Hindi

5-July-2019 भगवान जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर वृंदावन में है कल जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव था रथयात्रा महोत्सव की जय हरि बोल । मुझे विश्वास है कि आप जहां कहीं भी हो उस स्थान से रथयात्रा में अवश्य सम्मिलित हुए होंगे। मैं भी कल जगन्नाथपुरी से रथयात्रा को देख पाया। मैंने भगवान जगन्नाथ का उनके मुकुट के साथ दर्शन किया। जगन्नाथपुरी अत्यंत सुंदर शहर है। मुझे पता नहीं यह रथ यात्रा कहां तक पहुंची होगी कई बार वे उसे बीच में रोक देते हैं। मुझे आशा है कि भगवान जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर पहुंच गए होंगे और भी गुंडिचा मंदिर की वेदी पर विराजमान होंगे। गुंडिचा मंदिर वृंदावन धाम है यह जगन्नाथपुरी का वृंदावन है। भगवान जगन्नाथ अगले 8 से 9 दिन वहां रहेंगे। भगवान पुनः वृंदावन आकर अत्यंत प्रसन्न है जहां वे अपने वृंदावन के भक्तों से घिरे हुए रहते हैं। यह कथा हमें जप करते हुए भगवान जगन्नाथ तथा राधा कृष्ण के विषय में चिंतन करने का एक विषय प्रदान करती है। हम इसके विषय में चिंतन कर सकते हैं। आज से 2 सप्ताह पहले स्नान यात्रा उत्सव था और उसके तुरंत पश्चात भगवान बीमार हो गए इस प्रकार हमें यह सोचना चाहिए कि भगवान जगन्नाथ और श्री कृष्ण स्वस्थ नहीं है और अब वे पुनः ठीक हुए हैं। हमें यह समाचार मिलता है कि भगवान अब धीरे-धीरे ठीक हो रहे हैं और फिर गुंडिचा मार्जन का दिन आता है और उसके पश्चात भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का दिन आता है जो कल था। भगवान अपने रथ पर आरूढ़ होकर अत्यंत उत्सुकता पूर्वक वृंदावन में अपने भक्तों से मिलने के लिए जाते हैं। जो उनके रथ को खींचते हैं वे सभी उनके भक्त हैं और वे भगवान को पुनः वृंदावन लेकर जाते हैं। और अब भगवान वृंदावन में है अर्थात गुंडिचा मंदिर में है। भगवान श्री जगन्नाथ की इस प्रकार की लीलाएं जो जगन्नाथपुरी में संपन्न होती हैं वह अत्यंत ही मधुर है और यदि हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते समय इन का स्मरण करें इन पर अपना ध्यान टिकाए तो इससे हमारी चेतना शुद्ध हो सकती है और हम कृष्ण भावनाभावित बन सकते हैं। इस प्रकार से हम भगवान जगन्नाथ की लीलाओं का स्मरण कर सकते हैं। इस प्रकार से भगवान की कई लीलाएं संपन्न होती है। भगवान जगन्नाथ की लीला यहां संपन्न हो रही है भगवान विट्ठल अपनी लीलाएं करते हैं ,अयोध्या में भगवान श्री राम अपनी लीला करते हैं, द्वारका धाम में भगवान अपने लीला करते हैं। द्वारका मा कौन छे ? राजा रणछोड़ छे। मायापुर धाम की जय ! वहां गौरांग महाप्रभु अपनी लीलाएं करते हैं। भगवान के जो उत्सव विग्रह होते हैं वे इन उत्सवों के समय वेदी से बाहर लाए जाते हैं इस प्रकार से कई विषय हैं जिन पर हम चिंतन कर सकते हैं। श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर कहते थे कि हमें एक दैनिक समाचार पत्र निकालना चाहिए हरे कृष्ण समाचार पत्र। उनके कुछ शिष्यों ने कहा गुरु महाराज यह किस प्रकार संभव है हम उन दैनिक समाचारों में प्रतिदिन क्या समाचार प्रकाशित करेंगे ? श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने कहा तुम देख सकते हो इस जगत में सैकड़ों हजारों अखबार प्रतिदिन छप रहे हैं प्रतिदिन कई प्रकार के समाचार उनमें आते हैं परंतु आध्यात्मिक जगत में इस भौतिक जगत से बहुत अधिक समाचार है वहां प्रत्येक मिनट कोई न कोई लीला संपन्न होती है। इस प्रकार प्रत्येक मिनट हम एक समाचार पत्र निकाल सकते हैं क्योंकि भगवान की जो लीलाएं हैं वे प्रत्येक समय संपन्न हो रही होती है और उन सभी लीलाओं का संग्रह करके हम समाचार पत्र निकाल सकते हैं। इस प्रकार यदि आप भगवान की आध्यात्मिक लीलाओं का चिंतन करें तो क्रमशः धीरे-धीरे आप इन बंधनों से मुक्त हो सकते हैं और भगवान जगन्नाथ की जो दिव्य लीलाएं हैं उनमें आप सम्मिलित होकर नित्य लीला का अंश बन सकते हैं। अब चैतन्य महाप्रभु अपना समय गुंडिचा मंदिर में व्यतीत करने लगे। वास्तव में 'जेई गौर सेई कृष्ण सेई जगन्नाथ' अर्थात जो गौरांग महाप्रभु है वही कृष्ण है और वही जगन्नाथ है। भगवान जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर में निवास कर रहे हैं और चैतन्य महाप्रभु जो की स्वयं जगन्नाथ है वह भी अपना अधिकांश समय गुंडिचा मंदिर में व्यतीत करने लगे और चैतन्य महाप्रभु किस प्रकार गुंडिचा में अपना समय व्यतीत करते थे उसके विषय में भी वर्णन आता है। गुंडिचा मंदिर के नरेंद्र सरोवर तथा अन्य झीलों में चैतन्य महाप्रभु जल क्रीड़ा करते थे जिस प्रकार भगवान वृंदावन में यमुना के जल में गोपियों तथा बाल सखाओं के साथ जलकेली करते हैं, जल क्रीड़ा का आनंद लेते हैं उसी प्रकार श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ पुरी में इन झीलों में प्रवेश करते और अपने भक्तों के साथ जल क्रीड़ा करते। अब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु श्री कृष्ण के भावों में हैं और वह वृंदावन के सदृश यहां लीलाएं संपन्न कर रहे थे। गुंडिचा मंदिर में वे अधिकांश समय राधा कृष्ण की लीलाओं का श्रवण करते और हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हुए व्यतीत करते। जब चैतन्य महाप्रभु अपने अंतरंग पार्षदों यथा रामानंद राय, स्वरूप दामोदर, गोविंद, जगदानंद पंडित आदि भक्तों से घिरे हुए बैठे रहते। बोधयंत परस्परं , कथयन्तश्च माम नित्यं। तुष्यन्ति च रमन्ति च। (भगवद गीता १०. ९) वे श्री कृष्ण के विषय में चर्चा करते। राधा कृष्ण की जय ! विशेष रूप से स्वरूप दामोदर भगवान की लीलाओं को पढ़ते। वास्तव में वे भगवान की लीलाएं बोलते नहीं थे अपितु उनका गान करते थे। वह विद्यापति तथा चंडीदास द्वारा रचित आध्यात्मिक भजनों को गाते थे। जब स्वरूप दामोदर इन दिव्य आध्यात्मिक भजनों को गाते तो इससे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को अत्यंत आनंद मिलता। जयदेव गोस्वामी का गीत गोविंद, बिलवामंगल ठाकुर द्वारा रचित कृष्णकर्णामृत , ग्रंथराज श्रीमद्भागवत आदि कई शास्त्रों का महाप्रभु आस्वादन करते। इस प्रकार से वहां यह श्रवण उत्सव चल रहा था जहां बहुत अधिक श्रवण और कीर्तन संपन्न होता और वे सभी वृंदावन के राधा कृष्ण के भावों में निमग्न रहते और गुंडिचा मंदिर में इस प्रकार की लीलाओं का आस्वादन करते थे। जब कोई उन लीलाओं को श्रवण करता है तो वह उन उन लीलाओं का प्रत्यक्ष दर्शन कर सकता है। राधा कृष्ण की लीलाओं से आकर्षित होता है जो कि चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं के मुख्य आकर्षण थे और वह भगवान की इन लीलाओं में प्रविष्ट होना चाहता है नित्य लीला प्रविष्ट। यदि कोई अत्यंत ध्यानपूर्वक इन लीलाओं का श्रवण करें तो भी वह इसी शरीर में उन लीलाओं से मैं प्रवेश कर सकता है जीवनमुक्त बन सकता है। वह मुक्त हो सकता है। इस प्रकार से गुंडिचा मंदिर में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अपने सभी पार्षदों के साथ में समय व्यतीत कर रहे थे और चैतन्य चरितामृत में इसका विस्तार से वर्णन आते हैं तो जो कुछ लीलाएं आज से लगभग 500 वर्ष पूर्व गुंडिचा मंदिर में संपन्न हुई हम उनका आज आस्वादन कर रहे हैं। स्वरूप दामोदर जो कृष्ण लीला में ललिता सखी है वह भी वहां उपस्थित रहते थे। ललिता सखी जो अब स्वरूप दामोदर के रूप में अवतरित हुई थी वह भगवान श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के मन को पूरी तरीके से समझ सकती थी, वह गौरांग महाप्रभु के हृदय को पढ़ सकती थी। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु क्या सोचते हैं उनके मन में क्या चल रहा है। महाप्रभु यदि कोई बात अथवा कोई मंत्र कहते तो केवल स्वरूप दामोदर उसे तत्वतः समझ सकते थे। इस प्रकार आज से 500 वर्ष पूर्व जो घटनाएं घटित हुई उन्हें हम तत्वतः नहीं समझ सकते हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अत्यंत गूढ़ बातें कहते थे क्योंकि वह राधा रानी के भाव में थे। राधारानी कोई साधारण व्यक्तित्व नहीं है वह अत्यंत ही गुढ़ और रहस्यमयी बातें कहते थे और चैतन्य महाप्रभु जो कुछ भी कहते थे केवल स्वरूप दामोदर इन सभी बातों को समझ सकते थे स्वरूप दामोदर अत्यंत उच्च कोटि के भक्त थे। हमने पहले ही बता दिया कि स्वरूप दामोदर ललिता सखी के अवतार है अतः इतना सुनने के पश्चात स्वरूप दामोदर की स्थिति को समझना अत्यंत आसान हो जाता है। कल स्वरूप दामोदर गोस्वामी का तिरोभाव दिवस था हमने उनके विषय में आज चर्चा करके उनका स्मरण करने का विचार किया था। इसके साथ ही साथ मुझे एक अन्य लीला का स्मरण हो रहा है जो कि बहुत ही विशेष है। चैतन्य महाप्रभु ने स्वरूप दामोदर को अत्यंत विशेष कार्य सौंपा था। महाप्रभु से मिलने के लिए कई भक्त आते थे। वे कई बार चैतन्य महाप्रभु को कुछ पत्र लिख कर देते थे जिन्हें चैतन्य महाप्रभु बाद में पढ़ते थे। स्वरूप दामोदर एक प्रकार से चैतन्य महाप्रभु के सचिव थे उनका कार्य था कि भक्त जो कुछ भी लिख कर देते पहले स्वरूप दामोदर उसे देखते और यह निश्चित करते कि उन्होंने जो लिखा है उचित है तभी वह पत्र चैतन्य महाप्रभु के पास जाता अन्यथा वे उसे कचरा पात्र में फेंक देते। एक दिन एक व्यक्ति भगवान जगन्नाथ और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की प्रशंसा करते हुए एक पत्र लिखता है और वह स्वरूप दामोदर के पास आता है उसने उस में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय हो ऐसा लिखा और वह लिखता है कि चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ की आत्मा है। वह सोच रहा था कि यदि मैं ऐसा लिखूँगा कि गौरांग महाप्रभु जगन्नाथ की आत्मा है तो एक प्रकार से मैं महाप्रभु की महिमा का वर्णन करूंगा। परंतु स्वरूप दामोदर ने जब यह पढ़ा तो उन्होंने उस पत्र को कचरा पात्र में फेंक दिया। प्रारंभ के दिनों में जब मैंने चैतन्य चरितामृत पढ़ी तो जब मैंने यह देखा कि किस प्रकार उस भक्तों ने लिखा है कि चैतन्य महाप्रभु भगवान जगन्नाथ की आत्मा है यह पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा परंतु स्वरूप दामोदर गोस्वामी महाराज को यह समझने में बिल्कुल देर नहीं लगी कि यह बात ठीक नहीं है और उन्होंने उस पत्र को फेंक दिया। तो यहां इस पत्र में यह त्रुटि थी कि उस भक्त ने श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को भगवान जगन्नाथ की आत्मा बताया अर्थात भगवान जगन्नाथ शरीर है और चैतन्य महाप्रभु उनकी आत्मा है। यहां एक शरीर है और दूसरे आत्मा हैं अर्थात दोनों अलग-अलग है जो कि विशेष त्रुटिपूर्ण था जगन्नाथ कोई शरीर नहीं है जगन्नाथ आत्मा है जगन्नाथ परमात्मा है और चैतन्य महाप्रभु स्वयं जगन्नाथ है जो जगन्नाथ है वही चैतन्य महाप्रभु है दोनों में कोई भेद नहीं है। जेई गौर सेई कृष्ण सेई जगन्नाथ , जो गौरांग है वही कृष्ण है और वही जगन्नाथ है वे दोनों पूर्ण पुरुषोत्तम है। ऐसा नहीं है कि एक शरीर है और दूसरे आत्मा हैं। तो इस प्रकार स्वरूप दामोदर गोस्वामी ने उस पत्र को फेंक दिया और हमें गौर तत्व तथा जगन्नाथ तत्व को समझने में सहायता प्रदान की। हमें भगवान को तत्वतः समझना चाहिए यदि हम ऐसा करेंगे तभी हम पूर्णरूपेण कृष्ण भावना भावित बन सकते हैं और हम विश्वास के साथ दृढ़ता के साथ हरे कृष्ण महामंत्र का जप कर सकते हैं। हम इस कांफ्रेंस को यहीं विराम देते हैं। कल शिवानंद सेन का भी तिरोभाव दिवस था। मैं उनके विषय में भी कुछ कहना चाहता था इसके साथ ही साथ कल परम पूज्य राधा गोविंद गोस्वामी महाराज की आविर्भाव तिथि थी। पुणे तथा अन्य कई स्थानों पर भक्त महाराज की व्यास पूजा में सम्मिलित हुए थे। राधा गोविंद गोस्वामी महाराज मेरे अत्यंत प्रिय गुरु भाई है मैं महाराज की श्रीमद् भागवत कथा का पान करने वाला एक रसिक भक्त हूं। महाराज को भगवान श्री कृष्ण ने यह विशेष उपहार दिया है कि वे भागवतम को तत्वतः समझ सके और मुझे राधा गोविंद गोस्वामी महाराज की कथा का श्रवण करने से अत्यंत आनंद की प्राप्ति होती है। महाराज के कथाओं की सैकड़ों रिकॉर्डिंग उपलब्ध है मैं आप सभी को विशेष रूप से यह निवेदन करूंगा कि आप महाराज की कथाएं सुनिए उनकी कथाएं हिंदी भाषा में है। मैं नियमित रूप से महाराज की कथा का श्रवण करता हूं और आप सब को भी ऐसा करना चाहिए। राधा गोविंद गोस्वामी महाराज ने हमें यह जो खजाना अपनी कथाओं के रूप में उपलब्ध करवाया है इसका हमें पूर्ण लाभ लेना चाहिए और इसका लाभ लेकर हमें धनवान बनना चाहिए। राधा गोविंद गोस्वामी महाराज आविर्भाव तिथि महामहोत्सव की जय ! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल !

English

5th July 2019 Jagannath is in Gundicha temple which is Vrindavan Yesterday was Jagannath Rath Yatra mahotsav ki jay! Haribol. I am sure many of you took part in Rath Yatra wherever you were. I was at least able to watch Rath Yatra procession in Jagannath Puri yesterday. I had darsana of Jagannath with the crown. That is a beautiful city. I'm not sure how far the procession reached, sometime they stopped in the middle. Hopefully Jagannath has reached Gundicha temple, on the altar of Gundicha mandir by now. And Gundicha mandir is Vrindavan dhama- Vrindavan of Jagannath Puri. Lord will reside there for 8 to 9 days. Lord is very happy to be back in Vrindavan surrounded by his loving most loving devotees of Vrindavan dhama. This gives us topic to think about Lord, Hare Krishna, think of Radha and Krishna, think of Jagannath. We had been thinking. Now two weeks ago there was a snana yatra festival and then Lord took bed rest and getting recuperated. So we had been reminding you or we should be remembering like that my Lord Jagannath, Sri Krishna is not well. Ok we got the news that He is getting better and better. And then Gundicha marjana took place. That also was the day of Netra utsav. First time after long time devotees took darsana of Jagannath and yesterday was the Rath Yatra festival. Lord riding on the chariot and very anxiously eagerly traveling to Vrindavan to meet His devotees. Those who are pulling chariot they are His devotees and they are bringing Him back to Vrindavan. And now He is in Vrindavan He is in Gundicha temple. All these past times of Jagannath in Jagannath Puri are lot for us to think about and meditate upon and digest, assimilate, make part of our system, consciousness and become Krishna conscious while chanting Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare This gives topic for us to think about. We could very easily say that we are doing dhyana, we are remembering even these pastimes of Lord Jagannath and if we are remembering, chanting and remembering pastimes of Jagannath, but pastimes of Vitthal are going on here. Same Lord in Ayodhya, He has some pastimes happening and in Dwarka dhama it would be Sri Krishna and ‘Dakor ma kon che? Raja Ranchoda Che’ and like that Mayapur dhama ki jay! Gauranga Mahaprabhu is having His pastimes there. Vigraha, the deities are participating in different occasions and festivals you know. The tons of topic you could think about as Srila Bhakti Siddhanta Sarasvati Thakur used to say or used to propose, we should have a daily newspaper, ‘Hare Krishna’ daily newspaper. Some of his disciples said “Guru maharaja, how is that possible? How could we have so much news to print every day, Hare Krishna newspaper? Srila Bhakti Siddhanta Saraswati Thakur said and you could see, the world has hundreds and thousands of newspapers. There are so much news, breaking news, printing the news daily. But there are so many news from the spiritual sky, spiritual world, what to speak of printing the news daily in newspaper. There is enough news to print every minute. Every moment paper could be printed with so much news from all around, from all abodes, all personalities of Godhead and Their pastimes, Their festivals, this and that. So if you could remember those activities and pastimes and lilas and festivals and get rid of these mundane news of this world, keep that out and substitute that with spiritual news, spiritual activities, pastimes of Jagannath and other deities are performing also and of course nitya lilas, pastimes are taking place all the time at every step. Now Caitanya Mahaprabhu is spending His time in Gundicha. I mean He is ‘jei gaur sei krishna sei jagannath.’ Jagannath is residing there and Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu is also residing in Gundicha and spending lot of time in Gundicha temple and how are they spending time, how is Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu spending His time? Water sports and different things going on in Narendra Sarovar and lakes around. Caitanya Mahaprabhu used to enter different lakes and with His associates, He is playing water sports and splashing, so activities like that like Lord’s activities in Vrindavan with gopis, jalkeli water sport or with the cowherd boys He is also swimming and playing in water of Yamuna. So Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu He is in mood of Sri Krishna, back in Vrindavan and He is performing various pastimes. They are hearing about Radha and Krishna, lot of time is spent in hearing and chanting at Gundicha temple. Caitanya Mahaprabhu, Gauranga surrounded by His associates specially very close confidential associates like Rai Ramananda, Svarupa Damodar, Govind and others Jagadanand Pandit and they were all doing, ‘bodhayantaha parasparam kathayantasch mam nityam tushyanti ch ramanti cha (BG 10.9) They are all talking about Krishna. Radha Krishna ki jai! Specially Svarupa Damodar he recites pastimes. He doesn’t speak pastimes; he sings pastimes of the Lord. Specially poems and songs devotional songs of Vidyapati and Chandidas. Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu took great pleasure as Svarupa Damodar would recites those devotional songs. Jaidev Goswami’s ‘Geet Govind’, Krishna Karnamrita of Bilvamangal Thakur, and Grantharaj Srimad Bhagavatam . That is another topic of discussion. Mostly this is going on there. Hearing and chanting and there is shravan utsav, you would like to call it and this is how they are happily absorbed in the pastimes of Radha Krishna in Vrindavan, from Vrindavan, now they are relishing these pastimes at Gundicha temple. As one listens to these pastimes, that pastimes are realized, that listener could began witnessing those pastimes. He becomes attracted to the pastimes and of course the personality of Radha Krishna those who are center of these pastimes and attempts to join this pastime, they could become very much nityalila pravishta. They could enter those pastimes and as they listen to these pastimes with rapt attention and this how they could become the jivan mukta while they are still in the present body. They are liberated. So this is what is going on at Gundicha temple in association of Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu and then all His associates and as we get to hear about this from Caitanya Caritamrita, we are repeating this. So we get hooked or connected to that happened at Gundicha temple 500 years ago and is going on eternally right now. Svarupa Damodar was Lalita sakhi from Krishna’s pastime. Now he has appeared as Svarupa Damodar and he understands Lord’s mind Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu’s mind very well or some of the thoughts in the mind, in the heart of Gauranga. Svarupa Damodar was blessed and competent to grasp what Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu was thinking about and what is on His mind or even some mantras or statements Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu used to utter and others could not understand what is He talking or singing about that also was happening during Jagannath ratha yatra 500 years ago. Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu was saying something very very confidential and of course those were thoughts of, He was talking in a mood of Radharani. So what Radha has to say is not ordinary, superficial statement. It is very deep, very confidential. So Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu was uttering those statements. And Caitanya Caritamrita says Svarupa Damodar was only one who was understanding what Mahaprabhu was talking about. So Svarupa Damodar was exalted. We already said he is Lalita, if we could understand Lalita then that’s enough to understand Savarupa Damodar Goswami’s position. So yesterday was also Svarupa Damodar Goswami’s disappearance day. So we thought to bring him into the picture, remembering him. Also I remember another special lila, Lord Gauranga Mahaprabhu had given one special assignment to Svarupa Damodar. Always there were lot of devotees and visitors. They had a habit of writing some statement addressed to Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu, they would write it down and Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu would read what they had written. Svarupa Damodar would process them before passing to Caitanya Mahaprabhu. He would pass whatever was perfect to Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu and anything that was imperfect or defective, siddhanta wise or otherwise Svarupa Damadar would reject that or throw that into dustbin. It is described that Svarupa Damodar was a secretary that one title also he had. So he was doing his secretarial services. So one day one person he wrote his statement glorifying Jagannath and Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu as well. So what basically he had written was Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu ki jai! Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu is soul of Jagannath. He is atma of Jagannath. He was thinking, i am glorifying Gauranga but by mentioning Him to be the atma, the spirit of Jagannath. Svarupa Damodhar when he read this he dumped it into the dustbin. Even when I read Caitanya Caritamrita initially, I thought this is great. I also was thinking like that, mind blowing Caitanya Mahaprabhu is soul of Jagannath. But Svarupa Damodar Goswami Maharaja, he took no extra time realizing the defect in that statement and he dumped it. So the defect was that if Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu is atma of Jagannath, Jagannath is bodily form and Caitanya Mahaprabhu is soul. One is body and one is soul. Distinction Is there, so this is trouble, defect, flaw in this so called glory of Gauranga and Jagannath. Jagannath doesn’t have a body. Jagannath only has a soul or Jagannath is a soul supreme soul and Gauranga Mahaprabhu is Jagannath. Caitanya Mahaprabhu is equal to Jagannath not that He is part of Jagannath or He is soul of Jagannath. ‘jei Gour sei Krishna sei Jagannath’ He is Gauranga. He is also Jagannath, so they are both purna Purushottam, not that one is soul of another body or another personality. So Svarupa Damodar Goswami detected this defect and he rejected this statement which helped us to understand the tattva, Gaura tattva or Jagannath tattva. We have to understand Lord tattvataha in order to become Krishna conscious in order to chant with faith in the holy name. So we stop here, you continue, yesterday also was disappearance day of Shivananda Sen. I wanted to say yesterday also was appearance day or avirbhava tithi mahotsav of Radha Govind Swami Maharaja. I understood that some of you were able to participate in Vyaspuja festivals in Pune and some other places. So Radha Govind Goswami Maharaja is a very dear Godbrother of mine and his recitation of Srimad Bhagavatam is excellent. And he has been gifted by the Lord and he is very realized soul rather, realized statements of Bhagavatam and I always take great pleasure in listening Radha Govind Goswami Maharaja’s katha. Lord’s pastimes and hundreds of recording available, strongly recommend you all also hear them,of course, his kathas are in Hindi. There are hundreds of kathas recordings available in Hindi. I have been listening and I will keep listening to his kathas. I would like you take advantage of the treasure that Radha Govinda Goswami Maharaja’s left, he is still with us but his treasure is available. Take full advantage, become enriched. Radha Govind Goswami Maharaja avirbhava tithi maha mahotsav ki jay! Gaur Premanande hari hari bol!

Russian