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जप चर्चा, पंढरपुर धाम, 27 नवंबर 2020.

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

आप सभी का स्वागत है। जप चर्चा में दीक्षार्थी भक्तों का भी स्वागत है। आज तो कुछ शहरों दीक्षार्थी भक्त यहां उपस्थित होंगे। आप जप सत्र ज्वाइन नहीं करते थे। आप भी प्रयास करो कि हमारे साथ प्रतिदिन जप कर सको।

हरिनाम दीक्षा की तैयारी हो रही है। आपको सदा के लिए जप करना है। अंतिम सांस तक हमें यह जप करना है। यदि भक्त कहता है तो यह सही है, सही है। यह जप हम जीवन से मुक्त होने तक, और जीवन से मुक्त होकर भी करेंगे जब हम भगवत धाम लौटेंगे, तो वहां भी हम जब कीर्तन करने वाले हैं। हरिकिर्तन, नामजप, साधन तथा साह्य भी है। हरे कृष्ण नाम की सहायता से मतलब हरे कृष्ण अर्थात राधा कृष्ण सहायता कर रहे हैं। हरे कृष्ण भगवान का नाम ही है साध्य भी भगवान की प्राप्ति भगवान का दर्शन यह साध्य है हरे कृष्ण हरे कृष्ण की मदद से, राधा कृष्ण, राधा कृष्ण की मदद से, राधा कृष्ण का दर्शन करना चाह रहे है।

कृष्ण प्राप्ति हय जहाँ हयते कृष्ण प्राप्ति राधा कृष्ण प्राप्ति करना चाहते हैं यह लक्षण है यह साध्य है और जो साध्य हुए राधा कृष्ण प्राप्त हुए राधा कृष्ण या उनका गोलोक धाम तो फिर वहां पर भी हम लोग हरे कृष्णा हरे कृष्णा करते ही रहेंगे यहां हरे कृष्ण हरे कृष्ण कीर्तन सदा के लिए है वैसे कह बैठा था यहां सदा के लिए है इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप सदा के लिए है सदा के लिए सदा के लिए मतलब इस जीवन के अंत तक ही नहीं सदा के लिए हरि हरि जब हम किसी भी मंत्र का जप करते हैं तो उन मंत्रों का यह हर मंत्र का देवता होता है और उस मंत्र का उच्चारण करते हुए हम उस देवता को उस मंत्र के देवता को प्रसन्न करते हैं और वह मंत्र देवता जब प्रसन्न होते हैं तो फिर वह देवता वह देव जहां भी उनका निवास है जिसको हम धाम कहते हैं उस धाम में हम पहुंच सकते हैं उस धाम में हमें वह बुला लेंगे त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति ऐसा भगवान कृष्ण ने कहा है

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || ९ ||

अनुवाद हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है |

आपने जप किया कीर्तन किया, जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः। कृष्ण के जन्म को उनकी लीला को, नाम को, धाम को तत्वतः आप समझे ।तो समझने का फल क्या है? यह श्रुतिफल क्या है? हरे कृष्ण हरे कृष्ण महामंत्र का श्रुतिफल क्या है? भगवान के और कीर्ति का गान। श्रृण्वन्ति गायन्ति गृणन्ति साधवः सब समय साधु क्या करते रहते हैं? श्रृण्वन्ति गृणन्ति गायन्ति श्रवण कीर्तन करते रहते हैं। तो श्रवण फल यह है और दो बातें सुन रहे हो। समझ रहे हो तत्वतः तो त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति धाम में पहुंच जाओगे। तो यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। महामंत्र के जप का, महामंत्र के श्रवण का फल भगवत प्राप्ति है। भगवत धाम प्राप्ति हैं। हमारे हरेे कृष्ण महामंत्र के मंत्र देवता है। राधाकृष्ण हरे कृष्ण मतलब राधाकृष्ण हरे है राधा। वैसे है हरा जो हरती हैं। भगवान केे मन को भी हर लेती हैं। भगवान की मन को भी मोहित करती हैं, जो व्यक्ति वह है हरा। वह है राधा।

राधा को मदनमोहनमोहिनी भी कहते हैं। कृष्ण का नाम है मदनमोहन क्योंकि वे मदन को भी मोहित करते हैं। कामदेव को मोहित करने वाले भगवान को मदनमोहन कहते हैं। किंतु ऐसे मदनमोहन को मोहित करती है राधारानी। इसलिए राधारानी को कहते हैं मदनमोहनमोहिनी। कृष्ण का नाम है मदनमोहन की मोहिनी इसीलिए उनको हरा भी कहते हैं,कृष्ण का मन हर लेती हैं मनोहरा कहते हैं। कृष्ण मनोहर है तो राधा रानी मनोहरा है। वैसे दोनों भी एक दूसरे के मन को हर लेते हैं, चित्त की चोरी करते हैं। कृष्ण भी चितचोर है राधा केे चित्त की चोरी करते हैं। मेरी हालत भी वही है द्वारकाधीश ने कहा था, वह ब्राम्हण कुंडीनपुर से रुक्मिणी का प्रेम पत्र लेकर द्वारका पहुंचे और पढ़कर सुना रहेेेेेेे थे रुक्मिणी का पत्र। रुक्मिणी ने लिखा था आप मेरे चित्त को चुरा लेते हो। मैं सदैव आपका ही चिंतन करती रहती हूं। आपके बिना यह जगत सारा मुझे शुुन्य लगता है। शुुुन्यायितम् जगत सर्व गोविंद विरहेन मे यह सब सुना द्वारकाधीश ने द्वारका में कहां ओह मेरा भी हाल वही है। रात्रि के समय मुझे भी नींद नहीं आती है। निद्रा न लभते द्वारका में सब तो है, सारा ऐशो आराम है, सब आनंद है, यह है वह है। लेकिन जब मैं लेट जाता हूं तब मुझे नींद नहीं आती है,क्यों? बस रुक्मिणीने मेरे चित्त को हर लिया हैै। हरि हरि। तो इस प्रकार वह दोनों भी एक दूसरे के चित्त को हर लेते हैं। तो एक है मनोहर और दूसरी हैं मनोहरा। और फिर वह हमारेे चित्त हर लेते हैं। स्वमाधुर्येन मम चित्त आकर्षय ऐसी प्रार्थना भी करते हैं।

*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

क्या कर रहे हैं और प्रार्थना भी कर रहे हैं। हे प्रभु आपका जो माधुर्य है, जो सौंदर्य है आपका जो प्रेम माधुर्य या है वेणु माधुर्य के है मेरे चित्त को आकर्षित करें मम चित्त आकर्षय जो सभी के चित्त को आकृष्ट करने वाले हे भगवान इसीलिए उनका नाम है कृष्ण। यकर्षति स कृष्ण राधारानी को भी आकृष्ट करते हैं अपनी ओर। और राधारानी भी कृष्ण को आकृष्ट करती है अपनी ओर। और फिर मैं दोनों हम सभी को आकृष्ट करते हैं। इसीलिए उनका नाम है कृष्ण। कृष्णा कृष्णा राधारानी को आप कृष्णा कह सकते हो। जमुना को भी कहते हैं कृष्णा। या द्रोपदी को भी कहते हैं। कृष्णा राधारानी को भी कृष्णा कहा जा सकता है स्त्रीलिंग बनाके। कृष्ण पुरुष है। राधारानी सब के चित्त को हरने वाली आकृष्ट करने वाली तो वे कृष्ण। कृ कृ मतलब सब को जो आकृष्ट करें।

कृष्ण वर्णद्वै आपका जो यह नाम है, कैसा है? यह नाम वर्णद्वै इसमें दो वर्ण है। ना जाने कितना अमृत भरा हुआ है। किसमे इस कृष्ण दो अक्षर वाला जो नाम है वह मधुर है। एक तो कृ कृ वर्ण से भगवान आकृष्ट करते हैं सबको अपनी ओर। और जो आधा पार्ट है ष्ण ष्ण वर्ण इससे आनंद देते हैं भगवान सबको। हरि हरि। और वैसे राय रामानंद और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का तो संवाद हुआ। वहां पर राय रामानंद जी ने कहा एक विशेष सिद्धांत की बात कि। राधा रानी कृष्ण को भी आनंद देती है इसीलिए ल्हादिनी शक्ति। भगवान की ल्हादिनी शक्ति राधारानी कहलाती है।

कृष्ण को अल्हाद देने वाली लेकिन वह केवल कृष्ण को ही अल्हाद नहीं देती जीवो को भी अल्हाद देती है राधारानी। रामानंद राय ने कहा कृष्ण जो नाम है कृष्ण ने हमें आकृष्ट किय अपने ओर। राधा ने हमको आनंद दिया। ऐसा उनका संघ है। संघ का कार्य। कृष्ण हम को आकृष्ट करते हैं और राधा रानी हमको आनंद देती हैं। राधाकृष्ण प्राण मोर युगल किशोर ऐसे ही हमारे प्राण हैं। राधाकृष्ण प्राण मोर युगल किशोर कृष्ण हमारे प्राण हैं और राधा रानी हमारी प्राण है। यह दोनों मिलकर हमारे प्राण है। दो प्राणन्ति इसीलिए जब हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। जप जब करते हैं तो हमारे जान में जान आ जाती है। प्राणन्ति हमारे प्राण आ जाते हैं। हम कुछ जीवित हो जाते। वैसे मृृृत ही थे पहले लेकिन हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते-करते हम पुनः जीवित हो जाते हैं प्राणन्ति गृणन्ति शुभन्ति हम शुद्ध हो जाते हैं, पवित्र हो जाते हैं, शुभन्ति हम शोभायमान हो जाते हैं।

्हरि हरि। तो ऐसी व्यवस्था भगवान ने की है। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने 500 वर्षों पूर्व 1486 मेे जब वे ब्रह्मांड में प्रवेश किए और नवद्वीप में प्रकट हुए तब वे अपने नाम को लेकर आए जिसको कहते हैं गोलोकेर प्रेमधन हरिनाम संकीर्तन गोलोक धाम से वहां का धन लेकर आए। गोलोक का धन। समृद्ध है गोलोक धाम, समृद्धि हैै वहां तो कौन सा धन? कौन सी समृद्धि* जैसा यहां कहां है गोलोकेर प्रेमधन हरिनाम संकीर्तन महाप्रभु ने उस धन का वितरण प्रारंभ किया उनके आविर्भाव के दिन से ही। या फिर यह भी कहां है कि भगवान कैसे दो रूपों में प्रकट हुए। गौर पूर्णिमा के दिन सायंकाल को चंद्रोदय होने वाला था। निमाई गौरांग प्रकट होने वाले थे वह भी है लेकिन दिन में एक दूसरे स्वरूप में दूसरा कहना भी गलत नहीं है। और वह है

कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार। नाम हइते हय सर्व जगत निस्तार ।। (चैतन्य चरितामृत 1.17.22)

भगवान अवतार लेते हैं कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार। इस कलिकाल में भगवान अवतार लेते हैं कलि काले नाम रूपे नामरूप एक है निमाई *सचि गर्भभसुधा दुग्धधसिंंधु एक तो सची माता के गर्भ से प्रकट हुए वह एक रूप साथ ही साथ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। यह दूसरा स्वरूप अवतार यहां दो रूप वैसे एक ही है अभिन्न है यह एक रूप है और उसका वितरण श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु प्रारंभ किए उसी दिन से। जन्मदिन तो उनका हो रहा था तो लोगों को कुछ जन्मदिन पर उपहार लेकर आना चाहिए था। और लेकर आए भी, लेकिन साथ ही साथ चैतन्य महाप्रभु स्वयं ही सभी को उपहार दे रहे हैंँ, और वह उपहार है नाम संकीर्तन। हरे कृष्ण महामंत्र की भेंट भगवान ने इस ब्रह्मांड में फंसे हुए बद्ध जीवो को देना प्रारंभ किया। और उन्होंने ही जैसे कहां है

ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान जीव। गुरु- कृष्ण- प्रसादे पाय भक्ति-लता-बीज।। ( चैतन्य चरितामृत मध्य लीला १९.१५१ )

अनुवाद:- सारे जीव अपने- अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में घूम रहे हैं। इनमें से कुछ उच्च ग्रह-मंडलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह- मंडलों को।

भगवान ही हमको, हम बद्ध जीवो को, भूले भटके जीवो को भाग्यवान बनाते हैं। और उनकी ओर से भगवान की ओर से भगवान ने लाई हुई जो भेंट है अब उन्होंने वह भेंट दि हैं परंपरा के आचार्यो के पास। और उनको आदेश दिया है जारे दाखो तारे कहो कृष्ण उपदेश क्या करो? विशेष रूप से यह हरे कृष्ण महामंत्र की भेंट आप देते रहो औरों को। तो आप जो दीक्षार्थी, दीक्षा के अर्थी दीक्षा प्राप्ति के जो शुद्ध भक्त हैं तो भगवान ने आपको भाग्यवान बनाया है और आपको अंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ के सानिध्य में लाया है।

इस हरे कृष्ण आंदोलन के भक्तों के संपर्क में आप आए हो। फिर इस हरे कृष्ण आंदोलन के भक्त आपको और पूरे संसार को भेट दे रहे हैं, हरे कृष्ण महामंत्र की भेंट चैतन्य महाप्रभु की ओर से। चैतन्य महाप्रभु की ओर से यह भेंट ले लो। यह दीक्षा समारोह में मुख्य बात तो यही होती है या दीक्षा समारोह में आपको गुरुजन जिनका आपने चयन किया है तो वह गुरु या सभी गुरु इस्कॉन में या गौड़िय वैष्णव गुरु क्या करते हैं? एक ही भेंट देते हैं हरे कृष्ण महामंत्र ही देते हैं और ऐसी भेंट दी जाती है।

आप को समझना चाहिए था अब तक, हरे कृष्ण महामंत्र भी दिया जाता है इसीलिए इसको हरि नाम दीक्षा भी कहते हैं। हरे कृष्ण महामंत्र भी आता है, हरे कृष्ण महामंत्र की भेंट दी जाती है, जब कहा जाता है, तब आप को समझना चाहिए। वास्तव मे क्या देते हैं यह समझना चाहिए ना, हरे कृष्ण महामंत्र देना मतलब कृष्ण को ही देते हैं। कृष्ण को ले लो किस रूप में कलि काले नाम रुपे कृष्ण अवतार यह नाम स्वरूप है भगवान का, यह अवतार है भगवान का इसको स्वीकार करो।

हरि हरि। वैसे आप में से कुछ भक्तों का आज नामकरण होगा आपको भी नाम दिया जाएगा। आपको हरे कृष्ण महामंत्र भी दिया जाएगा और साथ में आपको भी नाम दिया जाएगा आपका नाम करण होगा। परिवर्तन होगा कई सारी क्रांति ही होने वाली है आपके जीवन में। तो कई सारे परिवर्तनों में आपका नाम भी परिवर्तन किया जाएगा। वैसे औपचारिक पद्धति से आपको हरे कृष्ण महामंत्र जिस दिन दीक्षा होगी उस दिन दिया जाएगा, आज तो केवल आप का नामकरण होगा। हरे कृष्ण ।

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