Hindi
हरे कृष्ण
जप चर्चा
पंढरपुर धाम से
31 जनवरी 2021
(जय) श्रीकृष्णचैतन्य प्रभु नित्यानंद।श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौर भक्तवृंद।।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
हरे कृष्ण, आज हमारे साथ 800 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हरि हरि। सब को ठीक से सुनाई दे रहा है? अभी कुछ श्रोता मेरे सामने भी बैठे हुए हैं। इस जपा टॉक के अंतर्गत हम श्रील प्रभुपाद के हरिनाम के संबंधित टॉक के ऊपर यानी चर्चा के ऊपर चर्चा करते हैं, या श्रील प्रभुपाद के हरिनाम के ऊपर चर्चा या विधि को, या निषेध को, जिसको प्रभुपाद ने कहा है, उनको समझने का यथासंभव प्रयास कर रहे हैं। हम श्रील प्रभुपाद का टॉक 3 दिनों से सुन रहे हैं और अभी शेष वचन जो है आज सुनेंगे या उसकी पूर्णाहुति होगी। हरि हरि। बातें तो कुछ अधिक नहीं बची हैं लेकिन उसके साथ जुड़े हुए भावों की गहराइयां या ऊंचाई अधिक है। ऐसी बातों को कहते कहते और समझते समझते समय तो बीतता ही है। प्रभुपाद हमेशा कहा करते थे, "कृष्ण राम और हरा यह तीन शब्द हरे कृष्ण महामंत्र के परलौकिक बीज हैं और जप मतलब भगवान को कि हुई आध्यात्मिक पुकार है। और हरा इसकी आंतरिक शक्ति है जो जीव को जागरूकता प्रदान करती है।" श्रील प्रभुपाद ने इसको पढ़ा था और समझाया भी था और श्रील प्रभुपाद आगे लिखते हैं कि, जप बिल्कुल वास्तविक रोना है जैसे एक बच्चा अपनी मां के लिए रोता है। तो फिर आगे यह बताने की जरूरत नहीं है कि जप कैसे करें या, कीर्तन कैसे करें और उसमें एक और कहा जा सकता है कि जैसे प्रभुपाद ने यंहा पर कहा है, जप बिल्कुल एक वास्तविक रोना है, जैसे बच्चा अपनी मां के लिए रोता है या फिर जप या कीर्तन ऐसा हो की, एक छोटे बच्चे की मां के लिए रोने जैसा लगे और बालक किसके लिए रोता है? मां के लिए रोता है! हरि हरि। तो यहां हम बालक हैं, और रो सकते हैं, लेकिन हमें रोना नहीं आता है! रोना सीखना है! फिर हमारी मां कौन है? अगर भक्त बालक है, और बच्चा है जैसे अभी बड़े नहीं हुए, अभी भी बच्चे ही हैं। हमारे लिए मां कौन है? भक्तों के लिए मां कौन है? भक्तों के लिए मां भगवान है! बच्चे के लिए कौन होती है मां होती है ना? पहले कौन होता है? मां होती है या बच्चा? मां होती है और इसीलिए बालक होता है! ऐसे ही अगर भक्त बालक हैं, नए भक्त अगर बालक हैं, हम षड गोस्वामी जेसे पुराने भक्त नहीं हैं! उत्तम भक्त, समझदार भक्त नहीं हैं! हम अभी नए-नए हैं, ऐसे ही बालक के पहले मां होती है, अगर मां है तभी बालक है, तो वैसे ही अगर हम भक्त हैं नए या पुराने हैं, अगर भक्त हैं तो फिर भगवान होने चाहिए कि नहीं? पहले भगवान और फिर बाद में भक्त! वैसे आध्यात्मिक जगत में पहला और बाद में यह नहीं चलता है। जब भगवान थे उस समय भक्त भी था,
ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन: । मन:षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥
(भगवतगीता १५.७ )
अनुवाद:- इस बद्ध जगत् में सारे जीव मेरे शाश्वत अंश हैं। बद्ध जीवन के कारण वे छहों इन्द्रियों से घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिनमें मन भी सम्मिलित है।
एक समय ऐसा भी था जब केवल भगवान थे और कोई नहीं था, ऐसा समय ही नहीं होता गीता के प्रारंभ में भगवान ने अर्जुन से कहा है कि ऐसा समय नहीं था जब तुम नहीं थे यह राजा नहीं थे ऐसा कोई समय ही नहीं था संसार ने ऐसा समय देखा ही नहीं जब हम नहीं थे और हम सदा के लिए रहेंगे भी भगवान शाश्वत हैं तो हम भी शाश्वत ही हैं हम उनके भक्त या अंश भी शाश्वत ही हैं पहले अंडा या पहले मुर्गी ऐसे क्रश प्रश्न का उत्तर कठिन है तो ऐसे ही पहले भगवान या पहले भक्त लेकिन पहले वक्त तो हो ही नहीं सकता तो ऐसा कोई समय नहीं था जब भगवान थे और कोई नहीं था या जीव नहीं था तो हम हैं भक्त और हमारी मां है भगवान!
विठू माझा लेकुरवाळा
संगे गोपाळांचा मेळा
विठू माझा लेकुरवाळा
(संत जनाबाई अभंग)
तो भगवान विठोबा! विठोबा रखुमाई! हमारे विठोबा! कोई कोई विठू माऊली या विठुआई ऐसे भी कहते हैं। विठोबा माऊली हैं! मां हैं! वैसे मां भी हैं और बाप भी हैं! बा है ना विठोबा? म्हसोबा नहीं! म्हसोबा का भी बाप है विठोबा! म्हसोबा, खंडोबा, ज्योतिबा इनके बाप भी विठोबा ही हैं! या फिर भगवान केवल मा ही नहीं हैं,
त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।।
भगवान हमारे सब कुछ हैं, वैसे अलग-अलग संबंध हैं भगवान के साथ तो यह जो चर्चा हो रही जॉब या कार्य कर रहे हैं वास्तविक रोना, बालक का वास्तविक रोना अपनी मां के लिए, हम हैं बच्चे और हमारा रोना भगवान के लिए है। एक तो रोना वास्तविक होना चाहिए असली होना चाहिए जैसे असली भाग होते हैं वैसे ही यह वास्तविक भाव होना या वास्तविक रोना जैसे बालक का वास्तविक रोना कहा है। बाबा का वास्तविक रोना नहीं कहा, एक बच्चे के रोने में और एक बाबा के रोने में अंतर हो सकता है। इसीलिए जानबूझकर प्रभुपाद जब रोने की बात कर रहे हैं तो कहते हैं कि रोना वास्तविक होना चाहिए और एक बालक का ही रोना वास्तविक होता है।
जब बालक धीरे-धीरे बड़ा होता है तो इस संसार में या कलयुग में पाखंड चलता रहता है और कलयुग की पहचान ही है पाखंड या ढोंग तो फिर लोग रोने का भी प्रदर्शन कर सकते हैं तो जब कोई शोकसभा होती है या स्मृति सभा होती है तो वहां पर रोना होता है या रोना चाहिए, तो लोग फिर अपना रुमाल थोड़ा सा गिला करके ले जाते हैं और फिर समय-समय पर आंख पोंछते हैं या आपको गिला भी करते हैं। अश्रु तो नहीं होते लेकिन वे दिखाते हैं कि, हां हां मैं रो रहा हूं! इसकी मृत्यु हुई है और मैं शोक कर रहा हूं और जब शौक कर रहा हूं तो आंख में आंसू हैं लोग ऐसा दिखाते हैं। लेकिन लोग ढोंग करते हैं तो कभी कभी दूसरे कहते हैं, क्या तुमने मुझे बुद्धू समझा है? क्योंकि वे उनको पकड़ लेते हैं। ऐसा ढोंग नहीं चलेगा! एक पार्टी दूसरे पार्टी की ठगाई करती है तो कोई कोई बीच मे बोलता है कि, मुझे सब पता है, क्या तुमने मुझे बुद्धू समझा है? तो अगर किसी के ठगाई या ढोंग को अगर साधारण लोग भी समझ लेते हैं, भगवान को कोई ठग सकता है? अगर हमारा रोना वास्तविक नहीं है लेकिन हम इसका प्रदर्शन कर रहे हैं, तो क्या आप भगवान को मना पाएंगे? यहां पर ठगाई नहीं चलेगी और भगवान के सामने तो एक क्षण के लिए भी नहीं चलेगी! हरि हरि। ठगाई तो खूब चलती रहती है। वैसे जो रोना है अध्यात्मिक जगत में या आध्यात्मिक स्तर पर खूब चलता है यह स्वाभाविक है कि,
भगवान के लिए आंसू बहाना और आंसुओ के भी दो प्रकार होते हैं। आनंद के भी आश्रु होते हैं और दुख के भी आश्रु होते हैं। दोनों प्रकार के आंसू बहाना गोलोक में वैकुंठ में थोड़ा कम होगा। गोलोक में यह रोज की दिनचर्या है। यह पग पग पर चलता रहता है। भगवान के लिए रोना। हरि हरि। पिछले साल एक भक्त सेमीनार दे रहे थे गोवर्धन में। उसका विषय था कृष्ण के लिए रोना। कृष्ण के लिए असली ऐसा ही विषय था उनका। मुझे यह ज्ञात नहीं है कि होने कैसे विवरण और प्रस्तुतीकरण किया। यह विषय अग्रिम अध्य्यन है। यह क ख ग नहीं है। यह पीएचडी स्तर का विषय है। हरि हरि। लोग तो पहुंचे हुए महात्मा नहीं होते, लेकिन दिखाते तो हैं वह कई बार पहुंचे तो नहीं होते, लेकिन हम पहुंचे हैं। जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश किया था।
क्या हुआ ? बहुत कुछ हुआ जगन्नाथ के लिए रोना एक प्रकार का भाव है, ऐसे ही कई सारे भाव प्रदर्शित होते हैं। संख्या 8 होती है और उसके अलग-अलग लक्षण हैं। हमारे असली भाव और भक्ति का लक्षण और प्रदर्शन होता है। लक्षण दिखाना नहीं चाहते तब भी दिखते हैं। चैतन्य महाप्रभु ने प्रवेश किया तो उनका गला गदगद हो उठा। इसके कारण वह जगन्नाथ भी नहीं कह पाए। जग जग जग इतना ही शब्द निकल रहा था। नाथ भी नहीं कह पा रहे थे। किब शिव शुक नारद प्रेमे गदगद प्रेमे गदगद गला उनका गदगद हो गया। शिवजी पहुंचे, शुकदेव गोस्वामी हैं, नाराद जी हैं, देखो देखो गौरंग महाप्रभु की आरती को तो देखो। किब जयो जयो गौराचंद्र आर्तिको शोभा उस आरती में नारद जी और शुकदेव गोस्वामी पहुंचे हैं। जब वह आरती गा रहे हैं और दर्शन भी हो रहा है।
गला गदगद हो उठना भी एक लक्षण है और यह लक्षण हमने चैतन्य महाप्रभु में देखा। हरि हरि। राधानाथ महाराज की जय। महाराज भी जब गाते हैं तो हम उनके चेहरे पर देख सकते हैं। उनके चेहरे पर भाव देख सकते हैं, वह कृष्ण को याद कर रहे हैं। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का गला गदगद हो उठा, वह लोटने लगे दर्शन मंडप में, उनका प्रयास था कि जगन्नाथ के ओर दौड़ रहे थे लेकिन वह धड़ाम गिर गए और उनको ध्यान नहीं रहा। तो तब वैसे वहां के पुजारी ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। ऐसे तो कहीं सारे देखे हमने। लोग आते हैं अपने भाव भक्ति का प्रदर्शन ढोंगी पाखंडी करते रहते हैं। हमने तो कई सारे देखेंगे तो यह एक और है। किंतु वह जो भाव थे, असली भाव थे।
जो सिद्ध हुआ सर्व भट्टाचार्य वह निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे की हमने तो कई सारे देखे हैं। यह भी उसी माला के और एक मणि होंगे ऐसा सर्व भट्टाचार्य ने नहीं समझा। वह परीक्षा लेना चाहते थे। निरीक्षण परीक्षण हुआ तो उन्होंने घोषित किया यह केवल भाव ही नहीं है, यह महाभाव है। भाव भक्तों में हो सकता है किंतु राधारानी में होता है महाभाव। महाभाव स्वरूप श्रीराधा ठाकुरानी सर्व गुण खानी कृष्णकांतशिरोमणि। लोग तो नकल करते रहते हैं असली नहीं होते नकली होते हैं। इस कलयुग में ऐसा प्रदर्शन चलता ही रहता है। लेकिन उससे काम नहीं बनेगा। इसका क्या फायदा? सन १९७७ मायापुर उत्सव हुआ था। जय पताका महाराज के निर्देशन में उस कार्यक्रम का संचालन हो रहा था।उन्होंने एक कीर्तन प्रतियोगिता रखी थी और पूरे बंगाल भर के अलग-अलग कीर्तन मंडलियों ने भाग लिए थे। उन दिनों जहां कीर्तन होते थे। लोटस इमारत में द्वितीय मंज़िल पर प्रभुपाद रहते थे उसका स्पीकर उनकी इमारत की तरफ था। सारा कीर्तन प्रभुपाद के कानों तक पहुंच रहा था। बंगाल के जो कीर्तन मंडलियां पूरा प्रदर्शन कर रही थी कि अपनी भक्ति भावना का, कुछ पूछो नहीं और उसमें विश्व भर के भक्त सम्मिलित थे। फिर क्या कहना विदेश के लोग देखेंगे हमारे कीर्तन को देखेंगे और सुनेंगे तो फिर थोड़ा विशेष प्रयास रहा उनके प्रदर्शन का। तो उस कीर्तन के समय लोग ऐसे रो रहे थे, सच में रो रहे थे।
एक दूसरे को गले लगा रहे थे, आलिंगन दे रहे थे, जमीन पर लोट रहे थे। एक के बाद एक के बाद एक मंडली अपना प्रदर्शन कर रही थी, उनको लग रहा था जो मंडली अधिक रोएंगे वह जीतेंगे। लेकिन वह सारा प्रदर्शन ही था। प्रभुपाद भी सुन रहे थे तो उन्होंने यह बात पकड़ ली और वह समझ गए, यह असली नहीं है। यह तो ढोंग है स्वांग है। प्रभुपाद कह रहे थे जप कर रहे हैं और गा रहे हैं वह भगवान के लिए नहीं गा रहे हैं, वह धन के लिए गा रहे हैं। विजेता मंडली को फिर कुछ पुरस्कार मिलेगा, रु500 या रु1000। प्रभुपाद ने कहा अब यह प्रतियोगिता नहीं होगी। अब बहुत हो गया यह पहला और आखरी था। हरि हरि। यह जो कीर्तन में रोने वाले जो लोग होते हैं। जय पताका महाराज ने हमको कहा कि जो कीर्तन के लिए आते हैं। साथ में एक डिब्बी लेकर आते हैं, उसमें होती है मिर्च पाउडर। कीर्तन करते करते ही बड़ी चालाकी से कुछ नाक में कुछ आंखों में मिर्ची डाल लेते हैं तो फिर अगले 1 घंटे तक फिर रोते रहते हैं और यह भाव कैसा है चिली (मिर्च) भाव है। यह भाव भक्ति आत्मा से नहीं आ रही है। यह सिर्फ आंखों तक ही सीमित है। इसकी गहराई आत्मा तक या हृदय तक, गहराई कहो या संबंध यह आत्मा की पुकार नहीं है। जब तक हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे आत्मा की पुकार नहीं आए तो वह पुकार कोई सुनने वाला भी नहीं है, कम से कम भगवान तो नहीं सुनेंगे, वैसे सुनेंगे तो सही जैसे प्रभुपाद सुन रहे थे। लेकिन वह समझ जाएंगे उसी क्षण, ये रोना कैसा है आंसु बहाने के पीछे क्या विचार है, मन की स्थिति क्या है।
ऐसी मन की अवस्था में हमें निरंतर जप करते रहना चाहिए। कीर्तनया सदा हरी कीर्तन सदा होगा, अखंड होगा, खंडित नहीं होगा। कीर्तन कैसा हो? अहेतु - उसमें कोई हेतु ना हो और अप्रतियता - अखंड हो। उसी को चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि कीर्तनया सदा हरी। ऐसा कीर्तन तभी संभव है इसके लिए शर्ते हैं जो चैतन्य महाप्रभु ने बनाई है। सूनिचेना यह शब्द सुन रहे हो कितना नीच सूनिचेना। नीच मतलब नीच कहीं का वह भाव नहीं है, जो खुद को घास से नीच समझता है। यह मन की स्थिति है। यह मन का भाव है। सूनिचेना स्वयं को निम्न समझना। वृक्ष से भी अधिक सहनशील। अमानीना मतलब इसके द्वारा, ऐसे मन के द्वारा जो अपने लिए मान सम्मान की अपेक्षा नहीं करता औरों को मान देता है औरों का सम्मान सत्कार करता है। ऐसा व्यक्ति ऐसे मन की स्थिति के साथ निरंतर जप कर सकता है। मन की ऐसी स्थिति हमारे रोने तक, आंसू बहाने तक पहुंचा देगी। तो फिर जप का फल कृष्णप्रेम है मतलब कृष्ण ही है कृष्ण प्राप्ति हो। यह सब संभव है।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।