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हरे कृष्ण! जप चर्चा, पंढरपुरधाम से, 3 दिसंबर 2020
आज 696 स्थानो से अभिभावक उपस्थित हैं। हरे कृष्ण! आप सब तैयार हो! आपके साथ हम स्क्रीन पर (पर्दे पर) कुछ चलचित्र दिखाएंगे आपके सामने, शुभ प्रभात समाचार तो नहीं है, संसार कि दुर्भाग्यशाली अशुभ समाचार ही हैं।ताजी खबर भी नहीं हैं। जैसे कोई मेंटली तैयार करते हैं, अखबार, समाचार वाले। भागवत ने शुकदेव गोस्वामी ने कहा हैं
कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान्गुणः। कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत् ॥
( श्रीमद्भागवतम्, स्कंध 12,अध्याय 3, श्लोक 51)
अनुवाद: -हे राजन् , यद्यपि कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने से मनुष्य भवबन्धन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है ।
हम कुछ संसार के दोष आपके साथ साँझा करेंगें आपको लगता है कि संसार कितना अच्छा है कितना बढ़िया है अंग्रेजी में कहते हैं ऑल दैट ग्लीटर इज नॉट गोल्ड(हर चमकती चीझ सोना नहीं होती) समाज की जो चमक-दमक है वह सोना चांदी नहीं हैं।सावधान! भागवत में यह कहा हैं।
अधार्मिक कृत्य इस संसार में हैं।
सूत उवाच अभ्यर्थितस्तदा तस्मै स्थानानि कलये ददौ । द्यूतं पानं स्त्रियः सूना यत्राधर्मश्चतुर्विधः ॥
(श्रीमद्भागवतम् स्कंध 1,अध्याय 17,श्लोक 38)
अनुवाद:-सूत गोस्वामी ने कहा : कलियुग द्वारा इस प्रकार याचना किये जाने पर महाराज परीक्षित ने उसे ऐसे स्थानों में रहने की अनुमति दे दी , जहाँ जुआ खेलना , शराब पीना , वेश्यावृत्ति तथा पशु - वध होते हों ।
यह भी अपनी भाषा है संस्कृत भाषा देव भाषा हैं।हम समझते नहीं द्यृतक्रिडा, मद्यपान ही नहीं अन्य पान पान सुपारी भी चलता ही रहता हैं। द्यूतं पानं स्त्रियः सूना यत्राधर्मश्चतुर्विधः ॥ यह रहेगा ऐसा भागवत में कहा गया हैं। वैसे राजा परीक्षित ने कहा जब कली क्षमा याचना मांग ही राहाथा तो ओके ओके तुम इन चार स्थानों में रहो। यत्राधर्मश्चतुर्विधः ॥ चार प्रकार के अधार्मिक कार्य जहां पर होते हैं वहां पर तुम रहो एक अली कौन-कौन से स्थान है वह सब कली को दे दिए। चार स्थान 1) जहां जुआ खेला जाता हैं। 2)मध्य पान, नशा पान चलता हैं 3) जहां मांस भक्षण होता हैं।4) जहां अवैध स्त्री-पुरुष संग होता हैं। जहां चार प्रकार के अधार्मिक कृत्य होते हैं वहा पर हे कली! तुम रहो! यह समय कब का है पता है ना? यह 5000 वर्ष पूर्व की बात है कल ही अभी-अभी प्रकट हुआ या जन्मा था।
यदा मुकुन्दो भगवानिमां महीं जहौ स्वतन्वा श्रवणीयसत्कथः । तदाहरेवाप्रतिबुद्धचेतसा मभद्रहेतुः कलिरन्ववर्तत ॥ ३६ ॥
(श्रीमद् भागवत महात्म अध्याय 1 श्लोक 65)
अनुवाद:-जब भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने उसी रूप के साथ इस पृथ्वीलोक को छोड़ दिया , उसी दिन से कलि , जो पहले ही अंशतः प्रकट हो चुका था , अल्पज्ञों के लिए अशुभ परिस्थितियाँ उत्पन्न करने के लिए पूरी तरह प्रकट हो गया ।
जिस दिन भगवान शाम तत्व धरती को छोड़कर भगवान स्वधाम, अपने दान धाम गए तभी या उस दिन से कली आ गया कली आकर क्या करेगा? साधको कि साधना में बाधा उत्पन्न करेगा। यह चार प्रकार के अधार्मिक कृत्य संसार में धीरे-धीरे संपन्न होने लगे, आरंभ में कली को ह ऐसे स्थान मिल नहीं रहे थे मुश्किल से कोई स्थान मिलता या नहीं मिलता किंतु,वैसे समय बीतने लगा कली फैलने लगा इस संसार कली दोष उत्पन्न करने लगा।5000 वर्ष, उस समय के जो मनुष्य में थे वह धीरे-धीरे इस कली ने अपने अड्डे बना लिए, और पाश्चात्य देश में अपने साम्राज्य को फैलाया और फिर वहां से पाश्चात्य देशों कली पहुंच गया या यहा था वहां से भी आ गया मॉडर्न लाइफस्टाइल, वेस्टर्न लाइफ़स्टाइल (आधुनिक जीवनशैली, अनैतिकता और स्वछंदता)हरि हरि!
रहन-सहन और जीवेत सुखम जीवेत जब तक जीना है सुख से चैन से जियो हरिनाम कृत्वा प्रितम हमारे शौविक मुनि ने कहा दुखी बनने के लिए भी रस खाओ।
मैं कुछ भूमिका बना रहा था। मैं आपके साथ यह स्क्रीन शेयर(साँझा) करना चाहता हूं और फिर धीरे-धीरे यह कली ने अपना जाल फैलाया हैं। वह समाचार कहां तक पहुंच गया कितनी मात्रा में पहुंच चुका है कली इसका एक समाचार आपके पास, हम तक, मुझ तक किसी ने पहुंचाया हैं, तो मैं आज आप तक पहुंचाना चाहता हूंँ। यह अंग्रेजी में है यह सब आप सुनने वाले हो यह समाचार अमेरिका और इंग्लैंड का हैं। लेकिन यह आपके साथ साँझा किया जा रहा हैं। समाचार दे रहे हैं यह केवल अमेरिका और इंग्लैंड का हैं। कितने करोड़ों 89 मिलीयन लोग शराब के लत से ग्रस्त हैं और भी अधिक है, लेकिन इस समय जो शराब से ग्रस्त हैं उसके बिना रह नहीं सकते वह 89 मिलियन हैं मिलियन मतलब एक मिलियन का 10 लाख होता हैं 8.9 करोड़ शराब की लत से ग्रस्त हैं सिगरेट पीने(धुम्रपान करने) वाले 10 करोड़ है, वह कह रहे है और उसमें से दो करोड़ लोग हर साल सिगरेट इत्यादि जो धुम्रपान से 2 करोड लोग मरते हैं। आपके लिए यह चौका देने वाला हैं। ढाई करोड़ महिलायें अधिकारिक तौर पर घोषित करती है कि हम वेश्याएं हैं तो उनके पास लाइसेंस (अनुज्ञापत्र)हैं। वह कितना आवेदन त्रिशा पुरुष संग होता होगा इसलिए लीगली लाइसेंस के साथ ढाई करोड़ प्रिया अमेरिका और इंग्लैंड में घोषित करती है कि हम वेश्या हैं। आ जाओ स्वागत है! भोग लो!हर 19 मिनट में कितने सारे लोग आत्महत्या करते हैं आप समझ सकते हो।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
ऐसी है दुनिया। यह आपकी दुनिया हैं, हमारी तो नहीं हैं ।ऐसी दुनिया से प्रेम करते है,उनकी है यह दुनिया। हमारा तो प्रेम नहीं है यह दुनिया हमारी नहीं है। हरि हरि!
ऐसे वैसे आत्मा की यह दुनिया नहीं होनी चाहिए।आत्मा यहां का नहीं हैं। यहा हम परदेसी हैं। हमारा देश नहीं हैं। यह दुनिया हमारी नहीं है और कौन स्वीकार करेगा, प्रेम करेगा, ऐसी दुनिया से? हरि हरि!
इस दुनियाँ में करोड़ों गायें हैं प्रतिदिन एक दो नहीं पांच दो हजार दो हजार नहीं करोड़ों की संख्या में प्रतिदिन गाय की हत्या यहा पर होती है और इसी पृथ्वी पर होती हैं। अमेरिका में होती है इंग्लैंड में होती है यहां पर इंग्लैंड और अमेरिका की चर्चा हो रही थी लेकिन यहा तो यह हाल तो सभी सारे संसार का है भारत भी इससे अछूता नहीं हैं। भारत मिडल ईस्ट (मध्य पूर्व) से पेट्रोल आयात करता हैं। इसके बदले में मिडल ईस्ट (मध्य पूर्व) को खिलाता है मांस। मांस के बोट भर भर के एक्सपोर्ट(निर्यात) होता हैं। भारत से, केरल से, जाने कहां कहां से,बंगाल से यह चलता हैं। बड़े-बड़े जहाज भारत भेजता है मांस भर के, और वहां से आता है,उसके बदले में पेट्रोल यह है कलयुग और ऐसी है दुनिया। भारत कुछ भी ज्यादा पीछे नहीं हैं। हरि हरि!
ऐसी स्थिति है ऐसा हाल हैं। अहमदाबाद में मैंप्रचार करने किसीको मेंबर बनाने गया था उन्होने कहा मैं ब्राह्मण हुं। उन्होंने अपना जनेऊ भी दिखाया, और उसी मुख से उन्होंने कहा मुझे बीफ बहुत अच्छा लगता हैं वह मिट भी नहीं कहा बीफ़ कहा। मीट और बीफ में अंतर जानते हो सबको पता हैं बीफ मतलब गाय का मास।इसको यह लोग बीफ कहते हैं यह ब्राह्मण परिवार में जन्मा व्यक्ति हम को कह रहा था। मैं खाता हूँ ऐसा भी नहीं कहा उन्होने, मैं आस्वादन करता हूंँ। हरि हरि!
यह है एक व्यक्ति ऐसा मुझसे कहा तो वह अकेला नहीं था इससे भारत में भी हजारों लाखों लोग हैं भारत का ऐसा हाल है तो फिर इस दुनिया का क्या सोचना? तो यही बात आज यह व्यक्ति सुना रहे थे। मुझे और भी एक बात याद आ रही है 20- 25 साल पूर्व की बात है भारतीय संसद भवन में हमारे सांसद आपके व्दारा चूने गये आपली मते कुणाला? आपने मत दिया सांसदों को,जब उनकी बैठक हो रही थी पार्लियामेंट्री सेशन चल रहा था तो एक एजेंडा टाँफिक( कार्य योजना विषय) था कि, हमारे देश के जो कत्लखाने हैं और इनमें जो गायें काटी जाती है वैसे कहा जा रहा था कि हमारे गाय को काटने वाले जो हथियार है वह तीक्ष्ण, धारदार नहीं हैं। इसलिए गाय को काटने में देर लगती है काटने में इसके कारण गाय को बहुत परेशानी होती हैं। गायों को यातना भोगनी पड़ती हैं। क्या किया जाए? तो जो भी सांसद थें। उस समय चर्चा का विषय बना था। कई सारे सांसदों को दया आई गाय पर दया दिखाना चाह रहे थें। गाय को काटते समय देर लगती है क्योंकि हमारे कत्लखाने के जो ब्लेड्स है, हथियार हैं। वह तीक्ष्ण नहीं है क्या किया जाए? कुछ तो करना चाहिए! गाय को कष्ट नहीं हो, यातना नहीं हो, काटते समय उनको ज्यादा परेशानी नहीं हो,तो पता है क्या क्या रेगुलेशन हुआ प्रस्ताव पास हुआ कि, हमारे कत्लखाना का आधुनिकीकरण किया जाए, और हमें उस समय निर्णय हुआ कि थायलंड, आयरलैंड यहां से हम इस कत्लखाने में हथियारों का ब्लड का उपयोग किया जा रहा है वहां से आयात किया जाए सबने बहुमत से उसको पास किया। हरि हरि!
ऐसे दयालु राजनेताओं को प्रल्हाद महाराज ने कहा हैं न ते विदु: स्वार्थगतिं हि विष्णुं दुराशया ये बहिरर्थमानिन:। अन्धा यथान्धैरुपनीयमाना-स्तेSपीशतन्त्र्यामुरुदाम्नि बध्दा:।।
(श्रीमद्भागवतम् स्कंध 7,अध्याय 5,श्लोक 31) अनुवाद: - जो लोग आर्थिक जीवन के भोग की भावना द्वारा दृढ़ता से बंधे हैं और जिन्होंने अपने ही समान बाह्य इंद्रिय विषयों से आसक्त अंधे व्यक्ति को अपना नेता या गुरु स्वीकार कर रखा है, वह यह नहीं समझ सकते कि जीवन का लक्ष्य भगवत धाम को वापस जाना तथा भगवान विष्णु की सेवा में लगे रहना है। जिस प्रकार अंधे व्यक्ति द्वारा ले जाया गया दूसरा अंधा व्यक्ति सही मार्ग से भटक सकता है और गड्ढे में गिर सकता है उसी प्रकार भौतिकता से आ सकता व्यक्ति अपने ही जैसे किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा मार्ग दिखाए जाने पर काम करना कि रस्सियों द्वारा बंधे रहते हैं, जो अत्यंत मजबूत डोरियों से बनी होती है और ऐसे लोग तीनों प्रकार के कष्ट करते हुए पुनः पुनः बौद्धिक जीवन प्राप्त करते रहते हैं।
हमारे नेता तथाकथित लीडर्स है वह अंधे है अनाड़ी है और फिर सारी जनता भी अंधी हैं। एक अंधा दूसरे अंधे को मार्गदर्शन कर रहा है या अंधे, अंधे को फॉलो कर रहे हैं कहां पहुंच जाएंगे
ध्यायतो विषयान्पुंस: सड्ग़स्तेषूपजायते। सड्ग़ात्सञ्ञायते काम: कामात्क्रोधोsभिजायते।।
(श्रीमद्भभागवतगीता अध्याय 2 श्लोक 62)
अनुवाद: - इंद्रिय विषयों का चिंतन करते हुए मनुष्य की उम्र में आ सकती उत्पन्न हो जाती है और ऐसी आसक्ति से काम उत्पन्न होता है और फिर काम से क्रोध प्रकट होता हैं।
क्रोधाभ्दवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद् बुध्दिनाशो बुध्दिनाशात्प्रणश्यति।। (श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 श्लोक 63)
अनुवाद: - क्रोध से पूर्ण मोह उत्पन्न होता है और मोह से स्मरणशक्ति का विभ्रम हो जाता हैं। जब स्मरण शक्ति भ्रमित हो जाती है, तो बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि नष्ट होने पर मनुष्य भाव कूप में पुनः गिर जाता है।
भगवत गीता में भगवान ने कहा है हरि हरि! नाश होगा नरक के द्वार को पहुंचा देना और फिर नरक में पहुंचा देंगे जनता को। हरि हरि! ये तुकाराम महाराज का देश है श्रील प्रभुपाद ने कहा था महाराष्ट्र की बात हैं। यह तुकाराम का देश है इन राजनेता उसे बिगाड़ रहे हैं इस देश को, संसार को।हरि हरि!
*तर्कोंSप्रतिष्ठ श्रुतयो विभिन्ना नासावृषिर्य़स्य मतं न भिन्नम्। धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो ये़न गत: स पन्था:।।
(श्री चैतन्य-चरितामृत,मध्य लीला, अध्याय 17 श्लोक 186)
अनुवाद: - श्री चैतन्य महाप्रभु ने आगे कहा, "शुष्क तर्क में निर्णय का अभाव होता हैं। जिस महापुरुष का मत अन्यों से भिन्न नहीं होता, उसे महान ऋषि नहीं माना जाता। केवल विभिन्न वेदों के अध्ययन से कोई सही मार्ग पर नहीं आ सकता, जिससे धार्मिक सिद्धांतों को समझा जाता हैं। धार्मिक सिद्धांतों का ठोस सत्य शुद्ध स्वरूपसिद्ध व्यक्ति के ह्रदय में छिपा रहता हैं। फलस्वरूप, जैसा कि सारे शास्त्र पुष्टि करते हैं, मनुष्य को महाजनों द्वारा बतलाए गये प्रगतिशील पद पर ही चलना चाहिए।"
महाजनों ने दिखाए हुए मार्ग पर हमें चलना हैं। आजकल के जो नेता है वह हम उन्हें नहीं फॉलो करना हैं। हरि हरि! क्योंकि भगवान ने कहा है
*एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदु:। स कालेनेह महता योगो नष्ट: परन्तप।।
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 2)
अनुवाद: - इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु परंपरा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा। किंतु कालक्रम में यह परंपरा छिन्न हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है।
मैं जो उपदेश सुना रहा हूंं। श्लोक इस उद्देश को यह उपदेश किसको जानना चाहिए किस को सुनना चाहिए। परंपरा में इस संदेश को गीता को राजर्षिराजर्षयो विदु:। राजर्षि विदु: मतलब जानना। राज ऋषियों को या राजाओं को ऋषियों से ही यह ज्ञान परंपरा में समझना चाहिए, लेना चाहिए तो वैसे तो नहीं कर रहे हैं आजकल के राजा है लेकिन राजर्षि नहीं हैं,या तो राजा को ऐसे ब्राह्मणों से मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए ब्राह्मण बताएंगे या ब्राह्मण सिखाएंगे उनको शास्त्र की बात, वैसे क्षत्रियों के हाथ में एक हाथ में शास्त्र और दूसरे हाथ में होना चाहिए शस्त्र अब शास्त्र तो है नहीं या शास्त्र वह किसी से सुनते या पढ़ते नहीं है उनके पास शस्त्र है और वह है अंधे तो फिर किसी को भी काट सकते हैं इतने सारे संसार में कहां है क्षतात त्राय ते क्षत्रिय
क्षत्रिय की परिभाषाएं क्षति से जो बचाएगा जख्मी होने,से कष्टों से,जो हमारी रक्षा करेगा।वह क्षत्रिय है तो इस परिभाषा के अनुसार वह क्षत्रिय नहीं है राजर्षि नहीं है इस संसार के जन इसीलिए आज जो व्यक्ति समाचार सुना रहे थे। वह कहते हैं कि इन लोगों से यह संसार में शांति कि स्थापना करेंगे या यह होगा नहीं यह संभव नहीं हैं। कई प्रकार के रिपोर्ट उन्होंने दे दिए,समाचार दिया।
English
3 December 2020
Beware - the ugly face of Kaliyuga is all around
Hare Krishna!
We have devotees from 694 locations chanting with us. Today we will hear some news called the material world's bad news. It’s not new. Sukadeva Goswami said in Srimad-Bhagavatam.
kaler doṣa-nidhe rājann asti hy eko mahān guṇaḥ kīrtanād eva kṛṣṇasya mukta-saṅgaḥ paraṁ vrajet
Translation: My dear King, although Kali-yuga is an ocean of faults, there is still one good quality about this age: Simply by chanting the Hare Kṛṣṇa mahā-mantra, one can become free from material bondage and be promoted to the transcendental kingdom. (SB 12.3. 51)
I will be sharing some discrepancies of the material world. You all think that the world is nice and enjoyable, but the proverb goes; 'All that glitters is not gold'. Be warned as Bhagavatam mentions the unlawful activities,
abhyarthitas tadā tasmai sthānāni kalaye dadau dyūtaṁ pānaṁ striyaḥ sūnā yatrādharmaś catur-vidhaḥ
Translation: Sūta Gosvāmī said: Mahārāja Parīkṣit, thus being petitioned by the personality of Kali, gave him permission to reside in places where gambling, drinking, prostitution and animal slaughter were performed. (SB1.7.38)
As Kali personified was apologising, so Maharaja Pariksit allowed Kali to reside in the above mentioned four places.
sūta uvāca abhyarthitas tadā tasmai sthānāni kalaye dadau dyūtaṁ pānaṁ striyaḥ sūnā yatrādharmaś catur-vidhaḥ
Translation Sūta Gosvāmī said: Mahārāja Parīkṣit, thus being petitioned by the personality of Kali, gave him permission to reside in places where gambling, drinking, prostitution and animal slaughter were performed (SB. 1.17.38)
This happened 5000 thousand years ago when Kaliyuga had started. There was no such sinful activities at that time, but gradually Kali personified creating disturbances with his sinful mentality in the minds of people. Especially in the western part of the world, Kali expanded its empire and from there it started to enter into the eastern part.
Yavar jivet sukhane jivet Rhinum kritva gritam pibet (Charvak darshan)
Charvak Muni said, “To be happy consume ghee. Even if you don't have money take loan.” How far has this Kali reached will be shown in the video.
(Subtitles as shown in the video) " Between the USA and UK the two most sophisticated advanced civilization there are 27 million persons addicted to drugs, there are 89 million people addicted to alcohol, there 106 persons addicted to smoking, 21 million of those die every year from disease related to their addiction to cigarette smoking, 24 million people prostitute themselves legally with licenses, 8 murders or homicides are committed every 19 minutes and 2 rapes are committed every seven minutes and there are 3 robberies every 59 seconds, there are 257 thousand children that are legally or illegally aborted that is 257 thousand children are killed in the womb by license, 21 million children are born every year out of wedlock who do not know their mothers and fathers or do not know whom they're fathered by, 2.8 million suicides every year of human beings who find no reason to live, 275 thousand persons are locked up in their prison industrial complexes and today, the prisons are build as industries they are no longer built simply to house and to reform criminals, they are built as industries and major conglomerates compete with one another for the contracts to build and to administrate these prison complexes because they have found that the labor from prisoners are just like the labor from South America or India in other places they can have people locked up for 20 years or 30 years of life and have them to work for 53 cents an hour so it makes sense to build prisons and it makes sense…. to give people life imprison. These statistics are shocking they are depressing and they are evident themselves that such societies do not qualify to be the models or the champions for the source of bringing peace to the world. With these kind of social problems inside of their own boundaries, inside of their own governments and their own institutions, how can they bring peace to the world? IT DOESN'T MAKE SENSE."
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
Such is the world! Your world, not mine. The world is of those people who love this kind of place. I don't have love for such places as the soul doesn't belong here. We are residents of another world. Who will accept or like this kind of world where millions of cows are slaughtered every day on this planet and in such countries like USA, UK and many other countries, including India. This is the current scenario of the whole world. India imports petrol from the Middle-East and in return it exports meat in huge boats from Kerala and other states that promote meat.
Once I was in Ahmedabad for a preaching program and a person said to me showing his Brahmin thread : "Swamiji, I am a Brahmin, but I relish beef." As you all know the difference between the two. This is just the example of one person, but there are innumerable persons all over India. If in a place like India this is happening then what to speak about other parts of the world.
I remember one more incident which occurred 25 years ago at the Indian Parliament by a member of the parliament who we had elected. At the session, one of topics on the agenda was - In our countries slaughter houses, the instruments used to slaughter the cows are not sharp enough and it takes longer to slaughter the cows. The consequence is that the cows suffer extreme pain. What should be done to solve this? The members present felt sorry for on the cows and so after discussion a resolution was passed to modernise the slaughter houses. This is the kind of pity showed by today's politicians. Maharaj Prahlada says in Srimad Bhagavatam:- andhe ite iyemana…. our so called political leaders worldwide are fools, blind and so are our citizens. If one blind person is led by another blind, where will they reach?
dhyayato visayan pumsah sangas tesupajayate sangat sanjayate kamah kamat krodho 'bhijayate
Translation: While contemplating the objects of the senses, a person develops attachment for them, and from such attachment lust develops, and from lust anger arises. (BG 2.62)
krodhad bhavati sammohah sammohat smrti-vibhramah smrti-bhramsad buddhi-naso buddhi-nasat pranasyati
Translation: From anger, delusion arises, and from delusion bewilderment of memory. When memory is bewildered, intelligence is lost, and when intelligence is lost, one falls down again into the material pool. (SB 2.63)
pranasyati means perish. They will send the citizens to hell. Srila Prabhupada says, “This is Saint Tukarama's country, the politicians are spoiling the country.”
Mahajano yena gatah so panthah
The path shown by great authorities should be followed by everyone, we should not follow today's leaders. Lord Krsna says:
evaṁ paramparā-prāptam imaṁ rājarṣayo viduḥ sa kāleneha mahatā yogo naṣṭaḥ paran-tapa
Translation: This supreme science was thus received through the chain of disciplic succession, and the saintly kings understood it in that way. But in course of time the succession was broken, and therefore the science as it is appears to be lost. (BG 4.2)
Whom should we listen to? rājarṣayo saintly kings. The Kings should hear from the saints, but today we are not hearing from them. One should be guided under the Brahmanas who will teach everyone. Ksatriyas should be sastra (Vedic literature) in one hand and saastra (weapons) in the other hand. As they don't have Vedic literature, but weapons to harm people. Kshataha trayate, the person who protects is known as ksatriya. Today's political leaders are neither saints nor ksatriyas and so we should not expect peace from them in this terrible world. This news is food for thought for you all to think from the perspective of Vedic literature. By seeing all this news, the devotees feel pity as they are para dukha dukhi. For this reason Srila Prabhupada took the mission so seriously and went to the western world to preach about the Sankirtan movement as it's the tendency of the world to follow the West. Srila Prabhupada tried to preach there and make the westerners into devotees of Kṛṣṇa to be followed by the rest of the world. By following the four regulations we will kick out Kali from our house, from our minds and thus transform our lives into becoming devotees. Preach to others as it's very important for us to follow the regulations.
Yatra adharma catur vidha to follow God's law and situate sankirtan movement in this current situation of the world.
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
harer nameva kevalam is the only way to be happy. Be convinced and then preach to others and thus make your life successful.
People are spreading bad news about the disturbances going on in the world. I want you all to flood the world with good news, spiritual news, make it viral and purify your mind. This news which people are ignorant of, spread it. As Srila Bhaktisiddhanta Saraswati Thakura said, “We could publish a Krishna conscious newspaper everyday.” One devotee asked "From where will we get so much news?” and in reply His Holiness said, “We have news that can be published every minute."
There is spiritual news from different parts of ISKCON centres and from the holy dhama like Vrindavan and Mayapur. Now Book distribution marathon has started. We can inspire each other by sharing the good news about the spiritual world and spread happiness, otherwise thousands of people are committing suicides because of frustration, depression, tension created by the advancement of Kaliyuga. Give your neighbours and friends some inspiration by sharing Krishna consciousness with them. You all become responsible Hare Krishna devotees. Do you want to improvise the situation of this disgusted world? Many people misinterpret the world to be nice place. Analysing the current scenario of the world being affected by the pandemic, nobody seems to be interested in searching for a better solution nor is anyone learning any lesson from this degraded condition of the Covid era. The tendency of self enjoyment is still going on, but we as devotees are different from the rest of the world as we belong to the transcendental realm as we are making ourselves qualified to enter that realm. For that we need to bring a revolution in our consciousness. Send this message to your social media friends and family and spiritualise your social media by broadcasting the glories of Hare Krishna.
Srila Prabhupada wanted his followers to be 'independently thoughtful' and not only be spoon-fed. By reading the Vedic literature we need to develop that thoughtfulness in ourselves and inspire, transform people around us. Prepare yourself and become mature in knowledge as soon as possible. Don’t be child for long. Don't just mature in age, but mature in knowledge. The Western world is to be considered as ‘Bhog-bhumi',a place for enjoyment whereas India is 'tapo bhumi’, a place for austerity. Transcend yourself from this forest of enjoyment. Prepare your reports and flood the world with spiritual news. Don't read the material news, but these spiritual reports.
Hare Krishna!
Russian
Наставления после совместной джапа-сессии 03.12.2020г.
Харе Кришна!
Преданные из 694 мест воспевают с нами прямо сейчас!
Для нас это не очень хорошие новости. Это не новость. Шукадева Госвами говорит, что Калиюга — это океан пороков.
Все, что блестит, не золото...
Привлекательность этого материального мира также ложна.
Совершаются всевозможные грехи, и царь Парикшит дал Кали четыре места для проживания.
Он сказал, что в местах, где совершаются 4 вида Адхармы, Кали может жить.
Там, где есть азартные игры, интоксикация, мясоедение и незаконный секс - это места, где преобладает Адхарма. Итак, Кали разрешили остаться здесь.
Это было 5000 лет назад, в начале Кали-юги, когда Парикшит Махарадж отдал эти места Кали для проживания.
Эти 4 вида деятельности создают препятствия в процессе практики Садхана Бхакти.
Сейчас в эпоху Калиюги это очень легко, но тогда это было очень сложно, так как он (Кали) вряд ли мог найти такое место. Тогда люди не участвовали в такой греховной и деятельности адхармы.
Постепенно склонность к греху, греховной деятельности и империя Кали расширились.
Он уехал в восточные страны, где очень преуспел.
Люди начали жить с такими принципами, как просить, брать взаймы или воровать, брать ссуды, но едят масло, удовлетворяют свои чувства.
Итак, я хотел бы поделиться своим экраном и показать вам видео
показывается, как зависимость распространилась так широко.
Таков мир, в который влюбляются люди.
Я не люблю этот мир. Этот мир не для души. Мы не принадлежим этому миру, нам он не должен нравиться. Как таковой, кому понравится такой мир. Ежедневно в этом мире убивают десятки миллионов коров.
В этом видео показана статистика только Европы и Америки. Но общая статистика еще хуже.
Столько мяса экспортируется из Индии в зарубежные страны.
Взамен они покупают бензин. Так что мы не стоим в очереди.
Однажды я был в Ахмедабаде, и мы предлагали человеку пожизненное членство. Он представился брахманом и показал свой священный шнур. А потом он сказал, что мне нравится есть говядину.
И он не единственный такой.
Здесь таких очень много.
Я также помню, около 25 лет назад избранный нами член парламента на собрании заявил, что лезвия, которые мы используем для забоя коров на бойнях, недостаточно острые, и по этой причине обезглавливание головы занимает слишком много времени и заставляет коров больше страдать.
По этому поводу все собравшиеся выразили свое сочувствие коровам, и было принято новое постановление. Это решение заключалось в обновлении лезвий до более острых, чтобы сократить затрачиваемое время.
Так проявляется такая озабоченность
Во всем мире почти все политики-лидеры слепы, и избиратели тоже слепы.
Желание удовлетворять (чувства) все больше и больше привело к разрушению разума, как говорит Кришна в главе 2 Б.Г.
Шрила Прабхупада сказал Махараштре, что это Страна Тукарама, но политики испортили ее
Мы не должны следовать за такими лидерами.
Мы должны идти по стопам великих людей. Мы должны знать истинное знание, которое приходит через истинную ученическую преемственность.
Раньше цари были святыми царями, но теперь они совсем не святые.
У царей должны быть Священные Писания в одной руке для совершенного руководства, а в другой - оружие для защиты и наказания.
У современных царей нет священных писаний, все, что у них есть, - это оружие, и, поскольку они слепы, они могут убить или причинить вред любому и каждому.
У таких лидеров не может быть никакой надежды на то, что они установят мир и любовь в этом мире.
Так что это отчетное видео - пища для размышлений. Подумайте на эту тему.
Вайшнавы очень милосердны. Им не нравится видеть, как другие страдают.
Вот почему Шрила Прабхупада начал проповедническое движение.
Шрилу Прабхупаду часто спрашивали, почему он выбрал Америку для начала своей миссии. Он всегда отвечал, что весь мир смотрит на Америку и следует за ней.
Итак, он начал там проповедовать. Это распространилось на Европу, Азию, Австралию, Африку и т. д. Люди стали охотно отказываться от мяса, интоксикации, азартных игр и незаконного секса.
Так что попробуйте задуматься над этой темой.
Вы можете подумать, как важно проповедовать сознание Кришны. Насколько важно прекратить эти четыре действия адхармы
и замените их деятельностью дхармы, и эта деятельность дхармы - повторение и воспевание Харе Кришна Махамантра.
Так что сначала будьте убеждены с полной решимостью, а затем поделитесь этим с другими.
Делитесь с другими Харинамой, книгами, прасадом, сознанием Кришны.
Хорошо, на этом мы остановимся.
Харе Кришна!
Мы уже просим всех вас предоставить отчеты за месяц Картика.
(Перевод Кришна Намадхан дас)