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जप चर्चा पंढरपुर धाम से दिनांक 02 जून 2021 हरे कृष्ण!!! आज इस जपा कॉन्फ्रेंस में 864 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हरिबोल! स्वागत है। इतनी लोकेशन्स! आप खुश हो? यस! चेंट हरे कृष्ण एंड बी हैप्पी (हरे कृष्ण का जप करो और खुश रहो)। जब हम आपको जप(चैटिंग) करते हुए देखते हैं तब हम भी हैप्पी( खुश) हो जाते हैं। आप को खुश देख कर हम भी खुश हो जाते हैं और आप को दुखी देखकर हम भी दुखी हो जाते हैं। पर दुख: दुखी कुछ लोग बदमाश भी होते हैं। भक्ति विनोद ठाकुर एक गीत में कहते हैं, पर सुखे दुखी। यह मंत्र याद रखो,छोटे छोटे शब्द अर्थात छोटे छोटे सूत्र हैं। कुछ लोग 'पर दुखे दुखी' होते हैं अर्थात अन्यों का दुख देखकर वे भी दुखी होते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो पर सुखे दुखी अर्थात जब वे अन्यों को सुखी देखते हैं तब वे दुखी हो जाते हैं। आप दोनों में से कौन से हो? पर दुखे दुखी या पर सुखे दुखी? इसके विषय में सोचो। मातृवत् परदारेषु परद्रव्याणि लोष्ठवत्। आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति सः पण्डितः॥ ( चाणक्य नीति) अर्थ:- दूसरे की पत्नी को अपनी माँ की तरह, दूसरे के धन को मिट्टी के समान, सभी को अपने जैसा जो देखता है वो ही पंडित (ज्ञानी) है। वैसे सभी जीव आत्मवत् हैं। मेरे जैसे हैं या मेरे हैं अर्थात सभी जीव भगवान या मेरे कृष्ण के ही हैं।आत्मवत्। जैसे मैं खुद के लिए प्रिय हूँ, वैसे ही अन्य जो विष्णुजन हैं (अच्छा शब्द है) या महाजन (विष्णुजन अर्थात विष्णु के लोग) वे भी हमारे ही हैं या मेरे जैसे ही हैं। इसीलिए हम औरों का दुख देखकर, दुखी होते हैं। यः पश्यति सः पण्डितः। उसको पंडित कहा है। वह व्यक्ति ज्ञानी होता है। वह ज्ञान से भरा होता है। आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति सः पण्डितः॥ ऐसा यह चाणक्य नीति का वचन है। हरि! हरि! एक बार श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब वाराणसी में थे तब उन्होंने सनातन गोस्वामी को मृगारी ( मृगारी अथवा मृग और अरि। मृग मतलब पशु और अरि मतलब शत्रु) का जीवन चरित्र सुनाया था। (जप करते समय महाप्रभु द्वारा कही हुई बातें विचार में आ रही थी। उसे संक्षिप्त में ही कहना होगा) श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कहा- नारायण! नारायण! ( कौन आया होगा) नारद मुनि आए होंगे। नारद मुनि की ऐसी ही ख्याति है। नारद मुनि,आकाश मार्ग से जा रहे थे, उन्होंने मृगारी शिकारी को देखा। वे नीचे उतरे। उन्होंने जमीन को तो स्पर्श नहीं किया पर कुछ संवाद हुआ। नारद मुनि ने मृगारी से कहा, 'यह क्या कर रहे हो, इसे बंद करो। यह हिंसा मत करो।' अहिंसा सत्यमस्तेयं यावदर्थपरिग्रहः । बहाचर्य तपः शौचं स्वाध्यायः पुरुषार्थनम् ॥ ( श्रीमद्भागवतगम ३.२८.४) अनुवाद:- मनुष्य को चाहिए कि अहिंसा तथा सत्य का आचरण करे , चोरी से बचे और अपने निर्वाह के लिए जितना आवश्यक हो उतना ही संग्रह करे। वह विषयी जीवन से बचे , तपस्या करे, स्वच्छ रहे , वेदों का अध्ययन करे और भगवान परमस्वरूप की पूजा करे। वे उसे 'अहिंसा परमो धर्मः, धर्महिंसा तदैव च:' ऐसा प्रवचन सुनाने लगे लेकिन वह शिकारी मान नहीं रहा था। नारद मुनि, उसे बता अथवा स्मरण दिला रहे थे कि "तुम पशुओं की हत्या करके, इन में से कुछ पशुओं को खा जाते हो, तुम्हें पता है, इसका परिणाम क्या होगा? यही तुम्हारा आहार होता है। तुम चिकन या बीफ खाते हो, न जाने, क्या-क्या खाते हो और कहते ही रहते हो। मांस भक्षण करते रहते हो। इसका परिणाम क्या है? क्या तुम्हें पता है? मांस, क्या कभी इसका अर्थ समझा है? मृगारी बोला- नहीं! कृपया समझाइए। नारद मुनि बोले- "मांस अर्थात तुम जिसे आज खा रहे हो, भविष्य में वहीं तुम्हें खाएगा।" मृगारी शिकारी कहने लगा - " मैं इस पर विश्वास नहीं करता।" जब पुनर्जन्म ही नहीं है। तब कैसे खायेगा... यावत जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत। भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः भवेत।। ( चार्वाक मुनि) अर्थ:- जब तक मनुष्य जीवन है, तब तक घी खाए। यदि आपके पास धन नहीं हैं, तो मांगिए, उधार लीजिए या चोरी कीजिए, किन्तु जैसे भी हो घी प्राप्त करके जीवन का भोग कीजिए। मरने पर ज्यों ही आपका शरीर भस्म हो जाएगा, तो सब कुछ समाप्त हो जाएगा। यह चार्वाक मुनि का दर्शन है। हरि! हरि! जब शरीर समाप्त होता है तब सब कुछ समाप्त हो जाता है। श्रील प्रभुपाद जब वर्ष 1975 में मास्को में थे। वहां कोत्सवकी नामक एक तथाकथित विद्वान, प्रोफेसर से संवाद हो रहा था तब उन्होंने भी कहा था कि स्वामी जी जब बॉडी इज फिनिश्ड, एवरीथिंग इज फिनिश्ड (जब शरीर समाप्त हुआ, सब समाप्त हुआ)। इस प्रकार की मान्यता वाले लाखों या करोड़ों मिलेंगे अकेला मृगारी ही ऐसा नहीं था। तब उसने, नारद मुनि से कहा कि हम पुनर्जन्म में विश्वास नहीं रखते। अब्राहिम लिंकन, यहूदी, ईसाई, मुस्लिम की मान्यता भी यही है कि पुनर्जन्म नहीं होता। ईसाई तो यह समझते हैं कि यह मनुष्य जीवन ही आखरी जन्म है लेकिन यह केवल मान्यताएं ही है। यह सत्य नहीं है। 'हम पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते,नहीं मानते।' जैसे ऐसा कहने वाले, वैसे ही लोग हैं जैसे किसी अंधे ने कहा कि मैं सूर्य में विश्वास नहीं रखता अर्थात सूरज में मेरा विश्वास नहीं है, अनाड़ी या बुद्धू कहीं का। तुम्हारे पास सूर्य को देखने के लिए आँखें ही नहीं है और बातें तो कर रहे हो कि मैं सूर्य के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता। इस दुनिया वालों अथवा इसाईयों की ऐसी ही बात है। वैसे शास्त्र चक्षुषा अर्थात शास्त्र हमें दृष्टि देते हैं। ज्ञान देते हैं संस्कृत में चश्मे को उपनेत्रम कहते हैं। उपनेत्रम- जब धुंधला दिखता है, तब हम चश्मे का प्रयोग करते हैं। तत्पश्चात हमें स्पष्ट दिखाई देने लगता है। वैसे ही, शास्त्रों का चश्मा पहन कर जब हम देखने लगेंगे, तब हमें भी दिखाई देने लगेगा। अन्य भी कई सारे शास्त्र कुरान आदि हैं लेकिन इनमें से कुछ दिखता है परंतु कुछ धुंधला दिखता है। अधिक स्पष्ट नहीं है। सुन रहे हो? तब मृगारी ने देखा कि १००० वर्ष पहले मर्गारी एक हिरण बन गया है। जिस हिरण की मर्गारी ने हत्या की थी, वह शेर बन गया था। अब मर्गारी हिरन बन गया है, शेर, हिरण का पीछा कर रहा है। सहायता! सहायता! सहायता! बचाओ! बचाओ! बचाओ! कहते हुए नारद मुनि के चरणों में आकर गिरा। नारद मुनि ने कहा कि अब दस हजार वर्षों के उपरांत का दृश्य देखो, मांस जिसको तुमने आज खाया है, अर्थात जिसकी तुमने जान ली है, वही भविष्य में तुम्हारी जान लेगा। नारद मुनि ने उसे कई जन्म जन्मांतर का दृश्य दिखाए। यह जो शब्द है, इसके साथ सिद्धांत जुड़ा हुआ है। वह सब सिद्ध हो रहा है। हम कहते सुनते ही रहते हैं कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। मृगारी कुछ मान गया था लेकिन वह कुछ समझ रहा था लेकिन स्वीकार नहीं कर रहा था। भविष्य में लात या हथियार कहो या जो भी इन उलझनों का सामना उसे करना पड़ रहा था। उसे देख वह धीरे-धीरे सीधा हुआ, पटरी पर आया।भगवान के प्रतिनिधि नारद मुनि की पूरी शरण ली। बचाइए, बचाइए ,ऐसे भविष्य से बचाइए। हम सभी का भी ऐसा भविष्य है। हमारे दुर्भाग्य से एक दो नहीं बिलियन ट्रिलियन जन्म हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम्। इह संसारे बहुदुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे ॥21॥ - शंकराचार्यजी द्वारा रचित भज गोविन्दम् – श्लोक सं.-21 अर्थ- हे परम पूज्य परमात्मा! मुझे अपनी शरण में ले लो। मैं इस जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्ति प्राप्त करना चाहता हूँ। मुझे इस संसार रूपी विशाल समुद्र को पार करने की शक्ति दो ईश्वर। पुनरपि जननं पुनरपि मरणं सब होने वाला है। मृगारी का भी होने वाला था लेकिन बच गया। कैसे बच गया? उसने नारद मुनि की शरण ली, उसने भगवान के प्रतिनिधि की शरण ली। नारद मुनि ने उसको मंत्र दिया और नारद मुनि ने उसे कहा। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। आजसे चार नियमों का पालन करना। आज से मांस भक्षण नहीं करना। पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति | तदहं भक्तयुपहृतमश्र्नामि प्रयतात्मनः || ( श्रीमद् भगवतगीता ९.२६) अनुवाद: यदि कोई प्रेम तथा भक्ति के साथ मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है, तो मैं उसे स्वीकार करता हूँ । नो मटनम चिकनं, रैटम। लोग पता नहीं, क्या-क्या नहीं खाते? तुम नियमों का पालन करना। अच्छा, ठीक है। तब मृगारी ने अपनी पत्नी को साथ लिया। दोनों पति पत्नी भक्ति करने लगे, विशेष रूप से श्रवण कीर्तन करने लगे। उसमें भी वह विशेष रूप से हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने लगे। वह सोच रहा था सारी व्यवस्था हो जाएगी लेकिन मेरी पेट पूजा का क्या होगा। मेरे खान पान की व्यवस्था का क्या होगा। भगवान् ने वादा किया है कि चिंता मत करो। अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥ (श्रीमद्भगवद्गीता ९.२२) अनुवाद:- किन्तु जो लोग अनन्यभाव से मेरे दिव्यस्वरूप का ध्यान करते हुए निरन्तर मेरी पूजा करते हैं, उनकी जो आवश्यकताएँ होती हैं, उन्हें मैं पूरा करता हूँ और जो कुछ उनके पास है, उसकी रक्षा करता हूँ । भगवान् कहते हैं कि मेरे भक्त की जो भी आवश्यकता है, उसकी पूर्ति मैं करता हूं। हाथी को कौन खिलाता है? हाथी कोई नौकरी करता है? उसकी कोई फैक्ट्री है या उसकी कोई जॉब है? भरपेट खाता है या नहीं? चींटी को कौन खिलाता है। क्या चींटी का कोई उद्योग है? उसको कोई काम धंधा नहीं है , केवल खाने का है। वह दिन भर खाती ही रहती है। बस अधिक खाने की चिंता तो मनुष्य को ही होती है ।अन्य योनियों में कोई चिंता नहीं होती। एको प्रकार एको बहूनांम यो विदाधती कामां ( कठोपनिषद 2.2.13) कहा ही है और सत्य ही है। एको बहूनांम अर्थात एक व्यक्ति और वह भगवान् हैं यो विदाधती कामां अर्थात सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति होती ही रहती है। कभी देर हो सकती है लेकिन भगवान के दरबार में अंधेर नहीं हो सकती। नारद मुनि ने कहा कि भगवान् कहते हैं कि सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥( श्रीमद् भगवतगीता १८.६६) अनुवाद:- समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत। नाम का आश्रय लो, जप करो। जब यह बड़े ध्यान पूर्वक जप कर रहे थे, वे जप में तल्लीन थे। तब लोग उनसे मिलने के लिए आने लगे। ओह! मृगारी। मृगारी के जीवन में इतना क्रांति, इतना परिवर्तन हुआ। वह पूरी तरह कृष्ण भावना भावित हो गया। लोग जब उनको मिलने के लिए आते, तब वे साथ में कोई न कोई भेंट लेकर आने लगे। मृगारी और उसकी पत्नी की जो भी आवश्यकता थी, वे सारी पूरी हो रही थी। उनके लिए वो भेंटे पर्याप्त से भी अधिक थी। इसलिए वे अधिक वस्तुएं थी, वे उसको बांटने लगे। उनका वितरण करने लगे। हरि! हरि! ब्राह्मण और वैष्णव दान लेते भी हैं और दान देते भी हैं। ऐसा करने लगे। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने सनातन गोस्वामी को आगे बताया कि एक समय की बात है, नारद मुनि पुनः आकाश मार्ग से जा रहे थे, उनको हरे कृष्ण की ध्वनि सुनाई दी। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। कोई व्यक्ति बहुत ही गंभीरता से ध्यानपूर्वक व्याकुल होकर भगवान् के नामों का उच्चारण कर रहा है। नारद मुनि को याद आया, अरे! यह तो मृगारी है। नारद मुनि जब नीचे उतरे, मृगारी ने देखा कि नारद मुनि वहां कुछ दूर खड़े हैं। वे नारद मुनि की ओर जाने लगे। नारद मुनि अपने शिष्य मृगारी को अपनी ओर आते हुए देख रहे थे लेकिन नारद मुनि ने यह नोट किया कि वह उनकी ओर सीधे व तेजी से दौड़कर नहीं आ रहे हैं अपितु बीच-बीच में रुक रुक कर, झुकते हुए और कुछ रास्ता साफ करते हुए, टेढ़े मेढे होकर आ रहे हैं। मृगारी बहुत समय के उपरांत नारद मुनि के पास पहुंचे। तब मृगारी ने नारद मुनि को दंडवत प्रणाम इत्यादि किया। तत्पश्चात नारद मुनि ने कहा कि शिष्य यह सब क्या है? तुम्हें तो मुझे देखते ही दौड़ना चाहिए था लेकिन तुम तो इतनी मंद गति से चल रहे थे, झुक रहे थे। यहां वहां जा रहे थे। ऐसा क्यों? इसके उत्तर में मृगारी ने कहा- कृपया मुझे क्षमा कीजिए। मैं भी वैसे ही करना चाह रहा था अर्थात दौड़कर आपके चरणों में गिरना चाह रहा था किंतु कैसे करता? कैसे दौड़ता, रास्ते में कई सारी चीटियां थी। यदि मैं ऐसे ही दौड़ के आता तब मैं कईयों की जान ले लेता। इसलिए मैं रास्ता साफ करके आ रहा था जैसे जैन मुनि इत्यादि जोकि अहिंसा का पालन करते हैं। उनकी तरह मैं भी रास्ता साफ करते करते चीटियों को हटाते हटाते आ गया। थोड़ी देर तो हुई है। माफ कर दीजिए। जब मृगारी ने यह स्पष्टीकरण दिया, तब नारद मुनि यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मृगारी को आलिंगन दिया। इस मृगारी की प्रगति तो देखिए। यह 'नंबर वन किलर' आप सब की जान लेने वाला मृगारी आज उच्च कोटि का अहिंसक बन गया है। तितिक्षवः कारुणिकाः सुहृदः सर्वदेहिनाम् । अजातशत्रवः शान्ताः साधवः साधुभूषणाः ॥ ( श्रीमद्भागवतम् ३.५.२१) अर्थ:- साधु के लक्षण हैं कि वह सहनशील, दयालु तथा समस्त जीवों के प्रति मैत्री-भाव रखता है। उसका कोई शत्रु नहीं होता, वह शान्त रहता है, वह शास्त्रों का पालन करता है और उसके सारे गुण अलौकिक होते हैं। उसकी करुणा तो देखो। उसने जीवों में दया का प्रदर्शन किया है। नामे रुचि, जीवे दया, वैष्णव सेवनं। यह हुआ भी कैसे? उसने नारद मुनि से अपना संबंध जोड़ा, संबंध स्थापित हुआ। उसने उन्हें परंपरा के आचार्य के रूप में स्वीकारा। मृगारी ने नारद मुनि द्वारा दिया गया उपदेश विशेष रूप से हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इस मंत्र का जप व कीर्तन किया, नियमों का पालन किया, सत्संग किया, दान धर्म भी किया। प्रचार किया। यह प्रत्यक्ष दृष्टांत है। यह हरि नाम की महिमा है। हरिनाम ही ऐसा परिवर्तन ला सकता है। हरि! हरि! इसलिए जप करते रहिए। चेंट हरे कृष्ण एंड बी हैप्पी (हरे कृष्ण का जप करिए और खुश रहिए) जैसे मृगारी प्रसन्न हुआ था। (अब वैसे में मृगारी का क्या होगा।) जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || ( श्रीमद् भगवतगीता ४.९) अनुवाद: हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है। पुनर्जन्म होता तो है ही लेकिन मृगारी जैसे व्यक्ति जोकि साधक बना। उसमें भाव उत्पन्न हुए और उसनें प्रेम को प्राप्त किया। त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन। हरे कृष्ण!!!

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