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4-July-2019 रथयात्रा महोत्सव आज अत्यंत भव्य रथयात्रा महोत्सव का पावन दिन है। 1977 में जब हम जगन्नाथपुरी में थे उस समय नेत्र उत्सव के दिन हमें भगवान का दर्शन नहीं मिला परंतु उसके अगले दिन रथयात्रा के दिन जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन कर रहे थे तो वहां के स्थानीय भक्तों ने हमारे कीर्तन की प्रशंसा की और हमें भगवान के दर्शन के लिए बुलाया। उस समय हमें ऐसा लग रहा था जैसे भगवान जगन्नाथ स्वयं हमारे कीर्तन की प्रशंसा कर रहे हो। रथ यात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ अपने रथ में आरूढ़ होकर वृंदावन जाते हैं। रथ यात्रा का भाव यह है कि किस प्रकार भगवान के भक्त अपने प्रेम के द्वारा भगवान के रथ को वृंदावन की ओर खींचते हैं। रथयात्रा एक प्रकार से हमारे जप की पूर्णता का प्रदर्शन है, जब हम यह समझ सकते हैं कि वास्तव में रथयात्रा क्या है, वास्तव में भगवान क्या सोचते हैं, बृजवासी भक्तों यथा राधारानी, नंदबाबा, यशोदा मैया तथा अन्य गोप गोपियों का भगवान के प्रति क्या प्रेम है जब हम इन भावों को समझ सकते हैं तो हम रथयात्रा महोत्सव को समझ सकते हैं। भक्त भगवान को वृंदावन की ओर खींच रहे हैं। चैतन्य महाप्रभु स्वयं को राधारानी के भाव में रखकर भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचते हैं और वे भगवान जगन्नाथ के रथ के आगे नृत्य करते हैं और इस प्रकार से भगवान और राधारानी के मध्य इस प्रेम का आदान-प्रदान होता है। राजा प्रताप रूद्र भी वहां आते हैं और चैतन्य महाप्रभु ने जब देखा कि वास्तव में यह राजा प्रताप रूद्र कितने अधिक नम्र हैं और वे तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं तो चैतन्य महाप्रभु इससे अत्यंत प्रसन्न हुए। महाप्रभु ने सोचा कि ऐसे व्यक्ति को दर्शन देने में कोई बुराई नहीं है। जब भगवान कुछ सोचते हैं तो वहां उनकी इच्छा शक्ति के द्वारा उस इच्छा को पूर्ण करने की पूरी व्यवस्था हो जाती है और इसीलिए चैतन्य महाप्रभु और राजा प्रताप रूद्र का मिलन हुआ। इस प्रकार वहां कीर्तन और नृत्य चल रहा था उड़िया और गौड़ीय भक्त बहुत बड़ी संख्या में एक साथ मिलकर कीर्तन और नृत्य कर रहे थे। महाप्रभु ने अपने भक्तों को 7 नृत्य दलों में विभक्त किया। राजा प्रतापरुद्र पर महाप्रभु ने विशेष कृपा की जिससे वह चैतन्य महाप्रभु का दर्शन सातों कीर्तन दलों में एक साथ कर पा रहा था। यह नृत्य वृंदावन के रास नृत्य के समान है जहां भगवान श्री कृष्ण प्रत्येक गोपी के साथ उस एक ही समय पर नृत्य कर रहे थे उसी प्रकार चैतन्य महाप्रभु भी प्रत्येक कीर्तन दल के साथ में एक ही समय एक साथ नृत्य कर रहे थे। राजा प्रताप रूद्र ऐसे दृश्य पाने के लिए योग्य पात्र थे और इसीलिए भगवान उन्हें इस प्रकार से दर्शन दे रहे थे। जिस प्रकार से राजा प्रताप रूद्र ने रथ यात्रा के समय दर्शन प्राप्त किया वास्तव में वही इस जप का फल होना चाहिए। उन्होंने जिन दर्शनों का आनंद लिया हमें भी उसी प्रकार का दर्शन प्राप्त होना चाहिए। वास्तव में तो रथ यात्रा उत्सव में सम्मिलित होने का मुख्य उद्देश्य यही है। वहां कई अंतरंग लीलाएं हो रही थी वहां बहुत अधिक भीड़ थी और मृदंग बजाने वाले भी बहुत अधिक मात्रा में थे परंतु हमारा प्रमुख लक्ष्य जिस प्रकार राजा प्रताप रूद्र ने जगन्नाथ का दर्शन किया और महाप्रभु का दर्शन किया उस पर होना चाहिए। तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना इस भाव के द्वारा जब कोई व्यक्ति निरंतर हरे कृष्ण महामंत्र का जप करता है तब वह इस स्थिति को प्राप्त कर सकता है। रथयात्रा हमारा भगवान के साथ मिलन का दिन है इस दिन भगवान अपने भक्तों को मिलते हैं और इसीलिए इससे हमारे हृदय में अत्यंत आनंद की प्राप्ति होती है और यह एक उत्सव के समान हैं। इस प्रकार बृजवासी रथ यात्रा के दिन अपने हृदय के मालिक परम भगवान से मिलते हैं। यह एक होने का दिन है कृष्ण से मिलने का दिन है और पुनः कृष्ण के पास जाने का दिन है वास्तव में यह भक्ति योग की पूर्णता है। जैसा कि हम जानते हैं उस वर्ष चैतन्य महाप्रभु ने राजा प्रताप रूद्र पर अत्यंत कृपा की और उन्हें अपने निकट पार्षद के रूप में स्वीकार किया। वह उस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण बिंदु थे। इस पूरे अध्याय में चैतन्य महाप्रभु के भाव का वर्णन आता है जो कि वास्तव में राधा रानी के भावों का प्रदर्शन कर रहे थे। वे राधा रानी के भाव के साथ बात करते थे उसी प्रकार से कार्यकलाप करते थे तथा नृत्य करते थे। इस प्रकार नृत्य करते हुए जब भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु थक गए ,वह समय भगवान जगन्नाथ के 'उपल भोग' का समय था। जब भगवान जगन्नाथ भोग ले रहे थे उस समय चैतन्य महाप्रभु समीप ही जगन्नाथ वल्लभ उद्यान में जाकर विश्राम करने लगे। चैतन्य महाप्रभु की इच्छा शक्ति के कारण राजा प्रताप रूद्र को यह प्रेरणा मिली कि वह भी उस उद्यान में जाकर महाप्रभु के दर्शन करें। जब वह राजा उस उद्यान में गया तो वह गोपी गीत जो कि राधागीत है उसे गाने लगा। चैतन्य महाप्रभु गोपी के भाव में थे। अतः राजा प्रताप रूद्र के लिए यह परम सौभाग्य का दिन था क्योंकि वह चैतन्य महाप्रभु के दिव्य शरीर का स्पर्श कर पाया और वह गोपी गीत से यह श्लोक गाने लगा जयति तेधीकम जन्मना व्रज (गोपी गीत श्लोक 1) इस प्रकार उसने गाना प्रारंभ किया और वह इस श्लोक पर पहुंचा तव कथामृत तप्त जीवनम , कवी भिरिडितम कल्म शापहं। श्रवण मंगलं , श्री मदा ततम , भुवि गृणन्ति ये भूरिदा जनः।। इस श्लोक के अंत में राजा प्रताप रूद्र ने कहा भूरीदा जना। गोपियां कहती है कि जो भगवान श्री कृष्ण की कथा को अन्य को सुनाता है वास्तव में वही भूरीदा हैं । जैसे ही महाप्रभु ने यह सुना वह जोर-जोर से कहने लगे भूरीदा भूरीदा, मैंने तुम्हें नहीं देखा तुम कौन हो। महाप्रभु कहने लगे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम कौन हो वास्तव में तो तुम भूरीदा हो तुमने मुझे कृष्ण प्रदान किए हैं। महाप्रभु सोच रहे थे कि यह अत्यंत ही दयालु व्यक्ति है इसने मुझे गोपी गीत के रूप में कथा अमृत द्वारा श्री कृष्ण प्रदान किए हैं परंतु मैं इसे वापस क्या दे सकता हूं ? मैं तो एक सन्यासी हूं मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है। ऐसा सोचकर महाप्रभु खड़े हुए अपनी दोनों भुजाएं उठाई और उन्होंने प्रताप रूद्र को आलिंगन करते हुए कहा मैं केवल आपको अपने हृदय से लगा सकता हूं यदि इससे आपको परेशानी न हो। राजा प्रताप रूद्र भी चैतन्य महाप्रभु के समीप आते हैं और वे दोनों एक दूसरे का आलिंगन करते हैं। इस प्रकार जीवात्मा और परमात्मा का मिलन होता है। अतः इस प्रकार का दिव्य मिलन आज रथ यात्रा उत्सव के दिन जगन्नाथपुरी में संपन्न हुआ। जब हम जगन्नाथ रथ यात्रा में सम्मिलित होते हैं तो हमें राजा प्रताप रूद्र की विनम्रता का स्मरण रखना चाहिए और साथ ही साथ हमें हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे इस महामंत्र का जप और कीर्तन करना चाहिए। परंतु हमें ध्यान रखना चाहिए कि यह कीर्तन और जप अपराध मुक्त हो। राजा प्रतापरूद्र अत्यंत ध्यान पूर्वक जप और कीर्तन कर रहे थे तथा उनका पूरा ध्यान भगवान जगन्नाथ एवं चैतन्य महाप्रभु और उनके भक्तों पर टिका हुआ था। आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि किस प्रकार राजा प्रताप रूद्र ने अपने जीवन को सफल बनाया और हमें भी उसी प्रकार अपने जीवन को सफल बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए। रथयात्रा का दिन इस प्रकार की सफलता को प्राप्त करने के लिए सबसे उत्तम दिल है। राजा प्रताप रूद्र की जय ! वह एक महान राजा थे। अतः राजा प्रताप रूद्र के चरणों का अनुसरण करते हुए हम भी इसी जीवन में अपने जीवन की पूर्णता तथा सफलता को प्राप्त कर सकते हैं। जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे। जगन्नाथ स्वामी की जय ! जगन्नाथ रथ यात्रा की जय ! राजा प्रताप रूद्र की जय!

English

4th July 2019 Ratha Yatra Mahotsva Today is a great day, Ratha Yatra day. In 1977, when we were in Jagannath Puri we could not have darshan on Netra utsava day but next day on ratha yatra day as we were performing Hare Krishna kirtan we were appreciated by the local devotees and called for darshan. We were feeling as if Lord Jagannath is appreciating us and our kirtan. On ratha yatra day Jagannath is going to Vrindavan in the chariot. The mood of ratha yatra is, how Lord’s love for His devotees moves towards Vrindavan. Ratha yatra is full display of perfection of our chanting if we could realize what ratha yatra is, what is Lord thinking, what is Lord feeling, love of the Lord for His Vrajavasi devotees, Radharani, Nandababa, Yasoda. They are trying to pull Lord to Vrindavan. Chaitanya Mahaprabhu is representing Himself as Radharani and Her Lord is in the chariot and She is dancing, chanting and there is reciprocation between Them. King Pratap Rudra also comes and seeing how humble King Pratap Rudra is, Chaitanya Mahaprabhu says he is an example of, trinad api sunicena, taror api sahishnuna (Siksastaka Sholka 03) There is nothing wrong in giving darshan to such person. And as Lord had this thought and there was whole arrangement by His ‘ischasakti’ and Chaitanya Mahaprabhu meets King Pratap Rudra. So, chanting and dancing is going on, Odiyas and Gaudiyas had come in large numbers. Mahaprabhu had divided devotees into 7 dancing party. Special mercy on King Pratap Rudra, he is getting darshan of Chaitanya Mahaprabhu in all 7 kirtan parties. This is similar to the rasa dance in Vrindavan as Krishna is dancing with each and every gopi, like that Chaitanya Mahaprabhu is dancing in each kirtan party. King Pratap Rudra is qualified to have such darshan. Lord is giving him such darshan. That’s the goal of chanting and of participating in ratha yatra, getting darshan as King Pratap Rudra had. What darshan he is getting we should also get that darshan. That is the goal of participating in ratha yatra. There are so many eternal things happening there, the crowd and mridanga players but we should be striving to experience the darshan as King Pratap Rudra and that could be experienced by chanting. And by the mood of, trinad api sunicena. taror api sahishnuna. Then person can chant continuously. Hare Krishna Hare Krishna. Ratha yatra is the time, place and day of reunion of Lord and His devotees, they are reuniting and their hearts are meeting and there is festival. So Vrajavasis meet Lord, Lord of their heart during ratha yatra. Time for reunion, time for meeting Krishna, getting back to Krishna. Perfection of Bhakti yoga. As we know from Chaitanya Charitamrta that particular year, King Pratap Rudra was blessed by close association of Chaitanya Mahaprabhu. He was the center of attraction. The whole chapter describes the mood of Chaitanya Mahaprabhu that mood represents the mood of Radharani. He is talking, acting and dancing like Radharani. And He is tired and also its time for upala bhoga of Lord Jagannath. Chaitanya Mahaprabhu is resting in Jagannath Vallabha garden and King was inspired by ‘ichasakti’ to go and have darshan of Chaitanya Mahaprabhu. And he goes and he recites gopi geet which is also Radha geet. Chaitanya Mahaprabhu is in mood of Gopi. So it was a day and great fortune for King Pratap Rudra he was able to touch the transcendental form of Chaitanya Mahaprabhu and he was chanting beginning from “jayati te 'dhikam janmana vrajah” [1st Verse Gopi geet] And he reached, tava kathamrtam tapta-jivanam kavibhir iditam kalmasapaham sravana-mangalam srimad atatam bhuvi grnanti ye bhuri-da janah [9th verse Gopi geet] And last part of that stanza and as King Pratap Rudra recited bhurida janah. gopis had said ‘Those persons who share Krishna katha with others are bhurida janah.’ As Mahaprabhu heard this he said bhurida bhurida I have not seen you who are you. But that does not matter you are bhurida janah you have given Krishna to Me. Chaitanya Mahaprabhu was thinking this bhurida is charitable he has given Me katha amrita in form of gopi geet, I should give him something, but what could I give? I am sanyasi. He got up with His arms extended, you could accept My embrace if you don’t mind. King Pratap Rudra also moved forward and they were embracing each other. There was great union between one soul and Supreme soul. So such great union took place during ratha yatra festival. As we participate in ratha yatra we should remember the example of King Prataprudra, remember his qualities, his humility and his chanting, HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE Of course, he was chanting without offences and serving devotees offencelessly. He was attentive and he was thinking of nothing else but of Jagannath and Chaitanya Mahaprabhu and His devotees. You should remember how King Pratap Rudra achieved perfection in his life and try to attain such perfection. Ratha yatra day is a very special day to achieve such perfection. King Pratap Rudra ki jai! He was a great King. So following the example of King Pratap Rudra we should achieve perfection and goal of our life in this very life. ‘Jagannath swami nayana patha gami bhava tume’ Jagannatha ratha yatra ki jai! Jagannath Swami ki jai! King Pratap Rudra ki jai!

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