंत्र का जप करती है I यदि किसी शरीर में आत्मा नहीं है तो जिव्हा जप नहीं कर सकती I मन तो पहले से ही शरीर छोड़ चुका होता है यदि आत्मा नहीं है, यदि किसी के शरीर में आत्मा नहीं है तो जप करने का प्रश्न ही नहीं उठता I अतः आत्मा ही जप करती है और यह हरिनाम समस्त अंगों के माध्यम से होता हुआ पुनः आत्मा तक पहुंचता है, तब यह परिपथ पूरा होता है I इस प्रकार से आत्मा जप करती है, वह जिव्हा तक पहुँचता है , जिव्हा द्वारा उच्चारण किया जाता है वह कान तक पहुंचता है, कान उसका श्रवण करते हैं फिर वह मन तक पहुंचता है और मन पुनः आत्मा तक पहुंचIता है I इस संपूर्ण प्रक्रिया में जब यह हो रहा होता है तब बुद्धि का कार्य अत्यंत आवश्यक है I बुद्धि उस समय क्रियाशील रहनी चाहिए, यह उस समय निरीक्षण करती है कि क्या यह सब ठीक प्रकार से हो रहा है अथवा नहीं? इस प्रकार से बुद्धि साक्षी होती है कि परिपथ पूरा हो रहा है या नहीं ? और भगवान स्वयं भी साक्षी रहते हैं वे अनुमन्त रहते हैं I अतः हमें आत्मा के जप को पूरा आत्मा तक श्रवण करवाना है इस परिपथ को पूरा करना है और जब यह सर्किट या परिपथ पूर्ण होता तब इसे योग कहा जाता है और वह योग क्या है ? योग का वास्तविक अर्थ होता है आत्मा और परमात्मा का मिलन I इस भक्ति के द्वारा यह आत्मा उस परमात्मा से मिलती है I यह भक्ति योग है यहां आत्मा जप करती है यह अत्यंत सूक्ष्म है यह तत्व ठीक प्रकार से आपको समझना चाहिए कि कैसे यह होता हैI सब कुछ इस भक्ति में सेवा द्वारा संपन्न होता है , हमारी आत्मा परमात्मा से मिलती है तब वह परमात्मा को प्रणाम करती है और उनसे प्रार्थना करती है I तो यहां मुख्य तत्व यह है कि हरिनाम के माध्यम से आत्मा परमात्मा से मिलती है और उनका मिलन होता है और वास्तव में तो हरिनाम स्वयं ही भगवान है I हमें सावधानीपूर्वक जप करना चाहिए I हमारे हृदय की गहराइयों में यह आभास होना चाहिए कि हमारी आत्मा का परमात्मा से मिलन हो रहा है I अतः इस प्रकार से यह आत्मा सोचती है ,अनुभव करती है और कार्य करती है I हम सभी कहते हैं कि यह मन के कार्य हैं परंतु नहीं ,आत्मा इन सभी कार्यों को करती है , आत्मा की एक प्रकार से आध्यात्मिक इच्छा उत्पन्न होती है कुछ करने की, यह अंतरंग होता हैI हमारा यह जो सूक्ष्म शरीर या अंतःकरण जिसने मन ,बुद्धि और अहंकार इसमें संलग्न होते हैं ,तो बुद्धि भी वहां उपस्थित होती है और हमारा जो मन है वह आध्यात्मिक विचारों से ओतप्रोत हो जाता है I अतः अब हम इस कॉन्फ्रेंस को यहीं विराम देते हैं I आज का उपसंहार यह है कि आज हमने यह संपूर्ण विधि आपको बताई कि किस प्रकार यह जप प्रारंभ होता है और किस प्रकार आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है I आपको इसका प्रयास करना चाहिए और प्रत्येक समय जब आप जप करते हैं तब आपको इसे अंगीकार करना चाहिए इसे स्वीकार करना चाहिए I हम सभी यह तो जानते हैं कि हमें जप करना चाहिए परंतु जप कैसे करना चाहिए यह हम नहीं जानते I इस कांफ्रेंस के माध्यम से हम अलग-अलग विषयों पर चर्चा करते हैं जो आपके जप में सहायक हैं और आज जो हमने चर्चा की ,वह आज के विचारों के लिए आहार है अतः आप इसे अंगीकार कीजिए, इस पर चिंतन कीजिए ,और अपने जीवन में उतारने का प्रयास कीजिए I हरे कृष्ण ! हरि बोल ! निताई गौर प्रेमानंदे !!

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