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जप चर्चा
पंढरपुर धाम से
19 जनवरी 2021
हरे कृष्ण। 800 स्थानों से आज जप हो रहा है। समझ रहे हो ? हरि हरि। आप सभी का पुनः पुनः स्वागत है। आज प्रात कालीन कक्षा , जप चर्चा के अंतर्गत उपदेशामृत का आठवां श्लोक पढ़ेंगे और फिर उसके अलावा कई सारे भक्त होंगे वह अलग-अलग मंदिरों के बुक डिसटीब्यूटर्स ,अपने अपने ग्रंथ वितरण के अनुभव सुनाएंगे , अपने अपने साक्षात्कार सुनाएंगे । इस तरह मैं भी , वह भी , आप सभी भी आज कुछ प्रस्तुत करेंगे । ठीक है।
नाम रूप चरित ....
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अनुवाद सुनिये , ध्यानपूर्वक सूनना । प्रत्येक शब्द , प्रत्येक अक्षर सुनो । वाक्य और प्रत्येक वाक्य का समूह या उसका अनुवाद समझो । जैसे हम ध्यान पूर्वक जप करते हैं वैसे ध्यान पूर्वक शास्त्रो के वचनों का श्रवण भी करना चाहिए। समस्त उपदेशों का सार यही है कि मनुष्य अपना पूरा समय 24 घंटे वैसे उस श्लोक में 24 घंटे तो नहीं कहा हैं , प्रभूपाद का भाषांतर भी है यह , चौबीसों घंटे भगवान की दिव्य नाम , दिव्य रूप , गुणों तथा नित्य लीला का सुंदर ढंग से कीर्तन तथा स्मरण करने में लगाएं । जिसमे उसकी जीभ , मन क्रमशः व्यस्त रहें । इस तरह उसे गोलोक वृंदावन धाम में निवास करना चाहिए और भक्तों के मार्गदर्शन में कृष्ण की सेवा करनी चाहिए। मनुष्य को भगवान के उन प्रिय भक्तों के पदचिन्हो का अनुगमन करना चाहिए , मनुष्य को भगवान के उन प्रिय भक्तों के पदचिन्हो का अनुसरण करना चाहिए जो उनके भक्ति में प्रगाढता से अनुरक्त है।
हरी हरी। आप पढियेगा , अब पढ़ने का समय नहीं है और वैसे इस श्लोक का उल्लेख करने का मेरा उद्देश्य यह भी है कि , एक भौतिकवादी होते हैं , प्रत्यक्ष वादी भी कहा जा सकता है जो देखते है , सुनते हैं , सुन सकते हैं वही है यह सब मानने वाले जो हम देख नहीं सकते , सून नहीं सकते , सुंग नहीं सकते , उसको स्पर्श नहीं कर सकते वह है नहीं ऐसे भी होते हैं , यह भौतिक वादी या प्रत्यक्ष वादी , उन्हे नास्तिक कहा है और फिर होते हैं निराकार निर्गुण वादी या मायावती जिनको आस्तीक तो कहां है।
धर्म में भगवान में जिनकी आस्था है भगवान की अस्तित्व को वह मानते हैं , स्विकार करते हैं किंतु भगवान का नाम नहीं है , रूप नहीं है , गुण नहीं है वह लीला नहीं करते , उनका धाम नहीं है ऐसी उनकी मान्यता दुर्दैव से होती है , ऐसे होते हैं यह दूसरा समूह है। एक भौतिकवादी नास्तिक , निराकार निर्गुण , मायावादी आस्तिक समूह और फिर यह अद्वैत वादी भी होते हैं निराकार वादी , निर्गुण वादी और फिर होते हैं वैष्णव हरी हरी , वह प्रत्यक्ष को प्रमाण नही मानते या प्रत्यक्ष प्रमाण भी हो सकता है , अंदमान भी प्रमाण है लेकिन वैष्णव का विश्वास शब्द में होता है, शब्द प्रमाण या शास्त्र प्रमाण। हरि हरि। शब्द प्रमाण यह प्रमाण है । प्रमाण क्या है ? इसका सबुत क्या है ? शास्त्र प्रमाण। शब्द जो शब्दों से भरे है वह शब्द प्रमाण, उसको स्वीकार करते हैं और यह शब्द प्रमाण , शास्त्र प्रमाण को स्वीकार करते है। मायावती भी आस्तिक कहलाते हैं। वह भी शास्त्र को , शब्दों को प्रमाण मानते हैं किंतु उनके भाष्य चलते हैं । हां , भगवान है किंतु भगवान का रूप नहीं है या भगवान का कोई गुण नहीं है ऐसे ही अंततोगत्वा अद्वैत मतलब हम और भगवान एक ही है ।
सर्वं खल्विदं ब्रह्म ।
(छान्दोग्य उपनिषद् ३.१४.१)
अनुवाद: भगवान् एक हैं और वे सर्वत्र विद्यमान हैं । चूँकि पूर्ण भक्त के लिए शक्ति व शक्तिमान अभिन्न हैं , इसलिए उसके लिए यह तथाकथिक भौतिक जगत भी आध्यात्मिक बन जाता है । सबकुछ भगवान् की सेवा के लिए है , और निपुण भक्त कोई भी तथाकथित भौतिक वस्तु भगवान् की सेवा में लगा सकता है । ( श्रील प्रभुपाद ने श्रीमद् भागवतम् के ४.२४.६२ व ४.२८.४२ के तात्पर्यों में सर्वं खल्विदं ब्रह्म का यह अर्थ बतलाया है । )
सब ब्रह्म है । केवल ब्रह्म का अस्तित्व है , परमात्मा का नहीं है , भगवान का नहीं है यह जो नाम, रूप, गुण, लीला, धाम यह भगवान के संबंध में है। पराश मतलब भगवान की कई सारी विविध शक्तियां है । यह मायावती, निराकार निर्गुण वादी के लिते भगवान केवल ब्रम्ह है। भगवान के शक्ति को नहीं मानते , हरी हरी।
ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या , बाकी सब मिथ्या है केवल ब्रह्म ही सत्य है और फिर अहम ब्रह्मास्मि , मैं ही ब्रह्म हूं , यह जो ब्रह्म है उसमें में लीन होता हूं। इसी में सिद्धि है , ब्रह्मलीन होने में सिद्धि है या अहं ब्रह्मास्मि यह सर्वोपरि साक्षात्कार है। तो इस मान्यताओं के साथ यह मायावादी यानी कृष्ण अपराधी भगवान के चरणों में अपराध करते है। कृष्णा के चरणों को स्वीकार ही नहीं करते, कृष्ण के तो चरण ही नहीं है, को नहीं नहीं है ऐसा वह मानते है। हरि हरि। फिर वह भगवान से वंचित रह जाते है और भगवान से अपरिचित रह जाते है। भगवान का भी परिचय होता है और वैसे किसी व्यक्ति का ही परिचय है, इस संसार के यानी आपके जैसे जो व्यक्ति है उनका भी परिचय होता है, उसका नाम, रूप, गुन होता है। उसकी कुछ विशेषता होती है यानी अच्छा आदमी है या बदमाश है, गुण या अवगुणों का ऐसे परिचय होता है। नाम रूप गुण लीला और वे क्या करते है? क्या उद्योग करते है? कुछ उद्योग नहीं करते बेरोजगार है या किसी कंपनी में नौकरी करते है। तो ऐसे ही नाम रूप गुण और कार्यकलाप और उसी के साथ आता है धाम यानी वह कहां पर रहते है।
उनका पता क्या है कौन से देश में कौन से शहर में या कौन सी गली में रहते है? और उनके कौन-कौन रिश्तेदार है या मित्र है? तो ऐसे व्यक्ति का परिचय मतलब उसके नाम, रूप, गुण, कार्यकलाप और उसके पते के हिसाब से उसका परिचय होता है। तो ऐसे ही भगवान का भी ऐसा ही परिचय होता है। भगवान का भी ऐसे ही नाम, रूप, धाम, गुण होता है। जैसे संसार के लोगों का परिचय होता है तो भगवान का भी परिचय वैसे ही होता है। तो यहां कहा है, इस उपदेशामृत के श्लोक में कि, भगवान का क्या-क्या है, नाम रूप गुण लीला आदि है। तो भक्त को ब्रज में याद धाम में रहना चाहिए ऐसा उल्लेख हुआ है। तो जब हम कई सारे भौतिकवादी भी इस ज्ञान के यानी भक्ति पूर्ण ज्ञान, भगवान के नाम और रूप गुण, लीला धाम परिकर का जो ज्ञान है इसको भक्तिपूरक ज्ञान यानी भक्ति को बढ़ाने वाला यह ज्ञान है।
केवल ज्ञान ज्ञानयोग का ज्ञान नहीं है! यह भक्तियोगियों का ज्ञान है या फिर भक्ति करने पर ही ऐसा ज्ञान प्राप्त होता है। ऐसा ज्ञान प्राप्त करनेसे भक्ति बढ़ जाती है। तो जब हम भगवान का नाम कहते है तो कितनी सारी ज्ञान की बातें नाम के साथ जुड़ी हुई है। और भगवान के कितने सारे नाम भी है। विष्णुसहस्त्रनाम! और कुछ नाम भगवान के रूप के कारण है। जेसे श्यामसुंदर! और कुछ नाम भगवान के लीला के कारण है, जेसे वेनूधर! नाम भी हुआ और लीला का उल्लेख भी हुआ। तो भगवान के अलग-अलग या असंख्य नाम है। भगवान के रूप के कारण या गुणों के कारण, भगवान की लीलाओं के कारण, भगवान के धाम के कारण, जेसे अयोध्या वासी राम येसे अलग अलग नाम हो जाते है। तो इस बारे में कभी और बताएंगे!
भगवान के नाम, रूप, गुण, लीला, परीकर और धाम इसके संबंध में कुछ कहने का विचार था। कुछ भक्तों ने संकीर्तन किया या संकीर्तन यानी ग्रंथों का वितरण भी किया, तो भगवान के नाम रूप गुण लीला धाम और परिकर का किर्तन किया! उन ग्रंथों में यह सब है जैसे कि नाम का कीर्तन, रूप का कीर्तन, लीला का कीर्तन, या धाम का कीर्तन और भगवान के परिकर यानी भक्त, पार्षद के कीर्ति का गान यह सब कीर्तन है। बुक डिस्ट्रीब्यूशन पार्टी यानी संकीर्तन पार्टी है ग्रंथ वितरण हो रहा है यानी संकीर्तन ही हो रहा है! हरि हरि। ठीक है में यहां पर रुक जाता हूं। गौरव प्रेमानंदे हरि हरि बोल! हरे कृष्ण।