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जप चर्चा २१ नवम्बर २०२० हरे कृष्ण!

आज 688 स्थानों से प्रतिभागी जप कर रहे हैं। जय श्री राधे श्याम! श्याम... श्याम... श्याम.. राधे.. श्याम... श्याम... श्याम...!

हम धाम में पहुंचे हैं, ब्रजमंडल परिक्रमा कर रहे हैं। साथ में श्याम श्याम गा रहे हैं। हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। साथ में गाते रहते हैं। परिक्रमा के भक्त यह हरे कृष्ण महामंत्र कीर्तन किए बिना एक पग भी आगे नहीं रखते हैं। वैसे अन्य गीत भी गाते हैं, कीर्तन और नृत्य भी करते हैं। वृंदावन में भक्ति देवी नृत्य करती है।

वृन्दावनस्य संयोगात् पुनस्तवं तरुणी नवा। धन्यं वृंदावनं तेन भक्तिर्नृत्यति यत्र च।। ( पदम् पुराण, भागवत माहात्म्य(१.६१)

अर्थ:- श्री नारद जी कहते हैं," हे भक्ति, धन्य है ऐसे वृंदावन को, जहाँ पहुंचने पर आपको नव तारुण्य प्राप्त हुआ एवं जहाँ गली गली घर घर और प्रत्येक प्राणी के हृदय में ही नहीं, प्रत्येक लता पता की डाल और पत्रों पर आप नृत्य कर रही हैं।

वृंदावन धाम वह स्थान है, जहां भक्ति देवी नृत्य करती है। हरि! हरि! जब भक्ति देवी अस्वस्थ हुई और उनके पुत्र ज्ञान और वैराग्य उनसे और भी अस्वस्थ हुए। यह गुजरात में हुआ था। (नहीं कहेंगे आपको...) हरि! हरि!

वहीं भक्ति देवी, जब वृंदावन पहुंची तब पुनः उनकी जान में जान आ गई और वह नृत्य करने लगी। वृंदावन धाम की जय!

ब्रेक द न्यूज़ कहो। हम एक गोपनीय बात अथवा रहस्य को प्रकट करना चाह रहे थे। वर्चुअल परिक्रमा तो हो ही रही है लेकिन साथ ही साथ वास्तविक (रियल) परिक्रमा भी हो रही है। आपसे जानबूझकर यह समाचार छिपाया था। परिक्रमा को अखंड बनाए रखने के लिए यह 34वीं परिक्रमा भी कुछ गिने-चुने भक्तों ने की। उसमें हमारे परिक्रमा के जो प्रधान अथवा नेता परम पूजनीय राधारमण स्वामी महाराज हैं, उन्हीं के नेतृत्व में हो रही है। परम पूजनीय राधारमण स्वामी महाराज की जय! वे स्वयं परिक्रमा में जा रहे हैं। साथ में परिक्रमा परिक्रमा कमांडर इष्टदेव प्रभु और दशरथ प्रभु भी जा रहे हैं, जो साउंड पार्टी और टेंट सेटअप हर साल करते रहते हैं व अन्य भी एक-दो भक्त हैं। ब्रजभूमि प्रभु भी हर साल की भांति पदयात्रियों राधारमण स्वामी महाराज और अन्य भक्त जो परिक्रमा कर रहे हैं, को अपना कोआर्डिनेशन (सहयोग) कर रहे हैं, उनकी गणना उंगलियों पर हो सकती है। उनकी सेवा में ब्रज भूमि प्रभु भी व्यस्त हैं। इस वर्ष रियल( वास्तविक) परिक्रमा ब्रज में संपन्न हो रही है। यह आपके लिए शुभ समाचार है लेकिन वे कहां तक पहुंचे हैं इत्यादि इत्यादि, हम यह नहीं बताएंगे क्योंकि हम संख्या नहीं बढ़ाना चाहते हैं। इसीलिए हमनें इस बात को छिपा कर रखा था। आप इस वर्चुअल परिक्रमा में सम्मलित हुए हो। आपने वर्चुअल परिक्रमा करने का जो संकल्प लिया है, उसी को पूरा करो और आगे बढ़ो। आप यह परिक्रमा करते करते शेषशायी पहुंचे हो। आज परिक्रमा शेषशायी से शेरगढ़ जाएगी। वैसे यह परिक्रमा प्रातः काल में लगभग 6: बजे प्रारंभ होती है। शेषशायी से परिक्रमा ने प्रस्थान किया है और आज उनका गंतव्य स्थान शेरगढ़ है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी वहां (शेषशायी) पहुंचे हैं निताई गौर सुंदर के रूप में अर्थात ऑल इंडिया पदयात्रा के विग्रह, परिक्रमा के विग्रह बनते हैं वह हमारे साथ नहीं चलते बल्कि हम उनके साथ चलते हैं। वैसे भी परिक्रमा का नेतृत्व स्वयं भगवान श्री श्री निताई गौर सुंदर ही किया करते हैं। हम तो केवल साथ में जाते हैं। किन्तु मैं आपको स्मरण दिला रहा था कि ५०० वर्ष पूर्व श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी मथुरा वृंदावन आए थे और उन्होंने भी वृंदावन की परिक्रमा की थी। वे वृंदावन धाम के प्रेमी थे। वैसे उन्होंने कहा है और चैतन्य महाप्रभु का मत फाइनल( अंतिम) ही होता है। संसार भर में मत मतान्तर होते ही रहते हैं। उन मतों की क्या कीमत है।

आराध्यो भगवान् व्रजेशतनयस्तद् धाम वृंदावनं रम्या काचीदुपासना व्रजवधूवर्गेण या कल्पिता । श्रीमद भागवतं प्रमाणममलं प्रेमा पुमर्थो महान् श्रीचैतन्य महाप्रभोर्मतामिदं तत्रादशे नः परः ।। (चैतन्य मंज्जुषा)

अनुवाद : भगवान व्रजेन्द्रन्दन श्रीकृष्ण एवं उनकी तरह ही वैभव युक्त उनका श्रीधाम वृन्दावन आराध्य वस्तु है। व्रजवधुओं ने जिस पद्धति से कृष्ण की उपासना की थी , वह उपासना की पद्धति सर्वोत्कृष्ट है । श्रीमद् भागवत ग्रन्थ ही निर्मल शब्दप्रमाण है एवं प्रेम ही परम पुरुषार्थ है - यही श्री चैतन्य महाप्रभु का मत है। यह सिद्धान्त हम लोगों के लिए परम आदरणीय है ।

चैतन्य महाप्रभु के मत के अनुसार बृजेशतनय कृष्ण कन्हैया लाल की आराधना हो और साथ ही साथ हम तद् धाम वृंदावनं अर्थात उनके धाम वृंदावन की भी आराधना करें। चैतन्य महाप्रभु ने ऐसा विधान दिया अथवा किया है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं ही वृंदावन के प्रेमी थे। वैसे कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने चैतन्य चरितामृत के मध्यलीला के दो अध्यायों में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जो ब्रजमंडल परिक्रमा की है, उस परिक्रमा की कथा का वर्णन किया है। वहां वे लिखते हैं कि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जहाँ कहीं पर भी होते हैं लेकिन वृंदावन की गौरव गाथा सुनते ही उनके अंदर ऐसा भक्ति भाव उदित अथवा प्रकट होता है जो कि उनके साधारणतया भावों की स्थिति से 100 गुणा अधिक होता है अर्थात वृंदावन के संबंध में कहीं पर भी सुनते ही (चाहे यहां हो या वहां हो या दक्षिण भारत की यात्रा में हो) उनके अंदर उच्च भाव, विचार 'हाई थिंकिंग', इमोशन की लहरें तरंगे सौ गुना अधिक बढ़ जाती हैं।

कृष्ण दास कविराज गोस्वामी आगे लिखते हैं कि जब वे वृंदावन के रास्ते में थे अर्थात जगन्नाथपुरी से वृंदावन आ रहे थे तब उनके भाव भक्ति, तरंगे सब आंदोलित हो रहे थे। वह तरंगे 1000 गुना अधिक हो गई थी। जैसे जैसे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु में मथुरा वृंदावन के निकट आ ही गए तब तो उनके भाव दस हजार गुना अधिक हो गए। साधारणतया जो उनके भावों तरंगों आंदोलन की स्थिति या उँचाई रहा करती थी,लेकिन जब वे ब्रजमंडल की परिक्रमा कर ही रहे थे तब10000 गुणा अधिक वह भाव बढ़ गए। अब वृंदावन पहुंचे हैं। हरि! हरि! वृंदावन में वे स्वयं ही कीर्तन कर रहे हैं। कीर्तन और नृत्य के साथ ब्रज का भ्रमण अथवा यात्रा हो रही है। तब उनके भावों का क्या कहना? 1000 गुणा अधिक या 1000*1000 कहो। ऐसे भाव उदित होने लगे। जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु वृंदावन की परिक्रमा कर रहे थे तब उनके हृदय प्रांगण में खलबली मच गई। जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु परिक्रमा कर रहे थे तब पूरे वृंदावन में ही खलबली मच गई। गौर सुंदर आए थे किन्तु मथुरा और वृंदावन के वासियों व भक्तों ने समझा अथवा उनका ऐसा साक्षात्कार हुआ कि हमारे श्याम सुंदर ही लौटे हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु, जब कृष्ण जन्म स्थान पर स्थित केशव देव के मंदिर पर दर्शन के लिए गए। वहाँ महाप्रभु ने कीर्तन और उदण्ड नृत्य किया। यह देखने के लिए सारे मथुरा मंडल या वृंदावन के निवासी वहाँ पहुंच गए। ऐसा सौंदर्य भी कहो या ऐसा नृत्य या ऐसी भाव- भंगिमा भी देखकर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारे श्याम सुंदर यहाँ हैं। श्याम सुंदर की जय! श्याम सुंदर की जय!

उन्होंने पैदल परिक्रमा की। मधुवन से तालवन फिर कुमदवन, बहूलावन, वृंदावन इस तरह से महाप्रभु जाते जा रहे हैं। मार्ग में उनका स्वागत हो रहा है।

गाएँ भी जब महाप्रभु को वहां से जाते हुए देखती हैं, गाय दौड़ पड़ती हैं, उनको घेर लेती हैं जैसा कि कल गोपाष्टमी है, गाय और गोपाल के मध्य का जो आदान-प्रदान है, जैसा कि कृष्ण की प्रकट लीला में प्रेमपूर्वक आदान प्रदान (लविंग डीलिंग एक्सचेंज) हुआ करता था, वैसा ही श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब ब्रज मंडल परिक्रमा कर रहे थे, हुआ।

गाय दौड़ पड़ती और महाप्रभु को घेर लेती और उनके अंगों को चाटने लगती। महाप्रभु उनको अपने हाथों से खुजलाते, सहलाते। महाप्रभु आगे बढ़ना चाहते हैं, गाय उनका पीछा नहीं छोड़ना चाहती। गाय के रखवाले ( ग्वाले) गायों को अपनी पूरी शक्ति के साथ रोकने का प्रयास कर रहे हैं किंतु महाप्रभु अब उन गायों के लिए उनके श्याम सुंदर ही हैं। जो एक चुम्बक (मैग्नेट) की तरह सभी गायों को खींच रहे हैं। इस प्रकार कौन गायों को रोक सकता है। ग्वाले कैसे रोक पाएंगे? गायों को रोकना मुश्किल होता जा रहा था। महाप्रभु आगे बहुला वन इत्यादि वनों से जा रहे हैं। कई सारे पशु पक्षी आकाश में यहां तक कि भ्रमर भी वहां पहुंच कर अपनी गुंजाइश कर रहे हैं, पक्षियों का कलरव हो रहा है, वे गान कर रहे हैं। कृष्ण दास कविराज गोस्वामी कहते हैं - पंचम गान सा...रे...गा...मा....पा... इसे पंचम स्वर या गान कहते हैं। पक्षियों का गान थोड़ा हाई (उच्च) होता है। वे सब गायन कर रहे हैं। मोर महाप्रभु के समक्ष है। उनके मुख महाप्रभु की ओर हैं। महाप्रभु जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं, मयूर नृत्य करते हुए मानो रिवर्स गियर में जा रहे हैं। मयूर अपना हर्ष उल्लास व्यक्त कर रहे हैं। मानो रिसेप्शन पार्टी में मयूरों तथा अन्य पशुओं के द्वारा भगवान का स्वागत हो रहा हो। महाप्रभु के सानिध्य में वृक्ष भी कुछ पीछे नहीं हैं। गौर सुंदर, जिनको वे श्याम सुंदर मान रहे हैं। हरि! हरि! कृष्ण दास कविराज लिखते हैं कि कई वृक्षों से शहद के बिंदु गिर रहे हैं। उनके पत्तों से कुछ आद्र अथवा जल के कुछ बिंदु गिर रहे हैं मानो थोड़े हवा के झोंके के साथ वे सब गिर रहे हैं मानो वृक्ष आंसू बहा रहे हैं। वृक्षों के पास जो भी है फूल अथवा लताबेल, वे सब अपनी शाखाओं को गिरा रहे हैं। वृक्षों की शाखाओं जैसे वृक्षों के हाथी हैं, जो कि चम्पक, गुलाब, चमेली या परिजात के पुष्पों की वृष्टि कर रहे हैं। महाप्रभु भिन्न भिन्न वृक्षों के नीचे से जब नृत्य करते हुए आगे बढ़ रहे हैं तब उनका पुष्प अभिषेक हो रहा है। जब हम मंदिर में पुष्प अभिषेक करते हैं अथवा मायापुर में पञ्चतत्व का अभिषेक होता है। तब हम उसके लिए फूल कहां-कहां से मंगवाते हैं। कभी सिंगापुर कभी हवाई यहां से, वहां से,..तब खूब पुष्प वृष्टि होती है। लेकिन यहां तो ना तो कोई शॉपिंग कर रहा है, ना ही कोई... वृक्ष स्वयं ही फूलों की वृष्टि महाप्रभु के ऊपर कर रहे हैं। कैसा दृश्य होगा, हम उसको बता ही रहे हैं। कल्पना करने की आवश्यकता भी नहीं है। मैं सोच रहा था कि जब कृष्ण दास गोस्वामी चैतन्य महाप्रभु की वृंदावन की परिक्रमा का वर्णन करते हैं। उस समय चैतन्य चरितामृत भी शास्त्रचक्षुषा ही है। हम उन शास्त्रों की आंखों से देखते हैं कि भगवान, गोलोक वृंदावन में कैसे चलते हैं? उनका हर कदम एक नृत्य है, महाप्रभु का डांस चल रहा है, नृत्य चल रहा है और वृंदावन के चर अचर सभी सजीव हैं, सभी भक्त हैं। कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने चैतन्य चरितामृत में भक्ति दिखाई है।

गायों की भक्ति देखिए, पक्षियों की भक्ति देखिए, वृक्षों की भक्ति देखिए, मानो हम देख रहे हैं। साधारणतया गोलोक में कैसा वातावरण होता है। भगवान और भक्तों के बीच में कैसा आदान-प्रदान होता है। एक छोटी सी झलक अथवा नमूना कहो, ऐसा होता है, वैसा होता है या ऐसा ब्रज मंडल है। एक बंधु दूसरे बंधु को कुछ भेंट देना चाहता है। कृष्ण दास कविराज गोस्वामी लिखते हैं जिनके पास जिन वृक्षों के पास फल है, वे फल दे रहे हैं, पूरी भक्ति के साथ फल गिर रहे हैं। यही है। पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति | तदहं भक्तयुपहृतमश्र्नामि प्रयतात्मनः।। ( श्रीमद् भगवतगीता ९.२६)

अनुवाद: यदि कोई प्रेम तथा भक्ति के साथ मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है, तो मैं उसे स्वीकार करता हूँ ।

पत्रम, तुलसी पत्ते भी हैं अर्थात उस वृंदावन में तुलसी के पत्र भी हैं जो कि स्वयं को भगवान के चरणों में अर्पित कर रहे हैं। हरि! हरि!

या पत्रं, पुष्पं ... पुष्पं वृष्टि हो रही है। फलं तोयं जोकि जलबिंदु है, देख लीजिए, पत्रं पुष्पं फलम तोयम... जिसका उल्लेख भगवान भगवत गीता के 9 अध्याय के 26 वें श्लोक में करते हैं। बड़ा प्रसिद्ध श्लोक है। मुझे पत्रं पुष्पं फलं तोयं अर्पित करो। ये सब वृक्षों से प्राप्त होते हैं। पत्रम वृक्षों से प्राप्त होता है। पत्रं पुष्पं फलं तोयं ... कुछ जल वृक्षों से प्राप्त होता है। हरि! हरि!

श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की यात्रा हो रही है। एक बार चैतन्य महाप्रभु ने देखा कि एक वृक्ष की शाखा पर शुक और शारिका बैठे हैं। महाप्रभु यह देख रहे थे लेकिन सुन नहीं पा रहे थे कि उनका क्या संवाद हो रहा है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि ये क्या बोलते होंगे? क्या चर्चा हो रही है ? मैं सुनना चाहता हूं। उनके मन में ऐसा विचार आते ही शुक और शारिका वहां से उड़ान भरते हैं और चैतन्य महाप्रभु की ओर आते हैं। जब चैतन्य महाप्रभु ने अपने हाथों को आगे बढ़ाया तब शुक उनके दाहिने हाथ में बैठ गया और शारिका उनके बाएं हाथ पर बैठ गयी। उनमें वार्ता अथवा डायलॉग होने लगा। कृष्ण दास कविराज गोस्वामी इसका बहुत सुंदर वर्णन करते हैं। वह भी श्रवणीय है, पठनीय है। आप उसे पढ़िएगा। इस प्रकार श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की यात्रा ब्रजमंडल की यात्रा हो रही है। वे स्वयं यात्री या भक्त के रूप में यात्रा कर रहे हैं अथवा करना चाहते हैं किंतु उनकी भगवत्ता को छिपाया नहीं जा सकता। क्या सूर्य के प्रकाश को कोई छिपा सकता है। संभव नहीं है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कृष्ण सूर्य सम हैं।

कृष्ण सूर्य सम; माया हय अंधकार।याहाँ कृष्ण, ताहाँ नाहि मायार अधिकार।। ( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला श्लोक२२. ३१)

अनुवाद:- कृष्ण सूर्य के समान हैं और माया अंधकार के समान है। जहाँ कहीं सूर्य- प्रकाश है, वहाँ अंधकार नहीं हो सकता। ज्यों ही भक्त कृष्णभावनामृत अपनाता है, त्यों ही माया का अंधकार ( बहिरंगा शक्ति का प्रभाव) तुरंत नष्ट हो जाता है। वे कोटि सूर्य सम प्रभावी हैं। उनकी भगवत्ता का प्रदर्शन हो रहा है और सारा ब्रज प्रभावित हो रहा है। जब महाप्रभु शेषशायी पहुंचे और उन्होंने शेषशायी का दर्शन किया। अनंत शेष की शैया पर भगवान लेटे हुए हैं, विश्राम कर रहे हैं। जब महाप्रभु ने वह दर्शन किया तब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के मन या हृदय में माधुर्य रस उदित हुआ और वे गोपी गीत गाने लगे और विशेषकर गोपी गीत का जो अंतिम श्लोक है, चैतन्य महाप्रभु उसका उच्चारण करने लगे जिसे गोपियों ने कहा है। इसमें राधा रानी भी हैं, भूलिए नहीं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जो यात्रा कर रहे हैं, वह केवल कृष्ण ही नहीं हैं, वे राधा भी हैं।

श्रीकृष्णचैतन्य राधाकृष्ण नहे अन्य ( चैतन्य भागवत) अर्थ:- भगवान चैतन्य महाप्रभु अन्य कोई नहीं वरन श्री श्री राधा और कृष्ण के संयुक्त रूप हैं।

चैतन्य महाप्रभु, शेषशायी में गोपी गीत के अंतिम वचन का गान करने लगे। हमें समझना चाहिए चैतन्य महाप्रभु, जो राधा रानी हैं राधाकृष्ण नहे अन्य, अर्थात राधारानी ही गोपीगीत गा रही हैं। राधा के साथ में अन्य गोपियां मिलकर गा रही थी। शेषशायी में महाप्रभु पहुंचे हैं। चैतन्य चरितामृत मध्य लीला में अन्य स्थान पर वर्णन आता है कि चैतन्य महाप्रभु, जब अद्वैत आचार्य के साथ बंगाल में थे। उन्होंने वृंदावन में शेषशायी में जो लीला संपन्न हुई, जहाँ कि परिक्रमा पहुंची हैं, वहाँ की लीला चैतन्य महाप्रभु ने अद्वैत आचार्य के साथ खेली। वहाँ और भी भक्त थे, जो इस दृश्य को देख रहे थे। चैतन्य महाप्रभु ने अद्वैत आचार्य को कहा कि आप लेट जाइए। वे लेटे गए अर्थात अद्वैत आचार्य, अनंत शैया बन जाते हैं। वैसे अद्वैत आचार्य महाविष्णु हैं। संकर्षण से महाविष्णु होते हैं। महाविष्णु से अद्वैत आचार्य होते हैं। संकर्षण मतलब वास्तविक बलराम। संकर्षण से ही तो अनंत शेष बनते हैं। अद्वैत आचार्य अनंत शेष की भूमिका निभाते हैं। यह लीला बंगाल या नवद्वीप या शांतिपुर में कहीं हुई थी। अनन्त शैय्या तैयार हो गयी, चैतन्य महाप्रभु के लेटने, बैठने व आराम करने का स्थान बन गया। चैतन्य महाप्रभु स्वयं चतुर्भुज रूप धारण करके बैठे हैं, आनंद ले रहे हैं। लक्ष्मी भी पहुंच जाती है जो उनके चरणों की सेवा कर रही है। चैतन्य महाप्रभु ने ऐसी लीला भी पहले ही खेली थी और पुनः शेषशायी वृंदावन में पहुंचते हैं तब यहां पर उनको स्मरण हो रहा है। वह राधा रानी के भाव में गोपी गीत का जो अंतिम वचन है, वे उसका गान कर रहे हैं, स्मरण कर रहे हैं। श्री चैतन्य महाप्रभु वहां से भी आगे बढ़ते हैं। हरि! हरि! ओके! समय बीत चुका है। दिन में जब भी आपके ऐप में आज की तारीख में यह परिक्रमा रिलीज होगी। आप उसे देखने सुनने और ज्वाइन करने के लिए अवश्य सम्मिलित होइयेगा।, देखिए, सुनिए व दूसरों को भी प्रेरित कीजिए। दामोदर मास और दामोदर व्रत या दामोदर का दीपदान करते रहिए व औरों से करवाते रहिए। हरि! हरि! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!

कोई प्रश्न या टीका टिप्पणी है तो आप लिख सकते हैं। आज का टॉक सुनकर आपका क्या अनुभव रहा, कैसे लगा, कुछ समझे या नहीं समझे। आप लिख सकते हो।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

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