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जप चर्चा पंढरपुर धाम से 29 जून 2021 हरिबोल । हरे कृष्ण । 900 सहभागीयो की जय । गौर प्रेमानंदे हरी हरी बोल । गौरांग । गौर भक्त वृंद की जय । आज की माला हम श्रील वक्रेश्वर पंडित को पहनायेंगे । मुझे किसी ने पहनाई है , मै वक्रेश्वर पंडित को यह माला पहनाना चाहूंगा । आविर्भाव तिथी महोत्सव की जय । वक्रेश्वर पंडित का नाम आपने सुना होगा और वैसे आज आषाढ मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी है । आज के दिन वक्रेश्वर पंडित आविर्भूत हुये और अभी बताते है उनका जो तिरोभाव है वह किस दिन हुआ ? आषाढ मास कृष्णपक्ष षष्ठी को हुआ , आपने नोंद किया है । पंचमी को उनका आविर्भाव, आविर्भाव समझते हो न? गौड़ीय वैष्णव की भाषा है , आविर्भाव , तिरोभाव कहते है । आविर्भाव जन्मदिवस कहते है और गोलोक गमन दिवस तिरोभाव तिथी । उन्हीका स्मरण करते हुए मै आज जप कर रहा था ।इनका स्मरण कैसे किया जाता है ? विधी वही है । श्रीप्रह्वाव उ्वच श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं बन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ इति पुंसार्पिता विष्णी भक्तिश्चेत्रवलक्षणा । क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥ (श्रीमद भागवद् 7.5.23-24) *अनुवाद:* प्रह्लाद महाराज ने कहा : भगवान् विष्णु के दिव्य पवित्र नाम, रूप, साज-सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना, उनका स्मरण करना, भगवान् के चरणकमलों की सेवा करना, घोडशोपचार विधि द्वारा भगवान् की सादर पूजा करना, भगवान् से प्रार्थना करना, उनका दास बनना, भगवान् को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना ( अर्थात् मनसा, वाचा, कर्मणा उनकी सेवा करना)-शुद्ध भक्ति की ये नौ विधियाँ स्वीकार की गई हैं। जिस किसी ने इन नौ विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए, क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है। श्रवण कीर्तन यदि आपने विष्णू का , कृष्ण का किया आप स्मरण करोगे । विष्णु , कृष्ण के सम्बंध में सूनोगे , कहोगे तब उनका स्मरण होगा । मैने जो पढ़ी सुनी बाते है या चरित्र ही कहो , वक्रेश्वर पंडित के चरित्र का मे श्रवण किर्तन कर रहा था , या सून रहा था । महा मंत्र का जप भी चल रहा है और साथ मे चरित्र को पढ़ रहा था । यह फटाफट हो रहा था । श्रवन भी हो रहा है , वक्रेश्वर पंडित के सम्बंध में श्रवन भी हो रहा है । उनके सम्बंध का कीर्तन मै आपको सुनाऊंगा ऐसा भी सोच रहा था ,तो कीर्तन की योजना मे बना रहा था ऐसा कहो । हुआ , वक्रेश्वर पंडित के श्रवण और कीर्तन से मुझे स्मरण हो रहा था । हरे कृष्ण हरे कृष्ण तो कर ही रहे थे और साथ में वक्रेश्वर पंडित का स्मरण भी हो रहा था । शुद्ध-भकत-चरण-रेणु, भजन अनुकूल। भकत सेवा, परम-सिद्धि, प्रेम-लतिकार मूल॥1॥ अनुवाद:- शुद्ध भक्तों की चरणरज ही भजन के अनुकूल है। भक्तों की सेवा ही परमसिद्धि है तथा प्रेमरूपी लता का मूल (जड़) है। ऐसा भक्तिविनोद ठाकूर ने लिखा है । शुद्ध-भकत-चरण-रेणु, शुद्ध भक्त के चरण की रेणु हम हमारे मस्तक पर उठाते है । मतलब ही उन के चरणो का आश्रय हम लेते है , मतलब उन्ही का आश्रय लेते है । उनके कार्यकलापो का हम अनुगमन करते है । महाजनों यतो पंथ गता विधि येन गतः महाजन जैसे गये , जैसे चले , जैसे रहे और जीस पथ पर वह आगे बढे । महाजनों येन गतः हम वैसा करते है जब शुद्ध भक्त के चरित्र को हम सुनते है । मराठी मे कहते है , बोले तैसा चाले त्याची वंदावी पाऊले , जो जैसा बोलता है वैसे ही चलता है , त्याची वंदावी पाऊले , उनके चरनो का अनुसरण करना है । अनुकरण नही कहा है । अनुसरण करना चाहिये अनुकरण नही । अनुसरण करना चाहिए उनके पद चिन्होंका । यह विधि तो है ही । हरी हरी । श्रील वक्रेश्वर पंडित की जय । उनका चरित्र महान है । त्तुंग विद्या थी , ऐसी एक जानकारी उपलब्ध है ,अष्ठ सखियो मे से एक सखी है तुंग विद्या , मायापुर मे राधा माधव के अल्टर पर अष्ट सखिया है । तुंग विद्या । हरी हरी । उनके शुद्ध भक्त का क्या कहना ? कितने शुद्ध भक्त थे ? केवल शुद्ध भक्त ही थे । शुद्ध सोना , शुद्ध भक्त । हरी हरी । वक्रेश्वर पंडित तो पंडित भी थे पांडित्य के लिए प्रसिद्ध थे , विद्वान थे और साथी साथ वह भक्त थे , किर्तनिया थे किर्तनिया समजते हो ? जो कीर्तन करते है कीर्तनकार , कीर्तनकार को किर्तनिया कहते है , किर्तन करनेवाले । वक्रेश्वर पंडित पंडित थे , विद्वान थे , किर्तनिया थे और उनकी विशेष ख्याती उनके नृत्य के लिये है । महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत वादित्रमाद्यन्‌-मनसो-रसेन। रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरंग-भाजो वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्।। अनुवाद:- श्रीभगवान्‌ के दिवय नाम का कीर्तन करते हुए, आनन्दविभोर होकर नृत्य करते हुए, गाते हुए तथा वाद्ययन्त्र बजाते हुए, श्रीगुरुदेव सदैव भगवान्‌ श्रीचैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आन्दोलन से हर्षित होते हैं। वे अपने मन में विशुद्ध भक्ति के रसों का आस्वादन कर रहे हैं, अतएव कभी-कभी वे अपनी देह में रोमाञ्च व कम्पन का अनुभव करते हैं तथा उनके नेत्रों में तरंगों के सदृश अश्रुधारा बहती है। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ। वह कीर्तन कैसा ? या निश्चितही वह संकीर्तन नही हो सकता , जिस किर्तन के साथ मे नृत्य नही हो रहा हो । वक्रेश्वर पंडित अपने नित्य के लिए प्रसिद्ध है । चैतन्य महाप्रभू के जितने भी परिकर थे , असंख्य परीकर थे । वह भी किर्तन करते और वह भी नित्य करते किंतु वक्रेश्वर पंडित उन सबमे श्रेष्ठ ते प्रथम क्रमांक के थे । उन्होंने सारे रेकॉर्ड तोड दीये , गिनिस बुक रेकॉर्ड तोड दिया (हसते हुये) आप जानते हो ? इनका भी नाम होना चाहिए था । ठीक है , उन मूर्खो ने तो वक्रेश्वर पंडित का नाम नोंद नही किया है लेकिन वह किर्तन करते थे । 72 घँटों तक उनका किर्तन और नित्य चलता रहता था , इसको बंगालमें 24 प्रहर कहते है , कभी कीर्तन अष्ट प्रहर का होता है , अष्ट प्रहर मतलब 24 घन्टे , एक प्रहर तीन घंटे का होता है । यह कीर्तन भी प्रसिद्ध है । तीन दिवस तीन रात्री तक अखंड कीर्तन होते है। वक्रेश्वर पंडित ने ऐसा भी रेकॉर्ड किया है । 24 प्रहर कीर्तन , कीर्तन प्रारंभ हुआ तो उनका नित्य प्रारंभ हुआ और फिर एक दिन वह रात, दुसरा दिन दुसरी रात , तिसरा दिन तिसरी रात वह बिनारुके नित्य करते रहे , नित्य करते रहे । और पूरे भावावेश मे नृत्य हो रहा है या उनकी आत्मा ही नाच रही है । शरीर केवल साथ दे रहा है ।हरी हरी । कभी श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभू स्वयम् कीर्तनिया बनते , कीर्तन करते और वक्रेश्वर पंडित नृत्य करते थे । ऐसे भी कीर्तन जमते थे , संपन्न होते थे , फिर क्या कहना ? ऐसे किर्तन ऐसे नृत्य का । एक समय ऐसा कीर्तन हो रहा था , चैतन्य महाप्रभू कीर्तन कर रहे थे और वक्रेश्वर पंडित नृत्य कर रहे थे और बीच मे ही वक्रेश्वर पंडित श्रीकृष्ण महाप्रभु के चरनो में पड़े , उनके चरण पकड लिये और कहने लगे महाप्रभु मुझे दस हजार गंधर्व दीजिए , गंधर्व अपने गायन के लिए प्रसिद्ध होते है । दस हजार गंधर्व जायेंगे तो मैं क्या करूंगा ? आपके प्रसन्नता के लिये मै नृत्य करुंगा । चैतन्य महाप्रभु भी कहते , हे वक्रेश्वर पंडित तुम मेरे पंख हो और मैं हवा में उड़ान भरता हूं । चैतन्य महाप्रभु भी उदंड उदंड कीर्तन और नृत्य किया करते थे । वक्रेश्वर पंडित ने देवानंद पंडित पर विशेष कृपा की , संक्षिप्त में यह कहना होगा । देवानंद पंडित कुलिया के , अभी का नवदीप शहर है उसका पहले नाम कुलिया है । एक फुलिया भी है जो शांतिपुर के पास हरिदास ठाकुर एक गुफा में रहा करते थे , नामाचार्य हरिदास ठाकुर रहते थे वह फुलिया है और गंगा के तट पर कुलिया है आपका जो नवदीप शहर है । हरि हरि । यह देवानंद पंडित भागवत कथा सुना रहे थे , श्रीवास ठाकुर या श्रीवास पंडित आपको झट से पता होना चाहिए जब हम श्रीवास पंडित कहते है , जिनका श्रीवास आंगन है । वह उस कथा का श्रवण कर रहे थे और किसी प्रसंग को जब शिवास पंडित ने सुना तो भावविभोर हो गए , भावेश में आए , रोमांचित हुए फिर लौटने लगे । कथा में बहुत बड़ी धर्म सभा हो रही थी , कथा में कई सारे जुड़े थे । उनमें से कुछ लोगों ने सोचा यह कौन है ? जो कथा में विघ्न डाल रहा है । वह देवानंद पंडित के कुछ शिष्य थे जो ऐसा सोच रहे थे । उन्होंने श्रीवास ठाकुर को उठाया और बाहर कर दिया , बाहर फेंक दिया , दरवाजे के बाहर फेंक दिया । इस बात का जब श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को पता चला तब चैतन्य महाप्रभु देवानंद पंडित पर बहुत नाराज थे । कैसा है यह भागवत कथाकार? भागवत पढ़ भागवत स्थाने ।ऐसा सिद्धांत है । श्रीमद् भागवत को व्यक्ति भागवत के पास जाकर भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए । चैतन्य महाप्रभु ने सोचा कैसा है यह भागवत कथाकार ? यह भागवत नहीं है । भागवत पढ़ , भागवत को पढो , कहां ? भागवत स्थानी , जो भागवत है , स्वयं भागवत है , व्यक्ति भागवत है या महा भागवत है , उनसे पढ़ो , उनसे सुनो । चैतन्य महाप्रभु ने जब सुना , अपराध किया तो था देवानंद पंडित के शिष्यों ने लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने यह विचार किया कि देवानंद पंडित ने देखा तो था कि उनके शिष्य क्या कर रहे हैं , श्रीवास ठाकुर के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं। इस बात को सुनकर चैतन्य महाप्रभु देवानंद पंडित से बड़े नाराज थे । फिर कुछ समय बीत गया और भाग्य से यह देवानंद पंडित चैतन्य महाप्रभु के भक्तों के साथ या हो सकता है क्योंकि मुझे तो पूरा याद नहीं है श्रीवास ठाकुर को कैसा संघ प्राप्त हुआ और उसके संगति में वह फिर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को भी जान गए देवानंद पंडित जान गए फिर मान गए या चैतन्य महाप्रभु की जो भगवदता है गौर भगवान है वह इनको वे नहीं जानते थे पहले लेकिन अब गौड़ीय वैष्णव के संपर्क में आने से या ज्ञान भी हुआ और फिर चैतन्य महाप्रभु के भक्त बने या चैतन्य महाप्रभु के भक्त बने या चैतन्य महाप्रभु को समझ गए मतलब क्या समझना पड़ता है। तृणादपि सु - नीचेन तरोरिव सहिष्णुना । अमानिना मान - देन कीर्तनीयः सदा हरिः ।।211 अनुवाद “ जो अपने आपको घास से भी तुच्छ मानता है , जो वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु है तथा जो निजी सम्मान न चाहकर अन्यों को आदर देने के लिए सदैव तत्पर रहता है , वह सदैव भगवान के पवित्र नाम का कीर्तन अत्यन्त सुगमता से कर सकता है । ' यह समझना पड़ता है औरों का सम्मान करना चाहिए यह शिक्षा मिलती है चैतन्य महाप्रभु से या चैतन्य महाप्रभु को समझने से ऐसे हम ऐसा व्यक्ति सदाचारी बनेगा वैष्णव सेवक होगा वैष्णव का सम्मान करने वाला होगा तो वैसा ही हुआ देवानंद पंडित वैसे ही बन गया अमानी न मान देन करने वाले तो फिर और एक समय की बात है उसी कुलियां में हमारे वक्ररेश्वर पंडित नृत्य कर रहे थे कीर्तन हो रहा था और यह नृत्य कर रहे थे तो देवानंद पंडित वहां पहुंच गए और कीर्तन और नित्य हो रहा है वकरेश्वर पंडित का और यह कीर्तन और नृत्य मुख्यता नित्य कीर्तन के साथ नृत्य चलता रहा घंटों तक चलता रहा 6 घंटे इतना चलता रहा है वकरेश्वर पंडित का तो यह पूरे शहर की बात बन गई कीर्तन और नृत्य सारे शहर के लोग आ रहे थे बड़ी भीड़ हो रही थी और फिर देवानंद पंडित क्या कर रहे थे वह वकरेश्वर पंडित की नृत्य में कोई बाधा उत्पन्न ना हो किसी प्रकार की रुकावट ना हो इसीलिए वह भीड़ को संभाल रहे थे लोगों को दूर रहे थे पीछे हटो पीछे हटो थोड़ा पीछे हटो नृत्य के लिए कोई स्थान तो होना चाहिए ना आप बिल्कुल पास आगे खड़े हो दूर रहो दूर रहो और पिछे हटो इस तरह की भूमिका निभा रहे थे। वकरेश्वर पंडित की बहुत सेवा ही कर रहे थे या वकरेश्वर पंडित का सत्कार सम्मान ही कर रहे थे यह कीर्तन जब समाप्त हुआ वकरेश्वर पंडित बड़े प्रसन्न थे देवानंद पंडित से और फिर उन्होंने कहा कृष्ण भक्ति हो उन्होंने आशीर्वाद दिया कृष्ण भक्ति हो तो अच्छे कृष्ण भक्त बनो और फिर या श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु वैसे चैतन्य महाप्रभु ने सन्यास भी लिया था चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ पुरी में रहा करते थे वहां से वह बंगाल आ गए गंगा माता सची माता और भक्तों को मिलने के उद्देश्य से चैतन्य महाप्रभु जब कुलिया में थे और वकरेश्वर पंडित से मिले और वकरेश्वर पंडित से उन्होंने देवानंद पंडित के संबंध में समाचार सुना एक समय का वह अपराधी देवानंद अपराध करने वाला अपराध करने वाला है वह देवानंद पंडित अब एक महान वैष्णव सेवक बन चुका है। वैष्णव सेवक बन चुका है कैसे उन्होंने सेवा की सहायता के जब कीर्तन नृत्य हो रहा था तो यह रिपोर्ट जब यह समाचार जब चैतन्य महाप्रभु ने सुना तो बहुत प्रसन्न हुए पहले वह नाराज हुए थे देवानंद पंडित और उनके सहयोगी ने जो श्रीवास ठाकुर के साथ जो व्यवहार किया था उससे वह चैतन्य महाप्रभु नाराज थे और अब अपराधी के अब वैष्णव सेवक बन गए देवानंद पंडित इसका समाचार सुनकर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रसन्न हुए और पाप भंजन अपराध भंजन ऐसे कुलिया को कहते हैं अपराध भंजन स्थली जिन्होंने जिन्होंने पहले अपराध किए थे और उनको चैतन्य महाप्रभु अपने करुणा से भी कहो या उन लोगों के कुछ कार्यों में चरित्र में परिवर्तन देखकर चैतन्य महाप्रभु अपने अपराधों से मुक्त कर रहे थे। अपराध भंजन लीला चैतन्य महाप्रभु कि वहां हुई तो ठीक है यहां से चैतन्य महाप्रभु जब रामकेलि गए तो वकरेश्वर पंडित साथ में थे रामकेलि वह स्थान है जहां रूप गोस्वामी और सनातन गोस्वामी नवाब हुसेन शाह के दरबार में मंत्री भी थे। तो चैतन्य महाप्रभु के साथ वकरेश्वर पंडित का वहां गमन या आगमन हुआ था और फिर भविष्य में वकरेश्वर पंडित जगन्नाथ पुरी में भी पहुंच जाते हैं और पूरी के निवासी बनते हैं। जहां चैतन्य महाप्रभु नीलांचल निवासाय नीलाचल के निवासी बन गए थे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु तो वकरेश्वर पंडित भी अन्य और कई सारे परिवार के साथ वकरेश्वर पंडित भी जगन्नाथपुरी में रहे। और वहां पर भी उनका नृत्य कीर्तन और नृत्य तो चलता ही रहा या रथयात्रा में भी जब रथयात्रा के समक्ष भी जब कीर्तन होते थे और यह नृत्य कीर्तन तो हर रोज की बात थी। कीर्तन से चैतन्य महाप्रभु को अलग नहीं किया जा सकता है जहां चैतन्य महाप्रभु वहा कीर्तन और जहां कीर्तन वहा वकरेश्वर पंडित पहुंच जाते हैं और केवल वह कीर्तन ही नहीं करते वे जरूर नृत्य करते थे। या नृत्य करना मतलब वैसे अपना और अपने हर्ष का ही प्रदर्शन है व्यक्ति जब नाचता है मतलब वह प्रसन्न है अपनी प्रसन्नता की पराकाष्ठा है कहो व्यक्ति जब खुश होता है फिर नाचता है नृत्य करता है तो हम कल्पना कर सकते हैं कितना कीर्तन के आनंद में वह गोते लगाते होंगे वकरेश्वर पंडित कीर्तन जब सुनते तो हर्षित होते। चेतोदर्पणमार्जनंभवमहादावाग्नि- निर्वापणं श्रेयः कैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधूजीवनम्। आनन्दाम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम्॥1॥ अनुवाद:- श्रीकृष्ण-संकीर्तन की परम विजय हो, जो वर्षों से संचित मल से चित्त का मार्जन करने वाला तथा बारम्बार जन्म-मृत्यु रूप महादावानल को शान्त करने वाला है। यह संकीर्तन-यज्ञ मानवता का परम कल्याणकारी है क्योंकि यह मंगलरूपी चन्द्रिका का वितरण करता है। समस्त अप्राकृत विद्यारूपी वधु का यही जीवन है। यह आनन्द के समुद्र की वृद्धि करने वाला है और यह श्रीकृष्ण-नाम हमारे द्वारा नित्य वांछित पूर्णामृत का हमें आस्वादन कराता है। उनका आनंद वर्धित होता और अपने आनंद का वह प्रदर्शन करते उनके लिए स्वाभाविक था कोई दिखावा तो नहीं है वीडियो शूटिंग हो रहा है चलो नाचते हैं हंसते हुए नई नाचने वाले लोग भी जब शूटिंग होता है तो जब फोटोग्राफी होता है तो झट से ऐसे खड़े थे तो वीडियोग्राफी शुरू होते ही वह नाचना शुरू करते हैं कैमरा के सामने आते हैं यह दिखाने के लिए कि मैं कितना बड़ा भक्त हैं तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के अंतर्धान होने के उपरांत वकरेश्वर पंडित गंभीरा में रहने लगे अब गंभीरा कहते ही आपको गंभीर होना चाहिए झट से उस स्थान का स्मरण होना चाहिए जगन्नाथपुरी में जहां चैतन्य महाप्रभु रहे काशी मिश्रा भवन जिसको कहते हैं काशी मिश्र के भवन में काशी मिश्र तो वहां नहीं रहते लेकिन उनका भवन था राजा प्रताप रूद्र ने यह ऐसी व्यवस्था की थी चैतन्य महाप्रभु के निवास की काशि मिश्र भवन में व्यवस्था की थी। तो यह वकरेश्वर पंडित वहीं रहने लगे जहां चैतन्य महाप्रभु मतलब नहीं उस गंभीर में नहीं उस काशि मिश्र भवन में रहने लगे काशी मिश्र भवन में गंभीर एक छोटा सा संकीर्ण स्थली है कक्ष है वहां तो चैतन्य महाप्रभु रहते थे वहां नहीं रहते लेकिन वहां और भी कक्ष है तो वहां रहते थे और इतना ही नहीं वहां के जो भी वीग्रह राधा राधा कांत चैतन्य महाप्रभु के समय भी वहां वो विग्रह थे तो उस विग्रह की आराधना करते थे। और बाद में आराधना की जिम्मेदारी भी वकरेश्वर पंडित की ही रही। वकरेश्वर पंडित के कई सारे शिष्य भी थे उसमें गोपाल गुरु गोस्वामी एक विशेष शिष्य रहे उनके गोपाल गुरु गोस्वामी यह नाम जब हम कहते हैं, आप जब सुनते हो तो आपको याद आना चाहिए कि हम समय-समय पर महामंत्र का जो भाष्य है उसका उल्लेख करते हैं आपको उसके पाठ पढ़ाए हम तो वो भाषा गोपाल गुरु गोस्वामी का है। सेवा योग्यम कुरु मुझे सेवा के लिए योग्य बनावो मया सह मा स्वांगि कृत्य मेरा स्वीकार करो हे प्रभु और रमस्व मेरे साथ रमिये प्रभु रामेश्वर और यह भी भाष्य है यह भी भाव है वैसे हर एक का यह भाव कृष्ण कहते हैं तो स्व माधुरी न आकर्षय कृष्ण कहते हैं तो यह भाव है यह प्रार्थना है अपने माधुरी और से अपने माधुरी जो है रूप माधुरी या रूप माधुरी लीला माधुरी वेनु माधुरी प्रेम माधुरी से मुझे आकृष्ट कीजिए तो यह जो भाव ये भाष्य गोपाल गुरु गोस्वामी का जो गोपाल गुरु गोस्वामी वैसे चैतन्य महाप्रभु के समय भी थे और गोपाल गुरु गोस्वामी और चैतन्य महाप्रभु के बीच घनिष्ठ सम्बंध था विशेष सम्बंध था। वह गोपाल गुरु गोस्वामी वकरेश्वर गोस्वामी के शिष्य थे। जिस गोपाल गुरु गोस्वामी के ध्यानानंद थे ऐसी ख्याति है वकरेश्वर पंडित जी की वकरेश्वर पंडित आविर्भाव तिथि महोत्सव की जय। यह चरित्र भी अपने अपने समक्ष रहिए रखिए स्मरण कीजिए वकरेश्वर पंडित प्रातः स्मरणीय है या सदैव स्मरणीय है। चैतन्य महाप्रभु का हर्ष और हर परिकर हर वैष्णव कुछ विशेष उनके जीवन के पहलू होते हैं उनके वैशिष्ट्य होते हैं उनका स्मरण हमें करना चाहिए और उनके गुण कैसे हम मे आ सकते हैं ऐसा प्रयास ऐसी प्रार्थना आज के दिन हम श्रील वकरेश्वर पंडित के चरणों में प्रार्थना करते हैं। हमें करनी चाहिए कि हमें वह अवश्य।आश्रय दें हमें वह प्रेरणा दे ताकि हम उनके चरण कमलों का अनुसरण करें कीर्तन में जरूर नाचे कीर्तन में नाचा करो कीर्तन में नृत्य किया करो नहीं तो कैसे आप वकरेश्वर पंडित के कैसे अनुयाई हरि हरि और भी उनके चरित्र का स्मरण करो और वैसे बनो वह जैसे वह हमको बना दे ऐसी प्रार्थना के साथ अपनी वाणी को यहा विराम देते हैं आप में से किसी को कुछ कहना है या आप लिख सकते हो। हमने सब तो नहीं कहा ऐसी कुछ बात है जो अब याद आ रही है तो आप उसको लिख लो नोटबुक में भी लिख सकते हो या यहां पर लिखना चाहते हो तो चैट बॉक्स में भी लिखना हो तो आपका स्वागत है या आपके कोई साक्षात्कार है किसी बात का ज्ञान हुआ अनुभव हुआ तो उसको भी लिख सकते हो हरि बोल हरे कृष्ण। अकिंचन भक्त प्रभु जी द्वारा प्रश्न :- जैसे हमने देवानंद पंडित प्रभु जी के प्रसंग में देखा हैं कि अपराध तो किसी अन्य वैष्णव का किया था पर सेवा किसी अन्य वैष्णव की हैं तो क्या हम हमारे जीवन मे इसे अपना सकते हैं यदि कभी किसी वैष्णव के चरणों मे अपराध हो और हम किसी अन्य वैष्णव की सेवा करे तो क्या हम अपराध रहित हो सकते हैं ? गरूदेव ऊवाच:- वहां तो भाव का प्रश्न हैं एक बार जब आप वैष्णव सेवा करना प्रारंभ किये तो आप अन्य वैष्णवों की सेवा ही करने वाले हो या जिस वैष्णव के चरणों मे अपराध किया था उनके चरणों मे भी आपका सेवा भाव उदित हुआ है या होना ही चाहिए ये भाव की ऊंचाई हैं या आप किस स्तर पर हो आप वैष्णव अपराधी हो या वैष्णव सेवक हो तो कुछ वैष्णव की सेवा आप कर रहे हो तब धीरे धीरे फिर और वैष्णवों की भी सेवा करो तब आपको मेवा मिलेगा आप तयार हुए होँगे जिसके चरणों अपराध किया था उनकी भी क्षमा याचना मांगने के लिए आप तयार होंगे और वे वैष्णव भी आपको माफ करेंगे जब वकरेश्वर पंडित प्रसन्न हैं देवानंद पंडित के सेवा भाव से वैष्णव सेवा से इस बात का समाचार सुनते हैं को श्रीवास पंडित तब वो भी माफ कर देते हैं शायद कोई वैष्णव होते हैं वो इतना गम्भीरता से कोई वैष्णव अपराध नही लेते किसीने अपराध तो किया लेकिन वो उस व्यक्ति को अपराधी मानते नही ऐसे महान वैष्णव भी होते है लेकिन किसीने लक्ष्य पूर्वक देखा कि हा इसने अपराध किया हैं और उन्होंने सुना कि अरे हा ये वैष्णव सेवा भी कर रहा है इन्होंने ऐसे ऐसे वैष्णव की सेवा की सत्कार सन्मान किया तो मुझे इन से कोई दिक्कत नही हैं इन्हें मैं भी माफ करता हु इसी प्रकार से अपराधी और जिसके चरणों मे अपराध किया है उनके साथ का व्यवहार और उनसे उचित आदान प्रदान करे तो ठीक हो सकता हैं। हरे कृष्ण ।

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