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12 अगस्त 2019 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। आज अभी तक 331 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। मैं आज न्यू वृन्दावन, अमेरिका से आपके साथ जप कर रहा हूं। मेरे आस पास अभी कई भक्त हैं जो मेरे पास बैठकर जप कर रहे हैं। इनमें से कुछ भक्त कनाडा से आए हुए हैं, कुछ लॉस एंजेलिस से आए हुए हैं जैसे वृन्दावन लीला माताजी वेस्ट कोर्स से, रामचन्द्र प्रभु जी नई जर्सी से, अंतर्यामी कृष्ण प्रभुजी बोस्टन से, तिरुपति से वेंकटचलपति प्रभुजी, युवराज प्रभुजी दक्षिण भारत से हैं, अभी यहां न्यू वृंदावन में रहते हैं। साथ ही साथ दक्षिणा माताजी भी और रूपमति माताजी भी जो एक आर्किटेक्ट(वास्तुकार) और इंजीनयर है,अभी न्यू वृन्दावन में रहते हैं और वृंदावन को छोड़कर अन्यंत्र नहीं जाते हैं, वे भी हमारे पास बैठकर जप रहे हैं। आज अमेरिका में एकादशी है, हमने सोचा, हम आप सभी के साथ आज जप करेंगे। भारत में आज द्वादशी है और वहां अभी भक्त उठें होंगे, अभी-अभी मंगल आरती सम्पन्न की होगी। आज यहां पर एकादशी की संध्या आरती हुई है। यह जगत इसी प्रकार का है, कहीं पर अभी प्रात:काल है, तो कहीं अभी सायं काल है। कहीं भक्त अभी उठ रहे हैं, तो कहीं पर भक्त अभी सोने के लिए जा रहे हैं। श्रील प्रभुपाद जी कहते थे कि इस्कॉन के साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता, अर्थात जिस भी स्थान पर सूर्य अभी है, वहां भी इस्कॉन है अर्थात सम्पूर्ण विश्व में इस्कॉन के केंद्र हैं। एक बार वर्ष 1977 में कुम्भ मेले में श्रील प्रभुपाद जी बता रहे थे कि एक समय में ब्रिटेन के लोग अत्यन्त गर्व के साथ कह रहे थे कि ब्रिटिश राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता अर्थात सम्पूर्ण विश्व में ब्रिटिश लोग राज्य कर रहे हैं। प्रभुपाद जी ने कहा कि यह हो सकता है कि इंग्लैंड में कभी सूर्यास्त नहीं हुआ पर लेकिन इंग्लैंड में कभी सूर्योदय भी नहीं होता। वहाँ तो हमेशा बादल छाए रहते हैं, कोहरा रहता है और वहाँ के लोगों को कभी सूर्य दर्शन नहीं होता। इस्कॉन के साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होताहै। इस्कॉन सभी स्थानों पर है। यह चैतन्य महाप्रभु का साम्राज्य है और चैतन्य महाप्रभु के इस संकीर्तन आंदोलन के कमांडर चीफ़ अर्थात सेनापति श्रील प्रभुपाद जी हैं। हमें सदैव अपने जप के विषय में चिंतन करना चाहिए और किस प्रकार हम हमारे जप को सुधार सकते हैं और अधिक ध्यानपूर्वक जप कर सकते हैं, हमें इसके विषय में सोचना चाहिए। अभी कुछ दिन पहले मैं रिचमंड में दिव्यनाम प्रभु के घर पर था, उन्होंने मुझे वह स्थान बताया जहाँ वे बैठकर जप करते हैं। वहां पर हमने हरिदास ठाकुर जी की छोटी सी मूर्ति की स्थापना की। ये मूर्ति उन्हें कहीं से प्राप्त हुई थी, उन्होंने मुझे उसकी स्थापना करने के लिए कहा।अब वे वहाँ बैठकर जप करते हैं। जहां पर वे बैठकर जप करते थे,वहां उस स्थान पर तुलसी महारानी नहीं थी, मैंने उनको वहां तुलसी जी लगाने के लिए भी कहा, वे वहां तुलसी जी भी लगाएंगे। इनके जप कक्ष में हरिदास ठाकुर जी भी इनके साथ बैठकर जप करेंगे। उनके जप कक्ष में श्रील प्रभुपाद जी, उनके गुरु महाराज एवं एन्द्रा प्रभु, जो कि कई भक्तों के लिए प्ररेणादायक हैं, एवं जप के लिए प्रोत्साहित करते हैं, की तस्वीरें भी थी। इस प्रकार वे वहां बैठ कर जप करते हैं। हमें भी ध्यान रखना चाहिए कि हम जिस स्थान पर बैठकर जप करें उसका वातावरण हमारे जप के अनुकूल हो और वहाँ बैठकर हम ध्यानपूर्वक जप कर सकें। आज सुबह, राधा वृन्दावन चंद्र मंदिर, न्यूवृन्दावन में मंदिर के अधिकृत अधिकारी(अथॉरिटी) कुछ घोषणाएं(अनाउंसमेंट) कर रहे थे, जब अनाउंसमेंट पूरा हुआ, तब उन्होंने जप करने के समय से पहले नामामृत पुस्तक से कुछ अंश पढ़ा। यह अत्यंत ही उत्तम अभ्यास है। आप सब भी अपना जप प्रारंभ करने से पूर्व श्रील प्रभुपाद के नामामृत पुस्तक में से कुछ अंश पढ़ सकते हैं।इस पुस्तक में श्रील प्रभुपाद के प्रवचन, प्रात: कालीन सैर के समय की चर्चायें और जहां कही भी श्रील प्रभुपाद ने हरिनाम के विषय में या नाम की महिमा जो बताई हैं, उसका इस पुस्तक में संकलन हैं। आप भी इस पुस्तक को प्राप्त कर सकते हैं और जप करने से पूर्व कुछ अंश पढ़ सकते हैं। आज सुबह यहाँ मुझे श्रीमद भागवतम पर प्रवचन देना था लेकिन मैंने भागवतम की अपेक्षा चैतन्य चरितामृत पर कक्षा ली। मैंने चैतन्य चरितामृत के उस अंश को पढ़ा,जब चैतन्य महाप्रभु वृंदावन गए थे और वृंदावन की यात्रा कर रहे थे। यात्रा के अंत में वे अक्रूर घाट पर समय व्यतीत करते थे। एक दिन वृंदावन में यमुना जी के तट पर इमलीतला पर महाप्रभु गये, वे उस इमली के पेड़ के नीचे बैठ कर जप कर रहे थे। चैतन्य महाप्रभु जप कर रहे थे, संभवतया यह प्रातः काल का समय ही रहा होगा। हमने विनोदपूर्ण कहा कि चैतन्य महाप्रभु अपराध रहित जप कर रहे थे। वास्तव में महाप्रभु का जप तो सदैव अपराध रहित होता था। वे अपराध युक्त जप कर ही नहीं सकते थे। वे अत्यंत ध्यानपूर्वक जप में तल्लीन होकर भगवान के नामों का जप कर रहे थे। जब चैतन्य महाप्रभु इस प्रकार इमलीतला पर 'हरे कृष्ण' महामंत्र का जप कर रहे थे तब वे पूर्णरूपेण कृष्णभावना भावित हो गए। महाप्रभु राधारानी के भाव के साथ जप कर रहे थे। महाप्रभु भक्त रूप बने, महाप्रभु कौन से भक्त रूप बने? वे स्वयं राधारानी बने। उस दिन चैतन्य महाप्रभु वहाँ बैठकर इस प्रकार से जप कर रहे थे, जप करते समय उनकी अंगकान्ति में परिवर्तन हो गया। वे भौतिक और आध्यात्मिक पूर्णरूपेण से कृष्ण भावनाभावित हो गए। गौर सुंदर चैतन्य महाप्रभु जो गौर वर्ण के हैं, वे गौर वर्ण के न रह कर वे श्याम सुंदर हो गए, वे श्याम वर्ण के हो गए अर्थात उनकी अंगकान्ति श्याम वर्ण की हो गयी।यह एक लीला है जो हमें यह बताती है कि हरे कृष्ण कीर्तन व जप आपको कैसे बदल सकता है। चैतन्य महाप्रभु जी की आभा अंग कांति स्वर्णिम है, परंतु जप करने के पश्चात वो स्वर्णिम आभा नीले रंग की हो गयी। चूंकि वे भगवान है, उनके लिए ऐसा संभव है। हम ऐसा नही कह सकते कि हम भी जप करेंगे तो हमारी अंग कांति भी श्याम सुंदर की तरह हो सकती है। यह संभव नहीं है परंतु कुछ परिवर्तन अवश्य हो सकते हैं। इसके साथ यह वर्णन भी आता है कि नाम जप ध्यान पूर्वक करने से हमारे शरीर में कंपन,अश्रु, रोमांच आदि परिवर्तन आते हैं। जब महाप्रभु ध्यानपूर्वक शुद्ध नाम जप पूर्ण रूप से तल्लीन होकर अपराध रहित जप कर रहे थे, तब यह परिवर्तन उनके अंगकान्ति में आया। आज सुबह भागवतम प्रवचन के पश्चात हमनें चैतन्य चरितामृत में महाप्रभु के वृंदावन यात्रा के विषय में अध्ययन किया। महाप्रभु ने सम्पूर्ण ब्रज मंडल की परिक्रमा की। भागवतम की कक्षा के पश्चात हम सभी भी न्यू वृंदावन की यात्रा पर गए। यद्यपि हम मूल वृंदावन में तो नहीं थे, जोकि मथुरा वृंदावन हैं, लेकिन हम न्यू वृंदावन में थे। हम बरसाना स्वामी महाराज जी के साथ यात्रा पर गए और जो हमारे पथ प्रदर्शक बने। मैंने भी यहां पर इसके विषय में कुछ बताया। हमारे साथ 100 से अधिक भक्त न्यू वृंदावन की परिक्रमा कर रहे थे। हमारा प्रथम पड़ाव द पैलेस ऑफ गोल्ड था। हम सभी भी यात्रा का दर्शन व्हाट्सएप पर कर सकते हैं। ( वहां गुरु महाराज और बरसाना स्वामी महाराज फोटो में हैं) यह हमारा प्रथम विश्राम स्थल था। बरसाना स्वामी महाराज ने यहाँ के इतिहास के विषय में बताया। महाराज ने बताया कि श्रील प्रभुपाद जी जब यहां आए थे, तब यह महल निर्माणाधीन था। यद्यपि अभी समय समाप्त हो रहा है, परंतु मैं यहां आपको अत्यंत ही प्रमुख बात बताना चाहता हूं। बरसाना स्वामी महाराज जी ने हमें बताया कि संभवतया वर्ष 1976 या उसके आस पास श्रील प्रभुपाद जी इस स्थान पर आए थे, उस समय इसका निर्माण कार्य पूर्ण नही हुआ था और यह बिल्डिंग भी बन रही थी। जो भक्त इसके निर्माण कार्य में लगे हुए थे, उन्होंने श्रील प्रभुपाद को बताया, 'प्रभुपाद, हम यहाँ पर स्वर्ण लगाएगें।कई मूल्यवान रत्न जवाहरात लगाकर इस स्थान को सजायेंगे'। प्रभुपाद जी ने जब यह सुना, उन्होंने भक्तों को कहा, 'वास्तव में तो भक्त ही इस मंदिर के वास्तविक रत्न हैं'। इस प्रकार से श्रील प्रभुपाद जी कह रहे थे कि इन हीरे जवाहरात से अधिक महत्वपूर्ण उनके भक्त हैं। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद, उस स्थान से अधिक महत्व भक्तों को दे रहे थे। श्रील प्रभुपाद जी कह रहे थे कि स्थान की वास्तविक सजावट भक्तों से होती है। ऐसा सुनकर हम सभी अत्यंत प्रभावित हुए।महाराज ने बताया कि महाभागवतम श्रील प्रभुपाद जी का मिशन है। श्रील प्रभुपाद जी ऐसा नहीं सोचते थे, कि यह मेरा स्थान है और मेरे स्थान को कई रत्नों,हीरे जवाहरात सोने आदि रत्नों से सजाया जाएगा अपितु श्रील प्रभुपाद जी सोचते थे, यहाँ के भक्त ही वास्तविक रत्न हैं, यह सत्य भी है।इस्कॉन के जितने भी मंदिर बन रहे हैं, जो भी प्रबंधक हैं, जो मंदिर बनाते हैं,हमें उनके प्रति आभारी होना चाहिए। साथ ही साथ उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए इन मंदिरों में भक्तों की संख्या बढे़ और भक्तों की देखभाल हो। बिल्डिंग नही, वहाँ के भक्त ही वास्तविक सजावट मूल्य हैं। वास्तव में भक्त ही उस मंदिर के रत्न हैं। मैं एक और विशेष बात आपको बताना चाहता हूं। जब हम न्यू वृन्दावन की परिक्रमा कर रहे थे, हमारा अंतिम पड़ाव राधाकुंड और श्याम कुंड के तट पर था। यहां के कुछ भक्त गोवर्धन के राधाकुंड से कुछ जल लेकर आए और वह जल यहाँ इस राधाकुंड में मिला दिया, यह राधाकुंड वृंदावन के राधाकुंड से अभिन्न हो गया। इस राधा कुंड पर राधा गोपीनाथ का मंदिर अभी निर्माणाधीन है। यहां घने छायादार वृक्ष हैं और राधाकुंड के किनारे वृंदा देवी का मंदिर भी है। हम यहां बैठकर कथा सुन रहे थे, महाराज ने हमें यहां राधाकुंड के प्राकट्य के बारे में बताया। मैंने भी यहाँ पर कुछ राधा कुंड के विषय में बताया। यहां कुण्डेश्वर महादेव जी भी हैं। हमारे साथ एक माताजी है जो हमारे साथ यह जप कर रही है, वे राधा गोपीनाथ के गुम्बद का कार्य देख रही हैं। यह गुम्बद अभी निर्माणाधीन है। इसको एक दो वर्ष और लगेंगे। जब आप यहाँ आएंगे तो आपको लगेगा कि राधा गोपी नाथ मंदिर भी पूर्ण हो चुका हैं। जप करते रहिए, सुनिश्चित करें कि आप अपना जप समय से करें। आप सभी को शुभ रात्रि। भारत की सुप्रभात यहाँ शुभ रात्रि है। हरे कृष्ण! आपका दिन शुभ हो!

English

12th August 2019 DEVOTEES ARE REAL DECORATION  I am chanting with you from New Vrindavan, America. I also have some of the devotees from Canada. They have come from Canada to New Vrindavan. Also there are devotees from Los Angeles like Vrndavana Lila Mataji, Ramchandra Prabhuji from New Jersey, Antaryami Krishna Prabhuji from Boston and all the way from Tirupati, Venkatachalpati Prabhuji and devotees from South India. We have Daksina mataji from New Vrindavan and Rupamati mataji who is an architect and engineer. There was a good number yesterday and today morning also. They don't want to leave New Vrindavan but stay on here.  Today is Ekadasi here in America, so we decided to chant with you. I am sure this is Dvadasi for you. You just got up, had mangala aarti and started chanting. In New Vrindavan it is Sandhya aarti. We will chant and talk and then get a little rest. That is the kind of situation for  devotees.  East and West, North and South. Somewhere it's day and at another place night. Somewhere devotees are just getting up and at another place they are getting ready to sleep. That's why Srila Prabhupada had once said,  'In ISKCON’s empire the sun never sets. It's always shining in whichever part there is in ISKCON’s empire'. He talked about this in 1977 Kumbha-mela.  The British were very proud that the ‘sun never sets in the British empire' Their colonised empire had spread all over the planet, so they would say that the 'sun never sets in the British empire’. Prabhupada would say, ‘But the sun never rises in England.’ It is always foggy and cloudy and they never get to see the sun. The sun is not visible in England. But in case of ISKCON, it is everywhere. It never sets in ISKCON empire.  This is Caitanya Mahaprabhu's empire and Prabhupada’s empire as Prabhupada is the commander in chief of Caitanya Mahaprabhu's sankirtana movement. An important thing about chanting is that we should always be planning to improve our chanting.  I was in Richmond at Divyanama  Prabhu's home. He showed me the Japa meditation corner. We also installed Haridas Thakur's murti, which he had managed to get from somewhere. Someone donated to him the murti of Namacarya. He wanted me to install the murti in that meditation hall of his house and that is where he was planning to continue his  chanting in presence of Haridas Thakur. I noticed that he didn't have Tulasi in that room. So he was going to add Tulasi also and chant in the presence of Tulasi and Namacarya Haridas Thakur. Of course he had other photographs also of Srila Prabhupada, his Guru Maharaja, Aindra Prabhu, who was an inspiration for many devotees for chanting and singing. It was a nice set up. Very inspirational to chant japa. You could also make sure you have an appropriate place for your chanting. This morning at Radha Vrindavanchandra temple, in New Vrindaban, the director of the project, one who was making all the announcements read some quotations from Srila Prabhupada’s Namamrta. That was a very good practice. Just before the devotees’ chanting session in the temple, they read a few paragraphs, few quotes from Srila Prabhupada’s Namamrta. You chanters also try to get hold of this book of Sri- Namamrta. It's a compilation from Srila Prabhupada’s books, purports, conversations, morning walks, wherever Prabhupada talked about chanting or even singing. All those quotes have been collected in this book. It is a very good collection, very inspirational. You could also read that, before you begin chanting your japa and then chant.   Then again this morning during Bhagavatam class,I gave Caitanya - caritamrita class. Caitanya Mahaprabhu was touring Vrindavan and we mentioned and reminded the audience that towards the end of Mahaprabhu's touring, Caitanya Mahaprabhu spent time at Akrura ghata. One day He went over to Imalitala on the banks of Yamuna and He was chanting. Caitanya Mahaprabhu was doing his nama japa underneath that tamarind tree on the banks of Yamuna.  We humorously said that Caitanya Mahaprabhu was chanting offenselessly. There is no need to mention this because Caitanya Mahaprabhu only chanted offenselessly. His chanting was never ever offensive chanting. He would get absorbed in chanting. There would be full concentration on the chanting and as a result of such chanting of 'Hare Krishna Hare Krishna' Caitanya Mahaprabhu became Krishna conscious.  In this case Radharani was the one who was chanting. Caitanya Mahaprabhu is in the mood of Radhabhav. He has become a devotee. He has become Bhaktarupa or he is in Bhaktarupa. He has become Radharani. As a result of that chanting, that morning Caitanya Mahaprabhu's whole complexion changed. He literally became Krishna conscious. Literally or spiritually became Krishna conscious. His complexion no more remained Gauranga or Gaursundara, but He became Syamsundara with a bluish complexion He attained Ghaniva syam.  This is one incident which explains how the chanting of Hare Krishna could transform you. That happened to Caitanya Mahaprabhu. He was no more golden in complexion but He had a Syamsundara bluish complexion. Of course He is the Lord and we can't expect our body to become Syamsundara like His. But different transformations are expected as are explained in the Nectar of Devotion- trembling of body or rolling on the ground, tears rolling down etc. So that day Caitanya Mahaprabhu exhibited the symptom of a change in complexion or symptom of pure chanting, chanting with devotion and emotions, feelings. After today's morning class, we discussed Caitanya Mahaprabhu's Vrindavan tour. He did Vraja Mandala parikrama of Vrindavan. So after we finished our prasada we went on a tour of new Vrindavan, following in the footsteps of Caitanya Mahaprabhu. Of course we were not in the Vrindavan but we were in New Vrindavan. There are several forests here and we went on a tour with my dear godbrother, good old friend Varasana Swami Maharaja who became the guide. I was also a guide and a large number of disciples, friends followers over a hundred we went on a Parikrama of new Vrindavan. Our first stop was a Palace of Gold. We took the tour and sat down and we talked and listened to Barasana Swami Maharaja speaking and sharing all realisations and history of the Palace of Gold. We heard that Prabhupada had visited the place once. Even though  the Palace of Gold was  not completed then you  could see the photograph. Both Barasana Maharaja, and I were in the photo there. Although we have less time left, I will share one thing, that Maharaja talked to us about this morning. I forget the year when Prabhupada took a tour of the Palace of Gold which was under construction. Devotees were doing a guided tour and those who were responsible for completing the construction of the palace they told to Prabhupada, ‘Prabhupada, we are going to have a lot of jewels and chandeliers. We are going to decorate this place truly with lots of gold. It will be much more decorated. It is unfinished now'. In response to that Prabhupada said, ‘My disciples, the devotees of this temple would be the jewels. They would be the real decorations.' It means that Prabhupada was more pleased not only with decorating the temple with jewels, but he was more interested in giving value to the devotees. Devotees are more important and valuable. They are the real decoration. Everybody would agree. Maharaja also said that this is Maha Bhagavat Srila Prabhupada’s mission. This is how Prabhupada was thinking. He wasn't thinking that my residence, my palace would be decorated or studded with gems or jewels, but my real decorations are the devotees. They are the jewels. We should also be thinking that way. If we can't manage to build the temple we should be making the devotees as decorations, the jewels and not just building the building. Devotees should be highlighted. The number should increase. They should be taken care of then the temple would shine. One final item that we did in New Vrindavan Parikrama. Our final stop was on the banks of Radha-kund and Syama-kunda. Here in New Vrindavan they managed to get some Radha-kunda water and they mixed it with waters here. So this is non-different from Radha-kunda in Vrindavan.  There is a temple of Radha-Gopinath which is under construction on the banks of Radha-kunda here in New Vrindavan. There are nice shady trees and also a Vrinda Devi temple on the banks of Radha-kunda. Among the shady  trees we talked and talked about Hari Katha. Maharaja spoke about the glories of Radha-kunda. The whole pastimes of how Radha-kunda and Syama-kunda came into existence. There was Kundeswar Mahadev also. The dome is not finished yet as they need some more funds. Radha- Gopinath temple can also be seen.  Keep chanting. Make sure that you chant in your chanting time. It is 9.45 pm here so good night, shubharatri to you all. India's good morning is good night here.   Hare Krishna!  Have a good day!

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