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हरे कृष्ण जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 26 नवंबर 2020
आज 784 अभिभावक उपस्थित हैं। दिक्षार्थी भी आज होने चाहिये थें। उनको संबोधित करना था। आज उनका परिचय लेना था। उसके पहले जप चर्चा तथा परिक्रमा चर्चा भी करना चाहता था।
हरी हरी! गौरांग! जय राधे!
आज है एकादशी। उत्थान एकादशी महोत्सव की जय...!
वैसे देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं। इस नाम से आप समझ सकते हो कि देव के साथ कुछ हो रहा है यहां सारे देव की बात नहीं हैं। आदि देव भगवान आज के दिन उठे उत्थान उठे हरि हरि! देवशयनी एकादशी होती हैं। चार महीने पहले भगवान ध्यान किए।
गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं भुक्तं मधुरम्। हृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥7॥
(अधरं मधुरं श्री वल्लभाचार्य विरचित)
अनुवाद:-उनकी गोपियाँ मधुर हैं, उनकी लीलाएँ मधुर हैं, उनका संयोजन या सम्मिलन मधुर है, उनका भोजन मधुर हैं, उनकी प्रसन्नता मधुर है उनकी शिष्टता (या शिष्ट वयवहार) मधुर है- मधुरता के सम्राट के विषय में सभी वस्तुएँ मधुर हैं।
भगवान उत्तम भोक्ता हैं।
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्र्वरम् | सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ||
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय5,श्लोक29 )
अनुवाद: -मुझे समस्त यज्ञों तथा तपस्याओं का परम भोक्ता, समस्त लोकों तथा देवताओं का परमेश्र्वर एवं समस्त जीवों का उपकारी एवं हितैषी जानकर मेरे भावनामृत से पूर्ण पुरुष भौतिक दुखों से शान्ति लाभ-करता हैं |
भगवान योगिता के रूप में भोग मधुर हैं।के रूप में मधुरम मधुरं सुक्तं मधुरं उनका शयन भी मधुर हैं। भगवान का शयन यह एक भगवान की लीला हैं। श्रीरंगम में जाओगे तो भगवान वहा विश्राम कर रहे हैं।हरि हरि! भगवान की निद्रा साधारण नहीं है योग निद्रा भी कहते हैं भगवान के निद्रा को। भगवान शयन रहे हैं तो उसका भी दर्शन करते है,भगवान के भक्त। हम जब सोए रहते हैं तो कोई देखने नहीं आता क्या है उसमें देखने की चीज? संसार जब सोता हैं। आहार निद्रा में सोता हैं।भगवान का विश्राम भी या शयन भी विशेष है दिव्य हैं। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विश्राम किये। वैसे यहां पंढरपुर में जहासे मैं आपके साथ बात कर रहा हूँ ओर कुछ स्थानों में भी होता होगा परंतु यहां पंढरपुर में भगवान के विश्राम की तैयारी करते हैं देवशयनी एकादशी को लाखों लोग दस-बीस लाख लोग आ जाते हैं। क्यूँ? भगवान सोने जा रहे हैं। उनका विश्राम प्रारंभ होगा। आज शयनी एकादशी हैं लाखों लोग यहां भगवान के दर्शन के लिए आ जाते हैं या उनका भी विचार हो जाता है कि भगवान के विश्राम करने के पहले दर्शन कर लेते हैं। हरि हरि!
यही चतुर्मास्य का काल हैं। चार महीने भगवान पूरा विश्राम करेंगे। वैसे हमारे चार महीने हैं। भगवान के तो चार घंटे या चार सेकंड भी हो सकते हैं।
अच्छा विचार हैं।भगवान सोते हैं चलो मैं भी सोना चाहूंगा भगवान के पदचिह्नों का अनुकरण करुंगा। ऐसा नहीं करना! भगवान के लिए और हमारे लिए नियम अलग हैं। हम अलग हैं।वे बृहु आत्मा है हम अनु आत्मा हैं। भगवान भगवान है हम हम हैं। हम भगवान कि नकल नहीं कर सकते। हरि हरि! आप गोवर्धन पहाड़ नहीं उठा सकते हो और कई सारी बातें हम नहीं कर सकते जो भगवान करते हैं। इस चातुर्मास कि कालावधि में कई सारे उनके भक्तों तीर्थ स्थलों में जाकर निवास करते हैं। वैसे ही श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की प्रकट लीला के समय कितने सारे बंगाल, ओडिशा और कुलीन प्रांत से शांतिपुर से नदिया से यहां तहा से भक्त आते आप जानते हो कि वह चातुर्मास के प्रारंभ में आकर चार महीने जगन्नाथ पुरी में रहते हैं। ऐसे ही और धामों में रहते हैं। हरी हरी!
और उस कालावधी में भक्त, साधक और अधिक तीव्र साधना करते हैं।अधिक तपस्या करते हैं। अधिक श्रवण, कीर्तन करते है और फिर आज के दिन दिन गणना के अनुसार चातुर्मास का समापन है क्योंकि आज भगवान उठ रहे हैं जग रहे हैं तो फिर दुर्भाग्यवश कोरोना वायरस के वजह से वारकरी नहीं पहुंच पाए। यहां के भक्तों को(महाराष्ट्र के) वारकरी कहते हैं। महाराष्ट्र के पंढरीनाथ के पांडुरंग! पांडुरंग! पांडुरंग के भक्त आज नहीं पहुंच पाए। तालेबंदी, संचार बंदी क्या क्या चल रहा हैं? यहां नहीं पहुंच सके उस दिन भगवान विश्राम करने जा रहे थे इस दिन भगवान जागेंगे। भगवान जगते ही हम दर्शन करेंगे भगवान का इस भाव के साथ दर्शनार्थी पहुंच जाते हैं आज नहीं पहुंचे हैं। यह महान दिन है विशेष दिन है देवोत्थान एकादशी महोत्सव। आज का दिन वैसे भी माधव तिथि है एकादशी और आप इसे मनाइए।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
का किर्तन जप को बढ़ाइए श्रवण कीर्तन बढ़ाइए और आज उपवास का दिन भी हैं। वास का दिन हैं। उपवास भगवान के अधिक निकट, निकटतर,निकटतम पहुंचने का दिन हैं। यह श्रवण-कीर्तन से ही होता है और वैसे आज के दिन से बचे हुए कार्तिक के पाच दिन है पूर्णिमा तक भीष्म पंचक नामक एक विशेष पर्व भी संपन्न होता हैं। हरि हरि! जो इच्छुक है तयार है वे भीष्म पंचक को भी मना सकते हो। हरि हरि! चतुर्मास समय कहिए या चातुर्मास में कार्तिक मास में हम वृंदावन पहुंच रहे थे परिक्रमा में संमिलित हो रहे थें। हमारी साधना हो रही थी हम दामोदर अष्टकम गा रहे थें। दामोदर लीला का स्मरण कर रहे थें। दीपदान कर रहे थें दीपदान औरों से करवा रहे थें और यह करते समय हमारा चल रहा था। उपवास या भगवान के अधिक निकट पहुंच रहे थें। हर दिन निकट अधिक निकट पहुंचने का ही तो अवसर हैं। हम को ओर एक दिन प्राप्त हुआ हैं। भगवान की कृपा हैं। आज भी हम जीवित हैं मृत नहीं हैं। आज हम इसका हम लाभ उठा सकते हैं।फायदा उठा सकते हैं। गुड मॉर्निंग सुबह शुभ दिन बना सकते हैं। हरि हरि!
परिक्रमा आज मानसरोवर से लोहवन जा रही हैं। छोटा सा अंतर हैं। आज मानसरोवर जहां कल रात्रि का पडा़व रहा मानसरोवर। सरोवर तो वहां है इसलिए सरोवर।मानसरोवर राधा रानी की कुछ मान लीला यहां संपन्न हुई हैं। राधा रानी कभी-कभी मान करती हैं मानिनी बन जाती हैं। मान करने वाली। मानिनी राधा! जय श्री राधे...! मान भी एक मन कि या भाव की अवस्था हैं। मान भी एक प्रेम का प्रकार है कहिए। प्रेम जब और गाढ़ा होता है या प्रेम गाढतर होता है पहुंच गए श्रद्धा से प्रेम तक ऐसे हम कहते रहते हैं। श्रद्धा से अलग अलग सोपान हैं। उसपर चढ़ते है और वो मंजिल हासिल करते हैं। श्रध्दा से प्रेम का स्तर श्रद्धा से प्रेम लेकिन वहां से भी और और ऊंचे स्तर है सिढीया है सोपान है भाव की स्थितियां हैं। प्रेम से अधिक ऊंचा है स्नेह। प्रेम जब गाढ़ा होता है तो उसे स्नेह कहा गया है ओर गाढा़ होता है तो प्रणय कहा गया हैं।
राधा कृष्ण - प्रणय - विकृति दिनी शक्तिरस्माद् एकात्मानावपि भुवि पुरा देह - भेदं गतौ तौ । चैतन्याख्यं प्रकटमधुना तद्वयं चैक्यमाप्तं राधा - भाव - द्युति - सुवलितं नौमि कृष्ण - स्वरूपम्।।
(चैतन्य चरितामृत आदि लीला अध्याय 1 श्लोक 5)
अनुवाद:-श्री राधा तथा कृष्ण की माधुर्य लीलाएँ भगवान् की अन्तरंगा ह्लादिनी शक्ति की दिव्य अभिव्यक्तियाँ हैं । यद्यपि राधा तथा कृष्ण अभिन्न हैं , किन्तु उन्होंने अपने आपको अनादि काल से पृथक् कर रखा है । अब ये दोनों दिव्य स्वरूप पुनः श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में मिलकर एक हो गये हैं । मैं उनको नमस्कार करता हूँ , जो साक्षात् कृष्ण होते हुए भी श्रीमती राधारानी के भाव तथा अंगकान्ति के साथ प्रकट हुए हैं ।
राधा कृष्ण के मध्य का प्रेम एक प्रकार है स्नेह,प्रणय, मान। मान की एक स्थिति हैं। भाव भक्ति हैं। भाव तो और भी उँचा हैं। तकनीकी रूप से कहो भाव से ऊंचा है प्रेम। प्रेम से ऊंचा है स्नेह। स्नेह से ऊंचा हैं।प्रणय से ऊंचा है मान। यहां पर राधा रानी की मान लीला और फिर कृष्ण को उनको मनाना पड़ता हैं कि यह मान जाएगी समझ जाएगी और थोड़ी सहज हो जाएगी और कृष्ण के साथ कुछ वार्तालाप करेगी या कृष्ण के साथ प्रेम का आदान-प्रदान होगा। लीलाएं संपन्न होगी। रासलीला होगी। भगवान के साथ तो बोलने के लिए भी तैयार नहीं थी।रूठ़ जाती हैं। मान करके बैठी हैं। ऐसे मानिनी को मनाने के लिए कृष्ण को क्या-क्या नहीं करना पड़ता। कई सारी युक्तियां तर्क वितर्क कई सारे उपाय कृष्ण ढूंढते हैं। अपनाते हैं ताकि राधा रानी मान जाएगी। यहां तक कि कृष्ण को राधा रानी के चरण पकड़ने पढ़ते हैं।
राधारानी की क्षमा याचना मांगते है, मांगना पड़ता हैं। कृष्ण को यह संबंध की चर्चा। ये मान लीला और उन को मनाना पड़ता हैं राधा को मनाते हैं यह वर्णन जय देव गोस्वामी अपने गीत गोविंद नामक महाकाव्य में किए हैं। उनको यह लिखने का समय आया राधा रानी से निवेदन करते हैं "हे राधे...मैं तुम्हारे चरण छूता हूंँ या तुम्हारे चरणों की धूल मै अपने मस्तक पर उठाता हूंँ। आपके चरण मेरे सिर पर धारण करो। हे राधे.." ऐसा लिखने का समय आ चुका था। उनके गीत गोविंद नामक ग्रंथ में तो जय देव गोस्वामी भी सोच रहे थे कि ,सचमुच ऐसा होता है क्या? ऐसा कृष्ण को कहना पड़ता है? और वह मुझे लिखना चाहिए! नहीं नहीं नहीं!मैं सोचता हूंँ लिखने के पहले। मैं सोचता हूंँ,विचार करता हूंँ। इस गीत गोविंद ग्रंथ की रचना नवद्वीप में गंगा के तट पर हो रही थी और जहां जय देव गोस्वामी अपनी धर्मपत्नी पद्मावती के साथ कुटिया में रहा करते थे। यह सब लिखने का समय आ चुका था लेकिन वह लिखने में सोच रहे थे। लिखूं कि नहीं लिखूं। इस बात पर उन्होंने विचार किया।
चलो मैं गंगा स्नान करके आता हूंँ और फिर विचार करता हूँ लौटने पर लिखना है कि नहीं लिखूंगा । जय देव गोस्वामी स्नान के लिए प्रस्थान किए और कुछ समय के उपरांत बेल(घंटी) बजी वैसे कुटिया में रहते तो बेल(घंटी) नहीं होगी।आवाज किए होंगे। धर्मपत्नी पद्मावती ने द्वार खोला और वह कहते हैं। "क्या मेरा भोजन तैयार है"। देखकर पद्मावती को आश्चर्य लगा कि आप तो कुछ समय पहले आए थे स्नान से लौटे और मैंने आप को भोजन खिलाया। इतना ही नहीं आपने भोजन के उपरांत आप अपने ग्रंथ में कुछ लिख भी लिया और अब कह रहे हो कि मुझे पुनः भोजन खिलावो।यह बात सुनकर जयदेव गोस्वामी को आश्चर्य हुआ क्या कह रही हो, मैं तो अभी अभी, अभी तो आया हूंँ। इसके पहले तो नहीं आया था। सारा जो वर्णन पद्मावती से सुने आप जैसे ही दिखने वाले। मैंने तो सोचा आप ही आए हो। आपको ही मैंने भोजन खिलाया था। आपने ही तो अपने ग्रंथ में कुछ लिखा। जयदेव गोस्वामी यह सारी बातें सुने तो उनको पता चला विशेष रूप से जब उन्होंने ग्रंथों को खोलकर देखा तो दो पंक्तियां जो पंक्तियां मै लिखू के नहीं लिखू सोच रहा था। उन्होंने देखा कि किसी ने वह बात यह इस ग्रंथ में लिखी हुई हैं।
स्मर-गरल-खण्डनं मम शिरसि मण्डनं देहि पद-पल्लवमुदारम्। ज्वलति मयि दारुणो मदन-कदनानलो हरतु तदुपाहितविकारम् ॥ प्रिये चारुशीले.... ॥
(गीत गोविन्द जयदेव विरचित 10.8)
अनुवाद-हे प्रिये! अपने मनोहर चरण किसलयको मेरे मस्तकपर आभूषण-स्वरूप अर्पण कराओ। जिससे मुझे जर्जरित करनेवाला यह अनङ्गरूप गरल प्रशमित हो जाय, मदन यातना रूप निदारुण जो अनल मुझे संतप्त कर रहा है, उससे वह दाहजन्य उत्पन्न विकार भी शान्त हो जाय।
स्मर-गरल-खण्डनं मम शिरसि मण्डनं देहि पद-पल्लवमुदारम्।
हे राधे तुम अपने उदार बनो और क्या करो तुम्हारा चरण कमल मेरे सिर पर रखो।ऐसा वचन जयदेव गोस्वामी ने देखा कि वह लिखा हुआ है तो फिर क्या कहना। वह समझ गए लिखने वाले स्वयं भगवान थें। हां यह बात सही है कई बार ऐसा करना ही तो पड़ता हैं। मैं करता हूंँ प्रार्थना करता हूंँ राधा रानी से मैं क्या-क्या नहीं करता। तुम को मनाने के लिए मेरी नीत्य लीला में होता ही रहता हैं।हरि हरि!
यह असाधारण बात हैं। यह बातें तो गोपनीय और रहस्यमयी हैं मैं भगवान को जानता हूंँ। मैं भगवान को जानता हूंँ। मुझे पता है यह बातें भगवान की ही हैं। राधा और कृष्ण,किशोर-किशोरी के मध्य प्रेम का आदान-प्रदान या अलग-अलग लीला, अलग-अलग भाव, अलग-अलग प्रेम के स्तर और प्रेमवैचीत्र ये भी एक नाम हैं। स्नेह, प्रणय , मान और भी हैं। भाव। महा भाव, राग अनुराग, राग भी एक प्रेम की स्थिति हैं। प्रेम का प्रकार है राग फिर अनुराग फिर भाव और महाभाव। महाभावा राधा ठकुरानी इस महाभाव को केवल राधा रानी ही प्रदर्शित कर सकती हैं। वैसे जगन्नाथपुरी में सार्वभौम भट्टाचार्य जब चैतन्य महाप्रभु सर्वप्रथम जगन्नाथ के दर्शन के लिए आए और फिर भाव विभोर हुए और सार्वभौम भट्टाचार्य उन्हें अपने निवास स्थान लेकर गए और परीक्षा कर रहे थे कि यह भाव या भक्ति का विकार का जो प्रदर्शन हो रहा हैं।भक्ती के अष्टक विकार यह असली है या नकली हैं। एक तो उन्होंने निश्चित किया कि यह केवल असली ही नहीं यह भाव क्या भाव भक्ति की पराकाष्ठा हैं और यह भाव तो महा भाव है और केवल राधारानी ही ऐसा भाव व्यक्त कर सकती हैं। प्रकट कर सकती हैं।
श्री कृष्णचैतन्य राधा कृष्ण नहे अन्य (चैतन्य भागवत)
अनुवाद:- भगवान चैतन्य महाप्रभु अन्य कोई नहीं वरन् श्री श्री राधा और कृष्ण के संयुक्त रूप हैं।
चैतन्य महाप्रभु जब जगन्नाथ का दर्शन कर रहे थे तो जगन्नाथ हैं कृष्ण और चैतन्य महाप्रभु हैं वो राधा रानी हैं। उस राधा रानी ने अपना भाव प्रकट किया हैं। सार्वभौम भट्टाचार्य ने कहा ही यह भाव महाभाव हैं। यह राधा रानी का भाव हैं।गोपी का भी नही। गोपीयो से भी उंची भक्ति राधा रानी कि हैं।औरों कीभी भक्ति हैं। वास्यल्य रस में या साख्य रस में या दास्य रस में या अन्य रसो में इन सभी रसों में सर्वोपरि हैं। माधुर्य रस और माधुर्य भाव और उस भाव को प्रकट करने वाली पूर्ण विकसित भाव राधा रानी में ही प्रकट होता हैं। ऐसे भाव, ऐसा प्रेम, ऐसा मान या मानसरोवर तट पर संत्पन्न हुआ। हरि हरि!
मानसरोवर की जय...! किशोर-किशोरी की जय...! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल...!
और भी बातें हैं। परिक्रमा की जिसको आप आज के परिक्रमा वीडियो में देखिए, सुनिए और उसके बाद ब्रजमंडल दर्शन ग्रंथ में पढ़िए और भी प्रोसेस हैं। भागवत को पढ़िए। श्रील प्रभुपाद का कृष्ण बुक पढ़िए।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल...!