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*जप चर्चा* *12 नवंबर 2021* *सोलापुर से* हरि हरि। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। 802 स्थानो से भक्त जप कर रहे हैं। आज तो गायों को माला पहनानी चाहिए। आज गायों का सत्कार, सम्मान, पूजा करने का दिन है। गौ माता की जय। आज गोपाष्टमी है। आपको कहां पता था? तो आज गोपाष्टमी के दिन मैं बेचारा यहां सोलापुर पहुंच गया। शायद यह पहले कभी नहीं हुआ था पिछले 35 वर्षों में आज पहली बार मैं वृंदावन मे नहीं हूं। आज के दिन प्रति वर्ष में जरूर शेरगढ़ से आगे जहां आज परिक्रमा का प्रस्थान शेरगढ़ से होकर फिर आगे रामघाट तक होता है। जहां रोहिणी नंदन बलराम रास क्रिडा खेलते हैं। वहा जाया करते थे और वहां से आगे बढ़कर खेलन वन वहां बहुत बड़ी गौशाला भी है। वहीं बैठ कर हम कथा भी किया करते थे प्रतिवर्ष गोपाष्टमी की कथा। आज यह बहुत बड़ा उत्सव है वृंदावन में। आपके नगर में नहीं होगा क्योंकि हम लोग वह जो संस्कृति है कृष्ण को केंद्र में रखते हुए या वृंदावन को केंद्र में रखे हुए संस्कृति को हम भूल गए हैं। लेकिन कम से कम वृंदावन में तो यह संस्कृति और यह उत्सव गोपाष्टमी का बहुत ही बड़ा उत्साह के साथ मनाया जाता है। सर्वत्र गायों को कैसे सजाते हैं रिबन बांधते हैं अपने गायों के सींगों में। गले में हार या घंटी बांधते हैं और कई प्रकार से सजाया जाता है गायों को। जैसे 5000 वर्ष पूर्व आज के दिन जो गोपाष्टमी का दिन है गायों को सजाया था। आज अष्टमी है तो पद्मपुराण में जो कार्तिक महात्म्य है तो उसमें उल्लेख आता है। एक विशेष श्लोक है यथासंभव आप क्यों न ऐसा कुछ याद करो फिर दुनियादारी भूल जाओगे आप। शुक्लाष्टमी कार्तिकेय तु स्मृत गोपाष्टमी बुध्देः। तद् दिनद् वासुदेवो अभुद गोपः पुर्वम तू वत्सपः।। तो पद्मपुराण.. पुराणों में इतिहास लिखा हुआ होता है। घटी हुई घटनाओं का उल्लेख मतलब इतिहास। इतिहास का विच्छेद होगा इति-अ-हास। ऐसी घटनाएं घटी इतिहास।तो इतिहास की बात है.. शुक्लाष्टमी कार्तिकेय तु कार्तिकी शुक्लाष्टमी के दिन को बुद्धिमान लोग क्या करेंगे? इस अष्टमी को गोपाष्टमी, स्मृत गोपाष्टमी बुध्देः जो बुद्धिमान लोग हैं, ज्ञानवान लोग उन्होंने इस अष्टमी को गोपाष्टमी नाम दिया। तद् दिनद् वासुदेवो अभुद मतलब क्या? उस दिन से वासुदेव हुए गोप वासुदेव गोप हुए कहो या गोपाल हुए। गोपः पुर्वम तू वत्सपः वह वत्सप थे और आज के दिन वे गोपाल हुए। बछड़ों को संभाल संभालते थे और यह श्रीमद्भागवत के दसवां स्कंध 15 वा अध्याय मैं शुकदेव गोस्वामी कहे हैं। कृपया इसे नोट करो ताकि बाद में आप उसे पढ़ सकते हो। आपको होमवर्क करना है पढ़ना है। तो 10.15.1 मे कहा है.. श्रीशुक उवाच ततश्च पौगण्डवय:श्रीतौ व्रजे बभूवतुस्तौ पशुपालसम्मतौ । गाश्चारयन्तौ सखिभि: समं पदै- र्वृन्दावनं पुण्यमतीव चक्रतु: ॥ १ ॥ ततश्र्च उसके उपरांत मतलब कुछ घटना घटी है ततः उसके उपरांत मतलब अभी जो बात कही जा रही हैं उसके ऊपरांत। उसके उपरांत नही उसके पहले। तो यह अध्याय 15 वा है, अध्याय 13 और 14 में ब्रह्म विमोहन लीला शुकदेव गोस्वामी सुनाएं। और ब्रह्म विमोहन लीला में क्या हुआ था? उस समय कृष्ण वत्सप थे बछड़ों को संभालते थे। छोटी छोटी गैया या जिसको कहां छोटे छोटे ग्वाल। और पूरे साल भर के लिए कृष्ण बछड़े बन गए मित्र बन गए। यह सब आपको पता है ना? पता होना चाहिए। मुंडी तो हिला रहे हैं सब नंदी बैल जैसे। तो ततः उसके उपरांत ब्रह्म विमोहन लीला हुई या पहले बछड़ों को संभालते थे मतलब वत्सप या वत्सपाल यह शब्द अधिक स्पष्ट होता है। वत्सपाल थे पहले और आज के दिन बन गए गोपाल। तो आज के दिन गोपाष्टमी के दिन कृष्ण बन गए पौगण्डवय:श्रीतौ पौगंड उम्र के कृष्ण हुए। फिर आप को समझना होगा अगर आप कृष्ण को जानना चाहते हो तो कई सारी बातें आपको सीखनी समझनी है। भगवान की पौगंड आयु मतलब 5 साल से 10 साल की उम्र को पौगंड आयु कहते हैं। उसके पहले वे कुमार थे और पौगंड आयु के उपरांत वे किशोर होंगे। तो पौगण्डवय:श्रीतौ व्रजे तो वृंदावन में कृष्ण जब पौगंड आयु को प्राप्त किए बभुवतु पौगंड आयु के कृष्ण हुए तो तौ कहां है मतलब दोनों कृष्ण और बलराम। पशुपालसम्मतौ तो उस दिन ब्रज वासियों की बैठक हुई इष्ट गोष्टी हुई। और सभी को अब मंजूर था कृष्ण अब बड़े हुए हैं अभी वह समर्थ है गायों को संभालने के लिए। गाश्चारयन्तौ सखिभि: समं पदै- र्वृन्दावनं पुण्यमतीव चक्रतु: तो आज के दिन आप की भाषा में कृष्ण का प्रमोशन हुआ। बछड़ों को संभालते थे आज के दिन वे गोपाल बन गए। और यह पशुपालसम्मतौ वहां के जो पशु पाल है वृंदावन में सभी पशुपाल ही रहते हैं। या जो गोपालक हैं उनको गोप भी कहते हैं गोप और गोपी, सारे गोप है वृंदावन मे। उनकी सभा में सभी ने सम्मति दी कौन-कौन आज से कृष्ण गोपाल बनेंगे, गायों को चरा सकते हैं अगर आप इससे सहमत हो तो हाथ ऊपर कीजिए। हां कुछ लोग तो फेवर में नहीं है क्या हुआ? अभी तो बड़े हो गए ना कृष्ण अभी संभाल सकते हैं गायों को। आप मंजूरी दो। ठीक है. अभी और थोड़े हाथों उपर हो रहे है। फिर सखिभिः कहां है तो वैसे आज के दिन केवल कृष्ण बलराम ही गोपाल नहीं बने। तो कृष्ण के मित्र उस उम्र वाली जो पूरी बैच है उन सभी का प्रमोशन हुआ और सभी के सभी बन गए गोपाल। हो सकता है आप लोग सोचते होंगे गोपाल मतलब कृष्ण ही गोपाल है नहीं वृंदावन का हर वैसे व्यक्ति कहो वह गोपाल है। या तो वत्स पाल है बछड़ों का पालन करते हैं या गोपाल गायों का पालन करते हैं। नंद गोधन रखवाला हम लोग गाते हैं वैसे भक्ति विनोद ठाकुर गीत लिखे नंद गोधन रखवाला। तो यह धन भी है ब्रज वासियों का धन क्या है? गाय धन है। तो उस धन के रखवाले केयरटेकर कृष्ण आज बने। और कृष्ण के मित्र भी गोपाल बने। और फिर पदै- र्वृन्दावनं पुण्यमतीव चक्रतु: अपने चरण कमलों से सारे वृंदावन भर में वे चलते रहे और सारे ब्रज को अपनी चरण चिन्हों से चिन्हांकित करते हुए वृंदावन को पुण्य धाम पवित्र धाम बनाएं। शोभनीय शोभायमान हुआ वृंदावन सर्वत्र श्री कृष्ण के चरण कमल की शोभा से। तो उस दिन नंदग्राम को भी सजाया गया था। फिर गायों का श्रृगार हुआ। स्वस्तिवाचन हो रहा था, शहनाई बज रही थी कई सारे मंगल वाद्य बज रहे थे। और कृष्ण बलराम भी सज गए सजाए गए, उनका भी विशेष श्रृंगार हुआ। क्योंकि आज उनका प्रमोशन डे था। फिर प्रस्थान कर रहे थे जब, तब कहते हैं कि यशोदा ने अब तक तो तुम बछड़े चलाते थे तो पास में ही जाते थे बछड़े चराने के लिए। अब तो तुम गाय चराओगे तो तुम सारे वनो में, व्दादश काननों में भी तुम्हारा भ्रमण होगा। तो जूता पहनो। कृष्ण ने इनकार किया था नही नहीं मैया गाय जूता नहीं पहनती तो मैं कैसे पहन लूं। यशोदा मैया ने कहां वे तो गाय हैं ना तो तुम पहनो। तो कृष्ण ने कहा था प्रस्ताव रखा था सभी गायों के लिए जूते लेकर आओ मैया तो एक जोड़ी में भी अपने लिए ले लूंगा। तो कहां से लाएगी मैया इतने सारे जूते कौन सी टाटा या बाटा कंपनी सप्लाई करेगी। कितने जूते चाहिए? हां 3600000 ठीक कहा। नहीं तो आप कहोगे 900000 गाये हैं तो कितने जूते चाहिए? 900000 जूते चाहिए ऐसे आंख बंद करके बिना सोचे आप हैं कहते रहते हो। किसी ने थोड़ा अपने बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया और मेरे पास जो बैठे थे वह कह रहे थे 900000। ठीक है.. जूते नहीं तो छाता तो ले कर चलो। ए शीत आतप वाप परिषण ग्रीष्म ऋतु में इतनी गर्मी परेशान करती है। वैसे सर्वांगे हरिचंदन चंदन का लेपन तो करती थी यशोदा। ताकि कृष्ण थोड़ा ठंडक महसूस करें ।तो अभी धूप तो है ही तो छाता लेकर चलो। तो कृष्ण ने कहा नही नही गायों के लिए छाता नहीं है। यशोदा ने कहा वह तो गाये हैं तुम ले चलो। नहीं नहीं उनके लिए छाता लेकर आओ। तो कितने छाते चाहिए? 900000 चाहिए। लेकिन उनके पास तो पैर ही है गायों के पास तो पैर ही होते है हाथ नहीं होते। तो छाता कौन पकड़ेगा? तो 900000 छाता पकड़ने वाले भी चाहिए छत्रधर को धारण करने वाले। इस प्रकार मैया ने विचार ही छोड़ दिया ठीक है बेटा जैसा तुम को जाना है जाओ। तो उस समय कृष्ण कहे थे मैय्या धर्मों रक्षति रक्षितः। जब हम धर्म की रक्षा करेंगे तो वही धर्म हमारी रक्षा करेगा। गाय की सेवा करना हमारा धर्म है वही करने जा रहा हूं मैं। तो गाय की सेवा करो। गाय की सेवा करना हमारा धर्म है। वैसे हम वैश्य परिवार के हैं तो कृषि, गौरक्षा, वाणिज्य। मैं जब वक्ता बनकर कुरुक्षेत्र जाऊंगा तो अर्जुन को बताने वाला हूं। वैश्यो का धर्म क्या होता है? कृषि खेती करना, गौ रक्षा गाय की रखवाली करना, वाणिज्य थोड़ा व्यापार करना। माखन का वगैरा कुछ थोड़ा विक्री करना वैसे धनार्जन करना। यही हमारा धर्म है। जब इस धर्म का पालन करेंगे तो वही धर्म हमारा पालन, हमारी रक्षा करेगा। यशोदा मैया को कृष्ण यह सब उपदेश किए थे। इस प्रकार यह उत्सव गोपाष्टमी का उत्सव उस समय से प्रसिद्ध है। तो आज गाय की सेवा करने का दिन है। यह गाय की सेवा करने का संकल्प लेने का दिन है। इस्कॉन सोलापुर में गायों की सेवा हो रही थी लेकिन गौशाला थोड़ी छोटी थी। तो इस्कॉन सोलापुर के अधिकारियों ने कृष्णभक्त प्रभु ने गौशाला का आकार डबल कर दिया। और आज हम 10:00 बजे यह जो बढी हुई गौशाला है उसका उद्घाटन करेंगे गौ माता की सेवा में। गौ माता की जय। और जब हम यहां पहुंचे तो हमको एक और गुड न्यूज़ यह मिली किसी सज्जन ने कम से कम 2 एकड़ भूमि दान में दी। और कल ही उसका रजिस्ट्रेशन हुआ और आज प्रातकाल हम राधा दामोदर को वह जो कागजात है वही ठाकुर है, वही मालिक है ठाकुरबाड़ी तो उन्हीं को समर्पित किया यह 2 एकड़ जगह उनकी प्रसन्नता के लिए। और जिसने यह भूमि दान दे दी 2 एकड़ की उनकी एक ही शर्त थी इस भूमि का उपयोग गायों की सेवा में होना चाहिए। आप देखो कैसे इस जमीन का उपयोग गौ माता की सेवा में हो। तो इस प्रकार वैसे हम सभी को गौ रक्षा और गौ सेवा, गो वर्धन जैसे की गाय हष्ट पुष्ट रहे इसके लिए कोई प्रयास का हमें संकल्प लेना चाहिए। वेजिटेरियन होना भी यह गौ माता की सेवा ही है। आप वेजिटेरियन बनोगे वैसे केवल वेजिटेरियन हम नहीं बनते कृष्णटेरियन बनते हैं हम लोग। वेजिटेरियन तो कहीं सारे होते हैं, जिसको शुद्ध वेजीटेरियन कहते हैं। जैसे हाथी होता है कुछ पक्षी भी होते हैं। तो केवल वेजिटेरियन होना कोई बडी बात नहीं है। ठीक है.. वेजिटरियन कृष्णटेरियन हम लोग बनेंगे। तो आपके लिए गाय कटेगी नहीं, गाय की जान नहीं ली जाएगी। यह सेवा ही है। प्रचार प्रसार कर सकते हैं ,अधिक अधिक प्रसाद वितरण करो, अधिक अधिक गोविंदाज की स्थापना करो। वेजीटेरियन रेस्टोरेंट्स यह स्ट्रेटजी का ही एक भाग है, यह गौ रक्षा के लिए ही है। गोविंद नाम भी दिया गोविंद, गोविंद मतलब गवानाम इंद्रः गायों में इंद्र ऐसी परिभाषा है। गोविंद गायों में श्रेष्ठ या गाय के रखवाले कृष्ण सर्व समर्थ जो गाय की सेवा करते हैं गवानाम इंद्रः गोविंद। गोविंद गोविंद गोविंद। नमो ब्रह्मण्य देवाय गोब्राह्मण हिताय च । जगत् हिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः ॥ तो श्रील प्रभुपाद विश्व भर के कई सारे गौ भक्षक जो है या कम से कम मांस का भक्षण करना है तो गाय का कभी न करें। सूअर को खाओ और किसी को खाओ चिकन खाओ। वह भी वैसे ठीक नहीं है, यह राक्षस की प्रवृत्ति है। लेकिन दुनिया के लोग भारत के लोग भी सोचते हैं हम लोग तो आधुनिक जगत के पढ़े लिखे लोग हैं। हम शाक सब्जी थोड़ी ना खाएंगे। शाक सब्जी तो गरीबों के लिए है हम तो अमीर हैं, हम ऐसे हैं वैसे हैं, हमें गोमांस खाना चाहिए। पर यह सब असभ्यता है वे असभ्य है। मॉडर्न सिविलाइजेशन सिविलाइजेशन है ही नहीं, वे अनसिविलाइज्ड हैं। तो ऐसी विदेश की जनता को श्री प्रभुपाद ने गौ भक्षकों को बनाया गौ रक्षक। और श्रीला प्रभुपाद ने विश्व भर में कई सारी गौशालाओं की स्थापना की। नया वृंदावन अमेरिका में वेस्ट वर्जिनिया स्टेट में वहां नए वृंदावन की स्थापना की। तो वहां गौशाला की स्थापना की और जो गौ भक्षक थे अमेरिकन वे अभी आरती उतार रहे हैं गायों की। आरती तो कई उतारते हैं लेकिन सेवा नहीं करते गायों की। लेकिन वह गायों की सेवा कर रहे थे और फिर गाय का दूध उससे कई सारे सारे पकवान बनाते हैं राधा वृंदावन चंद्र के लिए। नए वृंदावन के विग्रह राधा वृंदावन चंद्र उनको सारे खिला रहे थे। और भी कई सारी गोशालाए प्रभुपाद के समय खुली। और अब तो हमारे पास सैकड़ों.. हम हजारों नहीं कह सकते। लेकिन भविष्य में हजारों गौशालाए भी होगी। हर मंदिर के साथ गौशाला तो जुड़ी रहती होती ही है। तो आप सब का योगदान अनिवार्य है यह सब गौशाला और गोसेवाओं के लिए। फिर कभी कभी गाय दूध नहीं देती तो हम कहते हैं यह बेकार की गाय हैं, निकम्मी गाय हैं। फिर हम राक्षस लोग गाय को बेचते हैं और बेचने पर उन्हें कत्तल खाने पर पहुंचा देते हैं। यह भी सही नहीं है। ठीक है गाय दूध नहीं देती लेकिन मूत्र तो देती है ना। और आजकल रिसर्च करके वगैरा गाय के मूत्र का जो महात्म्य है, उपयोगिता है उसको भी लोग समझ रहे हैं। और इसी से कई सारे प्रोडक्ट बन रहे हैं दवाई बन रही है गोमूत्र और गोबर से। गोबर यह सबसे उत्तम फ़र्टिलाइज़र है। ऐसा भी कुछ संकल्प लिया जा सकता है अब कोई केमिकल रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करेंगे, अभी हम बंद करेंगे। वैसे आपका तो कुछ लेना-देना है नहीं खेती से, जमीन से या गांव से तो फिर आप क्या करोगे। लेकिन कम से कम आप इसका प्रचार कर सकते हो, इस विचारधारा को फैला सकते हो कि अब कोई रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करेंगे। रासायनिक खाद के स्थान पर गाय का गोबर यह सबसे उत्तम फर्टिलाइजर है। रासायनिक खाद का उपयोग करने से पृथ्वी माता धरती माता के स्वास्थ्य में बिगाड़ आ रहा है। हम धरती माता का स्वास्थ्य खराब कर रहे हैं और भूमि जो बीमार है जो हमारी माता है। तो हम बच्चे भी बीमार हो ही रहे हैं। हम खिलाते हैं धरती को रासायनिक खाद वगैरह और वही खाद जो पौधे उग आते हैं फसल होती है। जो भी शाक सब्जी है अनाज है उस मे सब रसायन वह खा लेते हैं। और उसको हम जब खाते हैं तो हम क्या खाते हैं हम भी रसायन खाते हैं। हमको खाते और पीते हैं, तो बीमारी गारंटीड है। इतनी सारी जो बीमारियां फैल रही है हम क्या खाते हैं क्या पीते हैं वह मुख्य स्रोत है हमारे रोगों का। जब आप गौ माता की सेवा करोगे तो कृष्ण प्रसन्न होंगे। और गाय तो हमारी माता है। लेकिन यह सिविलाइजेशन ऐसी बन गई है माताए ही अपने बच्चों की जान ले रही है, अबॉर्शन कर देती है। माताएं अपने बच्चों की जान लेती है, वह एक है। और फिर गौ माता को भी खाती है भक्षण करती है। और यह सब करने के उपरांत शांति चाहते हैं, स्वामी जी शांति नहीं है शांति नहीं है। क्यों होगी शांति नहीं मिलेगी शांति आपको। यह सब जो अनर्थ या काम धंधे आप कर रहे है। तो आज के दिन यह गाय के संबंधित है या गाय की रक्षा के संबंधित हमें इस विचारधारा का प्रचार प्रसार करना चाहिए। और हम प्रैक्टिकली कैसे गायों की सेवा कर सकते हैं, हमें कुछ गायों को एडोप्ट करना चाहिए। आप मेंटेन नहीं कर सकते हो.. मैं कहते तो रहता हूं कि आप अपने घर का मंदिर बनाओ और यथासंभव गाय को रखो। लेकिन मुंबई में कहां है कहा रखोगे गाय को। एक तो गाय के रक्षक कहते हैं कि किसी कमरे में गाय को रखो। लेकिन मुंन्सी पार्टी ने उसे अनुमति नहीं दी। कुत्तों को अनुमति है, गाय को बाहर कर दिया। तो आप गाय को मेंटेन नहीं कर सकते हो शहरों में, तो आपको गायों को गोद लेना चाहिए। इस्कॉन के गौशाला के किसी एक दो चार गायों का आप स्पॉन्सर बनीए। उसका जो मेंटेनेंस है उसको संभालिए, वह एक तरीका है। और देख लिजिए, पूछ लीजिए मैंने कह तो दिया कुछ आइडिया। कैसे हम गायों की रक्षा कर सकते हैं और गाय की रक्षा ही नहीं मतलब जान नहीं लेनी है तो रक्षा हो गई तो उसको कैसे हम हष्टपुष्ट बना सकते हैं। हम कुछ स्पोंसर करके गायों को मेंटेन कर सकते हैं। और भी बहुत से तरीके हैं। तो इस गोपाष्टमी के दिन हमारे उद्गार कहिए यह कुछ उचित विचार कहिए जिसको शास्त्र के आधार से हमने आपके साथ शेयर किया। तो दिन भर आप कुछ शेयर करो, आप बोलो दुनिया भर के बकबक के बजाय ऐसा कुछ सत्य बोलो। दुनिया भर की बकबक करते रहेंगे हम तो फिर क्या होगा? तो फिर वह बकबक सुनेगा कालव्याल काल रूपी सर्प। तो दुनिया की जो ग्राम कथा है, ग्राम कथा कहना यह मेंढक जैसे बोलता रहता है, तो मेंढक की वाणी को कौन सुनता है? साफ सुनता है। तो मेंढक मानो ड्राओ ड्राओ करते सांप को बुलाता है, मैं यहां हूं यहां हूं आ जाओ। और फिर साफ आ ही जाता है। आज हो गई उसकी ब्रेकफास्ट हो गई मेंढक को खा लिया या डिनर हो गया या लंच। उसी प्रकार यह सारी दुनिया जो बकती रहती है वाचो वेगम वाचा का जो आवेग है उस पर कंट्रोल नहीं है। जीव्हा वेगम जीव्हा क्या क्या चाहती है। हरि हरि। तो फिर हमारे लिए कालव्याल आता है व्याल मतलब सर्प ही। मेंढक के लिए भी आता है सर्प जैसा सर्प ही असली सर्प। और हमारे लिए काल बनता है व्याल काल बनता है सर्प और फिर हम को खा लेता है। और यह बहुत बार हो चुका है अब। अगर आप थके हो तो कुछ हम जो बोलते हैं, जो भाषा है, उसका प्रकार उसमें हमें परिवर्तन लाना होगा। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। तो तीलगुल घ्या गोड बोला ऐसे महाराष्ट्र में चलता रहता है संक्रांति के दिन। तिल और गुड़ को वितरण करते हैं और कहते हैं तीलगुल घ्या गोड बोला। गोड मतलब मीठा बोलो। तो केवल मीठा ही नहीं बोलना चाहिए कैसे बोलना चाहिए सत्य बोलना चाहिए। साधु, शास्त्र, आचार्यों के जो वचन है, सत्य वचन है। तो इन को सुनना चाहिए, इस पर विचार होना चाहिए, चिंतन मनन होना चाहिए। और फिर अपने साक्षात्कार औरों को सुनाना चाहिए। न जाने मुझे क्यों याद आ रही है बहुत साल पहले इंडियन पार्लमेंट में यह गाय के संबंधित है इसलिए मुझे याद आ गया। इंडिया में जो कत्तल खाने है, तो उस कत्तल खाने में जो ब्लैड होते हैं पशुओं के गायों के गले काटने के लिए जिस ब्लैड का उपयोग करते हैं। वह कुछ तीक्ष्ण नहीं थे। तो प्रस्ताव यह था कि जब हमारे कत्लखाने में गायों को हम जब काटते हैं गायों को बहुत कष्ट होता है। गायों को काटने में थोड़ा अधिक समय बीतता है। तो इसके लिए क्या किया जा सकता है? ऐसे आपके खासदार मेंबर ऑफ द पार्लिमेंट दिल्ली मे एक बैठक हो रही थी, तो यह एजेंडा था। तो पता है आपको क्या डिसीजन हुआ? डिसीजन यह हुआ कि हमारे कत्ल खानों का आधुनिकीकरण होना चाहिए। हमें हायरलैंड से ब्लेड्स को इंपोर्ट करना चाहिए। हायरलैंड के कत्लखाने बहुत एक्सपर्ट है। उनके पास विशेष तीक्ष्ण ब्लेड्स है। तो वहां से ब्लेड्स इंपोर्ट करने चाहिए। ताकि जब हमारे देश में गाय कटेगी छठ छठ छठ कुछ ही समय में कटेगी। तो गायों को परेशानी नहीं होगी ऐसा गाय को काटेंगे तो। ऐसी दया दिखाइ मेंबर ऑफ पार्लमेंट ने। अच्छा हुआ कि नहीं यह डिसीजन अच्छा रहा? क्या कहना है आपका? वैसे यह डिसीजन लेना चाहिए था कि सभी कत्लखाने बंद होने चाहिए। गाय की कत्ल नहीं हो सकती। ऐसा कुछ डिसीजन, ऐसा कुछ ठराव पास कर सकते थे। लेकिन उल्टा उन्होंने तीक्ष्ण ब्लैड्स इंपोर्ट करने का डिसीजन लिया। ऐसे हमारे नेता..। तो फिर याद आती है राजा परीक्षित की याद आती है। राजा परीक्षित ने जब देखा कोई शुद्र राजा के भेष में गाय को कुछ पीट रहा था, कुछ कष्ट दे रहा था। तो राजा परीक्षित का क्या डिसीजन रहा उसी जगह पर उन्होंने अपनी तलवार से उस शुद्र का वध करना चाह रहे थे। तो यह हो गए राजर्षि। राजा हो तो राजा परीक्षित जैसा या राम जैसे राजा युधिष्ठिर महाराज जैसे। राजा जो प्रजा का पालन करें। पशु भी तो प्रजा है। केवल मनुष्य ही प्रजा नहीं है पशु भी तो राजा की प्रजा है। ठीक है, तो आप और आगे सोचिए, चिंतन कीजिए, कुछ लिखिए, अखबार से कुछ निकालिए समाचार वगैरा। गोपाष्टमी महोत्सव की जय। गौ माता की जय। गोपाल कृष्ण भगवान की जय। राधा गोपाल की जय। श्रील प्रभुपाद की जय। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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