Hindi
जप चर्चा
पंढरपुर धाम से
दिनांक ०१.०२.२०२१
हरे कृष्ण!
780 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
आप जप कर रहे हो?
जैसे मंदिर में घोषणा होती है मंगल आरती के समय या अंत में, पुस्तक वितरण का स्कोर बताया जाता है या कभी-कभी मंदिर में कितनी प्लेट प्रसाद वितरण हुआ या प्रभुपाद समाधि में कितने लोगों ने जप किया, इस प्रकार के स्कोर्स, पुस्तक वितरण स्कोर या प्रसाद वितरण स्कोर्स या कितने लोगों ने जप किया इत्यादि बताया जाता है, वैसे ही हम कम से कम आज तो कह रहे थे भगवान की प्रसन्नता के लिए कि 777 स्थानों से भक्त आज हमारे साथ जप कर रहे हैं, यह सुनकर क्या आप प्रसन्न हो ?बल्कि कहना तो यह चाहिए कि भगवान और भगवान के भक्तों की प्रसन्नता के लिए, भगवान और आप सब भक्तों की प्रसन्नता के लिए यह स्कोर कहा जा रहा है।
हरि हरि।।
श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी सच हो रही है, उन्होंने कहा था
पृथ्वी ते आछे यत नगर आदि ग्राम सर्वत्र प्रचार होईब मोर नाम
(चैतन्य भागवत अन्त्य-खंड 4.126)
मेरे नाम का प्रचार कहां-कहां होगा? एक उन्होंने कहा कि मेरे नाम का प्रचार पृथ्वी पर होगा,"पृथ्वी ते आछे यत नगर आदि ग्राम"
इस पृथ्वी पर जितने नगर हैं, जितने ग्राम हैं वहां मेरे नाम का प्रचार होगा। श्रील प्रभुपाद की व्यवस्था से या फिर कहना पड़ता है कि श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद के आदेशानुसार, यह भी मानना पड़ेगा कि श्रील भक्तिसिद्धांत प्रभुपाद ने अभय बाबू को 1922 में कोलकाता में आदेश दिया था कि "तुम पाश्चात्य देशों में भागवत धर्म का प्रचार करो", इसको प्रभुपाद कभी-कभी कहते थे हरे कृष्ण का प्रचार करो, यह आदेश कहा तो भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद ने था, किंतु यह मानना पड़ेगा कि इसके मूल वक्ता, आदिवक्ता या यह विचार या इस वाणी से चैतन्य महाप्रभु प्रकट होते हैं। यह श्री चैतन्य महाप्रभु की वाणी है उन्होंने यह भविष्यवाणी की थी कि हरि नाम का प्रचार सर्वत्र होगा।
हरि हरि।।
महाप्रभु की वाणी का प्रचार वैसे ही हो जैसे महाप्रभु ने भविष्यवाणी की थी, तो यहां तैयारी हो रही है। चैतन्य महाप्रभु ने श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद को प्रेरित किया और फिर जब 1922 में अभय बाबू और उनके मित्र वहां पहुंचे थे तब श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने इंगित करते हुए प्रभुपाद को कहा कि तुम पाश्चात्य देशों में प्रचार करो और प्रभुपाद ने वैसे ही किया। श्रील प्रभुपाद पूरी जिंदगी इसकी तैयारी करते रहे, अंततः श्रील प्रभुपाद जलदूत में बैठे थे, श्री चैतन्य महाप्रभु के देवदूत भक्तिवेदांत स्वामी जलदूत में बैठे थे और न्यूयॉर्क की यात्रा कर रहे थे और उनको पाश्चात्य देश पहुंचना था।
हरि हरि।।
उनके वहां पहुंचने पर उनको संकीर्तन आर्मी जॉइन करेगी, प्रभुपाद को हम सेनापति भक्त कहते हैं या शास्त्रों में कहा गया है कि ऐसें एक सेनापति भक्त होंगें।संकीर्तन सेना के पति,"सेनापति"। जहाज में सेनापति बैठे थे, सेनापति जहाज का उपयोग करते हैं, वहां जाकर युद्ध होगा अब सैना है तो युद्ध भी होगा। उन्होंने न्यूयॉर्क को गंतव्य बनाया है, कभी-कभी भक्त कहते हैं,मैं भी कहता हूं कि सामान्यत: यह पाश्चात्य देश या विशेष रूप से न्यूयॉर्क को कलियुग की राजधानी कहा जा सकता है।न्यूयॉर्क हो या सैनफ्रांसिस्को हो, इनको श्रील प्रभुपाद ने अपना गंतव्य स्थान बनाया है। वहां जाकर हमला होगा, कलि के साथ लड़ेंगे उन्होंने अपने साथ हथियार ले रखे हैं। कौन से हथियार?उसको "बॉम्ब" कहते हैं, श्रील प्रभुपाद के ग्रंथ क्या हैं?" टाइमबॉम्ब"। भागवतम् कि 200 प्रतियाँ प्रभुपाद अपने साथ लेकर गए और साथ में और कौन सा अस्त्र या शस्त्र ले रखा है?
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे। हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
यह शस्त्र भी साथ में ले रखा है और जब श्रील प्रभुपाद वहां पर पहुंचे, तब प्रभुपाद ने ग्रंथों का वितरण प्रारंभ किया जैसे आपने अभी-अभी ग्रंथों का वितरण किया है।प्रभुपाद ने जो भी अपने अनुयायियों को करने के लिए कहा उसे स्वयं भी पहले कर चुके थे, श्रील प्रभुपाद तभी अपने शिष्यों को या अनुयायियों को यह आदेश दिया।इस प्रकार संस्थापकाचार्य ने जगत को सिखाया । अपने आचरण प्रभु जगत सिखाये महाप्रभु हों या श्रील प्रभुपाद हों,अपने आचरण से सबको सिखाते हैं। श्रील प्रभुपाद ग्रंथ वितरण कर रहे थे, यहां तक कि जब प्रभुपाद अभी जलदूत में हीं थे, तब भी वहां पर जलदूत के कप्तान "कैप्टन पांडेय", उनको भी प्रभुपाद ने अपने ग्रंथों का वितरण किया, बदले में उनको $20 मिले थे, रास्ते में भी प्रभुपाद ने ग्रंथों का वितरण किया और पहुंचने पर तो किया ही किया और हरि नाम का प्रारंभ हुआ। पहले तो अकेले ही प्रभुपाद प्रचार कार्य कर रहे थे, प्रभुपाद फुटपाथ पर बैठकर प्रचार कर रहे थे। एक बार दिल्ली में उपस्थित कुछ अतिथियों को मैं प्रभुपाद के संबंध में कुछ कह रहा था, या श्रील प्रभुपाद का परिचय दे रहा था तो मैंने कहा था कि प्रभुपाद न्यूयॉर्क में अकेले ही कीर्तन किया करते थे, मृदंग और करताल अकेले ही बजाया करते थे। प्रभुपाद ने कहा कि नहीं नहीं मृदंग नहीं, मृदंग भी नहीं था और मृदंग बजाने वाला भी कोइ नहीं था प्रभुपाद अकेले ही या तो ताली बजाते या करताल बजाते। इस प्रकार उस वक्त प्रभुपाद ने मुझे सुधारा, जो उस वक्त दिल्ली में मैंने प्रभुपाद के संबंध में कहा था। प्रभुपाद अकेले थे और इतने सारे प्रयास चल रहे थे,लेकिन उस समय भी प्रभुपाद यह कह रहे थे कि मेरे कई सारे मंदिर हैं और कितने सारे मेरे भक्त हैं, प्रभुपाद इसको 1965 में कह रहे थे, जब एक भी मंदिर नहीं था। प्रभुपाद ने कहा कि देखो कितने सारे मंदिर हैं कितने सारे भक्त हैं, प्रभुपाद दूरदृष्टि वाले थे। "त्रिकालज्ञ प्रभुपाद", "भूत-भविष्य-वर्तमान के ज्ञाता श्रील प्रभुपाद"। प्रभुपाद देख रहे थे मंदिर तो थे नहीं, प्रभुपाद अकेले ही थे लेकिन उन्हें इस विषय में दिखाई दे रहा था कि ऐसा होना है और जरूर होगा। मैं प्रयास कर रहा हूं तो यह प्रचार फैलने वाला है और लोग हरि नाम संकीर्तन करेंगें, जप करेंगे, फिर मंदिर भी होंगे, भक्त रथयात्रा भी मनाएंगे और ग्रंथ वितरण भी होगा। कृष्ण जन्माष्टमी जैसे उत्सव भी मनाए जाएंगे, प्रसाद वितरण होगा, फूड फॉर लाइफ होगा, यह सब श्रील प्रभुपाद देख रहे थे और उनके देखते-देखते यह सब हो भी रहा था।प्रभुपाद के पास कुछ 10 साल ही थे, 1965 में पहुंचे1966 में इस्कॉन की स्थापना की, न्यूयॉर्क में इस्कॉन की स्थापना हुई और फिर 10-11 वर्षों के उपरांत, 77 की उम्र में श्रील प्रभुपाद वैकुंठ वासी, नित्य लीला में प्रविष्ट हुए, उन्होंने ऐसे देखे मंदिर बनते हुए । वही बात है, प्रभुपाद का जब जन्म हुआ था तब उनकी जब कुंडली देखी गई तो उस समय पर भविष्यवाणी हुई थी कि यह बालक अपने जीवन में 108 मंदिरों की स्थापना करेगा, वह भी सच होना ही था, वो मंदिर हैं इस्कॉन के मंदिर। प्रभुपाद अकेले ही थे जब ग्रंथों का वितरण कर रहे थे, कीर्तन कर रहे थे और उसी के साथ जैसे हमने कहा कि प्रभुपाद कलि को परास्त करने के लिए आए थे, प्रभुपाद यात्रा में आगे बढ़े, जलदूत से न्यूयॉर्क गए। कलि क्या करता है कली के अड्डे कौन-कौन से होते हैं? भागवतम् के प्रथम स्कंध में स्पष्ट लिखा है
सूत उवाच
अभ्यर्थितस्तदा तस्मै स्थानानि कलये ददौ। द्यूतं पानं स्त्रिय: सूना यत्राधर्मश्चतुर्विध:॥
(भागवतम् 1.17.38)
"सूत गोस्वामी ने कहा : कलियुग द्वारा इस प्रकार याचना किये जाने पर महाराज परीक्षित ने उसे ऐसे स्थानों में रहने की अनुमति दे दी , जहाँ जुआ खेलना , शराब पीना , वेश्यावृत्ति तथा पशु - वध होते हों " जहां द्यूत क्रीड़ा, जुआ आदि खेले जाते हैं,वह है कलि का अड्डा। जहां मद्यपान होता है, सामान्यता कहे तो चाय पान भी।चाय पान भी नशा पान ही है। जहां परस्त्री-पुरुष गमन होता है, वैश्या गमन होता है, अवैधयौन जहां होता है वहां कलि है और जहां कत्लखाने होते हैं। कत्लखाने बोले या मासभक्षण या जहां पशुओं के गले काटे जाते हैं या जहां लोग पशुओं का खून पीते हैं, मांस खाते हैं।
हरि हरि ।।
आजकल तो लोग गाय को भी नहीं छोड़ते, गाय, जो हमारी माता है, माता का भी भक्षण करते हैं, मां को खा लेते हैं। इन से अधिक बड़े राक्षस कौन होंगे? यह कली का प्रभाव है। वहां कलि है जहां मांस भक्षण होता है, अवैधयौन होता है, फिर वर्णसंकर भी होता है। स्त्रियाँ गर्भवती होती हैं, गर्भ से बालक जन्म लेता है और फिर मॉ ही बच्चे की जान ले लेती है, गर्भपात करती है, कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन कल्पना करने कि आवश्यकता ही नहीं है।यह सब हो ही रहा है यह सब घटनाएं घटित हो रही हैं। माताएं अपने बच्चों की जान ले रही है, गर्भपात हो रहें है या गौ माता का भक्षण हो रहा है, यही है कलियुग।
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।(भगवद् गीता2.59)
जहां चार प्रकार के अधार्मिक कृत्य होते हैं, वहां रहो हे कलि, ऐसा कहकर राजा परीक्षित ने कलि पर दया दिखाई। उसकी जान नहीं ली और ऐसे स्थान कलि को दे दिए। 5000 वर्ष पूर्व की बात है ये और फिर इस कली ने अपना जाल फैला दिया। यह मत समझना कि यह केवल हिंदुओं की बात है अरे,कौन सा कलि? कौन से कलि की बात कर रहे हो तुम? हमें नहीं पता कौन कलि? हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, हम नहीं मानते। पाश्चात्य देश के लोग कह सकते हैं कि हम कलि को नहीं मानते, कलि को नहीं जानते, हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, हमें कोई चिंता नहीं है कलि की। लेकिन कलि तो सर्वत्र है ही आप नहीं जानते हो या नहीं मानते हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सूर्य तो है ही, आप अंधे हो और आपको सूर्य दिख नहीं रहा है इससे सूर्य का अस्तित्व समाप्त नहीं होता। कोई कह सकता है कि सूर्य का अस्तित्व नहीं है कौन कह रहा है ये? 'अंधा', क्या कीमत है अंधे की कहने की कि सूर्य नहीं है। उसी प्रकार भगवान नहीं है ऐसा कहने वाला होता है कामांध। काम से अंधा। अवैध स्री पुरुष संग में जो लिप्त हैं, कामांध हैं। जब काम कि तृप्ति नहीं होती तो वह क्रोधांध, क्रोधी बनता है।लोभी बनता है। धनांध जैसे कुबेर के पुत्र अंधे बन चुके थे, नारद मुनि तो जा रहे थे नारायण नारायण नारायण कहते हुए उन्होंने देखा ही नहीं, देखा नहीं तो उनको कोई फिक्र भी नहीं थी क्योंकि अंधे थे।नारद जी जैसे महा भागवत पर भी ध्यान नहीं दिया, वहां लिखा है धनानंध तो इस प्रकार के लोग अंधे बनाए गए हैं, उनको दिखता नहीं है । पाश्चात्य देश के लोग भी अगर कहें कि कलि क्या होता है? हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कलि से, तो वह अनाड़ी हैं। उनको सतयुग का पता नहीं है, त्रेतायुग का पता नहीं है, द्वापर का पता नहीं है, कलियुग का पता नहीं है। अभी-अभी मनुष्य बना है वो, पहले तो बंदर ही था, मनुष्य बंदर कि औलाद है ऐसा डार्विन ने भी कहा जो इंग्लैंड के महाशय थे। डार्विन और सभी ने मुंडी हिलाना शुरू कर दिया था, हां हां डार्विन थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन हम स्वीकार करते हैं और कहने लगे कि हमारे पूर्वज कौन हैं? बंदर। वैसे हमारे पूर्वज तो ब्रह्मा हैं जो वैदिक संस्कृति को अपनाते हैं या स्वीकार करते हैं, उनकी समझ है कि हमारे पूर्वज तो ब्रह्मा हैं।पाश्चात्य देशों में डार्विन ने प्रचार किया कि हमारे पूर्वज बंदर हैं, वानर हैं, हम बंदर की औलाद हैं। हैं क्या?
प्रभुपाद जब न्यूयॉर्क पहुंचे थे तो ग्रंथों के वितरण से और हरे कृष्ण कीर्तन से, प्रसाद से कहो। प्रसाद में इस्कॉन की बुलेट्स हैं, यह पुस्तकें टाइम बम हैं और हरि नाम भी एक अस्त्र है, ब्रह्मास्त्र है हरि नाम तो। प्रसाद भी है, एक शस्त्र या बुलेट्स कहो।इस्कॉन की बुलेट्स कौन सी है? पुंडरीक विद्यानिधि इस्कॉन की बुलेट जानते हो?इस्कॉन में हम लोग गोली खिलाते हैं।सैनिक क्या करता है? सैनिक गोली खिलाते हैं और फिर शत्रु घायल हो जाता है। इस्कॉन के जो सैनिक हैं, जिन सैनिकों के सेनापति हैं श्रील प्रभुपाद। वह गोली है गुलाब जामुन, यह सब खिलाया प्रभुपाद ने। ग्रंथ वितरण टाइम बम, हरि नाम ब्रह्मास्त्र, प्रसाद वितरण इस्कॉन बुलेट्स।इससे क्या हुआ? पाश्चात्य देशों कि विचारधारा या पाश्चात्य देशों की पशु वृति का विनाश हुआ। उसका विनाश किया श्रील प्रभुपाद नें और परम दृष्टवा निवर्तते।
उनको कुछ ऊंचा स्वाद दिया, उनकी आत्मा आत्माराम बन रही थी। उनको आत्मा में आराम मिल रहा था वो इस तरह तैयार हुए। श्रील प्रभुपाद ने अभी अभी जो अनुयायी बन ही रहे थे उनमें से कुछ गिने-चुने को इकट्ठा किया और प्रभुपाद ने कहा कि मैं अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ की स्थापना कर रहा हूं। मुझे अनुयायी चाहिए, मुझे मदद चाहिए, आप में से कुछ लोग या जो तैयार हो, क्या मुझे मदद कर सकते हो? उन्होंने पूछा कि कौन सी पूर्व तैयारी करनी है आप हमसे क्या उम्मीद करते हो? क्या कोई नियम है जिसका हमें पालन करना होगा ताकि आपके संघ के हम भी अनुयायी बन सकते हैं? आपकी मदद कैसे कर सकते हैं? प्रभुपाद ने पहली बार औपचारिक रूप से कहा कि आपको 4 नियमों का पालन करना होगा। वह कौन से हैं? प्रभुपाद ने कहा कि मांसाहार नहीं, जुआ नहीं, अवैध स्त्री पुरुष संग नहीं, नशा नहीं और फिर प्रभुपाद ने पूछा, क्या आप तैयार हो? वहां जितने अमेरिकी युवा लड़कें और लड़कियां उपस्थित थे, उन्होंने हाथ ऊपर करके कहा कि हां स्वामी जी, हम तैयार हैं। उसी के साथ "परम विजयते श्री कृष्ण संकीर्तनम"।।
चेतो-दर्पण-मार्जनं भव-महा-दावाग्नि-निर्वापणं श्रेयः-कैरव-चन्द्रिका-वितरणं विद्या-वधू-जीवनम् आनन्दाम्बुधि-वर्धनं प्रति-पदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्म-स्नपनं परं विजयते श्री-कृष्ण-सण्कीर्तनम्
(चैतन्य चरितामृत अन्त्य लीला 20.12)
संकीर्तन आंदोलन की जय हो और यह कलियुग के अंत की शुरुआत थी। क्या समझे आप? यह शुरुआत थी। शुरुआत हुई अंत की, कलि समाप्त होगा, सर्वत्र परास्त होगा उसकी शुरुआत हुई न्यूयॉर्क में। इस प्रकार सेनापति भक्त श्रील प्रभुपाद विजयी हुए।
यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर:। तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥ (18.78भगवद् गीता)
जहां गुरु और गौरांग की टोली है गुरु गोरांग जयते, वहां जीत होती है, यह जीत हुई और प्रभुपाद जहां-जहां गए उन्होंने कलि को परास्त किया और संकीर्तन आंदोलन की जीत हुई।
हरि हरि।।
प्रभुपाद के प्रारंभ किए हुए इस कार्य को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अब हमारी है।सब मिलकर प्रयास करो। वैसे कार्य तो गौरांग महाप्रभु का है। कलियुग अवतारी गोरांग महाप्रभु की इस भविष्यवाणी को सच करने के लिए प्रभुपाद ने अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ की स्थापना की और अपने जीवन में इतना सारा कार्य किया और यश कमाया और उनकी यह अपेक्षा थी कि जब मैं नहीं रहूंगा तो मेरे अनुयायी आपस में सहयोग करें। अगर आप कहते हो कि आपको मुझ से प्रेम है, मैं समझूंगा कि आप मुझसे प्रेम करते हो अगर आप आपस में सहयोग करोगे। जब आप एक दूसरे को योगदान दोगे, एक दूसरे की मदद करोगे। किसके लिए मदद? इस संस्थान को बचाने के लिए प्रभुपाद द्वारा स्थापित इस संस्थान की रक्षा के लिए अब यह कार्य हमको करना है, एक दूसरे को योगदान देना है । जो नेतृत्व कर रहे हैं उनकी मदद करनी है उनको योगदान देना है ।
हरि हरि ।।
हरे कृष्ण