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जप चर्चा सोलापुर धाम से 14 नवंबर 2021 हरे कृष्ण ! आज 584 भक्त हमारे साथ जपा टॉक में सम्मिलित हैं। आज हम जल्दी प्रारंभ कर रहे है। जल्दी प्रारंभ कर के हम जल्दी ही समाप्त करेंगे। हम सोलापुर पहुंच चुके है। आप जानते हो? राधा दामोदर पहुंच रहे है। राधा दामोदर मार्ग में है। राधा दामोदर की जय। कल प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के दो दिन है। आपको यह सूचना मिली ही होगी। आप टाइम टेबल के अनुसार देखिए और सुनिए। इस समारोह को आप ऑनलाइन देख सकते हैं। हमारी टीम आश्वासन दे रही कि दूरदर्शन होगा। दूर से आप दर्शन कर पाओगे, देख और सुन पाओगे। जैसे धृतराष्ट्र देख रहे थे वैसे आप अंधे नहीं हो। इतने तो आप समर्थ हो कुरुक्षेत्र पहुंचने में जो भी कारण है आप यहां सोलापुर में नहीं रहोगे। आप जहां भी हो वहां से समारोह का आनंद उठा सकते हो। याद रखिए और फुर्सत निकाल के प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का अंग बनिए और आनंद उठाइए। रशिया में कुछ हो रहा है। आरती उतार रहे हैं। वैसे विधि विधान कल से प्रारंभ हुए हैं। व्यास होम संपन्न हुआ। उसमें हम अनुभव कर रहे थे कि धाम की स्थापना, वैकुंठ की स्थापना हुई। जैसे राधा ने ही कहा था। मैं वहां नहीं जाऊंगी जहां वृंदावन नहीं है, जहां गोवर्धन नहीं है, जहां यमुना नहीं बहती है। राधा दामोदर वैसे जो राधा रानी ने उनको कहा होगा कि मैं सोलापुर नहीं जाऊंगी। अगर वहां वैकुंठ नहीं है, वहां गोलोक नहीं है। कल हमारे सक्षम पुरोहितों ने एक प्रकार से धाम की स्थापना की और यह सब मंत्र उच्चारण के साथ होता है। शब्द से ही रूप बनते हैं। शब्द स्पर्श रूप रस गंध। शब्दों का उच्चारण हो रहा था। मंत्रों का उच्चारण हो रहा था। उसी के साथ स्थापना हो रही थी। हमारे पुरोहित समझा रहे थे कि मंडल बनाया भी है। जिसको हम देख भी पा रहे थे। उसके चार द्वार थे। पूर्व पश्चिम दक्षिण उत्तर। पूर्व द्वार ही होगा जिसमें जय विजय द्वारपाल है। प्रवेश द्वार पर और अलग-अलग नाम के द्वारपाल है। दो दो द्वारपाल हैं चारों द्वारों पर है। पुरोहित समझा रहे थे या मंत्रों के साथ जो वैकुंठ की स्थापना हो रही थी। स्थापना ही कहो। तो वह कह रहे थे कि जैसे आप यहां सोलापुर में दर्शन मंडप में देख रहे हो वैकुंठ। जैसा वहां है वैकुंठ वैसे ही आप भी यहां पर देख रहे हो, स्थापना हो रही है। तो विशेष अनुभव रहा। मेरे पास शब्द नहीं है कहने के लिए। अंत: चक्षु से कुछ दर्शन कर रहे थे। जैसे जैसे मंत्रों का उच्चारण करते गए और समझाते गए। यह वैकुंठ है, यह द्वार है, यह द्वारपाल हैं और फिर भागवतम की भी स्थापना हुई कलश के रूप में। कई महाजनों की नवग्रह स्थापना के स्थान पर हम गौडीय वैष्णव नवग्रह की बजाए नवयोगेंद्र की उपासना करते हैं। जैसे सनातन गोस्वामी हरीभक्ति विलास में समझाएं हैं। हरीभक्ति विलास स्त्रोत और एक आधार ग्रंथ है। जब यह अर्चना पद्धति टेक्निकल मंत्र यंत्र और तंत्र होते हैं। मंत्र के साथ तंत्र भी होते हैं और उसके यंत्र भी होते हैं। एक प्रकार से प्राण प्रतिष्ठा विधि प्रारंभ हो चुकी है और हम आज आगे बढ़ेंगे। आज विग्रह को ऑल्टर तक पहुंचाया जाएगा। नेत्रों उनमिलन एक विशेष घटना घटने वाली है। बहुत कुछ होगा लेकिन अंततोगत्वा भगवान विग्रह अपनी आंखें पहली बार खोलेंगे। हरि बोल। ऐसे प्राण सारी इंद्रियों को जागते हैं या स्थापित करते हैं। भगवान के विग्रह के जो अलग-अलग अंग है, अवयव है , मंत्र तंत्र के साथ यह एक स्पेशल टेक्नोलॉजी है। तो प्राण प्रतिष्ठा मंत्रों के साथ विधिपूर्वक सभी अंगों में प्राण और अंततोगत्वा आंखों में जान या प्राण, फिर विग्रह अपनी आंखें खोलेंगे। वह देखेंगे कि सभी उपस्थित भक्तों के ऊपर उनकी कृपा दृष्टि पड़ेगी। भक्त भी भगवान का दर्शन करेंगे ही। यह नहीं समझना कि भगवान का दर्शन करते हैं ऐसी बात नहीं है। भगवान स्वयं भी हमारा दर्शन करते हैं। हम को देखते हैं, हमारे ऊपर कृपा की दृष्टि से वृष्टि करते हैं। मेरे पास ज्यादा समय नहीं है। लगभग 5:30 बजे यह कार्यक्रम संपन्न होगा। आप डिटेल्स देख सकते हैं, प्रकाशित हो चुका है। 6:20 बजे पर नेत्र उनमिलन होगा । ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम: ॥ वहां पर है उनमिलन शब्द आता है। गुरुजन आंखे देते हैं ,दृष्टि देते हैं और आंखें खोलते हैं। आज नेत्र उनमिलन उत्सव होगा। इसको नेत्र उत्सव भी कहिए। हमारे नेत्रों के लिए उत्सव होगा। भगवान का दर्शन यह हमारी आंखों के लिए उत्सव है और फिर अंततोगत्वा शयन आदिवास कहते हैं। भगवान राधा दामोदर का शयन आदिवास, उनको बिस्तर पर लिटाया जाता है। एक बिस्तर होगा, मच्छरदानी भी होगी, नाइट लैंप भी होगा, कई सुगंधित द्रव्य और पुष्प वहां पर रखे जाएंगे। राधा और दामोदर विश्राम करेंगे। भक्त भगवान के शयन के समय गान करेंगे, वाद्य बजेंगे। वह भी एक अनोखा अनुभव है या जैसे गोलोक पर प्रतिदिन भगवान विश्राम करते हैं। वही अनुभव पृथ्वी पर होगा। प्राण प्रतिष्ठा जब होती है तब शयन आदिवास में यह अनुभव विधिवत कराया जाता है और यह तो बात है कि जैसे कल की जो विधि हुई। वह भी कोई काल्पनिक नहीं थी। वैकुंठ जैसा है वैसे के वैसा उसको मंत्रों में वर्णन है शास्त्रों में उल्लेखित है। यह किसी के मनगढ़ंत बात नहीं है। एक भी अक्षर मनगढ़ंत नहीं है। जैसा है वैसा ही उसका वर्णन शास्त्रों में आता है। शास्त्र में दी हुई विधि के अनुसार ही उसका उच्चारण मंत्र तंत्र होते हैं तो उसी की तरह भगवान विश्राम करते हैं। कैसे यशोदा सुलाती हैं। कृष्ण को नंदग्राम में और दोनों साथ में है तो विश्राम करते हैं या तो नंद भवन में विश्राम होता है या कहीं निकुंजो में वह रात्रि के समय रात्रि के लीला के अंत में विश्राम करते हैं या सेवा कुंज में वृंदावन में प्रतिदिन रासक्रिडा संपन्न होती है। वह थोड़े थक जाते हैं तो विश्राम कर लेते हैं वैसा ही इसका सारा वर्णन उपलब्ध है। उसी के अनुसार यह सारी प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतर्गत यह विधि विधान यहां संपन्न हो रहे हैं। उसका साक्षी होना या उसका अंग बन जाना या उसका आईविटनेस बनना। हमारा शुद्धीकरण भी हो रहा है। हम देख रहे हैं। सभी को भक्त ही कहना होगा। सभी भक्त जो उपस्थित थे निश्चित ही और कहीं नहीं थे। केवल वही थे जहां अनुष्ठान संपन्न हो रहा था बड़े गौर से देख और सुन रहे थे। देखने और सुनने की चीज थी। श्रद्धा पूर्वक देख और सुन रहे थे। आज परिक्रमा लोहवन से दाऊजी जा रही है। दाऊजी का भैया कृष्ण कन्हैया। इस क्षेत्र में पहुंचते ही यह कहा जाता है। यहां पर राधे-राधे कम बोला जाता है। दाऊजी का भैया कृष्ण कन्हैया, दाऊजी का भैया कृष्ण कन्हैया। अगर कोई यह नहीं कहता तो उसको विदेशी समझा जाता है कि यह बाहर से आया है। इसको यहां की संस्कृति पता नहीं है। फिर हर व्यक्ति यह सीख लेता है और संस्कृति को आगे फैलाता है, दाऊजी का भैया कृष्ण कन्हैया। परिक्रमा में लोहवन 11वा वन है। जो द्वादश वन है उसका नाम महावन है। 12वे वन में आज परिक्रमा पहुंच रही है। 13वा कोई वन नहीं है। दाऊजी नाम का ग्राम ही है। यहां पर दाऊजी के विग्रह है। जन को बलदेव कहते हैं। गोकुल में दाऊजी या बलदेव, वृंदावन में गोविंद देव, मथुरा में केशव देव, गोवर्धन में हरिदेव । इन देवो के विग्रह की स्थापना व्रजनाभ ने 5000 वर्ष पूर्व की थी। यह प्राचीन विग्रहों में दाऊजी के विग्रह उनके बगल में नहीं उनके सामने में रेवती माता खड़ी है। बलदेव जी का दर्शन तो सामने से होता है परंतु रेवती के दर्शन के लिए हमको बगल के दरवाजे से जाना होता है आप रेवती को देख सकते हो। जो सदैव बलराम को देख रही है जो हमेशा बलदेव की सेवा के लिए तैयार रहती हैं। वहां प्रसिद्ध संकर्षण कुंड है और कहीं भी सारे दर्शनीय स्थल हैं। जय बलराम। बलराम आप सबको जल्द ही बल दे दे। आत्मा परमात्मा की प्राप्ति बल हीन होकर नहीं कर सकते, तो क्या दंड बैठक कसरत करनी चाहिए तो बल आजाएगा और हम भगवान को देख सकते हैं । वो बल नहीं शारीरिक काम का नहीं है । ये आध्यात्मिक बल चाहिए तो आध्यात्मिक बलराम से प्राप्त होता है । वे बलराम, बलवान बलराम जो स्वयं को आराम दे सकते हैं बल और राम बल- आराम या रमती- रमयती च या रमाते हैं बलराम सभी जीवो को । ये बलराम कृष्ण ही है । कृष्ण और बलराम अभिन्न है । एक सफेद वर्ण के हैं, शुक्ल है भगवान के I यह केवल वर्ण का ही भेद है । दोनों अलग अलग व्यक्तित्व तो है किंतु भगवता की दृष्टि से ये दोनों समकक्ष है लगभग या प्रभुपाद कहीं लिखते हैं 98% मतलब 19/20 का फर्क है परंतु कोई फर्क नहीं है कृष्ण बलराम में । श्रील प्रभुपाद हमको वृंदावन में कृष्ण बलराम भी यह दोनों साथ में रहते हैं सदैव कृष्ण बलराम । जय बलदेव की ! उसमें तो होता रहता ही है समय पर रुकता नहीं । बस समय है, समय कहीं आता जाता नहीं है समय ही भगवान है । भगवान वैसे "कालोस्मी" मूल्यवान रहते ही हैं वैसे भी काल ही है, समय ही है तो अच्छा है कि हम समय के साथ रहे । समय के साथ या समय का उपयोग भगवान के सेवा में करे । हर समय भगवान की सेवा में रहे । समय भगवान है मतलब भगवान के साथ रहेंगे । वैसे समझ रहे हो क्या क्या कहा जा रहा है तो कृष्ण के साथ रहो रात और दिन और समय का सदुपयोग करो कृष्ण के सेवा के लिए । हरि हरि !! तो आज गौरकिशोर बाबा जी महाराज की जय ! कार्तिक का और एक विशेष उत्सव गौरकिशोर बाबा जी महाराज तिरोभाव तिथि महोत्सव है आज । नमो गौर-किशोराय साक्षाद्वैराग्य मूर्तये । विप्रलंभ-रसांबोधे पादांबुजाय ते नमः ॥ इस प्रकार हम उनका प्रणाम मंत्र कहते हैं । और उस प्रणाम मंत्र में भी उनके चरित्र का वर्णन हो जाता है । संक्षिप्त में और सारे रूप में उस प्रणाम मंत्र में गौरकिशोर बाबा जी महाराज के प्रणाम मंत्र में गौरकिशोर बाबा जी महाराज का परिचय । कहिए "नमो गौर-किशोराय साक्षाद्वैराग्य मूर्तये । विप्रलंभ-रसांबोधे पादांबुजाय ते नमः ॥" "पादांबुजाय ते नमः" आपके चरण कमलों में "पादांबुजाय ते नमः" आपके चरण कमलों में हमारा अभिवादन नमस्कार स्वीकार करे । गौरकिशोर दास बाबा जी महाराज वैसे बंगाल साइड के ही थे । एक समय वे विवाहित थे । ज्यादा कुछ रुचि नहीं लेते थे परिवार में और घरेलू कार्य में । यह अच्छी बात है ? अब सब कहोगे यह तो अच्छी बात नहीं है हम तो लेते हैं रुचि । लेना चाहिए कर्तव्य है । लेकिन इनको ज्यादा रूचि नहीं हुआ करती थी पारिवारिक में तो भगवान ने फिर ऐसी व्यवस्था भी की धर्मपत्नी ही नहीं रही तो पत्नी के मृत्यु के उपरांत, आश्चर्य भी होता है वो सीधे वृंदावन पहुंच गए और वहां कुछ 30 वर्ष रहे वृंदावन में । अपना भजन पूजन करते हुए । ये भजनांदि थे, बाबाजी थे । बस अपने भजन में मस्त रहा करते थे और उनका भजन उच्च कोटि का भजन, उच्च विचार और भगवान के माधुर्य लीला का श्रवण, आस्वादन उसमें तल्लीन हो रहा करते थे तो वृंदावन में जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज हमारे परंपरा के विशेष आचार्य भक्ति विनोद ठाकुर के ठाकुर के शिक्षा गुरु जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज तो गौर किशोर बाबा जी महाराज, ध्यान से सुनिए । जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज के संपर्क में आए और उनसे शिक्षित हुए, तो भक्ति विनोद ठाकुर के वे शिक्षा गुरु थे जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज और गौर किशोर बाबा जी महाराज के दीक्षा गुरु तेज जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज । फिर आगे गौर किशोर बाबाजी महाराज यह समझ के की वृंदावन और नवद्वीप अभिन्न है तो वे नवद्वीप आए और अपने भजन को और आगे बढ़ाएं । उनके वैराग्य की कोई सीमा नहीं थी । दिमाग चक्रम होगा । अगर हम सुनेंगे समझेंगे कैसा वैराग्य उनका । लगभग कोई वस्त्र नहीं पहनते, बस लंगोटी पहनते । इनका और ये खासियत रही की कोई किसी से कोई भेंट वस्तु वे कभी स्वीकार नहीं करते । कोई भिक्षा मांग के चावल करते तो उसी को साफ करके थोड़ा उबाल के थोड़ा मिर्च और नमक डालकर उसी को ग्रहण करते । गंगा के तट पर गौरांग ! गौरांग ! गौरंग ! कहते हुए नृत्य करते तो अगले क्षण वहां वही गंगा के तट पर लेट जाते । लौटने लगते या उनका रसांमवुधे में गोते लगाते । उनके जीवनी पर लिखा है 1897 में वे नवद्वीप पहुंचे और उसके बाद 1898 में श्रील भक्तिसिद्धांता सरस्वती ठाकुर के संपर्क में आए या श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर उनके संपर्क में आए या यह समझना होगा कि भक्ति विनोद ठाकुर के संपर्क मंद भी आए गौर किशोर बाबाजी तो गौर किशोर बाबा जी महाराज नवद्वीप में सर्वत्र भ्रमण करने वाले गंगा के तट पर । गौरंग ! गौरंग ! कहते हुए नाचने और दौड़ने वाले हे राधे व्रजदेविके च ललिते हे नंद सूनो कुतः श्री गोवर्धन कल्प पादपतले कालिंदी-वने कुतः । घोषंताविति सर्वतो व्रजपुरे खेदैर् महा विह्वलौ वंदे रूप-सनातनौ रघु-युगौ श्री-जीव-गोपालकौ ॥ ( श्री श्री षड्-गोस्वामी-अष्टक - 8) अनुवाद:- मैं श्रील रूप- सनातनादि उन छः गोस्वामियों की वंदना करता हूँ जो " हे व्रज की पूजनीय देवी , राधिके ! आप कहाँ हैं ? ललिते ! आप कहाँ हैं ? हे व्रजराजकुमार ! आप कहाँ हैं ? श्रीगोवर्धन के कल्पवृक्षों के नीचे बैठे हैं अथवा कालिन्दी के सुन्दर तटों पर स्थित वनों में भ्रमण कर रहे हैं ? " इस प्रकार पुकारते हुए वे विरहजनित पीड़ाओं से महान् विह्वल होकर व्रजमण्डल में सर्वत्र भ्रमण करते थे । षड्-गोस्वामी वृंदो का वृंदावन में साधारणतः मन की स्थिति और भावों का स्तर गौर किशोर बाबा जी महाराज का रहा करता था तो वे गौर किशोर बाबाजी महाराज गोद रूम में आकर गोदृम द्वीप में आके श्रील भक्ति विनोद ठाकुर को मिला करते थे और भक्ति विनोद ठाकुर से भागवत कथा सुना करते थे और इसी प्रकार या भक्ति विनोद ठाकुर को उन्होंने अपना शिक्षा गुरु के रूप में स्वीकार किया तो गौर किशोर बाबा जी महाराज के दीक्षा गुरु थे भागवद् दास बाबा जी महाराज वृंदावन के और यहां नवद्वीप में श्रील भक्तिविनोद ठाकुर की शिक्षा शिष्य बने । ये लिखना पढ़ना नहीं जानते थे । हरि हरि !! तो भक्ति विनोद ठाकुर ने अपने पुत्र श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर / विमला प्रसाद को आदेश दिया तुम शिष्य बनो किसके ? गौर किशोर दास बाबा जी महाराज के तो श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर एक प्रकांड विद्वान रहे जिन्होंने सूर्य सिद्धांत का भी अध्ययन और प्रकाशन किया था और शास्त्रों का भी तो ऐसे विद्वान श्रील भक्तिसिद्धांता सरस्वती ठाकुर को विनोद ठाकुर ने कहा इनके शिष्य बनो । गौर किशोर दास बाबा जी महाराज के शिष्य बनो जो निरीक्षर थे । वास्तविक में निरीक्षर थे । यह महत्वपूर्ण नहीं है । वेसे शिक्षा को, सुन तो रहे थे ही वो भी ऐसे नहीं कह सकते हम निरक्षर थे । कई सारे अक्षर वाक्य और बच्चन वे जानते ही थे । लिखना पढ़ना नहीं जानते थे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । एक समय, वैसे शास्त्र लिखे नहीं जाते थे और पढ़े भी नहीं जाते थे ऐसा भी समय था प्राचीन युग में । ये प्रिंटिंग प्रेस और किताब भौतिक रूप में रहा ही नहीं करते थे । बस इसको परंपरा में सुनो, समझो और परंपरा में सुनाओ । इस प्रकार ये सारा ज्ञान शास्त्र का परंपरा में पठन-पाठन हुआ करता था तो वे शिष्य भी अपनाना नहीं चाहते थे । किंतु अब हमारे भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर के पहले का नाम विमला प्रसाद अब वे तो हट लेके बैठे थे, नहीं नहीं ! मेरे पिता श्री ने कहा है आपसे दीक्षा लेनी है । तो वे कहते नहीं नहीं !! मैं थोड़ा कहते मैं भगवान से पूछूंगा महाप्रभु से पूछूंगा और समय के बाद, अब तो दीजिए मुझे दीक्षा आपने पूछ लिया ? नहीं नहीं !! भूल गया । महाप्रभु को पूछना भूल गया । वैसे टाल तो रहे थे लेकिन ये विमल प्रसाद उनका तो दृढ़ संकल्प था दीक्षा लेंगे तो इन्हीं से दीक्षा लेंगे । एक समय तो उन्होंने जब टाल रहे थे गौर किशोर बाबा जी महाराज इंकार कर रहे थे तो शरीर भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर बहुत गंभीर थे । उन्होंने कहा तो फिर मैं आत्महत्या कर लूंगा मैं अपनी जान ही लेता हूं । मैं कैसे जी सकता हूं आपके दीक्षा के बिना मैं जी नहीं सकता तो अंततोगत्वा बन गए शिष्य गौर किशोर दास बाबाजी महाराज के शिष्य बन गए श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर और वृषभानु 'वार्षभानवी' ऐसा नाम दिया 'वार्षभानवी' मतलब वृषभानु नंदिनी राधा रानी का ही नाम दिया । एक प्रणाम मंत्र में हम वो इसको कहते हैं । 'दयिताय कृपाब्धये' तो फिर आज के दिन नवद्वीप में गौर किशोर दास बाबाजी महाराज भगवान के नित्यलीला में नित्य लीला में प्रवेश किये । उनका तिरोभाव हुआ और कई सारी और बातें घटती है आज के दिन नवद्वीप में तो श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर चैतन्य मठ की जहां उन्होंने की स्थापना की थी वहां समाधि मंदिर मनाएं हो सकता है मुझे याद नहीं कि पहले और कहीं था और बाद में स्थानांतरित किए चैतन्य मठ में तो श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर के कार्यालय जहां है नवद्वीप में आप जानते होंगे जहां श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर की स्वयं की भी समाधि है । वही उसी कैंपस में गौर किशोर बाबा जी महाराज की समाधि है और श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने अपने गुरु महाराज को गोर किशोर बाबा जी महाराज की पुष्प समाधि वैसे राधा कुंड के तट पर जहां और एक गोडिय मठ स्थापना किए । श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर राधा कुंड के तट पर वहां भी गौर किशोर महाराज की पुष्प समाधि है । हरि हरि !! जे आनिल प्रेम - धन करुणा प्रचुर । हेन प्रभु कोथा गेला गौर किशोर बाबाजी ठाकुर ॥ गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ! गौर किशोर बाबा जी महाराज की जय ! या गौर किशोर दास भी बैठे हैं आज हमारे समक्ष । हमने भी अपना एक शिष्य का नाम दिया गौर किशोर दास और आज के दिन मेरे साथ वे जप कर रहे हैं, ठीक है । ॥ हरे कृष्ण ॥

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