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जप चर्चा पंढरपुर धाम से दिनाँक – 09-06-2021 गौरंगा ! नित्यानंद ! गौर प्रेमानंदे .... हरि हरि बोल ! आज हमारे साथ 836 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। जो जप टॉक को सुनेंगे, कुछ कम होंगे या बढ़ेंगे, वे बढ़ते ही रहते हैं। कुछ तो जप टॉक के लिए आ जाते हैं पता नहीं जप कब करते होंगे या करते तो होंगे, थोड़ा देरी से उठते होंगे, इसीलिए सीधे टॉक में पहुंच जाते हैं। संकेत कब पहुँचता है जप में या जप टॉक में? ठीक है आप प्रेरित तो हो ही। ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय यहां भागवत से कुछ बातें आपको सुनाने का विचार हो रहा है 5 स्कंध 19 अध्याय 21 श्लोक , आज हम सुनेंगे। एतदेव हि देवा गायन्ति—अहो अमीषां किमकारि शोभनं प्रसन्न एषां स्विदुत स्वयं हरि: । यैर्जन्म लब्धं नृषु भारताजिरे मुकुन्दसेवौपयिकं स्पृहा हि न: ॥ (श्रीमद भागवतम 5.19.21) अनुवाद: चूँकि आत्मसाक्षात्कार के लिए मनुष्य - जीवन ही परम पद है , अतः स्वर्ग के सभी देवता इस प्रकार कहते हैं - इन मनुष्यों के लिए भारतवर्ष में जन्म लेना कितना आश्चर्यजनक है । इन्होंने भूतकाल में अवश्य ही कोई तप किया होगा अथवा श्रीभगवान् स्वयं इन पर प्रसन्न हुए होंगे । अन्यथा वे इस प्रकार से भक्ति में संलग्न क्यों कर होते ? हम देवतागण भक्ति करने के लिए भारतवर्ष में मनुष्य जन्म धारण करने की मात्र लालसा कर सकते हैं , किन्तु ये मनुष्य पहले से भक्ति में लगे हुए हैं । "एतदेव हि देवा गायन्ति " देवताओं को सुनेंगे, आज देवताओं का टोक है। देवा ऊच्चु : या गायन्ति, यह जम्बूद्वीपे भरतखण्डे करिष्यामि , जब कुछ यज्ञ का संकल्प लेते हैं तब संकल्प में हम कहते हैं जम्बूद्वीपे तो वह जम्बूद्वीप है। अलग-अलग द्वीप हैं। सात द्वीप हैं और उसमें से एक द्वीप है जम्बूद्वीप अर्थात हमारा द्वीप। जिस द्वीप में हम रहते हैं उस द्वीप का नाम है जम्बूद्वीप और हर द्वीप में अलग-अलग वर्ष होते हैं। जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में या भरतखंड में हम रहते हैं, हम भारत में रहते हैं, हम भारत में जन्मे हैं इस भारतवर्ष की महिमा, माहात्म्य को देवता ने गाया है। यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्र मरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैस्तवैः वेदैः साँगपदक्रमोपनिषदैः गायन्ति यं सामगाः। ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणाः देवाय तस्मै नमः॥ (श्रीमद भागवतम 12.13.1) अर्थ- ,ब्रह्मा,वरुण,इन्द्र,रुद्र और मरुद्गण दिव्य स्तोत्रों द्वारा जिनकी स्तुति करते हैं,सामवेद के गाने वाले अंग,पद,क्रम और उपनिषदों के सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं,देवता और असुर गण जिनके अन्त को नहीं जानते, उन नारायण देव के लिए मेरा नमस्कार है। यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्र मरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैस्तवैः देवता जो स्तुति गान करते रहते हैं , उन्होंने एक समय स्तुति का गान किया। यह कहा ही है देवा गायन्ति, क्या गा रहे हैं ? भारत भूमि की महिमा का गान कर रहे हैं या भारतीय होने की महिमा को कह रहे हैं और अपनी अभिलाषा भी व्यक्त कर रहे हैं या वैसे पहले कह रहे हैं जो भारत में जन्मे हैं वे भाग्यवान हैं और हमारे भाग्य का कब उदय होगा ताकि हम भी भारत में जन्म ले सकते हैं कौन कह रहे हैं ? देवता कह रहे हैं। दुर्देव से हम तथाकथित भारतीय हम जो इंडियन बने हैं वे स्वर्ग जाना चाहते हैं। स्वर्गवासी बनना चाहते हैं किंतु ,सुनो ! देवता कहते हैं मूर्खों, यह विचार छोड़ो। हम देवताओं के भाग्य का उदय कब होगा ताकि हम भारतीय बनेंगे। हम भारत में जन्म लेंगे। आइए उन देवताओं के विचार उनके शब्दों में सुनते हैं जिसको शुकदेव गोस्वामी ने राजा परीक्षित को सुनाया है , लगभग दस वचन हैं। मैं केवल भाषांतर ही पढ़कर सुनाना चाहता हूं। एतदेव हि देवा गायन्ति अहो अमीषां किमकारि शोभनं प्रसन्न एषां स्विदुत स्वयं हरिः । यैर्जन्म लब्धं नृषु भारताजिरे मुकुन्दसेवौपयिकं स्पृहा हि नः ॥ (श्रीमदभागवतम 5.19.21) भाषांतर ध्यान से सुनिए, सावधान होकर एकाग्र चित्त होकर सुनिए। कौन सुना रहे हैं वक्ता कौन है ? देवता। देवता, आपसे कुछ बात करना चाह रहे हैं। ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्ममाख्याति पृष्छति । भुड.कते भोजयते चैव षडविधम प्रीति-लक्षणम् (उपदेशमृत -4) अनुवाद - दान में उपहार देना, दान-स्वरूप उपहार स्वीकार करना, विश्वास में आकर अपने मन की बातें प्रकट करना, गोपनीय ढंग से पूछना, प्रसाद ग्रहण करना तथा प्रसाद अर्पित करना -भक्तों के आपस में प्रेमपूर्ण व्यवहार के ये छह लक्षण हैं। गुह्ममाख्याति पृष्छति कहिये, उनके दिल की बात केवल मन की बात ही नहीं, अपने दिल की बात देवता सुना रहे हैं तो सुनो चूँकि आत्मसाक्षात्कार के लिए मनुष्य - जीवन ही परम पद है , अतः स्वर्ग के सभी देवता इस प्रकार कहते हैं - इन मनुष्यों के लिए भारतवर्ष में जन्म लेना कितना आश्चर्यजनक है। इन्होंने भूतकाल में अवश्य ही कोई तप किया होगा अथवा श्रीभगवान् स्वयं इन पर प्रसन्न हुए होंगे। अन्यथा वे इस प्रकार से भक्ति में संलग्न क्यों कर होते ? हम देवतागण भक्ति करने के लिए भारतवर्ष में मनुष्य जन्म धारण करने की मात्र लालसा कर सकते हैं , किन्तु ये मनुष्य पहले से भक्ति में लगे हुए हैं । सुनो , इसीलिए आप को ध्यान पूर्वक सुनना होगा क्योंकि मैं इस पर भाषण नहीं दे पाऊंगा। स्वर्ग के सभी देवता इस प्रकार कहते हैं सुनो , चूँकि आत्मसाक्षात्कार के लिए मनुष्य - जीवन ही परम पद है , अतः स्वर्ग के सभी देवता इस प्रकार कहते हैं - इन मनुष्यों के लिए भारतवर्ष में जन्म लेना कितना आश्चर्यजनक है। इन्होंने भूतकाल में अवश्य ही कोई तप किया होगा अथवा श्रीभगवान् स्वयं इन पर प्रसन्न हुए होंगे। अन्यथा वे इस प्रकार से भक्ति में संलग्न क्यों होते ? सुन रहे हो ? आपकी आत्मा को ध्यान पूर्वक सुनना है और आत्मा को ही समझना है। और आशा है कि समझ ही रहे होंगे। हम देवतागण भक्ति करने के लिए भारतवर्ष में मनुष्य जन्म धारण करने की मात्र लालसा कर सकते हैं , किन्तु ये मनुष्य पहले से भक्ति में लगे हुए हैं । किं दुष्करैर्नः क्रतुभिस्तपोव्रतै र्दानादिभिर्वा धुजयेन फल्गुना । न यत्र नारायणपादपङ्कज स्मृतिः प्रमुष्टातिशयेन्द्रियोत्सवात् ॥ . (श्रीमद भागवतम 5.19.22) अनुवाद: देवता आग कहते हैं - वैदिक यज्ञों के करने, तप करने, व्रत रखने तथा दान देने जैसे दुष्कर कार्यों के करने के पश्चात् ही हमें स्वर्ग में निवास करने का यह पद प्राप्त हुआ है । किन्तु हमारी इस सफलता का क्या महत्त्व है ? यहाँ हम निश्चय ही भौतिक इन्द्रियतृप्ति में व्यस्त रहकर भगवान् नारायण के चरणकमलों का स्मरण तक नहीं कर पाते। अत्यधिक इन्द्रिय तृप्ति के कारण हम उनके चरणकमलों को लगभग विस्मृत ही कर चुके हैं । हरि हरि ! सुन रहे हो देवता क्या कह रहे हैं स्वर्ग तक पहुंचे लेकिन हमारा काम धंधा क्या चल रहा है। इंद्रिय तृप्ति में व्यस्त रहते हैं कि हम नारायण के चरण कमलों को ही भूल गए। अत्यधिक इंद्रिय तृप्ति के कारण हम लगभग उनके चरणों को विस्मृत ही कर चुके है। जैसे देवताओं का कोई इंटरव्यू ले रहा है या शुकदेव गोस्वामी इंटरव्यू लिए बिना ही देवताओं के विचार वैसे ही जानते हैं हरि हरि! यह सब देवता जो भी कह रहे हैं सच ही कह रहे हैं। सच के सिवा और कुछ नहीं कहते देवता। कल्पायुषा स्थानजयात्पुनर्भवात् क्षणायुषां भारतभूजयो वरम् । क्षणेन म न कृत मनस्विनः सन्न्यस्य संयान्त्यभय पदं हरेः ॥ (श्रीमद भागवतम 5.19.23) अनुवाद - ब्रह्मलोक में करोड़ों - अरबों वर्ष की आयु प्राप्त करने की अपेक्षा भारतवर्ष में अल्पायु प्राप्त करना श्रेयस्कर है , क्योंकि ब्रह्मलोक को प्राप्त कर लेने के बाद भी बारम्बार जन्म तथा मरण के चक्र में पड़ना होता है । यद्यपि मर्त्यलोक के अन्तर्गत भारतवर्ष में जीवन अत्यन्त अल्प है किन्तु यहाँ का वासी पूर्ण कृष्णभक्ति तक पहुँच सकता है और भगवान् के चरणकमलों में अर्पित होकर इस लघु जीवन में भी परम सिद्धि प्राप्त कर सकता है । इस प्रकार उसे वैकुण्ठलोक प्राप्त होता है जहाँ न तो चिन्ता है , न भौतिक शरीर युक्त पुनर्जन्म । कुछ पल्ले पड़ रहा है नोट कर रहे हो क्योंकि कृष्ण ने जैसे कहा है आब्रह्मभुवनाल्लोकाःपुनरावर्तिनोऽर्जुन | मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते || (श्रीमद भगवद्गीता 8.16) अनुवाद- इस जगत् में सर्वोच्च लोक से लेकर निम्नतम सारे लोक दुखों के घर हैं, जहाँ जन्म तथा मरण का चक्कर लगा रहता है | किन्तु हे कुन्तीपुत्र! जो मेरे धाम को प्राप्त कर लेता है, वह फिर कभी जन्म नहीं लेता | ब्रह्मलोक प्राप्ति मतलब ,जन्म मृत्यु इस चक्र से मुक्ति तो नहीं है। क्षीणे: पुनरावृति मृत्युलोक: अर्थात पुनः हम जन्म ले सकते हैं। यद्यपि मृत्यु लोक के अंतर्गत भारतवर्ष में जीवन अत्यंत अल्प है। हम सौ साल भी नहीं जीते सौ साल तो कम से कम जीना चाहिए था इस कलयुग में, आगे कलयुग में यह आयु और भी घटने वाली है। 15 साल का व्यक्ति वेरी ओल्ड, 15 / 20 साल , मतलब बहुत बूढ़ा हो गया। जैसे अभी 70 /80 साल का बहुत बूढ़ा माना जाता है। तो ऐसा भविष्य है हरि हरि ! देवता यह सब कुछ जानते हैं। किंतु, यहां का वासी , पूर्ण कृष्ण भक्ति तक पहुंच सकता है। यह भारत की बात हो रही है और भगवान के चरण कमलों में अर्पित होकर इस लघु जीवन में भी परम सिद्धि प्राप्त कर सकता है। आपके बारे में बात हो रही है. इस प्रकार उसे वैकुंठ प्राप्त होता है। जहां ना तो चिंता है ना भौतिक शरीर युक्त पुनर्जन्म , हरि हरी ! देवता कह रहे हैं कि भारत में जन्मे जो मनुष्य है अल्पायु तो है लेकिन उतना समय ही पर्याप्त है। वे भक्त होकर होकर मुक्त होंगे, वैकुंठ को प्राप्त कर सकते हैं। इस वैकुंठ में ना तो चिंता है ना तो पुनर्जन्म। यहां चिंता है कि नहीं ?थोड़ी चिंता तो है सम एंजाइटी हरि हरि ! अर्थात सभी मुक्त होना चाहते हैं। अतः देवता कह रहे हैं कि भारतवासी जो भक्ति करते हैं और मुक्ति को प्राप्त करते हैं। चिंता से मुक्त होते हैं। न यत्र वैकुण्ठकथासुधापगा न साधवो भागवतास्तदाश्रयाः । न यत्र यज्ञेशमखा महोत्सवाः सुरेशलोकोऽपि न वै स सेव्यताम् ॥ (श्रीमद भागवतम 5.19.24) अनुवाद - जहाँ श्रीभगवान् की कथा रूपी विशुद्ध गंगा प्रवाहित नहीं होती और जहाँ पवित्रता की ऐसी नदी के तट पर सेवा में तल्लीन भक्तजन नहीं रहते , अथवा श्रीभगवान् को प्रसन्न करने के लिए जहाँ संकीर्तन - यज्ञ के उत्सव नहीं मनाये जाते , ऐसे स्थान में बुद्धिमान पुरुष के लिए रुचि नहीं होती । क्योंकि ( इस युग में विशेषकर संकीर्तन - यज्ञ की संस्तुति की गई है ) । और भी बड़ी सुंदर बात, देवता कहे हैं। इसको हिंदी में सुनिए क्या कह रहे हैं जहां भगवान की विशुद्ध गंगा रूपी कथा प्रवाहित नहीं होती एक बात और भी बातें हैं और जहां पवित्रता की ऐसी नदी के तट पर सेवा में तल्लीन भक्तजन नहीं रहते - अर्थात यह सब स्वर्ग में नहीं होता है ऐसा कहना है कथासुधापगा ,भगवान की कथा की गंगा प्रवाहित नहीं होती ,स्वर्ग में नहीं होती हरि हरि! वहां संकीर्तन नहीं होता और उसमें संकीर्तन यज्ञ, कृष्णवर्ण विधाकृष्ण साङ्गोपाङ्गासपार्षदम् । यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्वजन्ति हि सुमेधसः ।। (श्रीमद भागवतम 11.5.32) अनुवाद: कलियुग में , बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर के उस अवतार की पूजा करने के लिए सामूहिक कीर्तन ( संकीर्तन ) करते हैं , जो निरन्तर कृष्ण के नाम का गायन करता है । यद्यपि उसका वर्ण श्यामल ( कृष्ण ) नहीं है किन्तु वह साक्षात् कृष्ण है । वह अपने संगियों , सेवकों , आयुधों तथा विश्वासपात्र साथियों की संगत में रहता है । यज्ञे संकीर्तन प्राये, श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु और सभी अन्य अवतार इस भारत में ही प्रकट होते हैं। स्वर्ग में प्रकट नहीं होते , वृंदावन धाम की जय ! सारे ब्रह्मांड में एक ही वृंदावन है और वह वृंदावन आप के बगल में है। ऑस्ट्रेलिया से भी ज्यादा दूर नहीं है 10/12 घंटे में ऑस्ट्रेलिया से आराम से वृंदावन पहुंचा जा सकता है। व्यक्ति, नागपुर से तो वृंदावन ओवरनाइट ट्रेन से पहुंच जाये। ऐसा वृंदावन स्वर्ग में नहीं है, इसीलिए देवता दुखी हैं। प्राप्ता नृजातिं त्विह ये च जन्तवो ज्ञानक्रियाद्रव्यकलापसम्भृताम् । न वै यतेरन्नपुनर्भवाय ते भूयो वनौका इव यान्ति बन्धनम् ॥ (श्रीमद भागवतम 5.19.25) अनुवाद - भक्ति के लिए भारतवर्ष में उपयुक्त क्षेत्र तथा परिस्थितियाँ उपलब्ध हैं , जिस भक्ति से ज्ञान तथा कर्म के फलों से मुक्त हुआ जा सकता है। यदि कोई भारतवर्ष में मनुष्य देह धारण करके संकीर्तन यज्ञ नहीं करता तो वह उन जंगली पशुओं तथा पक्षियों की भाँति है जो मुक्त किये जाने पर भी असावधान रहते हैं और शिकारी द्वारा पुनः बन्दी बना लिए जाते हैं । हरि हरि ! बैकुंठ में भक्ति के अनुकूल ना तो परिस्थिति है और ना ही क्षेत्र या स्थान है। और भक्ति की महिमा भी गए रहे हैं। हरी हरी ! ऐसे भी कुछ मनुष्य भारत में हैं ही भारत में जन्मे हैं। भारत-भूमिते हैल मनुष्य जन्म यार।जन्म सार्थक करि' कर पर-उपकार ॥ (आदि लीला 9.41) अनुवाद - जिसने भारतभूमि (भारतवर्ष ) में मनुष्य जन्म लिया है, उसे अपना जीवन सफल बनाना चाहिए और अन्य सारे लोगों के लाभ के लिए कार्य करना चाहिए। लेकिन वे परोपकार नहीं करते ,भारत में जन्मे हैं। चरणामृत पीने की बजाय शराब ही पीते हैं। उनका क्या कहना, अतः देवता कह रहे हैं ? वे जंगली पशु ही हैं, वैसे भी भारत भूमि में कुछ राक्षस भी हैं। यैः श्रद्धया बर्हिषि भागशो हवि निरुप्तमिष्टं विधिमन्त्रवस्तुतः । एकः पृथङ्नामभिराहुतो मुदा गृह्णाति पूर्णः स्वयमाशिषां प्रभुः ॥ (श्रीमद भागवतम 5.19.26) अनुवाद: भारतवर्ष में परमेश्वर द्वारा नियुक्त विभिन्न अधिकारी स्वरूप देवताओं - यथा इन्द्र , चन्द्र तथा सूर्य - के अनेक उपासक हैं , जिन सभी की पृथक् - पृथक् विधियों से पूजा की जाती है। उपासक इन देवताओं को पूर्ण ब्रह्म का अंश मानते हुए अपनी आहुतियाँ अर्पण करते हैं, फलतः श्रीभगवान् इन भेंटों को स्वीकार करते हैं और क्रमशः इन उपासकों की कामनाओं तथा आकांक्षाओं को पूरा करके उन्हें शुद्ध भक्ति पद तक ऊपर उठा देते हैं । चूँकि श्रीभगवान् पूर्ण हैं , अतः वे उनको मनवांछित वर देते हैं , चाहे उपासक उनके दिव्य शरीर के किसी एक अंश की पूजा क्यों न करते हो । हरि हरि अर्थात भगवान के साथ देवताओं की भी उपासना होती है ऐसा देवता कह रहे हैं। यहां अलग से देवताओं की उपासना नहीं करनी है। भगवान के साथ यज्ञ होता है तो वहां देवताओं का आवाहन भी किया जाता है। उनका जो भी हिस्सा है उनको भी प्रसाद के रूप में आहुति चढ़ाते हैं, वैसे यज्ञपुरुष तो भगवान ही होते हैं, किंतु यज्ञों में देवताओं को आमंत्रित किया जाता है और देवताओं का हिस्सा भगवान का उच्छिष्ट, अर्पित किया जाता है। हरी हरी इस प्रकार यहां कहा है की भगवान की और फिर देवताओं की भी आराधना उपासना होती है। देवताओं को वैसा ही अधिकार है, हरि हरि और फिर क्योंकि भगवान पूर्ण हैं अतः वे उनको मनोवांछित वर देते हैं चाहे उपासक उनके दिव्य शरीर के किसी एक अंग की पूजा क्यों ना करते हो। देवता भगवान के अंग के एक अंश हैं। किंतु भगवान अंशी हैं। यह तात्पर्य आपको पढ़ने होंगे मुझे अभी समय नहीं है निश्चित ही आपको कुछ शंका यह प्रश्न उत्पन्न होने वाली है। सत्यं दिशत्यर्थितमर्थितो नृणां नैवार्थदो यत्पुनरर्थिता यतः । स्वयं विधत्ते भजतामनिच्छता मिच्छापिधानं निजपादपल्लवम् ॥ (श्रीमद भागवतम 5.19.27) अनुवाद : पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् उस भक्त की भौतिक कामनाओं की पूर्ति करते हैं , जो सकाम भाव से उनके पास जाता है , किन्तु वे भक्त को ऐसा वर नहीं देते जिससे वह अधिकाधिक वर माँगता रहे । फिर भी , भगवान् प्रसन्नतापूर्वक ऐसे भक्त को अपने चरणकमलों में शरण देते हैं, भले ही वह इसकी आकांक्षा न करे और शरणागत होने पर उसकी समस्त इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं । यह श्रीभगवान् की विशेष अनुकम्पा है । यहां कुछ अकामः सर्व - कामो वा मोक्ष- [ -काम उदार - धीः । तीव्रेण भक्ति - योगेन यजेत पुरुषं परम् ॥ अनुवाद : जिस व्यक्ति की बुद्धि व्यापक है , वह चाहे सकाम हो या निष्काम अथवा मुक्ति का इच्छुक हो , उसे चाहिए कि सभी प्रकार से परमपूर्ण भगवान् की पूजा करे । हो सकता है कोइ अकाम है, कोई कामना ही नहीं है या फिर सभी प्रकार की कामनाएं उसमें हैं या मोक्षकाम: मोक्ष की भी कामना है। तब सभी पार्टी के लिए सभी के लिए एक ही रिकमेंडेशन है। कि वे क्या करें ? तीव्रेण भक्ति - योगेन भगवान की भक्ति करनी चाहिए ,भगवान की भक्ति करें। तब फिर भगवान, यदि कुछ कामना है उस सकाम भक्त की, भगवान पूर्ति करेंगे । हरि हरि ! ऐसा देवता कह रहे हैं। यहां आपको अलग से देवता का पुजारी बनने की आवश्यकता नहीं है अर्थात कृष्ण के पुजारी बनो , बाकी सब की पूजा हो जाएगी। कृष्ण कैसे हैं ?कृष्ण है वांछा कल्पतरू, डिजायर ट्री, तुम्हारी सारी इच्छा या तो पूरी करेंगे या कुछ भौतिक इच्छा है तो उसको मिटायेंगे। स्थानाभिलाषी तपसि स्थितोऽहं त्वां प्राप्तवान्देव - मुनीन्द्र - गुह्यम् । काचं विचिन्वन्नपि दिव्य - रत्न स्वामिन्कृतार्थोऽस्मि वरं न याचे ॥ (मध्य लीला 22. 42) अनुवाद : जब ध्रुव महाराज को पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् वर दे रहे थे , तब उन्होंने कहा था : ' हे प्रभु , चूँकि मैं ऐश्वर्ययुक्त भौतिक पद की खोज में था , इसलिए मैं कठिन तपस्या कर रहा था । अब तो मैंने आपको पा लिया है, जिन्हें बड़े - बड़े देवता , मुनि तथा राजा भी बड़ी कठिनाई से प्राप्त कर पाते हैं । मैं तो एक काँच का टुकड़ा ढूँढ रहा था , किन्तु इसके बदले मुझे बहुमूल्य रत्न मिल गया है । अतएव मैं इतना सन्तुष्ट हूँ कि अब मैं आपसे कोई वर नहीं चाहता । वरं न याचे, ध्रुव महाराज ने कहा स्वामिन्कृतार्थोऽस्मि वरं न याचे, क्या वर मांगना है ? वर मांगने के लिए ही तो ध्रुव महाराज ने सारे ध्यान ,धारणा ,तपस्या, की थी। कुछ बहुत बड़ी महत्वकांक्षा थी। किंतु वे भगवान की आराधना कर रहे थे लेकिन, सकाम आराधना थी। फिर भगवान प्रसन्न हुए, दर्शन दिए और जब कहा कि आओ और आकर वर मांगो, ध्रुव महाराज ने कहा कृतार्थोअस्मिन मैं कृतार्थ हुआ मैं कृत कृत हुआ। स्वामी वरं न याचे , अब मुझे कोई वर नहीं चाहिए। आपका दर्शन ही वरदान है। जो भी वर मांगने का , मैं सोच रहा था ? कि मुझे कुछ कांच के टुकड़े मिल जाए। जब रास्ते में कोई एक्सीडेंट वगैरा होता है, तब कांच के हजारों लाखों टुकड़े ही टुकड़े सर्वत्र होते हैं उसमें से एक टुकड़ा उठाओ, ऐसा ही कुछ में ढूंढ रहा था लेकिन अब तो मुझे हीरे मोती जवाहरात मिले, आप मिले आपका दर्शन हुआ। स्वामी वरं न याचे अब मुझको कोई वर नहीं चाहिए। अतः भक्ति का फल ऐसा है। भगवान की भक्ति करेंगे यदि हमारी कोई अन्य कामना है तो उसको मिटा सकते हैं, इसीलिए कहा है अकामः सर्व - कामो वा मोक्ष- [ -काम उदार - धीः तीव्रेण भक्ति - योगेन यजेत पुरुषं परम् ॥ परम पुरुष की आराधना करनी चाहिए। यद्यत्र नः स्वर्गसुखावशेषितं स्विष्टस्य सूक्तस्य कृतस्य शोभनम् । तेनाजनाभे स्मृतिमज्जन्म नः स्याद् वर्षे हरिर्यद्भजतां शं तनोति ॥ (श्रीमद भागवतम 5.19.28) अनुवाद : यज्ञ , पुण्य कर्म , अनुष्ठान तथा वेदाध्ययन करते रहने के कारणस्वरूप हम स्वर्ग लोक में वास कर रहे हैं , किन्तु एक दिन ऐसा आएगा जब हमारा भी अन्त हो जाएगा । हमारी प्रार्थना है कि उस समय तक यदि हमारे एक भी पुण्य शेष रहें तो हम मनुष्य रूप में भगवान् के चरणकमलों का स्मरण करने के लिए भारतवर्ष में जन्म लें । श्रीभगवान् इतने दयालु हैं कि वे स्वयं भारतवर्ष में आते हैं और यहाँ के वासियों को सौभाग्य प्रदान करते हैं । हरी हरी , वर्षे मतलब भारतवर्ष में प्रकट होते हैं शं तनोति ,कल्याण करते हैं भगवान भारत में प्रकट होते हैं और फिर भारतवासियों का कल्याण करते हैं या सभी भगवान की भक्ति करते हैं और उनका कल्याण होता है। हमारा कब कल्याण होगा ? हमें भी ऐसे भारतवर्ष में जन्म का सौभाग्य प्राप्त हो ताकि हम भगवान के चरण कमलों का स्मरण कर सकें। इसलिए हमें भारत में जन्म प्राप्त हो ऐसी प्रार्थना है। ठीक है , आप भी इसे पुनः तात्पर्य के साथ पढियेगा। यह पांचवा स्कंध का 19 वां अध्याय 21 वे श्लोक से 28 श्लोक तक , आज यहीं विराम देते हैं। हरे कृष्ण ! गौर प्रेमानन्दे !

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