Hindi
13th Aug 2019
हरे कृष्ण
अभी तक लगभग16 स्थानों से भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं,तथा कुछ भक्त मेरे साथ यंहा जप कर रहे हैं, अभी आधी रात का समय है इसलिए यह संख्या कम है परन्तु कीर्तनीया सदा हरि।
जैसे कि चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि सदैव हरि नाम का कीर्तन करना चाहिए। गुरु महाराज हार्दिक पटेल जो अलबामा से पूछ रहे हैं कि क्या तुम न्यू वृन्दावन आ रहे हो? मैं भी अभी अमेरिका में हूँ तो आप चाहे तो न्यू वृन्दावन आ सकते हो और हम मिल सकते हैं। आज की यह जप चर्चा परम् धाम प्रभु और जमुना माताजी के घर पर हो रही है।
मैं यहां रुका हुआ हूँ।उनका पुत्र है चैतन्य और पुत्री लावण्या, वे सभी यहां अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में रहते हैं। इस प्रकार आज का जो विचार है इसके विषय में हम चर्चा करना चाहेंगे, यह वॉशिंगटन डीसी अमेरिका की राजधानी है, और यहां के हमारे इस्कॉन मंदिर में अन्य विग्रह के साथ-साथ सीता राम लक्ष्मण हनुमान का भी विग्रह है। इस प्रकार से अमेरिका की राजधानी में भगवान श्री राम विराजते हैं। इसी प्रकार इंग्लैंड की राजधानी लंदन है वहां के
इस्कॉन मंदिर में भी भगवान श्री राम लक्ष्मण हनुमान के विग्रह हैं। इसी प्रकार भारत की राजधानी है दिल्ली, वहां पर भी राम दरबार है तो इस प्रकार भगवान ने इन सब को अपनी राजधानी बनाया है ।
इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व के जितने भी नेता हैं, उन्हें भगवान् राम से यह सीखना चाहिए कि जिस प्रकार भगवान राम ने अयोध्या अथवा संपूर्ण विश्व पर निष्कण्टक राज्य किया, वैसे उन्हें शासन करना चाहिए। उन्हें भगवान राम के पद चिन्हों का अनुसरण करना चाहिए क्योंकि भगवान राम ने इन स्थानों को अपनी राजधानी बनाया है, यह विचार मेरे मन में आया है। यहां पर अभी मैं जप कर रहा हूं और आप सभी भक्त मेरा जप सुन पा रहे हैं, परंतु मैं आपका जप नहीं सुन पा रहा हूं, यह ठीक नहीं है मैं भी आपका जप सुनना चाहता हूं। सबसे प्रमुख बात यह है कि जब हम जप करते हैं तब हमारी जिह्वा में कंपन होना चाहिए। अभी मैं जहां रुका हुआ हूं परमधाम प्रभु के घर पर यहां पर एक साइन बोर्ड लगा हुआ है उस पर लिखा हुआ है उत्तम कम्पन केवल , जो सबसे उत्तम कंपन है जिह्वा द्वारा वह यहां पर होना चाहिए । जब हम जप करते हैं उस समय हमारे द्वारा कंपन होना चाहिए । प्रभुपाद कहते थे टंग मस्ट वाइब्रेट । जब हमारी जीभ हिलती है तब हम हरे कृष्ण महामंत्र का ठीक प्रकार से उच्चारण कर सकते हैं, हमारे कान उस महामंत्र का श्रवण करेंगे और तत्पश्चात हम उस पर चिंतन कर सकते हैं।
इसलिए जिव्हा में कंपन होना अत्यंत आवश्यक है। इस प्रकार हमें अपना जप इस तरह से करना चाहिए की उसकी ध्वनि हमारी जिह्वा द्वारा निकलनी चाहिए। जिह्वा द्वारा उस हरिनाम की ध्वनि को हमें कंपन करना चाहिए जिससे हम स्वयं अपना जप सुन सकें यदि हम इस प्रकार से जप नहीं करेंगे तो हम अपना जप सुन नहीं पाएंगे, पर हम जप के स्थान पर कुछ अन्य ही बातें सुनेंगे जैसे कि आसपास के वातावरण में अन्य जो बाते हैं कोई खांस रहा है ,कोई गाड़ी का हॉर्न बज रहा है या अन्य ध्वनियां, वह सुनेंगे तो हमारा मन इधर उधर भटक रहा होगा। उस समय किसी अन्य स्थान में चले जाएंगे और वहां पर क्या बातें हो रही हैं उन पर ध्यान देने लगेंगे तो हमें स्वयं को इन विचारों से दूर रखना चाहिए और इस प्रकार से जब हम जप करते हैं तब हमारी जिह्वा द्वारा हरि नाम का उच्चारण अत्यंत ही ध्यान पूर्वक और स्पष्ट होना चाहिए जिससे कि हम उसको सुन सके और उस पर चिंतन कर सकें। हमें ऐसा करना चाहिए, साथ ही साथ हमें अन्यों को भी बताना चाहिए कि किस प्रकार से जप करें तथा श्रील प्रभुपाद का जो रिकॉर्डिंग है वह अत्यंत लाउड है और प्रभुपाद उच्च स्वर में हरे कृष्ण मंत्र का उच्चारण उसमें कर रहे हैं।
आज जब मैं अपना दोपहर का प्रसाद ले रहा था तो उस समय चैतन्य चरितामृत आदि लीला का सप्तम अध्याय सुन रहा था , तब मुझे प्रसाद पाते हुए कुछ श्रवण करना से एक बात का स्मरण होता है, जब हम ब्रह्मचारी आश्रम में रहते थे उस समय जब हम रात्रि में सोने के लिए जाते थे,उससे पहले हम दूध पीते थे। ऐसा होता था कि सभी ब्रह्मचारी एक गोले में बैठ जाते और बीच में दूध की बाल्टी रखी रहती और हम उसमें से गिलास भर भर के दूध पीते जाते, ऐसा नहीं होता था कि एक ही गिलास, कई भक्त दूध के अनेक गिलास पी जाते थे।
परंतु सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वहां पर भी जब हम सोने से पहले दूध पीते थे, वहां एक भक्त कृष्ण बुक से कुछ पढ़ता और अन्य सभी भक्त उसका श्रवण करते।भक्तों में जो कृष्ण बुक पढ़ता था केवल वह भक्त बोलता था, अन्य सभी भक्त उस समय चुप रहते, और इस प्रकार हम एक ही समय पर दूध और भगवान कृष्ण की अमृतमयी वाणी का पान करते थे। इस प्रकार आप भी प्रसाद पाते समय श्रवण कर सकते हैं और आप इसका दोहरा लाभ उठा सकते हैं। एक प्रसाद पाने का लाभ है और दूसरा कृष्णा के विषय में श्रवण करने का लाभ। जब आप ऐसा करते हैं तो कृष्ण आपके मुख, आपके कानों से आपके शरीर में प्रवेश करते हैं, और आप कृष्णमय हो जाते हैं। यह एक उत्तम अभ्यास है जिसका आपको पालन करना चाहिए और एक अन्य बात है जो मैं आपको जल्दी बताना चाहूंगा क्योंकि जपचर्चा का हिंदी में भी अनुवाद होगा और उसमें भी समय लगेगा, आज जब मैं चैतन्य चरितामृत का वह अंश सुन रहा था, उसमें हरिनाम की महिमा के विषय में बताया गया है। मैंने उसे स्वयं महाप्रभु के मुखारविंद से सुना, वह लीला इस प्रकार थी - जब महाप्रभु वाराणसी में थे, वाराणसी मायावादी संन्यासियों का एक प्रकार से गढ़ है और जब चैतन्य महाप्रभु वहां गए तो कुछ लोग चैतन्य महाप्रभु का प्रतिवाद कर रहे थे, उन्हें अपमानित कर रहे थे और वह कह रहे थे कि यह सन्यासी जिस प्रकार से संकीर्तन करता है नृत्य करता है वह उचित नहीं है, और एक सन्यासी को तो गंभीर होना चाहिए। परंतु यह सन्यासी तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। यह कीर्तन करता है, नृत्य करता है और सन्यासी ऐसा नहीं करते। इस प्रकार से वे महाप्रभु के प्रति अपराध कर रहे थे और उन्हें अपमानित कर रहे थे, और उन्होंने देखा कि यह संकीर्तन तो करता है परंतु यह वेदांत का अध्ययन नहीं करता है। वे कहते हैं 'वेदांत करें ना अध्ययन,। परंतु हम तो वेद पढ़ते हैं , मायावादियों को इसका बहुत अभिमान होता है कि वे वेद पढ़ते हैं। इस प्रकार की चर्चा पूरे शहर में चल रही थी। एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण जो महाप्रभु का भक्त था उनके इस अपमान को सहन नहीं कर पाया और वह महाप्रभु के पास गया और उसने कहा मैं इस बात को अब और अधिक सहन नहीं कर सकता हूं, आपसे निवेदन करता हूं की कृपया मायावादी सन्यासी से मिलिए, एक सभा कीजिए
उन्हें इसके विषय में बताइए, क्योंकि मैं यह अपमान अब और अधिक सहन नहीं कर सकता हूं।अतः इस प्रकार महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण ने चैतन्य महाप्रभु से निवेदन किया कि वे उन सभी सन्यासियों से मिलें, परन्तु महाप्रभु ऐसा नहीं करना चाहते थे, उनसे नही मिलना चाहते थे (मायावादियों से नहीं मिलना चाहते थे)।
यह जो काम था उस महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण ने किया, वहां उसने एक गोष्ठी का आयोजन किया और वह स्वयं इस गोष्ठी का यजमान बना । उसमें सभी सन्यासियों को आमंत्रित किया गया । चैतन्य महाप्रभु के साथ अन्य कई सन्यासी उस गोष्ठी में सम्मिलित हुए।जब चैतन्य महाप्रभु ने उस गोष्ठी में प्रवेश किया, जब उस स्थान पर चैतन्य महाप्रभु पधारें , वे उस स्थान पर जाकर बैठ गए जहां अन्य सभी सन्यासी अपने पाँव धोते थे।उन सभी सन्यासियों के गुरु थे प्रकाशानंद सरस्वती (जो लगभग 60,000 सन्यासियों के गुरु थे) और वे सन्यासी वहाँ उस समय उपस्थित थे उन्होंने देखा कि चैतन्य महाप्रभु कहां पर जा कर बैठे हैं। वे चैतन्य महाप्रभु के पास गए उन्हें वहां से उठाकर अपने स्थान पर बैठने का निवेदन किया, और अंततः उन्होंने उनको (चैतन्य महाप्रभु का जो स्थान था)उस स्थान पर बिठाया । जब वे दोनों अपने-अपने स्थान ग्रहण कर चुके तो वहां पर चैतन्य महाप्रभु और प्रकाशानंद सरस्वती के बीच शास्त्रार्थ हुआ। उन्होंने चैतन्य महाप्रभु को संकीर्तन करने, नृत्य करने, और वेदांत का अध्ययन ना करने के लिए डांटा और कहा की आप हमसे वेदान्त का अध्ययन सीखे और यह भावुक नृत्य छोड़कर वेदांत अध्ययन करें।
महाप्रभु ने जब यह सुना तो उन्होंने प्रकाशानंद सरस्वती को कहा, क्या आपको पता है मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं? क्योंकि मेरे जो गुरु महाराज हैं ईश्वरपुरी। उन्होंने कहा कि "गुरु मोहे मूर्ख जानि करीला शासन" तुम तो मूर्ख हो मैं तुम्हें एक आज्ञा देता हूं तुम वेदांत अध्ययन नहीं कर सकते हो, तुम केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करो और जप करो। इसलिए मैं इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप और कीर्तन करता हूं, इसके साथ ही साथ मेरे गुरु महाराज ने मुझे एक मंत्र और दिया है , "हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामेव केवलं, कलौ नास्तेव नास्तेव गतिरन्यथा " इसके पश्चात चैतन्य महाप्रभु ने प्रकाशानंद सरस्वती को इसका तात्पर्य भी बताया। चैतन्य महाप्रभु ने प्रकाशानंद सरस्वती को कहा , नास्ति एव नास्ति एव कलयुग में भगवान श्री कृष्ण को कर्म ज्ञान अथवा योग से नहीं समझ सकते अथवा उनकी प्राप्ति नहीं कर सकते, अतः हरेर्नामेव केवलम्। कलयुग में केवल हरि नाम से ही भगवान की प्राप्ति हो सकती है, इसलिए मैंने जप और कीर्तन को करना प्रारंभ किया, और जब से मैंने यह जप और कीर्तन प्रारंभ किया है तब से मेरे अंदर परिवर्तन हो रहा है। मैं एक नया भक्त था जब मैंने हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करना प्रारंभ किया था। परंतु जप करते-करते मेरे अंदर परिवर्तन होने लगा, परंतु मेरे गांव के लोग समझते हैं कि मैं मूर्ख हो गया हूं, मैं पागल हो गया हूं और वे मुझे पगला बाबा बुलाने लगे। चैतन्य महाप्रभु प्रकाशानंद सरस्वती को आगे बताते हैं कि जब ऐसा हुआ तो मैं पुनः अपने गुरु महाराज के पास गया और मैंने गुरु महाराज से कहा कि " किबा मंत्र दिया गुसाईं कीबा तारे बल
जपीते जपीते मंत्र
करिला पागल'"
हे गुरु महाराज हे गोसाई आपने यह मुझे कैसा मंत्र दिया है इस मंत्र की क्या शक्ति है जैसे जैसे मैं इस मंत्र पर जप करता हूं कीर्तन करता हूं मैं पागल हो गया हूं, मेरे शरीर में कंपन होता है, कभी मैं हँसता हूँ, कभी रोता हूँ, कभी मैं स्तब्ध हो जाता हूं, कभी भूमि पर लोटता हूं और मैं एक प्रकार से पागल हो गया हूं। इस प्रकार जब मेरे गुरु महाराज ने यह सुना तो उन्होंने मुझे कहा तुम बुद्धिमान हो, बहुत अच्छा अन्य लोग तुम्हें पागल बोलते हैं, लेकिन तुम पागल नहीं हो तुम बहुत अच्छी प्रकार से यह कर रहे हो। अतः मेरे गुरु महाराज ने मुझे ऐसा कहा और वे इसकी प्रशंसा कर रहे थे कि जप से जो परिवर्तन हुआ है वे इससे अत्यंत प्रसन्न है। इसके साथ ही साथ ईश्वर पुरी ने चैतन्य महाप्रभु को श्रीमद्भागवत के दूसरे स्कन्ध के सातवें अध्याय के चौथे श्लोक को भी उद्धृत किया। उसमें उन्होंने बताया कि जो हरे कृष्ण महामंत्र के जाप का कीर्तन करता है, उसके साथ क्या होता है अथवा जो कृष्ण की आराधना करता है ,भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करता है उसके साथ क्या होता है । जैसा कि हम जानते हैं
"महाप्रभु कीर्तन नृत्य गीत
वादित्र माद्यन मनसो रसेन
रोमांच कंपाश्रु तरंग भाजौ
वन्दे गुरु श्री चरणारविन्द"
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर द्वारा रचित श्री गुरुवाष्टकम के दूसरे श्लोक में वे लिखते हैं, कि जब कोई चैतन्य महाप्रभु के इस मंत्र का जप करता है अथवा कीर्तन करता है तो उसके साथ क्या होता है उसमें वह व्यक्ति रोमांचित होता है कंपन होता है उसमें अश्रु आते हैं । इस प्रकार से यह परिवर्तन उसमें होने लगता है, वास्तव में मेरे गुरु महाराज ने मुझे यह बताया की जो परिवर्तन मुझ में हो रहा है यह अत्यंत उत्तम है, और प्राकृतिक है तो जब कोई हरे कृष्ण महामंत्र का ध्यानपूर्वक और अपराध रहित होकर निरंतर जप करता है तो तब उसमें यह परिवर्तन आता है। आप सभी भी चैतन्य चरितामृत के आदि लीला के सप्तम अध्याय को पढ़ सकते हैं और इस अध्याय में पंचतत्व की महिमा का वर्णन है । मैंने अभी आपको चैतन्य महाप्रभु और प्रकाशानंद सरस्वती के बीच जो वार्ता हुई चर्चा हुई उसका केवल प्रारंभिक अंश बताया है आप इसको विस्तृत रूप में वहां पर पढ़ सकते हैं। यह बहुत ही अच्छी वार्ता है। एवं अत्यंत उत्तम प्रकार से इसका वर्णन चैतन्य चरितामृत में कहा गया है, और यह अत्यंत ही प्रभावित करने वाला वर्णन है तो जब आप इसे पढेंगे, यह आपके हरे कृष्ण महामंत्र के जप को प्रभावित करेगा और इस प्रकार से अपराध रहित जप करने के लिए यह चर्चा आपको प्रभावित करेगी।
अतः मैं अपनी जप चर्चा को यहीं विराम देता हूं कल सुबह भारतीय समयानुसार 6:00 से 7:00 के बीच यह जप चर्चा चलाई जाएगी। हमारी जूम कॉन्फ्रेंस टीम जब इसे चलाएगी तब आप इसका लाभ ले सकते हैं ।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल