Hindi

हरे कृष्ण! जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 14 जनवरी 2021 आज 800 स्थानो सें अविभावक जप कर रहे हैं। गौर प्रेमानंदे हरी हरी बोल...! गौर हरी बोल...! आँल इंडिया पदयात्रा कहा तक पहुँचीं हैं? रात्र थोड़ी सौंगे फार ये बात हैं। ऐसी बात है,समय कम है,और इन सब बातों का उल्लेख भी होना अनीवार्य हैं। आज मकर सक्रांति हैं। मकर सक्रांति महोत्सव की जय...! संक्रमण का दिन हैं।आज के दिन जब सूर्य को भी दिनकर कहते हैं। दिन करने वाला, दिवस करने वाला, जिनके कारण दिन का उत्सकरण होता हैं। दिनकर सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण में आज प्रवेश हो रहा हैं; उसे संक्रमण कहते हैं।दक्षिणायन से उत्तरायण में सूर्य का प्रवेश हो रहा हैं। यह पर्व बड़ा विशेष है,पवित्र हैं।बहुत सारे शुभ पर्व भी आज आप कर सकते हो!,होने चाहिए, करने चाहिए। संक्रमण हो! माया से कृष्ण की ओर जाने के लिए संकल्प लेने के लिए यह अच्छा दिन हैं। ओम (ऊँ) असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय।। ओम (ऊँ) शान्ति शान्ति शान्ति:।। (बृहदारण्यकोषनिषद्) अनुवाद: -मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। तमसो मा ज्योतिर्गमय। अंधेरे में मत रहो ज्योति की ओर जाआे! भगवान ज्योति हैं। कृष्ण-सू़र्य़-सम;माया हय अन्धकार। य़ाहाँ कृष्ण, ताहाँ नाहि मायार अधिकार।। (श्रीचैतन्य-चरितामृत, मध्य लीला, 22.31) अनुवाद:-कृष्ण सूर्य के समान हैं और माया अंधकार के समान हैं। जहांँ कहीं सूर्यप्रकाश है वहांँ अंधकार नहीं हो सकता। ज्योंही भक्त कृष्णभावनामृत नाता है, त्योंही माया का अंधकार (बहिरंगा शक्ति का प्रभाव) तुरंत नष्ट हो जाता हैं। हरि हरि...! अंधकार से प्रकाश की ओर, माया से कृष्ण की ओर, ज्योति जगत से अध्यात्म जगत की ओर।वैसे आज दिन कहते हैं ग्रैंडफादर(दादा) भीष्म उनका संक्रमण हुआ।कुरुक्षेत्र के मैदान में जो शरशय्या पर लेटे थे और आज के दिन की इस क्षण की प्रतीक्षा कर रहे थे तो तब होता है संक्रमण। सूर्य का संक्रमण तो उसी दिन में उनको इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। जब चाहे वह प्रस्थान कर सकते थें, देह त्याग कर सकते थें। उन्होंने आज के दिन का चयन किया। हरि हरि!और कृष्ण के सानिध्य में, और कई संतो,और भक्तों, और पांडवों को देखते देखते ही वे प्रस्थान कर चुके। इन दिनों में हम भगवत गीता कि चर्चा कर ही रहे हैं और कुरुक्षेत्र धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र कि भी चर्चा और उस समय का इतिहास महाभारत लेकर समय- समय पर स्मरण और उल्लेख कर रहे हैं। आज का दिन भी एक अविस्मरणीय दिन हैं। जहां तक कुरुक्षेत्र में घटी हुई घटनाओं की बात है वहां ग्रैंडफादर(दादा)भीष्म आज प्रस्थान किए थें। हरि हरि! हमारे देश या धर्म का कहो आज बहुत बड़ा मेला गंगासागर मेला कहते हैं उसको। गंगा मिलती है सागर को जहां बंगाल में, वहां पर मेला, उत्सव मनाते है,और असंख्य लोग ज्यादातर भक्त हर हर गंगे...! हर हर गंगे...! कहते हुए स्नान करते हैं।मकर संक्रांति के दिन और फिर यह भी कहते हैं हर तीरथ बार बार गंगासागर एक बार ऐसा महिमा भी कहते हैं। गंगा सागर एक बार और तीरथ बार बार गंगासागर एक बार। आज के ही दिन श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय...! उनके जीवन में भी आज संक्रमण हुआ। चैतन्य महाप्रभु जब 24 वर्ष के ही थें। आज के दिन मायापुर से वह काठवां नामक स्थान जो गंगा के तट पर पहुंचे और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु या निमाई ने सन्यास आज के दिन संपन्न हुआ। चैतन्य महाप्रभु ने संयास लिया और फिर नामकरण भी हुआ संन्यास दिक्षा जो हो रही थी। केशव भारती सन्यास दिए। तुम्हारा नाम है या होगा श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को, निमाई को श्री कृष्ण चैतन्य यह नाम आज प्राप्त हुआ।आज भगवान ने संन्यास लिया।( प. पु.लोकनाथ महाराज हंसते हुए कहते हैं) संन्यास लेने वाले भगवान एक ही है, वे है श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु। जो षड्र्ऐश्वर्य से पूर्ण हैं। षड् ऐश्वर्य में वैराग्य भी आता हैं। यह वैराग्य कि मूर्ति, वैराग्य मूर्ति, त्याग कि मूर्ति,मूर्तिमान श्री कृष्ण आज के दिन इस वैराग्य वैराग्य-विद्या-निज-भक्ति-य़ोग- शिक्षार्थमेक:पुरुष:पुराण:। श्री-कृष्ण-चैतन्य-शरीर-धारी कृपाम्बुधिर्य़स्तमहं प्रपद्ये।। (श्रीचैतन्य-चरितामृत, मध्य लीला,6.254) अनुवाद: -मैं उन पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण की शरण ग्रहण करता हूंँ, जो हमें वास्तविक ज्ञान, अपनी भक्ति तथा कृष्णभावनामृत के विकास में बाधक वस्तुओं से विरक्ति सिखलाने के लिए श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतरित हुए हैं। वे दिव्य कृपा के हिंदू होने के कारण अवतरित हुए हैं।मैं उनके चरण कमलों की शरण ग्रहण करता हूंँ। वैराग्य-विद्या-निज-भक्ति-य़ोग आज के दिन वैराग्य का प्रदर्शन किया। यह संन्यास ग्रहण करके संक्रमण हुआ उनका गृहस्थाश्रम से सन्यास आश्रम। और फिर श्री-राधार भावे एबे गोरा अवतार हरे कृष्ण नाम गौर करिला प्रचार॥ (वासुदेव घोष लिखित जय जगन्नाथ सचिर नंदन) अनुवाद: -अब वे पुनः भगवान्‌ गौरांग के रूप में आए हैं, गौर-वर्ण अवतार श्रीराधाजी के प्रेम व परमआनन्दित भाव से युक्त, और पवित्र भगवन्नामों हरे कृष्ण के कीर्तन का विस्तार से चारों ओर प्रसार किया है। (अब उन्होंने हरे कृष्ण महामंत्र का वितरण किया है, उद्धार करने का महान कीर्तन। वे तीनों लोकों का उद्धार करने के लिए पवित्र भगवन्नाम वितरित करते हैं। यही वह रीति है जिससे वे प्रचार करते है। हरे कृष्ण नाम गौर करिला प्रचार॥ प्रचार प्रारंभ किया चैतन्य महाप्रभु ने आज के दिन। हरि हरि ! वह भी एक शुभ दिन था हमारे लिए मेरे लिए मैं सोचता हूं 1977 में कुंभ मेला प्रयागराज में संपन्न हो रहा था,और यह कुंभ मेला वैसे महान मेला था महा कुंभ मेला था हर 12 वर्ष के उपरांत महाकुंभ मेला होता है प्रयागराज में,लेकिन यह कुंभ मेला 1977 वाला 144 वर्षों के उपरांत संपन्न हो रहा था। उस कुंभ मेले में आज के दिन संक्रांति के दिन 14 जनवरी को हम प्रयागराज में श्रील प्रभुपाद के साथ थें।शिल प्रभुपाद भी वहा थें। हमारी पदयात्रा पार्टी भी वहां पहुंची थी और मेरी मुलाकात भी हुई थीश्री प्रभुपाद के साथ, श्रील प्रभुपाद से कुछ चर्चा- रिपोर्टिंग हुआ। श्रील प्रभुपाद के साथ कीर्तन किया, और श्रीला प्रभुपाद से कथाएं सुनी आज के दिन ही, वैसे यह मकर संक्रांति का कुंभ मेला तो होता ही है 12 वर्षों के बाद लेकिन हर वर्ष वैसे आज के दिन माग मेला आज के दिन प्रयाग में यह उत्सव हर मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता हैं। हरि हरि! आज के ही दिन 1978 में मकर संक्रांति के दिन इस्कान का एक भव्य दिव्य मंदिर श्रीराधारास बिहारी की जय...! राधारास बिहारी मंदिर जुहू मुंबई आज के दिन 1978 में उद्घाटन हुआ।हरि हरि ।श्रील प्रभुपाद ने भगवान को वादा किया था। वहां का काफी इतिहास रहा ।वह एक कुरुक्षेत्र बन चुका था। जिसने ज़मीन बेची थी उसके साथ इस्कॉन का झगड़ा हो रहा था ।कोर्ट ,कचहरी यह सब चल रहा था। वहां कई सारी समस्याएं थी मंदिर निर्माण करने में। और मंदिर निर्माण में कुछ देरी भी हो रही थी। तो श्रील प्रभुपाद ने राधा रासबिहारी को वचन दिया था कि हे राधा रासबिहारी भगवान मैं आपके लिए महल बना कर ही रहूंगा। वह महल श्रील प्रभुपाद ने बनाया और उसमें डिजाइन भी श्रील प्रभुपाद ने दिया। सारी धनराशि भी उन्होंने ही जुटाई, विश्व भर के भक्तों की मदद से।सबने ग्रंथ वितरण करके, भगवद गीता का वितरण करके देश विदेश से धनराशि को जुटाई और उस धनराशि का उपयोग राधा रास बिहारी मंदिर के निर्माण में किया। श्रील प्रभुपाद इस मंदिर के उद्घाटन में जरूर उपस्थित रहना चाहते थे और इसी उद्देश्य श्रील प्रभुपाद मुंबई भी आए भी थे 1977 के अगस्त महीने में या सितंबर कुछ दशहरे के समय, जब राम विजय महोत्सव, हर वर्ष संपन्न होता है। इसे दशमी भी कहते हैं । उस दिन भी उद्घाटन करने का विचार हो रहा था ।वैसे मंदिर निर्माण का कार्य पूरा नहीं हुआ था परंतु दुर्भाग्य से उन दिनों श्रील प्रभुपाद का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था।फिर उन्होंने मुम्बई से वृंदावन के लिए प्रस्थान किया।और 14 नवंबर को 1977 की बात है,कि वे नित्य लीला में प्रविष्ट हुए ।तो हम शिष्यों को मंदिर का उद्घाटन श्रील प्रभुपाद की अनुपस्थिति में करना पड़ा। तो आज के दिन, मकर संक्रांति के दिन उद्घाटन हुआ । मैं भी वहां था। गिरिराज महाराज उस समय ब्रह्मचारी थे और इस्कॉन के कई सारे लीडर्स, भारत के कई सारे राजनेता भी वहां थे।उस समय वसंत राव दादा पाटील महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे, वे भी वहां उपस्थित थे। आज के दिन बहुत बड़ा उत्सव मनाया गया था। राधा रासबिहारी की जय।आज के दिन मुंबई में प्रतिवर्ष बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है और फ़ूड फ़ॉर लाइफ से लाखों प्लेट प्रसाद की वितरित की जाती है जुहू मंदिर के अधिकारी और भक्त वृंद के द्वारा। आज के दिन गिरिराज महाराज ने श्रील प्रभुपाद के कहने पर ग्रंथ लिखा कि जुहू मंदिर के बनने में क्या-क्या कठिनाइयां आई और इस ग्रंथ को उसका विमोचन भी कर रहे हैं। जिस की प्रतीक्षा में सभी हैं। ऐसे एक ग्रंथ हमने भी 3 साल पहले विमोचन किया था जब राधा राज बिहारी मंदिर की चालीसवीं वीं वर्षगांठ थी। मुंबई इज माय ऑफिस , मुंबई मेरा दफ्तर है ये ही श्रील प्रभुपाद कहां करते थे। तो वही टाइटल हमने भी उस ग्रंथ को दिया। वह ग्रंथ तैयार है आप उसको भी पढ़ सकते हैं। यहां आज पंढरपुर में भी कुछ नव निर्माण के कार्य प्रारंभ करने जा रहे हैं, इस मकर संक्रांति के पावन पर्व के उपलक्ष में, हमारा भक्तिवेदांता गुरुकुल पांडेमिक परिस्थिति के कारण बंद था तो आज हम उसको खोल रहे हैं। और हमारे दफ्तर का भी आज उद्घाटन है। मंदिर का थोड़ा नव निर्माण जैसे पुजारी रूम और भगवान की पोशाक रखने के लिए कक्ष उसका भी हम विस्तार कर रहे हैं क्योंकि जब बाढ़ आती है तो तब कठिनाई होती है। तो हम एक और मंजिल बढ़ा रहे हैं। यह कार्य भी आज प्रारंभ हो रहा है। और मैचलेस गिफ्ट शॉप का भी भूमि पूजन हो रहा है। दर्शनार्थियों और तीर्थयात्रियों की सेवा में, स्वच्छ भारत स्वच्छ मंदिर ,के अंतर्गत एक टॉयलेट कंपलेक्स का भी भूमि पूजन हो रहा है और साथ ही साथ आज के दिन 4 भक्त नागपुर,अमरावती और पंढरपुर से हैं जो ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश कर रहे हैं। तो चंद्रभागा के तट पर ,श्रील प्रभुपाद के घाट पर ही यज्ञ होगा और उनको गेहुये वस्त्र प्रदान किए जाएंगे। उनके जीवन में एक संक्रमण प्रारंभ हो रहा है तो संक्रमण की बात है तो आप भी कुछ संकल्प कर सकते हो कुछ ऐसा कार्य करो ,आगे बढ़ने का ,माया से कृष्ण की ओर, भौतिक जगत से भगवद धाम की ओर भयभीत स्थिति से निर्भरता की ओर ,गंदगी से स्वच्छता की ओर ऐसी कई बातें हो सकती हैं।हरे कृष्ण

English

14 January 2021 Devotees' lives should be a transition from Maya to Kṛṣṇa Hare Kṛṣṇa! Devotees from 800 locations are chanting with us. Gaura Premanande Sankranti Hari Haribol! Today is Makar Sankranti Festival! Sun is called dinkar, din means day and kar means maker. The sun is the one that makes the day. Today the sun transits from a Southern to a Northern direction. This is good day for us to transit from darkness to light; tamaso mā jyotir gamaya, from ignorance to knowledge, from the material world to spiritual world, from maya to Kṛṣṇa. kṛṣṇa — sūrya-sama; māyā haya andhakāra yāhāṅ kṛṣṇa, tāhāṅ nāhi māyāra adhikāra Translation Kṛṣṇa is compared to sunshine, and māyā is compared to darkness. Wherever there is sunshine, there cannot be darkness. As soon as one takes to Kṛṣṇa consciousness, the darkness of illusion (the influence of the external energy) will immediately vanish. (CC Madhya 22.13) Today, also marks the departure of the great devotee, grandfather Bhishma Dev. He had the boon to leave his body according to his will. He lying on the bed of arrows for many days, but waited till today to depart in the presence of Lord Hari and the great warriors. We have been discussing Bhagavad-Gita about the Mahabharata war and other pastimes related to it. Today is also the day, when Ganga meet the ocean at Ganga-sagar and to honour that a grand festival is celebrated. Lord Caitanya Mahaprabhu also underwent a transition in his life, at the age of 24 He took sannyasa in the village of Katwa, getting the name Sri Kṛṣṇa Caitanya from Keshava Bharati. The Lord who is adorned with the six opulences and is the embodiment of renunciation, displayed it today. vairāgya-vidyā-nija-bhakti-yoga- śikṣārtham ekaḥ puruṣaḥ purāṇaḥ śrī-kṛṣṇa-caitanya-śarīra-dhārī kṛpāmbudhir yas tam ahaṁ prapadye Translation Let me take shelter of the Supreme Personality of Godhead, Śrī Kṛṣṇa, who has descended in the form of Lord Caitanya Mahāprabhu to teach us real knowledge, His devotional service and detachment from whatever does not foster Kṛṣṇa consciousness. He has descended because He is an ocean of transcendental mercy. Let me surrender unto His lotus feet. (CC Madhya 6.254) He transited from grhasta ashram to sannyasa ashram and preached the glories of the holy name. This day also has great importance in my life. On 14 January 1977, I had the good fortune to be in Prayagraj for Kumbha-mela. Our Padayatra Party had reached there and Srila Prabhupada was also present. We gave the padayatra report to Srila Prabhupada. We did kirtan and heard pastimes of Sri Kṛṣṇa from Srila Prabhupada. Every year Magha mela is organised on this day in Prayagraj. Every six years is the ardha Kumbha-mela and every 12 years is the Purna Kumbha-mela and every 144 years is the Maha Kumbha-mela as was the case in 1978. On this day of Makar Sankranti, the divine temple of Radha Rasabihari of Juhu was inaugurated. There were a lot of differences with the landlord of the Hare Krishna land and it also went to court. At that time, Srila Prabhupada promised Radha Rasabihari, “Sir, I will build a palace for you". He personally designed the structure of the temple and with the help of his disciples also collected funds. Srila Prabhupada wanted to attend the inauguration of the temple which was planned on Dussera, but the construction wasn't completed and unfortunately his health did not keep well those days. Prabhupada had decided to return to Vrindavan and on 14 November entered back into Krsna's eternal pastimes. On this day in Srila Prabhupada's physical absence we, his disciples had inaugurated the temple. It was a grand opening. Giriraj Swami was the president of the temple. Great leaders of India were present on the occasion. Even today, a great festival is being celebrated in Juhu temple. Hundreds and thousands of plates of prasada is distributed. Giriraj Swami had written a book, I will build you a temple, a journey of struggles faced by the devotees to build the Juhu temple. He is launching the book today. I too have written a book, Bombay is My Office as Srila Prabhupada often said that Bombay was his office. It was launched 3 years ago on the 40th Anniversary of the Juhu temple. Today in Pandharpur, we are starting with renovation and the Gurukula is being re-opened after the pandemic. We are also coming up with the 'Matchless Gift Shop.’ 4 devotees will be accepting the saffron robes, the Brahmacharya ashram. You all also must plan to start with some transition in your life. From fear to fearlessness, from dirt to cleanliness, or anything like that. We have been doing Book Distribution for more than a month and devotees must have had many new and special experiences so you can share them here. From non-book distributors some became book distributors. This is also a transition. Hare Kṛṣṇa!

Russian

Полные наставления после совместной джапа сессии 14 января 2021 г. ЖИЗНЬ ПРЕДАННЫХ ДОЛЖНА СТАТЬ ПЕРЕХОДОМ ОТ МАЙИ К КРИШНЕ Харе Кришна! С нами воспевают преданные из 800 мест. Гаура Премананде Санкранти Хари Харибол! Сегодня фестиваль Макар Санкранти! Солнце называется динкар, дин означает день, а кар означает создатель. Солнце создает день. Сегодня солнце переходит с южного направления в северное. Это хороший день для перехода от тьмы к свету; тамасо ма джйотир гамайа, от невежества к знанию, от материального мира к духовному, от майи к Кришне. кр̣шн̣а — сӯрйа-сама; ма̄йа̄ хайа андхака̄ра йа̄ха̄н̇ кр̣шн̣а, та̄ха̄н̇ на̄хи ма̄йа̄ра адхика̄ра Перевод Шрилы Прабхупады: «Кришна сравнивается с солнечным светом, а майя — с тьмой. Там, где светит солнце, нет тьмы. Как только человек обращается к сознанию Кришны, тьма иллюзии [влияние внешней энергии] мгновенно рассеивается». (Ч.Ч. Мадхья 22.31) Сегодня также отмечается уход великого преданного, деда Бхишма Дева. У него было благословение покинуть свое тело по своей воле. Он лежал на ложе из стрел много дней, но ждал до сегодняшнего дня, чтобы уйти в присутствии Господа Хари и великих воинов. Мы обсуждали Бхагавад Гиту о войне Махабхараты и других играх, связанных с ней. Сегодня также день, когда Ганга встречается с океаном в Ганга-сагаре и в честь этого отмечается праздник. Господь Чайтанья Махапрабху также претерпел изменения в своей жизни: в возрасте 24 лет Он принял санньясу в деревне Катва, получив от Кешава Бхарати имя Шри Кришна Чайтанья. Господь, украшенный шестью достояниями и являющийся воплощением отречения, явил это сегодня. ваира̄гйа-видйа̄-ниджа-бхакти-йога- ш́икша̄ртхам эках̣ пурушах̣ пура̄н̣ах̣ ш́рӣ-кр̣шн̣а-чаитанйа-ш́арӣра-дха̄рӣ кр̣па̄мбудхир йас там ахам̇ прападйе Перевод Шрилы Прабхупады: «Я предаюсь Верховному Господу Шри Кришне, который нисшел на землю в образе Господа Чайтаньи Махапрабху, чтобы дать нам истинное знание и научить нас преданности Ему и отрешенности от всего, что мешает сознанию Кришны. Он явился потому, что Он океан трансцендентной милости. Я предаюсь Ему у Его лотосных стоп». (Ч.Ч. Мадхья-лила 6.254) Он перешел из грихаста ашрама в санньяса ашрам и проповедовал славу святого имени. Этот день также имеет большое значение в моей жизни. 14 января 1977 года мне посчастливилось побывать в Праяградже на Кумбха-меле. Наша группа Падаятры прибыла туда, и Шрила Прабхупада тоже присутствовал. Мы передали отчет о падаятре Шриле Прабхупаде. Мы проводили киртан и слушали игры Шри Кришны от Шрилы Прабхупады. Каждый год в этот день в Праяградже проводится Маха-мела. Каждые шесть лет - это ардха Кумбха-мела, каждые 12 лет - Пурна Кумбха-мела, а каждые 144 года - Маха Кумбха-мела, как это было в 1978 году. В этот день Макара Санкранти был открыт божественный храм Радхи Расабихари в Джуху. Было много разногласий с владельцем земли Харе Кришна, и дело даже дошло до суда. В то время Шрила Прабхупада пообещал Радхе Расабихари: «Господь, я построю для Тебя храм». Он лично спроектировал структуру храма и с помощью своих учеников также собрал средства. Шрила Прабхупада хотел присутствовать на торжественном открытии храма, запланированном на Душеру, но строительство не было завершено, и, к сожалению, его здоровье в те дни ухудшилось. Прабхупада решил вернуться во Вриндаван и 14 ноября снова вошел в вечные игры Кришны. В этот день, когда Шрила Прабхупада физически отсутствовал, мы, его ученики, открыли храм. Это было грандиозное открытие. Гирирадж Свами был президентом храма. На мероприятии присутствовали великие лидеры Индии. Даже сегодня в храме Джуху отмечают большой праздник. Раздаются сотни и тысячи тарелок прасада. Гирирадж Свами написал книгу «Я построю Тебе храм» - это путешествие, в котором преданные столкнулись с трудностями при строительстве храма Джуху. Сегодня он выпускает книгу. Я тоже написал книгу «Бомбей - мой офис», поскольку Шрила Прабхупада часто говорил, что Бомбей был его офисом. Она была выпущена 3 года назад, к 40-летию храма Джуху. Сегодня в Пандхарпуре мы начинаем ремонт, и Гурукула вновь открывается после пандемии. Мы также открываем «Магазин бесценные дары». 4 преданных будут принимать шафрановые одежды, ашрам брахмачарьи. Вы все также должны спланировать начало некоторого перехода в своей жизни. От страха к бесстрашию, от грязи к чистоте или чего-то подобное. Мы занимаемся распространением книг более месяца, и у преданных должно быть много нового и особенного опыта, так что вы можете поделиться им здесь. Из нераспространителей книг некоторые стали распространителями книг. Это тоже переход. Харе Кришна!