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जप चर्चा पंढरपुर धाम से दिनांक ०१.०२.२०२१ हरे कृष्ण! 780 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। आप जप कर रहे हो? जैसे मंदिर में घोषणा होती है मंगल आरती के समय या अंत में, पुस्तक वितरण का स्कोर बताया जाता है या कभी-कभी मंदिर में कितनी प्लेट प्रसाद वितरण हुआ या प्रभुपाद समाधि में कितने लोगों ने जप किया, इस प्रकार के स्कोर्स, पुस्तक वितरण स्कोर या प्रसाद वितरण स्कोर्स या कितने लोगों ने जप किया इत्यादि बताया जाता है, वैसे ही हम कम से कम आज तो कह रहे थे भगवान की प्रसन्नता के लिए कि 777 स्थानों से भक्त आज हमारे साथ जप कर रहे हैं, यह सुनकर क्या आप प्रसन्न हो ?बल्कि कहना तो यह चाहिए कि भगवान और भगवान के भक्तों की प्रसन्नता के लिए, भगवान और आप सब भक्तों की प्रसन्नता के लिए यह स्कोर कहा जा रहा है। हरि हरि।। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी सच हो रही है, उन्होंने कहा था पृथ्वी ते आछे यत नगर आदि ग्राम सर्वत्र प्रचार होईब मोर नाम (चैतन्य भागवत अन्त्य-खंड 4.126) मेरे नाम का प्रचार कहां-कहां होगा? एक उन्होंने कहा कि मेरे नाम का प्रचार पृथ्वी पर होगा,"पृथ्वी ते आछे यत नगर आदि ग्राम" इस पृथ्वी पर जितने नगर हैं, जितने ग्राम हैं वहां मेरे नाम का प्रचार होगा। श्रील प्रभुपाद की व्यवस्था से या फिर कहना पड़ता है कि श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ‌प्रभुपाद के आदेशानुसार, यह भी मानना पड़ेगा कि श्रील भक्तिसिद्धांत प्रभुपाद ने अभय बाबू को 1922 में कोलकाता में आदेश दिया था कि "तुम पाश्चात्य देशों में भागवत धर्म का प्रचार करो", इसको प्रभुपाद कभी-कभी कहते थे हरे कृष्ण का प्रचार करो, यह आदेश कहा तो भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद ने था, किंतु यह मानना पड़ेगा कि इसके मूल वक्ता, आदिवक्ता या यह विचार या इस वाणी से चैतन्य महाप्रभु प्रकट होते हैं। यह श्री चैतन्य महाप्रभु की वाणी है उन्होंने यह भविष्यवाणी की थी कि हरि नाम का प्रचार सर्वत्र होगा। हरि हरि।। महाप्रभु की वाणी का प्रचार वैसे ही हो जैसे महाप्रभु ने भविष्यवाणी की थी, तो यहां तैयारी हो रही है। चैतन्य महाप्रभु ने श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद को प्रेरित किया और फिर जब 1922 में अभय बाबू और उनके मित्र वहां पहुंचे थे तब श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने इंगित करते हुए प्रभुपाद को कहा कि तुम पाश्चात्य देशों में प्रचार करो और प्रभुपाद ने वैसे ही किया। श्रील प्रभुपाद पूरी जिंदगी इसकी तैयारी करते रहे, अंततः श्रील प्रभुपाद जलदूत में बैठे थे, श्री चैतन्य महाप्रभु के देवदूत भक्तिवेदांत स्वामी जलदूत में बैठे थे और न्यूयॉर्क की यात्रा कर रहे थे और उनको पाश्चात्य देश पहुंचना था। हरि हरि।। उनके वहां पहुंचने पर उनको संकीर्तन आर्मी जॉइन करेगी, प्रभुपाद को हम सेनापति भक्त कहते हैं या शास्त्रों में कहा गया है कि ऐसें एक सेनापति भक्त होंगें।संकीर्तन सेना के पति,"सेनापति"। जहाज में सेनापति बैठे थे, सेनापति जहाज का उपयोग करते हैं, वहां जाकर युद्ध होगा अब सैना है तो युद्ध भी होगा। उन्होंने न्यूयॉर्क को गंतव्य बनाया है, कभी-कभी भक्त कहते हैं,मैं भी कहता हूं कि सामान्‍यत: यह पाश्चात्य देश या विशेष रूप से न्यूयॉर्क को कलियुग की राजधानी कहा जा सकता है।न्यूयॉर्क हो या सैनफ्रांसिस्को हो, इनको श्रील प्रभुपाद ने अपना गंतव्य स्थान बनाया है। वहां जाकर हमला होगा, कलि के साथ लड़ेंगे उन्होंने अपने साथ हथियार ले रखे हैं। कौन से हथियार?उसको "बॉम्ब" कहते हैं, श्रील प्रभुपाद के ग्रंथ क्या हैं?" टाइमबॉम्ब"। भागवतम् कि 200 प्रतियाँ प्रभुपाद अपने साथ लेकर गए और साथ में और कौन सा अस्त्र या शस्त्र ले रखा है? हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे। हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। यह शस्त्र भी साथ में ले रखा है और जब श्रील प्रभुपाद वहां पर पहुंचे, तब प्रभुपाद ने ग्रंथों का वितरण प्रारंभ किया जैसे आपने अभी-अभी ग्रंथों का वितरण किया है।प्रभुपाद ने जो भी अपने अनुयायियों को करने के लिए कहा उसे स्वयं भी पहले कर चुके थे, श्रील प्रभुपाद तभी अपने शिष्यों को या अनुयायियों को यह आदेश दिया।इस प्रकार संस्थापकाचार्य ने जगत को सिखाया । अपने आचरण प्रभु जगत सिखाये महाप्रभु हों या श्रील प्रभुपाद हों,अपने आचरण से सबको सिखाते हैं। श्रील प्रभुपाद ग्रंथ वितरण कर रहे थे, यहां तक कि जब प्रभुपाद अभी जलदूत में हीं थे, तब भी वहां पर जलदूत के कप्तान "कैप्टन पांडेय", उनको भी प्रभुपाद ने अपने ग्रंथों का वितरण किया, बदले में उनको $20 मिले थे, रास्ते में भी प्रभुपाद ने ग्रंथों का वितरण किया और पहुंचने पर तो किया ही किया और हरि नाम का प्रारंभ हुआ। पहले तो अकेले ही प्रभुपाद प्रचार कार्य कर रहे थे, प्रभुपाद फुटपाथ पर बैठकर प्रचार कर रहे थे। एक बार दिल्ली में उपस्थित कुछ अतिथियों को मैं प्रभुपाद के संबंध में कुछ कह रहा था, या श्रील प्रभुपाद का परिचय दे रहा था तो मैंने कहा था कि प्रभुपाद न्यूयॉर्क में अकेले ही कीर्तन किया करते थे, मृदंग और करताल अकेले ही बजाया करते थे। प्रभुपाद ने कहा कि नहीं नहीं मृदंग नहीं, मृदंग भी नहीं था और मृदंग बजाने वाला भी कोइ नहीं था प्रभुपाद अकेले ही या तो ताली बजाते या करताल बजाते। इस प्रकार उस वक्त प्रभुपाद ने मुझे सुधारा, जो उस वक्त दिल्ली में मैंने प्रभुपाद के संबंध में कहा था। प्रभुपाद अकेले थे और इतने सारे प्रयास चल रहे थे,लेकिन उस समय भी प्रभुपाद यह कह रहे थे कि मेरे कई सारे मंदिर हैं और कितने सारे मेरे भक्त हैं, प्रभुपाद इसको 1965 में कह रहे थे, जब एक भी मंदिर नहीं था। प्रभुपाद ने कहा कि देखो कितने सारे मंदिर हैं कितने सारे भक्त हैं, प्रभुपाद दूरदृष्टि वाले थे। "त्रिकालज्ञ प्रभुपाद", "भूत-भविष्य-वर्तमान के ज्ञाता श्रील प्रभुपाद"। प्रभुपाद देख रहे थे मंदिर तो थे नहीं, प्रभुपाद अकेले ही थे लेकिन उन्हें इस विषय में दिखाई दे रहा था कि ऐसा होना है और जरूर होगा। मैं प्रयास कर रहा हूं तो यह प्रचार फैलने वाला है और लोग हरि नाम संकीर्तन करेंगें, जप करेंगे, फिर मंदिर भी होंगे, भक्त रथयात्रा भी मनाएंगे और ग्रंथ वितरण भी होगा। कृष्ण जन्माष्टमी जैसे उत्सव भी मनाए जाएंगे, प्रसाद वितरण होगा, फूड फॉर लाइफ होगा, यह सब श्रील प्रभुपाद देख रहे थे और उनके देखते-देखते यह सब हो भी रहा था।प्रभुपाद के पास कुछ 10 साल ही थे, 1965 में पहुंचे1966 में इस्कॉन की स्थापना की, न्यूयॉर्क में इस्कॉन की स्थापना हुई और फिर 10-11 वर्षों के उपरांत, 77 की उम्र में श्रील प्रभुपाद वैकुंठ वासी, नित्य लीला में प्रविष्ट हुए, उन्होंने ऐसे देखे मंदिर बनते हुए । वही बात है, प्रभुपाद का जब जन्म हुआ था तब उनकी जब कुंडली देखी गई तो उस समय पर भविष्यवाणी हुई थी कि यह बालक अपने जीवन में 108 मंदिरों की स्थापना करेगा, वह भी सच होना ही था, वो मंदिर हैं इस्कॉन के मंदिर। प्रभुपाद अकेले ही थे जब ग्रंथों का वितरण कर रहे थे, कीर्तन कर रहे थे और उसी के साथ जैसे हमने कहा कि प्रभुपाद कलि को परास्त करने के लिए आए थे, प्रभुपाद यात्रा में आगे बढ़े, जलदूत से न्यूयॉर्क गए। कलि क्या करता है कली के अड्डे कौन-कौन से होते हैं? भागवतम् के प्रथम स्कंध में स्पष्ट लिखा है सूत उवाच अभ्यर्थितस्तदा तस्मै स्थानानि कलये ददौ। द्यूतं पानं स्त्रिय: सूना यत्राधर्मश्चतुर्विध:॥ (भागवतम् 1.17.38) "सूत गोस्वामी ने कहा : कलियुग द्वारा इस प्रकार याचना किये जाने पर महाराज परीक्षित ने उसे ऐसे स्थानों में रहने की अनुमति दे दी , जहाँ जुआ खेलना , शराब पीना , वेश्यावृत्ति तथा पशु - वध होते हों " जहां द्यूत क्रीड़ा, जुआ आदि खेले जाते हैं,वह है कलि का अड्डा। जहां मद्यपान होता है, सामान्यता कहे तो चाय पान भी।चाय पान भी नशा पान ही है। जहां परस्त्री-पुरुष गमन होता है, वैश्या गमन होता है, अवैधयौन जहां होता है वहां कलि है और जहां कत्लखाने होते हैं। कत्लखाने बोले या मासभक्षण या जहां पशुओं के गले काटे जाते हैं या जहां लोग पशुओं का खून पीते हैं, मांस खाते हैं। हरि हरि ।। आजकल तो लोग गाय को भी नहीं छोड़ते, गाय, जो हमारी माता है, माता का भी भक्षण करते हैं, मां को खा लेते हैं। इन से अधिक बड़े राक्षस कौन होंगे? यह कली का प्रभाव है। वहां कलि है जहां मांस भक्षण होता है, अवैधयौन होता है, फिर वर्णसंकर भी होता है। स्त्रियाँ गर्भवती होती हैं, गर्भ से बालक जन्म लेता है और फिर मॉ ही बच्चे की जान ले लेती है, गर्भपात करती है, कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन कल्पना करने कि आवश्यकता ही नहीं है।यह सब हो ही रहा है यह सब घटनाएं घटित हो रही हैं। माताएं अपने बच्चों की जान ले रही है, गर्भपात हो रहें है या गौ माता का भक्षण हो रहा है, यही है कलियुग। विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।(भगवद् गीता2.59) जहां चार प्रकार के अधार्मिक कृत्य होते हैं, वहां रहो हे कलि, ऐसा कहकर राजा परीक्षित ने कलि पर दया दिखाई। उसकी जान नहीं ली और ऐसे स्थान कलि को दे दिए। 5000 वर्ष पूर्व की बात है ये और फिर इस कली ने अपना जाल फैला दिया। यह मत समझना कि यह केवल हिंदुओं की बात है अरे,कौन सा कलि? कौन से कलि की बात कर रहे हो तुम? हमें नहीं पता कौन कलि? हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, हम नहीं मानते। पाश्चात्य देश के लोग कह सकते हैं कि हम कलि को नहीं मानते, कलि को नहीं जानते, हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, हमें कोई चिंता नहीं है कलि की। लेकिन कलि तो सर्वत्र है ही आप नहीं जानते हो या नहीं मानते हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सूर्य तो है ही, आप अंधे हो और आपको सूर्य दिख नहीं रहा है इससे सूर्य का अस्तित्व समाप्त नहीं होता। कोई कह सकता है कि सूर्य का अस्तित्व नहीं है कौन कह रहा है ये? 'अंधा', क्या कीमत है अंधे की कहने की कि सूर्य नहीं है। उसी प्रकार भगवान नहीं है ऐसा कहने वाला होता है कामांध। काम से अंधा। अवैध स्री पुरुष संग में जो लिप्त हैं, कामांध हैं। जब काम कि तृप्ति नहीं होती तो वह क्रोधांध, क्रोधी बनता है।लोभी बनता है। धनांध जैसे कुबेर के पुत्र अंधे बन चुके थे, नारद मुनि तो जा रहे थे नारायण नारायण नारायण कहते हुए उन्होंने देखा ही नहीं, देखा नहीं तो उनको कोई फिक्र भी नहीं थी क्योंकि अंधे थे।नारद जी जैसे महा भागवत पर भी ध्यान नहीं दिया, वहां लिखा है धनानंध तो इस प्रकार के लोग अंधे बनाए गए हैं, उनको दिखता नहीं है । पाश्चात्य देश के लोग भी अगर कहें कि कलि क्या होता है? हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कलि से, तो वह अनाड़ी हैं। उनको सतयुग का पता नहीं है, त्रेतायुग का पता नहीं है, द्वापर का पता नहीं है, कलियुग का पता नहीं है। अभी-अभी मनुष्य बना है वो, पहले तो बंदर ही था, मनुष्य बंदर कि औलाद है ऐसा डार्विन ने भी कहा जो इंग्लैंड के महाशय थे। डार्विन और सभी ने मुंडी हिलाना शुरू कर दिया था, हां हां डार्विन थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन हम स्वीकार करते हैं और कहने लगे कि हमारे पूर्वज कौन हैं? बंदर। वैसे हमारे पूर्वज तो ब्रह्मा हैं जो वैदिक संस्कृति को अपनाते हैं या स्वीकार करते हैं, उनकी समझ है कि हमारे पूर्वज तो ब्रह्मा हैं।पाश्चात्य देशों में डार्विन ने प्रचार किया कि हमारे पूर्वज बंदर हैं, वानर हैं, हम बंदर की औलाद हैं। हैं क्या? प्रभुपाद जब न्यूयॉर्क पहुंचे थे तो ग्रंथों के वितरण से और हरे कृष्ण कीर्तन से, प्रसाद से कहो। प्रसाद में इस्कॉन की बुलेट्स हैं, यह पुस्तकें टाइम बम हैं और हरि नाम भी एक अस्त्र है, ब्रह्मास्त्र है हरि नाम तो। प्रसाद भी है, एक शस्त्र या बुलेट्स कहो।इस्कॉन की बुलेट्स कौन सी है? पुंडरीक विद्यानिधि इस्कॉन की बुलेट जानते हो?इस्कॉन में हम लोग गोली खिलाते हैं।सैनिक क्या करता है? सैनिक गोली खिलाते हैं और फिर शत्रु घायल हो जाता है। इस्कॉन के जो सैनिक हैं, जिन सैनिकों के सेनापति हैं श्रील प्रभुपाद। वह गोली है गुलाब जामुन, यह सब खिलाया प्रभुपाद ने। ग्रंथ वितरण टाइम बम, हरि नाम ब्रह्मास्त्र, प्रसाद वितरण इस्कॉन बुलेट्स।इससे क्या हुआ? पाश्चात्य देशों कि विचारधारा या पाश्चात्य देशों की पशु वृति का विनाश हुआ। उसका विनाश किया श्रील प्रभुपाद नें और परम दृष्टवा निवर्तते। उनको कुछ ऊंचा स्वाद दिया, उनकी आत्मा आत्माराम बन रही थी। उनको आत्मा में आराम मिल रहा था वो इस तरह तैयार हुए। श्रील प्रभुपाद ने अभी अभी जो अनुयायी बन ही रहे थे उनमें से कुछ गिने-चुने को इकट्ठा किया और प्रभुपाद ने कहा कि मैं अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ की स्थापना कर रहा हूं। मुझे अनुयायी चाहिए, मुझे मदद चाहिए, आप में से कुछ लोग या जो तैयार हो, क्या मुझे मदद कर सकते हो? उन्होंने पूछा कि कौन सी पूर्व तैयारी करनी है आप हमसे क्या उम्मीद करते हो? क्या कोई नियम है जिसका हमें पालन करना होगा ताकि आपके संघ के हम भी अनुयायी बन सकते हैं? आपकी मदद कैसे कर सकते हैं? प्रभुपाद ने पहली बार औपचारिक रूप से कहा कि आपको 4 नियमों का पालन करना होगा। वह कौन से हैं? प्रभुपाद ने कहा कि मांसाहार नहीं, जुआ नहीं, अवैध स्त्री पुरुष संग नहीं, नशा नहीं और फिर प्रभुपाद ने पूछा, क्या आप तैयार हो? वहां जितने अमेरिकी युवा लड़कें और लड़कियां उपस्थित थे, उन्होंने हाथ ऊपर करके कहा कि हां स्वामी जी, हम तैयार हैं। उसी के साथ "परम विजयते श्री कृष्ण संकीर्तनम"।। चेतो-दर्पण-मार्जनं भव-महा-दावाग्नि-निर्वापणं श्रेयः-कैरव-चन्द्रिका-वितरणं विद्या-वधू-जीवनम् आनन्दाम्बुधि-वर्धनं प्रति-पदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्म-स्नपनं परं विजयते श्री-कृष्ण-सण्कीर्तनम् (चैतन्य चरितामृत अन्त्य लीला 20.12) संकीर्तन आंदोलन की जय हो और यह कलियुग के अंत की शुरुआत थी। क्या समझे आप? यह शुरुआत थी। शुरुआत हुई अंत की, कलि समाप्त होगा, सर्वत्र परास्त होगा उसकी शुरुआत हुई न्यूयॉर्क में। इस प्रकार सेनापति भक्त श्रील प्रभुपाद विजयी हुए। यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर:। तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥ (18.78भगवद् गीता) जहां गुरु और गौरांग की टोली है गुरु गोरांग जयते, वहां जीत होती है, यह जीत हुई और प्रभुपाद जहां-जहां गए उन्होंने कलि को परास्त किया और संकीर्तन आंदोलन की जीत हुई। हरि हरि।। प्रभुपाद के प्रारंभ किए हुए इस कार्य को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अब हमारी है।सब मिलकर प्रयास करो। वैसे कार्य तो गौरांग महाप्रभु का है। कलियुग अवतारी गोरांग महाप्रभु की इस भविष्यवाणी को सच करने के लिए प्रभुपाद ने अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ की स्थापना की और अपने जीवन में इतना सारा कार्य किया और यश कमाया और उनकी यह अपेक्षा थी कि जब मैं नहीं रहूंगा तो मेरे अनुयायी आपस में सहयोग करें। अगर आप कहते हो कि आपको मुझ से प्रेम है, मैं समझूंगा कि आप मुझसे प्रेम करते हो अगर आप आपस में सहयोग करोगे। जब आप एक दूसरे को योगदान दोगे, एक दूसरे की मदद करोगे। किसके लिए मदद? इस संस्थान को बचाने के लिए प्रभुपाद द्वारा स्थापित इस संस्थान की रक्षा के लिए अब यह कार्य हमको करना है, एक दूसरे को योगदान देना है । जो नेतृत्व कर रहे हैं उनकी मदद करनी है उनको योगदान देना है । हरि हरि ।। हरे कृष्ण

English

1 February 2021 Srila Prabhupada inaugurated the beginning of the end of the age of Kali Hare Krsna! For the pleasure of the Lord Sri Sri Pancatattva and Radha Mādhava, Radha Pandharinātha, Srī Narsimha Deva, we have devotees from 780 locations chanting with us today. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare As we make announcements in the temple after manglā ārati of japa scores, book distribution scores, prasada distribution scores, similarly today we are announcing the number of locations where devotees are chanting for the pleasure of the Lord and the devotees. The prediction made by Lord Srī Kṛṣṇa Caitanya Mahāprabhu is getting fulfilled. pṛthivīte āche yata nagarādi grāma sarvatra pracāra hoibe mora nāma Translation As many towns and villages there are on the surface of the globe, everywhere people will know My name. (CB Antya-khaṇḍa 4.126) Lord Caitanya predicted, My name will be chanted in each and every town on this earth and Srīla Prabhupāda made it possible. When we say this, it also reminds us that Srīla Prabhupāda did this following the instructions of Srīla Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakur. In other words, Srīla Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakur was inspired by Srī Krsna Caitanya Mahāprabhu to instruct Abhay Babu, who is Srīla Prabhupāda, in 1922 in Kolkata to preach Bhāgavata dharma in foreign countries. Srīla Prabhupāda spent his whole life in preparation. He was sitting in the Jaladuta, crossing Europe, and travelling to another land where the whole Sankīrtana army would join him. Srīla Prabhupāda is our Senapati bhakta. It was mentioned in the sastras that one commander will fight Kaliyuga or preach this Krishna consciousness around the globe, beginning from New York which is the kingdom of Kali. Srīla Prabhupāda went with time bombs, the 200 sets of Bhāgavatam and another powerful weapon which he carried with him was the Hare Krishna mahā-mantra. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare When the army joined Srīla Prabhupāda, he instructed his disciples to perform different activities. As we were distributing Bhagavad Gīta last month, Srīla Prabhupāda also did this and guided others how to do it as well. Srīla Prabhupāda could guide because this is what he had done in India, when he was completely alone. āpani ācari prabhu jīvere śikhāya āpna vañcaka yei sei jirjane bhajāya Translation The Lord sets example Himself to teach the spirit souls. The one who performs nirjana bhajana simply cheats himself. (Vrndavane Bhajana Sections 18, Srila Visvanatha Cakravarti Thakura) Mahāprabhu and Srīla Prabhupāda has taught us through their behaviour. Srīla Prabhupāda distributed his books even to the captain of the ship from whom he got 20 dollars. He preached single handedly on the roads and it triggered Harināma chanting. I remember, one time I was in Delhi with Srīla Prabhupāda and I was introducing him to some visitors, "In the initial days when Srīla Prabhupāda was in New York, he used to play kartāla and mrdangas." Then Srīla Prabhupāda immediately corrected me and said, "No, even mrdanga was not there". Srīla Prabhupāda chanted with clapping and karatāls only. One time he was sitting in a park where he told a person, "You can't see, but I can see. I will be building temples around the globe. My disciples will be everywhere, I will be distributing books around the world. People will be doing Harināma, celebrating Ratha-yatra and Janmastami festivals. There will be food for life." Srīla Prabhupāda was far sighted. He could see that even before its physical manifestation. Srīla Prabhupāda went to New York in 1965, established ISKCON in 1966 and went back home, Back to Godhead in 1977. When Srīla Prabhupāda was born, it was predicted that he would build 108 temples and that's exactly what happened. When Srīla Prabhupāda went to New York, he defeated the forces of Kali. The places where Kali can exist, is mentioned in Srimad Bhāgavatam. abhyarthitas tadā tasmai sthānāni kalaye dadau dyūtaṁ pānaṁ striyaḥ sūnā yatrādharmaś catur-vidhaḥ Translation Sūta Gosvāmī said: Mahārāja Parīkṣit, thus being petitioned by the personality of Kali, gave him permission to reside in places where gambling, drinking, prostitution and animal slaughter were performed. (ŚB 1.17.38) Kali is where gambling, drinking, prostitution and animal slaughter is performed. In slaughterhouses, even cows are killed and eaten. The cow is our mother, but people kill and eat them. Such monsters! The place where illicit sex takes place, is Kali. Ladies get pregnant and a mother herself kills that child. She aborts her child. These all are happening. Out of compassion, 5000 years ago Maharaja Pariksit permitted Kali to live in these four places and then Kaliyuga spread. You may agree to the existence of Kali or you may refute it, but this has happened and it's still happening. For example, a blind man can say, "Oh! I can't see any sun. Who says there is a sun. The sun doesn't exist." What is the value of such a statement from a blind man? Similarly people who say there is no God, are blinded by lust, greed and anger. Like the sons of Kuber, blind in lust disrespected Nārada Muni. Foreigners may refuse this philosophy of Satya yuga, Treta-yuga, Dvapara-yuga and Kaliyuga because they are blind. Such foreigners accept that they originated from a monkey. They accept Darwin's theory of evolution and any person who believes in Darwin's theory will think that his origin is the monkey. People who believe in Vedic culture understand that they originated from Brahma. Srīla Prabhupāda prepared his army through his books (time bombs), ISKCON bullets (Gulab Jamun) and the Hare Krishna mahā-mantra (Brahmastra) and destroyed their animal mentality. viṣayā vinivartante nirāhārasya dehinaḥ rasa-varjaṁ raso ’py asya paraṁ dṛṣṭvā nivartate Translation Though the embodied soul may be restricted from sense enjoyment, the taste for sense objects remains. But, ceasing such engagements by experiencing a higher taste, he is fixed in consciousness. (BG. 2.59) Later when Srīla Prabhupāda was officially creating this society, there were a few followers who asked him the terms and conditions to become a member of the society? Then, for the first time, Srīla Prabhupāda mentioned that members of this society will have to follow four regulative principles. After mentioning those principles, he asked those devotees, "Are you ready to follow these principles?" and in response they said, "Yes, we are ready Swamiji." This param vijayate sri-krishna-sankirtanam was the beginning of the end of Kaliyuga. This is how this movement started. yatra yogeśvaraḥ kṛṣṇo yatra pārtho dhanur-dharaḥ tatra śrīr vijayo bhūtir dhruvā nītir matir mama Translation Wherever there is Kṛṣṇa, the master of all mystics, and wherever there is Arjuna, the supreme archer, there will also certainly be opulence, victory, extraordinary power, and morality. That is my opinion. (BG. 18.78) Where there is Guru and Gauranga, victory is assured, guru gaurango jayatah. Srīla Prabhupāda defeated Kali wherever he went and the Sankīrtana movement won. Now it's our responsibility to carry on the work that Srīla Prabhupāda had started. In order to make true the prediction of Srī Krsna Caitanya Mahāprabhu, Srīla Prabhupāda established ISKCON and engaged us in this movement. Before leaving this world for Vaikuntha or Goloka, he told his followers, "You say you love me, but your love for me will be expressed by the way you cooperate with each other to protect this institution." Now we have to cooperate with the authorities and leaders of ISKCON. Gaura premanande hari haribol!

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