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*जप चर्चा* *30 जून 2021* *पंढरपुर धाम से* *हरे कृष्ण !* आज 849 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। तो आप तैयार हो? *हरि हरये नमः कृष्ण यादवाय नमः। यादवाय माधवाय केशवाय नमः॥1॥* *गोपाल गोविंद राम श्री मधुसूदन। गिरिधारी गोपीनाथ मदनमोहन॥2॥* (नरोत्तम दास ठाकुर-भजन) आज मैं जब मंगला आरती कर रहा था, मंगला आरती गाने वाले भक्त ने आरती में ये पूरा गीत सुनाया। ये श्री नरोत्तम दास ठाकुर की रचना है, उनके भाव हैं, उनकी भक्ति है या उनके विचार हैं, इस गीत के माध्यम से वो विचार, वो भाव प्रकट कर रहे हैं। हमारे आचार्य नरोत्तम दास ठाकुर की जय ! हमे उनसे ये सीखना होता है और यदि कोई भाव भक्ति सीखे फिर क्या कहना या जो भी सीखते हैं या सुनते हैं उससे हमारा भक्ति भाव उदित हो, प्रेम उदित हो, यही लक्ष्य होता है। हमारे नरोत्तम दास ठाकुर जैसे आचार्य जब बृज में रहे और पता है कब रहे ? षड गोस्वामी वृंदों के समय रहे, या लगभग ऑलमोस्ट चैतन्य महाप्रभु के समय वे रहे। नरोत्तम! नरोत्तम! उनके चरित्र की बात शुरू हो जाती है या चैतन्य महाप्रभु एक समय वह कहने लगे नरोत्तम ! नरोत्तम ! किसी को कुछ समझ में नहीं आया यह क्या नरोत्तम !नरोत्तम! कह रहे हैं ? कौन है क्या है ये नरोत्तम ? चैतन्य महाप्रभु ने नरोत्तम के नाम का उच्चारण किया। नरोत्तम के प्राकट्य के पहले ही वो पुकार रहे थे मानो भविष्यवाणी कर रहे हों। एक महान भक्त प्रकट होंगे उनका नाम होगा नरोत्तम ! नरोत्तम दास ठाकुर ! वे फिर वृंदावन पहुंच गए। वे षड गोस्वामी वृंदों से मिलना चाहते थे। बढ़िया होता या ये सर्वोत्तम बात होती कि वे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु से ही मिलते किंतु श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु तब तक अंतर्ध्यान हो चुके थे। उन्होंने जगन्नाथपुरी में टोटा गोपीनाथ में प्रवेश किया और अपनी लीला को अप्रकट किया। चैतन्य महाप्रभु के अन्य जो अनुयायी और षड गोस्वामी वृंद बचे थे वे अब उनसे मिलना चाहते थे। नरोत्तम दास ठाकुर उनके मिलन हेतु वृंदावन आ जाते हैं लेकिन उनके वृंदावन पहुंचते-पहुंचते अधिकतर षड गोस्वामी वृंद नहीं रहे और बचे हैं तो केवल जीव गोस्वामी , वैसे लोकनाथ गोस्वामी भी हैं और कुछ गोस्वामी और बचे हैं। उनका अंग संग नरोत्तम दास ठाकुर को प्राप्त हुआ और इस अंग संग ने उनके विचारों में क्रांति की, क्रांति और भाव उमड़ आए हैं। उनके हृदय प्रांगण में भक्ति भाव आंदोलित हो रहे हैं। वो भाव, कुछ विचार उस समय के षड गोस्वामी और वृंदावन के संबंध में, राधा कृष्ण के संबंध में। वैसे नरोत्तम दास ठाकुर ने कई सारे गीत लिखे हैं प्रेम भक्ति चंद्रिका प्रार्थना, ऐसे उनके गीतों का संग्रह है। श्रील प्रभुपाद ने हम भक्तों को, इस्कॉन के सदस्यों को, अनुयायियों को, नरोत्तम दास ठाकुर के गीत दिए, और उनको गाने के लिए प्रेरित किया। इस्कॉन में हम अधिकतर नरोत्तम दास ठाकुर के गीत ही गाते हैं, इस्कॉन मतलब वर्ल्ड वाइड या श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के गीत गाते हैं या कुछ लोचन दास ठाकुर के गीत हैं, अन्य आचार्यों के थोड़े थोड़े गीत गाते हैं लेकिन अधिकतर श्री नरोत्तम दास ठाकुर और श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के गीत की प्रस्तुत किए और हम सभी को प्रेरित किया उनको गाने के लिए भजन के रूप में या भजन संध्या इत्यादि। यह उसमें से एक विशेष गीत है अतः उसको पढ़ने का या पढ़कर सुनाने का विचार है। *हरि हरये नमः कृष्ण यादवाय नमः। यादवाय माधवाय केशवाय नमः।।* ऐसे शुरुआत करते हैं हरि, हरि कहा है और हरये भी कहा है। हरी कहा, तो हे हरि !संबोधन हुआ और फिर जब उनको नमस्कार करने की बात कह रहे हैं या विचार हो रहा है उनको नमस्कार तो हरये! हरि का होता है हरये नमः, जैसे राम का रामाये नमः होता है, वैसे ही हरि का हरये होता है। चतुर्थी में हरि हरये नमः कृष्ण यादवाय नमः हे कृष्ण और यादवाय नमस्कार करना है तो यादवाय अर्थात यादव को मेरा नमस्कार। "यादवाय माधवाय केशवाय नमः" भगवान का नाम बहुत कुछ कहता है, इट्स मीनिंग फुल। यंहा सारे मीनिंग या अर्थ कहने का समय नहीं है किंतु आई एम जस्ट पॉइंटिंग आउट, आप समझ लो जब हम कहते हैं या नरोत्तम दास ठाकुर के यादवाय, यदुवंश के यादव अर्थात श्री कृष्ण आपको नमस्कार, माधवाय तो माधव को नमस्कार, यादवाय नमः माधवाय नमः केशवाय नमः तो यह सब नमस्कार चल रहे हैं। माधव को, महालक्ष्मी के पति माधव या कृष्ण को संबोधित किया जा रहा है। कृष्ण की लक्ष्मी वैसे महालक्ष्मी है, वह राधा है। माधव, मतलब राधा के पति, ये ऐसा ज्ञान हमको मिलता है, ऐसा हम को समझना चाहिए। माधवाय, भगवान का हर नाम कुछ वैशिष्ट है, कुछ लीला है, भगवान के अन्य भक्तों के साथ संबंध या भगवान के धाम या ऐसा नामकरण है या ऐसे नाम हो जाते हैं "विष्णु सहस्त्रनाम" है। यह सहस्त्र बातें कहते हैं, लेकिन कहते हैं एक ही व्यक्ति के संबंध में, एक व्यक्ति का व्यक्तित्व, चरित्र या नाम, रूप, गुण, लीला, स्मरण दिलाते हैं। यह अलग अलग नाम (व्हाट इज देयर इन द नेम) नाम में क्या है? फिर क्या कहना है कि नाम में सब कुछ है, या नाम ही सब कुछ है या नाम ही तो भगवान है। व्हाट इज इन द नेम? देयर इज़ सो मच इन द नेम, एवरीथिंग इज द नेम, *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* बहुत कुछ, यह सब कुछ हम कहते हैं जब हम हरे कृष्ण कहते हैं। जप करते हैं इन नामों का 16 नाम हैं महामंत्र में, हरे कृष्ण महामंत्र मंे कितने नाम हैं ?16 नाम हैं, 32 अक्षर हैं,16 नाम हैं जिसमे कुछ नाम राधा के हैं, कुछ कृष्ण के हैं लेकिन फिर कहा *गोपाल गोविंद राम श्री मधुसूदन।गिरिधारी गोपीनाथ मदन-मोहन।।* एक और नाम आ गया *गोपाल* केवल गोपाल कह दिया। गोपाल, गोपाल, गोपाल कहो गोपाल, कितनी सारी बातें याद आ जाती हैं, याद आनी ही चाहिए। गोपाल अर्थात गाय के रखवाले, गोपाल फिर गाय भी याद आती है , गोपाल भी याद आते हैं, ग्वाल बाल या गोपाल। वैसे कृष्ण ही गोपाल नहीं हैं, बृज का हर व्यक्ति गोपाल है। हम उनको वृंदावन में गोप कहते हैं। वहां या फिर तो गोप हैं या फिर गोपियां हैं। गोप कहो या गोपियां एक ही बात है। गोप "प " का मतलब पालक ,गोपाल थोड़ा विस्तार से कहा, कृष्ण स्मरणीय है। प्रातः स्मरणीय सदैव स्मरणीय, नाम लेते ही गोपाल कहते ही कितनी सारी यादें आ जाती हैं। आ सकती हैं आनी चाहिए। गोविंद ! फिर कहा *गोविंद* इस नाम पर बहुत कुछ कहा जा सकता है। बहुत बड़ा प्रवचन या कथा हो सकती है। *गोविंद* नाम लेके इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले। गोविंद इस नाम पर इसका निरूपण इसकी कथा और हो सकती है। कोई ये कह सकता है गोपाल गोविंद राम, आप राम कहते हो नरोत्तम दास ठाकुर लिख रहे हैं राम तो बलराम भी हैं, श्रीराम भी हैं, परशुराम भी हैं यह सब याद आ जाते हैं, राम कहने से, ऐसे भगवान याद आते हैं। *मधुसूदन* मधु नाम का राक्षस था सूदन उसका वध करने वाले मधुसूदन उनका नाम ही हुआ मधुसूदन या केशी दमन, दमन मतलब दमन या कालिया दमन तो मधुसूदन नाम ही हुआ। "मधु कैटभारै" दो थे, दोनों का वध किया। कैटभारै मतलब मधु कैटभारै" रै" यह संस्कृत की शैली है आप सुने होंगे मधु कैटभा +रै , अरि का मतलब शत्रु और अरि का संबोधन हुआ अरे मतलब अहो, हे मधु और कैटभ के शत्रु मधु कैटभ हरि हरि! गिरधारी क्या कहा *गिरिधारी* क्या मधुर लीला है और शब्द कहा केवल गिरिधारी या केवल नाम उच्चारण हुआ कहा गिरधारी, उसके साथ कितनी सारी बातें जुड़ी हुई हैं। सारा इतिहास, लीला, सारा इतिहास ही है। गोपीनाथ ! कृष्ण कैसे हैं ? गोपीनाथ, वृंदावन में वह गोपीनाथ हैं और मदन मोहन हैं, मदन को भी मोहित करते हैं। अरे किंतु राधा रानी तो मदनमोहनमोहिनी हैं ऐसी चर्चा प्रारंभ हो सकती है। कंपटीशन बिटवीन राधा एंड कृष्ण थोड़ा तेजी से आगे बढ़ना होगा। श्रीचैतन्य नित्यानंद ,श्रीअद्वैत सीता, नरोत्तम दास ठाकुर अब तक तो वृंदावन कृष्ण की बातें स्मरण कर रहे थे। अलग-अलग नामों का उच्चारण करते हुए अब से नवदीप की ओर बढ़ रहे हैं और नवदीप में श्रीकृष्ण हैं *श्रीचैतन्य-नित्यानंद-श्री अद्वैत-सीता। हरि गुरु वैष्णव भागवत गीता।।* श्रीचैतन्य श्रीनित्यानंद श्रीअद्वैत सीता भी कहा यह सीता कौन है? अद्वैत आचार्य की भार्या, सीता ठकुरानी। हरि गुरु वैष्णव भागवत गीता। नरोत्तम दास ठाकुर याद कर रहे हैं पुनः हरि, गुरु, वैष्णव, भागवत, गीता, और कुछ भक्त गलती से कहते हैं भगवत गीता, इसको गाते समय भगवत गीता ही कहते हैं मतलब एक ही शास्त्र हुआ लेकिन यहां तो नरोत्तम दास ठाकुर ने दो ग्रंथों का उल्लेख किया है। भागवत गीता यह नहीं कि भगवत गीता तो यह गलत उच्चारण सावधान नहीं होने से, साधु सावधान ! सावधान होकर हमें पढ़ना भी चाहिए। नोट करना चाहिए और वैसे ही उच्चारण भी करना चाहिए। हर एक का स्मरण कर रहे हैं हरि का, गुरु का, वैष्णव का, केवल हरि का ही नहीं हरि से गुरु को अलग नहीं किया जा सकता। गुरु गौरांग जयते कहा है या गुरु हरी केवल गुरु ही नहीं, वैष्णव भी हैं और भागवत है, गीता है। अब षड गोस्वामी वृंदो का स्मरण करते हुए उनके नामों का स्मरण कर रहे हैं। *श्री रूप सनातन भट्ट-रघुनाथ। श्री जीव गोपाल भट्ट दास-रघुनाथ॥4॥* यह षड गोस्वामी वृंद हैं। नरोत्तम दास ठाकुर भली-भांति परिचित थे इन षड गोस्वामियों के चरित्र से, हमें भी उनके चरित्रों का अध्ययन और फिर संस्मरण करना चाहिए। हरि हरि ! यह हमारे फाउंडर आचार्य हैं, गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के यह फाउंडर आचार्य हैं फाउंडिंग फादर्स हैं । वैसे हैं तो गौरांग और नित्यानंद *आजानुलम्बित - भुजौ कनकावदातौ सङ्कीर्तनैक - पितरौ कमलायताक्षौ । विश्वम्भरौ द्विजवरौ युगधर्मपालौ वन्दे जगत्प्रियकरौ करुणावतारौ ॥* ( चैतन्य भागवत १.१) अनुवाद - मैं भगवान् श्रीचैतन्य महाप्रभु और भगवान् श्री नित्यानन्द प्रभु की आराधना करता हूँ , जिनकी लम्बी भुजाएं उनके घुटनों तक पहुँचती हैं , जिनकी सुन्दर अंगकान्ती पिघले हुए स्वर्ण की तरह चमकीले पीत वर्ण की है , जिनके लम्बाकार नेत्र रक्तवर्ण के कमलपुष्पों के समान हैं । वे सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण, इस युग के धर्मतत्त्वों के रक्षक, सभी जीवात्माओं के लिए दानशील हितैषी और भगवान् के सर्वदयालु अवतार हैं । उन्होंने भगवान् कृष्ण के पवित्र नामों के सामूहिक कीर्तन का शुभारम्भ किया । संकीर्तन आंदोलन के पिता हैं गौरांग और नित्यानंद । फर्स्ट जेनरेशन ऑफ आचार्य कहो, गौरांग और नित्यानंद के दौरान कोई है तो यह षड गोस्वामी वृंद हैं। इस आंदोलन के संस्थापक गौरांग महाप्रभु, नित्यानंद प्रभु और षडगोस्वामी टीम है। *एइ छह गोसाँईर करि चरण वंदन। जहाँ होइते विघ्न-नाश अभीष्ट-पुरण॥5॥* यह जो छः गोस्वामी हैं इनके चरणों की मैं वंदना करता हूं। जीव गोस्वामी, उन षडगोस्वामी वृंद में जो बचे थे वे सेकंड जेनरेशन आचार्य कहो, जीव गोस्वामी नरोत्तम दास ठाकुर के शिक्षा गुरु बने हैं और फिर कहना ही पड़ेगा लोकनाथ गोस्वामी नरोत्तम दास ठाकुर के दीक्षा गुरु हैं। लोकनाथ गोस्वामी के एक ही शिष्य थे और वे थे नरोत्तम दास ठाकुर। इस तरह दीक्षा गुरु लोकनाथ गोस्वामी और शिक्षा गुरु जीव गोस्वामी, वैसी शिक्षा वह ग्रहण कर रहे हैं, जिससे वे वंदना कर रहे हैं । षड गोस्वामी वृंद के चरणों की वंदना करने के लिए उनको सिखाया जा रहा है, उनको शिक्षा दी जा रही है, वंदना कर रहे हैं। हमको भी देख देख कर कि नरोत्तम दास ठाकुर और क्या-क्या करते हैं, क्या क्या सोचते हैं, किसकी वंदना करते हैं, कौन है इष्ट देव इत्यादि इत्यादि, हमे भी वैसे ही करना है। हमारे गुरुजन हैं, हमारे आचार्य हैं नरोत्तम दास ठाकुर। जो हमारे शिक्षा दीक्षा गुरु हैं, वे सीखेंगे इन आचार्यों से और परंपरा में, फिर हमको भी सीखना है और हमको सिखाना भी है। हममें से हर एक की दो भूमिकाएं हैं सीखना है सिखाना है, पठन और पाठन याद रखो ऐसे शब्द पाठन पढ़ना है और पढ़ाना है , सीखना है और सिखाना है श्रवण करना है और फिर क्या? कीर्तन करना है। श्रवण तो हम सीख रहे हैं सुन रहे हैं और फिर जो सीखा सुना है उसका कीर्तन करना है, औरों के साथ शेयर करना है। ऐसा करते हुए हम आचार्य को देखते ही रहते हैं। *जहाँ होइते विघ्न-नाश अभीष्ट-पुरण* कह रहे हैं। जब मैं षड गोस्वामी के चरणों की वंदना करूंगा तो विघ्न नाश होगा, भक्ति में कोई विघ्न है, कोई रुकावट है, कोई बाधा है, वह हटेगी, वह मिटेगी, विघ्नों का नाश होगा। आचार्यों के चरणों की वंदना या आचार्यों के चरणों का अनुसरण करने से विघ्न नाश और अभीष्ट पुरण, अभीष्ट मतलब मनोकामना, मनोकामना भी पूर्ण होगी। हम वैष्णव हैं, हमारी मनोकामना तो अलौकिक ही होगी और होनी भी चाहिए। वह मनोकामना, वह भी पूरा करने में हम समर्थ होंगे यदि हम हमारे आचार्यों के चरणों की वंदना करते हैं। *एइ छइ गोसाँई जार-मुइ तार दास। तां सबार पद-रेणू मोर पंच-ग्रास॥6॥* यह जो षड गोस्वामी वृंद हैं यह स्वामी हैं और मैं उन का दास हूं। मुइ तार् दास् मुइ तारा दास् नहीं, तार दास ये बंगला भाषा है। उनका मुइ तार् दास् मतलब मैं तार उनका दास हूं। ता सबार पद-रेणु मोर पंच-ग्रास् , अब उनके चरणों की धूलि ही मेरा ग्रास या घास भोजन है हरि हरि ! यह उनके आदेशों का पालन करना, आदेश तो मुख से मिश्रित होते हैं। हरि हरि ! वपु सेवा, वाणी सेवा, उनकी वाणी सेवा करना ही मेरा जीवन है। *तांदेर चरण-सेवी-भक्त-सने वास। जनमे-जनमे होए एइ अभिलाष॥7॥* उनके चरणों की सेवा भक्त-सनॆ बास्, उनके चरणों की सेवा और भक्तों का संग जनमॆ जनमॆ होय् एइ अभिलाष् बस यही, *मम जन्मनि जन्मनीश्वरे भवताद् भक्तिरहैतुकी त्वयि* चैतन्य महाप्रभु ने कहा अगर मुझे पुनः पुनः जन्म लेना पड़े आई एम रेडी मैं तैयार हूं। लेकिन हो क्या उनके चरणों की सेवा षड गोस्वामी वृंदों के, पूर्व आचार्यों के चरणों की सेवा और भक्तों का संग मुझे हर जन्म में मिले यह मेरी अभिलाषा है। *एइ छइ गोसाइ जबे ब्रजे कोइला वास। राधा-कृष्ण-नित्य-लीला करिला प्रकाश॥8॥* यह षड गोस्वामी वृंदावन में रहते थे, कॊइला बास् इन्होंने बृज में निवास किया उस समय क्या ? राधा-कृष्ण-नित्य-लीला कॊरिला प्रकाश, राधा कृष्ण की नित्य लीला को भी प्रकाशित किया। राधा कृष्ण की नित्य लीलाओं को उन्होंने ध्यान में अवलोकन करके उसका दर्शन करते और उन लीलाओं के संबंध में वे कहते सुनाते, स्पेशली उन्होंने बहुत सारे ग्रंथ लिखे हैं। *भक्तिरसमृत सिंधु* लिखा है या *वृहद भागवतामृत* लिखा या कई सारे अष्टक लिखे हैं। हरि हरि ! उज्जवल नीलमणि लिखते हैं, कई सारे ग्रंथ यह षड गोस्वामी वृंद ने लिखे हैं और जीव गोस्वामी का तो क्या कहना मैचलेस, उन्होंने जितने ग्रंथ लिखे हैं वह सिद्धांत के भी ग्रंथ हैं, लीलाओ के भी ग्रंथ हैं। जीव गोस्वामी का गोपाल चंपू ग्रंथ प्रसिद्ध है। नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैं उन्होंने राधा कृष्ण की नित्य लीला को प्रकाशित किया, दर्शाया, दिखाया, सुनाया। कह कर और लिख कर उसी समय के लोग सुनते, लेकिन यदि कुछ बात लिखी जाती है तो 500 वर्षों के उपरांत अब 2021 में आज भी षड गोस्वामी, उस लीला का प्रकाशन हो रहा है। हम उनके ग्रंथ पढ़ते हैं तो लीला का प्रकाशन कर रहे हैं, हमारे साथ शेयर कर रहे हैं आज भी और सदा के लिए बुक्स आर द बेसिस । उसी को प्रभुपाद ने आगे और समझाया है। अंग्रेजी में प्रिंट बुक्स एज मेनी लैंग्वेज एज पॉसिबल, प्रभुपाद ने कहा। यह ग्रंथ संस्कृत में या बंगला भाषा में थे, श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर का आदेश था, सारा पाश्चात्य जगत इससे वंचित है, डिप्राइव्ड ऑफ दिस अपॉर्चुनिटी उनको कैसे पता चलेगा वह यदि अपनी अंग्रेजी भाषा में नहीं पढ़ सकते, राधा कृष्ण लीला यह सब बातें या भगवत गीता, भागवतम, चैतन्यचरितामृत, फिर श्रील प्रभुपाद ने वैसा ही किया अंग्रेजी भाषा में उसको अनुवादित किया। तात्पर्य भावार्थ लिखा उन को समझाने के लिए। जब यह ग्रंथ अंग्रेजी में बने तो प्रभुपाद ने अपने शिष्यों से कहा कि (जब वे व्यास आसन पर आसीन थे लॉस एंजेलिस में) प्रभुपाद ने कहा नाओ प्रिंट बुक्स इन मेनी लैंग्वेज एज पॉसिबल, श्रील प्रभुपाद ने इसी के साथ विस्तार किया कि अंग्रेजी ग्रंथों का मुझे मेरे गुरु महाराज ने कहा था अंग्रेजी भाषा में प्रचार करो। अतः मैंने अंग्रेजी भाषा में ही ग्रंथ लिखें, अब तुम शिष्य इसका अनुवाद और प्रकाशन अपनी अपनी भाषा में या अधिक से अधिक भाषा में करो ,वैसा ही किया और वैसे ही कर रहे हैं। श्रील प्रभुपाद के डिसाइपल्स शिष्य और ग्रैंड डिसाइपल्स और फ्यूचर में ग्रेट ग्रैंड डिसाइपल्स, जिसको हम फैमिली बिजनेस भी कहते हैं। आवर बुक प्रिंटिंग ,ऐसा फैमिली बिजनेस, इसी के साथ जो षड गोस्वामी वृंदों ने राधा कृष्ण की लीलाओं को प्रकाशित किया, वह उपलब्ध किया जा रहा है। *आनंदे बोलो हरि भज वृंदावन। श्री गुरु-वैष्णव-पदे मजाइया मन॥9॥* सभी आनंद से बोलो हरि हरि ! आप बोल भी नहीं रहे, तो फिर आनंद से बोलने की तो बात ही दूर है हरि हरि !गौर हरि ! केवल हरि हरि नहीं कहना है गौर हरि भी कहना है। आनंदे बोलो हरि भज बृंदावन, दो बात कहे हैं। एक तो आनंदे बोलो हरि हरि मतलब *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* यह हुआ आनंदे बोलो हरि, आनंद से बोलो यह महामंत्र और क्या भजो वृंदावन, और वृंदावन को भजो, वरशिप वृंदावन कैसे करना होता है ?आप कल्पना करो वृंदावन वास करो या वृंदावन का स्मरण करो। श्री-गुरु-वैष्णव-पदे मजाइया मन् मेरा मन तल्लीन हो, किस में ? श्री गुरु और वैष्णव के चरणों में , मेरा मन स्थित हो, उनकी सेवा में स्थिर हो और अंतिम पंक्ति है। *श्री-गुरु-वैष्णव-पाद-पद्म करि आश। नाम-संकीर्तन कहे नरोत्तम दास॥10॥* मैं आशा करता हूं क्या आशा है ? श्री-गुरु-वैष्णव-पाद-पद्म , ऐसे चरण कमल प्राप्त हो, चरण कमलों का सानिध्य प्राप्त हो, चरण कमलों की सेवा प्राप्त हो, उनके आदेश का पालन करने का अवसर प्राप्त हो, ऐसी बुद्धि मुझको प्राप्त हो, नाम-संकीर्तन कहॆ नरोत्तम दास्, इन शब्दों में नरोत्तम दास ठाकुर नाम संकीर्तन गा रहे हैं। नरोत्तम दास ठाकुर की जय हो ! और उनके सारे भजन संग्रह की जय ! हरि बोल ! निताई गौर प्रेमानन्दे !

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